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: हल्दी का पानी

हल्दी एक ऐसी चीज है, जो घर-घर में इस्तेमाल में आती है, मगर खानपान के अलावा हल्दी को पानी में मिलाकर पीने के भी बहुत से फायदे हैं। यहां हम आपको इसे तैयार करने की विधि के साथ इसके फायदों के बारे में बता रहे हैं।

हल्दी वाला पानी बनाने के लिए आवश्यक चीजें

एक नींबू ले लें और इसे दो भागों में बांट दें।चम्मच का एक चैथाई नमक लें।पानी गर्म करके इसे एक गिलास में भर लें।थोड़ा शहद भी रख लें।एक चम्मच हल्दी भी रखें।

ऐसे बनाएं हल्दी वाला पानी

गिलास में गर्म पानी डालें और इसमें थोड़ी हल्दी मिलाकर आधा नींबू भी निचोड़ दें।इसे अच्छी तरह से मिलाकर इसमें थोड़ा शहद मिला दें।पीते वक्त चम्मच से इसे चला दें, ताकि नीचे बैठी हल्दी मिल जाये।

हल्दी वाला पानी पीने से मिलेंगे ये लाभ

भोजन आसानी से पचेगा।पेट की बीमारियां दूर ही रहेंगी।यह खून को जमने नहीं देता, जिससे दिल स्वस्थ रहता है।शरीर से जहरीले पदार्थों को बाहर करके शरीर पर बढ़ती उम्र का असर नहीं दिखने देता है।याददाश्त अच्छी रहती है। अल्जाइमर और डिमेंशिया जैसी बीमारियों को दूर रहती हैं।शरीर में किसी भी जगह की सूजन को हल्दी में मौजूद करक्यूकिन नामक रसायन कम कर देता है।जोड़ों के दर्द में भी यह बहुत आराम देता है।लीवर को यदि नुकसान पहुंचा हो तो यह विषैले तत्वों को दूर करके उसकी मरम्मत भी करता है।पित्ताशय में भी कोई दिक्कत हो तो हल्दी का पानी इसे ठीक करने में रामबाण साबित होता है।कैंसर को भी यह दूर रखता है, क्योंकि इसमें मौजूद करक्यूकिन नामक रसायन कैंसर को जन्म देने वाली कोशिकाओं पर भी प्रहार करता रहता है।
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मस्सा और तिल


मस्सा – शरीर में जब अनेक कोशिकाओं का सिरा एक स्थान पर मिलकर विकृत हो जाती है तो वहां एक छोटा सा कठोर मांस सदृश जान पड़ता है । यह स्वंम दर्द बिहीन होता है लेकिन उसे काटने से काफी रक्तश्राव होता है जो बाद में फिर बढ़ कर पूर्ववत हो जाती है यही मस्सा हैओ

तिल – तिल त्वचा पे एक काली या लाल बिंदु सी आकृति की रचना होती है ।

चिकित्सा – पलास क्षार और अपामार्ग क्षार एक साथ मिलाकर सेवन करने से शरीर के किसी भी भाग के बढे हुए कठिन माँस ( अग्र माँस ) ठीक हो जाती है । अग्र माँस यानी जो अतिरिक्त माँस जान पड़े , देखते ही जिसे काट कर अलग कर देना उचित जान पड़े ।

2- व्रण राक्षस तेल नित्य दिन में तीन से चार बार लगाएं ।

3-सेम की फली को मस्से पर घिसे । फिर पानी मे दूर फेक दे कुछ दिनों में सेम की फली पानी मे गल जाएगी तो मस्सा भी धीरे धीरे खत्म हो जाएगा ।

4- अरंड के पत्ते चूने के साथ पीस कर लेप करने से कुछ दिनों में मस्से नष्ट हो जाते है ।

5- तूतिया का गाढा घोल मस्से पर नित्य लगाए ।

6- पान के डंठल से चूना नित्य मस्से पर लगाये ।

7- एक धागा ले और उसमें उतनी ही गांठे लगाए जितने मस्से हो और प्रत्येक गांठ से एक मस्से से छुआएं यानी एक गांठ एक मस्सा दूसरी गांठ दूसरे मस्से से छुआएं फिर उसे एकांत स्थान में जाकर गाड़ दे या पानी मे फेंक दे । गाड़ते समय या पानी मे फेकते समय बोल दे कि *तू ही इस बला से छुडा दे * जब तक धागा या सुतली गलेगी तब तक मस्से ठीक हो जायेगे
[सभी बीमारियों का काल है यह चूर्ण, खा लिया तो हो जाएगा कायाकल्प, जीवनभर निरोग रहने का सबसे आसान उपाय |

चूर्ण के फायदे और लाभ
अक्सर आप लोगों ने देखा होगा बहुत से लोगों को सर्दी, खांसी, जुखाम यह समस्याएं उन लोगों को ज्यादा होते हैं जिनका इम्यूनिटी सिस्टम कमजोर होता है। ऐसे लोग ज्यादातर बीमारियों की चपेट में बने ही रहते हैं। ऐसे में यदि आप चूर्ण का सेवन करते हैं तो आपको इन सभी समस्याओं से छुटकारा तो मिलेगा ही साथ ही आपको आगे चलकर जल्दी कोई बीमारी नहीं होगी। आइये जानें चूर्ण के फायदे लाभ और उपयोग।

शरीर के सभी रोगों को दूर करेगा यह चूर्ण

जो लोग अक्सर बीमारियों की चपेट में बने ही रहते हैं उन लोगों को दवाई का सेवन न करके अपनी इम्युनिटी को मजबूत बनाने में ध्यान देना चाहिए क्योंकि इम्यूनिटी सिस्टम मजबूत होने से आपको सर्दी, खासी के अलावा और भी बहुत सारी बीमारियों से बचाव होता है इसीलिए आज हम आपको एक ऐसे चूर्ण के बारे में बताने जा रहे हैं जिससे आप अपने इम्यूनिटी सिस्टम को मजबूत बना सकते हैं। चलिए जानते हैं इस चूर्ण के बारे में।

इस चूर्ण को बनाने के लिए आपको निम्नलिखित सामग्री की जरूरत पड़ेगी।

सामग्री
पुनर्नवा-50 ग्राम
हल्दी-30 ग्राम
गिलोय पाउडर-50 ग्राम
नीम के पत्ते-30 ग्राम

इसको बनाने की विधि
इन सभी औषधियों को आपस में अच्छी तरह मिलाकर मिक्सी या पत्थर पर अच्छी तरह पीस लें। इसने के बाद इस औषधि को किसी कांच के जार में भरकर रख ले।

औषधि लेने का तरीका
सुबह खाली पेट खाना खाने से पहले एक चम्मच चूर्ण का गुनगुने पानी के साथ सेवन करें। इस चूर्ण का इस्तेमाल आप को दिन में केवल दो ही बार करना है।

औषधि के फायदे
इस चूर्ण के नियम इस्तेमाल के बाद आपके शरीर की काया पलट हो जाएगी। आप जो भी खाएंगे आपके शरीर में लगेगा और अच्छे से पचेगा और बहुत सारी बीमारियों से बचाव भी करता है यह चूर्ण।

अशुभ जन्म समय जिनके उपाय करने जरूरी है।

हम जैसा कर्म करते हैं उसी के अनुरूप हमें ईश्वर सुख दु:ख देता है। सुख दु:ख का निर्घारण ईश्वर कुण्डली में ग्रहों स्थिति के आधार पर करता है। जिस व्यक्ति का जन्म शुभ समय में होता है उसे जीवन में अच्छे फल मिलते हैं और जिनका अशुभ समय में उसे कटु फल मिलते हैं। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार यह शुभ समय क्या है और अशुभ समय किसे कहते हैं

अमावस्या में जन्म

ज्योतिष शास्त्र में अमावस्या को दर्श के नाम से भी जाना जाता है। इस तिथि में जन्म माता पिता की आर्थिक स्थिति पर बुरा प्रभाव डालता है। जो व्यक्ति अमावस्या तिथि में जन्म लेते हैं उन्हें जीवन में आर्थिक तंगी का सामना करना होता है। इन्हें यश और मान सम्मान पाने के लिए काफी प्रयास करना होता है।

अमावस्या तिथि में भी जिस व्यक्ति का जन्म पूर्ण चन्द्र रहित अमावस्या में होता है वह अधिक अशुभ माना जाता है। इस अशुभ प्रभाव को कम करने के लिए घी का छाया पात्र दान करना चाहिए, रूद्राभिषेक और सूर्य एवं चन्द्र की शांति कराने से भी इस तिथि में जन्म के अशुभ प्रभाव को कम किया जा सकता है।

संक्रान्ति में जन्म

संक्रान्ति के समय भी संतान का जन्म अशुभ माना जाता है। इस समय जिस बालक का जन्म होता है उनके लिए शुभ स्थिति नहीं रहती है। संक्रान्ति के भी कई प्रकार होते हैं जैसे रविवार के संक्रान्ति को होरा कहते हैं, सोमवार को ध्वांक्षी, मंगलवार को महोदरी, बुधवार को मन्दा, गुरूवार को मन्दाकिनी, शुक्रवार को मिश्रा व शनिवार की संक्रान्ति राक्षसी कहलाती है।

अलग अलग संक्रान्ति में जन्म का प्रभाव भी अलग होता है। जिस व्यक्ति का जन्म संक्रान्ति तिथि को हुआ है उन्हें ब्राह्मणों को गाय और स्वर्ण का दान देना चाहिए इससे अशुभ प्रभाव में कमी आती है। रूद्राभिषेक एवं छाया पात्र दान से भी संक्रान्ति काल में जन्म का अशुभ प्रभाव कम होता है।

भद्रा काल में जन्म

जिस व्यक्ति का जन्म भद्रा में होता है उनके जीवन में परेशानी और कठिनाईयां एक के बाद एक आती रहती है। जीवन में खुशहाली और परेशानी से बचने के लिए इस तिथि के जातक को सूर्य सूक्त, पुरूष सूक्त, रूद्राभिषेक करना चाहिए। पीपल वृक्ष की पूजा एवं शान्ति पाठ करने से भी इनकी स्थिति में सुधार होता है।

कृष्ण चतुर्दशी में जन्म

पराशर महोदय कृष्ण चतुर्दशी तिथि को छ: भागों में बांट कर उस काल में जन्म लेने वाले व्यक्ति के विषय में अलग अलग फल बताते हैं। इसके अनुसार प्रथम भाग में जन्म शुभ होता है परंतु दूसरे भाग में जन्म लेने पर पिता के लिए अशुभ होता है, तृतीय भाग में जन्म होने पर मां को अशुभता का परिणाम भुगतना होता है, चौथे भाग में जन्म होने पर मामा पर संकट आता है, पांचवें भाग में जन्म लेने पर वंश के लिए अशुभ होता है एवं छठे भाग में जन्म लेने पर धन एवं स्वयं के लिए अहितकारी होता है।

कृष्ण चतुर्दशी में संतान जन्म होने पर अशु प्रभाव को कम करने के लिए माता पिता और जातक का अभिषेक करना चाहिए साथ ही ब्राह्मण भोजन एवं छाया पात्र दान देना चाहिए।

समान जन्म नक्षत्र

ज्योतिषशास्त्र के नियमानुसार अगर परिवार में पिता और पुत्र का, माता और पुत्री का अथवा दो भाई और दो बहनों का जन्म नक्षत्र एक होता है तब दोनो में जिनकी कुण्डली में ग्रहों की स्थिति कमज़ोर रहती है उन्हें जीवन में अत्यंत कष्ट का सामना करना होता है।
इस स्थिति में नवग्रह पूजन, नक्षत्र देवता की पूजा, ब्राह्मणों को भोजन एवं दान देने से अशुभ प्रभाव में कमी आती है।

सूर्य और चन्द्र ग्रहण में जन्म

सूर्य और चन्द्र ग्रहण को शास्त्रों में अशुभ समय कहा गया है। इस समय जिस व्यक्ति का जन्म होता है उन्हें शारीरिक और मानसिक कष्ट का सामना करना होता है। इन्हें अर्थिक परेशानियों का सामना करना होता है।

सूर्य ग्रहण में जन्म लेने वाले के लिए मृत्यु की संभवना भी रहती है। इस दोष के निवारण के लिए नक्षत्र स्वामी की पूजा करनी चाहिए। सूर्य व चन्द्र ग्रहण में जन्म दोष की शांति के लिए सूर्य, चन्द्र और राहु की पूजा भी कल्यणकारी होती है।

सर्पशीर्ष में जन्म

अमावस्या तिथि में जब अनुराधा नक्षत्र का तृतीय व चतुर्थ चरण होता है तो सर्पशीर्ष कहलाता है। सार्पशीर्ष को अशुभ समय माना जाता है। इसमें कोई भी शुभ काम नहीं होता है। सार्पशीर्ष मे शिशु का जन्म दोष पूर्ण माना जाता है।

जो शिशु इसमें जन्म लेता है उन्हें इस योग का अशुभ प्रभाव भोगना होता है। इस योग में शिशु का जन्म होने पर रूद्राभिषेक कराना चाहिए और ब्रह्मणों को भोजन एवं दान देना चाहिए इससे दोष के प्रभाव में कमी आती है।

गण्डान्त योग में जन्म

गण्डान्त योग को संतान जन्म के लिए अशुभ समय कहा गया है। इस समय संतान जन्म लेती है तो गण्डान्त शान्ति कराने के बाद ही पिता को शिशु का मुख देखना चाहिए। पराशर महोदय के अनुसार तिथि गण्ड में बैल का दान, नक्षत्र गण्ड में गाय का दान और लग्न गण्ड में स्वर्ण का दान करने से दोष मिटता है।

संतान का जन्म अगर गण्डान्त पूर्व में हुआ है तो पिता और शिशु का अभिषेक करने से और गण्डान्त के अतिम भाग में जन्म लेने पर माता एवं शिशु का अभिषेक कराने से दोष कटता है।

त्रिखल दोष में जन्म

जब तीन पुत्री के बाद पुत्र का जन्म होता है अथवा तीन पुत्र के बाद पुत्री का जन्म होता है तब त्रिखल दोष लगता है। इस दोष में माता पक्ष और पिता पक्ष दोनों को अशुभता का परिणाम भुगतना पड़ता है। इस दोष के अशुभ प्रभाव से बचने के लिए माता पिता को दोष शांति का उपाय करना चाहिए।

मूल में जन्म दोष

मूल नक्षत्र में जन्म अत्यंत अशुभ माना जाता है। मूल के प्रथम चरण में पिता को दोष लगता है, दूसरे चरण में माता को, तीसरे चरण में धन और अर्थ का नुकसान होता है। इस नक्षत्र में जन्म लेने पर 1 वर्ष के अंदर पिता की, 2 वर्ष के अंदर माता की मृत्यु हो सकती है। 3 वर्ष के अंदर धन की हानि होती है।

इस नक्षत्र में जन्म लेने पर 1वर्ष के अंदर जातक की भी मृत्यु की संभावना रहती है। इस अशुभ स्थित का उपाय यह है कि मास या वर्ष के भीतर जब भी मूल नक्षत्र पड़े मूल शान्ति करा देनी चाहिए। अपवाद स्वरूप मूल का चौथ चरण जन्म लेने वाले व्यक्ति के स्वयं के लिए शुभ होता है।

अन्य दोष

ज्योतिषशास्त्र में इन दोषों के अलावा कई अन्य योग और हैं जिनमें जन्म होने पर अशुभ माना जाता है इनमें से कुछ हैं यमघण्ट योग, वैधृति या व्यतिपात योग एव दग्धादि योग हें। इन योगों में अगर जन्म होता है तो इसकी शांति अवश्य करानी चाहिए।
[शनि मंदिर मुरैना

शनिश्चरा मंदिर मुरैना की कथा
🔸🔸🔹🔸🔸🔹🔸🔸
सूर्य पुत्र शनिदेन सभी लोगो को उनके कर्मो के आधार पर सजा देते है, और उनके क्रोध और कुदृष्टि से सभी को भय होता है ! भारत मे शनिदेव के अनेक मन्दिर है,और इन मंदिरो मे सबसे प्राचिन मंदिर माना जाता है, शनिश्चरा मंदिर ” जो मध्य प्रदेश के मुरैना मे स्थित है !

ये मंदिर त्रेतायुग का माना जाता है, जो पुरे भारत मे प्रसिद्ध है और ऐसा माना जाता है की शनिदेव की यह प्रतिमा आसमान से टुट कर गिरी एक उल्का पिण्ड से बनी है ! शनिदेव का यह मंदिर अदभुत और प्रभावशाली है,तथा दुनिया भर से यहां लोग शनिदेव के दर्शन के लिए आते है ! यहां की एक अनोखी परम्परा है ,की शनिदेव की मंदिर मे भक्त शनिदेव की प्रतिमा मे तेल चढाने के बाद उनके गले मिलते है !

ऐसा माना जाता है की ऐसा एक भक्त अपने सभी दुख दर्द शनिदेव के साथ बांटते है ! इसके बाद भक्त घर जाने से पुर्व अपने धारण किये हुए वस्त्र,धोती,जुते,चप्पल मंदिर मे ही छोड जाते है !येसा करने से भक्त को उनके सभी पापो और दरिद्रताओं से मुक्ति मिलती है ! हर शनिचरी अमावश्या को यहां बहुत भिड होती है,और इस दिन यहां बहुत ही विशाल मेला लगता है, तथा लाखो लोग अपने कष्टो को दुर करने के लिए यहां आते है !

पौराणिक कथा के अनुसार रावण ने लंका मे शनिदेव को कैद कर रखा था,लंका जलाते समय हनुमान जी ने शनिदेव को रावण के कैद मे देखा, शनिदेव ने उन्हे इशारो मे निवेदन किया की अगर आप मुझे रावण की कैद से आजाद कर दो तो मै आपको रावण की लंका को नष्ट करने मे मदद करुंगा ! शनितेव रावण की कैद मे काफी दुर्बल हो चुके थे, हनुमान जी ने उन्हे सुरक्षित स्थान पर पहुंचाने के लिए उन्हे लंका से फेंका तब शनिदेव इस स्थान पर आकर प्रतिष्ठित हुए !यहां शनिदेव की असली प्रतिमा है ! महराष्ट्र की शिंगनापुर की प्रतिमा भी यही से लि गई है ! यह भी कहां जाता है की महाभारत युद्ध से पुर्व अर्जुन ने ब्रहाास्त्र पाने के लिए शनिदेव की यहा विधिवत पूजा अर्चना की थी ! इस मंदिर का निर्माण विक्रमादित्यने करवाया था,मराठो के शासन काल मे सिंधिया शासको ने इसका जिर्णोद्धार किया !

पौराणिक शास्त्रो के अनुसार शनि न्याय के देवता एवंभगवान सूर्य के पुत्र है ! शनि को किस्मत चमकाने वाला देवता भी कहा जाता है, शनिदेव मनुष्य के अच्छे कर्मो से प्रसन्न होते है !यही कारण है की उन्हे भाग्य विधाता भी कहां जाता है !

