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ऐसा कोई व्यक्ति संसार में आज तक उत्पन्न नहीं हुआ, जिसने संसार में जन्म तो लिया हो और दुख न भोगा हो। अर्थात जो भी व्यक्ति संसार में जन्म लेता है, शरीर धारण करता है, उसे अनेक प्रकार के दुख भोगने ही पड़ते हैं। दुखों से पूरी तरह छूटने का तो केवल एक ही उपाय है कि संसार में अगला जन्म लेना बंद करें । तभी सारे दुखों से पीछा छूटेगा। अस्तु।

अब जिन जिन आत्माओं ने संसार में शरीर धारण कर रखा है, जन्म ले रखा है, उनको जन्म से लेकर मृत्यु तक सारे जीवन में दुख अशांति परेशानियाँ समस्याएं तो आती ही रहती हैं। कुछ लोग सारा दिन अपनी समस्याओं को ही लेकर रोते रहते हैं । ऐसे लोग स्वयं दुखी रहते हैं और दूसरों को भी दुखी करते रहते हैं।
परंतु कुछ लोग इन समस्याओं से अपने अंदर मन ही मन जूझते रहते हैं। वे इस युद्ध में जीत भी जाते हैं। उनके चेहरे पर सदा मुस्कान प्रसन्नता ही दिखाई देती है.
तो आप ऐसा ना समझें, कि उनके जीवन में कोई दुख समस्या या कोई कष्ट परेशानी नहीं है। इन सब समस्याओं के होते हुए भी सर्वज्ञ, सर्वशक्तिमान ईश्वर की शक्ति उनके साथ होती है। क्योंकि वे ईश्वर की आज्ञा का पालन करते हैं, इसलिए सर्वशक्तिमान ईश्वर उनके अंदर भरपूर शक्ति ज्ञान बल आनंद आदि गुणों की वर्षा करता ही रहता है। जिसके कारण वे हंसते-हंसते सब समस्याओं को पार कर जाते हैं। सदा प्रसन्न रहते हैं, और दूसरों के भी प्रेरक बनते हैं।*
आप भी कुछ ऐसा प्रयत्न करके देखिए. सर्वज्ञ सर्वशक्तिमान आनन्दस्वरूप ईश्वर की ईमानदारी से उपासना कीजिए, तथा व्यवहार में उसकी आज्ञा का पालन कीजिए। आप भी बहुत प्रसन्न एवं आनंदित जीवन जी सकेंगे –
सागर-भर शुभ मंगल कामनाओ सहित कृतज्ञ हृदय से शुभ रात्रि सुहृदयश्रेष्ठ।💐

दोस्तो ,

इस दुनिया में सदैव ही दो तरह की विचारधारा के लोग जीते हैं। एक इस दुनिया को निःसार समझकर इससे दूर और दूर ही भागते हैं। दूसरी विचारधारा वाले लोग इस दुनिया से मोहवश ऐसे चिपटे रहते हैं कि कहीं यह छूट ना जाए। कुछ इसे बुरा कहते हैं तो कुछ इसे बूरा (मीठा) कहते हैं।

भगवान् वुद्ध कहते हैं जीवन एक वीणा की तरह है। वीणा के तारों को ढीला छोड़ेगो तो झंकार ना निकलेगी और ज्यादा खींच दोगे तो वो टूट जायेंगे। मध्यम मार्ग श्रेष्ठ है, ना ज्यादा ढीला और ना ज्यादा खिचाव।

अपनी जीवन रूपी वीणा से सुख – आनंद की मधुर झंकार निकले इसलिए अपने इन्द्रिय रुपी तारों को ना इतना ढीला रखो कि वो निरंकुश और अर्थहीन हो जाएँ और ना इतना ज्यादा कसो कि वो टूटकर आनंद का अर्थ ही खो बैठें। जिसे मध्यम मार्ग में जीना आ गया वो सच में आनंद को उपलब्ध हो जाता है

अंत ––👇🏻

मन, बुद्धि और मिथ्या अहंकार भौतिक प्रकृति मे ही संभव हैं चाहे उसे जड़ कहे या शुक्ष्म। ये सब मूलतः जड़ ही हैं- मात्र आत्मा ही चेतन हैं और चेतन आत्मा का प्रतिबिंब जड़ मन में विकार ग्रस्त हो जाता हैं वास्तविक नही रहता।
निज स्वरूप में मात्र जीवात्मा ही स्थापित होता हैं।

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