आजकल एक परंपरा या फैशन चल पड़ा है है कि लोन पर सब चीजें खरीदो। शायद यह पश्चिमी सभ्यता की देन है। वहां क्रेडिट कार्ड खूब चलते हैं। बैंक जनता को पैसे उधार देता है। जनता क्रेडिट कार्ड के माध्यम से बहुत चीजें खरीद लेती है। बाद में उसका भुगतान करती रहती है।
कुछ लोग भोग विलास के लिए उधार लेकर सामान खरीदते हैं। और बहुत से लोग दिखावा करने के लिए उधार लेते हैं। वे लोगों को यह दिखाना चाहते हैं कि हमारे पास बहुत अच्छी और महंगी चीजें हैं , हम बड़े धनवान हैं।
लोगों को यह सुविधा बहुत आकर्षक लगती है। अनेक लोग क्रेडिट कार्ड का बेहिसाब उपयोग करते हैं। वे सोचते हैं कि अभी तो माल खरीद लो, बाद में जब पेमेंट करनी होगी तब देखी जाएगी. परंतु वे लोग यह भूल जाते हैं कि आखिर कभी ना कभी तो पेमेंट करनी ही पड़ेगी। तब पैसे कहां से आएंगे। देने तो हमें ही हैं। इस बात पर बहुत कम लोग ध्यान देते हैं, जिसका परिणाम यह होता है कि व्यक्ति उधार पर चीजें खरीद खरीद कर उनका भोग करता रहता है। बाद में जब उसका भुगतान करना पड़ता है, तब कठिनाई आती है।
अनेक लोग तो उधार न चुका पाने के कारण या तो विदेश भाग जाते हैं, या दिवाला पिटवाते हैं , या कोई कोई तो आत्महत्या तक भी कर लेते हैं। इन सब समस्याओं से बचने के लिए वेदों का यह सिद्धांत है कि जहां तक संभव हो, व्यक्ति उधार न लेवे। केवल भोग विलास के उद्देश्य से तो बिल्कुल नहीं लेवे। हां, कभी कोई अत्यंत आपत्ति आ जाए, घर में संपत्ति की बहुत कमी हो गई, और खाना पीना भी कठिनाई से चल रहा है। तब तो आपत्ति काल में व्यक्ति उधार ले भी लेवे। अन्यथा उधार लेने से बचने की ही कोशिश की जाए, तभी वह सुखी रह सकता है। तनावमुक्त जीवन जी सकता है।
जिसके सिर पर उधार है, वह न तो तनावमुक्त हो सकता है, न वह अच्छी प्रकार से सो सकता है, और न ही ठीक से भोजन खा सकता है। इसलिए उधार लेने से बचें। पहले धन कमाएँ, उसके बाद उसका भोग करें –
संबंध बड़े नाजुक होते हैं। इनकी सुरक्षा करने के लिए बहुत सावधानी चाहिए। जो लोग सावधान रहते हैं उनके संबंध सुरक्षित रहते हैं। अनेक बार संबंधों के बिगड़ने में शब्दों का प्रयोग कारण बनता है। जब लोग बोलते हैं, तो सावधानी कम रखते हैं। ठीक से नहीं बोलते। जो कुछ भी कहना चाहते हैं, उस के अनुकूल शब्दों का प्रयोग नहीं करते, अर्थात मन में भाव कुछ और होता है, परंतु शब्दों का चुनाव उस के अनुकूल नहीं होता; जिस का परिणाम यह होता है, कि सामने वाला व्यक्ति, वक्ता के उस अभिप्राय को नहीं समझ पाता, जो उसके मन में था। इस से श्रोता को भ्रांति उत्पन्न होती है। और वह भ्रांति के कारण वक्ता से नाराज़ दुखी परेशान होने लगता है। जिससे संबंध बिगड़ता है।
अनेक बार सुनने वाला भी सावधान नहीं रहता। वह वक्ता की बात को ध्यान से नहीं सुनता। जब श्रोता लापरवाही करता है, तब भी भ्रांति उत्पन्न होती है। इस घटना में वक्ता ने ठीक कहा। परंतु श्रोता ने असावधानी की, और उसका अभिप्राय ठीक नहीं समझा। इसका परिणाम भी वही होगा। आपसी संबंध बिगड़ेंगे। संसार में ये दोनों घटनाएं देखी जाती हैं। अनेक बार बोलने वाला लापरवाही करता है, और अनेक बार सुनने वाला।
हमारा आप सब से निवेदन है, कृपया बोलने और सुनने के समय पूरी सावधानी रखें. आप जो कुछ कहना चाहते हैं, उसी को अभिव्यक्त करने वाले सही शब्दों का चुनाव करें। श्रोता भी पूरी सावधानी से आपकी बात को सुने। तो भ्रांतियां उत्पन्न नहीं होंगी और आपसी संबंधों की सुरक्षा की जा सकेगी। अन्यथा लापरवाही करने से आपसी संबंध नष्ट होंगे और बाद में सबको कष्ट भोगना पड़ेगा।
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