ऐसे भगवान शनिदेव के दस कल्याणकारी नामो का निरन्तर जाप करने से मनुष्य का कल्याण होता है .ज्सोतिष शास्त्रो के अनुसार शनि शुभ होने पर अपार सुख और समृद्धि देते है,

शनि के पवित्र कल्याणकारी नाम :–
१- कोणस्थ
२- पिंगल
३- कृष्ण
४- बभ्रु
५- रौद्रान्तक
६- यम
७- सौरी
८- शनैश्चर
९- मन्द
१०- पिप्पलाश्रय.

ऊँ शं शनैश्चराय नमः
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शनिश्चरा मंदिर मुरैना की कथा
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सूर्य पुत्र शनिदेन सभी लोगो को उनके कर्मो के आधार पर सजा देते है, और उनके क्रोध और कुदृष्टि से सभी को भय होता है ! भारत मे शनिदेव के अनेक मन्दिर है,और इन मंदिरो मे सबसे प्राचिन मंदिर माना जाता है, शनिश्चरा मंदिर ” जो मध्य प्रदेश के मुरैना मे स्थित है !

ये मंदिर त्रेतायुग का माना जाता है, जो पुरे भारत मे प्रसिद्ध है और ऐसा माना जाता है की शनिदेव की यह प्रतिमा आसमान से टुट कर गिरी एक उल्का पिण्ड से बनी है ! शनिदेव का यह मंदिर अदभुत और प्रभावशाली है,तथा दुनिया भर से यहां लोग शनिदेव के दर्शन के लिए आते है ! यहां की एक अनोखी परम्परा है ,की शनिदेव की मंदिर मे भक्त शनिदेव की प्रतिमा मे तेल चढाने के बाद उनके गले मिलते है !

ऐसा माना जाता है की ऐसा एक भक्त अपने सभी दुख दर्द शनिदेव के साथ बांटते है ! इसके बाद भक्त घर जाने से पुर्व अपने धारण किये हुए वस्त्र,धोती,जुते,चप्पल मंदिर मे ही छोड जाते है !येसा करने से भक्त को उनके सभी पापो और दरिद्रताओं से मुक्ति मिलती है ! हर शनिचरी अमावश्या को यहां बहुत भिड होती है,और इस दिन यहां बहुत ही विशाल मेला लगता है, तथा लाखो लोग अपने कष्टो को दुर करने के लिए यहां आते है !

पौराणिक कथा के अनुसार रावण ने लंका मे शनिदेव को कैद कर रखा था,लंका जलाते समय हनुमान जी ने शनिदेव को रावण के कैद मे देखा, शनिदेव ने उन्हे इशारो मे निवेदन किया की अगर आप मुझे रावण की कैद से आजाद कर दो तो मै आपको रावण की लंका को नष्ट करने मे मदद करुंगा ! शनितेव रावण की कैद मे काफी दुर्बल हो चुके थे, हनुमान जी ने उन्हे सुरक्षित स्थान पर पहुंचाने के लिए उन्हे लंका से फेंका तब शनिदेव इस स्थान पर आकर प्रतिष्ठित हुए !यहां शनिदेव की असली प्रतिमा है ! महराष्ट्र की शिंगनापुर की प्रतिमा भी यही से लि गई है ! यह भी कहां जाता है की महाभारत युद्ध से पुर्व अर्जुन ने ब्रहाास्त्र पाने के लिए शनिदेव की यहा विधिवत पूजा अर्चना की थी ! इस मंदिर का निर्माण विक्रमादित्यने करवाया था,मराठो के शासन काल मे सिंधिया शासको ने इसका जिर्णोद्धार किया !

पौराणिक शास्त्रो के अनुसार शनि न्याय के देवता एवंभगवान सूर्य के पुत्र है ! शनि को किस्मत चमकाने वाला देवता भी कहा जाता है, शनिदेव मनुष्य के अच्छे कर्मो से प्रसन्न होते है !यही कारण है की उन्हे भाग्य विधाता भी कहां जाता है !

ऐसे भगवान शनिदेव के दस कल्याणकारी नामो का निरन्तर जाप करने से मनुष्य का कल्याण होता है .ज्सोतिष शास्त्रो के अनुसार शनि शुभ होने पर अपार सुख और समृद्धि देते है,

शनि के पवित्र कल्याणकारी नाम :–
१- कोणस्थ
२- पिंगल
३- कृष्ण
४- बभ्रु
५- रौद्रान्तक
६- यम
७- सौरी
८- शनैश्चर
९- मन्द
१०- पिप्पलाश्रय.

ऊँ शं शनैश्चराय नमः
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कब्ज के सरल और प्रभावी घरेलू इलाज : SOME SIMPLE & EFFECTIVE HOME REMEDIES FOR CONSTIPATION :

प्रिय मित्रो,
कब्ज़ एक गंभीर समस्या है, पर उतना ही आसान इसका हल है. हमें दर्जनों सन्देश मिले कि आप ‘कब्ज़’ के ऊपर लिखें. बहुत टेलीफोन भी आये. पिछले दो सप्ताह में हमने कई लेख इस पर पोस्ट किये हैं. \हालाँकि, इन पर इतनी उत्साहजनक प्रतिक्रिया नहीं मिली, पर चलिए, हमने तो अपना कर्तव्य पूरा किया. उसे पढ़ने, शेयर करने, अपनी राय देने और लाभ उठाने कि जिम्मेदारी आपकी है.

★कब्ज का घरेलू इलाज :
1 बच्चों में कब्ज के लिए बड़ी हरड़ को पानी में घिसकर दो चम्मच पिलाएं। इसमें चीनी भी मिला सकते हैं।
2 बच्चों की गुदा में थोड़ा सा सरसों या नारियल का तेल लगाने से उनकी कब्ज खुल जाती है।
3 बड़ों को सनाय के पत्ते, सौंफ, छोटी हरड़, काला नमक व पिपली बराबर मात्रा में मिलाकर
4 एक चम्मच के बराबर फंकी रात में गुनगुने पानी से लें।
5 छोटी हरड़ का चूर्ण तीन से पांच ग्राम तक रात को पानी से लें। बहुत ज्यादा कब्ज हो तो एक बार दिन में भी ले सकते हैं।
6 रात को सोते वक्त एक चम्मच आंवला चूर्ण गुनगुने पानी से लें।
7 रात को सोते वक्त एक चम्मच त्रिफला (हरड़, बहेड़ा व आंवला का मिक्स) चूर्ण गुनगुने पानी से लें।
8 सुबह उठकर खाली पेट गुनगुना पानी पीएं।
9 खाना खाने के बाद एक कप गरम पानी पीएं।
10 रात को सोते समय गरम दूध लें। सदिर्यों में इसमें बादाम रोग डाल लें।
11 दूध में दो-चार मुनक्के के दाने उबालकर रात को लें।
12 ईसबगोल की भूसी पानी के साथ फंकी लें।
13 पूरी नींद लें।
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आप का आज का दिन मंगलमयी हो – आप स्वस्थ रहे, सुखी रहे – इस कामना के साथ।


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पेचिश रोग की जानकारी – कुछ घरेलू निदान – Dysentery – SOME HOME REMEDIES :

पेचिश (Dysentery) या प्रवाहिका, पाचन तंत्र का रोग है, जिसमें गम्भीर अतिसार (डायरिया) की शिकायत होती है और मल में रक्त एवं श्लेष्मा (mucus) आता है। यदि इसकी चिकित्सा नहीं की गयी, तो यह जानलेवा भी हो सकता है।
पेचिश बडी आंत का रोग है। इस रोग में बार-बार, लेकिन थोडी मात्रा में मल होता है। बडी आंत में सूजन और घाव हो जाते हैं। दस्त होते समय, पेट में मरोड के साथ कष्ट होता है। दस्त पतला मद्धम रंग का होता है। दस्त में आंव और रक्त भी मिले हुए हो सकते हैं। रोग की बढी हुई स्थिति में रोगी को ज्वर भी आता है और शरीर में पानी की कमी(डिहाईड्रेशन) हो जाती है।
चूंकि इस रोग में शरीर में पानी की कमी हो जाने से अन्य कई व्याधियां पैदा हो सकती हैं, अत: सबसे ज्यादा महत्व की बात यह है, कि रोगी पर्याप्त जल पीता रहे। यह संक्रामक रोग है और परिवार के अन्य लोगों को भी अपनी चपेट में ले सकता है। बीमारी ज्यादा लंबी चलती रहने पर (क्रोनिक डिसेन्टरी) शरीर का सामान्य स्वास्थ्य बुरी तरह प्रभावित होता है. कभी कब्ज हो जाती है, तो कभी पतले दस्त होने लगते हैं। दस्त में सडांध और दुर्गध होती है। ज्वर १०४ से १०५ फ़ारेनहीट तक पहुंच सकता है।

इस रोग का निम्न वर्णित घरेलू पदार्थों की होम रेमेडीज से निरापद ,सफ़ल उपचार किया जा सकता है-
१) दो चम्मच धनिया पीसकर एक कप पानी में ऊबालें। यह काढा मामूली गरम हालत में पीयें. ऐसा दिन में तीन बार करना चाहिये। कुछ ही दिनो में पेचिश ठीक होगी।
२) अनार के सूखे छिलके दूध में ऊबालें। जब तीसरा भाग रह जाए, तो उतार कर पी लें। यह उपचार दिन में तीन बार प्रयोग करने से पेचिश से छुटकारा मिलता है।
३) हरा धनिया और शकर धीरे-धीरे चबाकर खाएं। पेचिश में फ़ायदा होता है।
४) खट्टी छाछ में बिल्व फ़ल (बिल्ले) का गूदा मसलकर अच्छी तरह मिला दें। यह मिश्रण कुछ दिनों तक प्रयोग करने से पुरानी पेचिश में भी लाभ देखने में आया है।
५) अदरक का रस 10 ग्राम , गरम पानी में मिलाएं। इसमें एक चम्मच अरंडी का तेल मिलाकर पी जाएं। कुछ रोज में पेचिश ठीक होगी।
६) कम दवाब पर एनिमा दिन में 2-3 बार लेना लाभकारी है। इससे बडी आंत के विषैले पदार्थ का निष्कासन होता है।
७) तेज मसालेदार भोजन पदार्थ बिल्कुल न लें।
८) पेट पर गरम पानी की थेली रखने से रोग में लाभ होता है।
९) तरल भोजन लेना उपकारी है। कठोर भोजन पदार्थ शने-शने प्रारंभ करना चाहिये।
१०) मूंग की दाल और चावल की बनी खिचडी परम उपकारी भोजन है। इसे दही के साथ खाने से पेचिश शीघ्र नियंत्रित होती है।
११) एक चम्मच मैथी के बीजों का पावडर एक कटोरी दही में मिलाकर सेवन करें। दिन में तीन बार कुछ दिन लेने से पेचिश का निवारण होता है।
१२) कच्चे बिल्व फ़ल का गूदा निकालें इसमें गुड या शहद मिलाकर सेवन करने से कुछ ही दिनों में पेचिश रोग दूर होता है।
१३) 3-4 निंबू का रस एक गिलास पानी में ऊबालें । इसे खाली पेट पीना चाहिये। पेचिश का सफ़ल उपचार है।
१४) 250 ग्राम सौंफ़ के दो भाग करें। एक भाग सौंफ़ को तवे पर भून लें। दोनों भाग आपस में मिला दें। 250 ग्राम शकर को मिक्सर में पावडर बनालें। सौंफ़ और शकर पावडर मिलाकर शीशी में भर लें । यह मिश्रण 2 चम्मच दिन में 3-4 बार लेने से पेचिश में उपकार होता है।
१५) इसबगोल की भूसी 2 चम्मच एक गिलास दही में मिलाएं। इसमे भूना हुआ जीरा मिलाकर सेवन करना पेचिश रोग में अत्यंत हितकर सिद्ध होता है।
१६) दो भाग हरड और एक भाग लींडी पीपल लेकर मिलाकर पावडर बनालें। २-३ ग्राम पावडर भोजन उपरांत पानी के साथ लें। पेचिश की बढिया दवा है।
१७) दो केले 150 ग्राम दही में मिलाकर दिन में दो बार कुछ रोज लेने से पेचिश रोग नष्ट हो जाता है।
१८) अनार का रस अमीबिक डिसेन्ट्री याने आंव वाली पेचिश में फ़ायदेमंद माना गया है।

चेतावनी : यह घरेलू उपचार हैं. कोई भी उपचार स्वयं शुरू करने से पहले हमेशा किसी डाक्टर/वैद्य आदि की सलाह ले लेनी चाहिए, ताकि क्या रोग है, सही से पता लग सके. कई बार व्यक्ति के शरीर में कोई गम्भीर रोग हो, तो ऐसे अपने-आप इलाज के चककर में पता भी नहीं लग पाता.
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आप का आज का दिन मंगलमयी हो – आप स्वस्थ रहे, सुखी रहे – इस कामना के साथ।


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[कुण्डली में दशम भाव – पिता, कर्म व्यापार कर्म, व्यवसाय, उच्च नौकरी, विश्वविख्याति का कारक भाव – रत्न और उपाय – 10th HOUSE IN HOROSCOPE (KUNDALI) – INDICATOR OF CAREER, Or PROFESSION, FATHER, FAME & MANY OTHER THINGS :

  1. दशम भाव कुंडली के केंद्र भावों में से एक केंद्र स्थान है. यह अन्य दो केन्द्रों (चतुर्थ तथा सप्तम भाव) से अधिक बली भाव है. इस भाव से कर्म, व्यवसाय, व राज्य का विचार किया जाता है. इनके अतिरिक्त सम्मान, पद-प्राप्ति, आज्ञा, अधिकार, यश, ऐश्वर्य, कीर्ति, अवनति, अपयश, राजपद, राजकीय सम्मान, नेतृत्व, आदि का विचार भी इसी भाव से किया जाता है. जहाँ कुछ ज्योतिषी दशम भाव से पिता का विचार करते हैं, वहीँ कुछ नवम भाव से. उस हिसाब से नवम स्थान (पिता) से द्वितीय (धन तथा मारक) होने के कारण यह भाव पिता के धन का है तथा पिता के लिए एक मारक भाव भी होता है.
    हमारे विचार में चतुर्थ भाव से माता और उससे सप्तम, यानि कि दशम से पिता का विचार करना अधिक तर्कसँगत लगता है, और अधिकतर कुण्डलियों में पिता की स्थिति दशम भाव से सही स्पष्ट भी होती है. परन्तु, यह भी बहुत मामलों में देखा है, कि व्यक्ति कि उन्नति और पिता का कुछ बुरा, लगभग एक ही समय होते हैं, जिससे इसके पिता के मारक होने के तर्क को बल मिलता है. इसमें और शोध की आवश्यकता है, जिसे हम कर रहे हैं.
    सप्तम भाव (जीवनसाथी) से चतुर्थ (माता) होने के कारण, यह भाव जीवनसाथी की माँ अर्थात सास का प्रतीक भी है. यह एक उपचय (वृद्धिकारक) भाव भी है.
  2. दशम भाव में सूर्य बहुत बलवान व राजयोग कारक माना गया है. जीवन में उन्नति गौरव, आचरण, सफलता, आकांशा, उत्तरदायित्व का विचार भी दशम भाव से किया जाता है. यह एक शुभ केंद्र भाव है, इसलिए जब शुभ ग्रह इस भाव का स्वामी बनता है, तो उसे केन्द्राधिपत्य दोष लगता है. इस भाव के कारक ग्रह सूर्य, गुरु, बुध व शनि हैं.
    वैसे मङ्गल और शनि भी दशम में बहुत लाभकारी और व्यवसाय में ऊंचाइयों तक पहुँचाने वाले होते हैं.
  3. नौकरी, या व्यापार ?
    दशमेश और दशम भाव के कमजोर होने से जातक के नौकरी के योग ही बनते है, सामान्य बली दशम भाव, दूसरा भाव और ग्यारहवा भाव नौकरी के अवसर ही प्रदान करता है। कुंडली का छठा भाव सेवा का होता है. यदि दशमेश का सम्बन्ध केवल छठे भाव या षष्ठेश से हो, तब भी नौकरी के योग ही बनते है. यदि कुंडली की रोजगार और धन संबंधी स्थितियां बली हो और व्यापार कारक, विशेष रूप से बुध बली भी हो, तब व्यापार की के योग भी बन जाते है. दशम भाव या दशमेश का सम्बन्ध सूर्य, मंगल या गुरु से होने पर सरकारी नौकरी के योग बनते है। इन ग्रहो के अतिरिक्त बुध, चंद्र, शुक्र आदि अन्य ग्रह प्राइवेट नौकरी देते है। पाप ग्रहो से पीड़ित दशमेश या दशम भाव जातक को नौकरी ही कराता है। कमजोर और पीड़ित दशमेश, दशम भाव के होने से जातक को नौकरी/व्यापार में असंतुष्टि रहती है – मेहनत अधिक और लाभ कम होता है. नवम भाव बलवान हो तब स्थितियां कुछ अनुकूल रहती है
  4. दशम भाव में स्थित विभिन्न ग्रहों का फल :
    सबसे पहले हम यह स्पष्ट कर दें, कि जहाँ अधिकतर ज्योतिषी दशम भाव में स्थित ग्रहों को अधिक महत्व देते हैं, वहीँ हम अपने अनुभव से दशमेश की स्थिति को अधिक महत्व देते हैं.
    दशमेश नवांश कुंडली में जिस ग्रह की राशि में होता है उसी ग्रह के कारकत्व अनुरूप व्यवसाय व्यक्ति के लिए लाभदायक होता है।
    जन्म कुंडली के दसवें घर को राजनीति का घर भी कहते हैं। सत्ता में भाग लेने के लिए दशमेश और दशम भाव का मजबूत स्थिति में होना आवश्यक है। दशम भाव में उच्च मूल त्रिकोण या स्वराशिस्थ ग्रह के बैठने से व्यक्ति को राजनीति के क्षेत्र में बल मिलता है।
    यदि सूर्य बलवान होकर दशम भाव में स्थित हो तो व्यक्ति प्रतापी, राजमान्य, उच्च पदस्थ अधिकारी, सरकारी नौकरी में कार्यरत, मंत्री आदि पद पर कार्य करने वाला होता है|
    यदि चंद्रमा बलवान होकर दशम भाव में हो तो व्यक्ति औषधि, जल, कला, जन-सेवा, जल सेना, मत्स्यपालन, कृषि, खेती, भोजनालय, देखरेख संबंधी कार्य (नर्स, केयर-टेकर आदि) जल व सिंचाई विभाग आदि क्षेत्रों में कार्य करता है.
    यदि मंगल बलवान होकर दशम भाव में हो तो व्यक्ति सेना, पुलिस, कसाईखाना, बुचडखाना, नाई, सुनार, इलेक्ट्रीशियन, बिजली विभाग, खिलाड़ी, पहलवानी, रसोइया, जमीन-जायदाद आदि से संबंधित कार्य करता है.
    दशम भाव में स्थित बुध व्यक्ति को न्यायप्रिय और नीतिनिपुण, विवेकवान. गुणवान और सत्यवादी बनता है. उसमें धैर्य और विनम्रता भी होती है. यदि बुध बलवान होकर दशम भाव में हो तो व्यक्ति गणितज्ञ, शिक्षण, संचार, पत्रकारिता, डाक-तार विभाग, एकाउंट्स, मुनीम, क्लर्क आदि से संबंधित कार्य करता है.
    यदि गुरु बलवान होकर दशम भाव में हो तो व्यक्ति, मंत्री, पुरोहित, मठाधीश, धार्मिक विषयों का प्रवचनकर्ता, शिक्षण व उच्च पदस्थ अधिकारी आदि के रूप में कार्य करता है.
    यदि शुक्र बलवान होकर दशम भाव में हो तो व्यक्ति मंत्री, कला, संगीत, नृत्य, सिनेमा, फैशन जगत, कलाकार, डिजाइनर, कॉस्मेटिक, कपड़े, आभूषण, सौन्दर्यता प्रधान वस्तुएं आदि से संबंधित कार्य करता है.
    यदि शनि बलवान होकर दशम भाव में हो तो व्यक्ति कारखाने का मालिक, लोहे से संबंधित कार्य, नेता, चमड़ा उद्योग, नौकर, श्रमिक, न्यायालय, पुरातत्ववेता, गंभीर शोधकर्ता, सन्यासी, गूढ़ विद्याओं से संबंधित कार्य आदि काम करता है. हमारा अनुभव है, कि दशम में स्थित शनि सरकारी सेवा में और बलि हो तो उच्चाधिकारी भी बनता है.
    यदि राहु-केतु बलवान होकर दशम भाव में हो तो व्यक्ति विदेशी स्रोतों से लाभ कमाने वाला, विदेशी भाषाओँ का ज्ञाता, कंप्यूटर, लैब तकनीशियन, कथावाचक, पुरोहित, आदि क्षेत्रों में कार्य करने वाला होता है.

