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रसोई वास्तु टिप्स,,,आइए जानें रसोई से संबंधित काम की ये 7 वास्तु टिप्स

ऐसे में आज हम फिर आपको किचन से जुड़े कुछ वास्तु टिप्स के बारे में बता रहे हैं—–
किचन किसी भी घर का अहम हिस्सा होता है। इसलिए बहुत जरूरी है कि किचन का वास्तु सही हो।
घर में आपका कौन सा कमरा कहां है और कौन सी वस्तुएं कहां रखी जानी चाहिए, ये कुछ ऐसी बातें हैं जिसका बहुत महत्व माना गया है। वास्तुशास्त्र के अनुसार इसका असर घर में आने वाली सकारात्मक और नकारात्मक उर्जा पर पड़ता है। अगर आपके घर का वास्तु सही है तो तरक्की तय है। परेशानी दूर रहती है। वहीं, ऐसी मान्यता है कि अगर आप इनका पालन नहीं कर पा रहे हैं तो हमेशा नई-नई चुनौती से सामना करना पड़ सकता है। कई बार कुछ वास्तु नियमों का पालन हम किसी मजबूरी के कारण नहीं कर पाते तो कई बार जानकारी का भी अभाव होता है।

  1. किचन में मंदिर रखना शुभ नहीं है। ऐसा इसलिए कि कई घरों में किचन में तरह-तरह के व्यंजन बनाए जाते हैं। इसमें शाकाहारी और मांसाहारी दोनों ही तरह के व्यंजन शामिल रहते हैं। वहीं, कई बार जूठे बर्तन भी लंबे समय तक किचन में पड़े रहते हैं। वास्तु के लिहाज से ऐसा करना शुभ नहीं होता है।
  2. घर का किचन घर के दक्षिण-पूर्वी हिस्से में हो तो बेहतर है।
  3. ऐसे ही घर का चूल्हा दक्षिण-पूर्वी कोने में रखा हो तो अच्छा रहता है। साथ ही इसे एकदम दीवार में सटा कर नहीं रखना चाहिए। कुछ दूरी बनाए रखें।
  4. किचन में बर्तन धोने की जगह यानी सिंक उत्तर-पूर्वी हिस्से में रहना चाहिए। पानी पीने का स्थान या उसके बर्तन जैसे ग्लास भी वहीं आसपास रखे जाने चाहिए।
  5. मसाले, अन्न और दूसरी खाने की चीजें जिसे आप अपने घरों में रखते हैं, उसे दक्षिण या पश्चिम दिशा में ही रखें।
  6. किचन में दीवार का रंग काला नहीं होना चाहिए। इसका भी ध्यान रखें। किचन का रंग पीला, नारंगी, गुलाबी, लाल, भूरा आदि रह सकता है।
  7. इस बात का खास ख्याल रखें कि सोने से पहले किचन में रखें सभी गंदे बर्तन धो लिए जाएं। कभी भी सिंक में ऐसे ही सुबह तक बर्तन को छोड़ने की कोशिश नहीं करें।
    राहू

पहले के समय मे झूठ बोलना महा पाप था लेकिन आजकल इसको समझदारों की निशानी समझा जाता है। पहले स्वार्थ को भी महा पाप बोला जाता था। लेकिन आजकल पहले अपने बारे में सोचो फिर दुसरो पे ध्यान दो तो दो नही तो भाड़ में गए सब। बात बात पे अपनी बात से पलट जाना। दुसरो को भड़का देना झूठ बोलकर। आगे से एकदम मीठा बोलना पीछे से छुरी घोपना। संकीर्ण विचारधारा रखना। ये सब किसकी निसानी है शायद राहु के। अचानक बड़े बड़े रोग हो जाना। अकस्मात घटित होने वाली सब घटनाएं शायद राहु की।

आजकल राहु का बोलबाला जोरदार है। ज्योतिषियों की तो राहु शनि की वजह से बल्ले बल्ले है आजकल। कुछ मतलब कुछ लोगो को शायद राहु केतु की वजह से काल सर्प दोष। पितृ दोष राहु की वजह से बन जाते है लेकिन आजकल तो हर किसी को राहु का डर दिखा दिया जाता है। मतलब ये युग सिर्फ राहु का ही नही राहु के नाम से भी खूब कमाई हो जाती है।

