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: मंदिर से लौटने के पहले वहां कुछ देर क्यों बैठना चाहिए?

माना जाता है कि मंदिरों में ईश्वर साक्षात् रूप में विराजित होते हैं। किसी भी मंदिर में भगवान के होने की अनुभूति प्राप्त की जा सकती है। भगवान की प्रतिमा या उनके चित्र को देखकर हमारा मन शांत हो जाता है और हमें सुख प्राप्त होता है।हम इस मनोभाव से भगवान की शरण में जाते हैं कि हमारी सारी समस्याएं खत्म हो जाएंगी, जो बातें हम दुनिया से छिपाते हैं वो भगवान के आगे बता देते हैं, इससे भी मन को शांति मिलती है, बेचैनी खत्म होती है

दूसरा कारण है वास्तु, मंदिरों का निर्माण वास्तु को ध्यान में रखकर किया जाता है।हर एक चीज वास्तु के अनुरूप ही बनाई जाती है, इसलिए वहां सकारात्मक ऊर्जा ज्यादा मात्रा में होती है।

तीसरा कारण है वहां जो भी लोग जाते हैं वे सकारात्मक और विश्वास भरे भावों से जाते हैं सो वहां सकारात्मक ऊर्जा ही अधिक मात्रा में होती है।

चौथा कारण है मंदिर में होने वाले नाद यानी शंख और घंटियों की आवाजें, ये आवाजें वातावरण को शुद्ध करती हैं।

पांचवां कारण है वहां लगाए जाने वाले धूप-बत्ती जिनकी सुगंध वातावरण को शुद्ध बनाती है। इस तरह मंदिर में लगभग सभी ऐसी चीजें होती हैं जो वातावरण की सकारात्मक ऊर्जा को संग्रहित करती हैं। हम जब मंदिर में जाते हैं तो इसी सकारात्मक ऊर्जा का प्रभाव हम पर पड़ता है और हमें भीतर तक शांति का अहसास होता है। इसलिए मंदिर से लौटने से पहले वहां कुछ देर जरूर बैठना चाहिए
: 😞➖ जाने क्यों -❓

🔵➖ खाने को सादा दाल रोटी होती थी ,,लेकिन फिर भी किसी को खून की कमी नहीं होती थी ,,— ना (जाने क्यों ?)

🔵➖ स्कूल मे अध्यापक खूब कान खींचते थे,,डंडों से पिटाई होती थी,,लेकिन कोई बच्चा स्कूल में डिप्रेशन के कारण आत्महत्या नहीं करता था,,—ना (जाने क्यों,,?)

🔵➖ बचपन मे महँगे खिलौने नहीं मिलते थे,,लेकिन हर खेल बहुत आनंदित करता था,,—-ना (जाने क्यों),?

🔵➖ घर कच्चे होते थे,, कमरे कम होते थे,,—लेकिन (((माता -पिता कभी वृद्धाश्रम))) नहीं जाते थे,,——ना (जाने क्यों),?

🔵➖ घर मे गाय की ,कुत्ते की,अतिथि की मेहमानों की रोटियां बनती थी,, फिर भी घर का बजट संतुलित रहता था,,,— आज सिर्फ़ अपने परिवार की रोटी महंगी हो गयीं है,,—-ना (जाने क्यों),?

🔵➖ महिलाओं के लिए कोई जिम या कसरत के विशेष साधन नहीं थे, फिर भी महिलाएं संपूर्ण रूप से स्वस्थ्य रहती थी,——ना (जाने क्यों),?

🔵➖ भाई -भाई मे ,भाई-बहनों मे अनेक बार खूब झगड़ा होता था, आपस मे कुटाई तक होती थी,,,-परंतु आपस मे मनमुटाव कभी नहीं होता था,,—ना( जाने क्यों),?

🔵➖ परिवार बहुत बडे होते थे, पडोसियों के बच्चे भी दिनभर खेलते थे, फिर भी ((घरों में ही शादियां)) होती थी,,—–ना (जाने क्यों),?

🔵➖ माता-पिता थोडी सी बात पर थप्पड़ मार देते थे,,लेकिन उनका मान-सम्मान कभी कम नहीं होता था,,,,,—-ना (जाने क्यों),?

🛑➖ ऐसे अनेक क्यों ? क्यों ? के सवाल दिल मे ऊठ रहे है,,आप सभी तक इस क्यों को पहुँचाने की कृपा करें,—-शायद फिर से पहले जैसा सौहार्दपूर्ण वातावरण, आपसी प्रेम, एकता, का माहौल बने (((!!–एक -एक ग्यारह होते है-))🛑

                          🕉

🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁,
🙏🙏🙏🙏
: 18 दिन के युद्ध ने,
द्रोपदी की उम्र को
80 वर्ष जैसा कर दिया था…

शारीरिक रूप से भी
और मानसिक रूप से भी

शहर में चारों तरफ़
विधवाओं का बाहुल्य था..

पुरुष इक्का-दुक्का ही दिखाई पड़ता था

अनाथ बच्चे घूमते दिखाई पड़ते थे और उन सबकी वह महारानी
द्रौपदी हस्तिनापुर के महल में
निश्चेष्ट बैठी हुई शून्य को निहार रही थी ।

तभी,

श्रीकृष्ण
कक्ष में दाखिल होते हैं

द्रौपदी
कृष्ण को देखते ही
दौड़कर उनसे लिपट जाती है …
कृष्ण उसके सिर को सहलाते रहते हैं और रोने देते हैं

थोड़ी देर में,
उसे खुद से अलग करके
समीप के पलंग पर बैठा देते हैं ।

द्रोपदी : यह क्या हो गया सखा ??

ऐसा तो मैंने नहीं सोचा था ।

कृष्ण : नियति बहुत क्रूर होती है पांचाली..
वह हमारे सोचने के अनुरूप नहीं चलती !

वह हमारे कर्मों को
परिणामों में बदल देती है..

तुम प्रतिशोध लेना चाहती थी और, तुम सफल हुई, द्रौपदी !

तुम्हारा प्रतिशोध पूरा हुआ… सिर्फ दुर्योधन और दुशासन ही नहीं,
सारे कौरव समाप्त हो गए

तुम्हें तो प्रसन्न होना चाहिए !

द्रोपदी: सखा,
तुम मेरे घावों को सहलाने आए हो या उन पर नमक छिड़कने के लिए ?

कृष्ण : नहीं द्रौपदी,
मैं तो तुम्हें वास्तविकता से अवगत कराने के लिए आया हूँ
हमारे कर्मों के परिणाम को
हम, दूर तक नहीं देख पाते हैं और जब वे समक्ष होते हैं..
तो, हमारे हाथ में कुछ नहीं रहता।

द्रोपदी : तो क्या,
इस युद्ध के लिए पूर्ण रूप से मैं ही उत्तरदायी हूँ कृष्ण ?