कुण्डली में दशमेश की स्थिति, दशमांश के स्वामी की दशमांश, नवमांश और लग्न कुण्डली में स्थिति के ऊपर भी बहुत कुछ निर्भर होता है. इन सबका विवेचन एक लेख में संभव नहीं है. कभी अन्य लेख में करेंगे.

  1. रत्न और उपाय :
    अधिकतर मामलों में दशमेश ग्रह शत्रु का काम करता है, पर कुछ लग्नों में दशमेश मित्र, अथवा योगकारक ग्रह भी होता है. लग्नेश से उसकी मित्रता, अथवा शत्रुता के आधार पर रत्न, अथवा उपाय बताये जाते हैं. एक ही फॉर्मूला नहीं बताया जा सकता. जन्म कुण्डली का विस्तृत विश्लेषण ही मार्गदर्शन कर सकता है.
    अधिकतर मामलों में लोग दशमेश का रत्न पहना देते हैं, जैसे मेष में नीलम, सिंह में हीरा/ओपल, तुला में मोती, धनु में पन्ना, कुम्भ में मूंगा. पर, यह सभी लाभ की जगह हानि ही करते हैं. ऐसे सभी मामलों में हमने यह रत्न उतारने के बाद व्यक्ति की मुश्किलें हल होती देखी हैं और नौकरी/व्यापार में इन रत्नों के कारण आ रही रुकावट दूर होती देखी हैं. अगर आपने इन लग्नों में दशमेश का रत्न पहना है, तो उतारकर देखें, आपको स्वयं ही अनुभव हो जायेगा, कि सही ज्योतिष कैसे काम करता है !
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    आप का आज का दिन मंगलमयी हो – आप स्वस्थ रहे, सुखी रहे – इस कामना के साथ।


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हाइपो/हाइपर – थायरायडिज्म – कारण, लक्षण – परहेज – आहार – आयुर्वेद, योग और प्राणायाम चिकित्सा – Difference Between Hyperthyroidism And Hypothyroidism – Causes, Symptoms, and Treatment
पिछले वर्षों में हाइपो- थायरायडिज्म के मामले तेजी से प्रकाश में आने लगे हैं. एक तो इसके बारे में आम लोगों को तो क्या, बहुत से डाक्टरों को भी इसके बारे में अभिज्ञता (Awareness) नहीं थी, या फिर ऐसे मामले कम होने के कारण ऐसे लक्षण होने पर भी उनका ध्यान इस ओर नहीं जाता था, दूसरे खान-पान ओर रहन-सहन में तेजी से बदलती आदतों से यह तेजी से बढ़ा भी है.

  1. क्या है हाइपो-थायरायडिज्‍म/हाइपर-थाइरॉइडिस्म :
    थाइराइड की स्थिति में या तो थाइराइड हार्मोन अधिक बनता है, जिसे हाइपर-थाइरॉइडिस्म कहा जाता है या कम होता है, जिसे हाइपो-थायरायडिज्‍म कहा जाता है। हाइपरथायरायडिज्‍म में यह ग्रंथि ज्यादा सक्रिय हो जाती है और थाइराइड हार्मोन (थाइरॉक्सिन) ज्यादा पैदा करने लग जाती है।

3.कारण :
इसोफ्लावोन गहन सोया प्रोटीन, कैप्सूल, और पाउडर के रूप में सोया उत्पादों का जरूरत से ज्यादा प्रयोग भी थायराइड होने के कारण हो सकते है।

  1. लक्षण :
    हाइपोथायराइड के लक्षणों में अनावश्यक वजन बढ़ना, आवाज भारी होना, थकान, अधिक नींद आना, गर्दन का दर्द, सिरदर्द, पेट का अफारा, भूख कम हो जाना, बच्चों में ऊँचाई की जगह चौड़ाई बढ़ना, चेहरे और आँखों पर सूजन रहना, ठंड का अधिक अनुभव करना, सूखी त्वचा, कब्जियत, जोड़ों में दर्द आदि लक्षणों को व्यक्ति तब अनुभव करता है, जब उसकी थायराइड ग्रंथि का थायरोक्सीन संप्रेरक (हार्मोन) कम बनने लगता है। यह समस्या स्त्री-पुरुषों में एक समान आती है, परंतु महिलाओं में अधिक पाई जाती है। इसका कोलेस्ट्रॉल, मासिक रक्तस्राव, हृदय की धड़कन आदि पर भी प्रभाव पड़ता है।
    यदि आपके वजन में अचानक घटने या बढ़ने जैसा परिवर्तन सामने आ रहा हो, तो यह थायराइड ग्रंथि से समबन्धित समस्या की और आपका ध्यान दिला सकता है I वजन का अचानक बढ़ जाना “थायरोक्सिन” हार्मोन की कमी (हायपो-थायराईडिज्म) के कारण उत्पन्न हो सकता है. इसके विपरीत, यदि “थायरोक्सिन” की आवश्यक मात्रा से अधिक उत्पत्ति होने से (हायपर-थायराईडिज्म ) की स्थिति उत्पन्न हो जाती है, जिसमें अचानक वजन कम होने लग जाता है. इन दोनो में से, अधिकतर हायपो-थायराईडिज्म समस्या के रूप में सामने आता है I
  • गर्दन के सामनेवाले हिस्से में अचानक सूजन उत्पन्न हो जाना भी आपको थायराइड से सम्बंधित समस्या की ओर इंगित करता है I हायपो या हायपर-थायराईडिज्म, दोनों ही स्थितियों में गोएटर (घेघा) बन सकता है I हाँ, कभी-कभी गर्दन में सूजन का कारण थायराइड कैंसर या नोड्यूल्स अथवा ग्रंथि के अन्दर किसी लम्प के बन जाने के कारण भी हो सकता है. कभी-कभी इसका थायराइड ग्रंथि से कोई सम्बन्ध नहीं होता है I
  • हृदय गति में अचानक आया परिवर्तन भी थायराइड ग्रंथि से सम्बंधित समस्या के कारण उत्पन्न हो सकता है I हायपो -थायराईडिज्म से पीड़ित व्यक्ति अक्सर धीमी हृदयगति होने की शिकायत करते हैं जबकि इसके विपरीत हायपर-थायराईडिज्म से पीड़ित तीव्र हृदयगति से पीड़ित होते हैं I तीव्र हृदयगति के कारण अचानक रक्तचाप बढ़ जाता है तथा रोगी धड़कन (पाल्पीटेशन) बढ़ने की समस्या से जूझता है I
  • थायराइड ग्रंथि का प्रभाव शरीर के लगभग सभी अंगों पर होता है, जिससे व्यक्ति का एनर्जी -लेवल एवं मूड प्रभावित होता है I हायपो-थायराईडिज्म से पीड़ित व्यक्ति अक्सर थकान, आलस्य,जोड़ों में दर्द, सूजन एवं अवसाद जैसे लक्षणों से पीड़ित होता है, जबकि हायपर-थायराईडिज्म से पीड़ित व्यक्ति घबराहट, बैचैनी, अनिद्रा एवं उत्तेजित रहने जैसे लक्षणों से दो-चार होता है I
  • बालों का अचानक झड़ना भी थायराइड हार्मोस के बेलेंस के बिगड़ने की और इंगित करता है. हायपो या हापर-थायराईडिज्म दोनों ही स्थितियों में बाल झड़ने की समस्या उत्पन्न होती है I
  • थायराइड ग्रंथि से सम्बंधित समस्या का सीधा सम्बन्ध शरीर के तापक्रम को नियंत्रित करने से होता है I हायपो-थायराईडिज्म से पीड़ित रोगी को समान्य से अधिक ठण्ड लगती है, जबकि हायपर-थायराईडिज्म से पीड़ित व्यक्ति को अधिक गर्मी लगती है. साथ ही पसीना भी अधिक आता है ी इसके अलावा भी कुछ अन्य लक्षण हैं, जिससे हायपर-थायराईडिज्म को पहचाना जा सकता है, जैसे :त्वचा का रुक्ष होना, हाथों का सुन्न (NUMBNES) हो जाना या हाथ-पाँव में चुनचुनाहट (TINGLING) होना आदि.
  • इसी प्रकार, हायपर-थायराईडिज्म को भी कुछ अतिरिक्त लक्षणों से पहचाना जा सकता है, जैसे :मांसपेशियों का कमजोर पड़ना, कम्पन होना, दस्त लग जाना, देखेने में परेशानी होना और स्त्रियों में मासिक-चक्र का अनियमित होना
  • कभी-कभी थायराइड ग्रंथि की गड़बड़ी के कारण स्त्रियों में मासिक-चक्र बदल जाता है, जिससे मेनोपाज का भ्रम उत्पन्न होता है. अतः ऐसी स्थिति में रक्त के नमूने से की गयी थायराइड ग्रंथि की कार्यकुशलता की जांच इस भ्रम को दूर कर देती है I
  • कई बार कुछ दवाओं के प्रतिकूल प्रभाव भी थायराइड की वजह होते हैं।

5. थायरायड की प्राकृतिक चिकित्सा :

  • थायरायड के लिए हरे पत्ते वाले धनिये की ताजा चटनी बना कर एक बडा चम्मच एक गिलास पानी में घोल कर पीए रोजाना….एक दम ठीक हो जाएगा (बस धनिया देसी हो उसकी सुगन्ध अच्छी हो)
  1. आहार चिकित्सा :
  • सादा सुपाच्य भोजन,मट्ठा,दही,नारियल का पानी,मौसमी फल, ताज़ी हरी साग – सब्जियां, अंकुरित गेंहूँ, चोकर सहित आंटे की रोटी को अपने भोजन में शामिल करें |

7. परहेज :

  • मिर्च-मसाला,तेल,अधिक नमक, चीनी, खटाई, चावल, मैदा, चाय, काफी, नशीली वस्तुओं, तली-भुनी चीजों, रबड़ी,मलाई, मांस, अंडा जैसे खाद्यों से परहेज रखें | अगर आप सफ़ेद नमक (समुन्द्री नमक) खाते है तो उसे तुरन्त बंद कर दे और सैंधा नमक ही खाने में प्रयोग करे, सिर्फ़ और सिर्फ सैंधा नमक ही खाए सब जगह.

रोज 8-10 मखाने का सेवन करने से थॉयरोइड में लाभ मिलना शुरू हो जाता हे और कमल जड़ का भी सेवन हफ्ते में 1 बार करे किसी भी सब्जी में.

8. थायरायड की एक्युप्रेशर चिकित्सा :

  • एक्युप्रेशर चिकित्सा के अनुसार थायरायड व् पैराथायरायड के प्रतिबिम्ब केंद्र दोनों हांथो एवं पैरों के अंगूठे के बिलकुल नीचे व् अंगूठे की जड़ के नीचे ऊँचे उठे हुए भाग में स्थित हैं
  • थायरायड के अल्पस्राव की अवस्था में इन केन्द्रों पर घडी की सुई की दिशा में अर्थात बाएं से दायें प्रेशर दें तथा अतिस्राव की स्थिति में प्रेशर दायें से बाएं (घडी की सुई की उलटी दिशा में) देना चाहिए. इसके साथ ही पियुष ग्रंथि के भी प्रतिबिम्ब केन्द्रों पर भी प्रेशर देना चाहिए.

9. विशेष :

  • प्रत्येक केंद्र पर एक से तीन मिनट तक प्रतिदिन दो बार प्रेशर दें |
  • पियुष ग्रंथि के केंद्र पर पम्पिंग मैथेड (पम्प की तरह दो-तीन सेकेण्ड के लिए दबाएँ फिर एक दो सेकेण्ड के लिए ढीला छोड़ दें) से प्रेशर देना चाहिए |
  • आप किसी एक्युप्रेशर चिकित्सक से संपर्क करके, आप उन केन्द्रों को एक बार समझ सकते है और फिर स्वयं भी कर सकते है .

10. थायराइड मरीज के लिए डाइट चार्ट :

  • थायराइड बहुत ही आवश्‍यक ग्रंथि है। यह ग्रंथि गले के अगले-निचले हिस्‍से में होती है। थायराइड को साइलेंट किलर भी कहा जाता है। क्‍योंकि इसका लक्षण एक साथ नही दिखता है। अगर समय पर इसका इलाज न किया जाए तो आदमी की मौत हो सकती है। यह ग्रंथि होती तो बहुत छोटी है लेकिन, हमारे शरीर को स्‍वस्‍थ्‍य रखने में इसका बहुत योगदान होता है।
  • थाइराइड एक प्रकार की इंडोक्राइन ग्रंथि है, जो कुछ हार्मोन के स्राव के लिए जिम्‍मेदार होती है। यदि थाइराइड ग्रंथि अच्‍छे से काम करना बंद कर दे तो शरीर में कई समस्‍यायें शुरू हो जाती हैं। शरीर से हार्मोन का स्राव प्रभावित हो जाता है। लेकिन यदि थायराइड ग्रंथि कम या अधिक सक्रिय हो तब भी शरीर को प्रभावित करती है।
  • लाइफस्‍टाइल और खान-पान में अनियमितता बरतने के कारण थायराइड की समस्‍या होती है। अगर शुरूआत में ही खान-पान का ध्‍यान रखा जाए, तो थायराइड की समस्‍या होने की संभावना कम होती है।
  1. थायराइड के मरीजों का डाइट चार्ट कैसा हो, हम आपको उसकी जानकारी देते हैं.

थायराइड रोगियों के लिए डाइट चार्ट :

  • आप अपनी डाइट चार्ट में ऐसे खाद्य-पदार्थों को शामिल कीजिए, जिनमें आयोडीन की भरपूर मात्रा हो, क्‍योंकि आयोडीन की मात्रा थायराइड फंक्‍शन को प्रभावित करती है।
  • समुद्री जीवों में सबसे ज्‍यादा आयोडीन पाया जाता है। समुद्री शैवाल, समुद्र की सब्जियों और मछलियों में आयोडीन की भरपूर मात्रा होती है।
  • कॉपर और आयरन युक्‍त आहार के सेवन करने से भी डायराइड फंक्‍शन में बढ़ोतरी होती है।
  • काजू, बादाम और सूरजमुखी के बीज में कॉपर की मात्रा होती है।
  • हरी और पत्‍तेदार सब्जियों में आयरन की भरपूर मात्रा होती है।
  • पनीर और हरी मिर्च तथा टमाटर थायराइड गंथि के लिए फायदेमंद हैं।
  • विटामिन और मिनरल्‍स युक्‍त आहार खाने से थायराइड फंक्‍शन में वृद्धि होती है।
  • प्‍याज, लहसुन, मशरूम में ज्‍यादा मात्रा में विटामिन पाया जाता है।
  • कम वसायुक्‍त आइसक्रीम और दही का भी सेवन थायराइड के मरीजों के लिए फायदेमंद है।
  • गाय का दूध भी थायराइड के मरीजों को पीना चाहिए।
  • नारियल का तेल भी थायराइड फंक्‍शन में वृद्धि करता है। नारियल तेल का प्रयोग सब्‍जी बनाते वक्‍त भी किया जा सकता है।

12. थायराइड के रोगी इन खाद्य-पदार्थों को न खायें :

  • सोया और उससे बने खाद्य-पदार्थों का सेवन बिलकुल मत कीजिए।
  • जंक और फास्‍ट फूड भी थायराइड ग्रंथि को प्रभावित करते हैं। इसलिए फास्‍ट फूड को अपनी आदत मत बनाइए।
  • ब्राक्‍कोली, गोभी जैसे खाद्य-पदार्थ थायराइड फंक्‍शन को कमजोर करते हैं।
  1. चेतावनी (Warning/Disclaimer) : ऐसे लेख आपकी जानकारी बढ़ाने के लिए दिए जाते हैं, लक्षण पढ़कर स्वयं की चिकित्सा शुरू करने के लिए नहीं. थायरॉइड लेवल (T3,T4, Tsh) की जाँच करवाए बिना ही कोई दवा करने लग जाना, या फिर वहम मन में पल लेना, अनावश्यक परहेज़ करना खतरनाक भी हो सकता है. कई बार बहुत सी गम्भीर बिमारियों के लक्षण भी इनसे मिलते-जुलते होते हैं. ऐसे लेखों को पढ़ कर किसी डाक्टर की सलाह न लेकर, ओर अपनी जाँच न करवा कर व्यक्ति बहुमूल्य समय गँवा देते हैं, ओर जब तक डाक्टर के पास जाते हैं, बहुत देरी हो चुकी होती है ओर शरीर के कई अंगों या महत्वपूर्ण कार्यपणालियों को हानि पहुँच चुकी होती है.
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    आप का आज का दिन मंगलमयी हो – आप स्वस्थ रहे, सुखी रहे – इस कामना के साथ।


[: 🌸|| श्रीहरि: ||🌸

कई आदमियों को ऐसा वहम है कि परमात्मा की तरफ चलेंगे तो घर का काम बिगड़ जाएगा। परन्तु मैं ऐसा नहीं मानता। संसार का काम तो संसार में घुलने- मिलने से बिगड़ता है, पर भगवान का काम भगवान में नहीं घुलने- मिलने से बिगड़ता है। संसार के साथ घुल-मिलकर आप संसार को नहीं जान सकते, और परमात्मा से घुले-मिले बिना आप परमात्मा को नहीं जान सकते यह अकाट्य नियम है। इसे याद कर लो। कारण कि आप सदा से ही परमात्मा के हो, संसार के नहीं हो। परमात्मा से घुल-मिल जाओगे तो संसार का बंधन तो छूट जाएगा पर काम-धंधा बढ़िया, सुचारू रूप से होगा। एक बारीक बात है कि केवल कर्तव्य समझकर संसार का काम किया जाए तो काम बढ़िया होता है और बंधन भी नहीं होता।