जिसका राहु अच्छा है उसकी तो बल्ले बल्ले है। जातक या जातिका किसी न किसी तरह से अपना काम निकाल ही लेता है। मैंने स्वयं अपनी आंखों से देखा है किस तरह राहु प्रभावी जातक 2 minut में पलट जाता है। जरूरत के समय वो इतना मीठा बोलता है, आपके पांव भी पड़ जायेगा, आपको ऊपर से लेके नीचे तो चाट जाएगा। लेकिन जब उसका काम निकल जायेगा तो वो आपको पहचानने से इनकार कर देगा। ये राहु का ही तो कमाल। जब तक उसको जरूरत रहेगी तब तक वो ये दरसएगा कि आप ही उसके लिए सबकुछ हो। लेकिन आपको ये नही पता होगा कि उसके अंदर कितना जहर घुला है। अगर उस जातक का चंद्रमा भी पीड़ित हुआ तो फिर तो उससे 100 कोस दूर रहो क्योंकि एक तरह तो राहु ने उसे मायावी बना दिया है। दूसरी तरफ पीड़ित चन्द्रमा उसके मन मे जहर घोलता जाएगा।

ये जो बड़ी बड़ी बीमारियां आजकल चल रही है। एड्स, शुगर, bp आदि आदि जो खत्म नही होती कभी किसके कारण है। राहु का काम है अनियंत्रित व्रद्धि करना। परमाणु विस्फोट जो काबू में ही ज आये। प्लेग। स्वाइन फ्लू आदि आदि।

परमाणु परीक्षण आजकल हर देश कर रहा है। ये क्या है राहु ही तो है।

हर देश एक दूसरे को झूठ बोल के अपना साम्राज्यवाद खड़ा करना चाहता है ये क्या है राहु ही तो है।

लेकिन राहु प्रभावी आदमी ये नही जानता कि वो कही न कही हिंसा कर रहा है, कही न कही झूठ बोलता है। आत्मा कभी झूठ नही बोलती। उसकी अंतर आत्मा कही न कही उसको दर्शाती होगी, एहसास दिलाती होगी कि तू गलत कर रहा है। लेकिन भाई राहु तो राहु है उस आत्मा पर भी अपना घना अंधेरा दाल देता है। छाया डाल देता है। सूर्य और हमारे बीच बादल बनकर । सूर्य पे अपनी छाया डाल कर उसको ग्रहण लगा देता है इसका मतलब ये नही की ग्रहण सूर्य या चन्द्र को लगता है। वो दोनो तो अपनी जगह वैसे ही रोशनी फैला रहे है। हमने हमारे कर्मोबसे उनको ग्रहण लगा दिया। सूर्य तो ग्रहोबक राजा है। अनंत प्रकाश देने वाला। उसको कोई ग्रहण कैसे लगा सकता है। हम ये बोल सकते है कि हमारे कर्मोबकी वजह से हमने हमारी सूर्य रूपी आत्मा को ग्रहण लगवा लिया।