कृष्ण : नहीं, द्रौपदी
तुम स्वयं को इतना महत्वपूर्ण मत समझो…

लेकिन,

तुम अपने कर्मों में थोड़ी सी दूरदर्शिता रखती तो, स्वयं इतना कष्ट कभी नहीं पाती।

द्रोपदी : मैं क्या कर सकती थी कृष्ण ?

तुम बहुत कुछ कर सकती थी

कृष्ण:- जब तुम्हारा स्वयंवर हुआ…
तब तुम कर्ण को अपमानित नहीं करती और उसे प्रतियोगिता में भाग लेने का एक अवसर देती
तो, शायद परिणाम
कुछ और होते !

इसके बाद जब कुंती ने तुम्हें पाँच पतियों की पत्नी बनने का आदेश दिया…
तब तुम उसे स्वीकार नहीं करती तो भी, परिणाम कुछ और होते ।

और

उसके बाद
तुमने अपने महल में दुर्योधन को अपमानित किया…
कि अंधों के पुत्र अंधे होते हैं।

वह नहीं कहती तो, तुम्हारा चीर हरण नहीं होता…

तब भी शायद, परिस्थितियाँ कुछ और होती ।

हमारे शब्द भी
हमारे कर्म होते हैं द्रोपदी…

और, हमें

अपने हर शब्द को बोलने से पहले तोलना बहुत ज़रूरी होता है…
अन्यथा,
उसके दुष्परिणाम सिर्फ़ स्वयं को ही नहीं… अपने पूरे परिवेश को दुखी करते रहते हैं ।

संसार में केवल मनुष्य ही एकमात्र ऐसा प्राणी है…
जिसका
“ज़हर”
उसके
“दाँतों” में नहीं,
“शब्दों ” में है…

इसलिए शब्दों का प्रयोग सोच समझकर करें।

ऐसे शब्द का प्रयोग कीजिये जिससे,
किसी की भावना को ठेस ना पहुँचे।
: मृत्यु के समय जो आपके साथ होगा वो ही आपका है ,मृत्यु जिसे आपसे दूर नही कर सकती वो आपका है।
इस सत्य पर विचार करने के बाद भी दुनिया आपको अपनी लगती है या दुनिया को आप अपना बनाने का प्रयास करते हो तो इससे बड़ा धोखा खुद के साथ कुछ भी नही हो सकता है। यही प्रयास सोच ही सबसे बड़ा दुख का कारण है।

दुनिया का सहयोग लो दुनिया का सहयोग करो उसे अपना बनाने का प्रयास न करो।आज तक दुनिया किसी की नही हुई

Զเधॆ Զเधॆ🙏🙏
: हनुमान जी का चमत्कारी उपाय व्यापार-व्यवसाय कारोबार कोट कचहरी विदेश यात्रा धन संबंधित कार्य संबंधित समस्या में चमत्कारी उपाय ….

सरसों के तेल के दीपक में लौंग डालें और ये दीपक हनुमानजी के सामने जलाएं और आरती करें। इस उपाय से सभी कष्ट दूर हो जाएंगे।

  1. किसी मंदिर जाएं और वहां एक नारियल पर स्वस्तिक बनाएं। इसके बाद ये नारियल हनुमान जी को अर्पित करें। साथ ही हनुमान चालीसा का पाठ करें। इससे बुरा समय दूर होता हैं। 3..हनुमान जयंती पर सूर्यास्त के बाद हनुमानजी के सामने चौमुखा दीपक जलाएं। चौमुखा दीपक यानी दीपक में चार बतियां रखकर चारों और जलाना है। इस उपाय से घर-परिवार की सभी परेशानियां खत्म हो जाएंगी।
  2. यदि आप विधिवत पूजा नहीं कर पा रहे हैं तो हनुमानजी को लाल, पीले फूल जैसे कमल, गुलाब, गेंदा या सूर्यमुखी चढ़ा दें। इस उपाय से भी सभी सुख प्राप्त होते हैं।
  3. हनुमान जयंती पर पारे से बनी हनुमान जी की प्रतिमा की पूजा करें। साथ ही, ॐ रामदूताय नमः मन्त्र का जप कम से कम 108 बार करें। मंत्र जप के लिए रुद्राक्ष की माला का उपाय करें। इस उपाय से सभी कष्ट दूर होते हैं।
  4. हनुमानजी को गाय के शुद्ध घी से बना प्रसाद चढ़ाएं। ये प्रसाद भक्तों में बाटें और खुद भी ग्रहण करें। इस उपाय से हनुमानजी प्रसन्न होते हैं और दुःख दूर करते हैं।
  5. हनुमानजी को लाल लंगोट चढ़ाएं। साथ ही, सिंदूर भी चढ़ाएं और चमेली के तेल का दीपक जलाएं। इस उपाय से हर काम में सफलता मिलेगी।
  6. हनुमानजी की तस्वीर घर में पवित्र स्थान पर इस तरह लगाएं कि हनुमानजी का मुंह दक्षिण दिशा की और हो। इस उपाय से शत्रुओं पर विजय मिलेगी और धन लाभ होगा।
  7. हनुमान जी का विशेष श्रृंगार करें। सिंदूर और चमेली के तेल से चोला चढ़ाएं। इस उपाय से सभी मनोकामना पूरी हो जाती है।
  8. दुखों से मुक्ति के लिए पीपल के 11 पत्तें लें और साफ़ पानी से धो लें। इन पत्तों पर चंदन से या कुमकुम से श्रीराम नाम लिखें। पत्तों की माला बनाकर हनुमनजी को चढ़ाएं।
  9. बनारसी पान लगवाकर हनुमनजी को चढ़ाएं। ऐसा करने से हनुमानजी की विशेष कृपा प्राप्त होती है।
  10. किसी भी हनुमान मंदिर में काली उड़द के 11 दाने, सिंदूर, चमेली का तेल, फूल, प्रसाद आदि चढ़ाएं। हनुमान चालीसा का पाठ करें। इस उपाय से कुंडली के दोष दूर होंगें।
  11. एक नारियल पर सिंदूर, लाल धागा, चावल चढ़ाएं और नारियल की पूजा करें। इसके बाद ये नारियल हनुमान जी को चढ़ा दें। इससे धन लाभ के योग बन सकते हैं।
  12. काली गाय को रोटी खिलाएं। पीपल के नीचे सरसों के तेल का दीपक जलाएं। दीपक में काली उड़द के 3 दाने भी डालें। ये उपाय बड़ी परेशानियों से भी बचा सकता हैं।
  13. हनुमान मंदिर में ध्वजा यानी झंडे का दान करें बंदरों को चने खिलाएं। इससे हनुमानजी शीघ्र प्रसन्न होते हैं ।

