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{{{सिद्धियाँ और मन}}}
मनुष्य ईश्वर की एक ऐसी विशिष्ट संरचना है जिसमे उसकी सभी शक्तियाँ बीज रूप मे विधमान है इसके भीतर अन्तर्मन मे एक ऐसा गुप्त खजाना छिपा है । जिसको दुनिया मे कुछ लोगो ने प्राप्त किया है। अन्य व्यक्ति इसकी थोडी सी सम्पदा का ही उपयोग करके अपना जीवन निर्वाह मात्र कर लेते हैं।
इस सम्पदा को प्राप्त करने की चाबी भी ईश्वर ने मनुष्य को विवेक बुद्धि के रूप मे सौंप दी है जिसका उपयोग करके वह इस गुप्त खजाने को प्राप्त कर सकता है।
इसखजानेका पहरेदार मन है जिसको तैयार करके ही इस खजाने के कक्ष मे प्रवेश किया जा सकता है मनुष्य एक सीमित दायरे मे रहकर ही थोडी सी सम्पदा से ही अपना गुजारा करके संतुष्ट हो जाता है ।
इस थोडी सी सम्पदा से ही वह अपने कार्यो का सम्पादन करता है उसके स्वार्थ ही उसे संकीर्ण घेरे से बहार निकलने मे बाधक है यदि वह स्वार्थों के संकीर्ण घेरे से बहार निकल कर अपनी दृष्टि को विशाल कर दे तथा मानव हितों की ओर ध्यान देने लगे तो इस खजाने की चाबी का रहस्य ज्ञातहो सकता है कि उसका उपयोग किस प्रकार किया जाये । जो अपने घेरे को विस्तृत कर देता है वही सिद्धियों का स्वामी बन जाता है ।
अपनी अन्तर्निहित शक्तियों को जाग्रत करना है सिद्धियाँ कहलाती है । सामान्य मनुष्य जो कार्य नही कर सकता उन्हे कर सकने की क्षमता अर्जित कर लेना ही सिद्धियाँ है।
मनुष्यका शरीर शिव एवं शक्ति का संयुक्त रूप है यह शिव तत्त्व ही चैतन्य तत्त्व है जो ज्ञानमय है जिसे आत्मा कहा जाता है। तथा शक्ति शरीर को संचालित करने वाली क्रियाशक्ति है ।
जिससे शरीर की समस्त क्रियाओं का संचालन होता है यही शक्ति प्राणशक्ति की सहायता से कार्य करती है।
शरमे मे कुण्डलिनी शक्ति आत्मा् की शक्ति है जो शरीर के विभिन्न शक्ति केन्द्रों को जाग्रत करती है इन केन्द्रो के जाग्रत होने पर मनुष्य को कई प्रकार की आत्मिक ,मानसिक , भौतिक ,एवं तात्विक क्षमताएँ प्राप्त होती है जो सामान्य मनुष्य मे नही पाई जाती वे उनमे सुप्तावस्था मे रहती है जिनके जागरण से मनुष्य को जो अतिरिक्त शक्ति व क्षमता प्राप्त होती है उसी को सिद्धियाँ कहा जाता है। ये सिदधियां सामान्य व्यक्ति के लिए चमत्कार रूप होती है । किनतु सिद्धो के लिए ये स्वाभाविक घटनामात्र होती है।
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