“मुस्कान” यानी कि “मंदहास”
हास्य की मंथर गति की परिणीति “मुस्कान” है।
ओष्ठ से द्वितीया का चन्द्रमा झांके तो उसे “मुस्कान” का नाम मिलता है।
जीवन की समस्याओं से घिर कर “मुस्कान” की ही सुधियाँ आती हैं। किन्तु सत्य इससे इतर कुछ और ही है।
“स्माइल इज़ द बिगेस्ट इल्यूजन ऑफ़ दिस वर्ल्ड!”
[ “मुस्कान” इस संसार का सबसे बड़ा “भ्रम” है! ]
बहरहाल,
सभी को इस “भ्रम” से लगाव है। हर एक को “मुस्कान” ही चाहिए।
एक संप्रत्यय बहुधा प्रचलित है : “मुस्कान की भावभंगिमा केवल मनुष्य को प्राप्त है।”
क्या वास्तव में ईश्वर ने ये अनमोल उपहार अपनी संतानों को दिया है?
भला, कौन जाने ईश्वर की बातें!
हाँ, ये अवश्य मालूम है कि मानव की हर संतति का पहला स्वर रुदन का होता है, क्रंदन का होता है।
जीव विज्ञान के अनुसार ये “ह्यूमंस फर्स्ट नेचुरल रिफ्लेक्स एक्शन” है। अर्थात् मनुष्य की पहली प्राकृतिक प्रतिवर्त क्रिया!
“रिफ्लेक्स” या “प्रतिवर्त” क्रिया का अर्थ उन क्रियाओं से है, जिनके लिए मस्तिष्क से आज्ञा नहीं लेनी होती।
यथा, आपका हाथ गर्म तश्तरी से स्पर्श कर गया। क्या आप विचारते है : हाथ हटाया जाए या न हटाया जाए?
कभी नहीं! बल्कि आप उसी क्षण हाथ हटा लेते हैं।
एक और उदाहरण, कोई आपकी ओर पत्थर फेंके। क्या आप विचार करते हैं?
नहीं! बल्कि बिना सोचे झुक जाते हैं।
तश्तरी छूने पर हाथ हटा लेना, पत्थर आने पर झुक जाना – यही क्रियाएं “प्रतिवर्त” कहलाती हैं। यानी कि रिफ्लेक्स एक्शन!
ऐसा नहीं है कि इन क्रियाओं की आज्ञा हेतु मस्तिष्क तक सन्देश नहीं जाता।
अवश्य जाता है!
किन्तु इन संदेशों के लिए मस्तिष्क द्वारा दी जाने वाली आज्ञाएं “स्पाइनल कॉर्ड” के मुहाने में ही पूर्व संरक्षित होती हैं।
अतः बिना मस्तिष्क के हस्तक्षेप के ही, “स्पाइनल” एंड से आज्ञाएं प्रसारित हो जाती हैं।
इससे समय बचता है। क्रिया शीघ्र संपन्न होती है।
“रुदन” भी इन्हीं क्रियाओं में से एक है!
रोना हर मनुष्य को पूर्व से ही आता है। किन्तु हँसना सीखने हेतु गंभीर प्रयास करना पड़ता है।
ये सब व्यर्थ की बातें हैं कि ईश्वर ने “मुस्कराहट” जैसा अनमोल उपहार केवल मनुष्य को दिया है, शेष सृष्टि को नहीं!
विशुद्ध प्रलाप है ये!
ईश्वर ने अपनी संतानों को “मुस्कान” का नहीं बल्कि “रुदन” !का उपहार दिया है। संतान की उत्कृष्टता हेतु पिता को निर्दयी होना पड़ता है। यही रीति है। दस्तूर भी यही है!
*|| इति ||*