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: #प्रकृति_विज्ञान

सारे जीव का विकास तो प्रकृति ही करती है तो ग्रहों की वैज्ञानिकता भी उसी पे आधारित है जिसे सनातन धर्म मे पृथक पृथक मान्यता दी गयी है।

मानव जीवन भी उसी पर आधारित होती जिसे प्रकृति कहते है जिसमे सभी जीवों का प्रतिनिधित्व करने की क्षमता विस्तृत ज्ञान देकर मानव को दी गयी है उसपे एक साधारण लेख ज्योतिष विज्ञान पे।
सर्व-ग्रह दोष शांत करने का सबसे आसान उपाय ।

      "करके तो देखिऐ" "इश्वर के कार्य में सहयोगी बनें"- पसु-पक्षियों को आहार-पानी देकर कुंडली में दूषित ग्रहों के प्रभाव से सहज बचा जा सकता है।

  इस कार्य को करने से  हम प्रभु के कृपा पात्र ही नहीं बनते हैं वल्कि हम ईश्वर का प्रतिनिधी बनकर ईश्वर का कार्य ही करते हैं। सोचिऐ भूखे-प्यासे को भोजन-पानी देना तो भगवान का ही कार्य है ना।।

और भगवान का कार्य करने वाले को सारी परेशानियों और प्रारब्ध के दोषों से इश्वर स्वयं रक्षा करता है। तथा पाप क्षीण हो जाते हैंं पुण्य प्राप्ती होता है। ... पापों के क्षरण होते ही दैहिक ,दैविक , और भोंतिक कष्ट क्षू-मंतर होने लगते हैं।।

:लाभ

1-आपके मन में अक्सर भय सा या बेचैनी-सी रहती है।
2-आपके काम ठीक समय पर पूरे नहीं होते या पूरे होते-होते रुकते हैं।
3-पारिवारिक क्लेश (विवाद) नियमित रूप से चलता रहता है।
4-परिवार में सदैव किसी का स्वास्थ्य ठीक नहीं रहता है।
5-भरकस परिश्रम करने पर भी धनोपार्जन करना मुश्किल हो रहा है।
6-एक नई परेशानी हल होने से पहले दूसरी तैयार रहती है।
7- कर्ज या खर्च से परेशान है.. बचत नहीं हो पा रही।

तो ‍निश्चिन्त हो कर आपको पशु-पक्षियों को दाना-पानी डालना सुरू कर दें चमत्कार होने लगेगा । आनंद की प्राप्ति होगी और आपके जीवन के सारे कष्ट दूर होने लगेंगे।

  चींटिंयों, चिड़ियों, गिलहरियों, कबूतर, तोता, कौआ और अन्य पक्षियों के झुंड, मछलियाँ और गाय, कुत्तों आदि को नियमित दाना-पानी देने से आपको मानसिक शांति, आरोग्यता और तरक्की प्राप्त होगी।

ग्रह-बाधा के लिऐ

सूर्य
गेहूं ,घी या पका हुआ भोजन खिलाने से सूर्य की पीड़ा दूर होती है, पित्र-दोष शांत होने लगते हैं।

चंद्र
चावल बाँटने या पानी पिलाने से चंद्र की पीड़ा और मानसिक परेशानियां दूर होकर शांति मिलती है।

मंगल
लाल गाय को गुड खिलाने से मंगल दोष कम होते हैं भाई , मित्र, और पार्टनर से सहयोग मिलता है।

बुध
मूंग की दाल और हरी घास से बुध ग्रह से होने वाली परेशानियों से निजात पाई जा सकती है। बोद्धिक विकास और है व्यापार में बृद्धी।।

गुरू
चने की दाल गाय को खिलाने से गुरु की कृपा प्राप्त होती है वैवाहिक, शिक्षा, संतान के सुख में लाभ।।

शुक्र
पशु-पक्षियों को ज्वार खिलाने से शुक्र ग्रह की पीड़ा दूर होती है सौन्दर्य,लग्जरी सुविधा,प्रेम, और सैक्स सुख आदि प्राप्त होते हैं।

शनी
काली उर्द की दाल या उससे सरशों के तेल मिश्रित भोजन कुत्तों को खिलाने से शनी के दोष दूर होते हैं जीवन की रुकावटें दूर होती हैं।

