नास्तिकवाद का कथन यह है कि – ” इस संसार में ईश्वर नाम की कोई वस्तु नहीं , क्योंकि उसका अस्तित्व प्रत्यक्ष उपकरणों से सिद्ध नहीं होता । ”
अनीश्वरवादियों की मान्यता है कि जो कुछ प्रत्यक्ष है , जो कुछ विज्ञान सम्मत है केवल वही सत्य है । चूंकि वैज्ञानिक आधार पर ईश्वर की सत्ता का प्रमाण नहीं मिलता इसलिये उसे क्यों मानें ? इस प्रतिपादन पर विचार करते हुए हमें यह सोचना होगा कि अब तक जितना वैज्ञानिक विकास हुआ है क्या वह पूर्ण है ? क्या उसने सृष्टि के समस्त रहस्यों का पता लगा लिया है ? यदि विज्ञान को पूर्णता प्राप्त हो गई होती तो शोधकार्यों में दिन – रात माथापच्ची करने की वैज्ञानिकों को क्या आवश्यकता रह गई होती ?
सच बात यह है कि विज्ञान का अभी अत्यल्प विकास हुआ है । उसे अभी बहुत कुछ जानना बाकी है । कुछ समय पहले तक भाप , बिजली , पेट्रोल , एटम , ईथर आदि की शक्तियों को कौन जानता था , पर जैसे – जैसे विज्ञान में प्रौढ़ता आती गई , यह शक्तियाँ खोज निकाली गई । यह जड़ जगत् की खोज है । चेतन जगत् सम्बन्धी खोज तो अभी प्रारम्भिक अवस्था में ही है । बाह्य मन और अंतर्मन की गति – विधियों को शोध से ही अभी आगे बढ़ रही है।
आज ईश्वर का प्रतिपादन कर सकने में समर्थ भले ही न हों पर उसकी सम्भावना से इनकार कर सकना उनके लिए भी संभव नहीं है ।
(१) सुप्रसिद्ध वैज्ञानिक #रिचर्डसन ने लिखा है –
” विश्व की अगणित समस्याएँ तथा मानव की मानसिक प्रक्रियाएं वैज्ञानिक साधनों , गणित तथा यन्त्रों के आधार पर हल नहीं होतीं । भौतिक विज्ञान से बाहर भी एक अत्यन्त विशाल दुरूह अज्ञात क्षेत्र रह जाता है जिसे खोजने के लिए कोई दूसरा साधन प्रयुक्त करना पड़ेगा । भले ही उसे अध्यात्म कहा जाय या कुछ और । “
(२) वैज्ञानिक #मैकब्राइट का कथन है –
“ इस विश्व के परोक्ष में किसी ऐसी सत्ता के होने की पूरी सम्भावना है जो ज्ञान और इच्छायुक्त हो । विज्ञान की वर्तमान इस मान्यता को बदलने के लिए हमें जल्दी ही बाध्य होना पड़ेगा कि – “
(३) विश्व की गतिविधि अनियंत्रित और अनिश्चित रूप से स्वयमेव चल रही है । ” विज्ञानवेत्ता #डॉ०_मोर्डेल ने लिखा है –
“ विभिन्न धर्म सम्प्रदायों में ईश्वर का जैसा चित्रण किया गया है , वैसा तो विज्ञान नहीं मानता । पर ऐसी सम्भावना , अवश्य है कि अणु – जगत् के पीछे कोई चेतन शक्ति काम कर रही है । अणु – शक्ति के पीछे उसे चलाने वाली एक प्रेरणा शक्ति का अस्तित्व प्रतीत होता है । इस सम्भावना के सत्य सिद्ध होने से ईश्वर का अस्तित्व भी प्रमाणित हो सकता है ।”
(४) विख्यात विज्ञानी #इंग्लोड का कथन है कि –
” ” जो चेतना इस सृष्टि में काम कर रही है उसका वास्तविक स्वरूप समझने में अभी हम असमर्थ हैं । इस सम्बन्ध में हमारी वर्तमान मान्यताएँ अधूरी , अप्रामाणिक और असन्तोषजनक हैं । अचेतन अणुओं के अमुक प्रकार मिश्रण से चेतन प्राणियों में काम करने वाली चेतना उत्पन्न हो जाती है , यह मान्यता संदेहास्पद ही रहेगी । “
(५) विज्ञान अब धीरे – धीरे ईश्वर की सत्ता स्वीकार करने की स्थिति में पहुँचता जा रहा है । #जॉनस्टुअर्टमिल का कथन सच्चाई के बहुत निकट है कि –
” विश्व की रचना में प्रयुक्त हुई नियमबद्धता और बुद्धिमत्ता को देखते हुए ईश्वर की सत्ता स्वीकार की जा सकती है । ”
(६) कान्ट , मिल , हेल्स , होल्ट्ज , लाँग , हक्सले , काम्टे आदि वैज्ञानिकों ने ईश्वर की असिद्धि के बारे में जो कुछ लिखा है वह अब बहुत पुराना हो गया उनकी वे युक्तियाँ जिनके आधार पर ईश्वर का खण्डन किया जाया करता था , अब असामयिक होती जा रही हैं । #डॉ०फ्लिन्ट ने अपनी पुस्तक ‘ #थीइज्म ‘ में इन युक्तियों का वैज्ञानिक दृष्टिकोण में ही खण्डन करके रख दिया है ।
(७) भौतिक विज्ञान का विकास आज आशाजनक मात्रा में हो चुका है । यदि विज्ञान की यह मान्यता सत्य होती कि –
” अमुक प्रकार के अणुओं के अमुक मात्रा में मिलने से चेतना उत्पन्न होती है ” तो उसे प्रयोगशालाओं में प्रमाणित किया गया होता , कोई कृत्रिम चेतन प्राणी अवश्य पैदा कर लिया गया होता , अथवा मृत शरीरों को जीवित कर लिया गया होता । यदि वस्तुतः अणुओं के सम्मिश्रण पर ही चेतना का आधार रहा होता तो मृत्यु पर नियंत्रण करना मनुष्य के वश से बाहर की बात न होती । शरीरों में अमुक प्रकार के अणुओं का प्रवेश कर देना तो विज्ञान के लिए कोई बड़ी बात नहीं है । यदि नया शरीर न भी बन सके तो जीवित शरीरों को मरने से बचा सकना तो अणु विशेषज्ञों के लिए सरल होना ही चाहिए था ?
