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: सनातन संस्कार में शिखा
क्यों रखेंगे विज्ञान विश्लेषण

हमारे देश भारत में प्राचीन काल से ही भारतीय लोग सिर पे शिखा रखते आ रहे है ख़ास कर ब्राह्मण और गुरुजन। सिर के पीछे एक केन्द्रस्थान होता है प्राचीन काल में लोग भले ही पूरे सिर के बाल कटवा लेते थे लेकिन इस स्थान के बाल नहीं कटवाते थे। इस स्थान के बालों को शिखा के नाम से जाना जाता है।

आज भी बहुत से लोग हैं जो शिखा रखते हैं। शास्त्रों में बताया गया है कि शिखा के बालों को गांठ लगाकर रखना चाहिए। बहुत से लोग फैशन के चक्कर में शिखा रखना पसंद नहीं करते और इसे कटवा लेते हैं।

सिर पर शिखा रखने की परंपरा को इतना अधिक महत्वपूर्ण माना गया है कि , इस कार्य को आर्यों की पहचान तक माना लिया गया। यदि आप ये सोचते है की शिखा केवल परम्परा और पहचान का प्रतिक है तो आप गलत है। सिर पर शिखा रखने के पीछे बहुत बड़ी वैज्ञानिकता है जिसे आधुनिक काल में वैज्ञानिकों द्वारा सिद्ध भी किया जा चूका है। आज हम इस लेख में सिर पर शिखा की वैज्ञानिक आधार पर विवेचना करेंगे जिससे आप जान सके की हज़ारों वर्ष पूर्व हमारे पूर्वज ज्ञान विज्ञानं में हम से कितना आगे थे।
1.सर्वप्रमुख वैज्ञानिक कारण यह है कि शिखा वाला भाग, जिसके नीचे सुषुम्ना नाड़ी होती है, कपाल तन्त्र के अन्य खुली जगहोँ(मुण्डन के समय यह स्थिति उत्पन्न होती है)की अपेक्षा अधिक संवेदनशील होता है। जिसके खुली होने के कारण वातावरण से उष्मा व अन्यब्रह्माण्डिय विद्युत-चुम्बकी य तरंगोँ का मस्तिष्क से आदान प्रदान बड़ी ही सरलता से हो जाता है। और इस प्रकार शिखा न होने की स्थिति मेँ स्थानीय वातावरण के साथ साथ मस्तिष्क का ताप भी बदलता रहता है। लेकिन वैज्ञानिकतः मस्तिष्क को सुचारु, सर्वाधिक क्रियाशिल और यथोचित उपयोग के लिए इसके ताप को नियंन्त्रित रहना अनिवार्य होता है। जो शिखा न होने की स्थिति मेँ एकदम असम्भव है। क्योँकि शिखा(लगभग गोखुर के बराबर) इसताप को आसानी से सन्तुलित कर जाती है और उष्मा की कुचालकता की स्थिति उत्पन्न करके वायुमण्डल से उष्मा के स्वतः आदान प्रदान को रोक देती है। आज से कई हजार वर्ष पूर्व हमारे पूर्वज इन सब वैज्ञानिक कारणोँ से भलिभाँति परिचित है
2.जिस जगह शिखा (चोटी) रखी जाती है, यह शरीर के अंगों, बुद्धि और मन कोनियंत्रित करने का स्थान भी है। शिखाएक धार्मिक प्रतीक तो है ही साथ ही मस्तिष्क के संतुलन का भी बहुत बड़ा कारक है। आधुनिक युवा इसे रुढ़ीवाद मानते हैं लेकिन असल में यह पूर्णत: वैज्ञानिक है। दरअसल, शिखा के कई रूप हैं।
3.आधुनकि दौर में अब लोग सिर पर प्रतीकात्मक रूप से छोटी सी चोटी रख लेते हैं लेकिन इसका वास्तविक रूप यहनहीं है। वास्तव में शिखा का आकार गाय के पैर के खुर के बराबर होना चाहिए। इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि हमारे सिर में बीचोंबीच सहस्राह चक्र होता है। शरीर में पांच चक्र होते हैं,मूलाधार चक्र जो रीढ़ के नीचले हिस्सेमें होता है और आखिरी है सहस्राह चक्रजो सिर पर होता है। इसका आकार गाय के खुर के बराबर ही माना गया है। शिखा रखने से इस सहस्राह चक्र का जागृत करने और शरीर, बुद्धि व मन पर नियंत्रणकरने में सहायता मिलती है। शिखा का हल्का दबावहोने से रक्त प्रवाह भी तेजरहता है और मस्तिष्क को इसका लाभ मिलता है।
4.ऐसा भी है कि मृत्यु के समय आत्मा शरीर के द्वारों से बाहर निकलती है (मानव शरीर में नौ द्वार बताये गए है दो आँखे, दो कान, दो नासिका छिद्र, दो नीचे के द्वार, एक मुह )और दसवा द्वार यही शिखा या सहस्राह चक्र जो सिर में होता है , कहते है यदि प्राण इस चक्र से निकलते है तो साधक की मुक्ति निश्चत है.और सिर पर शिखा होने के कारणप्राण बड़ी आसानी से निकल जाते है. और मृत्यु हो जाने के बाद भी शरीर में कुछ अवयव ऐसेहोते है जो आसानी से नहींनिकलते, इसलिए जब व्यक्ति को मरने पर जलाया जाता है तो सिर अपनेआप फटता है और वह अवयव बाहर निकलता है यदि सिर पर शिखा होती है तो उस अवयव को निकलने की जगह मिल जाती है.
5.शिखा रखने से मनुष्य प्राणायाम, अष्टांगयोग आदि यौगिक क्रियाओं को ठीक-ठीक कर सकता है। शिखा रखने से मनुष्य की नेत्रज्योति सुरक्षित रहती है। शिखा रखने से मनुष्य स्वस्थ, बलिष्ठ, तेजस्वी और दीर्घायु होता है
योग और अध्यात्म को सुप्रीम सांइस मानकर जब आधुनिक प्रयोगशालाओं में रिसर्च किया गया तो, चोंटी के विषय में बड़े ही महत्वपूर्ण ओर रौचक वैज्ञानिक तथ्य सामने आए। शिखा रखने से मनुष्य लौकिक तथा पारलौकिक समस्त कार्यों में सफलता प्राप्त करता है वैदिक शास्त्र और ग्रंथ में ज्ञान धारण करने के लिए शिखा को प्राधान्य दिया गया है