राहू
कुंडली में यदि राहु- की परेशानी हो तो पक्षियों को बाजरा डालना चाहिए या कुत्तों का संरक्षण करना चाहिऐ। कौओं और कुत्तों को ग्रास देने से शनि, राहु प्रसन्न होते हैं।

केतू
मछलियों को सात प्रकार के अनाज (आटे) की गोलियां खिलाने से केतु सकारात्मक हो जाता है।

विषेश-लाभ

1- गरीबों को नित्य भोजन बाँटने और मदद देने से… धन-धान्य बढ़ता है।
2- प्रत्येक अमावस्या-पूर्णिमा को… दरिद्र या विद्वान ब्राह्मण या भानजों को षठरस भोजन कराके दक्षिणा देने से …पित्र-दोष, पित्र-श्राप, अनाधिकृत धनोपार्जन का दोष कम हो जाता है तथा समस्त सुख-संपदाओं की प्राप्ती होती है।

अति-विषेश

जो भी मनुष्य नियमित भोजन से पहले पंच-ग्रास यानि गाय, कुत्ता-बिल्ली, कागा, चींटी, और मछलियों का भोजन कता है तो इसी जीवन में “राज-सुख” , वैभव , आरोग्य , सम्मान , और स्वर्ग को प्राप्त करता है।

परन्तु ध्यान रखें ये कार्य एक-दो बार करने से उचित लाभ नहीं मिलता... श्रद्धा-विस्वास से नियमित करते रहने से ही सम्पूर्ण पाप क्षीण होकर पुण्य की वृद्धि होती है.... और धीरे-धीरे समस्त सुख प्राप्त होने लगते हैं..  धैर्यपूर्वक करते रहैं... फल तो ईश्वर देगा ही।।

तो आज से बन जाइऐ… ईश्वर के प्रतिनिधि और करना शुरू कर दीजिये ईश्वर के कार्य में सहयोग “भूखे को भोजन-प्यासे को पानी और असहाय (मजबूरों) की मदद” … अहं भाव त्याग कर … सिर्फ ईश्वरीय के सहयोगी बनकर।।

प्राणी-मात्र में भी भगवन तत्व ही तो है।

      

[ #राशियोँकेगुणधर्म :

१ मेष(मंगल)

पुरुष जाति, चरसंज्ञक, अग्नि तत्व, पूर्व दिशा की मालिक, मस्तक का बोध कराने वाली, पृष्ठोदय, उग्र प्रकृति, लाल-पीले वर्ण वाली, कान्तिहीन, क्षत्रियवर्ण, सभी समान अंग वाली और अल्पसन्तति है। यह पित्त प्रकृतिकारक है। इसका प्राकृतिक स्वभाव साहसी, अभिमानी और मित्रों पर कृपा रखने वाला है।

२ वृष(शुक्र)

स्त्री राशि, स्थिरसंज्ञक, भूमितत्व, शीतल स्वभाव, कान्ति रहित, दक्षिण दिशा की स्वामिनी, वातप्रकृति, रात्रिबली, चार चरण वाली, श्वेत वर्ण, महाशब्दकारी, विषमोदयी, मध्य सन्तति, शुभकारक, वैश्य वर्ण और शिथिल शरीर है। यह अर्द्धजल राशि कहलाती है। इसका प्राकृतिक स्वभाव स्वार्थी, समझ-बूझकर काम करने वाली और सांसारिक कार्यों में दक्ष होती है। इससे कण्ठ, मुख और कपोलों का विचार किया जाता है।

३ मिथुन(बुध)

पश्चिम दिशा की स्वामिनी, वायुतत्व, तोते के समान हरित वर्ण वाली, पुरुष राशि, द्विस्वभाव, विषमोदयी, उष्ण, शूद्रवर्ण, महाशब्दकारी, चिकनी, दिनबली, मध्य सन्तति और शिथिल शरीर है। इसका प्राकृतिक स्वभाव विद्याध्ययनी और शिल्पी है। इससे हाथ, शरीर के कंधों और बाहुओं का विचार किया जाता है।

४ कर्क(चन्द्रमा)

चर, स्त्री जाति, सौम्य और कफ प्रकृति, जलचारी, समोदयी, रात्रिबली, उत्तर दिशा की स्वामिनी, रक्त-धवल मिश्रित वर्ण, बहुचरण एवं संतान वाली है। इसका प्राकृतिक स्वभाव सांसारिक उन्नति में प्रयत्नशीलता, लज्जा, और कार्यस्थैर्य है। इससे पेट, वक्षःस्थल और गुर्दे का विचार किया जाता है।

