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परमोच्च सिद्धि —-
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लक्ष्य को प्राप्त करना ही सिद्धि कहलाता है सिद्धियां तीन प्रकार की कही गई हैं ।सात्विक, राजसिक, तामसिक ।लेकिन इनसे भिन्न आध्यात्मिक परमोच्च सिद्धि होती है ।जो परम श्रेयस्कर मार्ग है ।इस संसार में शक्ति एक ही है वही विभिन्न रूपों में अपने को विभक्त करके अनेक रूपों में दिखाई देता है ।उसी को लोग अने क नामों से पुकारते हैं ब्रह्मा विष्णु शंकर हनुमान दुर्गा काली भैरवी भैरव आदि ।लेकिन वह सबमें है ।सब उसमें हैं ।जैसे अग्नि जल विद्युत सब जगह एक ही है स्थान भेद के कारण अनेक प्रकार का कहलाता है जैसे एक ही व्यक्ति को लोग अनेक नामों व रिश्ते से बुलाते हैं वह सब नामों रिश्तों से बोलता है ।ठीक उसी प्रकार वह शक्ति भी है जिसे हम अद्वैत कहते हैं ।इसकी सिद्धि के लिए हमें उसके अनुरूप बनना पड़ेगा उक्तञ्च -देवोभूत्वा देवकार्यंकुर्यात् ।सांसारिक दुखों से निवृत्ति के लिए हमें भाव सहित उसी का भजन करना चाहिए ।जैसे कि महाकवि तुलसीदास जी ने कहा है –
. उमाकहउं मैअनुभव अपना ।सत हरि भजन जगत सब सपना ।।इस संसार में हरि भजन ही श्रेयस्कर है ।अन्त में यही कहा जा सकता है कि महाकवि तुलसीदास जी ने जो कहा है वह सत्य है कि –
. निज अनुभव मैं कहउं खगेशा ।
विन हरि भजन न जाए कलेशा।।
अतः भक्ति भाव से श्रद्धा और विश्वास के साथ हरि भजन ही परमोच्च सिद्धि है।
हर हर महादेव शम्भो काशी विश्वनाथ वन्दे ।

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