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बहुत से लोग जीवन में सुखी रहते हैं, प्रसन्न रहते हैं मस्त रहते है। और बहुत से लोग जीवन में दुखी रहते हैं।। चिंतित और परेशान रहते हैं। क्या कारण है।। बहुत सारे कारण हो सकते हैं। उनमें से एक कारण है। आलस्य जो लोग आलसी हैं।। पुरुषार्थ करना नहीं चाहते बैठे-बैठे सब कुछ प्राप्त करना चाहते हैं। वे लोग सदा दुखी रहते हैं। परेशान रहते हैं।। असंतुष्ट रहते हैं, हमेशा शिकायत करते रहते हैं। कि यह नहीं मिला वह नहीं मिला।। परंतु जो पुरुषार्थी होते हैं। वे लोग ईश्वर की कृपा और अपने पुरुषार्थ से बहुत कुछ प्राप्त कर लेते हैं।। और जो कुछ भी मिलता है उतने में संतुष्ट रहते हैं। इस संतोष के कारण वे सदा सुखी रहते हैं।।

जय श्री कृष्ण🙏🙏

 

दोस्तो ,

मनुष्य को शुभ कार्य करके इस देह का सदुपयोग करना चाहिए। जो मनुष्य प्रत्येक दिन सत्कार्य करते हैं, वास्तव में उनका ही जीवन सफल होता है l आपको बोध होना चाहिए कि वह प्रेम स्वरूप परमात्मा हमारे भीतर विराजमान है। किसी से राग द्वेष कुछ ना करे और हर व्यक्ति मे भगवान जी का वन्दन करे l स्वयं के हृदय मे जब तक करुणा, परोपकार भावना, सत्यता, सरलता नही आएगी तब तक भगवान की कृपा और भक्ति प्राप्त नही होती l

जब तक भीतर से परमात्मा के लिऐ तीव्र जिज्ञासा और तड़प नही होगी .. , तब तक ईश्वर की ना अनुभूति होगी ना प्राप्ति होगी l प्रभु के निकट आना हो तो उसे ईश्वर पर भरोसा रखने की जरूरत है और फिर भगवान आपका भरोसा कभी भी टूटने नही देंगे। अतः सत्कर्म करते रहे। एक छोटा सा नित्य किया गया सत्कर्म आपको गोविंद के चरणों तक पहुंचा सकता है l भगवान् कहते हैं कि तुम्हारा चिन्तन अगर सच्चा हो गया, तो यकीन मानिए बाँके बिहारी और राधा रानी आपके साथ हर पल होंगे।


🍃🌾😊
इस जगत में पाने योग्य कुछ भी नहीं है।। यह जगत मात्र एक सपना है। ऐसा जान कर जो अकिंचन हो गया अकिंचन का अर्थ होता है, कुछ न- हो जाना।। ऐसा जान कर शून्यता को स्वीकार कर लें कि मैं कुछ नहीं हुँ.. शून्य हूँ यहाँ कुछ भी सदा रहने वाला नहीं है, आप शून्य हैं। और जगत एक सपना हैं।। सपने से शून्य को भरा नहीं जा सकता यह शून्य तो तभी भरेगा जब परमात्मा इसमें आविष्ट हों, उतर पडें अन्यथा यह मंदिर खाली रहेगा। यह समझ आते ही परमात्मा को आते देर नहीं लगती।।

      *हरि ॐ*
         🙏



दूसरे व्यक्तियों में सुधार करने से पहले हमें अपने सुधार की बात पहले सोचनी होगी। दूसरों से मधुर व्यवहार की अपेक्षा रखने से पूर्व हमें स्वयं अपने व्यवहार को मधुर रखना होगा। कई बार हमारा खुद का व्यवहार कितना निम्न और अशोभनीय हो जाता है।। दूसरों की कमजोरियों और दुर्बलताओं का हम बहुत मजाक उड़ाते हैं। एकदम आग बबूला भी हो जाते हैं। कभी हमने विचार किया कि हमारे स्वयं के भीतर भी कितने दोष- दुर्गुण, और वासना भरी पड़ी है, यह अलग बात है।। हमने उसके ऊपर सच्चरित्र की झूठी चादर ओढ़ रखी है। इस जगत में एक भी व्यक्ति ऐसा नहीं जो पूर्णतः भला हो या बुरा हो। परिस्थिति के हिसाब से भली बुरी छवि सामने आती रहती है।। यदि हम दूसरों में बुराई, अभाव, या अपकार ही देखते रहेंगे तो जीवन को नरक बनते देर ना लगेगी। याद रखना दुनिया में किसी को सुधारना चाहते हो तो केवल स्वयं को सुधारो।।

जय श्री राधे कृष्णा
[जो लोग अपने लिए नियम नहीं बनाते है , उन्हें फिर दूसरों के बनाये हुए नियमों पर चलना पड़ता है। मंजिल तक पहुँचने के लिए रास्ता मिल जाना ही पर्याप्त नहीं है अपितु एक अनुशासन, समर्पण, प्रतिबद्धता और एक बहुत बड़े जूनून की भी आवश्यकता होती है। जीवन में छोटे-छोटे नियम आपको बड़ी-बड़ी परेशानियों से बचा लेते हैं। कई बार छोटे-छोटे नियमों का पालन ना करना भी बडी़ परेशानियों का कारण बन जाया करता है।। अत: कोई दूसरा आप पर आकर राज करे इससे तो अच्छा है, आप स्वयं ही अपने पर राज करें। अपने जीवन के लिए कुछ नियम जरूर बनाएँ और उनका पालन भी करें। नियम से ही सफलता के शिखर का मार्ग प्रशस्त होता है।।

जय श्री कृष्ण🙏🙏


[: पुण्य कर्मों का अर्थ केवल वे कर्म नहीं जिनसे आपको लाभ होता हो अपितु वो कर्म हैं जिनसे दूसरों का भला भी होता है। पुण्य कर्मों का करने का उद्देश्य मरने के बाद स्वर्ग को प्राप्त करना ही नहीं अपितु जीते जी जीवन को स्वर्ग बनाना भी है।। स्वर्ग के लिए पुण्य करना बुरा नहीं मगर परमार्थ के लिए पुण्य करना ज्यादा श्रेष्ठ है। शुभ भावना के साथ किया गया प्रत्येक कर्म ही पुण्य है, और अशुभ भावना के साथ किया गया कर्म पाप है।। जो कर्म भगवान को प्रिय होते हैं, वही कर्म पुण्य भी होते हैं। हमारे किसी आचरण से, व्यवहार से, वक्तव्य से या किसी अन्य प्रकार से कोई दुखी ना हो। हमारा जीवन दूसरों के जीवन में समाधान बने समस्या नहीं, यही चिन्तन पुण्य है और परमार्थ का मार्ग भी है।।

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