जय सनातन धर्म

जन्म कुंडली के 12 भावों के नाम स्वरूप और कार्य।

शास्त्रों में 12 भावों के स्वरूप हैं और भावों के नाम के अनुसार ही इनका काम होता है। पहला भाव तन, दूसरा धन, तीसरा सहोदर, चतुर्थ मातृ, पंचम पुत्र, छठा अरि, सप्तम जाया, आठवाँ आयु, नवम धर्म, दशम कर्म, एकादश आय और द्वादश व्यय भाव कहलाता है़।

प्रथम भाव : इसे लग्न कहते हैं। अन्य कुछ नाम ये भी हैं : हीरा, तनु, केन्द्र, कंटक, चतुष्टय, प्रथम। इस भाव से मुख्यत: जातक का शरीर, मुख, मस्तक, केश, आयु, योग्यता, तेज, आरोग्य आदि विषयों का पता चलता है।

द्वितीय भाव : यह धन भाव कहलाता है। अन्य नाम हैं, पणफर, द्वितीय। इससे कुटुंब-परिवार, दायीं आंख, वाणी, विद्या, बहुमूल्य सामग्री का संग्रह, सोना-चांदी, चल-सम्पत्ति, नम्रता, भोजन, वाकपटुता आदि विषयों का पता चलता है।

तृतीय भाव : यह पराक्रम भाव के नाम से जाना जाता है। इसे भातृ भाव भी कहते हैं। अन्य नाम हैं आपोक्लिम, उपचय, तृतीय। इस भाव से भाई-बहन, दायां कान, लघु यात्राएं, साहस, सामर्थ्य अर्थात् पराक्रम, नौकर-चाकर, भाई बहनों से संबंध, पडौसी, लेखन-प्रकाशन आदि विषयों का पता चलता है।

चतुर्थ भाव : यह सुख भाव कहलाता है। अन्य नाम हैं- केन्द्र, कंटक, चतुष्टय। इस भाव से माता, जन्म समय की परिस्थिति, दत्तक पुत्र, हृदय, छाती, पति-पत्नी की विधि यानी कानूनी मामले, चल सम्पति, गृह-निर्माण, वाहन सुख आदि विषयों का पता चलता है।

पंचम भाव : यह सुत अथवा संतान भाव भी कहलाता है। अन्य नाम है-त्रिकोण, पणफर, पंचम। इस भाव से संतान अर्थात् पुत्र। पुत्रियां, मानसिकता, मंत्र-ज्ञान, विवेक, स्मरण शक्ति, विद्या, प्रतिष्ठा आदि विषयों का पता चलता है।

षष्ट भाव : इसे रिपुभाव कहते हैं। अन्य नाम हैं रोग भाव, आपोक्लिम, उपचय, त्रिक, षष्ट। इस भाव से मुख्यत: शत्रु, रोग, मामा, जय-पराजय, भूत, बंधन, विष प्रयोग, क्रूर कर्म आदि विषयों का पता चलता है।

सप्तम भाव : यह पत्नी भाव अथवा जाया भाव कहलाता है। अन्य नाम हैं-केन्द्र, कंटक, चतुष्टय, सप्तम। इस भाव से पति अथवा पत्नी, विवाह संबंध, विषय-वासना, आमोद-प्रमोद, व्यभिचार, आंतों, साझेदारी के व्यापार आदि विषयों का पता चलता है।

अष्टम भाव : इसे मृत्यु भाव भी कहते हैं। अन्य नाम हैं-लय स्थान, पणफर, त्रिक, अष्टम। आठवें भाव से आयु, मृत्यु का कारण, दु:ख-संकट, मानसिक पीड़ा, आर्थिक क्षति, भाग्य हानि, गुप्तांग के रोगों, आकस्मिक धन लाभ आदि विषयों का पता चलता है।

नवम भाव : इसे भाग्य भाव कहलाता हैं। अन्य नाम हैं त्रिकोण और नवम। भाग्य, धर्म पर आस्था, गुरू, पिता, पूर्व जन्म के पुण्य-पाप, शुद्धाचरण, यश, ऐश्वर्य, वैराग्य आदि विषयों का पता चलता है।

दशम भाव : यह कर्म भाव कहलाता है। अन्य नाम हैं- केन्द्र, कंटक, चतुष्टय-उपचय, राज्य, दशम। दशम भाव से कर्म, नौकरी, व्यापार-व्यवसाय, आजीविका, यश, सम्मान, राज-सम्मान, राजनीतिक विषय, पदाधिकार, पितृ धन, दीर्घ यात्राएं, सुख आदि विषयों का पता चलता है।

एकादश भाव : यह भाव आय भाव भी कहलाता है। अन्य नाम हैं- पणफर, उपचय, लब्धि, एकादश। इस भाव से प्रत्येक प्रकार के लाभ, मित्र, पुत्र वधू, पूर्व संपन्न कर्मों से भाग्योदय, सिद्धि, आशा, माता की मृत्यु आदि विषयों का पता चलता है।

द्वादश भाव : यह व्यय भाव कहलाता है। अन्य नाम हैं- अंतिम, आपोक्लिम, एवं द्वादश। इस भाव से धन व्यय, बायीं आंख, शैया सुख, मानसिक क्लेश, दैवी आपत्तियां, दुर्घटना, मृत्यु के उपरान्त की स्थिति, पत्नी के रोग, माता का भाग्य, राजकीय संकट, राजकीय दंड, आत्म-हत्या, एवं मोक्ष आदि विषयों का पता चलता है।

आइए इनके बारे में विस्तार से जानें:

प्रथम भाव : इस भाव से व्यक्ति की शरीर यष्टि, वात-पित्त-कफ प्रकृति, त्वचा का रंग, यश-अपयश, पूर्वज, सुख-दुख, आत्मविश्वास, अहंकार, मानसिकता आदि को जाना जाता है। इससे हमें शारीरिक आकृति, स्वभाव, वर्ण चिन्ह, व्यक्तित्व, चरित्र, मुख, गुण व अवगुण, प्रारंभिक जीवन विचार, यश, सुख-दुख, नेतृत्व शक्ति, व्यक्तित्व, मुख का ऊपरी भाग, जीवन के संबंध में जानकारी मिलती है। विस्तृत रूप में इस भाव से जनस्वास्थ्य, मंत्रिमंडल की परिस्थितियों पर भी विचार जाना जा सकता है।

