समय कभी विपरीत हो तो धैर्य पूर्वक अच्छे समय की प्रतिक्षा भगवान स्मरण के साथ करना चाहिए।कर्म फल से भगवान् भी नही बचाते, अत:कर्म के समय सतर्कता जरुरी है।
*किसी से भी गलती हो ही जाय ,चाहे वह राजा ही क्यो न हो । नम्रता पूर्वक क्षमा माग लेना चाहिए।जितेन्द्रिय हूं ऐसा अभीमान् मत करो मन मे विषय सूक्ष्मरीति से बैठे है। मौका मिलते ही प्रकट होने लगेगें ।*
*सब तरह से शोचनीय ब्यक्ति वह जो समय और सम्पत्ति का दुरुपयोग करता है,जो दुसरो का अहित करता है एवं प्रभु भजन नही करता है।*
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