🌸🙏पूजा कक्ष🙏🌸
पूजा घर का वास्तु
*कोई भी व्यक्ति चाहे किसी भी
धर्म का हो उसके भवन में पूजा कास्थान अवश्य ही
होता है । हिदु धर्म में पूजा के लिए भवन में ईशान की
दिशा को सर्वश्रेष्ठ माना गया है । चाहे भवन का मुख
किसी भी दिशा में हो
लेकिन पूजा घर यथासंभव ईशान कोण में बनाने से शुभ प्रभाव
प्राप्त होते है। पूजा घर के लिए पूर्व और उत्तर की
दिशा भी शुभ मानी जाती है ।
*ध्यान रहे की पूजा घर इस तरह से बनाया जाये
कि पूजा करते समय व्यक्ति का मुख पूर्व अथवा उत्तर दिशा
की ओर ही रहे । प्राचीन
ऋषिमुनियों के अनुसार धन प्राप्ति के लिए उत्तर दिशा एवं ज्ञान
प्राप्ति के लिए पर्व दिशा की ओर मुख
करके पूजा करना ही श्रेयकर होता है । यहाँ पर हम
आपको पूजा घर से सम्बंधित कुछ आसान से वास्तु टिप्स बता रहे
है जिससे आपको अवश्य ही लाभ की
प्राप्ति होगी ।
पूजा घर कभी भी धातु का ना हो, यह
लकड़ी, पत्थर और संगमरमर का होना शुभ माना जाता
है।
*पूजा का कमरा खुला और बड़ा होना चाहिए। पूजा घर को
सीढ़ियों के नीचे बिलकुल भी
नहीं बनवाना चाहिए। यह हमेशा ग्राउंड फ्लोर पर होना
ही श्रेष्ठ माना गया है , इसे कभी
भी तहखाने में भी नहीं बनाना
चाहिए ।
*पूजा घर कभी भी शयन कक्ष में
नहीं बनाना चाहिए लेकिन यदि स्थानाभाव के कारण बनाना
भी पड़े तो पूजा स्थल में पर्दा अवश्य ही
होना चाहिए । दोपहर और रात में पूजास्थल को परदे से अवश्य
ही ढक दें ।
*पूजाघर में मूर्तियां कभी भी प्रवेश द्वार के
सम्मुख नहीं होनी चाहिए ।
पूजाघर में बड़ी, वजनी और प्राण
प्रतिष्ठित मूर्तियाँ नहीं रखनी चाहिए ।
घर के मंदिर में क़म वजन की मूर्तियाँ और
तस्वीरें ही रखनी चाहिए।
इन्हें दीवार से कुछ दूरी पर रखना चाहिए
दीवार से टिका कर नहीं ।
पूजाघर में देवताओं की मूर्तियां / तस्वीरें
एक दूसरे के सामने चाहिए अर्थात देवताओं की दृष्टि
एक-दूसरे पर भी नहीं पड़नी
चाहिए।
*पूजाघर में एक ही भगवान की कई
सारी मूर्तियाँ एकसाथ नहीं
रखनी चाहिए।
पूजा घर में भगवान की मूर्तियों के साथ अपने पूर्वजों
की तस्वीरें कतई नहीं
रखनी चाहिए।
*पूजाघर में कभी भी टूटी हुई
खंडित मूर्तियाँ नहीं रखनी चाहिए। अगर
कोई मूर्ति खंडित हो जाए तो उसे तुरंत हटा कर प्रवाहित करा देना
चाहिए।
घर की पूर्व या उत्तरी दीवार
पर घर के कुलदेवता का चित्र भी अवश्य
ही लगाएं ।
पूजा घर में जटा वाला नारियल अवश्य ही रखना चाहिए ।
*पूजा घर में पवित्र यंत्रों जैसे श्री यंत्र, व्यापार वृद्धि
यंत्र, कुबेर यंत्र, वीसा यंत्र ,
दक्षिणवर्ती शंख, एकाक्षीं नारियल आदि
को अवश्य ही स्थापित करना चाहिए । इन यंत्रों को
अखंडित चावलों ( साबुत चावलों ) के ऊपर स्थापित करना चाहिए तथा
इन चावलों को प्रत्येक पूर्णिमा को बदलते रहना चाहिए ।
*पूजा घर में भगवान को जल चढ़ाने के लिए ताम्बे के बर्तनो का
ही प्रयोग करना चाहिए ।
किसी भी पूजा, जाप को करते समय
किसी ना किसी आसान का अवश्य
ही प्रयोग करना चाहिए तथा पूजा करते समय एक
पात्र में जल रख लें फिर पूजा के उपरांत आसान के
नीचे थोड़ा जल डालकर, उसे अपने मस्तक पर लगाते
हुए ही उठना चाहिए अन्यथा पूजा का फल बिलकुल
भी प्राप्त नहीं होता है ।
घर के पूजाघर में कलश, गुंबद इत्यादि बिलकुल भी
नहीं बनाना चाहिए।
*पूजाघर में यदि हवन करने की व्यवस्था है तो वह
हमेशा आग्नेय कोण में ही होना चाहिए।
पूजाघर के निकट झाड़ू, पोंछा अथवा कूड़ेदान को नहीं
