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ज्योतिष मे चंद्र ग्रह का महत्व।

सूर्य के बाद धरती के उपग्रह चन्द्र का प्रभाव धरती पर पूर्णिमा के दिन सबसे ज्यादा रहता है। जिस तरह मंगल के प्रभाव से समुद्र में मूंगे की पहाड़ियां बन जाती हैं और लोगों का खून दौड़ने लगता है उसी तरह चन्द्र से समुद्र में ज्वार-भाटा उत्पत्न होने लगता है।

जितने भी दूध वाले वृक्ष हैं सभी चन्द्र के कारण उत्पन्न हैं। चन्द्रमा बीज, औषधि, जल, मोती, दूध, अश्व और मन पर राज करता है। लोगों की बेचैनी और शांति का कारण भी चन्द्रमा है।

चन्द्रमा माता का सूचक और मन का कारक है। कुंडली में चन्द्र के अशुभ होने पर मन और माता पर प्रभाव पड़ता है।

कैसे होता चन्द्र खराब? :

  • घर का वायव्य कोण दूषित होने पर भी चन्द्र खराब हो जाता है।
  • घर में जल का स्थान-दिशा यदि दूषित है तो भी चन्द्र मंदा फल देता है।
  • पूर्वजों का अपमान करने और श्राद्ध कर्म नहीं करने से भी चन्द्र दूषित हो जाता है।
  • माता का अपमान करने या उससे विवाद करने पर चन्द्र अशुभ प्रभाव देने लगता है।
  • शरीर में जल यदि दूषित हो गया है तो भी चन्द्र का अशुभ प्रभाव पड़ने लगता है।
  • गृह कलह करने और पारिवारिक सदस्य को धोखा देने से भी चन्द्र मंदा फल देता है।
  • राहु, केतु या शनि के साथ होने से तथा उनकी दृष्टि चन्द्र पर पड़ने से चन्द्र खराब फल देने लगता है।

शुभ चन्द्र व्यक्ति को धनवान और दयालु बनाता है। सुख और शांति देता है। भूमि और भवन के मालिक चन्द्रमा से चतुर्थ में शुभ ग्रह होने पर घर संबंधी शुभ फल मिलते हैं।

कैसे जानें कि चन्द्र खराब है…

  • दूध देने वाला जानवर मर जाए।
  • यदि घोड़ा पाल रखा हो तो उसकी मृत्यु भी तय है, किंतु आमतौर पर अब लोगों के यहां ये जानवर नहीं होते।
  • माता का बीमार होना या घर के जलस्रोतों का सूख जाना भी चन्द्र के अशुभ होने की निशानी है।
  • महसूस करने की क्षमता क्षीण हो जाती है।
  • राहु, केतु या शनि के साथ होने से तथा उनकी दृष्टि चन्द्र पर पड़ने से चन्द्र अशुभ हो जाता है।
  • मानसिक रोगों का कारण भी चन्द्र को माना गया है।

चंद्र ग्रह से होती ये बीमारी:

  • चन्द्र में मुख्य रूप से दिल, बायां भाग से संबंध रखता है।
  • मिर्गी का रोग।
  • पागलपन।
  • बेहोशी।
  • फेफड़े संबंधी रोग।
  • मासिक धर्म गड़बड़ाना।
  • स्मरण शक्ति कमजोर हो जाती है।
  • मानसिक तनाव और मन में घबराहट।
  • तरह-तरह की शंका और अनिश्चित भय।
  • सर्दी-जुकाम बना रहता है।
  • व्यक्ति के मन में आत्महत्या करने के विचार बार-बार आते रहते हैं।

कुंडली के 12 घरों में चंद्रमा देता है शुभ और अशुभ फल

  1. पहले लग्न में चंद्रमा हो तो जातक बलवान, ऐश्वर्यशाली, सुखी, व्यवसायी, गायन वाद्य प्रिय एवं स्थूल शरीर का होता है।
  2. दूसरे भाव में चंद्रमा हो तो जातक मधुरभाषी, सुंदर, भोगी, परदेशवासी, सहनशील एवं शांति प्रिय होता है।
  3. तीसरे भाव में अगर चंद्रमा हो तो जातक पराक्रम से धन प्राप्ति, धार्मिक, यशस्वी, प्रसन्न, आस्तिक एवं मधुरभाषी होता है।
  4. चौथे भाव में हो तो जातक दानी, मानी, सुखी, उदार, रोगरहित, विवाह के पश्चात कन्या संततिवान, सदाचारी, सट्टे से धन कमाने वाला एवं क्षमाशील होता है।
  5. लग्न के पांचवें भाव में चंद्र हो तो जातक शुद्ध बुद्धि, चंचल, सदाचारी, क्षमावान तथा शौकीन होता है।
  6. लग्न के छठे भाव में चंद्रमा होने से जातक कफ रोगी, नेत्र रोगी, अल्पायु, आसक्त, व्ययी होता है।
  7. चंद्रमा सातवें स्थान में होने से जातक सभ्य, धैर्यवान, नेता, विचारक, प्रवासी, जलयात्रा करने वाला, अभिमानी, व्यापारी, वकील एवं स्फूर्तिवान होता है।
  8. आठवें भाव में चंद्रमा होने से जातक विकारग्रस्त, कामी, व्यापार से लाभ वाला, वाचाल, स्वाभिमानी, बंधन से दुखी होने वाला एवं ईर्ष्यालु होता है।
  9. नौंवे भाव में चंद्रमा होने से जातक संतति, संपत्तिवान, धर्मात्मा, कार्यशील, प्रवास प्रिय, न्यायी, विद्वान एवं साहसी होता है।
  10. दसवें भाव में चंद्रमा होने से जातक कार्यकुशल, दयालु, निर्मल बुद्धि, व्यापारी, यशस्वी, संतोषी एवं लोकहितैषी होता है।
  11. लग्न के ग्यारहवें भाव में चंद्रमा होने से जातक चंचल बुद्धि, गुणी, संतति एवं संपत्ति से युक्त, यशस्वी, दीर्घायु, परदेशप्रिय एवं राज्यकार्य में दक्ष होता है।
  12. लग्न के बारहवें भाव में चंद्रमा होने से जातक नेत्र रोगी, कफ रोगी, क्रोधी, एकांत प्रिय, चिंतनशील, मृदुभाषी एवं अधिक व्यय करने वाला होता है।
    [सप्त चर कारक
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    ज्योतिष के सात कारको की व्याख्या

