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क्या आपकी सोच हर
पल नकारात्मक हैं?
😨😨😨😨😨😰

दोस्तो,

 सु प्रभात । आपका दिन शुभ और मंगलमय हो। 
आज का यह लेख समर्पित उन लोगो के लिये जिनकी सोच नकारात्मक है, जो कोई काम करने के पहले लेकिन, किन्तु, परन्तु, आदि का सहारा लेते हैं ।

  सोचना एक कला है। इस कला को जो जान लेता है , उसका मार्ग बहुत साफ एवं जीवन सफल बन जाता है। हम जैसा सोचते हैं , धीरे-धीरे वही सच्चाई बन जाती है। सफल व्यक्ति परिस्थिति को सकारात्मक स्वरूप देते हैं।

  पहले हम एक कहानी से इस लेख के अभिप्राय को समझते हैं ।

एक व्यक्ति था। वह सदा सकारात्मक रहता था। जब कभी कुछ अप्रत्याशित घटना घटती, उसकी प्रतिक्रिया होती, “यह इससे भी अधिक बुरा हो सकता था”। यहाँ तक कि यह सब उसके मित्रों को नाराज करने लगा। जब कोई हर समय पूर्णत: सकारात्मक रहता है तो यह औसत सोच वालों के लिए परेशानी का कारण बन सकता है।

एक दिन उसका एक मित्र उसके पास आया और बोला, “कल रात मैंने स्वप्न में देखा कि मैं कार चला रहा था और मेरी भयंकर दुर्घटना हो गई। मेरे शरीर की हर एक हड्डी चकनाचूर हो गई। चिकित्सकों ने हर संभव प्रयत्न किया किन्तु वे मुझे बचा नहीं पाये। मुझे विद्युत के झटके तक दिये गए परंतु कोई सफलता नहीं मिली। और, अंततः, उन्होने मुझे मृत घोषित कर दिया। यमदूत मुझे बलपूर्वक नरक के द्वार तक ले गए। वहाँ मुझे बुरी तरह परिताड़ित किया गया और मैंने अत्यधिक कष्ट अनुभव किया। तत्पश्चात, उन्होंने मुझे ले जाकर बहुत गर्म तेल की कढाही में डाल दिया। मेरा बदन जल गया, मैं रोया, चिल्लाया, किन्तु किसी ने भी मेरी सहायता नहीं की। ऐसा कष्ट मैंने पहले कभी नहीं झेला। जब मैं प्रातःकाल उठा तो बहुत सहमा हुआ था। मैं अभी भी सदमे में हूँ। यह तो बहुत बुरा संकेत है।”

“अरे, ऐसी कोई बात नहीं, डरो मत,” वह व्यक्ति बोला, “यह इससे भी अधिक बुरा हो सकता था।”

“तुम यह कैसे कह सकते हो कि इससे भी अधिक बुरा हो सकता था! भला इससे अधिक बुरा और क्या हो सकता है?” उसका मित्र झल्लाया।
“यह सब सच भी तो हो सकता था,” वह व्यक्ति शांत स्वर में बोला।

  आप बीमार पढ़ते हो, आपके साथ दुर्घटना घटती हैं, कोई हादसा होता है, हम दोष भगवान पर मढ़ देते हैं, हैं भगवान मेरे साथ ऐसा क्यों किया,परकभी ये सोचा कि उस बीमारी में या दुर्घटना में हम मर भी तो सकते थे । जान है तो जहां हैं । 

क्या आप जानते है कि
निराशा एवं कुंठा शरीर में मौजूद इन्सुलिन को गलाती है , जिससे डायबिटीज होती है। यदि मन में समाए खराब व गंदे विचारों को निकाल दिया जाए , तो स्वस्थ होने की संभावना प्रबल हो जाती है। लेकिन मनुष्य की विचित्र प्रकृति है- अच्छा काम करने वाला जल्दी निराश हो जाता है और बुरा काम करने वाला निराश नहीं होता। हमें लगता है कि चोर , लुटेरे , डाकू कहां निराश होते हैं।
मैं ये नही कहता कि बुरा कामकरो । मेरा कहने का तात्पर्य हैं कि सकारात्मक सोच जीबन में रखो ।

  एक पल को मानो की ईश्वर ने आपके साथ कुछ बुरा बर्ताव किया, फिर सोचो क्या में किसी काम का नही रहा, क्या में देख नही सकता, चल नही सकता, खा नही सकता, दुसरो पर बोझ बना हूं। बिना वजह का कचरा जीवन मेस्वयम पाल लिया। 

 आपसे बदतर जिंदगी गुजार रहे लोग। फिर भी जी रहे लोग । आप जितना झूठा खाकर छोड़ते उतने भोजन में परिवार सहित खा लेते लोग । 

रास्ते में पड़े हुए पत्थर को आप मार्ग की बाधा भी मान सकते हैं और चाहें तो उस पत्थर को सीढ़ी बनाकर ऊपर भी चढ़ सकते है। जीवन का आनन्द वही लोग उठा पाते हैं जिनका सोचने का ढंग सकारात्मक होता है…!*

 अपनी सोच का दायरा बढाओ । आज , अभी, इसी वक्त उठो प्रभु के सामने जाओ और प्रार्थना कर बोलो हैं प्रभु मैं ही कमजोर निकला, मैं अपने आप को समझ नही पाया, आपने मुझे हर सूख औरो से बढ़कर दिया,मैं प्रसन्न हूं ,आजसे मैं जीवन मे बदलाव लाऊंगा, खुद भी जीऊंगा और सबको प्रेरित करूँगा की जिंदगी एक बार मिली हैं, इसे हर पल खुशी के साथ जी लो ।

 आपके साथ मैं हर पल हूं।

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