द्वितीय भाव : इसे भाव से व्यक्ति की आर्थिक स्थिति, परिवार का सुख, घर की स्थिति, दाईं आँख, वाणी, जीभ, खाना-पीना, प्रारंभिक शिक्षा, संपत्ति आदि के बारे मे जाना जाता है। इससे हमें कुटुंब के लोगों के बारे में, वाणी, विचार, धन की बचत, सौभाग्य, लाभ-हानि, आभूषण, दृष्टि, दाहिनी आँख, स्मरण शक्ति, नाक, ठुड्डी, दाँत, स्त्री की मृत्यु, कला, सुख, गला, कान, मृत्यु का कारण जाना जाता है। इस भाव से विस्तृत रूप में कैद यानी राजदंड भी देखा जाता है। राष्ट्रीय विचार से राजस्व, जनसाधारण की आर्थिक दशा, आयात एवं वाणिज्य-व्यवसाय आदि के बारे में भी इसी भाव से जाना जा सकता है

तृतीय भाव : इस भाव से जातक के बल, छोटे भाई-बहन, नौकर-चाकर, पराक्रम, धैर्य, कंठ-फेफड़े, श्रवण स्थान, कंधे-हाथ आदि का विचार किया जाता है। इससे हमें भाई, पराक्रम, साहस, मित्रों से संबंध, साझेदारी, संचार-माध्यम, स्वर, संगीत, लेखन कार्य, वक्षस्थल, फेफड़े, भुजाएँ, बंधु-बांधव आदि का ज्ञान मिलता है। राष्ट्रीय ज्योतिष के लिए इस भाव से रेल, वायुयान, पत्र-पत्रिकाएँ, पत्र व्यवहार, निकटतम देशों की हलचल आदि के बारे में जाना जाता है।

चतुर्थ स्थान : इस भाव से मातृसुख, गृह सौख्य, वाहन सौख्य, बाग-बगीचा, जमीन-जायदाद, मित्र छाती पेट के रोग, मानसिक स्थिति आदि का विचार किया जाता है। इससे हमें माता, स्वयं का मकान, पारिवारिक स्थिति, भूमि, वाहन सुख, पैतृक संपत्ति, मातृभूमि, जनता से संबंधित कार्य, कुर्सी, कुआँ, दूध, तालाब, गुप्त कोष, उदर, छाती आदि का पता किया जाता है। राष्ट्रीय ज्योतिष हेतु शिक्षण संस्थाएं, कॉलेज, स्कूल, कृषि, जमीन, सर्वसाधारण की प्रसन्नता एवं जनता से संबंधित कार्य एवं स्थानीय राजनीति, जनता के बीच पहचान आदि देखा जाता है।

पंचम भाव : इस भाव से संतति, बच्चों से मिलने वाला सुख, विद्या बुद्धि, उच्च शिक्षा, विनय-देशभक्ति, पाचन शक्ति, कला, रहस्य शास्त्रों की रुचि, अचानक धन-लाभ, प्रेम संबंधों में यशनौकरी परिवर्तन आदि का विचार किया जाता है। इससे हमें विद्या, विवेक, लेखन, मनोरंजन, संतान, मंत्र-तंत्र, प्रेम, सट्टा, लॉटरी, अकस्मात धन लाभ, पूर्वजन्म, गर्भाशय, मूत्राशय, पीठ, प्रशासकीय क्षमता, आय जानी जाती है।

छठा भाव : इस भाव से जातक के शत्रुक, रोग, भय, तनाव, कलह, मुकदमे, मामा-मौसी का सुख, नौकर-चाकर, जननांगों के रोग आदि का विचार किया जाता है। इससे हमें शत्रु, रोग, ऋण, विघ्न-बाधा, भोजन, चाचा-चाची, अपयश, चोट, घाव, विश्वासघात, असफलता, पालतू जानवर, नौकर, वाद-विवाद, कोर्ट से संबंधित कार्य, आँत, पेट, सीमा विवाद, आक्रमण, जल-थल सैन्य के के बारे में पता चलता है।

सातवाँ भाव : इस भाव से विवाह सौख्य, शैय्या सुख, जीवनसाथी का स्वभाव, व्यापार, पार्टनरशिप, दूर के प्रवास योग, कोर्ट कचहरी प्रकरण में यश-अपयश आदि का ज्ञान होता है। इससे हमें स्त्री से संबंधित, विवाह, सेक्स, पति-पत्नी, वाणिज्य, क्रय-विक्रय, व्यवहार, साझेदारी, मूत्राशय, सार्वजनिक, गुप्त रोग तथा राष्ट्रीय दृष्टिकोण से नैतिकता, विदेशों से संबंध, युद्ध का पता चलता हैं।

आठवाँ भाव : इस भाव से आयु निर्धारण, दु:ख, आर्थिक स्थिति, मानसिक क्लेश, जननांगों के विकार, अचानक आने वाले संकटों का पता चलता है। इससे हमे मृत्यु, आयु, मृत्यु का कारण, स्त्री धन, गुप्त धन, उत्तराधिकारी, स्वयं द्वारा अर्जित मकान, जातक की स्थिति, वियोग, दुर्घटना, सजा, लांछन आदि का पता चलता है।

नवम भाव: इसे भाव से आध्यात्मिक प्रगति, भाग्योदय, बुद्धिमत्ता, गुरु, परदेश गमन, ग्रंथपुस्तक लेखन, तीर्थ यात्रा, भाई की पत्नी, दूसरा विवाह आदि के बारे में बताया जाता है। इससे हमें धर्म, भाग्य, तीर्थयात्रा, संतान का भाग्य, साला-साली, आध्यात्मिक स्थिति, वैराग्य, आयात-निर्यात, यश, ख्याति, सार्वजनिक जीवन, भाग्योदय, पुनर्जन्म, मंदिर-धर्मशाला आदि का निर्माण कराना, योजना विकास कार्य, न्यायालय से संबंधित कार्य पता चलते है।

दसवाँ भाव : इस भाव से पद-प्रतिष्ठा, बॉस, सामाजिक सम्मान, कार्य क्षमता, पितृ सुख, नौकरी व्यवसाय, शासन से लाभ, घुटनों का दर्द, सासू माँ आदि के बारे में पता चलता है। इससे हमें पिता, राज्य, व्यापार, नौकरी, प्रशासनिक स्तर, मान-सम्मान, सफलता, सार्वजनिक जीवन, घुटने, संसद, विदेश व्यापार, आयात-निर्यात, विद्रोह आदि के बारे में पता चलता है।

एकादश भाव : इसे भाव से मित्र, बहू-जँवाई, भेंट-उपहार, लाभ, आय के तरीके, पिंडली के बारे में जाना जाता है। इससे हमें मित्र, समाज, आकांक्षाएँ, इच्छापूर्ति, आय, व्यवसाय में उन्नति, ज्येष्ठ भाई, रोग से मुक्ति, टखना, द्वितीय पत्नी, कान, वाणिज्य-व्यापार, परराष्ट्रों से लाभ, अंतरराष्ट्रीय संबंध आदि पता चलता है।