राहू माया है….माया को समझना कठिन तो है परन्तु नामुनकिन नहीं…माया मछिन्द्र नाथ ने तो माया को अपनी मुट्ठी में कैद करके रखा था….यही राहू शुभ का हो जाए तो विवेकानंद के सामान विशाल हो जाए….शुभ का होना और बलि होना दोनों में फर्क है..शुभ का राहू आपको गूढ़ से गूढ़ ज्ञान दिला दे..कोई भी बात हो तुरंत समझा से..बात तुरंत पकड़ में आ जाए….राहू शुभ का है आपके पक्ष में है तो आपको ग्यानी बना दे…ब्रह्म ग्यानी बना दे….लेकिन सिर्फ बलि है शुभ का नहीं है तो फिर अपना काम निकलवाते जाओ और जलील होते जाओ…..बुध को वाक चातुर्य और वाणी के लिए जाना जाता है..हाज़िर जवाबी…माता सरसवती का विशेष आशीर्वाद जिसको बुध शुभ का और बलि है….बुध प्रभाव आदमी तुरंत बात को समझता है और उत्तर देता है…तुरंत निर्णय लेता है..लेकिन राहू प्रभावी आदमी के आगे बुध भी कुछ नहीं कर सकता…राहू वाले जातक का जवाब बुध वाला जातक भी नहीं दे सकता….राहू वाला जातक ऐसा सवाल या जवाब देता है की सामने वाला सोच भी नहीं सकता …और सिर्फ यही सोचता रहता है की इसका क्या उत्तर दू…..राहू दिमाग में जाने वाले एलेक्ट्रोड़ हो…..लेकिन यही राहू अगर विपरीत हो तो भैया गए काम से….ऐसा मानसिक शारीरिक आर्थिक रूप से तोड़ता है है की जातक या जातिका जिन्दगी भर इसी उधेड बन में लगे रहते है की हमारे साथ ये हो क्या रहा है….सो बार कोशिस करो तो भी काम न हो…..मानसिक रूप; से तो ऐसा तोड़ता है की भाई पुचो मत….बस जन नहीं निकलती और और बछ्ता कुछ नहीं….मैंने सवयम ऐसे जातक और जातिकाओ को देखा है….जिन्दगी भर वो मानसिक रोगी रही..बड़े से बड़ा टेलेंट था उनके अन्दर लेकिन जिन्दगी भर वो कुछ नहीं कर पाए…..कुंडली में अगर दृढ कर्मो में राहू का प्रभाव है तो आप भूल ही जाओ की कभी आपको चैन मिलने वाला है कभी भी…फिर तो राम भजो और देखो मजो वाली कहावत हो जाएगी..हाँ महादशा या गोचर है तो बाद में आराम जरुर मिल जाए….यही राहू आपके पक्ष में है तो आप हर तकलीफ से अपने आप को बहार निकाल लेंगे….कही न कही रास्ता आप खोज ही निकालेंगे….हार के कभी नहीं बैठोगे है….शुभ गृह अगर बलवान है तो फिर यही राहू आपको सफलता की सीढियों पे दिन प्रतिदिन चढ़ाता जायेगा….सबसे ज्यादा पापी गृह का खिताब जो हासिल है इसको….अब इसको शुभ तो आपके कर्म ही बनायेंगे…..राजनीति में तो राहू का विशेष योगदान है…षड्यंत्र….राजतन्त्र…प्लानिंग….plotting ….चाल…आपका अगर राहू प्रभावी है तो आप राजनीती के माहिर खिलाड़ी बन सकते है….दशम..पंचम..लग्न…षष्टम.. नवं..आदि आदि में राहू आपके पक्ष में है तो आप राजनीती के माहिर खिलाडी बन सकते हो..आपकी चाल कोई न समझ पाए..मुझे भारत के प्रधान मंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी की कुंडली का सही तो पता नहीं लेकिन जो वृश्चिक लग्न की जो कुंडली है उसमे आप देखिये उनका राहू पंचम में बैठा है मीन राशि का …अब आप देखिये मोदीजी की चाल कोई भी नहीं समझ पाटा है..वो कब कोण सी चाल चल दे…एक तरह से कहे तो चाणक्य…..आपने कुछ डॉक्टर देखे होंगे जो मरीज के सामने जाते ही उसकी बिमारी को पकड़ लेते है…ये राहू या बुध का ही तो कमाल है……