जैसे आप माँ को नहीं जानते, पर माँ आपको जानती है, आप पिता को नहीं जानते पर पिता आपको जानते हैं । ऐसे ही आप भगवान को नहीं जानते पर भगवान आपको जानते हैं । आप भगवान को मानते हो, पर भगवान आपको जानते हैं। आप संसार को मानते हो जानते नहीं। अगर आप संसार को जान लो तो संसार से वैराग्य हो ही जाएगा भगवान से प्रेम हो ही जाएगा–यह पक्का नियम है।

परमश्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदास जी महाराज

🌹|| राम |🌹ओ३म्🌹🙏
व्यक्ति को स्वस्थ रहने के लिए 24 में से कम से कम 7 घंटे प्रतिदिन अवश्य सोना चाहिए। शरीर चिकित्सा विज्ञान के अनुसार, ये 7 घंटे रात्रि में 10:00 बजे से सुबह 5:00 बजे तक अथवा 11:00 से सुबह 6:00 बजे तक होने चाहिएँ। तभी स्वास्थ्य की अच्छी सुरक्षा रहती है. Early to Bed, early to Rise. Makes a man, Healthy Wealthy and Wise. यह कहावत भी आपने सुनी ही होगी।
रात को 12:00 बजे से सुबह 7:00 बजे तक सोना अथवा रात को 2:00 से सुबह 9:00 बजे तक सोना, स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है।
बाकी 17 घंटो में से 8 घंटे व्यापार व्यवसाय नौकरी आदि के लिए खर्च करने चाहिएँ।
अब बचे 9 घंटे।
इन 9 घंटो में ही खाना पीना व्यायाम खेलकूद समाज सेवा परिवार का पालन, ईश्वर उपासना, यज्ञ, स्वाध्याय इत्यादि ये सारे काम पूरे करने हैं । थोड़ा थोड़ा समय सब कार्यों के लिए लगाएं ।
अपना 24 घंटे का टाइम टेबल बनाएं । तभी आपका जीवन सुखमय होगा , अन्यथा नहीं –

विवाह योग के मुख्य कारक :-

विवाह योग के लिये जो कारक मुख्य है वे इस प्रकार हैं —
सप्तम भाव का स्वामी खराब है या सही है वह अपने भाव में बैठ कर या किसी अन्य स्थान पर बैठ कर अपने भाव को देख रहा है।
सप्तम भाव पर किसी अन्य पाप ग्रह की द्रिष्टि नही है।
कोई पाप ग्रह सप्तम में बैठा नही है।
यदि सप्तम भाव में सम राशि है।
सप्तमेश और शुक्र सम राशि में है।
सप्तमेश बली है।
सप्तम में कोई ग्रह नही है।
किसी पाप ग्रह की द्रिष्टि सप्तम भाव और सप्तमेश पर नही है।
दूसरे सातवें बारहवें भाव के स्वामी केन्द्र या त्रिकोण में हैं,और गुरु से द्रिष्ट है।
सप्तमेश की स्थिति के आगे के भाव में या सातवें भाव में कोई क्रूर ग्रह नही है।

विवाह प्रतिवंधक योग —
सप्तमेश शुभ स्थान पर नही है।
सप्तमेश छ: आठ या बारहवें स्थान पर अस्त होकर बैठा है।
सप्तमेश नीच राशि में है।
सप्तमेश बारहवें भाव में है,और लगनेश या राशिपति सप्तम में बैठा है।
चन्द्र शुक्र साथ हों,उनसे सप्तम में मंगल और शनि विराजमान हों।
शुक्र और मंगल दोनों सप्तम में हों।
शुक्र मंगल दोनो पंचम या नवें भाव में हों।
शुक्र किसी पाप ग्रह के साथ हो और पंचम या नवें भाव में हो।
शुक्र बुध शनि तीनो ही नीच हों।
पंचम में चन्द्र हो,सातवें या बारहवें भाव में दो या दो से अधिक पापग्रह हों।
सूर्य स्पष्ट और सप्तम स्पष्ट बराबर का हो।

विवाह में बिलम्ब का कारण —
सप्तम में बुध और शुक्र दोनो के होने पर विवाह वादे चलते रहते है,विवाह आधी उम्र में होता है।
चौथा या लगन भाव मंगल (बाल्यावस्था) से युक्त हो,सप्तम में शनि हो तो कन्या की रुचि शादी में नही होती है।
सप्तम में शनि और गुरु शादी देर से करवाते हैं।
चन्द्रमा से सप्तम में गुरु शादी देर से करवाता है,यही बात चन्द्रमा की राशि कर्क से भी माना जाता है।
सप्तम में त्रिक भाव का स्वामी हो,कोई शुभ ग्रह योगकारक नही हो,तो पुरुष विवाह में देरी होती है।
सूर्य मंगल बुध लगन या राशिपति को देखता हो,और गुरु बारहवें भाव में बैठा हो तो आध्यात्मिकता अधिक होने से विवाह में देरी होती है।
लगन में सप्तम में और बारहवें भाव में गुरु या शुभ ग्रह योग कारक नही हों,परिवार भाव में चन्द्रमा कमजोर हो तो विवाह नही होता है,अगर हो भी जावे तो संतान नही होती है।
महिला की कुन्डली में सप्तमेश या सप्तम शनि से पीडित हो तो विवाह देर से होता है।
राहु की दशा में शादी हो,या राहु सप्तम को पीडित कर रहा हो,तो शादी होकर टूट जाती है,यह सब दिमागी भ्रम के कारण होता है।

विवाह का समय –
सप्तम या सप्तम से सम्बन्ध रखने वाले ग्रह की महादशा या अन्तर्दशा में विवाह होता है।
कन्या की कुन्डली में शुक्र से सप्तम और पुरुष की कुन्डली में गुरु से सप्तम की दशा में या अन्तर्दशा में विवाह होता है।
सप्तमेश की महादशा में पुरुष के प्रति शुक्र या चन्द्र की अन्तर्दशा में और स्त्री के प्रति गुरु या मंगल की अन्तर्दशा में विवाह होता है।
सप्तमेश जिस राशि में हो,उस राशि के स्वामी के त्रिकोण में गुरु के आने पर विवाह होता है।
गुरु गोचर से सप्तम में या लगन में या चन्द्र राशि में या चन्द्र राशि के सप्तम में आये तो विवाह होता है।
गुरु का गोचर जब सप्तमेश और लगनेश की स्पष्ट राशि के जोड में आये तो विवाह होता है।
सप्तमेश जब गोचर से शुक्र की राशि में आये और गुरु से सम्बन्ध बना ले तो विवाह या शारीरिक सम्बन्ध बनता है।
सप्तमेश और गुरु का त्रिकोणात्मक सम्पर्क गोचर से शादी करवा देता है,या प्यार प्रेम चालू हो जाता है।
चन्द्रमा मन का कारक है,और वह जब बलवान होकर सप्तम भाव या सप्तमेश से सम्बन्ध रखता हो तो चौबीसवें साल तक विवाह करवा ही देता है।

सप्तम भावस्थ शनि: विवाह के लिए शुभद नहीं माना जाता :-
सप्तम भाव लन्म कुण्डली में सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है। लग्न से सातवाँ भाव ही दाम्पत्य व विवाह-कारक माना गया है। इस भाव एवं इस भाव के स्वामी के साथ ग्रहों की स्थिति व दृष्टि संबंध के अनुसार उस जातक पर शुभ-अशुभ प्रभाव पड़ता है। सप्तम भाव विवाह एवं जीवनसाथी का घर माना जाता है। इस भाव में शनि का होना विवाह और वैवाहिक जीवन के लिए शुभ संकेत नहीं माना जाता है। इस भाव में शनि स्थित होने पर व्यक्ति की शादी सामान्य आयु से देरी से होती है। सप्तम भाव में शनि अगर नीच राशि मे हो तो तब यह संभावना रहती है कि व्यक्ति काम पीड़‍ित होकर किसी ऐसे व्यक्ति से विवाह करता है जो उम्र में उससे अधिक बड़ा होता है। शनि के साथ सूर्य की युति अगर सप्तम भाव में हो तो विवाह देर से होता है एवं कलह से घर अशांत रहता है। शनि जिस कन्या की कुण्डली में सूर्य या चन्द्रमा से युत या दृष्ट होकर लग्न या सप्तम में होते हैं उनकी शादी में भी बाधा रहती है। शनि जिनकी कुण्डली में छठे भाव में होता है एवं सूर्य अष्ठम में और सप्तमेश कमजोर अथवा पाप पीड़‍ित होता है,उनके विवाह में भी काफी बाधाएँ आती हैं। शनि और राहु की युति जब सप्तम भाव में होती है तब विवाह सामान्य से अधिक आयु में होता है, यह एक ग्रहण योग भी है। इस प्रकार की स्थिति तब भी होती है जब शनि और राहु की युति लग्न में होती है और वह सप्तम भाव पर दृष्टि डालते हैं। जन्मपत्रिका में शनि-राहु की युति होने पर या सप्तमेश शुक्र अगर कमजोर हो तो विवाह अति विलम्ब से होता है। जिन कन्याओं के विवाह में शनि के कारण देरी हो उन्हें हरितालिका व्रत करना चाहिए या जन्म कुण्डली के अनुसार उपाय करना लाभदायक रहता है। चन्द्रमा के साथ शनि की युति होने पर व्यक्ति अपने जीवनसाथी के प्रति प्रेम नहीं रखता एवं किसी अन्य के प्रेम में गृह कलह को जन्म देता है। सप्तम शनि एवं उससे युति बनाने वाले ग्रह विवाह एवं गृहस्थी के लिए सुखकारक नहीं होते हैं। नवमांश कुण्डली या जन्म कुण्डली में जब शनि और चन्द्र की युति हो तो शादी 30 वर्ष की आयु के बाद ही करनी चाहिए क्योंकि इससे पहले शादी की संभावना नहीं बनती है। जिनकी कुण्डली में चन्द्रमा सप्तम भाव में होता है और शनि लग्न में,उनके साथ भी यही स्थिति होती है। इनकी शादी असफल होने की प्रबल संभावना रहती है। जिनकी कुण्डली में लग्न स्थान से शनि द्वादश होता है और सूर्य द्वितीयेश होता है या लग्न कमजोर होने पर शादी बहुत विलम्ब से होती है। ऐसी स्थिति बनती है कि वह शादी नहीं करते।

मांगलिक दोष :-
शास्त्रानुसार कुज या मंगल दोष दाम्पत्य जीवन के लिए विशेष रुप से अनिष्टकारी माना गया है. अगर कन्या की जन्म-कुण्डली में मंगल ग्रह लग्न, चन्द्र अथवा शुक्र से 1, 2, 12, 4, 7 आठवें भाव में विराजमान हो, तो वर की आयु को खतरा होता है. वर की जन्म-कुण्डली में यही स्थिति होने पर कन्या की आयु को खतरा होता है. मंगल की यह स्थिति पति-पत्नी के बीच वाद-विवाद और कलह का कारण भी बनती है. जन्म-कुण्डली में वृहस्पति एवं मंगल की युति अथवा मंगल एवं चन्द्र की युति से मंगल दोष समाप्त हो जाता है. इसके अतिरिक्त कुछ विशेष भावों में भी मंगल की स्थिति के कुज दोष का कुफल लगभग समाप्त हो जाता है. यह अत्यन्त आवश्यक है कि कुजदोषी वर का विवाह कुजदोषी कन्या से ही किया जाए, इससे दोनों के कुजदोष समाप्त हो जाते हैं और उनका दाम्पत्य जीवन सुखी रहता है.

कन्या के विवाह में ध्यान देने योग्य बातें :-
कन्या ग्रहण के विषय में मनु ने कहा है कि वह कन्या अधिक अंग वाली, वाचाल, पिंगल, वर्णवाली रोगिणी नहीं होनी चाहिए। विवाह में सपिण्ड, विचार, गोत्र, प्रवर विचार करना चाहिए। विवाह में स्त्रियों के लिए गुरुबल तथा पुरुषों के लिए रविबल देख लेना चाहिए। कन्या एवं वर को चन्द्रबल श्रेष्ठ अर्थात् चौथा, आठवां, बारहवां, चन्द्रमा नहीं लेना चाहिए। गुरु तथा रवि भी चौथे, आठवें एवं बारहवें नहीं लेने चाहिए। विवाह में मास ग्रहण के लिए व्यास ने कहा है कि माघ, फाल्गुन, वैशाख, मार्गशीर्ष, ज्येष्ठ, अषाढ़ महिनों में विवाह करने से कन्या सौभाग्यवती होती है। रोहिणी, तीनों उत्तरा, रेवती, मूल, स्वाति, मृगशिरा, मघा, अनुराधा, हस्त ये नक्षत्र विवाह में शुभ हैं। विवाह में सौरमास ग्रहण करना चाहिए। ज्योतिषशास्त्र में कहा है–
सौरो मासो विवाहादौ यज्ञादौ सावनः स्मतः।
आब्दिके पितृकार्ये च चान्द्रो मासः प्रशस्यते।।
बृहस्पति, शुक्र, बुद्ध और सोम इन वारों में विवाह करने से कन्या सौभाग्यवती होती है। विवाह में चतुर्दशी, नवमी इन तिथियों को त्याग देना चाहिए।
इस प्रकार आपको भी धार्मिक रीति से ही विवाह संस्कार को पूर्ण करना चाहिये।

प्रेम विवाह के ज्योतिषीय सिद्धांत
ज्योतिष में वर्णित प्रेम विवाह के ज्योतिषीय सिद्धांत के द्वारा हम यह जानने में समर्थ होते है कि किसी प्रेमी- प्रेमिका का प्यार विवाह में परिणत होगा या नहीं। वस्तुतः “प्रेमी और प्रेमिका” के मध्य प्रेम की पराकाष्ठा का विवाह में तब्दील होना ही प्रेम विवाह(Love Marriage) है या यूं कहे कि जब लड़का और लड़की में परस्पर प्रेम होता है तदनन्तर जब दोनों एक दूसरे को जीवन साथी के रूप में देखने लगते है और वही प्रेम जब विवाह के रूप में परिणत हो जाता है तो हम उसे प्रेम-विवाह कहते है। विद्वत और प्रेमी समाज ने प्रेम को अपने अपने नजरिये से देखा है। इसलिए प्रेम सभी रूपों में प्रतिष्ठित है यथा माता और पुत्र का स्नेह, गुरु-शिष्य का प्रेम, देवी देवताओ के प्रति प्रेम, लौकिक व अलौकिक प्रेम, विवाह पूर्व लड़का-लड़की का प्रेम इत्यादि। परन्तु प्रश्न उत्पन्न होता है की क्या सभी प्रेमी अपने प्रेमिका या प्रेमी को पाने में सफल हो सकते है ? इसका उत्तर हाँ और न दोनों में होता है, कोई प्रेमी प्रेमिका को पाने में सफल होता है, तो कोई असफल। अब पुनः प्रश्न उत्पन्न होता है की ऐसा क्यों ? ज्योतिष आचार्य इस के लिए जातक के जन्म कुंडली(Horoscope) में विराजमान ग्रहों की उच्च, नीच शत्रु क्षेत्री या मित्र ग्रह के घर में होने को ही जिम्मेदार मानते है।

प्रेम विवाह हेतु निर्धारित भाव एवं ग्रह
ज्योतिषशास्त्र में सभी विषयों के लिए निश्चित भाव निर्धारित किया गया है लग्न, पंचम, सप्तम, नवम, एकादश, तथा द्वादश भाव को प्रेम-विवाह का कारक भाव माना गया है यथा —

लग्न भाव — जातक स्वयं।
पंचम भाव — प्रेम या प्यार का स्थान।
सप्तम भाव — विवाह का भाव।
नवम भाव — भाग्य स्थान।
एकादश भाव — लाभ स्थान।
द्वादश भाव — शय्या सुख का स्थान।
वहीं सभी ग्रहो को भी विशेष कारकत्व प्रदान किया गया है। यथा “शुक्र ग्रह” को प्रेम तथा विवाह का कारक माना गया है। स्त्री की कुंडली में “ मंगल ग्रह “ प्रेम का कारक माना गया है।

प्रेम विवाह के ज्योतिषीय सिद्धांत या नियम

पंचम और सप्तम भाव तथा भावेश के साथ सम्बन्ध। पंचम भाव प्रेम का भाव है और सप्तम भाव विवाह का अतः जब पंचम भाव का सम्बन्ध सप्तम भाव भावेश से होता है तब प्रेमी-प्रेमिका वैवाहिक सूत्र में बंधते हैं।
पंचमेश-सप्तमेश-नवमेश तथा लग्नेश का किसी भी प्रकार से परस्पर सम्बन्ध हो रहा हो तो जातक का प्रेम, विवाह में अवश्य ही परिणत होगा हाँ यदि अशुभ ग्रहो का भी सम्बन्ध बन रहा हो तो वैवाहिक समस्या आएगी।
लग्नेश-पंचमेश-सप्तमेश-नवमेश तथा द्वादशेश का सम्बन्ध भी अवश्य ही प्रेमी प्रेमिका को वैवाहिक बंधन बाँधने में सफल होता है।
प्रेम और विवाह के कारक ग्रह शुक्र या मंगल का पंचम तथा सप्तम भाव-भावेश के साथ सम्बन्ध होना भी विवाह कराने में सक्षम होता है।
सभी भावो में नवम भाव की महत्वपूर्ण भूमिका होती है नवम भाव का परोक्ष या अपरोक्ष रूप से सम्बन्ध होने पर माता-पिता का आशीर्वाद मिलता है और यही कारण है की नवम भाव -भावेश का पंचम- सप्तम भाव भावेश से सम्बन्ध बनता है तो विवाह भागकर या गुप्त रूप से न होकर सामाजिक और पारिवारिक रीति-रिवाजो से होती है।
शुक्र अगर लग्न स्थान में स्थित है और चन्द्र कुण्डली में शुक्र पंचम भाव में स्थित है तब भी प्रेम विवाह संभव होता है।
नवमांश कुण्डली जन्म कुण्डली का सूक्ष्म शरीर माना जाता है अगर कुण्डली में प्रेम विवाह योग नहीं है या आंशिक है और नवमांश कुण्डली में पंचमेश, सप्तमेश और नवमेश की युति होती है तो प्रेम विवाह की संभावना प्रबल हो जाती है।
पाप ग्रहो का सप्तम भाव-भावेश से युति हो तो प्रेम विवाह की सम्भावना बन जाती है।
राहु और केतु का सम्बन्ध लग्न या सप्तम भाव-भावेश से हो तो प्रेम विवाह का सम्बन्ध बनता है।
लग्नेश तथा सप्तमेश का परिवर्तन योग या केवल सप्तमेश का लग्न में होना या लग्नेश का सप्तम में होना भी प्रेम विवाह करा देता है।
चन्द्रमा तथा शुक्र का लग्न या सप्तम में होना भी प्रेम विवाह की ओर संकेत करता है।

