“ससुराल गेंदा फूल” क्यों कहलाता है ?
ससुराल,जहाँ एक लड़की एक इंसान से शादी करके चली जाती है; और वह उसका घर कहलाने लगता है। एक नयी अनजानी जगह अचानक से उसका घर बन जाता है।
कहते हैं कि हमारे देश में शादी भले ही एक इंसान से होती है, लेकिन जुड़ता पूरा परिवार है। कई रिश्ते जैसे: “पत्नी” होने के साथ ही एक लड़की किसी की बहू, किसी की देवरानी, किसी की भाभी, किसी की चाची तो किसी की मामी बन जाती है। एक साथ कई नए रिश्ते जिसे एकदम से अपनाना आसान नहीं होता है।
सभी रिश्ते को एक साथ देखा जाए तो यह नयी लड़की का खूबसूरती से स्वागत करता है। लड़की को भी ऐसा लगता है कि वह “फूल के समान खूबसूरत परिवार” में आ गयी है।
“ससुराल एक गेंदा के फूल” की तरह रिश्तों से बंधा बड़ा सा फूलों का गुच्छा होता है, जो सारे रिश्ते को समेट कर रखता है।
ससुराल एक गेंदा का फूल है, जो एक बड़े से गुच्छे में सब रिश्ते को बाँध कर रखता है। जैसे गेंदे के फूल में अलग-अलग पंखुड़ी जो खुद एक फूल जैसी होती है, उसी तरह ससुराल में कई रिश्ते होते हैं जो मजबूती से एक दूसरे के साथ बंधे होते हैं। गेंदा का फूल उसी मजबूती को दर्शाता है।
यहाँ ससुराल को “गेंदा का फूल” की उपमा इसलिए दी गयी है कि कई नए रिश्ते एक साथ लड़की के जीवन में आते हैं।
जिस तरह गेंदे के फूल में भी कई फूल एक साथ जुड़कर उसे गुच्छा बनाते हैं उसी तरह ससुराल में तरह तरह के लोग मिलकर एक फूलों का गुच्छा कहलाते हैं। इसे उपमा के तौर पर इस्तेमाल किया गया है।
प्रसून जोशी ने लड़की की ससुराल को बहुत अच्छी तरह से परिभाषित किया है। उनकी द्वारा रची गयी कुछ पंक्तियाँ हैं, जो ससुराल में एक लड़की की स्थिति को बयाँ करती है
“ससुराल गेंदा फूल”
सैयां छेड देवे, ननंद चुटकी लेवे
ससुराल गेंदा फूल
सास गारी देवे, देवर समझा लेवे
ससुराल गेंदा फूल…!
छोड़ा बाबुल का अंगना भावे डेरा पिया का हो
सास गारी देवे, देवर समझा लेवे
ससुराल गेंदा फूल…!
सैंयां है व्यपारी, चले हैं परदेस
सूरतियाँ निहारु, जियरा भारी होवे
ससुराल गेंदा फूल….!
सास गारी देवे, देवर समझा लेवे
ससुराल गेंदा फूल
सैयां छेड देवे, ननंद चुटकी लेवे
ससुराल गेंदा फूल…!
छोड़ा बाबुल का अंगना भावे डेरा पिया का हो
बुशर्ट पहिने, खाई के बेडा पान
पूरे रायपुर से अलग है, सैयां जी की शान
ससुराल गेंदा फूल….!
सैयां छेड देवे, ननंद चुटकी लेवे
ससुराल गेंदा फूल
सास गारी देवे, देवर समझा लेवे
ससुराल गेंदा फूल….!
ऊपर की लिखी हुई पंक्तियाँ पढ़ें तो यही पता चलता है कि पति का साथ तो लड़की को भाता है लेकिन सास और ननद का रिश्ता प्यारा नहीं लगता है।
पति के बाद देवर ही एक लड़की को समझ पाता है।
लेकिन यह क्या?
ससुराल में हर रिश्ता फूल जैसा होने के बाद भी खूबसूरत क्यों नहीं लगता है?
थोड़े ही दिनों में सब कुछ बदला हुआ क्यों लगता हैं?
उसके पीछे यह बात होती है कि जिस तरह नए रिश्ते में प्यार की खुशबू किसी लड़की को तुरंत नहीं मिल पाती है, उसी तरह ससुराल के रिश्ते फूल की तरह तो हैं, लेकिन वह “गेंदा का फूल है।”
“क्योंकि गेंदे के फूल में “खुशबू” नहीं होती है!”
परिवार के हर रिश्ते में प्यार की खुशबू नहीं होती है; इसलिए “ससुराल को गेंदा फूल” कहा जाता है। जिसमें रिश्ते तो एक दूसरे से जुड़े हैं, लेकिन हर रिश्ते में प्यार की खुशबू नहीं है।
अब लड़की और ससुराल वाले अपने मेहनत और प्यार से चाहे तो, वह गेंदा के फूल को या अपने ससुराल को गुलाब के फूल की तरह खूबसूरत और सुगंधित बना सकते हैं।