जैमिनी ज्योतिष अनुसार आपको बताएंगे ये कारक किस-किस भाव इत्यादी के कारक होते है।

आत्माकारक👉 जो ग्रह सबसे अधिक अंश कला विकला पर होता है वह आत्मा कारक कहा जाता है| शार्टकट भाषा मे इसे आका भी कहते है आत्माकारक लग्न व लग्नेश की तरह ही काफी महत्वपूर्ण होता है और जो बात हम लग्न व लग्नेश से देखते है वो सब बाते अकेला आत्माकारक बताता है जैसे_ शरीर ,रंग-रूप ,स्वभाव ,गुण ,सुख, संतोष ,चिंता ,शक्ति इत्यादि।

अमात्यकारक👉 जो ग्रह अंश कला विकला मे आत्माकारक से कम होगा वह अमात्यकारक कहलायेगा आमात्य कारक को अका भी कहते है यह हमारे द्वितीय को प्रमुख रूप से सामान्यतः पंचम व दशम भाव को प्रदर्शित करने वाले कारको का प्रतिनिधित्व करता है जैसे धन ,शिक्षा ,व्यवसाय , भोजन ,परिवार , वाणी, आरम्भिक शिक्षा ,प्रभुत्व , अधिकार , उन्नती को दर्शाता है।

भ्रातृकरक👉 अमात्यकारक से कम अंश कला विकला का ग्रह भ्रातृकारक कहा जाता है इसे संक्षेप मे भ्राका भी कहते है यह हमारे तृतीय भाव को प्रमुख रूप से व सामान्य रूप से एकादश, नवम भाव के सभी कारको का प्रतिनिधित्व करता है जैसे छोटे भाई बहन , गुरू ,मित्र ,पराक्रम , यात्रा ,प्रतिभा ,पिता ,उच्चशिक्षा
,दान पुण्य , तीर्थयात्रा इत्यादि को प्रदर्शित करता है।

मातृकारक👉 भ्रातकारक से कम अंश कला विकला का ग्रह मातृकारक कहलाता है इसे माका भी कहते है यह मुख्यतः चौथे भाव को व उसके कारको को प्रदर्शित करता है जैसे माता,मकान,वाहन ,जमीन,सुख ,संपत्ती।

पुत्रकारक👉 मातृकारक से कम अंश कला विकला का ग्रह पुत्रकारक कहलाता है 8इसे संक्षेप मे पुका भी कहते है यह मुख्यतः पंचम भाव व सामान्यतः नवम भाव को व उनके कारको को बताता है जैसे संतान ,शिक्षा , ज्ञान, मंत्र, योजना ,जुआ ,सट्टा, लेखन, भाग्य ,पिता ,भविष्य ,आगामी कर्म इत्यादी।

ज्ञातिकरक👉 पुत्रकारक से कम अंश कला विकला का ग्रह ज्ञातिकारक कहा जाता है। संक्षेप मे इसे ज्ञाका बोलते है। यह मुख्यरूप से छटे भाव का व सामान्यतः आठवे ,बारहवे भाव का व ऊनके कारको का प्रतिनिधित्व करता है जैसे _ रोग ,शत्रु ,मामा ,कर्ज,दुर्घटना , विवाद ,परेशानी,बाधा ,कोर्ट-कचहरी, आयु , लंबी बीमारी , विरासत की संपत्ती , आध्यात्म, असपताल , नुकसान ,विरक्ति , बंधन, व्यसन आदि।

दाराकारक👉 ज्ञातिकारक से कम अंशो वाला ग्रह दाराकारक कहा जाता है संक्षेप मे यह दाका कहा जाता है यह मुख्यरूप से सप्तम भाव व उसके कारको का प्रतिनिधित्व करता है जैसे विवाह,पत्नी , साझेदारी, दृस्टी हीनता ,पद प्राप्ति, विदेशयात्रा, जनता से सम्मान जीवन साथी का स्वभाव रंग रूप आदि।


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