*हमारा जीवन भी एक प्लास की तरह होना चाहिए,जिस तरह प्लास से यदि हम कभी चालू बिजली में भी तार को काटना चाहते है या जोडना चाहते है तो हम ऐसा कर लेते है यानि प्लास में दोनो ही चीज है जोडने की और काटने की भी।*
*इसी प्रकार हमारे अंदर भी ये दोनों बाते होनी चाहिए। एक उस मालिक से जुडने की और दूसरा इस संसार से अलग रहने की यानि निर्लेप होने की। हमें इस संसार में रहना भी है जब तक उस मालिक का दिया हुआ जीवन है, जिस फर्ज को अदा करने की जिम्मेदारी दी है वह भी पूरे करने है जी किस तरह? तो हमे संत समझाते है: -*
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