नाद_साधना
शब्द को ब्रह्म कहा गया है, क्योंकि ईश्वर और जीव को एक शृंखला मे बांधने का काम शब्द द्वारा ही होता है । शब्द दो प्रकार के होते है। सुक्ष्म शब्द को विचार कहते है और स्थूल शब्द को नाद कहते है ।
अत्यन्त सूक्ष्म ब्रह्म शब्द [विचार] तब तक धुंधले रूप मे दिखाई देते है जबतक हम कषायकल्मष आत्मा मे बने रहते है। जैसे जैसे आंतरिक पवित्रता बढेगी दिव्य संदेश उतने ही स्पष्ट हो दें। हम भूत भविष्य के संकेत भी प्राप्त होने लगते है ।
प्रकृति के अतंराल मे परमाणुओं मे गति उत्पन्न होकर “ॐ कार” की ध्वनि प्रकट होती है । पंच तत्वों मे प्रति ध्वनि ॐ कार सी स्वर वह रियो को सुनने का नाद साधना मे महत्वपूर्ण स्थान है, नाद की स्वर लहरियों को पकड़े पकडते ,ॐ, कि रस्सी को पकड़ा हुआ ब्रह्म तक जीव पहुंच जाता है । अभ्यास किसी एकान्त मे प्राप्त:९ बजे तक , शाम तथा रात्रि मे १० बजे से प्रात: काल समय अच्छा है ।
विधी:– आराम पूर्वक बैठे अपने दोनो कानों मे अंगुलियाँ डाले या रूई डाले अपनी मुर्धा मे ध्यान लगाकर जो शब्द हो उसे सुनने सी कौशिश करे । १०–१५ दिनो के से सुक्ष्म अभ्यास से सुक्ष्म इन्द्रियाँ निर्मल होकर शब्दों की गुप्त शक्तियों को ग्रहण करने लगेगी । शब्दों के श्रवण मे आनंदित होकर साधक अपने तन मन की सुध भूल जाता है घण्टे घड़ियाल ध्वनि के रूप नें ” ॐ” की ध्वनि सुनाई देती है और सन् मय होकर तृतीय अवस्था का आनन्द देने लगता है । यह गति आगे बढकर परमात्मा से मिला देती है ।
दो वस्तुओं को टकराने से जो शब्द होता है वह आपात नाद है परन्तु बिना किसी आघात को दिव्य प्रकृति ये अन्तराल से जहा ध्वनियाँ उत्पन्न होती है उन्हें ” अनाहत” या ” अनहद” कहते है ।
अनाहत या अनहद नाद मुख्यतः दस प्रकार को होते है ।
१ संहारक,२ पालक, ३ सृजक, ४ सहस्त्र दल,५ आनन्दमण्डल ६ चिदानन्द, ७ सच्चिदानंद, ८ अखण्ड, ९ अगम,१० अलख।
इसमे चिणि चिणि, झिणि झिणि, झिगुर, घण्टा-घडियाल, ढोल हमारा, झांझर, समुद्र गर्जन, सीटी की आवाज, पाजेब की झंकार, वीणा वादन, बादलो की गर्जन, तुराही इत्यादि ध्वनियाँ होती है ।