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कृष्ण ने गीता में अर्जुन से कहा है, कि निमित्त-मात्र हो जा तू यह विचार ही छोड़ दे कि तू कर्ता है। निमित्त शब्द बड़ा बहुमूल्य है।। इस शब्द के मुकाबले दुनिया की किसी भाषा में शब्द खोजना बहुत मुश्किल है। निमित्त का अर्थ है, कि मैं कारण नहीं हूँ।। मैं तो सिर्फ बहाना हूँ, मेरे द्वारा हो गया। मेरे द्वारा न होता तो किसी और के द्वारा होता। जो होना है, वह होता। जो घटना है, वह घटता इसके बीच अपने अहंकार को न लाएं।।

         
                  🙏


संसार में सभी जीव पात्र और अधिकारी हैं। परमात्मा के अंश होने के कारण अयोग्य तो कोई है ही नहीं। लेकिन पात्र की भी तो समय-समय पर सफाई आवश्यक है। कुछ ने अपने पात्र को इतना गंदा कर लिया है अमृत भी डालोगे तो विष हो जायेगा।। इंसान ने कंकड- पत्थर इतने भर रखे हैं कि हीरे जवाहरात प्रवेश ही नही कर पा रहे। कंकड़ – पत्थरों को वाहर फेंको। हम सब पात्र तो है पर गंदे पात्र हैं। जन्म- जन्म से पात्र में कुविचारों की , वासना की , गलत कर्मों की गंदगी लिए बैठे हैं।। उसे उलीचो बस, साफ़ करो। कथा और संत आश्रय से व नाम सुमिरन से मन को रोज साफ़ करते रहो, ताकि गंदगी मजबूत ना हो। आत्म-कल्याण और सत्य की प्राप्ति हेतु एक ही शर्त है बस, निष्कपट, निर्दोष, निर्वैर, निष्कलंक, सहज और सर्व हिताय का चिन्तन रखना। तुम्हारा पात्र साफ़ हुआ कि परमात्मा स्वयं आ जायेंगे।।