हनुमान जी की कृपा से स्वास्थ्य लाभ अवश्य होगा।

सम्पूर्ण साधना काल में मानसिक और शारीरिक पवित्रता बनाएं रखें।


: जानिए कौन से बीज मंत्रो का जाप करने के लिए मालाएं होनी चाहिए – ‘BEEJ MANTRAS’ :

●●●●●बीज मंत्र और उनके असर और कार्य●●●●●

मंत्र शास्त्र में बीज मंत्रों का विशेष स्थान है। मंत्रों में भी इन्हें शिरोमणि माना जाता है क्योंकि जिस प्रकार बीज से पौधों और वृक्षों की उत्पत्ति होती है, उसी प्रकार बीज मंत्रों के जप से भक्तों को दैवीय ऊर्जा मिलती है। ऐसा नहीं है कि हर देवी-देवता के लिए एक ही बीज मंत्र का उल्लेख शास्त्रों में किया गया है। बल्कि अलग-अलग देवी-देवता के लिए अलग बीज मंत्र हैं।

“ऐं” सरस्वती बीज :
यह मां सरस्वती का बीज मंत्र है, इसे वाग् बीज भी कहते हैं। जब बौद्धिक कार्यों में सफलता की कामना हो, तो यह मंत्र उपयोगी होता है। जब विद्या, ज्ञान व वाक् सिद्धि की कामना हो, तो श्वेत आसान पर पूर्वाभिमुख बैठकर स्फटिक की माला से नित्य इस बीज मंत्र का एक हजार बार जप करने से लाभ मिलता है।

“ह्रीं” भुवनेश्वरी बीज :
यह मां भुवनेश्वरी का बीज मंत्र है। इसे माया बीज कहते हैं। जब शक्ति, सुरक्षा, पराक्रम, लक्ष्मी व देवी कृपा की प्राप्ति हो, तो लाल रंग के आसन पर पूर्वाभिमुख बैठकर रक्त चंदन या रुद्राक्ष की माला से नित्य एक हजार बार जप करने से लाभ मिलता है।

“क्लीं” काम बीज :
यह कामदेव, कृष्ण व काली इन तीनों का बीज मंत्र है। जब सर्व कार्य सिद्धि व सौंदर्य प्राप्ति की कामना हो, तो लाल रंग के आसन पर पूर्वाभिमुख बैठकर रुद्राक्ष की माला से नित्य एक हजार बार जप करने से लाभ मिलता है।

“श्रीं” लक्ष्मी बीज :
यह मां लक्ष्मी का बीज मंत्र है। जब धन, संपत्ति, सुख, समृद्धि व ऐश्वर्य की कामना हो, तो लाल रंग के आसन पर पश्चिम मुख होकर कमलगट्टे की माला से नित्य एक हजार बार जप करने से लाभ मिलता है।

“ह्रौं” शिव बीज :
यह भगवान शिव का बीज मंत्र है। अकाल मृत्यु से रक्षा, रोग नाश, चहुमुखी विकास व मोक्ष की कामना के लिए श्वेत आसन पर उत्तराभिमुख बैठकर रुद्राक्ष की माला से नित्य एक हजार बार जप करने से लाभ मिलता है।

“गं” गणेश बीज :
यह गणपति का बीज मंत्र है। विघ्नों को दूर करने तथा धन-संपदा की प्राप्ति के लिए पीले रंग के आसन पर उत्तराभिमुख बैठकर रुद्राक्ष की माला से नित्य एक हजार बार जप करने से लाभ मिलता है।

“श्रौं” नृसिंह बीज :
यह भगवान नृसिंह का बीज मंत्र है। शत्रु शमन, सर्व रक्षा बल, पराक्रम व आत्मविश्वास की वृद्धि के लिए लाल रंग के आसन पर दक्षिणाभिमुख बैठकर रक्त चंदन या मूंगे की माला से नित्य एक हजार बार जप करने से लाभ मिलता है।

“क्रीं” काली बीज :
यह काली का बीज मंत्र है। शत्रु शमन, पराक्रम, सुरक्षा, स्वास्थ्य लाभ आदि कामनाओं की पूर्ति के लिए लाल रंग के आसन पर उत्तराभिमुख बैठकर रुद्राक्ष की माला से नित्य एक हजार बार जप करने से लाभ मिलता है।

“दं” विष्णु बीज :
यह भगवान विष्णु का बीज मंत्र है। धन, संपत्ति, सुरक्षा, दांपत्य सुख, मोक्ष व विजय की कामना हेतु पीले रंग के आसन पर पूर्वाभिमुख बैठकर तुलसी की माला से नित्य एक हजार बार जप करने से लाभ मिलता है।
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आप का आज का दिन मंगलमयी हो – आप स्वस्थ रहे, सुखी रहे – इस कामना के साथ।


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: बहुत काम का है सिर्फ 1 मोरपंख, घर के हर वास्तु दोष को करता है दूर, पढ़ें 25 अनोखी बातें

मोर बेहद खूबसूरत पंछी है। ज्योतिष, वास्तु, धर्म, पुराण और संस्कृति में मोर का अत्यधिक महत्व माना गया है। मोर पंख घर में रखने से अमंगल टल जाता है। आइए जानें 25 अनूठी बातें मोर पंख के बारे में