आज का ज़माना भोग का है…..शारीरिक सबन्ध..नशा आजकाल आम बाद है…लेकिन पूर्ण रूप से प्रभावी नहीं..आज भी लोगो ने धर्म के बल पे अपने आप को सात्विक बना के रखा हुआ है….लेकिन ये भोग..ये नशा क्या हाई…शुक्र और राहू……हम ये बात अछे से जानते है की आजकल….किसी के साथ भी शारीरिक सम्बन्ध बन जाता है..अपने से दुगनी उम्र के लोगो के साथ…एक साथ कई कई जन के साथ….आदमी आदमी के साथ…ओरत ओरत के साथ सम्बन्ध …ये सब क्या है….भोग यानी शुक्र के साथ राहू मिल गया है….राहू ने भोग को भ्रमित कर दिया है…..इसलिए जातक या जातिका इन सब के भोग में राहू की मिलावट हो गयी है…कोई भी किसी के साथ भी शारीरिक समबन्ध बना रहा है….राहू ने भोग यानी शुक्र को भी बदनाम कर रखा है……राहू का काम ही जहर घोलना है……राहू क्या है असुर..दानव….मेरे दादाजी मुझे बचपन में राजा बलि की कहानी अक्सर सुनाया करते थे…की वामन रूपी विष्णु जी ने बलि से ३ पग धरती मांग कर उसका सब कुछ छीन लिया था लेकिन उसको आशीर्वाद भी दिया था की कलयुग में तेरा राज चलेगा…फिर आज कलयुग में राहू के प्रभाव को नकारा नहीं जा सकता…है….

राहू एक छाया ग्रह है. छाया का तात्पर्य है प्रकाश हीन. अतः इसमें शनि की भाँती बल्कि शनि से बढ़कर प्रकाश हीनता का दोष है. इसलिए इसके गुणों का समावेश एक ही वाक्य में ज्योतिष शास्त्र ने कर दिया की ‘शनि वत राहू’. शनि की तरह मुर्ख, शनि की भाँती लम्बा, शनि की भाँती अभावात्मक, शनि की भाँती रोग कारक, शनि की भाँती विलम्ब करने वाला एक ग्रह है. राहू में एक विशेष गुण अथवा दोष जो शनि में नहीं है वह यह की राहू में घटनाये अकस्मात् घटाने की शक्ति है जबकि शनि में धीरे. यदि राहू द्वितीय, पंचम, नवं, एकादश, लग्न आदि धन घोतक भावो में स्थित हो और उन भावो के स्वामी केंद्र आदि में स्थित होकर द्रष्टि बलवान हो तो वह धन को अचानक, सहसा, बिना आशा के दे देता है. लाटरी आदि के योग प्रायः राहू ऐसे ही स्थति के कारन उत्पन्न होते है. एक और बात जो राहू के संबंध में विशेष रूप से ध्यान रखने योग्य है वह यहाँ की राहू अपने छाया अथवा प्रतिबिम्ब स्वभाव के अनुरूप ही फल करता है अर्थात इस पर यदि कुंडली के राजयोग तथा शुभ ग्रहों की युति अथवा दृष्टि द्वारा प्रभाव पड़ता हो तो राहू अपनी भुक्ति में उन शुभ ग्रहों के राजयोग का फल करेगा अर्थात धन, यश, पदवी दिलावेगा. इस के विरुद्ध राहू यदि पाराशरीय पाप ग्रहों जैसे अष्टमेश द्वादशेश आदि से युक्त दृष्ट हो तो धन हानि दरिद्रता आदि का फल करता है.

शनि की भाँती राहू भी स्नायु का प्रतिनिधित्व करता है. स्नायु रोगों में शनि की भाँती इसका भी हाथ रहता है. यदि किसी व्यक्ति की जन्म कुंडली में शारीर घोतक अंगो पर अर्थात लग्न , लग्नेश, चन्द्र लग्न, चन्द्र लग्नेश, सूर्य लग्न तथा उसका स्वामी, इन सब पर शनि तथा राहू का प्रभाव पड़ता हो तो प्राय व्यक्ति को स्नायु रोगों का जीवन में शिकार होना पड़ता है. जन्म कुंडली यदि किसी ब्रहमिन आदि द्विज की हो तो फिर यह प्रभाव विशेष रूप से दिखने में आता है क्योंकि सूर्य चन्द्र गुरु सब राहू के शत्रु है शनि(क्षुद्र) के नहीं.

इसी प्रकार राहू और शनि अभाव के ग्रह है. षष्ठेश अष्टमेश आदि अभाग के घोतक ग्रहों के साथ इनका प्रभाव भी यदि द्वितीय भाव और उसके स्वामी पर पद जाय तो मनुष्य जीवन में रूपया पैसा नहीं बाख पाता.