     *जय श्री राधेकृष्णा*

प्रकृत्ति के ऐसे तीन अटूट नियम जिन्हें कभी झुठलाया नहीं जा सकता है।। प्रकृत्ति का पहला नियम वो ये कि यदि खेतों में बीज न डाला जाए तो प्रकृत्ति उसे घास फूस और झाड़ियों से भर देती है। ठीक उसी प्रकार से यदि दिमाग में अच्छे एवं सकारात्मक विचार न भरे जाएं तो बुरे एवं नकारात्मक विचार उसमें अपनी जगह बना लेते हैं।। प्रकृत्ति का दूसरा नियम वो ये कि जिसके पास जो होता है, वो वही दूसरों को बाँटता है। जिसके पास सुख होता है, वो सुख बाँटता है। जिनके पास दुख होता है, वो दुख बाँटता है।। जिसके पास ज्ञान होता है, वो ज्ञान बाँटता है।जिसके पास हास्य होता है, वो हास्य बाँटता है। जिसके पास क्रोध होता है, वो क्रोध बाँटता है। जिसके पास नफरत होती है वो नफरत बाँटता है। और जिसके पास भ्रम होता है वो भ्रम फैलाता है।। प्रकृत्ति का तीसरा नियम वो ये कि भोजन न पचने पर रोग बढ़ जाता है। ज्ञान न पचने पर प्रदर्शन बढ़ जाता है। पैसा न पचने पर अनाचार बढ़ जाता है। प्रशंसा न पचने पर अहंकार बढ़ जाता है। सुख न पचने पर पाप बढ़ जाता है। और सम्मान न पचने पर तामस बढ़ जाता है।। प्रकृत्ति अपने आप में एक विश्व विद्यालय ही है। हमें प्रकृत्ति की विभिन्न सीखों को जीवन में उतार कर अपने जीवन को खुशहाल, आनंदमय और श्रेष्ठ बनाने हेतु सतत प्रतिबद्ध होना चाहिए।।
🙏🌹आज का चिन्तन🌹🙏
यदि हमारे पास ज्ञान है,तो ज्ञान-दान करना चाहिए और जो ज्ञानी हैं, उनसे भी ज्ञान लेना चाहिए। ज्ञान देना और लेना दोनों ही साधना के पक्ष हैं। ज्ञान देने वालों का ज्ञान परिपुष्ट होता है और सुनने वाले को भी ज्ञान प्राप्त होता है। सबसे ब़डा कष्ट अज्ञान ही है। अतः हमें अज्ञान से बचकर ज्ञान की आराधना में समय लगाना चाहिए। इससे समय का सदुपयोग भी होगा और अशुभ कर्म भी नष्ट होंगे।🌹
कदाचित”भाग्य” एक ऐसा अद्रश्य विषय है जिसे सिर्फ महसूस किया जा सकता है। किन्तु यदि हम इसे दृश्य के साथ देखना चाहें तो कदाचित यह एक चुनाव अथवा चयन है । धर्म और अधर्म के मध्य अर्थात जब महाभारत युद्ध हुआ तब भगवान श्री कृष्ण (भाग्य ) ने स्वयं को निहथ्था और युद्ध न करने की प्रतिज्ञा के साथ एक तरफ और दूसरी ओर अपनी सम्पूर्ण नारायणी सेना का चयन दोनों के बीच में रखा है । दुर्योधन के पास पूरा अवसर था कि वह भगवान का चयन कर सकता है लेकिन उसने नारायण का नहीं बल्कि उनकी सेना का चयन किया । और भाग्य धर्म के पक्ष में आप ही चला गया । अब विचार करने वाली बात यह है कि जीवन में कभी भी भाग्य के भरोसे नहीं रहना चाहिए बल्कि भाग्य को साथ में लेकर कर्म करना चाहिए अर्थात नदी में गिरने से कभी किसी की मृत्यु नहीं होती मृत्यु तो उसकी होती है जिसे तैरना नहीं आता ठीक इसी प्रकार परिस्थितियां कभी समस्या नहीं बनती कदाचित वह समस्या तब बन जाती है जब हमें परिस्थितियों से लड़ना नहीं आता ।। भाग्य भी उसी का साथ देता है जो भाग्य का दुरुपयोग न करके उसका उपयोग सदुपयोग करें ।।
💐जय जय श्री महादेव जी💐

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: इस संसार को बनाने वाले ब्रह्माजी ने एक बार मनुष्य को अपने पास बुलाकर पूछा- तुम क्या चाहते हो मनुष्य ने कहा-मैं उन्नति करना चाहता हूँ, सुख- शान्ति चाहता हूँ, और चाहता हूँ, कि सब लोग मेरी प्रशंसा करें।’ ब्रह्माजी ने मनुष्य के सामने दो थैले धर दिये। वे बोले- ‘इन थैलों को ले लो। इनमें से एक थैले में तुम्हारे पड़ोसी की बुराइयाँ भरी हैं। उसे पीठ पर लाद लो। उसे सदा बंद रखना। न तुम देखना, न दूसरों को दिखाना। दूसरे थैले में तुम्हारे दोष भरे हैं। उसे सामने लटका लो और बार- बार खोलकर देखा करो।’ मनुष्य ने दोनों थैले उठा लिये। लेकिन उससे एक भूल हो गयी। उसने अपनी बुराइयों का थैला पीठ पर लाद लिया और उसका मुँह कसकर बंद कर दिया। अपने पड़ोसी की बुराइयों से भरा थैला उसने सामने लटका लिया। उसका मुँह खोल कर वह उसे देखता रहता है और दूसरों को भी दिखाता रहता है। इससे उसने जो वरदान माँगे थे, वे भी उलटे हो गये। वह अवनति करने लगा। उसे दुःख और अशान्ति मिलने लगी। तुम मनुष्य की वह भूल सुधार लो तो तुम्हारी उन्नति होगी। तुम्हें सुख- शान्ति मिलेगी। जगत् में तुम्हारी प्रशंसा होगी।। तुम्हें करना यह है। कि अपने पड़ोसी और परिचितों के दोष देखना बंद कर दो और अपने दोषों पर सदा दृष्टि रखो।।

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