  1. मोर, मयूर, पिकॉक कितने खूबसूरत नाम है इस सुंदर से पक्षी के। जितना खूबसूरत यह दिखता है उतने ही खूबसूरत फायदे इसके पंखों के भी हैं। हमारे देवी -दवताओं को भी यह अत्यंत प्रिय हैं। मां सरस्वती, श्रीकृष्ण, मां लक्ष्मी, इन्द्र देव, कार्तिकेय, श्री गणेश सभी को मोर पंख किसी न किसी रूप में प्रिय हैं। पौराणिक काल में महर्षियों द्वारा इसी मोरपंख की कलम बनाकर बड़े-बड़े ग्रंथ लिखे गए हैं।
  2. मोर के विषय में माना जाता है कि यह पक्षी किसी भी स्थान को बुरी शक्तियों और प्रतिकूल चीजों के प्रभाव से बचाकर रखता है। यही वजह है कि अधिकांश लोग अपने घरों में मोर के खूबसूरत पंखों को लगाते हैं।
  3. मोर पंख की जितनी महत्ता भारत के लोगों के लिए है शायद ही किसी अन्य देश के लोगों के लिए हो। हमारे यहां माना जाता है कि मोर नकारात्मक ऊर्जा को दूर करने में सबसे प्रभावशाली है।
  4. हालांकि 20वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में पश्चिमी देशों के लोग मोरपंख को दुर्भाग्य का सूचक मानते थे। लेकिन मोर पंख की शुभता का अनुभव होने के बाद उसे शुभ चिन्ह के रूप में स्वीकार कर लिया गया।
  5. ग्रीक पौराणिक कथाओं के अनुसार मोर को ‘हेरा’ के साथ संबंधित किया जाता है। मान्यता के अनुसार आर्गस, जिसकी सौ आंखें थीं, उसके द्वारा हेरा ने मोर की रचना की।
  6. यही वजह है कि ग्रीक लोग मोर के पंखों को स्वर्ग और सितारों की निगाहों के साथ जोड़ते हैं।
  7. हिंदू धर्म में मोर को धन की देवी लक्ष्मी और विद्या की देवी सरस्वती के साथ जोड़कर देखा जाता है।
  8. लक्ष्मी सौभाग्य, खुशहाली और धन धान्य व संपन्नता के लिए पूजी जाती हैं। मोर के पंखों का प्रयोग लक्ष्मी की इन्हीं विशेषताओं को हासिल करने के लिए किया जाता है। मोर पंख को बांसुरी के साथ घर में रखने से रिश्तों में प्रेम रस घुल जाता है।
  9. एशिया के बहुत से देशों में मोर के पंखों को अध्यात्म के साथ संबंधित किया जाता है। क्वान-यिन जो कि अध्यात्म का प्रतीक है का मोर से खास रिश्ता माना गया है। क्वान यिन : क्वान-यिन प्रेम, प्रतिष्ठा, धीरज और स्नेह का सूचक है। इसलिए संबंधित देशों के लोगों के अनुसार मोर पंख से नजदीकी अर्थात क्वान-यिन से समीपता मानी गई है।
  10. अगर आपके वैवाहिक जीवन में तनाव है तो अपने शयनकक्ष में मोरपंख रखें, इससे पति पत्नी के बीच प्यार बढ़ता है।
  11. यदि शत्रुता समाप्त करनी हो या कि शत्रु तंग कर रहे हो, तो मोरपंख पर हनुमान जी के मस्तक के सिंदूर से उस शत्रु का नाम मंगलवार या शनिवार रात्रि में लिखकर उसे घर के पूजा स्थल में रखें व सुबह उठकर उसे चलते पानी मे प्रवाहित कर आएं।
  12. वास्तुशास्त्र के अनुसार मोरपंख को घर की दक्षिण दिशा में स्थित तिजोरी में खड़ा करके रखने से कभी भी धन की कमी नहीं होती है।
  13. राहु का दोष होने पर मोरपंख घर की पूर्वी और उत्तर पश्चिम की दीवार पर लगाएं।
  14. अगर आपके घर में मोरपंख है तो आपके घर में कोई भी बुरी शक्ति प्रवेश नहीं कर पाती है। यह घर से नकारात्मक ऊर्जा को दूर करके सकारात्मक ऊर्जा को बढ़ावा देता है।
  15. वास्तुशास्त्र के अनुसार मोरपंख को घर में रखने से आपके घर के सारे दोष दूर हो जाते है।
  16. यदि मोर का पंख घर के पूर्वी और उत्तर-पश्चिम दीवार मे या अपनी जेब व डायरी मे रखा हो तो राहू कभी भी परेशान नहीं करता है। मोरपंख की पूजा करे या हो सके तो उसे हमेशा अपने पास रखे। मोरपंख को घर में रखने से परिवार के सदस्यों की सेहत भी अच्छी रहती है।
  17. ग्रहों के अशुभ प्रभाव होने पर मोरपंख पर 21 बार ग्रह का मंत्र बोलकर पानी का छींटें दें, और इसे श्रेष्ठ स्थान पर स्थापित करें जहां से यह दिखाई दे।
  18. आर्थिक लाभ के लिए किसी मंदिर में जाकर मोरपंख को राधा कृष्ण के मुकुट में लगाएं और 40 दिन बाद इसे लॉकर या तिजोरी में रख दें।
  19. बुरी नजर से बच्चों को बचाने के लिए नवजात बालक को मोरपंख चांदी के ताबीज में पहनाएं।
  20. घर के मुख्य द्वार पर 3 मोरपंख लगाकर ॐ द्वारपालाय नम: जाग्रय स्थापयै स्वाहा मंत्र लिखें और नीचे गणेश जी की मूर्ति लगाएं।
  21. आग्नेय कोण में मांरपंख लगाने से घर के वास्तु दोष को ठीक किया जा सकता है। इसके अलावा ईशान कोण में कृष्ण भगवान की फोटो के साथ मोरपंख लगाएं।
  22. बौद्ध धर्म के अनुसार मोर अपनी अपने सारे पंखों को खोल देता है, इसलिए उसके पंख विचारों और मान्यताओं में खुलेपन का ही प्रतीक माने जाते हैं।
  23. ईसाई धर्म में मोर के पंख, अमरता, पुनर्जीवन और अध्यात्मिक शिक्षा से संबंध रखते हैं।
  24. इस्लाम धर्म में मोर के खूबसूरत पंख जन्नत के दरवाजे के बाहर अद्भुत शाही बगीचे का प्रतीक माने जाते हैं।
  25. यह भी विशेष गौर करने लायक तथ्य है कि घरों में मोरपंख रखने से कीड़े-मकोड़े घर में दाखिल नहीं होते।
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राधे राधे ॥ आज का भगवद चिन्तन ॥
हमारे व्यवहारिक जीवन में योग का क्या साधन है अथवा व्यवहारिक जीवन में योग को कैसे जोड़ें ? इसका श्रेष्ठ उत्तर केवल गीता के इन सूत्रों के अलावा कहीं और नहीं मिल सकता है।
गुफा और कन्दराओं में बैठकर की जाने वाली साधना ही योग नहीं है। हम अपने जीवन में, अपने कर्मों को कितनी श्रेष्ठता के साथ करते हैं, कितनी स्वच्छता के साथ करते हैं बस यही तो योग है। गीता जी तो कहती हैं कि किसी वस्तु की प्राप्ति पर आपको अभिमान ना हो और किसी के छूट जाने पर दुःख भी न हो।
सफलता मिले तो भी नजर जमीन पर रहे और असफलता मिले तो पैरों के नीचे से जमीन काँपने न लग जाये। बस दोंनो परिस्थितियों में एक सा भाव ही तो योग है। यह समभाव ही तो योग है।

