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👉 🌷जीवन सुख-दुःख का चक्र है🌷


    💐यही जीवन का सत्य है। अनुकूल समय में हमें इस पर विचार करने की आवश्यकता नहीं होती। जब कभी हमारे समक्ष विपरीत परिस्थितियाँ आती हैं तो हम किंकर्तव्य विमूढ़ हो जाते हैं। ऐसे में स्वजन और मित्रगण संबल बनते हैं, समाधान खोजने में सहायता करते हैं तो सन्तुष्टि मिलती है ।

🌹 दुःख के प्रमुख कारण बाहरी परिस्थितियाँ, आसपास के व्यक्तियों का व्यवहार, महत्वाकांक्षाएँ एवं कामनाएँ हैं। जीवन में आई प्रतिकूल परिस्थितियों एवं समस्याओं के लिए कोई दूसरा व्यक्ति या भाग्य दोषी नहीं है। उसके लिए हम स्वयं ही जिम्मेदार हैं, हमारे कर्मों और व्यवहार की वजह से ही परिस्थितियाँ निर्मित होती हैं। हमें यह ध्यान रखना चाहिए कि सामने वाले व्यक्ति का व्यवहार हमारे व्यवहार को प्रभावित न करें। हम अपने स्वभाव के अनुकूल क्रिया करें।

🌹 ‘मैं’, ‘मेरा’, ‘मेरे लिए’ शब्दों का कम से कम प्रयोग होना चाहिए। अभी कुछ कमी है और कुछ चाहिए, यह सोचकर दुःख बढ़ता है। अपने काम और अपने कर्तव्यों का ठीक से निर्वहन ही चिंता का विषय हो, परिणाम नहीं। ऊर्जा का उपयोग काम में हो, परिणाम में नहीं। स्वयं को श्रेष्ठ सिद्ध करने में मन की शांति नहीं खोना चाहिए। परिस्थितियाँ, लोगों का व्यवहार हम नहीं चुन सकते, पर कामनाओं पर नियंत्रण रख सकते हैं। हम तनाव या समस्या की उत्पत्ति का कारण जानें। उचित निवारण का प्रयास करें। दीर्घकालीन तनाव शरीर और मन के लिए घातक है। जो बदला नहीं जा सकता, उसको स्वीकार करें, यही उपाय है।

🌹 दूसरों को बदलना कठिन है, स्वयं को बदलने का प्रयास करें। यथासंभव दूसरों की सहायता करें। सब मेरे ही हैं, यह सोचें। दोषों की उपेक्षा करें। भूतकाल से शिक्षा लें, वर्तमान में जिएँ व भविष्य की दुश्चिंता न करें। व्यायाम, योग, प्राणायाम, ध्यान इनका अवश्य लाभ लें। गहरी श्वास लेने से मन शांत होगा।
🌹 प्रातः एवं रात्रि प्रार्थना अवश्य करें। ईश्वर को धन्यवाद दें। व्यर्थ विवाद एवं नकारात्मक विचार टाले जाएँ तो अच्छा होगा । भोजन प्रसाद समझकर ग्रहण करें। आहार की मात्रा उचित हो। भरपेट से थोड़ा कम खाने का अभ्यास करें। कम से कम बोलना एवं अधिक सुनना समस्याएँ कम करने में सहायक सिद्ध होगा। तभी बोलें जब उससे सुनने वाले का हित हो। अपशब्द ग्रहण न करें। दूसरों से कम अपेक्षाएँ रखें। अशांति के अवसर कम होंगे।

🌹 पदार्थ हमें आनंद नहीं दे सकते, आनंद तो मन की अवस्था है। स्वयं को सदा सकारात्मक सुझाव देते रहें। मन पर अशांति के बादल न छाने पाएँ। आप शांत हैं तो अपना काम कुशलतापूर्वक कर पाएँगे। मैं शरीर नहीं, यह मेरा निवास मात्र है, यही विचार शांति देगा।

🌹 दुःख को शिक्षक समझें। उससे सीख लें। तनाव एवं समस्याएँ ही हमारे मन को जागृत रखते हैं। समाधान खोजते समय अनजाने हमारा व्यक्तित्व निखरता है। जैसे सोने में खोट मिलाए बिना आभूषण नहीं बनते, ऐसे ही समस्या सुलझाने से आत्मविश्वास बढ़ता है।💐

🌷हर हर महादेव शम्भो काशी विश्वनाथ वन्दे 🌷
कठिनतम और जटिलतम परिस्थितियों में भी धैर्य बना रहे इसी का नाम सज्जनता है। केवल फूल माला पहनने पर अभिवादन कर देना ही सज्जनों का का लक्षण नहीं। यह तो कोई साधारण से साधारण मनुष्य भी कर सकता है। मगर काँटों का ताज पहनने के बाद भी चेहरे पर सहजता का भाव बना रहे, बस यही सज्जनता व महानता का लक्षण है।
भृगु जी ने लात मारी और पदाघात होने के बाद भी भगवान विष्णु जी ने उनसे क्षमा माँगी। इस कहानी का मतलब यह नहीं कि सज्जनों को लात से मारो अपितु यह है कि सज्जन वही है जो दूसरों के त्रास को भी विनम्रता पूर्वक झेल जाए।
सज्जन का मतलब सम्मानित व्यक्ति नहीं अपितु सम्मान की इच्छा से रहित व्यक्तित्व है। जो सदैव शीलता और प्रेम रुपी आभूषणों से सुसज्जित है वही सज्जन है। जो हर परिस्थिति में प्रसन्न रहे और दूसरों को भी प्रसन्न रखे, वही सज्जन है।।
[साधना के जगत में सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण अगर कोई बात है है तो वो है ” संग “। हम कितना भी भजन कर लें, ध्यान कर लें लेकिन हमारा संग अगर गलत है सुना हुआ, पढ़ा हुआ, और जाना हुआ तत्व आचरण में नहीं उतर पायेगा।। आपको धनवान होना है तो धनी लोगों का संग करो, राजनीति में जाना है तो राजनैतिक लोगों का संग करो। पर अगर रसिक बनना है, भक्त बनना है तो संतों का और वैष्णवों का संग जरूर करना पड़ेगा।। दुर्जन की एक क्षण की संगति भी बड़ी खतरनाक होती है। वृत्ति और प्रवृत्ति तो संत संगति से ही सुधरती है। संग का ही प्रभाव था लूटपाट करने वाले रामायण लिखने वाले वाल्मीकि बन गए। थोड़े से वुद्ध के संग ने अंगुलिमाल का ह्रदय परिवर्तन कर दिया। महापुरुषों के संग से व्यवहार सुधरता है।।

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