द्वादश भाव: इस भाव से से कर्ज, नुकसान, परदेश गमन, संन्यास, अनैतिक आचरण, व्यसन, गुप्त शत्रु, शैय्या सुख, आत्महत्या, जेल यात्रा, मुकदमेबाजी का विचार किया जाता है। इससे हमें व्यय, हानि, दंड, गुप्त शत्रु, विदेश यात्रा, त्याग, असफलता, नेत्र पीड़ा, षड्यंत्र, कुटुंब में तनाव, दुर्भाग्य, जेल, अस्पताल में भर्ती होना, बदनामी, भोग-विलास, बायाँ कान, बाईं आँख, ऋण आदि के बारे में जाना जाता है।

जन्म कुंडली के कारकत्व अर्थात 12 भावों से ज्ञात किये जा सकने वाले विषयों की जानकारी :

  1. प्रथम लग्न, उदय, आद्य,तनु,जन्म, विलग्न, होय शरीर का वर्ण, आकृति, लक्षण, यश, गुण, स्थान, सुख दुख, प्रवास, तेज बल
  2. द्वितीय स्व कुटुंब, वाणी, अर्थ, मुक्ति, नयन धन, नेत्र, मुख, विद्या, वचन, कुटुंब, भोजन, पैतॄक धन,
  3. तॄतीय पराक्रम, सहोदर, सहज, वीर्य, धैर्य, भ्राता, पराक्रम, साहस, कंठ, स्वर, श्रवण, आभरण, वस्त्र, धैर्य, बल, मुल, फ़ल।
  4. चतुर्थ सुख, पाताल, मातृ, विद्या, यान, यान, बंधु, मित्र, अंबु विद्या, माता, सुख, गौ, बंधु, मनोगुण, राज्य, यान, वाहन, भूमि, गॄह, हॄदय
  5. पंचम बुद्धि, पितॄ, नंदन, पुत्र, देवराज, पंचक देवता, राजा, पुत्र, पिता, बुद्धि, पुण्य, यातरा, पुत्र प्राप्ति, पितृ विचार (सूर्य से)
  6. षष्ठ रोग, अंग, शस्त्र, भय, रिपु, क्षत, रोग, श्त्रु, व्यसन, व्रण, घाव (मंगल से भी विचारणीय),
  7. सप्तम जामित्र, द्यून, काम, गमन, कलत्र, संपत, अस्त। संपूर्ण यात्रा, स्त्री सुख, पुत्र विवाह (शुक्र से भी विचारणीय)
  8. अष्टम आयु, रंध्र, रण, मॄत्यु, विनाश, आयु (शनि से भी विचारणीय)
  9. नवम धर्म, गुरू, शुभ, तप, नव, भाग्य, अंक। भाग्य, प्रभाव, धर्म, गुरू, तप, शुभ (गुरू से भी विचारणीय)
  10. दशम व्यापार, मध्य, मान, ज्ञान, राज, आस्पद, कर्म, आज्ञा, मान, व्यापार, भूषण, निद्रा, कॄषि, प्रवज्या, आगम, कर्म, जीवन, जिविका, वृति, यश, विज्ञान, विद्या,
  11. एकादश भव, आय, लाभ संपूर्ण धन प्राप्ति, लोभ, लाभ, लालच, दासता
  12. द्वादश व्यय, लंबा सफ़र, दुर्गति, कुत्ता, मछली, मोक्ष, भोग, स्वप्न, निद्रा, (शनि राहु से भी विचारणीय)

जन्म कुंडली में दशम घर या दशमेश से व्यवसाय का निर्धारण होता है। दशमेश की विभिन्न भावो में स्थिति के अनुसार कार्य।

  1. दशमेश यदि पहले भाव में हो तो व्यक्ति सरकारी सेवा करता है या उसका निज का स्वतंत्र व्यवसाय होता है।
  2. दूसरे भाव में हो तो बैंकिंग, अध्यापन, वकालत, पारिवारिक काम, होटल व रेस्तरां, आभूषण एवम नेत्रों का चिकित्सक या ऐनकों से सम्बंधित व्यवसाय होगा।
  3. तीसरे भाव में हो तो रेलवे, परिवहन, डाक एवम तार, लेखन, पत्रकारिता, मुद्रण, साहसिक कार्य, नौकरी, गायन-वादन से सम्बंधित व्यवसाय होगा।
  4. चौथे भाव में हो तो खेती -बाड़ी, नेवी, खनन, जमीन-जायदाद, वाहन उद्योग, जनसेवा, राजनीति, लोक निर्माण विभाग, जल परियोजना, आवास निर्माण, आर्किटेक्ट, सहकारी उद्यम इत्यादि से सम्बंधित व्यवसाय हो सकता है।
  5. पांचवें भाव में हो तो शिक्षण, शेयर मार्केट, आढत-दलाली, लाटरी, प्रबंधन, कला-कौशल, मंत्री पद, लेखन,फिल्म निर्माण इत्यादि से सम्बंधित व्यवसाय हो सकता है।
  6. छठे भाव में हो तो जन स्वास्थ्य, नर्सिंग होम, अस्त्र -शस्त्र, सेना, जेल, चिकित्सा, चोरी, आपराधिक कार्य, मुकद्दमेबाजी तथा पशुओं इत्यादि से सम्बंधित व्यवसाय हो सकता है।
  7. सातवें भाव में हो तो विदेश सेवा, आयात-निर्यात, सहकारी उद्यम, व्यापार, यात्राएं, रिश्ते कराने का काम इत्यादि से सम्बंधित व्यवसाय हो सकता है।
  8. आठवें भाव में हो तो बीमा, जन्म -मृत्यु विभाग,वसीयत, मृतक का अंतिम संस्कार कराने का काम, आपराधिक कार्य, फाईनैंस इत्यादि से सम्बंधित व्यवसाय हो सकता है।
  9. नवें भाव में हो तो पुरोहिताई, अध्यापन, धार्मिक संस्थाएं, न्यायालय, धार्मिक साहित्य, प्रकाशन शोध कार्य इत्यादि से सम्बंधित व्यवसाय हो सकता है।
  10. दसवें भाव में हो तो राजकीय एवम प्रशासकीय सेवा, उड्डयन क्षेत्र, राजनीति, मौसम विभाग, अन्तरिक्ष, पैतृक कार्य इत्यादि से सम्बंधित व्यवसाय हो सकता है।
  11. ग्यारहवें भाव में हो तो लोक या राज्य सभा पद, आयकर, बिक्री कर, सभी प्रकार के राजस्व, वाहन, बड़े उद्योग इत्यादि से सम्बंधित व्यवसाय हो सकता है।
  12. बारहवें भाव में हो तो कारागार, विदेश प्रवास,राजदंड इत्यादि से सम्बंधित व्यवसाय हो सकता है।
    [: ईश्वर निराकार हैं