” भक्ति के सिद्धान

भक्ति – मार्ग में सर्व भगवान का स्वरुप है । इसलिए , जब असली भक्ति का उदय होता है , जब सर्वज्ञानमयी भक्ति उदय होती है , तब भक्त को सर्वरूप में अपने इष्टदेव का ही , अपने प्रभु का ही दर्शन होता है ।
नारायण ! देखें , जितना बाहर आपको दिखायी पड़ता है , वह आपके इष्टदेव का ही स्वरूप है और आपके भीतर जितने भाव उठते हैं , वे सब भी परमात्मा के स्वरूप हैं , यह सर्वभाव से भजन है । इस प्रकार बाहर – भीतर एकरस – भक्ति है ।
नारायण ! कई लोगों का ऐसा ख्याल होता है कि जितनी भक्ति हमारे भीतर आ गयी है , बस उतनी ही भक्ति है । तो जब वे ऊँची भक्ति की बात सुनने लगते हैं तो उनकी समझ में नहीं आती है ।
नामजप करना – यह भगवान् की भक्ति है । उनकी पूजा करना भक्ति है । सत्संग करना भक्ति है । ध्यान करना भक्ति है । भगवान् की प्राप्तिके लिए व्याकुल होना – यह भी भक्ति है । और , उनके भरोसे पर छोड़देना कि जब तुमको मौज हो तब मिलना – यह भी भक्ति है । व्याकुलता भी भक्ति है और शरणागति भी भक्ति है । एक रूप में भगवान् को देखना भी भक्ति है और सबके अन्दर उसी रूप को देखना भी भक्ति है । और , सबको परमात्मा का स्वरूप समझना भी भक्ति है ।
तो इस प्रकार से यह मत समझ लेंगे – मेरे नारायण ! कि हम जितना कर रहे हैं , बस उतनी ही भक्ति है । भक्ति को छोटी मत बनाईये । अभी आप जो नहीं करते हैं , सो भी भक्ति है । जितना आप जानते हो उतना ही भगवान् नहीं है । जितना नहीं जानते हो सो भी भगवान् है । अतः भगवान् और भक्ति का अपनी मति अर्थात् बुद्धि के घेरे में लाकर उसको ” मत ” बनाना ।
नारायण ! सबकी मति में जितनी भक्ति और भगवान् है , वे भी ठीक है ; इसलिए कहीं राग – द्वेष न करके अपने साधनों के रूप में जो वस्तु प्राप्त है , अपनी निष्ठा में दृढ़ रहकर चलते जाना चाहिए । उससे आगे की बात से इन्कार नहीं करना चाहिए कि इसके आगे कुछ है ही नहीं ।
यही भक्ति का सिद्धान्त है कि भक्ति प्रतिक्षण वर्द्धमान है । यह मत कभी कहें कि इतना ही है । और भगवान् ? इससे भी परे है । बाँधो मत – बाबा ! बाँधो मत !! जितना – जितना आपके हृदय का विकास होता जाय , जितनी – जितनी आँख खुलती जाय , जितनी – जितनी समझ आती जाय , उतना – उतना स्वीकार करते चलो । तब आप देखेंगे कि हम आगे बढ़ते जा रहे हैं ।

                                        

मानसिक तनाव
(नकारात्मक विचारों की अधिकता )

👉तनाव एक ऐसी बीमारी है जिससे इंसान के मन मस्तिष्क और शरीर तीनों को हानि पहुंचती है कई बार इस की अति होने पर इंसान अपने आपको या दूसरों को भी क्षति पहुंचा देता है डर व नफरत भरे विचारों के लगातार मस्तिष्क में चलने से इन विचारों की संख्या बढ़ती चली जाती है मस्तिष्क पर लगातार दबाव पड़ने से मस्तिष्क की सेल क्षतिग्रस्त होने लगती है

संपूर्ण शरीर के नाड़ी तंत्रिका तंत्र का कंट्रोल स्टेशन मस्तिष्क में होने से यह केंद्र अव्यस्थित होने लगते है जिससे इंसान तनाव की अवस्था को प्राप्त करता है यह बीमारी न होकर बीमारी के लक्षण है यदि बीमारी को दूर करना है ताे उसे अपने विचारों को कम करना होगा जो इंसान के लिए काफी कठिन काम है बहुत सी बार इंसान इन विचारों पर काबू पा लेता है लेकिन कई बार ऐसा करना उसके लिए असंभव सा हो जाता है ध्यान से विचारों को कम किया जा सकता है एक हिप्नोथेरेपिस्ट ही इसे पूर्ण रूप से ठीक कर सकता है

👉केस स्टडी :- एक लड़की जिसकी शादी को अभी 10 महीने हुए थे पारवारिक परिस्थितियों के कारण वह इतनी डिप्रेशन में चली गई कि उसकी यादाश्त तक समाप्त हो गई वह अपनी मां के अतिरिक्त किसी को नहीं पहचान रही थी जब उसे मेरे पास लाया गया तो तीन चार लोग उसे पकड़ कर लेकर आए वह सही से ना हीं तो किसी बात को समझ रही थी और ना ही उनका जवाब दे रही थी लगभग वह मौन हो गई थी जैसे उसकी मानसिक क्रियाएं रुक गई हो वैसे तो वह मानसिकता की एक अवस्था आगे चली गई थी जिसमें रिकवरी करना कठिन होता है लेकिन फिर भी मेरे अथक प्रयास से वह पूर्ण रुप से स्वस्थ हो गई उसका परिवार बहुत खुश था जैसे हर सदस्य मुझे कोटि-कोटि धन्यवाद कर रहा हो
उन्हें खुश देखकर मुझे भी बहुत खुशी हुई इस तरह के 25 से 30 केस मैं ठीक कर चुका हूं

👉नाेट :- जब भी कभी ऐसे नकारात्मक विचार आए अपना पूरा ध्यान अपनी आती-जाती स्वास पर ले आए इससे कुछ ही देर में आपके सभी नकारात्मक शांत हो जाएंगे और आप तनाव मुक्त हो जाएंगे जब भी नकारात्मक विचार आए मन ही मन इस विचार को रिपीट करें

“मैं पूर्ण स्वस्थ खुश और आनंदमय हूं मैं अपने पूर्ण स्वस्थ खुशी और आनंदमय होने का उत्साह खुशी और खुली बांहों से स्वागत करता हूं”
इससे आपके नकारात्मक विचारों का आना रुक जाएगा और बार-बार रिपीट करने से इन पॉजिटिव विचारों का परिणाम आपको प्राप्त होने लगेगा


💐💐💐💐🙏🙏
[अनिंद्रा ( Sleep Disorder)

अनिंद्रा आज के समय में आम बीमारी होती जा रही है जीवन का सुख और चैन समाप्त होगा तो अनिंद्रा की बीमारी धर दबाेचेगी और आवश्यकता से अधिक पाने की इच्छा, जीवन के प्रति असंतोष तथा भौतिक सुख सुविधाओं के प्रति अंधी आस्था ने मनुष्य के जीवन में इतनी अधिक गतिशीलता उत्पन्न कर दी है कि किसी साधारण व्यक्ति को भी जीने के लिए नाना प्रकार के पापड़ प्रतिदिन बेलने पड़ते हैं
जब हमारा चेतन मन सो जाता है तो मस्तिष्क और शरीर दोनों निंद्रा अवस्था में चले जाते है अनिंद्रा कोई रोग नहीं है यह रोग का लक्षण है जब चेतन मस्तिष्क में कोई विचार सक्रिय रहता है तो नींद नहीं आती ।नींद के लिए मस्तिक में मौजूद निंद्रा केंद्र की सक्रियता आवश्यक है किंतु चेतन मन के सक्रिय रहने से निंद्रा केंद्र निस्प्रभावी हो जाते है लगातार अनिंद्रा की स्थिति बने रहने से मस्तिष्क व शरीर को आराम नहीं मिल पाता जिससे मन मस्तिष्क स्नायु मंडल व शरीर थक जाता है परिणाम स्वरूप संपूर्ण सरीर व मस्तिष्क क्रियाओं पर बुरा प्रभाव पड़ता है अनिंद्रा शरीर व मन की अनेक बीमारियों को जन्म देती है निंद्रा का प्रधान कारण मन मस्तिष्क मे विचारों की सक्रियता का बने रहना है इसके अतिरिक्त दोषपूर्ण आहार विहार, शारीरिक परिश्रम न करना, अप्राकृतिक रहन-सहन, असंतोष, आशंका, व्याकुलता, डर, किसी का इंतजार शारीरिक उद्यीपन व तनावपूर्ण जीवन आदि भी अनिंद्रा के प्रमुख कारण है अनिद्रा के कारण नशे की आदत धूम्रपान, कॉफी,चाय, शोर शराबा, शारीरिक कष्ट, क्रोध चिढ़चिढ़ापन तथा उच्च रक्तचाप की बीमारियां भी हो जाती है

नाेट:- शारीरिक एवम मानसिक कार्य अवश्य करें रात को सोने से पहले बोर करने वाले कार्य करें या किताबें पढ़ें हो सके तो “विचार ध्यान” करें इसके लिए मन में जो विचार चल रहे है उन में बहते चले जाइए अपनी तरह का कोई विचार ना चलाये जैसा विचार आ रहा है उसको ही देखते चले जाएं देखते चले जाए और देखते चले जाए ।

यदि ऐसा संभव नहीं हो पा रहा है तो मन ही मन इस विचार को रिपीट करें

“मैं शांत सहज पूर्ण आनंदमय हूं”

यह प्रयोगिक विधि है 100% आपको लाभ प्राप्त होगा इस विचार को महसूस करते हुए जब तक नींद ना आए रिपीट करते रहे. 💐💐💐💐💐🙏
👏एक हिन्दू को इन👇 बातों की जानकारी , जबानी रखनी चाहिए :
“श्री मद्-भगवत गीता”के बारे में-

ॐ . किसको किसने सुनाई?
उ.- श्रीकृष्ण ने अर्जुन को सुनाई।

ॐ . कब सुनाई?
उ.- आज से लगभग 7 हज़ार साल पहले सुनाई।

ॐ. भगवान ने किस दिन गीता सुनाई?
उ.- रविवार के दिन।

ॐ. कोनसी तिथि को?
उ.- एकादशी

ॐ. कहा सुनाई?
उ.- कुरुक्षेत्र की रणभूमि में।

ॐ. कितनी देर में सुनाई?
उ.- लगभग 45 मिनट में

ॐ. क्यू सुनाई?
उ.- कर्त्तव्य से भटके हुए अर्जुन को कर्त्तव्य सिखाने के लिए और आने वाली पीढियों को धर्म-ज्ञान सिखाने के लिए।

ॐ. कितने अध्याय है?
उ.- कुल 18 अध्याय

ॐ. कितने श्लोक है?
उ.- 700 श्लोक

ॐ. गीता में क्या-क्या बताया गया है?
उ.- ज्ञान-भक्ति-कर्म योग मार्गो की विस्तृत व्याख्या की गयी है, इन मार्गो पर चलने से व्यक्ति निश्चित ही परमपद का अधिकारी बन जाता है।

ॐ. गीता को अर्जुन के अलावा
और किन किन लोगो ने सुना?
उ.- धृतराष्ट्र एवं संजय ने

ॐ. अर्जुन से पहले गीता का पावन ज्ञान किन्हें मिला था?
उ.- भगवान सूर्यदेव को

ॐ. गीता की गिनती किन धर्म-ग्रंथो में आती है?
उ.- उपनिषदों में

ॐ. गीता किस महाग्रंथ का भाग है….?
उ.- गीता महाभारत के एक अध्याय शांति-पर्व का एक हिस्सा है।

ॐ. गीता का दूसरा नाम क्या है?
उ.- गीतोपनिषद

ॐ. गीता का सार क्या है?
उ.- प्रभु श्रीकृष्ण की शरण लेना

ॐ. गीता में किसने कितने श्लोक कहे है?
उ.- श्रीकृष्ण जी ने- 574
अर्जुन ने- 85
धृतराष्ट्र ने- 1
संजय ने- 40.

अपनी युवा-पीढ़ी को गीता जी के बारे में जानकारी पहुचाने हेतु इसे ज्यादा से ज्यादा शेअर करे। धन्यवाद

अधूरा ज्ञान खतरनाक होता है।

33 करोड नहीँ 33 कोटी देवी देवता हैँ हिँदू
धर्म मेँ।

कोटि = प्रकार।
देवभाषा संस्कृत में कोटि के दो अर्थ होते है,

कोटि का मतलब प्रकार होता है और एक अर्थ करोड़ भी होता।

हिन्दू धर्म का दुष्प्रचार करने के लिए ये बात उडाई गयी की हिन्दुओ के 33 करोड़ देवी देवता हैं और अब तो मुर्ख हिन्दू खुद ही गाते फिरते हैं की हमारे 33 करोड़ देवी देवता हैं…

कुल 33 प्रकार के देवी देवता हैँ हिँदू धर्म मे :-

12 प्रकार हैँ
आदित्य , धाता, मित, आर्यमा,
शक्रा, वरुण, अँश, भाग, विवास्वान, पूष,
सविता, तवास्था, और विष्णु…!

8 प्रकार हे :-
वासु:, धर, ध्रुव, सोम, अह, अनिल, अनल, प्रत्युष और प्रभाष।

11 प्रकार है :-
रुद्र: ,हर,बहुरुप, त्रयँबक,
अपराजिता, बृषाकापि, शँभू, कपार्दी,
रेवात, मृगव्याध, शर्वा, और कपाली।

एवँ
दो प्रकार हैँ अश्विनी और कुमार।

कुल :- 12+8+11+2=33 कोटी

अगर कभी भगवान् के आगे हाथ जोड़ा है
तो इस जानकारी को अधिक से अधिक
लोगो तक पहुचाएं। ।

🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏

जय श्रीकृष्ण …🙏
अब आपकी बारी है कि इस जानकारी को आगे बढ़ाएँ तो आपको भी आनंद होगा…..⛳


🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏
[भगवान कृष्ण ने कहा था- ऐसा होगा कलियुग!!!!!!

सतयुग में शिव, त्रेता में राम, द्वापर में श्रीकृष्ण और कलिकाल में भगवान का नाम कीर्तन हिन्दू धर्म के केंद्र में हैं, लेकिन श्रीकृष्ण के धर्म को भूत, वर्तमान और भविष्य का धर्म बताया गया है। श्रीकृष्ण का जीवन ही हर तरह से शिक्षा देने वाला है। महाभारत और गीता विश्‍व की अनुपम कृति है।

महाभारत हिन्दुओं का ही नहीं, समस्त मानव जाति का ग्रंथ है। इससे प्रत्येक मानव को एक अच्छी शिक्षा और मार्ग मिल सकता है। प्रत्येक मनुष्‍य को इसे पढ़ना चाहिए। महाभारत में जीवन से जुड़ा ऐसा कोई सा भी विषय नहीं है जिसका वर्णन न किया गया हो और जिसमें जीवन का कोई समाधान न होगा। महाभारत में देश, धर्म, न्याय, राजनीति, समाज, योग, युद्ध, परिवार, ज्ञान, विज्ञान, अध्यात्म, तकनीकी आदि समस्य विषयों का वर्णन मिलेगा।

वर्तमान युग में महाभारत के एक प्रसंग से आज का मानव कुछ सीख ले सकता है। यह प्रसंग उस वक्त का है जबकि पांचों पांडवों को वनवास हो गया था। वनवास जाने से पूर्व पांडवों ने भगवान श्रीकृष्ण से कहा- ‘हे श्रीकृष्ण! अभी यह द्वाप‍र का अंतकाल चल रहा है। आप हमें बताइए कि आने वाले कलियुग में कलिकाल की चाल या गति क्या होगी कैसी होगी?’ श्रीकृष्ण कहते हैं- ‘तुम पांचों भाई वन में जाओ और जो कुछ भी दिखे वह आकर मुझे बताओ। मैं तुम्हें उसका प्रभाव बताऊंगा।’

पांचों भाई वन में चले गए। वन में उन्होंने जो देखा उसको देखकर वे आश्चर्यचकित रह गए। आखिर उन्होंने वन में क्या देखा? और श्रीकृष्ण ने क्या जवाब दिया? जानिए अगले पन्नों पर एक रोचक प्रसंग…

युधिष्ठिर ने क्या देखा?

पांचों भाई जब वन में रहने लगे तो एक बार चारों भाई अलग-अलग दिशाओं में वन भ्रमण को निकले। युधिष्ठिर भ्रमण पर थे तो उन्होंने एक जगह पर देखा कि किसी हाथी की दो सूंड है। यह देखकर युधिष्ठिर के आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा।

अर्जुन ने क्या देखा?
अर्जुन दूसरी दिशा में भ्रमण पर थे। कुछ दूर जंगल में जाने पर उन्होंने जो देखा उसे देखकर वे आश्चर्य में पड़ गए। उन्होंने देखा कि कोई पक्षी है, उसके पंखों पर वेद की ऋचाएं लिखी हुई हैं, पर वह पक्षी मुर्दे का मांस खा रहा है।

भीम ने क्या देखा? :
दोनों भाइयों की तरह भीम भी भ्रमण पर थे। भीम ने जो देखा वह भी आश्चर्यजनक था। उन्होंने देखा कि गाय ने बछड़े को जन्म दिया है। जन्म के बाद वह बछड़े को इतना चाट रही है कि बछड़ा लहुलुहान हो गया।

सहदेव ने क्या देखा? : सहदेव जब भ्रमण पर थे तो उन्होंने चौथा आश्चर्य देखा कि 6-7 कुएं हैं और आसपास के कुओं में पानी है किंतु बीच का कुआं खाली है। बीच का कुआं गहरा है फिर भी पानी नहीं है। उन्हें यह देखकर घोर आश्चर्य हुआ कि ऐसा कैसे हो सकता है?