कुछ जातक या जातिका ऐसे होते है जो जिंदगी भर बड़ा करने की नहीं सोचते है. कुछ भी करते डरते है. थोड़ी सी बात होते ही बुरा मान जाते है और ऐसे पीछे पद जाते है और जब तक पूरी लड़ाई या उनके दिल को तस्सली न मिल जाए रुकते नहीं. ऐसे लोगो की कुंडलियो में मैंने चंद्रमा को पीड़ित पाया है. चंद्रमा अगर राहू..केतु से पीड़ित है या फिर शनि से. खासकर राहू केतु से पीड़ित हो तो ज्यादा तकलीफ देता है. राहू के साथ हो तो बहुत ज्यादा. इस तरह के जातक मन ही मन बहुत घुटते है. अन्दर ही अन्दर बहुत जलते है. राहू एक तरह का भ्रम है. शनि की तरह जहर है. चन्द्रम मन है. मन में जहर घुल जाए तो क्या होगा. चंद्रमा कितना कोमल है बेचारा. रहू सबसे क्रूर गृह. इस तरह के योग को कपट योग भी कहते है. चंद्रमा अगर बलि है तो राहू ज्यादा परेशां नहीं करेगा. लेकिन चन्द्रमा पूरा पीड़ित है या निर्बल है तो फिर तकलीफ ही तकलीफ है. जातक जिन्दगी भर अन्दर ही अन्दर भूल भुलैया की तरह घूमता रहता है. कभी बाहर ही नहीं निकल पाटा है मकद जाल से. प्रभु ने श्रष्टि की रचना ही इस मन से बाहर निकलने के लिए की है. यही मन अगर पूरा पीड़ित हो गया या राहू के चंगुल में फंस गया तो फिर बचेगा क्या फिर बाकी. राहू भ्रम है बहुत बड़ा भ्रम राहू की वजह से मैंने अछे आछो को पागल होते देखा है. बड़े बड़े ज्ञानियो ..बड़े बड़े महारथियो को मैंने मानसिक तोर पे बेबस देखा है. सर में बैठा राहू अगर अशुभ हो तो ऐसा भ्रम पैदा करता है की पुच्छो मत.चंद्रमा हमारी मानसिकता को दिखाता है….लेकिन चन्द्रमा के अन्दर सब ग्रहों का बल निहित है ये बहुत कम लोग ध्यान में रखते है. मृत्युलोक में मन की ही चलती है. मन से जो पार पा गया उसको क्या चाहिए. इस लिए चन्द्र राहू की युति जिन्दगी भर जकड़े रहती है. जातक बहुत कोशिश करता है बाहर निकलने की लेकिन नहीं निकल पाटा. छोटी छोटी बातो से दुखी या खुस हो जाता है. मन में ऐसी आग लगी रहती है पुचो मत. अब इसे प्रभु की मया कहे या ग्रहों का खेल एक ही बात है. मन तो वैसे ही पहले से भ्रम है. अशांत है. माया है. चंचल है. पर्दा है. उसके बाद उसमे राहू का तड़का लग गया तो फिर बचा क्या. राहू के चंगुल में फसे हुए जातको को मैंने जिन्दगी भर तड़फते देखा है.

चतुर्थ भाव हमारे हदय का है..हमारे मन का है…..पानी का है …माता का है….राहू खुद मायावी है…मन खुद एक माया है…मन की माया कोण समझे पहले से ही कहावत…तो चतुर्थ का राहू मतलब मन की माया कोई भी न समझ पाए…..माया के साथ माया मिल गयी मतलब माया स्क्वायर ……शुभ का राहू बैठ जाए तो जातक या जातिका का मन पराविज्ञान में चला जाए मतलब ब्रह्म ज्ञान की खोज में..और अशुभ का राहू बैठ जाए जिन्दगी भर मन के फेर में उलझा रहे…४२ साल तक सुख ही न मिले..घर ही न मिले….मित्र ही न मिले…जनता से सम्बन्ध बिलकुल ही कट जाए…..चतुर्थ स्थान हमारे निवास स्थान का भी है..अतः चतुर्थ का राहू अशुभ का है तो निवास स्थान मेबाधा भी दर्शता है..प्रेत बाधा या अन्य किसी प्रकार की बाधा…..चतुर्थ स्थान हमारे घनिष्ठ मित्रो को भी दर्शाता है अतः मित्र मायावी या मित्र धोखा देते रहे समय समय पर ……माता का भी स्थान है..तो मात अको भी कोई न कोई तकलीफ बताता है…चत्रुथ स्थान चंद्रमा यानी पारवती माता का भी है..लाल किताब कहती है की माता के घर में राहू केतु चुपचाप बैठते है….चतुर्थ भाव हमारे ग्रेजुएशन को भी दर्शाता है..अतः खाराब राहू ग्रेजुएशन होने ही न दे शायद ….अष्टम पे द्रष्टि दाल के गूढ़ ज्ञान में भी सहायता करवा दे क्योंकि रहू खुद रिसर्च एंड डेवेलोप मेंट है…द्वादश पे द्रष्टि दाल के तंत्र में भी रूचि जगा दे…..

