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महर्षिचरकनिरोगीरहनेकामुफ्तउपाय #बतादियेहैं—#शरीरकोव्यर्थदवाकीआदत #नलगायें

चरक ऋषि चरक संहिता तो लिख दिये. लेकिन, इस संहिता का लोग मतलब भी समझ रहे हैं या नहीं, ये जानने के लिए वे भेष बदलकर निकल पड़े. एक बूढ़े का वेष धरा और चरक संहिता के असली ज्ञान के बारे में जानने निकल गए.

नगर के एक प्रसिद्ध चिकित्सालय पहुंचे. वहां वैद्य रोगियों को देखने में व्यस्त थे. उनका सहायक रोगियों द्वारा लाए गए उपहारों को समेटने में व्‍यस्‍त था. उस समय लोग रुपये-पैसे की जगह अपने घर से उपहार ही लाकर दिया करते थे. जैसे दर्जी कोई कपड़ा, लोहार कोई घरेलू लोहे का औजार, पंसारी रोजमर्रा की चीजें, किसान अनाज उपहार के रूप में लेकर आता था. जो कुछ नहीं लाता था, उसे भी देख लिया जाता था, लेकिन एकदम अंत में. चरक का भी अंत में ही बारी आयी थी.

जाते ही उन्‍होंने वैद्य से पूछा, निरोगी कौन? वैद्य ने कहा कि जो नियमित त्रिफला का सेवन करे. वह बगल वाली दुकान से मिल जाएगा. वह यह बताना नहीं भूले कि वहां औषधियां उनकी देखरेख में ही बनती हैं. चरक अपना माथा पीट लिये और तुरंत वहां से निकल गए. उन्‍होंने मन ही मन सोचा यहां चिकित्सालय नहीं, दुकानें हैं. कई वैद्यों का यही हाल था. किसी वैद्य ने कहा स्‍वस्‍थ वही रह सकता है जो नियमित च्‍यवनप्राश खाता है तो किसी ने कहा जो स्‍वर्ण भस्‍म का सेवन करता है. इस प्रकार सभी अप्रत्यक्ष व्यापार ही कर रहे थे.

दुखी होकर वे नगर के बाहर निकल गए. उन्‍होंने सोचा मनुष्‍य को स्‍वस्‍थ रहने के लिए इतना बड़ा ग्रंथ बेकार ही लिखा. लोगों ने शरीर को दवाखाना बना कर रख लिया है. अस्‍पताल, दुकानें बन गई हैं और वैद्य बिजनेसमैन. सब इन किताबों से पढ़कर औषधियां बनाकर बेच रहे हैं. रोगियों की संख्‍या बढ़ती जा रही है. उनका उद्देश्य सफल होते नहीं दिखा. दुखी होकर वे नदी किनारे बैठ गए.

तभी देखा कि एक व्‍यक्ति नदी से नहा कर जा रहा था. उसकी वेशभूषा और क्रिया-कलाप देखकर, वे समझ गए कि यह कोई वैद्य ही है. मन नहीं माना तो उन्‍होंने उस वैद्य से वही सवाल पूछा, ‘कोरुक?’ यानी कौन निरोगी?पहले तो वह व्‍यक्ति उन्‍हें गौर से देखा फिर बोला, ‘हित भुक, मित भुक, ऋत भुक.’ यह सुनते ही चरक का चेहरा खुशी से खिल उठा. उन्‍होंने उस वैद्य को गले से लगा लिया. बोले आपने बिल्कुल ठीक कहा,

जोव्यक्तिशरीरकोलगनेवालाआहारले,#अपनेशरीरकीप्रकृतिकेअनुरूपले, #भूखसेथोड़ाकमखाएऔरमौसमके #अनुसारभोजनयाफलाहारकरे, #वही #स्वस्थनिरोगीरहसकता_है.

इस प्रकार उनका उद्देश्य सफल कहा जा सकता है. अगर हम नियमित इसका पालन करें, तो शरीर में रोग होगा ही नहीं. अगर जरुरी हो ही गया उपचार करना, तो चरक संहिता एवं अन्य संहिताओं में वर्णित उपचार की विधियों से उपचार कर लेना चाहिए

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