: सत्संग बड़ा है या तप
〰️〰️🔸〰️🔸〰️〰️ एक बार विश्वामित्र और वशिष्ठ जी में इस बात पर बहस हो गई कि सत्संग बड़ा है या तप। विश्वामित्र जी ने कठोर तपस्या करके ऋदिध्-सिध्दियों को प्राप्त किया था इसीलिए वे तप को बड़ा बता रहे थे। जबकि वशिष्ठ जी सत्संग को बड़ा बताते थे।वे इस बात का फैसला करवाने ब्रह्मा जी के पास चले गए। उनकी बात सुनकर ब्रह्मा जी ने कहा कि मैं सृष्टि की रचना करने में व्यस्त हूं। आप विष्णु जी के पास जाइये। विष्णु जी आपका फैसला अवश्य कर देगें। अब दोनों विष्णु जी के पास चले गए। विष्णु जी ने सोचा कि यदि मैं सत्संग को बड़ा बताता हूं तो विश्वामित्र जी नाराज होंगे और यदि तप को बड़ा बताता हूं तो वशिष्ठ जी के साथ अन्याय होगा। इसीलिए उन्होंने भी यह कहकर उन्हें टाल दिया कि मैं सृष्टि का पालन करने मैं व्यस्त हूं।आप शंकर जी के पास चले जाइये अब दोनों शंकर जी के पास पहूंचे शंकर जी ने उनसे कहा कि यह मेरे वश की बात नहीं है। इसका फैसला तो शेषनाग जी कर सकते हैं।
अब दोनों शेषनाग जी के पास गए। शेषनाग ने उनसे पुछा-कहो ऋषियो कैसे आना हुआ।वशिष्ठ जी ने बताया कि हमारा फैसला किजिए कि तप बड़ा है या सत्संग बड़ा है। विश्वामित्र जी कहते हैं कि तप बड़ा है और मैं सत्संग को बड़ा बताता हूं शेषनाग जी ने कहा मैं अपने सिर पर पृथ्वी का भार उठाए हूं यदि आप में से कोई थोड़ी देर के लिए पृथ्वी के भार को उठा ले तो मैं आपका फैसला कर दूंगा। तप में अहंकार होता है विश्वामित्र जी तपस्वी थे। उन्होंने तुरन्त अहंकार में भरकर शेषनाग जी से कहा कि पृथ्वी को आप मुझे दिजिए विश्वामित्र ने पृथ्वी अपने सिर पर ले ली अब पृथ्वी नीचे की और चलने लगी शेषनाग जी बोले-विश्वामित्र जी रोको पृथ्वी रसातल को जा रही है विश्वामित्र ने कहा-मैं अपना सारा तप देता हूं पृथ्वी रूक जा परन्तु पृथ्वी नहीं रूकी। यह देखकर वशिष्ठ जी ने कहा -मैं आधी घड़ी का सत्संग देता हूं पृथ्वी माता रूक जा । पृथ्वी वहीं रूक गई अब शेषनाग जी ने पृथ्वी को अपने सिर पर ले लिया और उनको कहने लगे कि अब आप जाइये। विश्वामित्र जी कहने लगे -हमारी बात का फैसला तो नहीं हुआ। शेषनाग जी बोले -विश्वामित्र जी फैसला तो हो चुका है।आपके पूरे जीवन का तप देने से भी पृथ्वी नहीं रूकी और वशिष्ठ जी के आधी घड़ी के सत्संग से ही पृथ्वी अपनी जगह पर रूक गई। फैसला तो हो गया तप से सत्संग बड़ा होता है। इसीलिए हमे सत्संग सुनना चाहिए और कभी भी जब भी कही आस पास सत्संग हो उसे सुनना उसपर अमल करना चाहिए।
सत्संग की आधी घड़ी तप के वर्ष हजार।
तो भी नहीं बराबरी सन्तन कियो विचार।।
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: 🌸 ।। गृहस्थ गीता के अनमोल वचन ।। 🌸💐👏🏻
जीवन में चार का महत्व :-
१. चार बातों को याद रखे :- बड़े बूढ़ो का आदर करना, छोटों की रक्षा करना एवं उनपर स्नेह करना, बुद्धिमानो से सलाह लेना और मूर्खो के साथ कभी न उलझना !