राहू माया या माया को समझने वाला…..केतु सूक्ष्मता या सूक्ष्म ज्ञान.

राहू विशाल है…..केतु सूक्ष्म

राहू दादा है….केतु नाना

रहू कैंसर है…..केतु कैंसर की शुरुआती स्टेज

राहू शत्रु है….केतु गुप्त शत्रु

राहू प्रक्रम है…केतु धर्म

राहू घर का मुख्य द्वार…केतु घर का अंतिम स्थान.

राहू सर्प का मुह है….केतु सर्प की पूंछ

राहू विवेकानंद है….केतु नाग बाबा

राहू शनि है…केतु मंगल

राहू लाभ है….केतु पूर्व जन्म का धर्म

राहू भ्रम है…..केतु झुन्झुलाहट

राहू लम्बे समय का तकलीफ है……केतु विच्छेदन

राहू वायु है….केतु अग्नि

राहु तो राहु है भाई क्या कहने इसके। आपका दोस्त हुआ तो आप माया मछिन्दर नाथ। दुश्मन हुआ तो पागलखाने में या फिर जिंदगी भर माया जाल में फस कर जीवन व्यतीत करने वाले।

अरे आपके दिमाग के एलक्टरोड राहु ही तो है।

आपकी हाज़िर जवाबी राहु ही तो है।

आपके सवाल या आपके जवाब का उत्तर बुध वाला भी न दे पाए तो समझ जाओ आपका राहु मस्त है।

सेकंड के 10वे हिस्से में आप प्रतिक्रिया करने लग जाय तो समझ जाओ राहु मस्त है।

आपकी शतरंज की चाल कोई न समझ पाए तो समझ जाओ राहु मस्त है।

तंत्रिका तंत्र मजबूत है तो समझ जाओ राहु मस्त है।

ससुराल में लड्डू खाने को मिले तो भी राहु मस्त है।

दादा का प्यार भी तो राहु है।

पूर्व जन्म की इछया भी तो राहु है।

शमसान भी तो राहु है।

मरे हुए की दुर्गंध राहु है।

घर कबाड़ खाना है तो चतुर्थ का राहु।

घर मे भूत भी तो चतुर्थ का राहु है।

कैंसर भी तो तो राहु ही है।

आपका विशाल ज्ञान भी राहु है।

नशे नाड़िया, वायु भी तो राहु है।

आपकी दूर दर्शी सोच भी राहु है।

लग्न पंचम नवम दसम का आपका राहु बना दे आपको साहू।

घर का दरवाजा राहु।

घर की छत राहु।

आपका मुह राहु।

नाक कान के छेद राहु।

हाथ के नाखून राहु।

बुध के सामने चुपचाप रहे वो राहु।

बुध की राशियो में मस्त।

मंगल इसका महावत।

शनि इसका जुड़वा।

चन्द्रमा साथ हो तो बाप रे बाप।

गुरु हो तो चांडाल। अच्छा या बुरा वो भाव देख के।

शनि हो तो श्रापित लेकिन खोजी, महा खोजी।

सूर्य तो इसका भोजन।

शुक्र हम्म्म्म जाने दो।

राहु मस्त तो सब पस्त।

राहु पस्त तो समझ जाओ पिछले जन्म में बड़े भारी कुकर्म किये है। इसी वजह से इस जन्म में पूरी जिंदगी राहु की भयंकर जकड़ में हो। नही विश्वास तो अपनी कुंडली का विश्लेषण कर के देख लो।