🙏 जय श्री राधे कृष्णा 🙏

जीवन मे दुख को बहुत उपयोगी बनाया जा सकता है, असल में तो दुख ही उपयोगी है, क्योंकि दुख हमे जगाता है, दुख की अवस्था में ही हम जागे हुए होते है। सुख तो निद्रा मे ले जाता है, सुख मे आज तक कोई नही जागा, सुख तो बेहोश करता है, सुख में हमारी चेतना का रूपान्तरण सम्भव ही नहीं, रूपान्तरण दुख मे ही हो सकता है, इसलिए दुख का उपयोग जागरण हेतु किया जाना चाहिए, पर हम दुख को सदैव भूलाने में लगे रहते है, और सदियों से हमें बताया भी यही गया है कि दुख को भूल जाओं। दुख को भूलना और गहरे तक संसार मे लौटना है, जबकि दुख में जागना, चेतना का रूपान्तरण है, धर्म है, आध्यात्म है, मोक्ष है।

जय श्री कृष्ण🙏🙏
: गृहस्थ व्यक्ति निष्काम भाव से यदि किसी को कुछ दान दे, तो वह अपने ही उपकार के लिये होता है। परोपकार के लिये नहीं।सर्वभूतों में हरि विद्यमान हैं, उन्हीं की सेवा होती है। हरि- सेवा होने से अपना ही उपकार हुआ, ‘परोपकार’ नहीं।यही सर्वभूतों में हरि की सेवा है- केवल मनुष्य ही नहीं, जीवजन्तुओं में भी हरि की सेवा यदि कोई करे, और यदि वह मान, यश, मरने के बाद स्वर्ग न चाहे, जिनकी सेवा कर रहा है उनसे बदले में कोई उपकार न चाहे- इस प्रकार यदि सेवा करे, उसका निष्काम कर्म ,अनासक्त कर्म होता है।इस प्रकार निष्काम कर्म करने पर उसका अपना कल्याण होता है।इसी का नाम कर्मयोग है। यह कर्मयोग भी ईश्वर को प्राप्त करने का एक उपाय है,परन्तु यह मार्ग है बड़ा कठिन।कलियुग के लिये नहीं है॥

Զเधॆ Զเधॆ🙏🙏
: मथुरा में एक संत रहते थे। उनके बहुत से शिष्य थे। उन्हीं में से एक सेठ जगतराम भी थे। जगतराम का लंबा चौड़ा कारोबार था। वे कारोबार के सिलसिले में दूर दूर की यात्राएं किया करते थे।

एक बार वे कारोबार के सिलसिले में कन्नौज गये। कन्नौज अपने खुशबूदार इत्रों के लिये प्रसिद्ध है। उन्होंने इत्र की एक मंहगी शीशी संत को भेंट करने के लिये खरीदी।

सेठ जगतराम कुछ दिनों बाद काम खत्म होने पर वापस मथुरा लौटे। अगले दिन वे संत की कुटिया पर उनसे मिलने गये।संत कुटिया में नहीं थे। पूछा तो जवाब मिला कि यमुना किनारे गये हैं, स्नान-ध्यान के लिये।

जगतराम घाट की तरफ चल दिये। देखा कि संत घुटने भर पानी में खड़े यमुना नदी में कुछ देख रहे हैं और मुस्कुरा रहे हैं।

तेज चाल से वे संत के नजदीक पहुंचे। प्रणाम करके बोले आपके लिये कन्नौज से इत्र की शीशी लाया हूँ।

संत ने कहा : लाओ दो।सेठ जगतराम ने इत्र की शीशी संत के हाथ में दे दी। संत ने तुरंत वह शीशी खोली और सारा इत्र यमुना में डाल दिया और मुस्कुराने लगे।

जगतराम यह दृश्य देख कर उदास हो गये और सोचा एक बार भी इत्र इस्तेमाल नहीं किया, सूंघा भी नहीं और पूरा इत्र यमुना में डाल दिया।

वे कुछ न बोले और उदास मन घर वापस लौट गये।कई दिनों बाद जब उनकी उदासी कुछ कम हुयी तो वे संत की कुटिया में उनके दर्शन के लिये गये।

संत कुटिया में अकेले आंखे मूंदे बैठे थे और भजन गुनगुना रहे थे।आहट हुयी तो सेठ को द्वार पर देखा। प्रसन्न होकर उन्हें पास बुलाया और कहा :

उस दिन तुम्हारा इत्र बड़ा काम कर गया।सेठ ने आश्चर्य से संत की तरफ देखा और पूछा – मैं कुछ समझा नहीं।

संत ने कहा — उस दिन यमुना में राधा जी और श्री कृष्ण की होली हो रही थी। श्रीराधा जी ने श्रीकृष्ण के ऊपर रंग डालने के लिये जैसे ही बर्तन में पिचकारी डाली, उसी समय मैंने तुम्हारा लाया इत्र बर्तन में डाल दिया। सारा इत्र पिचकारी से रंग के साथ श्रीकृष्ण के शरीर पर चला गया और भगवान श्रीकृष्ण इत्र की महक से महकने लगे।

तुम्हारे लाये इत्र ने श्रीकृष्ण और श्रीराधा रानी की होली में एक नया रंग भर दिया। तुम्हारी वजह से मुझे भी श्रीकृष्ण और श्रीराधा रानी की कृपा प्राप्त हुयी।

सेठ जगतराम आंखे फाड़े संत को देखते रहे। उनकी कुछ समझ में नहीं आ रहा था।

संत ने सेठ की आंखों में अविश्वास की झलक देखी तो कहा – शायद तुम्हें मेरी कही बात पर विश्वास नहीं हो रहा। जाओ मथुरा के सभी श्रीकृष्ण राधा के मंदिरों के दर्शन कर आओ, फिर कुछ कहना।

सेठ जगतराम मथुरा में स्थित सभी श्रीकृष्ण राधा के मंदिरों में गये। उन्हें सभी मंदिरों में श्रीकृष्णराधा की मूर्ति से अपने इत्र की महक आती प्रतीत हुयी।

सेठ जगतराम का इत्र श्रीकृष्ण और श्रीराधा रानी ने स्वीकार कर लिया था।वे संत की कुटिया में वापस लौटे और संत के चरणों में गिर पड़े। सेठ की आंखों से आंसुओं की धार बह निकली।

संत की आंखें भी प्रभू श्रीकृष्ण की याद में गीली हो गयीं।

सेठ जगतराम को संत जी का अधिकार मालूम हुआ कि संत महात्मा भले ही हमारे जैसे दिखते हों, रहते हों लेकिन वो हर वक्त ईश्वर मे मन लगाये रहते हैं!