१. परमात्मा सर्वशक्तिमान, स्थूल, सूक्षम तथा कारण शरीर से रहित, छिद्र रहित, नाड़ी आदि के साथ सम्बन्ध रूप बंधन से रहित, शुद्ध, अविद्यादि दोषों से रहित, पाप से रहित सब तरफ से व्याप्त हैं। जो कवि तथा सब जीवों की मनोवृतिओं को जानने वाला और दुष्ट पापियों का तिरस्कार करने वाला हैं। अनादी स्वरुप जिसके संयोग से उत्पत्ति वियोग से विनाश, माता-पिता गर्भवास जन्म वृद्धि और मरण नहीं होते वह परमात्मा अपने सनातन प्रजा (जीवों) के लिए यथार्थ भाव से वेद द्वारा सब पदार्थों को बनाता हैं।-यजुर्वेद ४०/८

२. परमेश्वर की प्रतिमा, परिमाण उसके तुल्य अवधिका साधन प्रतिकृति आकृति नहीं हैं अर्थात परमेश्वर निराकार हैं। यजुर्वेद ३२/३

३. अखिल अखिल ऐशवर्य संपन्न प्रभु पाँव आदि से रहित निराकार हैं। ऋग्वेद ८/६९/११

४. ईश्वर सबमें हैं और सबसे पृथक हैं। (ऐसा गुण तो केवल निराकार में ही हो सकता हैं) यजुर्वेद ३१/१

५. जो परमात्मा प्राणियों को सब और से प्राप्त होकर, पृथ्वी आदि लोकों को सब ओर से व्याप्त होकर तथा ऊपर निचे सारी पूर्व आदि दिशाओं को व्याप्त होकर, सत्य के स्वरुप को सन्मुखता से सम्यक प्रवेश करता हैं, उसको हम कल्प के आदि में उत्पन्न हुई वेद वाणी को जान कर अपने शुद्ध अन्तकरण से प्राप्त करें। (ऐसा गुण तो केवल निराकार में ही हो सकता हैं) यजुर्वेद ३२/११

इनके अलावा और भी अनेक मंत्र से वेदों में ईश्वर का अजन्मा, निराकार, सर्वव्यापक, अजर आदि सिद्ध होता हैं। जिस दिन मनुष्य जाति वेद में वर्णित ईश्वर को मानने लगेगी उस दिन संसार से धर्म के नाम पर हो रहे सभी प्रकार के अन्धविश्वास एवं पापकर्म समाप्त हो जायेगे
[: सुख कहाँ है बाहर या भीतर
भाग——–2
मानव का खालीपन संसार के बाहरी वस्तुओं से नही भर सकता है क्योंकि अगर बाहरी वस्तुओं से खालीपन भर जाता तो हर वो व्यक्ति सुखी होता जिसके पास बाहरी वस्तुओं का भंडार है।
सुख ओर शांति हमारे भीतर है प्रभु राम के पास कुछ नही था लेकिन फिर भी सुखी थे लेकिन रावण के पास सबकुछ था लेकिन दुःखी था कारण है रावण अपने भीतर उस सनातन सुख को नही जाना था।
सुख का अर्थ–
सु– सुंदर ओर ख– आकाश।
अर्थात सुंदर आकाश (आकाश का अर्थ बाहर वाले आकाश की बात नही की गई है यहाँ अपने भीतर की आकाश की बात की गई है जहाँ सभी तिलक लगाते है जहाँ बिंदी लगाते है। वह स्थान को आकाश कहा गया है ओर वही परमात्मा का निवास स्थान है जब अपने भीतर परमात्मा का दर्शन करते है तब हमारा मन,इन्द्रियाँ,बुद्धि सब कुछ ईश्वर पर केंद्रित होती है और तब जो सुख का अनुभव होता है उसे लिख पाना असम्भव है। जब अपने भीतर उस सुख को अनुभव करेंगे तो सारा संसार ही सुख दायक लगेगा क्योंकि संसार जिसने बनाया है जब उसको देख लेंगे तब संसार को देखने का नजरिया भी बदल जाएगा इसलिए तो जितने भी भक्त हुए है जिनका नाम हम् लेते है वे सब संसार को अलग दृष्टि से देखते थे और चाहे कितना भी बाहरी दुःख-कष्ट आया लेकिन फिर भी घबड़ाये नही बल्कि उसे हँसते हुए स्वीकार किए।
लेकिन आज का मानव उस शाश्वत सुख को पा नही सक रहा है क्योंकि उसने अपने भीतर परमात्मा का दर्शन नही किया और परमात्मा का दर्शन इसलिए नही किया क्योंकि मानव उनके शरण मे नही गया जो मानव के भीतर ही परमात्मा का दर्शन करवा दे।
बाहर जितने भी वैभव-धन है उसको भोगना उतना ही है जितने में अपना ओर समाज का कल्याण हो अगर भोग को ज्यादा भोगेंगे तो वही भोग हमारे दुःख को जन्म देती है लेकिन जब हम् किसी पूर्ण सद्गुरु के शरण मे जाते है तब वो हमें आत्मज्ञान/ब्रह्मज्ञान/दिव्यज्ञान प्रदान कर हमारे भीतर ही परमात्मा का दर्शन करवा देते है और तब हम् चाह कर भी गलत कर्म नही कर सकते है क्योंकि हमारे भीतर की शक्ति जाग्रत हो जाती है और वही शक्ति हमारे बुरे समय मे साथ देती है और दुख का पता भी नही चलता है। प्रह्लाद,मीराबाई,कबीरदास,स्वामी विवेकानंद जी के पास वो ज्ञान था इसलिए इनके जीवन मे कितना भी दुख आया ये न तो घबड़ाये न ही गलत कर्म किए अपितु इन्होंने पूरे संसार को दुख से निवारण ही किए।
अगर जीवन के बाहरी दुख हो या भीतर के दुख हो उन सभी से बचना चाहते है तो पूर्णसद्गुरु के सानिध्य में जाकर परमात्मा दर्शन की मांग कीजिए तत्क्षण(ज्ञान के समय ही दर्शन करवाएंगे) फिर जो शांति जीवन मे मिलेगा वो तो अनुभव के बाद ही समाज को आप स्वयं देंगे।
🌷🕉श्री परमात्मने नमः🌷

क्रोध पाप का मूल है ..