२. चार चीजें पहले दुर्बल दिखती है परन्तु परवाह न करने पर बढ़कर दुःख का कारण बनती है :- अग्नि, रोग, ऋण और पाप !
३. चार चीजो का सदा सेवन करना चाहिए :- सत्संग, संतोष, दान और दया !
४. चार अवस्थाओ में आदमी बिगड़ता है :- जवानी, धन, अधिकार और अविवेक !
५. चार चीजे मनुष्य को बड़े भाग्य से मिलते है :- भगवान को याद रखने की लगन, संतो की संगती, चरित्र की निर्मलता और उदारता !
६. चार गुण बहुत दुर्लभ है :- धन में पवित्रता, दान में विनय, वीरता में दया और अधिकार में निराभिमानता !
७. चार चीजो पर भरोसा मत करो :- बिना जीता हुआ मन, शत्रु की प्रीति, स्वार्थी की खुशामद और बाजारू ज्योतिषियों की भविष्यवाणी !
८. चार चीजो पर भरोसा रखो :- सत्य, पुरुषार्थ, स्वार्थहीन और मित्र !
९. चार चीजे जाकर फिर नहीं लौटती :- मुह से निकली बात, कमान से निकला तीर, बीती हुई उम्र और मिटा हुआ ज्ञान !
१०. चार बातों को हमेशा याद रखे :- दूसरे के द्वारा अपने ऊपर किया गया उपकार, अपने द्वारा दूसरे पर किया गया अपकार, मृत्यु और भगवान !
११. चार के संग से बचने की चेस्टा करे :- नास्तिक, अन्याय का धन, पर(परायी) नारी और परनिन्दा !
१२. चार चीजो पर मनुष्य का बस नहीं चलता :- जीवन, मरण, यश और अपयश !
१३. चार पर परिचय चार अवस्थाओं में मिलता है :- दरिद्रता में मित्र का, निर्धनता में स्त्री का, रण में शूरवीर का और मदनामी में बंधू-बान्धवो का !
१४. चार बातों में मनुष्य का कल्याण है :- वाणी के सयं में, अल्प निद्रा में, अल्प आहार में और एकांत के भवत्स्मरण में !
१५. शुद्ध साधना के लिए चार बातो का पालन आवश्यक है :- भूख से काम खाना, लोक प्रतिष्ठा का त्याग, निर्धनता का स्वीकार और ईश्वर की इच्छा में संतोष !
१६. चार प्रकार के मनुष्य होते है : (क) मक्खीचूस – न आप खाय और न दुसरो को दे ! (ख) कंजूस – आप तो खाय पर दुसरो को न दे ! (ग) उदार – आप भी खाय और दूसरे को भी दे ! (घ) दाता – आप न खाय और दूसरे को दे ! यदि सब लोग दाता नहीं बन सकते तो कम से कम उदार तो बनना ही चाहिए !
१७. मन के चार प्रकार है :- धर्म से विमुख जीव का मन मुर्दा है, पापी का मन रोगी है, लोभी तथा स्वार्थी का मन आलसी है और भजन साधना में तत्पर का मन स्वस्थ है
जय श्री राधे कृष्ण 🙏🏻💫
: 🙏 सेवा 🙏
अगर सेवा करते वक़्त मन में रोब वाली भावना हो तो
⚘⚘ वो सेवा नहीं ⚘⚘
अगर सेवा करते वक़्त मन में नम्रता ना पनपे तो
⚘⚘ वो सेवा नहीं ⚘⚘
अगर सेवा करने का कारण गुरु का सेवा प्रसाद ही हो तो
⚘⚘ वो सेवा नहीं ⚘⚘
अगर सेवा को मजबूरी की भावना से निभाया तो
⚘⚘ वो सेवा नहीं ⚘⚘
*सेवा तो जरिया है*
करम काटने का ।
मन को विनम्र बनाने का ।
तन को चुस्त रखने का ।
मन में स्थिरता का माहौल पैदा करने का ।
⚘⚘ *सेवा ख़ुशी है* ⚘⚘
⚘⚘ *सेवा विश्वास है* ⚘⚘
⚘⚘ *सेवा प्यार है* ⚘⚘
बड़े भाग्यशाली हैं वो,
जिन्हें सेवा का मौका मिलता है
*_क्योंकि_*
सेवा भी उसी को मिलती है
*जिनपे गुरु की बख्शिश होती है* ।। 🙏