(८) विज्ञान का क्रमिक विकास हो रहा है , उसे अपनी मान्यताओं को समय – समय पर बदलना पड़ता है । कुछ दिन पहले तक वैज्ञानिक लोग पृथ्वी की आयु केवल सात लाख सात वर्ष मानते थे और जिसके अनुसार पृथ्वी की आयु #एकअरब_97करोड़_वर्ष मानी गई है ।
(९) अब रेडियम धातु तथा यूरेनियम नामक पदार्थ के आधार पर जो शोध हुई है , उससे पृथ्वी की आयु लगभग #दोअरबवर्ष_सिद्ध हो रही है और वैज्ञानिकों को अपनी पूर्व मान्यताओं को बदलना पड़ रहा है ।
(१०) विज्ञान ने सृष्टि के कुछ क्रियाकलापों का पता लगाया है । क्या हो रहा है इसकी कुछ जानकारी उन्हें मिली है । पर कैसे हो रहा है , क्यों हो रहा है , यह रहस्य अभी भी अज्ञात बना हुआ है । प्रकृति के कुछ परमाणुओं के मिलने से प्रोटोप्लाज्म – जीवन तत्व बनता ही है , पर इस बनने के पीछे कौन नियम काम करते है इसका पता नहीं चल पा रहा है । इस असमर्थता की खोज को यह कहकर आँखों से ओझल नहीं किया जा सकता कि – – इस संसार में चेतन सत्ता कुछ नहीं है ।
(११) #जार्ज_डार्विन ने कहा है – ” जीवन की पहेली आज भी उतनी ही रहस्यमय है जितनी पहले कभी थी । “
(१२) #प्रोफेसर०जे०ए०टामसन ने लिखा है –
" हमें यह नहीं मालूम कि मनुष्य कहाँ से आया , कैसे आया , और क्यों आया । इसके प्रमाण हमें उपलब्ध नहीं होते और न यह आशा ही है कि विज्ञान इस सम्बन्ध में किसी निश्चयात्मक परिणाम पर पहुँच सकेगा । "
(१३) “आन दी नेचर आफ दी फिजीकल वर्ल्ड ” नामक ग्रन्थ में वैज्ञानिक #एडिंगटन ने लिखा है –
" हम इस भौतिक जगत् से परे की किसी सत्ता के बारे में ठीक तरह कुछ जान नहीं पाये हैं । पर इतना अवश्य है कि इस जगत् से बाहर भी कोई अज्ञात सत्ता कुछ रहस्यमय कार्य करती रहती है । "
(१४) कुछ वैज्ञानिक आज के समय में ईश्वरकृत आयामों को साफ साफ स्वीकार भी कर रहे हैं।
निष्कर्ष :- ” विज्ञानवादी इतना कह सकते है कि जो स्वल्प साधन अभी उन्हें प्राप्त है उनके आधार पर ईश्वर की सत्ता का परिचय वे प्राप्त नहीं कर सके पर इतना तो उन्हें भी स्वीकार करना पड़ता है कि जितना जाना जा सकता है , उससे असंख्य गुना रहस्य अभी छिपा पड़ा हैं । उसी रहस्य में एक ईश्वर की सत्ता भी है । नवीनतम वैज्ञानिक उसकी सम्भावना स्वीकार करते है । वह दिन भी दूर नहीं जब उन्हें उस रहस्य के उद्घाटन का अवसर भी मिलेगा । अध्यात्म भी विज्ञान का ही अंग है और उसके आधार पर आत्मा – परमात्मा तथा अन्य अनेकों अज्ञात शक्तियों का ज्ञान प्राप्त कर सकना भी सम्भव होगा । “