विचारों की उत्कृष्टता का महत्व
👉 “विचार” एक प्रचंड शक्ति है और वह भी “असीम,” “अमर्यादित,” अणु-शक्ति से भी प्रबल । “विचार” जब घनीभूत होकर “संकल्प” का रूप धारण कर लेता है, तो प्रकृति स्वयं अपने नियमों का व्यतिरेक करके भी उसको मार्ग दे देती है । इतना ही नहीं उसके अनुकूल बन जाती है ।
👉 मनुष्य जिस तरह के “विचारों” को प्रश्रय देता है, उसके वैसे ही “आदर्श,” “हाव- भाव” “रहन-सहन” ही नहीं शरीर में तेज, मुद्रा आदि भी वैसे ही बन जाते हैं । जहाँ सद्विचारों की प्रचुरता होगी, वहाँ वैसा ही वातावरण बन जाएगा । ऋषियों के “अहिंसा”, “सत्य”, “प्रेम,” “न्याय” के विचारों से प्रभावित क्षेत्रों में हिंसक पशु भी अपनी हिंसा छोड़कर अहिंसक पशुओं के साथ विचरण करते थे ।
👉 जहाँ घृणा, द्वेष, क्रोध आदि से संबंधित विचारों का निवास होगा, वहाँ नारकीय परिस्थितियों का निर्माण होना स्वाभाविक है । मनुष्य में यदि इस तरह के “विचार” घर कर जाएँ कि “मैं अभागा हूँ, दुःखी हूँ, दीन-हीन हूँ, तो वह सदैव दीन-हीन परिस्थितियों में ही पड़ा रहेगा । इसके विपरीत मनुष्य में सामर्थ्य, उत्साह, आत्मविश्वास, गौरवयुक्त विचार होंगे, तो प्रगति, उन्नति स्वयं ही अपना द्वार खोल देगी । *मनुष्य के “विचार” शक्तिशाली चुम्बक की तरह हैं, जो अपने समानधर्मी विचारों को अपनी ओर आकर्षित करते हैं । विचारों का तप ही सच्ची तपस्या है ।
[13/12, 19:25] Daddy
*इच्छाओं का भी* अपना चरित्र होता है, खुद के मन की हो तो बहुत अच्छी लगती हैं, दूसरों के मन की हो तो बहुत खटकती है..!!
हम प्रयास के लिए उत्तरदायी हैं,*
न कि परिणाम के लिए,
कौन क्या कर रहा है, कैसे कर रहा है, क्यों कर रहा है – इससे हम जितना दूर रहेंगे,
*अपनी मन्जिल के उतने ही करीब रहेंगे.
किसी भी क्लास में नहीं पढ़ाया जाता है कि कैसे बोलना चाहिए। लेकिन जिस प्रकार से आप बोलते हैं, वह तय कर देता है कि आप🙏 किस क्लास के हैं।
ज़िंदगी का सारा खेल तो वक्त रचता है ,इंसान तो सिर्फ़ अपना किरदार निभाता है ।
✍🏻 गलती करने के लिये कोई भी समय सही नहीं। और गलती सुधारने के लिये कोई भी समय बुरा नहीं..!!
🙏🏻🙏🙏🏿जय जय श्री राधे🙏🏼🙏🏾🙏🏽
[: 🍃🌾😊
मस्त होना क्या है, मस्त होने का केवल यही अर्थ है। कि अब भीतर चलाने वाला नहीं रहा।। आपने सब परमात्मा पर छोड़ दिया। जहाँ उसकी मर्जी ले जाये।। डुबाना है। तो डुबा दे आप गीत गुनगुनाते गुनगुनाते डूब जायेंगे। और अगर मिटाना है।। तो मिटा दे आप मुस्कुराते मुस्कुराते मिट जायेंगे। परमात्मा की इच्छा मे हर इच्छा को मिला लें।। बह जायें उसकी साथ। जब आपका समर्पण इस स्तर का होगा तब आनंद का सागर हिलोरें लेगा।। तब आपका रूपांतरण घटेगा। बूंद सागर बन जाएगी।।
[ अच्छे कार्य करने से ही व्यक्ति महान बनता है, विचारात्मक प्रवृत्ति रचनात्मक जरूर होनी चाहिए। जिस दिन शुभ विचार सृजन का रूप ले लेता है उस दिन परमात्मा भी प्रसन्न होकर नृत्य करने लगते हैं।। कुछ ऐसा करो कि समाज की उन्नति हो। समाज स्वस्थ, सदाचारी बनकर उन्नति के मार्ग पर चले जिससे सबका भला हो।। वेद यही तो कहते हैं जब हर प्रकार से आप अपना कल्याण कर लें तब धन के, भोग के पीछे मत भागना। मैंने दुनिया से बहुत लिया अब देने की बारी है।। अब लेने के लिए नहीं देने के लिए जीना। मत भूलो ये जीवन अस्थायी है। इसलिए जीवन के प्रत्येक क्षण का सम्मान करो।। मृत्यु आ जाएगी तो कुछ भी ना रहेगा। ना यह शरीर, ना इच्छाएं, ना कल्पनाएँ, ना धन हर चीज तुम्हारे साथ यही समाप्त हो जाएगी।।
[: जब कभी आपको कोई जीवित जाग्रत पुरुष मिल जाए, तो डूब जाना उसके साथ चूकना मत ऐसे अवसर बहुत कम आते हैं। उसको चूके तो बहुत पछताना होता है।। कई बार आपके मन में भी आता होगा काश आप भी बुद्ध, जीसस, गुरुनानक कृष्ण के समय पैदा हुए होते चले होते उनके पद चिन्हों पर जो गया, गया। जो बीता, सो बीता। अभी देखिये कि यह क्षण न बीत जाए।। इस क्षण का उपयोग कर लें एक पल भी सोए-सोए न बीत जाये अगर प्यास है। तो परमात्मा अवश्य मिलेगा।।
[: इच्छाओं का भी अपना चरित्र होता है, खुद के मन की हो तो बहुत अच्छी लगती हैं, दूसरों के मन की हो तो बहुत खटकती है।। हम प्रयास के लिए उत्तरदायी हैं। न कि परिणाम के लिए, कौन क्या कर रहा है, कैसे कर रहा है, क्यों कर रहा है।। इससे हम जितना दूर रहेंगे, अपनी मन्जिल के उतने ही करीब रहेंगे, किसी भी क्लास में नहीं पढ़ाया जाता है। कि कैसे बोलना चाहिए लेकिन जिस प्रकार से आप बोलते हैं।। वह तय कर देता है। कि आप किस क्लास के हैं।। जिन्दगी का सारा खेल तो वक्त रचता है। इंसान तो सिर्फ अपना किरदार निभाता हैं।। गलती करने के लिये कोई भी समय सही नहीं। और गलती सुधारने के लिये कोई भी समय बुरा नहीं।।