नकुल ने क्या देखा? : नकुल भी भ्रमण पर थे और उन्होंने भी एक आश्चर्यजनक घटना देखी। नकुल ने देखा कि एक पहाड़ के ऊपर से एक बड़ी-सी शिला लुढ़कती हुई आती है और कितने ही वृक्षों से टकराकर उनको नीचे गिराते हुए आगे बढ़ जाती है। विशालकाय वृक्षों भी उसे रोक न सके। इसके अलावा वह शिला कितनी ही अन्य शिलाओं के साथ टकराई पर फिर भी वह रुकी नहीं। अंत में एक अत्यंत छोटे पौधे का स्पर्श होते ही वह स्थिर हो गई।

पांचों भाइयों ने अपने देखे गए दृश्य की चर्चा की और शाम को श्रीकृष्ण को अपने अनुभव सुनाए। सबसे पहले युधिष्ठिर ने कहा कि मैंने तो पहली बार दो सूंड वाला हाथी देखा। यह मेरे लिए बहुत ही आश्चर्यजनक था।

तब श्रीकृष्ण कहते हैं- ‘हे धर्मराज! अब तुम कलिकाल की सुनो। कलियुग में ऐसे लोगों का राज्य होगा, जो दोनों ओर से शोषण करेंगे। बोलेंगे कुछ और करेंगे कुछ। मन में कुछ और कर्म में कुछ। ऐसे ही लोगों का राज्य होगा। इससे तुम पहले राज्य कर लो।’

युधिष्ठिर के बाद अर्जुन ने कहा कि मैंने जो देखा वह तो इससे भी कहीं ज्यादा आश्चर्यजनक था। मैंने देखा कि एक पक्षी के पंखों पर वेद की ऋचाएं लिखी हुई हैं और वह पक्षी मुर्दे का मांस खा रहा है।

तब श्रीकृष्ण कहते हैं- ‘इसी प्रकार कलियुग में ऐसे लोग रहेंगे, जो बड़े ज्ञानी और ध्यानी कहलाएंगे। वे ज्ञान की चर्चा तो करेंगे, लेकिन उनके आचरण राक्षसी होंगे। बड़े पंडित और विद्वान कहलाएंगे किंतु वे यही देखते रहेंगे कि कौन-सा मनुष्य मरे और हमारे नाम से संपत्ति कर जाए।’

‘हे अर्जुन! ‘संस्था’ के व्यक्ति विचारेंगे कि कौन-सा मनुष्य मरे और संस्था हमारे नाम से हो जाए। हर जाति धर्म के प्रमुख पद पर बैठे विचार करेंगे कि कब किसका श्राद्ध हो। कौन, कब, किस पद से हटे और हम उस पर चढ़े। चाहे कितने भी बड़े लोग होंगे किंतु उनकी दृष्टि तो धन और पद के ऊपर (मांस के ऊपर) ही रहेगी। ऐसे लोगों की बहुतायत होगी, कोई कोई विरला ही संत पुरुष होगा।’

अर्जुन के सवाल के जवाब के बाद भीम ने अपना अनुभव सुनाया। भीम ने कहा कि मैंने देखा कि गाय अपने बछड़े को इतना चाटती है कि बछड़ा लहुलुहान हो जाता है।

तब श्रीकृष्ण कहते हैं- ‘कलियुग का मनुष्य शिशुपाल हो जाएगा। कलियुग में बालकों के लिए ममता के कारण इतना करेगा कि उन्हें अपने विकास का अवसर ही नहीं मिलेगा। मोह-माया में ही घर बर्बाद हो जाएगा।

किसी का बेटा घर छोड़कर साधु बनेगा तो हजारों व्यक्ति दर्शन करेंगे, किंतु यदि अपना बेटा साधु बनता होगा तो रोएंगे कि मेरे बेटे का क्या होगा? इतनी सारी ममता होगी कि उसे मोह-माया और परिवार में ही बांधकर रखेंगे और उसका जीवन वहीं खत्म हो जाएगा। अंत में बेचारा अनाथ होकर मरेगा।

वास्तव में लड़के तुम्हारे नहीं हैं, वे तो बहुओं की अमानत हैं, लड़कियां जमाइयों की अमानत हैं और तुम्हारा यह शरीर मृत्यु की अमानत है। तुम्हारी आत्मा, परमात्मा की अमानत है। तुम अपने शाश्वत संबंध को जान लो बस।’

भीम के बाद सहदेव ने पूछा- ‘हे श्रीकृष्ण! मैंने जो देखा उसका क्या मतलब है? मैंने यह देखा कि 5-7 भरे कुओं के बीच का कुआं एकदम खाली है, जबकि ऐसा कैसे संभव हो सकता है?

तब श्रीकृष्ण कहते हैं- ‘कलियुग में धनाढ्‍य लोग लड़के-लड़की के विवाह में, मकान के उत्सव में, छोटे-बड़े उत्सवों में तो लाखों रुपए खर्च कर देंगे, परंतु पड़ोस में ही यदि कोई भूखा-प्यासा होगा तो यह नहीं देखेंगे कि उसका पेट भरा है या नहीं। उनका अपना ही सगा भूख से मर जाएगा और वे देखते रहेंगे। दूसरी और मौज, मदिरा, मांस-भक्षण, सुंदरता और व्यसन में पैसे उड़ा देंगे किंतु किसी के दो आंसू पोंछने में उनकी रुचि न होगी।

कहने का तात्पर्य यह कि कलियुग में अन्न के भंडार होंगे लेकिन लोग भूख से मरेंगे। सामने महलों, बंगलों में एशोआराम चल रहे होंगे लेकिन पास की झोपड़ी में आदमी भूख से मर जाएगा। एक ही जगह पर असमानता अपने चरम पर होगी।’

सहदेव के बाद नकुल ने श्रीकृष्ण को बताया कि मैंने भी एक आश्चर्य देखा। वह यह कि एक बड़ी सी चट्टान पहाड़ पर से लुढ़की, वृक्षों के तने और चट्टानें उसे रोक न पाए किंतु एक छोटे से पौधे से टकराते ही वह चट्टान रुक गई।

तब श्रीकृष्ण ने कहा- ‘कलियुग में मानव का मन नीचे गिरेगा, उसका जीवन पतित होगा। यह पतित जीवन धन की शिलाओं से नहीं रुकेगा, न ही सत्ता के वृक्षों से रुकेगा। किंतु हरि नाम के एक छोटे से पौधे से, हरि कीर्तन के एक छोटे से पौधे से मनुष्य जीवन का पतन होना रुक जाएगा। श्रीमन नारायण, नारायण हरि हरि।
[: मनुष्य के कर्मों का साक्षी…

मृत्युलोक में प्राणी अकेला ही पैदा होता है, अकेले ही मरता है। प्राणी का धन-वैभव घर में ही छूट जाता है। मित्र और स्वजन श्मशान में छूट जाते हैं। शरीर को अग्नि ले लेती है। पाप-पुण्य ही उस जीव के साथ जाते हैं। अकेले ही वह पाप-पुण्य का भोग करता है परन्तु धर्म ही उसका अनुसरण करता है।

‘शरीर और गुण (पुण्यकर्म) इन दोनों में बहुत अंतर है, क्योंकि शरीर तो थोड़े ही दिनों तक रहता है किन्तु गुण प्रलयकाल तक बने रहते हैं। जिसके गुण और धर्म जीवित हैं, वह वास्तव में जी रहा है।’

पाप और पुण्य

वेदों में जिन कर्मों का विधान है, वे धर्म (पुण्य) हैं और उनके विपरीत कर्म अधर्म (पाप) कहलाते हैं। मनुष्य एक दिन या एक क्षण में ऐसे पुण्य या पाप कर सकता है कि उसका भोग सहस्त्रों वर्षों में भी पूर्ण न हो।

मनुष्य के कर्म के चौदह साक्षी

सूर्य, अग्नि, आकाश, वायु, इन्द्रियां, चन्द्रमा, संध्या, रात, दिन, दिशाएं, जल, पृथ्वी, काल और धर्म–ये सब मनुष्य के कर्मों के साक्षी हैं।

सूर्य रात्रि में नहीं रहता और चन्द्रमा दिन में नहीं रहता, जलती हुई अग्नि भी हरसमय नहीं रहती; किन्तु रात-दिन और संध्या में से कोई एक तो हर समय रहता ही है। दिशाएं, आकाश, वायु, पृथ्वी, जल सदैव रहते हैं, मनुष्य इन्हें छोड़कर कहीं भाग नहीं सकता, इनसे छुप नहीं सकता। मनुष्य की इन्द्रियां, काल और धर्म भी सदैव उसके साथ रहते हैं। कोई भी कर्म किसी-न किसी इन्द्रिय द्वारा किसी-न-किसी समय (काल) होगा ही। उस कर्म का प्रभाव मनुष्य के ग्रह-नक्षत्रों व पंचमहाभूतों पर पड़ता है। जब मनुष्य कोई गलत कार्य करता है तो धर्मदेव उस गलत कर्म की सूचना देते हैं और उसका दण्ड मनुष्य को अवश्य मिलता है।

कर्म से ही देह मिलता है

पृथ्वी पर जो मनुष्य-देह है उसमें एक सीमा तक ही सुख या दु:ख भोगने की क्षमता है। जो पुण्य या पाप पृथ्वी पर किसी मनुष्य-देह के द्वारा भोगने संभव नही, उनका फल जीव स्वर्ग या नरक में भोगता है। पाप या पुण्य जब इतने रह जाते हैं कि उनका भोग पृथ्वी पर संभव हो, तब वह जीव पृथ्वी पर किसी देह में जन्म लेता है।

कर्मों के अवशेष भाग को भोगने के लिए मनुष्य मृत्युलोक में स्थावर-जंगम अर्थात् वृक्ष, गुल्म (झाड़ी), लता, बेल, पर्वत और तृण–आदि योनि प्राप्त करता है। ये सब दु:खों के भोग की योनियां हैं। वृक्षयोनि में दीर्घकाल तक सर्दी-गर्मी सहना, काटे जाने व अग्नि में जलाये जाने सम्बधी दु:ख भोगना पड़ता है। यदि जीव कीटयोनि प्राप्त करता है तो अपने से बलवान प्राणियों द्वारा दी गयी पीड़ा सहता है, शीत-वायु और भूख के क्लेश सहते हुए मल-मूत्र में विचरण करना आदि दारुण दु:ख उठाता है। इसी तरह से पशुयोनि में आने पर अपने से बलवान पशु द्वारा दी गयी पीड़ा का कष्ट पाता रहता है। पक्षी की योनि में आने पर कभी वायु पीकर रहना तो कभी अपवित्र वस्तुओं को खाने का कष्ट उठाना पड़ता है। यदि भार ढोने वाले पशुओं की योनि में जीव आता है तो रस्सी से बांधे जाने, डण्डों से पीटे जाने व हल जोतने का दारुण दु:ख जीव को सहना पड़ता है।

विभिन्न पापयोनियां

इस संसार-चक्र में मनुष्य घड़ी के पेण्डुलम की भांति विभिन्न पापयोनियों में जन्म लेता और मरता है–

–माता-पिता को कष्ट पहुंचाने वाले को कछुवे की योनि में जाना पड़ता है।

–मित्र का अपमान करने वाला गधे की योनि में जन्म लेता है।

–छल-कपट कर जीवनयापन करने वाला बंदर की योनि में जाता है।

–अपने पास रखी किसी की धरोहर को हड़पने वाला मनुष्य कीड़े की योनि में जन्म लेता है।

–विश्वासघात करने से मनुष्य को मछली की योनि मिलती है।

–विवाह, यज्ञ आदि शुभ कार्यों में विघ्न डालने वाले को कृमियोनि मिलती है।

–देवता, पितर व ब्राह्मणों को भोजन न कराकर स्वयं खा लेता है वह काकयोनि (कौए) में जाता है।

दुर्लभ है मनुष्ययोनि

इस प्रकार बहुत-सी योनियों में भ्रमण करके जीव किसी महान पुण्य के कारण मनुष्ययोनि प्राप्त करता है। मनुष्ययोनि प्राप्त करके भी यदि दरिद्र, रोगी, काना या अपाहिज जीवन मिले तो बहुत अपमान व कष्ट भोगना पड़ता है।

इसलिए दुर्लभ मनुष्य जन्म पाकर संसार-बंधन से मुक्त होने के लिए प्राणी को भगवान विष्णु की सेवा-आराधना करनी चाहिए क्योंकि वे ही कर्मफल के दाता व संसार-बंधन से छुड़ाने वाले मोक्षदाता हैं। भगवान विष्णु के जो-जो स्वरूप हैं, उनकी भक्ति करने से मनुष्य संसार-सागर आसानी से पार कर परमधाम को प्राप्त करता है।

भगवान विष्णु ने बताया संसार-सागर से पार होने का उपाय

भगवान विष्णु ने संसार-सागर से पार होने का उपाय भगवान रुद्र को बताते हुए कहा कि ‘विष्णुसहस्त्रनाम’ स्तोत्र से मेरी नित्य स्तुति करने से मनुष्य भवसागर को सहज ही पार कर लेता है।

‘जिनका मन भगवान विष्णु की भक्ति में अनुरक्त है, उनका अहोभाग्य है, अहोभाग्य है; क्योंकि योगियों के लिए भी दुर्लभ मुक्ति उन भक्तों के हाथ में ही रहती है।’ (नारदपुराण)

भक्तों की गति

भक्त अपने आराध्य के लोक में जाते हैं। भगवान के लोक में कुछ भी बनकर रहना सालोक्य-मुक्ति है। भगवान के समान ऐश्वर्य प्राप्त करना सार्ष्टि-मुक्ति है। भगवान के समान रूप पाकर वहां रहना सारुप्य-मुक्ति है। भगवान के आभूषणादि बनकर रहना सामीप्य-मुक्ति कहलाती है। भगवान के श्रीविग्रह में मिल जाना सायुज्य-मुक्ति है।

जिस जीव को भगवान का धाम प्राप्त हो जाता है, वह भगवान की इच्छा से उनके साथ या अलग से संसार में दिव्य जन्म ले सकता है। वह कर्मबन्धन में नहीं बंधा होता है। संसार में भगवत्कार्य समाप्त करके वह पुन: भगवद्धाम चला जाता है।

मुक्त पुरुष

मनुष्य बिना कर्म किए रह नहीं सकता। कर्म करेगा तो पाप-पुण्य दोनों होंगे। लेकिन जो मनुष्य सबमें भगवत्दृष्टि रखकर भगवान की सेवा के लिए, उनकी आज्ञा का पालन करने के लिए और भगवान की प्रसन्नता के लिए कर्म करता है तो उसके कर्म भी अकर्म बन जाते हैं और कर्म-बंधन में नहीं बांधते हैं। वह संसार में रहते हुए भी नित्यमुक्त है।

तत्त्वज्ञानी पुरुष संसार के आवागमन से मुक्त हो जाते हैं। उनके प्राण निकलकर कहीं जाते नहीं बल्कि परमात्मा में लीन हो जाते हैं। सती स्त्रियां, युद्ध में मारे गए वीर और उत्तरायण के शुक्ल-मार्ग से जाने वाले योगी मुक्त हो जाते हैं।

गीता में शुक्ल तथा कृष्ण मार्ग कहकर दो गतियों का वर्णन है–

जिनमें वासना शेष है, वे धुएं, रात्रि, कृष्णपक्ष, दक्षिणायन के देवताओं द्वारा ले जाए जाते हैं। ऊर्ध्वलोक में अपने पुण्य भोगकर वे फिर पृथ्वी पर जन्म लेते हैं।
जिनमें कोई वासना शेष नहीं है, वे अग्नि, दिन, शुक्लपक्ष, उत्तरायण के देवताओं द्वारा ले जाये जाते हैं। वे फिर पृथ्वी पर जन्म लेकर नहीं लौटते हैं।
पितृलोक

यह एक प्रकार का प्रतीक्षालोक है। एक जीव को पृथ्वी पर जिस माता-पिता से जन्म लेना है, जिस भाई-बहिन व पत्नी को पाना है, जिन लोगों के द्वारा उसे सुख-दु:ख मिलना है; वे सब लोग अलग-अलग कर्म करके स्वर्ग या नरक में हैं। जब तक वे सब भी इस जीव के अनुकूल योनि में जन्म लेने की स्थिति में न आ जाएं, इस जीव को प्रतीक्षा करनी पड़ती है। पितृलोक इसलिए एक प्रकार का प्रतीक्षालोक है।

प्रेतलोक

यह नियम है कि मनुष्य की अंतिम इच्छा या भावना के अनुसार ही उसे गति प्राप्त होती है। जब मनुष्य किसी प्रबल राग-द्वेष, लोभ या मोह के आकर्षण में फंसकर देह त्यागता है तो वह उस राग-द्वेष के बंधन में बंधा आस-पास ही भटकता रहता है। वह मृत पुरुष वायवीय देह पाकर बड़ी यातना भरी योनि प्राप्त करता है। इसीलिए कहा जाता है–‘अंत मति सो गति।’
[पितरों की पूजा भगवान के साथ नहीं करना चाहिए ।।

मित्रों, घर के पूर्वजों की पूजा भगवान के साथ नहीं करना चाहिए । क्योंकि हमारे हिन्दू धर्म में मृत पूर्वजों को पितृ माना जाता है । पितृ को पूज्यनीय अवश्य माना जाता है । इसमें कोई संसय नहीं है, परन्तु ईश्वर के साथ पितरों के पूजा का विधान नहीं है ।।

पितरों के लिये पन्द्रह दिनों का पक्ष स्पेशल रखा ही गया है । इन्हीं पितृपक्ष में पितरों कि पूजा अथवा सेवा का विधान बनाया गया है । इसी पक्ष में पितरों के लिये कब्य दिया जाता है । साथ ही पितरों कि आराधना में वेद मंत्रोच्चार भी वर्जित बताया गया है ।।

साथ ही अपने पिता के मृत्यु कि तिथि पर उनके आत्मा की शांति के लिए विभिन्न तरह का दान किया जाता हैं । लेकिन ऐसा माना जाता है, कि आपके घर के मंदिर में भगवान की ही मूर्तियां और तस्वीरें हों, उनके साथ किसी मृतात्मा का चित्र भी नहीं लगाया जाना चाहिये ।।

साथ ही भगवान के साथ अपने पितरों की पूजा भी नहीं करना चाहिए । इसके पीछे कारण है, सकारात्मक-नकारात्मक ऊर्जा और अध्यात्म में हमारी एकाग्रता का । मृतात्माओं से हम भावनात्मक रूप से जुड़े होते हैं ।।

उनके चले जाने से हमें एक खालीपन का एहसास होता है । मंदिर में इनकी तस्वीर होने से हमारी एकाग्रता भंग हो सकती है और भगवान की पूजा के समय यह भी संभव है, कि हमारा सारा ध्यान उन्हीं मृत रिश्तेदारों की ओर हो जाय ।।

इस बात का घर के वातावरण पर भी गहरा प्रभाव पड़ता है । हम पूजा में बैठते समय पूरी एकाग्रता लाने की कोशिश करते हैं, ताकि पूजा का अधिकतम प्रभाव हमें प्राप्त हो सके ।।

ऐसे में मृतात्माओं की ओर ध्यान जाने से हम उस दु:खद घड़ी में खो जाते हैं जिसमें हमने अपने प्रियजनों को खोया था । हमारी मन:स्थिति नकारात्मक भावों से भर जाती है । इसलिये भगवान के घर अथवा पूजा स्थल पर किसी भी पितरों की कोई भी प्रतिमा नहीं लगानी चाहिये ।।
[🌸 श्रद्धा-विश्वास दोनों ही ज्ञान, सत्य,धर्म , निष्कामता का आधार हैं इस अद्भुत्-सत्य पर चिंतन करें!!! 🌸🙏🏻

श्रद्धा और विश्वास,इन दोनों शब्दों का प्रयोग बहुधा हम बड़ी उदारता से किया करते हैं और बड़ी ही सरलता से किसी को श्रद्धालु और विश्वासी होने का प्रमाण-पत्र दे देते हैं । इन तत्त्वों के वास्तविक अर्थ को समझ लेने के बाद सृष्टि में विरले ही ऐसे होंगे जिन्हें हम श्रद्धालु या विश्वासी कह सकें । आज वर्तमान समय में अधिकांश व्यक्ति श्रद्धा और विश्वास को एक लाभदायक ब्यापार समझ बैठे हैं।
श्रद्धा और विश्वास की सराहना करते हुए बहुधा लोगों के मुँह से निकलता है कि

“यदि सच्ची श्रद्धा और वास्तविक विश्वास तो कोई ऐसी कामना या सिद्धि नहीं है जो पूर्ण न हो सके।यह एक भ्रामक धारणा है, इसलिए ऐसी मान्यता वाले लोगों को अश्रद्धालु और अविश्वासी होते देर नहीं लगती। श्रद्धा का फल बताते हुए शास्त्रों में जिन वस्तुओं की प्राप्ति का उल्लेख किया गया है, उनके नाम हैं धर्म, सत्य और ज्ञान ।

( 1 ) श्रद्धा बिना धर्म नहिं होई।
( 2 ) श्रद्धा सत्यमवाप्यते।
( 3 ) श्रद्धावांल्लभते ज्ञानम्।

जिस श्रद्धा का परिणाम सत्य, धर्म, और ज्ञान की उपलब्धि हो, उसको हम लोगों ने लौकिक कामनाओं की पूर्ति से जोड़कर उपहासास्पद बना डाला है।

वास्तविकता तो यही है कि सच्चे श्रद्धालु को यही ज्ञात होता है कि कामनाएँ ज्ञान, सत्य और धर्म
की प्राप्ति में बाधक हैं ।

इसी प्रकार जब हम यह कहते हैं कि विश्वास से कामनायें पूर्ण होती हैं, तब यह प्रश्न किया जा सकता है कि किस पर विश्वास करने से यह परिणाम प्राप्त होता है ?