जुडुवां शिशुओं का कुंडली विचार।।

   

   

     

   

  

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   ।। जुडुवां कुंडली अध्ययन।।
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(( जुडुवा संतानों का आपस मे

प्रभेद/ वैचारिक पद्धत्ति विचार ))

       दश- पन्द्रह मिनिट की बात तो अलग, मगर ये सच है कि एक ही स्थान में दो- चार मिनिट व्यवधान या अंदर में जन्मित शिशुओं के लिंग, स्वभाब, चरित्र, शारीरिक गठन, वर्ण, चेहरा, रुचि, प्रवृत्ति, चालचलन, प्रकृति, शिक्षा, आयु, भविष्य-- ये सभी में सम्यक या बहुत कुछ फरक दिखाई पड़ता है।।

      परंतु उनके लग्न कूण्डली आदि में भरपूर सादृश्य और लगभग ग्रहस्फुटों में मिनिट या अंश तक बहुधा समानता दिखाई देता है।।

       तो उन बच्चों में जो- जो फरक होता है या बाद में दिखाई देगा, वो सब को पहले से कैसे विचार किया जाएगा, ये एक समस्या है।। अस्तु।।

     ये फरक को विचार करने के लिए एक अनुभूत सरल वैचारिक पद्धत्ति यंहा परिभाषित करता हूँ।। 

      आदरणीय विद्वानों ने ये पद्धत्ति को जुडुवा जातकों के क्षेत्र में प्रयोग करके देख सकते हैं की, कितने प्रतिशत सुफल निकलता है।।

     अवश्य सुफल परिमाण को देख कर चकित रह जाएंगे।।अस्तु।।

        ।। पद्धत्ति ।।
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       ये स्वाभाविक है की, जुडुवां बच्चों अथवा जितने भी शिशु एक के बाद एक, एक ही मातृगर्भ से कुछ कुछ मिनिट व्यबधान में पैदा हुए हैं, उन के जन्म कूण्डली के प्राय सभी अंश या वर्ग- कुंडली (साठ अंश कुंडली को छोड़कर) लगभग समान पाएंगे। तो बच्चों में जो एक दूसरे से फरक आएगा, हम कैसे जानेंगे-- इस मुद्दे पर ज्योतिः गवेषकों ने परीक्षा अथवा शोध करने के लिए नीचे एक सरल पद्धत्ति समर्पित।।

    👍पहिले जन्म जातक का लग्न को उनका ही लग्न समझ कर विचार कीजिये।।

     👍बाद में जन्म शिशु के लिए, मूल लग्न का भ्रातृ (भग्नि) स्थान तृतीय भाव को ही उनका लग्न मानकर तथा राशियों में ग्रह स्थिति को हूबहू समान रखकर अलग एक लग्न कुंडली, भाव- चलित, नवांश कूण्डली आदि बनाइये।। 

     👍ऐसे द्वितीय शिशु का कुंडली में जो लग्न हुआ, इसी लग्न से जो है तृतीय भाव, इसको ही तृतीय शिशु का लग्न मानकर अलग कुंडली बनाइये... इत्यादि।।

     इस पद्धत्ति को मातृगर्भ से एक के बाद एक पैदा हुये शिशुओं के लिए  लागू कीजिये और अलग- अलग पूर्णांग कुंडलियां युक्त जातक प्रस्तुत करने के बाद ही अलग- अलग लेकर विचार कीजिये।।

   (जुडुवां क्षेत्रों में जन्म समय में सामान्य फरक भी दशावशेष में कुछ फ़रक लाएगा। कभी नक्षत्र चरण और कभी नक्षत्र/ राशि में भी फरक आ जाये तो ताज्जुब की बात नहीं है।।)

       ऐसे जुडुवां कुंडलियां प्रस्तुति और विचार पद्धत्ति प्रयोग से कितने प्रतिशत सटीक फल निकलता है, खुद परीक्षा करके देख लीजिए।। अस्तु ।।

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