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गंगायमुनाऔरसरस्वतीस्नानकारहस्य

क्यावास्तवमेंजोशास्त्रोंमेंवर्णित #गंगायमुनासरस्वतीऔरसंगमहैक्यायेवही_है

जहांपरहमडुबकीलगाते_है?

क्या वास्तव में जो शास्त्रों में वर्णित गंगा, यमुना, सरस्वती और संगम है क्या ये वही है, जहां पर हम डुबकी लगाते है?

हमें गौमुख तो दिखाई देता है पर शिव नही जिनकी जटाओ मे गंगा है।

क्या रहस्य है ये?

क्यों शिव के दर्शन नही होते गौमुख पर या इसका कुछ ओर रहस्य है?

हमारे देश मे यह, श्रद्धा का विषय है कि गंगा, यमुना, सरस्वती के संगम में डुबकी लगाने से मनोकामना की पूर्ति होती है और मुक्ति भी मिलती है।

अनेक #अध्यात्मिककथनों की ही भाँति, अज्ञानता के कारण इस कथन की भी बडी दुर्दशा हुई है। भ्रम का कारण इन #ऊर्जाधाराओं के नामों से नदियों एवं पर्वतों को सम्बोधित करना है।

प्राचीनकाल मे #भारतीय_भूखण्ड( #आर्यावर्त) को एक इकाई मानकर इसके विभिन्न अंगो का नामकरण किया गया था।

इस गणना के आधार पर स्थान-स्थान पर शक्तिपीठों की स्थापना की गयी थी। इसमें #कूर्म के #डायग्राम के अनुसार #ऊर्जाउत्सर्जनबिन्दुओं को चिन्हित किया गया था और शिवलिंग का स्थान निर्धारित किया गया था।

इसी समय नदियों का भी नामकरण किया गया था। #यमुना तो प्रकृति रूप से मिल गई और #गंगा भी यानि #मुख्यप्राणऊर्जा का ही भाव था।

तब यह मानकर कि हिमालय की चोटी इसका शीर्ष है और समुद्र की ओर पांव, मानसरोवर से गंगा को निकाला गया था। इस गंगा को उत्तर भारत में ऐसे निकाला गया कि उत्तर भारत के परिपेक्ष्य में यह #मुख्यऊर्जाधारा का काम करती है ।

अब गंगा यमुना सरस्वती नामक नदियाँ जहाँ मिल रही है, उसे प्राकृतिक ऊर्जा धारा के संगम का नाम दे दिया गया और यहाँ डुबकी लगाने से पुण्य मिलता है।

योग में जिस संगम की महिमा गायी गई है वह इस भौतिक भौगोलिक संगम से भिन्न हैं।

शक्तिपीठ, शिवलिंग और नदियाँ आदि तो वास्तु शास्त्रीय गणना पर आधारित #आर्यावर्त नामक भूमि खण्ड की वास्तु संरचना है। शक्ति इनमें भी है पर ये वैतरणी नही है जिनके बारे में पुराणों मे कहा गया है।यह #नैसर्गिकऊर्जाधाराओं का #संगम_है।

भारतीय अध्यात्म एवं योग में जिस संगम मे डुबकी लगाने का निर्देश है वह हमारे शरीर मे व्याप्त इन #तीनोंऊर्जाधाराओं का मिलनबिन्दू है। जहाँ वह उप नाभिक या नाभिक से जाकर मिलती है ।मुख्य संगम यानि योग मे बताये गये संगम का अर्थ #नाभिककाकेन्द्रहैजहाँयेधाराएँमिलती_है परन्तु उप नाभिक के केन्द्र पर इनके मिलन को भी संगम ही कहा गया है।

जब योग में ध्यान के कुछ अभ्यास कर लिए जाते है तो साधक को ये बिन्दु अनुभूत होने लगते है ।

इस बिन्दू पर ध्यान लगाकर, स्वयं के अस्तित्व बोध को विस्मृत कर जाना ही डुबकी लगाना है। इसका अर्थ नदी के पानी में डुबकी लगाना नही है परन्तु #पराम्परागतलकीरकेफकीरधर्माधिकारीयों की अज्ञानता के कारण भारतीय संस्कृति नदियों के संगम स्थल पर डुबकी लगाकर मुक्ति प्राप्त कर रही है।

आपने अगर लोगों से यह बोला कि….

यहअन्धआस्थाहैइससेकोईविशेष #लाभनहीहोता

….. तो वह लोग आप पर चढ़ दौडे़गें। आपका सिर तोड़ देंगे। इसी अन्धी ताकत को बल दे रहे है वे धर्माधिकारी जिनकी रोटी से लेकर परमात्मा तक की व्याख्या इसी अन्ध आस्था पर आधारित है।

आचार्य शंकर ने अपना पूरा जीवन इन अन्ध आस्थाओं को तोड़ने मे लगा दिया था और आज भी सर्वत्र, सर्व क्षेत्र मे इन अन्ध आस्थाओं का बाजार गर्म है।

लोग मानते है कि हिमालय की चोटी पर शिवजी का वास है ।पाखण्डी कथित सिद्ध और साधक इन्हें बताते है कि वहाँ कैसे क्षणों में देवी देवता शिव के प्रभाव से प्रकट हो जाते है और उनसे बात करके अपना मनोवांछित कार्य पूरा कराते है।

लोग इन #पाखण्डियों की #चरणोंकीधूली प्राप्त करने से लिए टूट पड़ते है और वास्तविक ज्ञान कही दूर अंधेरे में #सिसक रहा होता है ।

उन महान ऋषियों ने कभी सोचा ही नही होगा कि जिस #तत्त्वज्ञान के विलक्षण ऊर्जा अंगों का नाम वे इस भूमि खण्ड को दे रहे है वे नाम ही एक दिन #अज्ञानता और #प्रपंच के कारण बन जायेंगें।

   

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