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बुढ़ापा दैवी उपहार

वृद्धावस्था की स्थिति का वर्णन करते हुए कपिल भगवान कहते हैं कि बुढ़ापा सरस बनना चाहिए। आजकल लोग बुढ़ापे को एक शाप मानते हैं, जबकि बुढ़ापा तो दैवी उपहार (डिवाइन गिफ्ट) है:- आँखों से दिखाई नहीं देता तो अपने अन्दर झांक कर ईश्वर का दर्शन करना चाहिए। कानों से कुछ सुनाई नहीं देता तो कृष्ण की वंशी की मधुर आवाज़ सुननी चाहिए। जब बुढ़ापे में दाँत उखड़ जाते हैं तो मुख से बोलना कुछ चाहते हैं और निकलता कुछ और है, क्योंकि दाँतों के न होने से हवा निकल जाती है। अतः बुढ़ापे में कम बोलना चाहिए और मौन रहकर साधना करनी चाहिए। बुढ़ापे में पैरों से चला नही जाता इसलिये एकांत में बैठकर ठाकुर का भजन करना चाहिए। कहने का अभिप्राय यह है कि हमें सकारात्मक दृष्टिकोण रखना चाहिए क्योंकि ईश्वर के विधान के पीछे कोई न कोई हितपूर्ण कारण होता है। यानी कि बाल्यावस्था में जैसे-जैसे जिन चीजों की आवश्यकता होती गई, मेरे ठाकुर देते जाते हैं और जब बुढ़ापे में जरुरत नहीं है तो हटाते जाते हैं। यह ईश्वर का अनुग्रह है।

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