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साबर मन्त्र के प्रकार
द्वापरयुग में भगवान् श्री कृष्ण की आज्ञा से अर्जुन ने पाशुपत अस्त्र की प्राप्ति के लिए भगवान् शिव का तप किया ! एक दिन भगवान् शिव एक शिकारी का भेष बनाकर आये और जब पूजा के बाद अर्जुन ने सुअर पर बाण चलाया तो ठीक उसी वक़्त भगवान् शिव ने भी उस सुअर को तीर मारा , दोनों में वाद विवाद हो गया और शिकारी रुपी शिव ने अर्जुन से कहा , मुझसे युद्ध करो जो युद्ध में जीत जायेगा सुअर उसी को दीया जायेगा ! अर्जुन और भगवान् शिव में युद्ध शुरू हुआ , युद्ध देखने के लिए माँ पार्वती भी शिकारी का भेष बना वहां आ गयी और युद्ध देखने लगी ! तभी भगवान् कृष्ण ने अर्जुन से कहा जिसका रोज तप करते हो वही शिकारी के भेष में साक्षात् खड़े है ! अर्जुन ने भगवान् शिव के चरणों में गिरकर प्रार्थना की और भगवान् शिव ने अर्जुन को अपना असली स्वरुप दिखाया !

अर्जुन भगवान् शिव के चरणों में गिर पड़े और पाशुपत अस्त्र के लिए प्रार्थना की ! शिव ने अर्जुन को इच्छित वर दीया , उसी समय माँ पार्वती ने भी अपना असली स्वरुप दिखाया ! जब शिव और अर्जुन में युद्ध हो रहा था तो माँ भगवती शिकारी का भेष बनाकर बैठी थी और उस समय अन्य शिकारी जो वहाँ युद्ध देख रहे थे उन्होंने जो मॉस का भोजन किया वही भोजन माँ भगवती को शिकारी समझ कर खाने को दिया ! माता ने वही भोजन ग्रहण किया इसलिए जब माँ भगवती अपने असली रूप में आई तो उन्होंने ने भी शिकारीओं से प्रसन्न होकर कहा ” हे किरातों ! मैं प्रसन्न हूँ , वर मांगो ! ” इसपर शिकारीओं ने कहा ” हे माँ हम भाषा व्याकरण नहीं जानते और ना ही हमे संस्कृत का ज्ञान है और ना ही हम लम्बे चौड़े विधि विधान कर सकते है पर हमारे मन में भी आपकी और महादेव की भक्ति करने की इच्छा है , इसलिए यदि आप प्रसन्न है तो भगवान शिव से हमे ऐसे मंत्र दिलवा दीजिये जिससे हम सरलता से आप का पूजन कर सके !

माँ भगवती की प्रसन्नता देख और भीलों का भक्ति भाव देख कर आदिनाथ भगवान् शिव ने साबर मन्त्रों की रचना की ! यहाँ एक बात बताना बहुत आवश्यक है कि नाथ पंथ में भगवान् शिव को ” आदिनाथ ” कहा जाता है और माता पार्वती को ” उदयनाथ ” कहा जाता है ! भगवान् शिव जी ने यह विद्या भीलों को प्रदान की और बाद में यही विद्या दादा गुरु मत्स्येन्द्रनाथ को मिली , उन्होंने इस विद्या का बहुत प्रचार प्रसार किया और करोड़ो साबर मन्त्रों की रचना की ! उनके बाद गुरु गोरखनाथ जी ने इस परम्परा को आगे बढ़ाया और नवनाथ एवं चौरासी सिद्धों के माध्यम से इस विद्या का बहुत प्रचार हुआ ! कहा जाता है कि योगी कानिफनाथ जी ने पांच करोड़ साबर मन्त्रों की रचना की और वही चर्पटनाथ जी ने सोलह करोड़ मन्त्रों की रचना की ! मान्यता है कि योगी जालंधरनाथ जी ने तीस करोड़ साबर मन्त्रों की रचना की ! इन योगीयो के बाद अनन्त कोटि नाथ सिद्धों ने साबर मन्त्रों की रचना की ! यह साबर विद्या नाथ पंथ में गुरु शिष्य परम्परा से आगे बढ़ने लगी , इसलिए साबर मंत्र चाहे किसी भी प्रकार का क्यों ना हो उसका सम्बन्ध किसी ना किसी नाथ पंथी योगी से अवश्य होता है ! अतः यह कहना गलत ना होगा कि साबर मंत्र नाथ सिद्धों की देन है !

साबर मन्त्रों के मुख्य पांच प्रकार है –
१ . प्रबल साबर – इस प्रकार के साबर मन्त्र कार्य सिद्धि के लिए प्रयोग होते है , इन में प्रत्यक्षीकरण नहीं होता ! केवल जिस मंशा से जप किया जाता है वह इच्छा पूर्ण हो जाती है ! इन्हें कार्य सिद्धि मंत्र कहना गलत ना होगा ! यह मंत्र सभी प्रकार के कर्मों को करने में सक्षम है ! अतः इस प्रकार के मन्त्रों में व्यक्ति देवता से कार्यसिद्धि के लिए प्रार्थना करता है , साधक एक याचक के रूप में देवता से याचना करता है !

