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जगत में सर्वश्रेष्ठ व्यक्तित्व यदि किसी के पास है तो वह मनुष्य है। वह ना केवल स्वयं के जीवन को आंनद और उल्लास के कैलाश पर पहुँचाने में समर्थ है अपितु समस्त प्रकृति, समस्त जीव – जंतु और समस्त वातावरण को भी आंनद देने में समर्थ है।
इंसान की उपलब्धियाँ आश्चर्यचकित करने वाली हैं। अपने प्रचुर आत्मबल के बल पर उसने बहुत सारी समस्याओं को सुलझाया है। लेकिन हैरानी की बात यह है दुनिया की बड़ी से बड़ी समस्या को सुलझाने की समझ और सामर्थ्य रखने वाला मनुष्य पिछले कुछ समय से खुद अकारण की ऐसी गुत्थियों में उलझा पड़ा है, जो सुलझने में नहीं आ रहीं।
समस्याएं वास्तव में इतनी बड़ी हैं कि उनका हल संभव नहीं है या मनुष्य ने समस्याओं के आगे समर्पण कर दिया है। अध्यात्म व्यक्ति के आत्मबल को बढ़ाता है और निराशा को समाप्त करता है। ना भय में रहो, ना निराशा में और ना अविश्वास में। अभी बहुत सृजन आपके द्वारा होना है।

🚩जय श्रीराधे कृष्णा🚩

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शिव कोई पुरोहित नहीं है, शिव क्रांति द्रष्टा है, परमात्मा है। वे जो भी कहेंगे, वह आग है।। अगर आप जलने को तैयार हैं, मिटने को तैयार हैं। तो ही उनके निमंत्रण को स्वीकार करना।। क्योंकि आप मिटेंगे तो ही नये का जन्म होगा। आपकी राख पर ही नये जीवन की शुरुआत है।। मार्ग दूभर है, उस दूभर से गुजरना होगा। और इसीलिए उद्यम चाहिए।। इतना बड़ा प्रयत्न करने की आकांक्षा चाहिए अभीप्सा चाहिए कि आप अपने को पूरा दांव पर लगा दें। पूरा का पूरा दाव पर लगाएंगे तो ही इससे कम में नहीं चलेगा।।

     
             🙏

दोस्तो ,

सब वस्तुओं की तुलना कर लेना मगर अपने भाग्य की कभी भी किसी से तुलना मत करना। अधिकांशतया लोगों द्वारा अपने भाग्य की तुलना दूसरों से कर व्यर्थ का तनाव मोल लिया जाता है व उस परमात्मा को ही सुझाव दिया जाता है कि उसे ऐसा नहीं, ऐसा करना चाहिए था।

परमात्मा से शिकायत मत किया करो। हम अभी इतने समझदार नहीं हुए कि उसके इरादे समझ सकें। अगर उस ईश्वर ने आपकी झोली खाली की है तो चिंता मत करना क्योंकि शायद वह पहले से कुछ बेहतर उसमे डालना चाहता हो।

अगर आपके पास समय हो तो उसे दूसरों के भाग्य को सराहने में न लगाकर स्वयं के भाग्य को सुधारने में लगाओ। परमात्मा भाग्य का चित्र अवश्य बनाता है मगर उसमें कर्म रुपी रंग तो खुद ही भरा जाता है।

स्वयं विचार करें​…

    *शांत मन ही आत्मा की ताकत है, शांत मन में ही ईश्वर विराजते हैं। जब पानी उबलता है तो हम उसमें अपना प्रतिबिम्ब नहीं देख सकते हैं।। और शांत  पानी में हम खुद को देख सकते हैं। ठीक वैसे ही अगर हमारा हृदय शांत रहेगा तो हमारी आत्मा के वास्तविक स्वरूप को हम देख सकेंगे।।*

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