पता नही हम जैसो को यह अधिकार तब प्राप्त होगा

जब हमारी भक्ति बढ़े

नाम-सिमरन बढ़े
और
ठाकुर जी में हमारी श्रद्धा बढ़े।

🌹जय श्री कृष्ण🌹
: हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे
हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे

ईश्वर द्वारा बनाई हुई सृष्टि कर्म पर ही आधारित है | जो जैसा कर्म करता है उसको वैसा ही फल प्राप्त होता है | यह समझने की आवश्यकता है कि मनुष्य के द्वारा किया गया कर्म ही प्रारब्ध बनता है | जिस प्रकार किसान जो बीज खेत में बोता है उसे फसल के रूप में वहीं बाद में काटना पड़ता है | कोई भी मनुष्य अपने किए हुए कर्मों से एवं उससे मिलने वाले प्रतिफल से स्वयं को बचा नहीं सकता है | मनुष्य को कोई भी कर्म करने के पहले यह विचार अवश्य कर लेना चाहिए कि इसका फल क्या मिलेगा ? क्योंकि इतिहास गवाह है कि जिन्होंने जैसे कर्म किए हैं देर सवेर उसको उसका फल भुगतना ही पड़ा है | ईश्वर ने इस सृष्टि को कर्म प्रधान बनाया है ।इसलिये प्रत्येक मनुष्य को प्रतिदिन अपने किये हुये कर्मों पर विचार करके अपनी उन्नति का उपाय करना चाहिये | यहाँ कोई किसी के सुख – दुख के लिए उत्तरदायी नहीं होता है | हमारे धर्मशास्त्रों में लिखा :— “स्वयं कर्म करोत्यात्मा स्वयं तत्फलमश्नुते ! स्वयं भ्रमति संसारे स्वयंतस्माद्विमुच्यते !!” अर्थात :- मनुष्य स्वयं कर्म करता है और स्वयं ही उसका फल भोगता है | वह स्वयं ही इस संसार सागर में डूबता रहता है तथा स्वयं ही प्रयास करके इससे मुक्त हो जाता है तथा मोक्ष को प्राप्त करता है | यदि मनुष्य अपने कर्मों के फल को भोगने से स्वयं को बचा पाता तो भगवान के अवतार माने जाने वाले मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम अपने पिता महाराज दशरथ की मृत्यु नहीं होने देते | योगेश्वर भगवान श्री कृष्ण अभिमन्यु को बचा लेते | परंतु ऐसा नहीं हुआ क्योंकि प्राणी मात्र को अपने शुभ और अशुभ कर्मों का फल अवश्य भोगना पड़ता है |

आज के आधुनिक युग में मनुष्य कब क्या कर डालेगा इसका अनुमान लगाना भी मुश्किल कार्य है | आज चारों ओर छल , कपट , घात , प्रतिघात एवं विश्वासघात का ही बोलबाला दिखाई पड़ रहा है | परिवार से लेकर के समाज तक देश से लेकर के संपूर्ण विश्व में इन कर्मों का ही प्रसार आज देखने को मिल रहा है | तनिक जायदाद के लिए भाई – भाई के साथ विश्वासघात कर रहा है , पुत्र पिता के साथ छल कर रहा है,गुरुद्वारों में शिष्य अपने गुरु की गद्दी प्राप्त करने के लिए कपट का सहारा लेते हुए अपने ही सद्गुरु से घात कर रहे हैं | कुल मिलाकर जो भी कर्म आज मनुष्य के द्वारा किए जा रहे हैं या जो भी आज ऐसा कर रहे हैं उन सभी से मैं ” इतना ही कहना चाहूंगा कि आप आज जो बीज खेत में डाल रहे हैं कल उसी की फसल आपको काटना है आज जो आप अपने भाई के साथ कर रहे हैं , जो अपने पिता के साथ कर रहे हैं या जो अपने गुरु के साथ कर रहे हैं कल वही प्रतिफल आपको मिलेगा | आपके साथ भी कोई वैसा ही कर्म करने वाला इस संसार में प्रकट हो जाएगा | क्योंकि मानस में बाबा जी ने स्पष्ट लिख दिया है :- ” कर्म प्रधान विश्व रचि राखा ” कोई यदि यह सोचे कि आज जो मैं कर रहा हूं कल बहुत सुखी रहूंगा ऐसा कदापि नहीं हो सकता है संसार रूपी खेत में कर्म रूपी जैसा बीज मनुष्य के द्वारा डाला जाता है वैसी ही फसल मनुष्य को प्राप्त होती है यह अकाट्य है इसको कोई काट नहीं सकता |

मनुष्य को कोई भी कर्म करने के पहले उसके प्रतिफल के विषय में अवश्य विचार कर लेना चाहिए कि हम जो करने जा रहे हैं इसका परिणाम क्या होगा | अन्यथा फिर मनुष्य को पछतावे के अलावा और कुछ नहीं प्राप्त होता |

हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे
हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे
हरे कृष्ण दंडवत प्रणाम और मेरा नमस्कार हरे कृष्ण
: घी के स्वास्थ्य लाभ
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(1)👉 तेल बार-बार गर्म करने से खराब होते है और ट्रांस फैट में बदलते है यही ट्रांस फैट शरीर में जमता है और बीमारियों का कारण बनता है। परंतु इसके विपरीत घी को उबाल कर ही शुद्ध किया जाता है। सबसे ज्यादा स्मोक पॉइंट होने के कारण घी अधिक तापमान को भी सहन करने की क्षमता रखता है।

(2)👉 घी न केवल हमारे भोजन के स्वाद को बढ़ाता है बल्कि भोजन में घी होने से, कम मात्रा में भोजन करने पर ही भूख शांत होने लगती है। इस प्रकार हम अधिक मात्रा में खाने से बचते हैं।

(3)👉 घी हमारे आमाशय की जठराग्नि को उसी प्रकार प्रचंड करता है जिस प्रकार यज्ञ की अग्नि को। अतः घी न केवल स्वयं शीघ्रता से पचता है बल्कि भोजन के अन्य अवयवों को भी पचाता है।

(4)👉 घी में विटामिन ए, डी, इ, के एवं बी12 प्रचुर मात्रा में होते हैं। इनमें से विटामिन A व D एंटीआक्सीडेंट होते हैं । अतः घी स्वयं एक एंटीआक्सीडेंट की तरह काम करता है और हमारे शरीर की कोशिकाओं को क्षति से बचाता है। घी हमारे जोड़ों को मजबूती देता है।

(5)👉 घी हमारे शरीर में ‘गुड गट बैक्टीरिया’ को बढ़ाता है जो कि भोजन के पाचन एवं अवशोषण के लिए महत्वपूर्ण होते हैं। घी में मौजूद फैट को प्रीबायोटिक का दर्जा दिया गया है I इस प्रकार भोजन में घी का होना अपच, कब्जी, पेट के फुलाव आदि का स्वाभाविक इलाज है ।