   💐वस्तुतः सर्वसिद्ध तथ्य यह है कि क्रोध सदा विनाशक ही होता है। क्रोध जहाँ फेंका जाये उसकी तो हानि करता ही है, जिस बर्तन में रहता है उसे भी छीलता रहता है। 

“दैव संशयी गांठ न छूटै, काम-क्रोध माया मद मत्सर, इन पाँचहु मिल लूटै।”~ रविदास

    💐भारतीय संस्कृति में जहाँ धर्म, अर्थ, काम, और मोक्ष नामक चार पुरुषार्थ काम्य हैं, उसी प्रकार बहुत से मौलिक पाप भी परिभाषित हैं। कहीं 4, कहीं 5, कहीं 9, संख्या भिन्न हो सकती है लेकिन फिर भी काम, क्रोध, लोभ, मोह, यह चार दुर्गुण सदा ही पाप की सूची में निर्विवाद रहे हैं--

“वांछनीय = चार पुरुषार्थ = धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष
अवांछनीय = चार पाप = काम, क्रोध, लोभ, मोह”

 क्रोध, लोभ, मोह जैसे दुर्गुणों के विपरीत कामना अच्छी, बुरी दोनों ही हो सकती है। जीते-जी क्रोध, लोभ, और मोह जैसे दुर्गुणों से बचा जा सकता है परंतु कामना से पीछा छुड़ाना कठिन है, कामना समाप्त तो जीवन समाप्त। इसलिये सत्पुरुष अपनी कामना को जनहितकारी बनाते हैं। जहाँ हम अपनी कामना से प्रेरित होते हैं, वहीं संत/भक्त प्रभु की कामना से - जगत-हितार्थ। बहुत से संत तब आत्मत्याग कर देते हैं जब उन्हें लगता है कि या तो उद्देश्य पूरा हुआ या समय। इसलिये काम अवांछनीय व काम्य दोनों ही सूचियों में स्थान पाता रहा है।।
यह भी--

“लखन कहेउ हँसि सुनहु मुनि क्रोध पाप कर मूल।
जेहिबस जन अनुचित करहिं चलहिं विश्व प्रतिकूल॥”
~ तुलसीदास

   गीता के अनुसार रजोगुणी व्यक्तित्व की अतृप्त अभिलाषा 'क्रोध' बन जाती है। गीता में ही क्रोध, अहंकार, और द्रोह को अवांछनीय बताया गया है। पौराणिक ग्रंथों के अनुसार भी क्रोध हमारे आंतरिक शत्रुओं में से एक है। ॠग्वेद में असंयम, क्रोध, धूर्तता, चौर कर्म, हत्या, प्रमाद, नशा, द्यूतक्रीड़ा आदि को पाप के रुप में माना गया है और इन सबको दूर करने के लिए देवताओं का आह्वान किया गया है।  मनुस्मृति के अनुसार धर्म के दस मूल लक्षणों में एक "अक्रोध" है।   
 संत कबीर ने क्रोध के मूल में अहंकार को माना है---

“कोटि करम लोग रहै, एक क्रोध की लार।
किया कराया सब गया, जब आया हंकार॥”

   क्रोध के विषय में  सदैव स्मरणीय यह है कि अक्रोध के साथ किसी आततायी का विवेकपूर्ण और द्वेषरहित प्रतिरोध करना क्रोध नहीं है। इसी प्रकार भय, प्रलोभन अथवा अन्य किसी कारण से उस समय क्रोध को येन-केन दबा या छिपाकर शांत रहने का प्रयास करना अक्रोध की श्रेणी में नहीं आएगा। स्वयं की इच्छा पूर्ति में बाधा पड़ने के कारण जो विवेकहीन क्रोध आता है वह अधर्म है। अत: जीवन में अक्रोध का अभ्यास करते समय इस अत्यंत महत्वपूर्ण अंतर को सदैव ध्यान में रखना चाहिए। अंतर बहुत महीन है इसलिये हमें अक्सर भ्रम हो जाते हैं। क्रोध शक्तिहीनता का परिचायक है, वह कमजोरी और कायरता का लक्षण है--

“क्रोध पाप ही नहीं, पाप का मूल है। अक्रोध पुण्य है, धर्म है, वरेण्य है। “
क्रोध एवम क्षमा परस्पर विरोधी भाव हैं। क्रोधजनित व्यक्ति के हृदय में क्षमा का भाव नहीं आ सकता। अक्रोध और क्षमा में भी सूक्ष्म अंतर है। अक्रोध में क्रोध का अभाव है अन्याय के प्रतिकार का नहीं। अक्रोध होते हुए भी हम अन्याय को होने से रोक सकते हैं। निर्बलता की स्थिति में रोक न भी सकें, प्रतिरोध तो उत्पन्न कर ही सकते हैं। जबकि क्षमाशीलता में अन्याय कर चुके व्यक्ति को स्वीकारोक्ति, पश्चात्ताप, संताप या किसी अन्य समुचित कारण से दण्ड से मुक्त करने की भावना है। क्रोध पालने और बढावा देने पर द्रोह के रूप में बढता जाता है।

अवधेय यह भी है–
“जहां क्रोध तहं काल है, जहां लोभ तहं पाप।
जहां दया तहं धर्म है, जहां क्षमा तहं आप॥”
~कबीरदास

         आत्मावलोकन और अनुशासन के बिना हम इन भावनात्मक कमज़ोरियों पर नियन्त्रण नहीं पा सकते हैं। भावनात्मक परिपक्वता और चारित्रिक दृढता क्रोध पर नियंत्रण पाने में सहायक सिद्ध होती हैं। लेकिन कई बार इन से पार पाना असम्भव सा लगता है। ऐसी स्थिति में धैर्य एवं संयम की दृढ़ता की सहायता आवश्यक हो जाती है। आवश्यक है कि समय रहते समस्या की गम्भीरता को पहचाना जाये और उसके दुष्प्रभाव से बचा जाये। क्या आप समझते हैं कि क्रोध कभी अच्छा भी हो सकता है? यदि हाँ तो क्या आपको अपने जीवन से या इतिहास से ऐसा कोई उदाहरण याद आता है जहाँ क्रोध विनाशकारी नहीं था? 
 यह भी सिद्ध परिणाम है--

“क्रोध की उत्पत्ति मूर्खता से होती है और समाप्ति लज्जा पर “💐

🌷तन को निर्मल बना दे वह नीर होता है।
शान्ति से सहन करे वह धीर होता है।
क्रोध करने वाले में छिपी है कायरता,
समभावी क्षमाशील ही नर-वीर होता है॥🌷

🌹मन्युरसि मन्युं मयि देहि 🌹

🌷🌷🌷स्वस्ति🌷🌷🌷
[1] मुख्य द्वार के पास कभी भी कूड़ादान ना रखें इससे पड़ोसी शत्रु हो जायेंगे |