वस्तुतः विश्वास का आधार भी ज्ञान ही होता है । पहले हम किसी वस्तु को जानते हैं और तब उस पर विश्वास करते हैं ।

“जानें बिनु न होइ परतीती। बिनु परतीति होइ नहिं प्रीती।।
प्रीति बिना नहिं भगति दृढ़ाई। जिमि खगपति जल कै चिकनाई।।

बिना जाने, या उसको मान लेना, विश्वास नहीं मूर्खता है । बहुत लोग विश्वास और मूर्खता को
पर्यायवाची मान लेते हैं ।

मानस में विश्वास के वास्तविक और अवास्तविक दोनों पक्षों के रूप प्रस्तुत किए गये हैं ।

प्रतापभानु और माया सीता इसके प्रत्यक्ष दृष्टांत हैं । दोनों में ही विश्वास का भयंकर परिणाम हुआ ।

प्रतापभानु-प्रसंग में उद्देश्य और व्यक्ति, दोनों के चुनाव में भूल हुई । उद्देश्य का तात्पर्य यह कि हम विश्वास के द्वारा क्या पाना चाहते हैं ?

मानस में तो विश्वास का फल भगवद्भक्ति ही बताया गया है ।

“बिनु विस्वास भगति नहिं तेहि बिनु द्रवहिं न राम।रामकृपा बिनु सपनेहुँ जीव न लह विश्राम।।”

इस मंत्रपंक्ति ( दोहा ) को समझना होगा । सड़कों पर मार्ग हेतु मील के पत्थर बने रहते हैं और उनमें मुख्य स्थानों का नाम होता है और दूसरे दो नगरों के नाम लिखे होते हैं । यात्रा करते हुए माप-सूचक अंक क्रमशः कम होते रहते हैं और जब व्यक्ति मध्य में किसी मुख्य स्थान पर पहुँचता है तो उसे अत्यधिक प्रसन्नता होती है ।

जीवन-पथ पर चलने वाले यात्री का मुख्य लक्ष्य होता है-राम कृपा नगर और उस मार्ग में चलते हुए जो दो मुख्य नगर और भी मिलते हैं उनका नाम है भक्ति और विश्वास । पहले आता है विश्वास नगर और फिर भक्ति-नगर, अन्त में कृपा-नगर । जैसे जब व्यक्ति अपने नगर-स्थित घर में पहुँच जाता है तब वह आनंद से विश्राम करता है, ठीक इसी तथ्य को उपरोक्त्त दोहे में बताया गया है ।

कामना-नगर में तो ब्यक्ति बैठा ही हुआ है, वहाँ से आगे बढ़ने पर ही ब्यक्ति विश्वास नगर की ओर बढ़ता है और यदि किसी को विश्वास के बाद कामना दिखाई दे, तो उसे यह समझना चाहिए कि या तो वह जहाँ का तहाँ है या चल रहा है तो उसकी यात्रा उल्टी दिशा में चल रही है।

प्रतापभानु समझता था कि मैं विश्वस्त गुरु के आश्रम में हूँ और जब प्रातःकाल नींद खुली तो उसने देखा कि मैं अपने महल में ही हूँ और इसने उसे बड़ा चमत्कार ही समझ लिया । यदि वह बुद्धिमान होता तो समझ लेता कि जहाँ वह पहले था, यदि
विश्वास करने के बाद लौटकर वहीं आ गया, तो यह यात्रा है या मूर्खता ?

पर लोभ-ग्रस्त बुद्धि के कारण विश्वास का जो लक्ष्य उसने निर्धारित किया था, वह सर्वथा उलटा था । अतः यदि वह कृपा-नगर में जाकर विश्राम करने के स्थान पर अशान्ति-नगर में पहुँच गया तो यह उसके अविवेक का ही परिणाम था।

माया सीता के प्रसंग में ( यद्यपि यह लोक शिक्षण के लिए जान-बूझकर किया गया था ) भी अनुपयुक्त व्यक्ति पर विश्वास किया गया था । साधु-वेष-धारी रावण को वे पहले से नहीं जानती थीं, पर उसकी वाणी पर विश्वास करते हुए उन्होंने लक्ष्मण की खींची गयी रेखा को लाँघने में भी संकोच नहीं किया।

रेखा खींचने वाले लक्ष्मण सच्चे साधु हैं । श्री सीता को कम से कम चौदह वर्ष तक उनके चरित्र को, उनकी भावना को समझने का अवसर प्राप्त हो चुका है । एक जाने-परखे संत को छोड़कर
एक अनजाने अपरिचित पर केवल एक साधु-वेष देखकर विश्वास कर लेना, किसी भी प्रकार युक्ति-संगत नहीं था, फिर भी यह किया गया और उसका दुष्परिणाम भी भोगना पड़ा । अतः विश्वास में ज्ञान की अपेक्षा नहीं है, यह समझना विश्वास का सही अर्थ न जानने का ही परिणाम है।

एक सज्जन ने कहा कि तब उसे विश्वास न कहकर यदि ज्ञान कहें तो इसमें क्या अनौचित्य होगा।इसका उत्तर यही होगा कि दोनों अत्यंत निकट होते हुए भी सर्वथा एक नहीं हैं ।

यदि हमें एक स्वर्ण का हार खरीदना हो तो सबसे पहले हम विश्वस्त ब्यापारी का पता लगायेंगे और उसके यहाँ जाकर परख पूर्वक हार लेकर उसे उपयोग में लायेंगे । अब इसके बाद उसको नित्य कसौटी पर कसकर देखने की आवश्यकता नहीं है । परखने की स्थिति को हम ज्ञान कह सकते हैं और धारण करने की स्थिति को विश्वास।

इसलिये एक बार ठगे जाने के पश्चात् श्रीसीताजी ने सही पद्धति से विश्वास का वरण किया।

श्री हनुमान जी अशोक वृक्ष पर बैठे हुए रामकथा का गुणगान करते हैं और उसके बाद माँ की आज्ञा पाकर उनके सम्मुख खड़े हो जाते हैं, अब श्री हनुमान जी अपना परिचय कैसे देते हैं ।

रामदूत मैं मातु जानकी ।

यहाँ पर माता जानकी जी ने गहन चिंतन कैसे किया उन्होंने हनुमान जी द्वारा सम्बोधित शब्द रामदूत और मातु ( माता ) शब्द पर तनिक भी विश्वास नही किया । तब पुनः हनुमान जी ने अपना प्रभु राम जी के प्रति दृढ़ विश्वास दिखाया तब कैसे अपना परिचय दिया ।

सत्य शपथ करुनानिधान की ।।

अब भी हनुमान जी के द्वारा शपथ लेने पर भी माता जानकी जी का विश्वास टस से मस नहिँ हुआ लेकिन करुनानिधान शब्द का जैसे ही माता जानकी जी ने श्रवण किया तो माँ ने तत्काल विश्वास नहीं कर लिया अपितु पहले जिज्ञासा प्रकट की ।

“नर बानरहिं संग कहु कैसें।
कही कथा भइ संगति जैसें।।

और उसके बाद अंतःकरण की प्रीति को परखकर, तब उन्होंने हनुमान जी पर विश्वास किया ।

“कपि के वचन सप्रेम सुनि उपजा मन विश्वास।
जाना मन क्रम वचन यह कृपासिंधु कर दास।।”

वस्तुतः विश्वास का आधार ज्ञान ही होता है । कई बार लोग कहते हैं कि पत्थर को भगवान मानकर विश्वास कर लो तो वह भी फलदायक हो जायेगा । सत्य तो यह है कि विश्वास के कारण पत्थर में भगवान नहीं आ सकते।वस्तुतः वे पत्थर में हैं, जो इसे जानता है, वह विश्वास के द्वारा उनको प्रकट कर लेता है ।

भक्त प्रह्लाद ने यदि पत्थर से भगवान को प्रकट कर दिया तो इसका तात्पर्य यह नहीं कि उनकी भावना से पत्थर में भगवान आ गये । प्रह्लाद को यह ज्ञात था कि इस पत्थर में ही नहीं, समस्त ब्रह्मांड के कण-कण में भगवान हैं और यही ज्ञान उसके विश्वास का आधार है ।

इसीलिये उनका विश्वास सिद्ध हुआ और पत्थर से नृसिंह भगवान प्रकट हो गये ।

पूर्ण ईश्वर का विवेक भी पूर्ण है।कामना के औचित्य और अनौचित्य और उसके पूरा करने या न करने का निर्णय भी उसी पर छोड़ना होगा । अतः यह कहना कैसे सम्भव हो सकता है कि विश्वास करने से कामना पूर्ण होती है।
🌹ओ३म् 🌹
प्रत्येक व्यक्ति सुबह से लेकर रात तक कर्म करता है। कुछ अच्छे कर्म करता है , कुछ बुरे कर्म भी करता है । सब लोग एक जैसे नहीं होते। सबका स्तर अलग-अलग होता है । कोई अच्छे कर्म अधिक करता है , कोई बुरे कर्म अधिक करता है ।
क्यों करता है? क्योंकि प्रत्येक व्यक्ति चेतन है। कर्म करना उसका स्वभाव है । वह खाली नहीं बैठ सकता ।
तो कोई अच्छे कर्म क्यों करता है ? और कोई बुरे कर्म क्यों करता है? इसका पहला कारण उसके पूर्व जन्मों के संस्कार हैं। दूसरा कारण उसकी शिक्षा, अर्थात माता पिता गुरुजन पड़ोसी मित्र प्रैस मीडिया आदि से उसको जो कुछ सीखने को मिलता है , उसके आधार पर वह अपने कर्म करता है । और तीसरा कारण उसकी अपनी बुद्धिमत्ता और वर्तमान का पुरुषार्थ भी है । इन कारणों से कोई व्यक्ति अच्छे या बुरे कर्म करता है ।
यदि ये सब कारण अच्छे होंगे , तो वह अच्छे कर्म करेगा । यदि ये सब कारण बुरे होंगे तो बुरे कर्म करेगा । परंतु व्यक्ति गहराई से सोचता नहीं , कि जो कर्म मैं कर रहा हूं , मुझे इसका फल भी भोगना पड़ेगा।
यदि व्यक्ति अच्छे कर्म अधिक करे, तो ठीक है। अच्छा फल मिलेगा । मनुष्य जन्म मिलेगा। सुख अधिक मिलेगा।
और यदि बुरे कर्म अधिक करेगा , तो उसे अन्य योनियों में जाना होगा । सांप बिच्छू हाथी बंदर घोड़ा कुत्ता गधा मक्खी मच्छर कॉकरोच मछली वृक्ष वनस्पति इत्यादि योनियों में अपने पाप कर्मों का दंड भोगना पड़ेगा। इस दंड को व्यक्ति समझ नहीं रहा, इसलिए भी वह पाप करता है ।
तो ईश्वर ने आपको बुद्धि दी है, उसका उपयोग करें । गंभीरता से विचार करें । किसी भी कर्म का फल माफ नहीं होगा. अच्छे कर्म का अच्छा फल मिलेगा, और बुरे कर्म का बुरा फल भी अवश्य ही मिलेगा। इसलिए फल को सदा ध्यान में रखें , फिर काम करें । आप बुराई से बचेंगे, अच्छे काम करेंगे और सदा सुखी रहेंगे –
[🌸 कर्म का फल, कर्म का परिणाम तथा कर्म का प्रभाव क्या है? 🌸🙏🏻

  • सुभ अरु असुभ करम अनुहारी। ईसु देइ फलु हृदयँ बिचारी॥
    करइ जो करम पाव फल सोई। निगम नीति असि कह सबु कोई॥

भावार्थ:-शुभ और अशुभ कर्मों के अनुसार ईश्वर हृदय में विचारकर फल देता है, जो कर्म करता है, वही फल पाता है। ऐसी वेद की नीति है, यह सब कोई कहते हैं॥

प्राय: सामान्य व्यक्ति सुख-दु:ख की प्राप्ति का कारण कर्म का फल ही मान लेते हैं, जबकि वस्तुस्थिति यह है कि मनुष्य को कर्म के फल के रूप में तो सुख-दु:ख आदि मिलते ही हैं।

किन्तु कर्म के परिणाम व प्रभाव के रूप में भी सुख-दु:ख की प्राप्ति होती है, अपने कर्म के परिणाम व प्रभाव से भी दूसरे द्वारा किये जाने वाले कर्म के परिणाम व प्रभाव से भी सुख-दु:ख की प्राप्ति होती है, इन तीनों की परिभाषा क्या है? पहला कर्म का फल- कर्म पूरा हो जाने पर, कर्म के अनुरूप, अच्छे या बुरे कर्म के कर्त्ता को।

जो न्यायपूर्वक, न कम न अधिक, र्इश्वर, राजा, गुरू, माता-पिता, स्वामी आदि के द्वारा सुख-दु:ख, या सुख-दु:ख को प्राप्त करने के साधन प्रदान करना कर्म का फल कहलाता है, उदाहरण समझें, किसी घी विक्रेता ने वनस्पति घी में पशु की चर्बी मिलाकर विक्रय किया, पकड़े जाने पर कानून के तहत 10 वर्ष की कठोर सजा दी गर्इ, तथा 10 लाख रूपयों का दण्ड किया गया, यह कर्म का फल है, यह हो गया पहला परिणाम

दूसरा कर्म का परिणाम- क्रिया करने के तत्काल पश्चात की जो प्रतिक्रिया है, उसे ‘कर्म का परिणाम कहते हैं, जिस व्यक्ति या वस्तु से सम्बन्धित क्रिया की होती है, कर्म का परिणाम उसी व्यक्ति या वस्तु पर होता है, उदाहरण के लिये– चर्बी मिश्रित नकली घी के विकृत हो जाने पर खाने वाले सैकड़ों-हजारों व्यक्ति रोगी हो गये, अन्धे हो गये यह है घी के विक्रेता के मिलावट का परिणाम।

जिन्होंने घी खाया वे तो रोगी हुये, अन्य जिन्होंने नहीं खाया वे स्वस्थ ही रहे, इसी तरह एक और उदाहरण से समझते हैं, जैसे चालक द्वारा शराब पीकर बस चलाने से दुर्घटना हुर्इ, इसके होने पर पाँच व्यक्ति मारे गये, दस घायल हो गये, बीस को चोटें आर्इ।
यह सब कर्म का परिणाम है।

उन सबको दु:ख की अनुभूति हुयीं उनके अनेक कार्य और योजनाएँ असफल हुयीं, चिकित्सा आदि में बहुत समय और धन लगा, यह सब कर्मों का परिणाम है, चालक को शराब पीकर बस चलाने और उसे दुर्घटनाग्रस्त कर देने रूप कर्म का फल तो शासक या र्इश्वर बाद में देगा।

तिसरा कर्म का प्रभाव हैं- किसी क्रिया, उसके परिणाम या फल को जानकर अपने पर या दूसरों पर जो मानसिक सुख-दु:ख, भय, चिन्ता, शोक आदि असर होता है, उसे कर्म का प्रभाव कहते हैं, जब तक सम्बंधित व्यक्ति को क्रियादि का ज्ञान नहीं होगा तब तक उस पर कोर्इ प्रभाव नहीं होगा, उदाहरण के लिये वही वनस्पति घी में पशु की चर्बी मिलाकर गाय का घी बनाकर बेचने वाला व्यापारी जब पकड़ा जाता है तो उसके घर वाले सगे संबंधी मित्रादि दु:खी होते हैं, तथा उसके शत्रु, धार्मिक सज्जन सुखी होते हैं।

बाजार में मिलने वाले गाय के घी पर आम जनता का संशय अविश्वास हो जाता है, यह भी प्रभाव है, कर्म के परिणाम, प्रभाव और फल को एक ही दृष्टांत में निम्न प्रकार से समझ सकते हैं, उदाहरण के तोर पर एक बालक को बार-बार मना करने पर भी चाकू से खेल रहा था, और खेलते-खेलते चाकू से बालक से अंगुली कट गयी, अंगुली कटने पर खून निकला, खून को देखकर पास में बैठा बालक रोने लगा।

रोना सुनकर थोड़ी दूर खड़ी बालक की माता आयी और चाकू से खेल रहे बालक की अंगुली कटी देखी, यह देख कर माता ने बालक को दो थप्पड़ लगाये, यहाँ दृष्टांत में बालक की अंगुली का कटना कर्म का परिणाम है, क्योंकि यह क्रिया के तत्काल बाद हुर्इ प्रतिक्रिया है, पास में बैंठे छोटे बालक का रोना कर्म का प्रभाव है, क्योंकि, यह अंगुली कटने व अंगुली से खून का निकलने का असर है।

माता द्वारा बालक को थप्पड़ लगाना कर्म का फल है, क्योंकि, क्रिया के अनुरूप आज्ञा भंग करने का कर्त्ता यानी बालक को थप्पड़ लगाना दण्ड दिया जाना कर्म का परिणाम है, कर्म का परिणाम प्राय: तुरन्त होता है, पर प्रभाव व फल में समय लगता है, कर्इ बार अधिक और कर्इ बार बहुत अधिक समय भी लगता है।

जय महादेव!
ओऊम् नमः शिवाय्
[🌸 भारत के दस आध्यात्मिक रहस्य!!!!! 🌸🙏🏻

ऋषि-मुनियों और अवतारों की भूमि ‘भारत’ एक रहस्यमय देश है। यदि धर्म कहीं है तो सिर्फ यहीं है। यदि संत कहीं हैं तो सिर्फ यहीं हैं। माना कि आजकल धर्म, अधर्म की राह पर चल पड़ा है। माना कि अब नकली संतों की भरमार है फिर भी यहां की भूमि ही धर्म और संत है।

.हम आपको बताएंगे भारत या भारतीय धर्म से जुड़े ऐसे 10 आध्यात्मिक रहस्यों के बारे में जिन्हें जानकर आप रह जाएंगे हैरान। हालांकि इन्हें आस्था या अंधविश्वास से जुड़ा मामला भी माना जाता है।

पहला आध्यात्मिक रहस्य सूक्ष्म आत्माओं का स्थान हिमालय : – मुण्डकोपनिषद् के अनुसार सूक्ष्म-शरीरधारी आत्माओं का एक संघ है। इनका केंद्र हिमालय की वादियों में उत्तराखंड में स्थित है। इसे देवात्मा हिमालय कहा जाता है। इन दुर्गम क्षेत्रों में स्थूल-शरीरधारी व्यक्ति सामान्यतया नहीं पहुंच पाते हैं। अपने श्रेष्ठ कर्मों के अनुसार सूक्ष्म-शरीरधारी आत्माएं यहां प्रवेश कर जाती हैं। जब भी पृथ्वी पर संकट आता है, नेक और श्रेष्ठ व्यक्तियों की सहायता करने के लिए वे पृथ्वी पर भी आती हैं।