(6)👉 इसी प्रीबायोटिक गुण के कारण घी सबसे अच्छा anti allergen भी है क्योंकि तरह-तरह की फूड एलर्जी का कारण आंतों के बैक्टीरिया का कम होना है ।

(7)👉 कच्चे दूध से निकाले गए सफेद मक्खन में wulzen factor मौजूद होता है जो जोड़ों की सामान्य बीमारियों में एवं गठिया में लाभकारी होता है। wulzen factor को anti stiffness factor एवं anti arthritic nutrient भी कहते है।

(8)👉 घी में मौजूद तत्व कंजुगेटेड लिनोलिक एसिड (CLA) शरीर की चर्बी को गलाने में सहायक होता है। अतः जिस प्रकार लोहा लोहे को पिघला देता है उसी प्रकार शरीर की चर्बी को गलाने के लिए हमें गुड फैट की आवश्यकता होती है l

(9)👉 घी में मौजूद फैटी एसिडस् झुर्रियों रहित, दमकती त्वचा प्रदान करते है। बालों में मजबूती एवं चमक देते हैं।

(10)👉 भोजन में घी की कमी होने से ही भोजन के उपरांत मीठा खाने की इच्छा बनी रहती है।

(11)👉 घी भोजन की ग्लाइसेमिक इंडेक्स (GI) को कम करता है अर्थात घी के प्रयोग से, लिए गए भोजन की ग्लूकोस, खून में धीरे धीरे पहुंचती है। ऐसा डायबिटीज एवं दिल की बीमारियों के मरीजों के लिए अत्यंत लाभकारी होता है। यही कारण है कि पुराने जमाने से ही खिचड़ी, दाल चावल एवं अन्य कई व्यंजनों में ऊपर से घी डालकर खाया जाता है। खून में ग्लूकोज धीरे-धीरे रिलीज होने से शरीर एवं दिमाग में ग्लूकोस का सतत् लेवल बना रहता है।

(12)👉 घी में मौजूद फैट आसानी से दिमाग में पहुंचते हैं और सोचने समझने की शक्ति को विकसित करने में लाभदायक होते हैं।

(13)👉 2015 में US FDA ने स्वीकार किया कि भोजन में कोलेस्ट्रॉल लेने और दिल की बीमारियों में कोई संबंध नहीं है एवं कोलेस्ट्रॉल युक्त भोजन को ना लेने का कोई कारण नहीं है। परंतु 30- 40 साल तक जो गलत धारणा बनी हुई थी उसके चलते हमने ना केवल घी बल्कि मूंगफली, काजू, नारियल जैसी बेहद लाभदायक चीजों को भी खाना छोड़ दिया था। और तो और दूध भी लो फैट ही लाने लगे।

(14)👉 जून 2014 में UK FOOD GUIDELINES (NICE) ने माना कि भोजन में ओमेगा 3 फैटी एसिड्स लेने की आवश्यकता कतई नहीं है। क्योंकि यदि ओमेगा 3 एवं ओमेगा 6 फैटी एसिड्स को भोजन में ज्यादा लिया जाता है तो यह शरीर में ट्रांस फैट में बदल जाते हैं और अंगों को क्षति पहुंचाते हैं।

(15)👉 चाहे हम घी खाएं या तेल सभी में समान कैलोरी होती है । सभी फैट के 1 ग्राम से 9 किलो कैलोरी मिलती है।

(16)👉 घी के प्रति हमारे मन में यह डर फ़ूड इंडस्ट्री की काली करतूतों की वजह से ही पनपा है क्योंकि यदि घी एवं अन्य पारंपरिक कच्ची घानी के तेलों को को बदनाम न किया जाता तो फ़ूड इंडस्ट्री सफोला, फार्च्यून रिफाइंड, एक्स्ट्रा वर्जिन ऑलिव ऑयल जैसे तेलों को, दिल के लिए लाभकारी बताकर घर-घर ना पहुंचा पाती।

(17)👉 इसलिए सभी व्यक्तियो को चाहे वे अपच, मोटापा, शुगर, BP या दिल की बीमारी से ही ग्रसित क्यों ना हो, भोजन में शुद्ध घी का प्रयोग भरपूर मात्रा में करना चाहिए।

यदि अभी भी आप घी के प्रति असमंजस में हैं तो दिमाग की सोचने समझने की शक्ति को विकसित करने के लिए घी खाइए ।
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: 💐|| उठ जाग मुसाफिर भोर भई ||💐

  • मनुष्य जन्म सबसे उत्तम और अत्यन्त दुर्लभ और भगवान की विशेष कृपा का फल है | ऐसे अमूल्य जीवन को पाकर जो मनुष्य आलस्य , भोग , प्रमाद और दुराचार में अपना समय बिता देता है वह महान मूढ है | उसको घोर पश्चाताप करना पडेगा |

छ: घंटे से अधिक सोना एंव भजन , ध्यान , सत्संग आदि शुभकर्मों में ऊँघना आलस्य है |
करनेयोग्य कार्य की अवहेलना करना एंव इंद्रिय ,मन , वुद्धि और शरीर से व्यर्थ चेष्टा करना प्रमाद है | शौक , स्वाद और आराम की वुद्धि से इंद्रियाँ के विषयों का सेवन करना भोग है |

झूँठ , कपट , हिंसा , चोरी आदि शास्त्र विपरीत आचरणों का नाम दुराचार ( पाप ) है |

  • अपने हित की इच्छा करने वाले मनुष्य को इन सब दोषों को मृत्यु के समान समझकर सर्वथा त्याग कर देना चाहिये |

सच्चे सुख की प्राप्ति एंव पूर्णज्ञान का हेतु होने के काँरण यह मनुष्य शरीर चौरासी लाख योनियों में सबसे बढकर है | भक्ति , ज्ञान , वैराग्य , सदाचार , मुक्ति , और शिक्षा की प्रणाली सदा से बतलाने वाली होने के काँरण यह भारतभूमि सर्वोत्तम है | ईश्वरभक्ति , ज्ञान , क्षमा , दया आदि गुणों का भंडार , सत्य , तप , दान और परोपकार आदि सदाचार का सागर और सारे मत मतान्तरों का आदि और नित्य होने के काँरण वैदिक सनातन धर्म सर्वोत्तम धर्म है |

केवल भगवान के भजन और कीर्तन से ही अल्पकाल में सहज ही कल्याण करने वाला होने के काँरण कलियुग सर्वयुगों में उत्तम युग है | ऐसे कलिकाल में सर्व वर्ण , आश्रम और जीवों का पालन पोषण करने वाला होने के काँरण ग्रहस्थ आश्रम उत्तम है |