[२] सूर्यास्त के समय किसी को भी दूध,दही या प्याज माँगने पर ना दें इससे घर की बरक्कत समाप्त हो जाती है |

[३] छत पर कभी भी अनाज या बिस्तर ना धोएं..हाँ सुखा सकते है इससे ससुराल से सम्बन्ध खराब होने लगते हैं |

[४] फल खूब खाओ स्वास्थ्य के लिए अच्छे है लेकिन उसके छिलके कूडादान में ना डालें वल्कि बाहर फेंकें इससे मित्रों से लाभ होगा |

[५] माह में एक बार किसी भी दिन घर में मिश्री युक्त खीर जरुर बनाकर परिवार सहित एक साथ खाएं अर्थात जब पूरा परिवार घर में इकट्ठा हो उसी समय खीर खाएं तो माँ लक्ष्मी की जल्दी कृपा होती है |

[६] माह में एक बार अपने कार्यालय में भी कुछ मिष्ठान जरुर ले जाएँ उसे अपने साथियों के साथ या अपने अधीन नौकरों के साथ मिलकर खाए तो धन लाभ होगा |

[७] रात्री में सोने से पहले रसोई में बाल्टी भरकर रखें इससे क़र्ज़ से शीघ्र मुक्ति मिलती है और यदि बाथरूम में बाल्टी भरकर रखेंगे तो जीवन में उन्नति के मार्ग में बाधा नही आवेगी |

[८] वृहस्पतिवार के दिन घर में कोई भी पीली वस्तु अवश्य खाएं हरी वस्तु ना खाएं तथा बुधवार के दिन हरी वस्तु खाएं लेकिन पीली वस्तु बिलकुल ना खाएं इससे सुख समृद्धि बड़ेगी |

[९] रात्रि को झूठे बर्तन कदापि ना रखें इसे पानी से निकाल कर रख सकते है हानि से बचोगें |

[१०] स्नान के बाद गीले या एक दिन पहले के प्रयोग किये गये तौलिये का प्रयोग ना करें इससे संतान हठी व परिवार से अलग होने लगती है अपनी बात मनवाने लगती है अतः रोज़ साफ़ सुथरा और सूखा तौलिया ही प्रयोग करें |

[११] कभी भी यात्रा में पूरा परिवार एक साथ घर से ना निकलें आगे पीछे जाएँ इससे यश की वृद्धि होगी |
ऐसे ही अनेक अपशकुन है जिनका हम ध्यान रखें तो जीवन में किसी भी समस्या का सामना नही करना पड़ेगा तथा सुख समृद्धि बड़ेगी |
Kuchh vaastu tips🔴🔴🔴🔴
💥१. घर में सुबह सुबह कुछ देर के लिए भजन अवशय लगाएं ।
💥२. घर में कभी भी झाड़ू को खड़ा करके नहीं रखें, उसे पैर नहीं लगाएं, न ही उसके ऊपर से गुजरे अन्यथा घर में बरकत की कमी हो जाती है। झाड़ू हमेशा छुपा कर रखें |
💥३. बिस्तर पर बैठ कर कभी खाना न खाएं, ऐसा करने से धन की हानी होती हैं। लक्ष्मी घर से निकल जाती है1 घर मे अशांति होती है1
💥४. घर में जूते-चप्पल इधर-उधर बिखेर कर या उल्टे सीधे करके नहीं रखने चाहिए इससे घर में अशांति उत्पन्न होती है।
💥५. पूजा सुबह 6 से 8 बजे के बीच भूमि पर आसन बिछा कर पूर्व या उत्तर की ओर मुंह करके बैठ कर करनी चाहिए । पूजा का आसन जुट अथवा कुश का हो तो उत्तम होता है |
💥६. पहली रोटी गाय के लिए निकालें। इससे देवता भी खुश होते हैं और पितरों को भी शांति मिलती है |
💥७.पूजा घर में सदैव जल का एक कलश भरकर रखें जो जितना संभव हो ईशान कोण के हिस्से में हो |
💥८. आरती, दीप, पूजा अग्नि जैसे पवित्रता के प्रतीक साधनों को मुंह से फूंक मारकर नहीं बुझाएं।
💥९. मंदिर में धूप, अगरबत्ती व हवन कुंड की सामग्री दक्षिण पूर्व में रखें अर्थात आग्नेय कोण में |
💥१०. घर के मुख्य द्वार पर दायीं तरफ स्वास्तिक बनाएं |
💥११. घर में कभी भी जाले न लगने दें, वरना भाग्य और कर्म पर जाले लगने लगते हैं और बाधा आती है |
💥१२. सप्ताह में एक बार जरुर समुद्री नमक अथवा सेंधा नमक से घर में पोछा लगाएं | इससे नकारात्मक ऊर्जा हटती है |
💥१३. कोशिश करें की सुबह के प्रकाश की किरणें आपके पूजा घर में जरुर पहुचें सबसे पहले |
💥१४. पूजा घर में अगर कोई प्रतिष्ठित मूर्ती है तो उसकी पूजा हर रोज निश्चित रूप से हो, ऐसी व्यवस्था करे |

🌹🙏🌹🙏🌹🙏🌹
|| हर हर महादेव ||
तनाव प्रबंधन भगवान शंकर से सीखें

1- जटा में गंगा और त्रिनेत्र में अग्नि (जल और आग की दुश्मनी).

2- चन्द्रमा में अमृत और गले मे जहर (अमृत और जहर की दुश्मनी).

3- शरीर मे भभूत और भूत का संग ( भभूत और भूत की दुश्मनी).

4- गले मे सर्प और पुत्र गणेश का वाहन चूहा और पुत्र कार्तिकेय का वाहन मोर ( तीनो की आपस मे दुश्मनी).

5- नन्दी (बैल) और मां भवानी का वाहन सिंह ( दोनों में दुश्मनी).

6- एक तरफ तांडव और दूसरी तरफ गहन समाधि ( विरोधाभास).

7- देवाधिदेव लेकिन स्वर्ग न लेकर हिमालय में तपलीन.

