Phone

9140565719

Email

mindfulyogawithmeenu@gmail.com

Opening Hours

Mon - Fri: 7AM - 7PM

सीने में दर्द के कारण ,लक्षण ,बचाव और उपचार

हर सीने का दर्द हृदयरोग नहीं होता। फिर भी सीने का दर्द होने पर चुप बैठकर खतरा मोल न लें। अपने चिकित्सक से चेक करवा लें। हो सकता है गैस होने से, वायु होने से, इसका अधिक दवाब होने से ही सीने में दर्द हो।

स्वयं कैसे चेक करें इस रोग को?

अच्छे चिकित्सक अपने रोगियों को सही रास्ता दिखाने में रुचि लेते हैं। और वे अपने रोगी-परिवारों को निम्नलिखित घरेलू चेकअप की सलाह देते है।

स्टूल पर तेजी से चढ़ना-उतरना, ऐसा दो दर्जन बार करना, इस रोग का सही चैक है। यदि इससे सांस अधिक फूलने लगे, तो समझे हृदयरोग का कुछ असर आप पर हो चुका है।

यदि आप इस व्यायाम को करने से पूर्व अपनी नाड़ी की धड़कन नोट कर लें तथा बाद में फिर नोट करें। अंतर मामूली लगे, तो आप पूरी तरह स्वस्थ है वरना यह रोग पांव फैला रहा है। तुरंत डॉक्टर की सलाह लें।

हृदयरोग की कुछ संभावनाएं निम्नलिखित लक्षण देखकर भी जान ली जाती है:

(i) नाड़ी की गति धीमी होना।(ii) थोड़ी हरकत से ही मुंह का रंग लाल पड़ जाना।(iii) शरीर का तापमान कम रहे, शरीर ठंडा-ठंडा रहे, तो भी संभलें।(iv) उत्तेजना में न आएं।

यदि किसी भी प्रकार की उत्तेजना से छाती में दर्द का आभास हो, तो जरुर कहीं गड़बड़ समझें। यदि ऐसी बातें दिखें या भोजन के बाद असहज दिखें, तो समझें कि हृदयरोग है। इसे ही अल्पकालिक हृदयशूल का नाम दिया जाता है।

यदि पसीना निकलने लगे, शरीर नीला होने लगे, चेहरे का रंग पीला पड़ने लगे, नाड़ी की धड़कन कम हो, बुखार रहे, दस्तों या उल्टियों का वेग बढे, तो भी सचेत हो जाना ज़रूरी है। मात्र छाती के बाएं हिस्से में दर्द होना ही हृदयरोग की निशानी नहीं है। ऊपर विस्तार से बताई अन्य बातों को भी ध्यान में रखना ज़रूरी है।

क्या करें, यदि हृदयरोग की संभावना लगे?

यदि हृदयरोग की जरा भी संभावना लगे या यह पक्का हो जाए कि हृदयरोग हो गया है, तो नीचे बताई कुछ बातों को तुरंत ध्यान में रखें तथा अपनाएं:

1. घबराहट से बचें। बेचैनी न आने दें। धीरज से काम लें।

2. रोगी अपने मानसिक संतुलन को बनाए रखे। आनन-फानन में कुछ ऐसा न करें, जिससे उसँके मानसिक संतुलन के बिगड़ने का भय हो।

3. रोगी की देखभाल करने वाले भी ऊपर बताई दोनों बातों का पूरा पालन करें, वरना वह अधिक विचलित हो जाएगा तथा उसको हृदयरोग की व्यग्रता हो सकती है।

4. अभिभावक उसके बटन खोलकर वस्त्र ढीले कर दें, जिससे उसे ‘ईजी’ (आराम) महसूस होने लगे। अफरा-तफरी का सा माहौल पैदा करके, उसकी परेशानी को और न बढ़ाएं। उसे सहज होने दे।

5. रोगी को ऐसा महसूस न होने दें कि वह खतरे से गुजर रहा है, नहीं तो उसे अधिक घबराहट होगी और रोग गंभीर हो सँकता है।

6. ऐसी अवस्था में तुरंत डॉक्टर को फोन कर दे या रोगी को डॉक्टर के पास ले जाएं

7. डॉक्टर के पहुंचने तक यदि रोगी दिल की धड़कन बंद होने की शिकायत करने लगें, तो भी घबराएं नहीं। रोगी की रीढ़ की हड्डी पर गरम तथा ठंडे पानी की पट्टी से बारी-बारी सेंक दें।

8. स्पंज करना भी ठीक रहता है। प्यार इन क्रियाओं को भली प्रकार पहले समय रखा हो, तभी करना ठीक रहता है।

9. यदि उसके दिल की धड़कन बढ़ रही हो, तो ठंडी पट्टी निचोड़ कर, करने से लाभ होता है। धड़कन घटकर सामान्य हो जाती है। क्रिया पूरी तरह समझी हुई होनी चाहिए।