  • यह सब कुछ प्राप्त होने पर भी जिसने अपना आत्मोद्धार नहीं किया वह महान पामर एंव मनुष्य रूप में पशु के समान ही है | उपर्युक्त सारे संयोग ईश्वर की अहेतु की और अपार दया से ही प्राप्त होते है |

*ऐसे क्षणिक , अल्पायु , अनित्य , और दुर्लभ शरीर को पाकर जो अपने अमूल्य समय का एक क्षण भी व्यर्थ नहीं बिताते , जिनका तन , मन , धन , जन और सारा समय केवल सब लोगों के कल्याण के लिये ही व्यतीत होता है वे ही जन धन्य हैं | वे देवताओं के लिये भी पूज्यनीय हैं | उन्हीं बुद्धिमानों का जन्म सफल और धन्य है |

  • प्रथम तो जीवन है ही अल्प और जितना है वह भी अनिश्चित है | न जाने मृत्यु हमें कब आकर मार दे , यदि आज ही मृत्यु आ जाये तो हमारे पास क्या साधन है जिससे हम उसका प्रतिकार कर सकें | यदि नहीं कर सकते तो अनाथ की तरह मारे जायेंगें |

*इसलिये जब तक देह में प्राण हैं और मृत्यु दूर है तब तक हम लोगों को अपना समय ऊँचे से ऊँचे काम में लगाना चाहिये |

( श्रद्धेय श्री जयदयाल जी गोयन्दका ” सेठजी ” के प्रवचन से )
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: नजरिया

मास्टर जी क्लास में पढ़ा रहे थे,तभी पीछे से दो बच्चों के आपस मेंझगड़ा करने की आवाज़ आने लगी।
“क्या हुआ तुम लोग इस तरह झगड़ क्यों रहे हो ? ”, मास्टर जी ने पूछा।

राहुल : सर,अमित अपनी बात को लेकर अड़ा है और मेरीसुनने को तैयार ही नहीं है।

अमित : नहीं सर,राहुल जो कह रहा है वो बिलकुल गलत हैइसलिए उसकी बात सुनने से कोई फायदा नही। और ऐसा कह कर वे फिर तू-तू मैं-मैं करनेलगे।
मास्टर जी ने उन्हें बीच में रोकते हुएकहा,”एक मिनट तुम दोनों यहाँ मेरे पास आजाओ। राहुल तुम डेस्क की बाईं और अमित तुम दाईं तरफ खड़े हो जाओ।“ इसके बाद मास्टरजी ने कवर्ड से एक बड़ी सी गेंद निकाली और डेस्क के बीचो-बीच रख दी।

मास्टर जी : राहुल तुम बताओ, ये गेंद किस रंग की है।
राहुल : जी ये सफ़ेद रंग की है।
मास्टर जी : अमित तुम बताओ ये गेंद किसरंग की है ?
अमित : जी ये बिलकुल काली है।

दोनों ही अपने जवाब को लेकर पूरी तरह कॉंफिडेंटथे की उनका जवाब सही है,औरएक बार फिर वे गेंद के रंग को लेकर एक दुसरे से बहस करने लगे.

मास्टर जी ने उन्हें शांत कराते हुएकहा,“ठहरो,अब तुम दोनों अपने अपने स्थान बदल लोऔर फिर बताओ की गेंद किस रंग की है ?”दोनों ने ऐसा ही किया,पर इस बार उनके जवाब भी बदल चुके थे। राहुल ने गेंद का रंग काला तोअमित ने सफ़ेद बताया।

अब मास्टर जी गंभीर होते हुए बोले,बच्चों ये गेंद दो रंगो से बनी है औरजिस तरह यह एक जगह से देखने पे काली और दूसरी जगह से देखने पर सफ़ेद दिखती है उसीप्रकार हमारे जीवन में भी हर एक चीज को अलग अलग दृष्टिकोण से देखा जा सकता है। येज़रूरी नहीं है की जिस तरह से आप किसी चीज को देखते हैं उसी तरह दूसरा भी उसे देखे.इसलिए अगर कभी हमारे बीच विचारों को लेकर मतभेद हो तो ये ना सोचें की सामने वालाबिलकुल गलत है बल्कि चीजों को उसके नज़रिये से देखने और उसे अपना नजरिया समझाने काप्रयास करें। तभी आप एक अर्थपूर्ण संवाद कर सकते हैं।
: 🌷आत्मचिंतन के क्षण🌷

★ भाग्य और भविष्य परमात्मा की जबर्दस्त शक्तियाँ हैं। मनुष्य की शक्ति इनके आगे छोटी है, पर वह अपने विवेक से यह निर्णय अवश्य ले सकता है कि उसका जन्म किसलिए हुआ है और वह ईश्वरीय विधान में किस हद तक सहायक हो सकता है। यदि वह इसके लिए तैयार हो सके तो इसी जीवन में अनेक आध्यात्मिक शक्तियों का विकास करता हुआ प्रत्येक व्यक्ति आत्म कल्याण का पथ प्रशस्त कर सकता है।

◆ अच्छाई के विकास में चिन्ता, दुःख और भय भी हमारे सामने आयें तो भी उनके सुखप्रद परिणाम की आशा से हमें उस प्रक्रिया को बंद नहीं कर देना चाहिए। सरल, शुद्ध और सहन करने योग्य दुःखों ने सदैव आत्मा को बलवान् ही बनाया है-उसे ईश्वरीय दिव्य शक्तियों की अनुभूति ही कराई है। यदि ये दुःख,चिन्ता,भय,आदि अवरोध प्रेम, दया, कृतज्ञता और विश्वास का अंत करते हों तब हमें एक वीर योद्धा की भाँति उनका सामना भी करना चाहिए।

  *।।जय श्री कृष्णा।।*

🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷 🌷जय श्री कृष्णा🌷

◇ सत्य की उपेक्षा और प्रेम की अवहेलना करके छल, कपट और दम्भ के बल पर कोई कितना ही बड़ा क्यों न बन जाये, किन्तु उसका वह बड़प्पन एक विडम्बना के अतिरिक्त और कुछ भी न होगा।

◆ हमें यह भ्रम निकाल ही देना चाहिए कि बेईमानी कुछ कमा सकती है। वह शराब की तरह उत्तेजना मात्र है, जिससे ठगने वाला और ठगा जाने वाला बुद्धिभ्रम में ग्रस्त हो जाते हैं। नशा उतरने पर नशेबाज की जो खस्ता हालत होती है वही पोल खुलने पर बेईमानी की होती है। उसका न कारोबार रहता है, न कोई ग्राहक, सहयोगी। अतएव हमें इस कंटकाकीर्ण पगडण्डी पर चलने की अपेक्षा ईमानदारी के राजमार्ग पर ही चलना चाहिए।

  *।।हरि ओम तत्सत्।।*

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