भौगोलिक दृष्टि से उसे उत्तराखंड से लेकर कैलाश पर्वत तक बिखरा हुआ माना जा सकता है। इसका प्रमाण यह है कि देवताओं, यक्षों, गंधर्वों, सिद्ध पुरुषों का निवास इसी क्षेत्र में पाया जाता रहा है। इतिहास, पुराणों के अवलोकन से प्रतीत होता है कि इस क्षेत्र को देवभूमि कहा और स्वर्गवत माना जाता रहा है। आध्यात्मिक शोधों के लिए, साधनाओं, सूक्ष्म शरीरों को विशिष्ट स्थिति में बनाए रखने के लिए वह विशेष रूप से उपयुक्त है।

दूसरा आध्यात्मिक रहस्य शरीर में किसी दिव्य आत्मा का आना : – इसे भारत में हाजिरी आना या पारगमन की आत्मा का आना कहते हैं। ग्रामिण क्षेत्रों में डील में आना। किसी व्यक्ति विशेष के शरीर में नाग महाराज, भेरू महाराज या काली माता के आने के किस्से सुनते रहते हैं। भारत में ऐसे कई स्थान या चौकी हैं, जहां आह्वान द्वारा किसी व्यक्ति विशेष के शरीर में दिव्य आत्मा का अवतरण होता है और फिर वह अपने स्थान विशेष या गद्दी पर बैठकर हिलते हुए लोगों को उनका भूत और भविष्य बताता है और कुछ हिदायत भी देता है।

हालांकि इन लोगों में अधिकतर तो नकली ही सिद्ध होते हैं। लेकिन कुछ ऐसे भी होते हैं, जो किसी भी व्यक्ति का भूत और भविष्य बताकर उसकी समस्या का समाधान करने की क्षमता रखते हैं। ऐसे लोग किसी भी व्यक्ति का जीवन बदलने की क्षमता रखते हैं। ऐसे कुछ लोगों के स्थान पर मेला भी लगता है। जहां वे किसी मंदिर में बैठकर किसी चमत्कार की तरह लोगों के दुख-दर्द दूर करते हैं।

प्रेत बाधा : हालांकि यह भी देखा गया है कि कुछ बुरी आत्माएं भी लोगों को परेशान करने के लिए उनके शरीर पर कब्जा कर लेती हैं। विदेशों (अमेरिका या योरप में) में अधिकतर लोगों को बुरी आत्माएं परेशान करती हैं जिससे छुटकारा पाने के लिए वे चर्च के चक्कर लगाते रहते हैं जबकि भारत में किसी दरगाह, समाधि मंदिर, किसी जानकार, तांत्रिक, बाबा या संत के पास जाते हैं। कुछ लोग ऐसे लोगों के पास जाते हैं जिनके शरीर में पहले से ही किसी समय विशेष में कोई दिव्य आत्मा आई हुई होती है।

हालांकि आजकल आत्मा को बुलाने के कई तरीके विकसित हो चले हैं, जैसे हिप्नोटिज्म, प्लेनचिट और ओइजा बोर्ड, जेलंगकुंग आदि ऐसे कई तरीके विकसित हो चले हैं जिसके माध्यम से किसी दिव्य आत्मा के संपर्क से सवालों के जवाब और समाधान पाए जाते हैं। हालांकि यह भी कहना होगा कि उक्त सभी तरह का बातों का कोई वैज्ञानिक प्रमाण नहीं होता इसलिए इसे मानना एक अंधविश्‍वास ही कहा जाता रहा है।

तीसरा आध्यात्मिक रहस्य ,चमत्कारिक संत और उनकी समाधि : – शंकराचार्य, गुरु मत्स्येंद्र नाथ, गुरु गोरखनाथ, गोगादेव जाहर वीर, झूलेलाल, वीर तेजाजी महाराज, संत नामदेव, संत ज्ञानेश्‍वर, संत कबीर, रामसा पीर, गुरुनानक, रविदास, संत धन्ना, संत तुकाराम, एकनाथ, समर्थ रामदास और चरणदास।

इसके अलावा दादा धूनी वाले, शेगांव वाले बाबा, नीम करौली बाबा, स्वामी रामकृष्ण परमहंस, परमहंस योगानंद, देवहारा बाबा, लाहिरी महाराज, स्वामी विवेकानंद, स्वामी शिवानंद, ओशो रजनीश, मेहर बाबा, महर्षि अरविंद, जे. कृष्णमूर्ति, पं. श्रीराम शर्मा ‘आचार्य’ आदि हजारों ऐसे संत और महापुरुष हुए हैं जिनके कारण भारत की विश्व में एक आध्यात्मिक पहचान बनी।

माना जाता है कि उक्त संतों या दिव्य पुरुषों की समाधि पर जाकर उनके दर्शन करने से जीवन के सभी तरह के संकटों का हल नजर जाने लगता है। उपरोक्त जो नाम दिए गए हैं, उन्होंने बगैर किसी भेदभाव के मनुष्य मात्र के लिए कार्य किया।

चौथा आध्यात्मिक रहस्य योग, तप और ध्यान : – योग का जन्म भारत में ही हुआ। वेदों में योग और ध्यान के महत्व और रहस्य का उल्लेख मिलता है। भगवान बुद्ध और पतंजलि ने योग और ध्यान को एक व्यवस्थित रूप दिया। इसे आप आष्टांगिक मार्ग कहें या आष्टांग योग।

सिद्धियां प्राप्त करने या मोक्ष प्राप्ति करने की ये 8 सीढ़ियां हैं जिन पर चढ़कर चेतना के सर्वोच्च शिखर पर पहुंचा जा सकता है। आष्टांग योग के बाहर धर्म और अध्यात्म की कल्पना नहीं की जा सकती। योग से जहां शरीर सेहतमंद बना रहता है वहीं मन-मस्तिष्क भी तरोताजा और शांतिमय बना रहता है।

पांचवां आध्यात्मिक रहस्य,अध्यात्म के लिए उचित वातावरण और स्थान : – भारत में ध्यान, योग और अध्यात्म विद्या सीखने के लिए अन्य देशों की अपेक्षा उचित वातावरण है। यहां एक ओर जहां हिमालय है, तो वहीं दूसरे छोर पर समुद्र। एक ओर जहां रेगिस्तान है, तो दूसरे छोर पर घने जंगल और ऊंचे-ऊंचे पहाड़।

इसके अलावा कई प्राचीन आश्रम, गुफाएं और पहाड़ हैं, जहां जाकर तपस्या की जा सकती है या ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है। अध्यात्म की इसी तलाश के लिए हजारों विदेशी यहां आकर भारत के वातावरण से मंत्रमुग्ध हो जाते हैं।

भारत में बहुत सारी प्राचीन गुफाएं हैं, जैसे बाघ की गुफाएं, अजंता-एलोरा की गुफाएं, एलीफेंटा की गुफाएं और भीमबेटका की गुफाएं। अखंड भारत की बात करें तो अफगानिस्तान के बामियान की गुफाओं को भी इसमें शामिल किया जा सकता है। भीमबेटका में 750 गुफाएं हैं जिनमें 500 गुफाओं में शैलचित्र बने हैं। यहां की सबसे प्राचीन चित्रकारी को कुछ इतिहासकार 35,000 वर्ष पुरानी मानते हैं, तो कुछ 12,000 साल पुरानी।

मध्यप्रदेश के रायसेन जिले में स्थित पुरा-पाषाणिक भीमबेटका की गुफाएं भोपाल से 46 किलोमीटर की दूरी पर स्थित हैं। ये विंध्य पर्वतमालाओं से घिरी हुई हैं। भीमबेटका मध्यभारत के पठार के दक्षिणी किनारे पर स्थित विंध्याचल की पहाड़ियों के निचले हिस्से पर स्थित है। पूर्व पाषाणकाल से मध्य पाषाणकाल तक यह स्थान मानव गतिविधियों का केंद्र रहा।

छठा आध्यात्मिक रहस्य,सूर्य विद्या से भूख और प्यास पर कंट्रोल : – आज भी भारत की धरती पर ऐसे कई लोग हैं जिन्होंने कई वर्षों से भोजन नहीं किया, लेकिन वे सूर्य योग के बल पर आज भी स्वस्थ और जिंदा हैं। भूख और प्यास से मुक्त सिर्फ सूर्य के प्रकाश के बल पर वे जिंदा हैं।

प्राचीनकाल में ऐसे कई सूर्य साधक थे, जो सूर्य उपासना के बल पर भूख-प्यास से मुक्त ही नहीं रहते थे बल्कि सूर्य की शक्ति से इतनी ऊर्जा हासिल कर लेते थे कि वे किसी भी प्रकार का चमत्कार कर सकते थे। उनमें से ही एक सुग्रीव के भाई बालि का नाम भी लिया जाता है। बालि में ऐसी शक्ति थी कि वह जिससे भी लड़ता था तो उसकी आधी शक्ति छीन लेता था।

वर्तमान युग में प्रहलाद जानी इस बात का पुख्ता उदाहरण हैं कि बगैर खाए-पीए व्यक्ति जिंदगी गुजार सकता है। गुजरात में मेहसाणा जिले के प्रहलाद जानी एक ऐसा चमत्कार बन गए हैं जिसने विज्ञान को चौतरफा चक्कर में डाल दिया है। वैज्ञानिक समझ नहीं पा रहे हैं कि आखिर ऐसा कैसे संभव हो रहा है?

सातवां आध्यात्मिक रहस्य रहस्यमय पुस्तकें : – दुनिया की प्रथम पुस्तक होने का गौरव प्राप्त है ऋग्वेद को। भारत में अध्यात्म और रहस्यमयी ज्ञान की खोज ऋग्वेद काल से ही हो रही है जिसके चलते यहां ऐसे संत, दार्शनिक और लेखक हुए हैं जिनके लिखे हुए का तोड़ दुनिया में और कहीं नहीं मिलेगा। उन्होंने जो लिख दिया वह अमर हो गया। उनकी ही लिखी हुई बातों को 2री और 12वीं शताब्दी के बीच अरब, यूनान, रोम और चीन ले जाया गया, रूपांतरण किया गया और फिर उसे दुनिया के सामने नए सिरे से प्रस्तुत कर दिया गया।

वेद, उपनिषद, महाभारत, रामायण, मनु स्मृति और पुराणों के अलावा उपनिषद की कथाएं, पंचतंत्र, बेताल या वेताल पच्चीसी, जातक कथाएं, सिंहासन बत्तीसी, हितोपदेश, कथासरित्सागर, तेनालीराम की कहानियां, शुकसप्तति, कामसूत्र, कामशास्त्र, रावण संहिता, भृगु संहिता, लाल किताब, संस्कृत सुभाषित, सामुद्रिक विज्ञान, पंच पक्षी विज्ञान, अंगूठा विज्ञान, हस्तरेखा ज्योतिष, प्रश्न कुंडली विज्ञान, नंदी नड़ी ज्योतिष विज्ञान, सम्मोहन विज्ञान, विमान शास्त्र, योग सूत्र, परमाणु शास्त्र, शुल्ब सूत्र, श्रौतसूत्र, अगस्त्य संहिता, सिद्धांतशिरोमणि, चरक संहिता, सुश्रुत संहिता, च्यवन संहिता, शरीर शास्त्र, गर्भशास्त्र, रक्ताभिसरण शास्त्र, औषधि शास्त्र, रस रत्नाकर, रसेन्द्र मंगल, कक्षपुटतंत्र, आरोग्य मंजरी, योग सार, योगाष्टक, अष्टाध्यायी, त्रिपिटक, जिन सूत्र, समयसार, लीलावती, करण कुतूहल आदि लाखों ऐसी किताबें हैं जिनके दम पर आज विज्ञान, तकनीक आदि सभी क्षेत्रों में प्रगति हो रही है।

आठवां आध्यात्मिक रहस्य,रहस्यमयी पत्थर : – एक बार ओशो ने जानकारी दी थी कि 1937 में तिब्‍बत और चीन के बीच बोकाना पर्वत की एक गुफा में 716 पत्‍थर के रिकॉर्डर मिले हैं। जी हां, पत्‍थर के! आकार में वे रिकॉर्ड हैं। महावीर से 10,000 साल पुराने यानी आज से कोई 13,500 हजार साल पुराने।

ये रिकॉर्डर बड़े आश्‍चर्य के हैं, क्‍योंकि ये रिकॉर्डर ठीक वैसे ही हैं, जैसे ग्रामोफोन का रिकॉर्ड होता है। ठीक उसके बीच में एक छेद है और पत्‍थर पर ग्रूव्‍ज है, जैसे कि ग्रामोफोन के रिकॉर्ड पर होते हैं। अब तक यह राज नहीं खोला जा सका है कि वे किस यंत्र पर बजाए जाते रहे होंगे या बजाए जा सकेंगे।

लेकिन एक बात तो हो गई है- रूस के एक बड़े वैज्ञानिक डॉ. सर्जीएव ने वर्षों तक मेहनत करके यह प्रमाणित कर दिया है कि वे हैं तो रिकॉर्ड ही, पर किस यंत्र पर और किस सुई के माध्‍यम से वे पुनर्जीवित हो सकेंगे, यह अभी तय नहीं हो सका। अगर एकाध पत्‍थर का टुकड़ा होता तो सांयोगिक भी हो सकता है। 716 हैं।

सब एक जैसे, जिनमें बीच में छेद हैं। सब पर ग्रूव्‍ज है और उनकी पूरी तरह सफाई धूल-ध्वांस जब अलग कर दी गई और जब विद्युत यंत्रों से उनकी परीक्षा की गई, तब बड़ी हैरानी हुई। उनसे प्रति पल विद्युत की किरणें विकिरणित हो रही हैं। लेकिन क्‍या आदमी के पास आज से 12,000 साल पहले ऐसी कोई व्‍यवस्‍था थी कि वह पत्‍थरों में कुछ रिकॉर्ड कर सके? तब तो हमें सारा इतिहास और ढंग से लिखना होगा।

नौवां आध्यात्मिक रहस्य,प्राचीन विद्याएं : – प्राचीन काल से ही भारत में ऐसी कई विद्याएं प्रचलन में रही जिसे आधुनिक युग में अंध विश्वास या काला जादू मानकर खारिज कर दिया गया लेकिन अब उन्हीं विद्याओं पर जब पश्‍चिमी वैज्ञानिकों ने शोध किया तो उनको नया नाम मिला। जैसे प्राचीन त्राटक या सम्मोहन विद्या को आधुनिक युग में हिप्नोटिज्म और मेस्मेरिज्म कहा जाता है।

दूर संवेदन या परस्पर भाव बोध को आजकल टैलिपैथी कहा जाता है। कलारिपट्टू को मार्शल आर्ट कहा जाता है। प्राण विद्या के हम आज कई चमत्का‍र देखते हैं जैसे किसी ने अपने शरीर पर ट्रक चला लिया। किसी ने अपनी भुजाओं के बल पर प्लेन को उड़ने से रोक दिया। कोई जल के अंदर बगैर सांस लिए घंटों बंद रहा। किसी ने खुद को एक सप्ताह तक भूमि के दबाकर रखा। इसी प्राण विद्या के बल पर किसी को सात ताले में बंद कर दिया गया, लेकिन वह कुछ सेकंड में ही उनसे मुक्त होकर बाहर निकल आया। कोई किसी का भूत, भविष्य आदि बताने में सक्षम है तो कोई किसी की नजर बांध कर जेब से नोट गायब कर देता है।

इसके अलावा ऐसे हैरतअंगेज कारमाने जो सामान्य व्यक्ति नहीं कर सकता उसे करके लोगों का मनोरंजन करना यह सभी भारतीय प्राचीन विद्या को साधने से ही संभव हो पाता है। आज भी वास्तु और ज्योतिष का ज्ञान रखने वाले ऐसे लोग मौजूद है जो आपको हैरत में डाल सकते हैं।

वैदिक गणित, भारतीय संगीत, ज्योतिष, वास्तु, सामुद्रिक शास्त्र, हस्तरेखा, सम्मोहन, टैलीपैथी, काला जादू, तंत्र, सिद्ध मंत्र और टोटके, पानी बताना, गंभीर रोग ठीक कर देने जैसे चमत्कारिक प्रयोग आदि ऐसी हजारों विद्याएं आज भी प्रचलित है जिन्हें वैज्ञानिक रूप में समझने का प्रयास किया जा रहा है।

योग की सिद्धियां : कहते हैं कि नियमित यम‍-नियम और योग के अनुशासन से जहां उड़ने की शक्ति प्राप्त ‍की जा सकती है वहीं दूसरों के मन की बातें भी जानी जा सकती है। परा और अपरा सिद्धियों के बल पर आज भी ऐसे कई लोग हैं जिनको देखकर हम अचरज करते हैं।

सिद्धि का अर्थ : सिद्धि शब्द का सामान्य अर्थ है सफलता। सिद्धि अर्थात किसी कार्य विशेष में पारंगत होना। समान्यतया सिद्धि शब्द का अर्थ चमत्कार या रहस्य समझा जाता है, लेकिन योगानुसार सिद्धि का अर्थ इंद्रियों की पुष्टता और व्यापकता होती है। अर्थात, देखने, सुनने और समझने की क्षमता का विकास।

परा और अपरा सिद्धियां : सिद्धियां दो प्रकार की होती हैं, एक परा और दूसरी अपरा। विषय संबंधी सब प्रकार की उत्तम, मध्यम और अधम सिद्धियां ‘अपरा सिद्धि’ कहलाती है। यह मुमुक्षुओं के लिए है। इसके अलावा जो स्व-स्वरूप के अनुभव की उपयोगी सिद्धियां हैं वे योगिराज के लिए उपादेय ‘परा सिद्धियां’ हैं।

दसवां आध्यात्मिक रहस्य,पुनर्जन्म : – पुनर्जन्म या पूर्वजन्म के बारे में विस्तार से जानकारी भारतीय धर्म में ही मिलती है। आध्यात्मिक रहस्य का यह सबसे बड़ा पहलू है। यहूदी, ईसाईयत, इस्लाम जो पुनर्जन्‍म के सिद्धांत को नहीं मानते। उक्त तीनों धर्मों के समानांतर- हिंदू, जैन और बौद्ध यह तीनों धर्म मानते हैं कि पुनर्जन्म एक सच्चाई है।

हिंदू धर्म पुनर्जन्म में विश्वास रखता है। इसका अर्थ है कि आत्मा जन्म एवं मृत्यु के निरंतर पुनरावर्तन की शिक्षात्मक प्रक्रिया से गुजरती हुई अपने पुराने शरीर को छोड़कर नया शरीर धारण करती है। उसकी यह भी मान्यता है कि प्रत्येक आत्मा मोक्ष प्राप्त करती है, जैसा गीता में कहा गया है।

आधुनिक युग में पुनर्जन्म पर अमेरिका की वर्जीनिया यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिक डॉ. इयान स्टीवेंसन ने 40 साल तक इस विषय पर शोध करने के बाद एक किताब ‘रिइंकार्नेशन एंड बायोलॉजी’ लीखी थी जिसे सबसे महत्वपूर्ण शोध पुस्तक माना गया है।

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