रोग के आभास होते ही जीवन पद्धति बदल डालें :

यदि किसी व्यक्ति को हृदयरोग का आभास हो जाए, तो उसे अपनी जीवन पद्धति ही बदल देनी चाहिए। तब ही रोग जड़ से उखाड़ा जा सकता है। कम-से-कम इसे बढने से तो रोका ही जा सकता है। साथ-ही साथ डॉक्टर की बताई दवा तथा परहेज़ को भी अपनाए। अच्छे स्वास्थ्य तथा दीर्घ आयु के लिए निम्नलिखित बातें आवश्यक हैं:

1. किसी भी प्रकार का नशा न करें।

2. सूर्यास्त से पहले बिस्तर त्याग दें। शौच आदि से निवृत्त होकर सैर को निकल जाएं। यदि अधिक ठंड हो, तो खूब कपड़े पहनकर जाएं। खुले वातावरण में सैर करते समय लंबे, तेजे कदम तथा लंबे सांस लेना इस रोग से मुक्ति दिलाते है।

3. बाग-बगीचे में जाकर हलका व्यायाम-योगासन अवश्य करें। ये रोग को खत्म कर देते है।

4. अपने आहार में पूरी तरह परिवर्तन कर लें। वसा ह्रदयरोगी के लिए हानिकारक होती हैं। तेल, मक्खन, घी का कम-से-कम उपयोग करें।

5. डीप फ्राई तथा फ्राई किए खाद्य पदार्थ न खाएं। तले परांठे, पूरी, कचौरी, टिक्की, समोसा, पकौड़े आदि सभी हानिकारक हैं।

6. कचौड़ी, बालूशाही तथा भारी-तली मिठाइयां बिलकुल न खाएं, वरना हृदयरोग बढेगा।

7. ऐसे व्यक्ति के भोजन से चाट-पकौडी जैसे तले पदार्थ पूरी तरह हटा दे। मुंह के स्वाद के पीछे मत भागें।

8. अधिक-से-अधिक हरी, ताजा सब्जियां तथा सलाद खाएं।

9. ताजा, मौसमी फल खाना इस रोग के बचाव में बेहतर होता है। आंवला, नीबू संतरा आदि भी लाभ पहुंचाते है।

10. चावल में रुचि मत रखें। गेहूं की मोटी रोटी, बिना चोकर निकाले खाएं। अकुरित गेहं अन्य अनाज, दालें काफी लाभ देते है। खाने में इनकी मात्रा बढाएं।

11. ईसबगोल तथा इसका छिलका किसी-न-किसी रूप में नियमित लें।

12. भोजन करते समय मन शांत रखें। जितना प्रसन्नचित्त रहकर भोजन करेगें, उतना ही फायदा होगा। एक-एक कौर को कई-कई बार चबाएं तथा खूब बारीक करके निंगलें। वैसे तो एक कौर को 32 बार चबाना चाहिए।

13. किसी भी काम में जल्दी न करें। धीरे, संतुलित मन से हर काम में हाथ डालें। गुस्सा करना, फिक्र में डूबे रहना, अपने आपको टेंशन में रखना, हर बात को गहराई से तथा बार-बार सोचना ठीक नहीं। कुछ भाग्य तथा ईश्वर की इच्छा पर भी छोड़ दे। जो होगा देखा जाएगा। भयभीत रहना या दूसरों को भयभीत करने का प्रयत्न करना, हृदयरोगी के लिए घातके होते है।

14. चिंता चिता समान होती है, यह पक्की बात है। ईश्वर जो भी करता है, सदा अच्छा ही करता है। उसकी इच्छा के सामने झुकना तथा परिणाम को सहर्ष स्वीकार करने की आदत बनाएं। बहुत लाभ होगा।

15. जो नहीं मिला, उसकी चिंता करके अपने आपको अभागा न समझें। जो मिला है, उससे आनंदित रहें। ईश्वर की कृपा के लिए कृतज्ञ हों। उसको बुरा-भला मत कहें। जो नहीं मिला, उसके पीछे चिंता करके अपनी उँपलब्धियों पर पानी न फेरे।

16. प्राणायाम जैसे योगासन इस रोग में लाभ देते है। इनसे सहनशीलता में भी वृद्धि होती है

17. प्रातः उठकर एक दो गिलास पानी धीरे-धीरे नियमित पीना चाहिए। पानी को गट-गट करके कभी नहीं पीना चाहिए। एक दिन में कम से-कम दस-बारह गिलास पानी पीना चाहिए

18. महात्मा गांधी सादा जीवन जीने की सदा वकालत करने थे और स्वयं भी साधारण रूप से रहते थे। ह्रदयरोगी के लिए तो यह बहत ज़रूरी है। जो जीने का आनंद सादगी में है, वह तड़क-भड़क में नहीं। आइये जाने सीने में दर्द का उपचार कैसे करें