रखना चाहिए । पूजा घर के समीप जोते चप्पल
भी नहीं रखने चाहिए ।
*पूजाघर के लिए सफ़ेद, हल्का पीला ,
गुलाबी अथवा आसमानी रंग को शुभ माना
जाता है। पूजा घर में कभी भी काले,
नीले, भूरे, लाल आदि रंगो का प्रयोग नहीं
करना चाहिए ।
पूजाघर में कभी भी कोई भी
बहुमूल्य वस्तु छिपा कर नहीं रखनी
चाहिए ।
*पूजाघर के नीचे किसी अलमारी
अथवा अन्य किसी भी स्थान में कोर्ट केस
सम्बन्धी कागज रखने से उसमें विजय की
सम्भावना बड़ जाती है ।
हमें विश्वास है कि आप वास्तु के उपरोक्त बातों को ध्यान में
रखकर ईश्वर की पूर्ण कृपा प्राप्त कर सकते है।
जैसे कि हम ऊपर पहले ही कह चुके है कि भवन
के ईशान कोण में पूजा स्थल होना अत्यंत शुभ होता है क्योंकि
ईशान कोण का स्वामी ग्रह गुरु है। हम आपको यहाँ
पर घर की और किस किस दिशा में पूजा स्थल का क्या
प्रभाव पड़ता है हम आपको उन सबके बारे में बता रहे है।
- ईशान कोण में पूजा स्थल : जिस भवन के ईशान कोण में पूजा
स्थल होता है उस भवन के सदस्य बहुत ही धार्मिक
विचारों के होते हैं। उस परिवार के सदस्य निरोगी होने के
साथ साथ दीर्घ आयु भी प्राप्त करते है
। - पूर्व दिशा में पूजा स्थल: जिस भवन में पूर्व दिशा में पूजा
स्थल होता है उस भवन का मुखिया बहुत सात्विक विचारों वाला होता
है। वह अच्छे कर्मों से समाज में मान सम्मान को प्राप्त करता
है। - आग्नेय में पूजा स्थल: जिस भवन के आग्नेय दिशा में पूजा
स्थल होता है उस भवन के मुखिया को बीमारियाँ घेरे
रहती है। वह बहुत ही
क्रोधी लेकिन निर्भीक होता है । वह
स्वयं ही निर्णय लेता है और आत्मनिर्भर
भी होता है । - दक्षिण दिशा में पूजा स्थल: जिस भवन में दक्षिण दिशा में
पूजा स्थल होता है उस घर के सदस्यों को भी तरह
तरह की बीमारियाँ घेरे रहती
है । उस भवन के निवासी जिद्दी,
क्रोधी और भावुक होते है। - नैत्रत्य कोण में पूजा स्थल: जिस भवन के नैत्रत्य कोण में
पूजा स्थल होता है उस भवन के सदस्यों को मस्तिष्क एवं पेट
संबंधी समस्यांएं होती हैं और उन लोगो के
स्वभाव में धूर्तता और लालच स्वत: ही आ
जाती हैं। - पश्चिम दिशा में पूजा स्थल: जिस भवन में पश्चिम दिशा में पूजा
स्थल होता है उस घर के सदस्यों के चरित्र में दोहरापन आ जाता
है । उनकी कथनी और
करनी में बहुत अन्तर होता है । वह लोग धर्म लोग
अपनी सुविधानुसार ही मानते है । उघर के
मुखिया के स्वभाव में लालचीपन आ जाता है और वह
जोड़ो के दर्द एवं पेट की गैस से पीड़ित
रहता है। - वायव्य कोण में पूजा स्थल: जिस भवन के वायव्य कोण में
पूजा स्थल होता है उस भवन के मुखिया का दिमाग अस्थिर रहता
है। वह छोटी छोटी बातो पर घबरा जाता है
। उसके दूसरी स्त्री के साथ सम्बन्ध
होने के सम्भावना रहती है और इसी
कारण उसे बदनामी भी उठानी
पड़ सकती है। - उत्तर दिशा में पूजा स्थल: जिस भवन में उत्तर दिशा में पूजा
स्थल होता है उस भवन के सदस्य विद्वान, बुद्धिमान और
ज्ञानवान रहते है उन्हें धन सम्बन्धी
भी कोई दिक्कत नहीं आती
है । - ब्रह्म स्थल में पूजा स्थल: जिस भवन में ब्रह्म स्थान में
पूजा स्थल होता है वह बहुत ही शुभ माना जाता है ।
उस भवन के सदस्यों के मध्य प्रेम बना रहता है और उस भवन
में सकारात्मक ऊर्जा का संचार रहता है।
हमें विश्वास है कि आप वास्तु के उपरोक्त बातों को ध्यान में
रखकर ईश्वर की पूर्ण कृपा प्राप्त कर सकते है।
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