२. बर्भर साबर – इस प्रकार के साबर मन्त्र भी सभी प्रकार के कार्यों को करने में सक्षम है पर यह प्रबल साबर मन्त्रों से अधिक तीव्र माने जाते है ! बर्भर साबर मन्त्रों में साधक देवता से याचना नहीं करता अपितु देवता से सौदा करता है ! इस प्रकार के मन्त्रों में देवता को गाली, श्राप, दुहाई और धमकी आदि देकर काम करवाया जाता है ! देवता को भेंट दी जाती है और कहा जाता है कि मेरा अमुक कार्य होने पर मैं आपको इसी प्रकार भेंट दूंगा ! यह मंत्र बहुत ज्यादा उग्र होते है !

३. बराटी साबर – इस प्रकार के साबर मन्त्रों में देवता को भेंट आदि ना देकर उनसे बलपूर्वक काम करवाया जाता है ! यह मंत्र स्वयं सिद्ध होते है पर गुरुमुखी होने पर ही अपना पूर्ण प्रभाव दिखाते है ! इस प्रकार के मंत्रों में साधक याचक नहीं होता और ना ही सौदा करता है ! वह देवता को आदेश देता है कि मेरा अमुक कार्य तुरंत करो ! यह मन्त्र मुख्य रूप से योगी कानिफनाथ जी के कापालिक मत में अधिक प्रचलित है ! कुछ प्रयोगों में योगी अपने जुते पर मंत्र पढ़कर उस जुते को जोर जोर से नीचे मारते है तो देवता को चोट लगती है और मजबूर होकर देवता कार्य करता है !

४. अढैया साबर – इस प्रकार के साबर मंत्र बड़े ही प्रबल माने जाते है और इन मन्त्रों के प्रभाव से प्रत्यक्षीकरण बहुत जल्दी होता है ! प्रत्यक्षीकरण इन मन्त्रों की मुख्य विशेषता है और यह मंत्र लगभग ढ़ाई पंक्तियों के ही होते है ! अधिकतर अढैया मन्त्रों में दुहाई और धमकी का भी इस्तेमाल नहीं किया जाता पर फिर भी यह पूर्ण प्रभावी होते है !

५. डार साबर – डार साबर मन्त्र एक साथ अनेक देवताओं का दर्शन करवाने में सक्षम है जिस प्रकार “बारह भाई मसान” साधना में बारह के बारह मसान देव एक साथ दर्शन दे जाते है ! अनेक प्रकार के देवी देवता इस मंत्र के प्रभाव से दर्शन दे जाते है जैसे “चार वीर साधना” इस मार्ग से की जाती है और चारों वीर एक साथ प्रकट हो जाते है ! इन मन्त्रों की जितनी प्रशंसा की जाए उतना ही कम है , यह दिव्य सिद्धियों को देने वाले और हमारे इष्ट देवी देवताओं का दर्शन करवाने में पूर्ण रूप से सक्षम है ! गुरु अपने कुछ विशेष शिष्यों को ही इस प्रकार के मन्त्रों का ज्ञान देते है !

नाथ पंथ की महानता को देखकर बहुत से पाखंडी लोगो ने अपने आपको नाथ पंथी घोषित कर दिया है ताकि लोग उनकी बातों पर विश्वास कर ले ! ऐसे लोगो से यदि यह पूछा जाये कि आप बारह पन्थो में से किस पंथ से सम्बन्ध रखते है ? आपकी दीक्षा किस पीठ से हुयी है ? आपके गुरु कौन है ? तो इन लोगो का उत्तर होता है कि मैं बताना जरूरी नहीं समझता क्योंकि इन लोगो को इस विषय में ज्ञान ही नहीं होता , पर आज के इस युग में लोग बड़े समझदार है और इन धूर्तो को आसानी से पहचान लेते है !
भगवान् शिव ने सभी मंत्रो को कीलित कर दिया पर साबर मन्त्र कीलित नहीं है ! साबर मन्त्र कलयुग में अमृत स्वरुप है ! साबर मंत्रो को सिद्ध करना बड़ा ही सरल है न लम्बे विधि विधान की आवश्यकता और न ही करन्यास और अंगन्यास जैसी जटिल क्रियाए ! इतने सरल होने पर भी कई बार साबर मंत्रो का पूर्ण प्रभाव नहीं मिलता क्योंकि साबर मन्त्र सुप्त हो जाते है ऐसे में इन मंत्रो को एक विशेष क्रिया द्वारा जगाया जाता है !

साबर मंत्रो के सुप्त होने के मुख्य कारण –

१. यदि सभा में साबर मन्त्र बोल दिए जाये तो साबर मन्त्र अपना प्रभाव छोड़ देते है !
२.यदि किसी किताब से उठाकर मन्त्र जपना शुरू कर दे तो भी साबर मन्त्र अपना पूर्ण प्रभाव नहीं देते !
३.साबर मन्त्र अशुद्ध होते है इनके शब्दों का कोई अर्थ नहीं होता क्योंकि यह ग्रामीण भाषा में होते है यदि इन्हें शुद्ध कर दिया जाये तो यह अपना प्रभाव छोड़ देते है !
४.प्रदर्शन के लिए यदि इनका प्रयोग किया जाये तो यह अपना प्रभाव छोड़ देते है !
५.यदि केवल आजमाइश के लिए इन मंत्रो का जप किया जाये तो यह मन्त्र अपना पूर्ण प्रभाव नहीं देते !

ऐसे और भी अनेक कारण है ! उचित यही रहता है कि साबर मंत्रो को गुरुमुख से प्राप्त करे क्योंकि गुरु साक्षात शिव होते है और साबर मंत्रो के जन्मदाता स्वयं शिव है ! शिव के मुख से निकले मन्त्र असफल हो ही नहीं सकते।।

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