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व्यक्ति का मन कभी भी खाली नहीं रह सकता। वह शुभ-अशुभ , कुछ ना कुछ जरूर चिंतन करता रहता है।। या तो परमात्मा का चिन्तनया फिर विषय चिन्तन करता है। ईश्वर चिन्तन से मन पवित्र होता है। जबकि विषयों के चिंतन से मन में कुविचार विकसित होते है।। ज्यादा विषय भोग के चिन्तन से इन्हें प्राप्त करने की तीव्र इच्छा प्रगट हो जाती है और प्राप्त ना होने पर मन अशान्त और परेशान हो जाता है।। विषयोपभोग से बुद्धि जड़ हो जाती है। जड़ बुद्धि में शुभ संकल्प प्रगट, शुभ विचार जन्म ले ही नहीं सकते है।। मनुष्य पहले विचार करता है, और अपने विवेकानुसार उसे करने की योजना बनाता है। संकल्पानुसार हाथ पैर सब करने को तैयार होते है। यहाँ से पाप और पुण्य दोनों हो सकते हैं। अत: जीवन को आनंदमय बनाने के लिए जरुरी है कि मन को ज्यादा से ज्यादा सत्कर्मों में या ईश्वर के सिमरन में लगाया जाए ताकि मन को गलत जगह पर जाने के अवसर ही प्राप्त ना हों।।
[ जो आत्मज्ञानी मनुष्य (जिसे आत्मबोध अर्थात आत्मा और परमात्मा के एकीभाव का बोध हो जाय)अपनी अंतरात्मा में ही सुख वाला है और अपनी आत्मा में ही रमण करने वाला है ऐसा मनुष्य परमात्मा के साथ एकी भाव को प्राप्त हो शांत ब्रह्म रूपी यथार्थ सुख को प्राप्त होता है। ऐसे मनुष्यो के सब पाप नष्ट हो जाते है, सब संशय ज्ञान के द्वारा निवृत हो जाते है, इन्द्रियाँ इनके वश में होती है मन को जीते हुए ये सब प्राणियों में परमात्मा के दर्शन करते हुए उनके हित साधन में रत रहते हुए निश्चल भाव से परमात्मा में स्थित हो शांत ब्रह्म को प्राप्त हो परम सुख का अनुभव करते है।।
[॥ आज का भगवद चिन्तन ॥

जीवन बड़ा अनंत है, कुछ भी तो ऐसा नहीं जिसे प्राप्त ना किया जा सके। प्रत्येक जीवन ईश्वर की अनुपम देन और कृपा प्रसाद है।। यहाँ हर कोई साधारण से असाधारण होने की पात्रता रखता है। यहाँ अनेकों ऐसे उदाहरण है जिन्होंने शून्य से यात्रा प्रारम्भ की और फिर शिखर तक जा पहुंचे। उन्हें भगवान ने कोई अलग से शक्ति नहीं दी ये सब करने के लिए। परन्तु वो प्रत्येक क्षण अपने उद्देश्य में सतत लगे रहे।। मानव जीवन अपने आप में बड़ा शक्ति संपन्न है। आवश्यकता है स्वयं की शक्तियों को पहचानने की, एक दृण संकल्प की, जूनून की। नकारात्मक विचारों को त्यागकर अपने लक्ष्य पर ध्यान केंद्रित करो। देखो सफलता तुम्हारा आलिंगन करने को तैयार खड़ी है।।

🙏 जय श्री राधे कृष्ण 🙏

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