सीने में दर्द का घरेलू इलाज :

हृदयरोग से बचने के लिए या इससे छुटकारा पाने के लिए घरेलू उपचार अपनाकर लाभ उठाएं। आइए, इन्हीं परें विचार करते है।

1. हृदयरोगी को आरामदायक बिस्तर पर लिटाकर गुलाब का इत्र सुंघाए। छाती पर भी धीरे-धीरे मलें। गुलाब का इत्र बहुत उपयोगी होता है।

2. गुलाब का ताजा फूल मिले, तो उसे सुंघने को दें।

3. एक माशा ज़वाखार की मात्रा को गुलाब के अर्क में चंदन की तरह घिसें। घिसे अर्क को पतला करकें पीने को दें। यह तुरंत असर दिखाएगा। लहसुन का प्रयोग भी हृदयरोग में लाभकारी होता है। दूध उबालते समयें उसमें लहसुन के दाने छीलकर डालें। खूब पकने पर लहसुन के दाने छीलकर डालें। खुब पकने पर लहसुन के दाने छानकर निकाल दें और दूध पिला दें।

4. एक मुनक्के की गुठली निकालें और गुठली के स्थान पर हींग का छोटा टुकड़ा फिट करें। इस मुनक्के को गरम पानी से निगल लें।

5. आप जानकर चकित होंगे कि हदय के रोगी के लिए अरवी की सब्जी बहुत उपयोगी होती है। एक समय में एक छोटी कटोरी सब्जी खिलाएं। मगर दिन में तीन बार कई दिनों तक खिला सकते

6. भोजन करने के तुरंत बाद शहद का खाना अधिक उपयोगी होता है। अतः खाने के बादं छोटे दो चम्मच प्रतिदिन लें।

7. हृदय-रोगी प्रतिदिन एक सेब चबा-चबाकर खाएं या एक छोटा गिलास सेब का रस पिएं, तो भी उत्तम रहेगा।

8. हृदय-रोगी पानी में रात में भीगी हुई लहसुन की पांच कलियां (दाने) प्रात: चबाकर खाएं और उस पानी को भी पी लें। ऐसा कुछ दिनो तक करने से रोगी रोग मुक्त हो सकता है, क्योंकि खून में कोलेस्ट्रोल की कमी करता है।

9. प्याज का रस एक चम्मच, एक चम्मच शहद के साथ नियमित दें। इससे खून से विद्यमान कोलेस्ट्रोल कम होता है तथा दिल मज़बूत होता है।

10. एक चम्मच शहद में दो छोटे चम्मच आंवले का चूर्ण मिलाकर खाने से रोग नियंत्रित होता है।

11. अंगूरों का ताजा रस निकालकर एक कप रोजाना पिलाएं। सप्ताह भर पिलाने से बहुत राहत मिलेगी।

12. थोड़े-थोड़े करके तीन-चार बार में 250 ग्राम अंगूर प्रतिदिन खाएं।

13. अर्जुन छाल का चूर्ण भी लाभकारी होता है। अर्जुन छाल को कूट पीसकर कपड़े से छानकर रख लें। एक छोटा ‘गिलास गरम दूध में छने पाउडर के छोटे दो चम्मच और एक चम्मच शहद मिलाकर पिएं। इसे तीन दिन तक दोहरा सकते है।

हमारे भोजन में 30 प्रतिशत तक कोलेस्ट्रोल होता है जो पीलापन लिए वसायुक्त पदार्थ है।

ऊपर दिए गए उपचारों से कोलस्ट्रोल की मात्रा को बढ़ने न दें। साथ में भोजन में भी घी, मक्खन, तेल आदि को कमसे-कम लें। नशा न करें तथा मांस, अंडा न खाएं। कुछ नियमित व्यायाम करें। आपके रक्त में कोलेस्ट्रोल की मात्रा अवश्य कॉबू में रहेगी।

अंकुरित अनाज, आंवला, नीबू सूरजमुखी के बीज, सोयाबीन का तेल, प्याज, लहसुन आदि प्रयोग में लाने से भी कोलेस्ट्रोल सीमा के अंदर रहता है और रोग से बचाव होता है।

इस विस्तृत लेख में हमने हृदय रोग के लक्ष्य, कारण, बचाव आदि पर पूरी जानकारी देने का प्रयत्न किया है। इस पर अमल करने से रोग की संभावना को कम किया जा सकता है तथा रोग को घटाया भी जा सकता है। फिर भी आप अपने डॉक्टर के संपर्क में रहकर इस घातक रोग से बच सकते हैं। जितना अधिक परहेज़ करेंगे, उतना जल्दी फायदा होगा।

Recommended Articles

Leave A Comment