५ सिंह(सूर्य)

पुरुष जाति, स्थिरसंज्ञक, अग्नितत्व, दिनबली, पित्त प्रकृति, पीत वर्ण, उष्ण स्वभाव, पूर्व दिशा की स्वामिनी, पुष्ट शरीर, क्षत्रिय वर्ण, अल्पसन्तति, भ्रमणप्रिय और निर्जल राशि है। इसका प्राकृतिक स्वरूप मेष राशि जैसा है, पर तो भी इसमें स्वातन्त्र्य प्रेम और उदारता विशेष रूप से विद्यमान है। इससे हृदय का विचार किया जाता है।

६ कन्या(बुध)

पिंगल वर्ण, स्त्रीजाति, द्विस्वभाव, दक्षिण दिशा की स्वामिनी, रात्रिबली, वायु और शीत प्रकृति, पृथ्वीतत्व और अल्पसन्तान वाली है। इसका प्राकृतिक स्वभाव मिथुन जैसा है, पर विशेषता इतनी है कि अपनी उन्नति और मान पर पूर्ण ध्यान रखने की यह कोशिश करती है। इससे पेट का विचार किया जाता है।

७ तुला(शुक्र)

पुरुष जाति, चरसंज्ञक, वायुतत्व, पश्चिम दिशा की स्वामिनी, अल्पसंतान वाली, श्यामवर्ण शीर्षोदयी, शूद्रसंज्ञक, दिनबली, क्रूर स्वभाव और पाद जल राशि है। इसका प्राकृतिक स्वभाव विचारशील, ज्ञानप्रिय, कार्य-सम्पादक और राजनीतिज्ञ है। इससे नाभि के नीचे के अंगों का विचार किया जाता है।

८ वृश्चिक(शनि)

स्थिरसंज्ञक, शुभ्रवर्ण, स्त्रीजाति, जलतत्व, उत्तर दिशा की स्वामिनी, रात्रिबली, कफ प्रकृति, बहुसन्तति, ब्राह्मण वर्ण और अर्द्ध जल राशि है। इसका प्राकृतिक स्वभाव दम्भी, हठी, दृढ़प्रतिज्ञ, स्पष्टवादी और निर्मल है। इससे शरीर के क़द और जननेन्द्रियों का विचार किया जाता है।

९ धनु(गुरु)

पुरुष जाति, कांचन वर्ण, द्विस्वभाव, क्रूरसंज्ञक, पित्त प्रकृति, दिनबली, पूर्व दिशा की स्वामिनी, दृढ़ शरीर, अग्नि तत्व, क्षत्रिय वर्ण, अल्पसन्तति और अर्द्ध जल राशि है। इसका प्राकृतिक स्वभाव अधिकारप्रिय, करुणामय और मर्यादा का इच्छुक है। इससे पैरों की सन्धि और जंघाओं का विचार किया जाता है।

१० मकर(शनि)

चरसंज्ञक, स्त्री जाति, पृथ्वीतत्व, वात प्रकृति, पिंगल वर्ण, रात्रिबली, वैश्यवर्ण, शिथिल शरीर और दक्षिण दिशा की स्वामिनी है। इसका प्राकृतिक स्वभाव उच्च दशाभिलाषी है। इससे घुटनों का विचार किया जाता है।

११ कुम्भ(शनि)

पुरुष जाति, स्थिरसंज्ञक, वायु तत्व, विचित्र वर्ण, शीर्षोदय, अर्द्धजल, त्रिदोष प्रकृति, दिनबली, पश्चिम दिशा की स्वामिनी, उष्ण स्वभाव, शूद्र वर्ण, क्रूर एवं मध्य संतान वाली है। इसका प्राकृतिक स्वभाव विचारशील, शान्तचित्त, धर्मवीर और नवीन बातों का आविष्कारक है। इससे पेट की भीतरी भागों का विचार किया जाता है।

१२ मीन(गुरु)

द्विस्वभाव, स्त्री जाति, कफ प्रकृति, जलतत्व, रात्रिबली, विप्रवर्ण, उत्तरदिशा की स्वामिनी और पिंगल वर्ण है। इसका प्राकृतिक स्वभाव उत्तम, दयालु और दानशील है। यह सम्पूर्ण जलराशि है। इससे पैरों का विचार किया जाता है।

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