8- भगवान विष्णु इन्हें प्रणाम करते है और ये भगवान विष्णु को प्रणाम करते है।

इत्यादि इतने विरुद्ध स्वभाव के वाहन और गणों के बाद भी, सबको साथ लेकर चिंता से मुक्त रहते है। तनाव रहित रहते हैं।

और हम लोग विपरीत स्वभाव वाले सास-बहू, दामाद-ससुर, बाप-बेटे , माँ-बेटी, भाई-बहन, ननद-भाभी इत्यादि की नोकझोंक में तनावग्रस्त हो जाते है। ऑफिस में विपरीत स्वभाव के लोगों के व्यवहार देखकर तनावग्रस्त हो जाते हैं।

भगवान शंकर बड़े बड़े राक्षसों से लड़ते है और फिर समाधि में ध्यानस्थ हो जाते है, हम छोटी छोटी समस्या में उलझे रहते है और नींद तक नहीं आती।

युगनिर्माण में आने वाली कठिनाई से डर जाते है, सँगठित विपरीत स्वभाब वाले एक उद्देश्य के लिए रह ही नहीं पाते है।

भगवान शंकर की पूजा तो करते है, पर उनके गुणों को धारण नहीं करते।
।। ॐ नमः शिवाय।। 🙏🌹आदेश 🚩🔱🔥📿🌸🍁
[ 🌸सुबह की बासी लार के क्या फायदे हैं ? – Health benefits of Saliva :

सुबह की बासी लार के अनेकों फायदे है। आयुर्वेद में हजारों साल पहले ऋषि बाग्वट ने लार के अनेकों फायदे बताए थे। लार में ऐसे 18 तत्व पाए जाते है जो मिट्टी में पाए जाते है।

फायदे:
1) अगर आपके आंखो के आस पास काले घेरे है तो सुबह मुंह की लार से धीरे-धीरे अपने आंखों के आसपास मलें। कुछ ही दिनों में काले घेरे दूर हो जाएंगे। साथ सुबह की लार काजल की तरह आंखों में लगाने से, आंखों की रोशनी बढ़ती है। इसके अलावा ये कंजक्टिवाइटिस यानी आंख आने की समस्‍या को दूर करने में भी मदद करती है।

2) अगर किसी को दाद हो या मुंहासों की समस्‍या होती है बासी लार को चेहरे पर लगाने से ये खत्‍म हो जाता है। शरीर में होने वाले फोड़े-फुंसियों या घाव के भरने के बाद जो दाग रह जाते है उनको दूर करने में भी सुबह की लार बहुत काम आती है। शरीर में कहीं कटने, छिलने या घाव होने पर सुबह की लार लगाने से बहुत फायदा होता है। यहां तक की लार डायबिटीज के रोगियों के घाव पर भी रामबाण की तरह काम करती है।

3) हमारे पाचन-तंत्र को दुरुस्त करने के लिए लार से बढ़िया और कोई दवा नहीं है। लार में टायलिन नामक एंजाइम पाया जाता है, इसलिए सुबह उठते ही एक गिलास पानी पीने से आपकी लार सीधे आपके पेट में चली जाती है। ऐसा रोजाना करने से कभी पाचन संबंधी परेशानियां नहीं होती है।

4) लार में सोडियम, पोटैशियम, फास्फेट, कैल्शियम, प्रोटीन, ग्लूकोज जैसे तत्व होते हैं जो दांतों को मजबूत बनाते हैं। इसमें मौजूद एंटीबॉयोटिक दांतों को हानिकारक संक्रमणों से बचाते हैं जिससे दांत सड़ते नहीं। यह दांतों पर सुरक्षा कवच की तरह काम करती है।

5) कई बार मुंह में लार कम बनने से भी सांसों से बदबू की समस्या हो सकती है। मुंह में रह गए भोजन के कण और बैक्टीरिया कई बार इन्फेक्शन पैदा कर देते हैं जिससे भी सांसों से बदबू आती है। लार से इन कणों और बैक्टीरिया को खत्म करने में मदद करती है।

जरा ध्यान दे:
1)ध्रुमपान,तम्बाकू का प्रयोग ना करे इससे आपकी लार दूषित होती है।
2)सुबह उठते ही 1–2 गिलास पानी अवश्य पिए।
3)किसी भी स्थिति में अपने डॉक्टर से परामर्श अवश्य लें । 🍂🍃
[: 🌸आपका जीवन साथी कौन है?

माँ
पिता
बीवी
बेटा
पति
बेटी
दोस्त…????

  *बिल्कुल नहीं*

आपका असली जीवन साथी
आपका शरीर है ..

एक बार जब आपका शरीर जवाब देना बंद कर देता है तो कोई भी आपके साथ नहीं है।

आप और आपका शरीर जन्म से लेकर मृत्यु तक एक साथ रहते हैं।

जितना अधिक आप इसकी परवाह करते हैं, उतना ही ये आपका साथ निभाएगा।

आप क्या खाते हो?
फ़िट होने के लिए आप क्या करते हैं?
आप तनाव से कैसे निपटते हैं?

आप कितना आराम करते हैं?
आपका शरीर वैसा ही जवाब देगा।
याद रखें कि आपका शरीर एकमात्र स्थायी पता है जहां आप रहते हैं।

आपका शरीर आपकी संपत्ति है, जो कोई और साझा नही कर सकता ।

आपका शरीर आपकी
ज़िम्मेदारी है।
इसलिये,
आप हो इसके असली
जीवनसाथी।

हमेशा के लिए फिट रहिए
अपना ख्याल रखिए,
पैसा आता है और चला जाता है
रिश्तेदार और दोस्त भी
स्थायी नही हैं। आते हैं चले जाते है
याद रखिये,
कोई भी आपके अलावा आपके शरीर की मदद नहीं कर सकता है।

आप रोज करें:-
प्राणायाम – फेफड़ों के लिए
ध्यान – मन के लिए
योग-आसन – शरीर के लिए
चलना – दिल के लिए
अच्छा भोजन – आंतों के लिए
अच्छे विचार – आत्मा के लिए
*अच्छे कर्म – दुनिया के लिए *इसलिए स्वस्थ रहिए, फिट रहिए और प्रसन्न रहिए।*🏃🏼😊✍🙏🍂🍃
[गुर्दों के रोग का आयुर्वेदिक इलाज*

  1. लोकी में शेष्ठ किस्म का पोटेशियम प्रचुर मात्रा में मिलता है , इसलिए यह गुर्दे के रोगों में बहुत उपयोगी है और इससे पेशाब खुलकर आता है
  2. गुर्दों की सेहत अच्छी बनाए रखने के लिए दिन में कम से कम दो बार गुनगुना पानी पीना चाहिए !
  3. ताजा मक्का के भुट्टे को पानी में उबालकर , उस पानी को छान्कार्ट मिश्री मिलाकर पिने से पेशाब की जलन व गुर्दों की कमजोरी दूर हो जाती है !
  4. आंवले का नियमित सेवान हमारे गुर्दों को स्वस्थ रखता है !
  5. हरे धनिए के एक गुच्छे को पानी से धो लें ! इसके पत्तों को तोड़कर बारिक – बारिक काट लें और इन्हें एक गिलास पानी में डालकर १० मिनट तक उबाल और छानकर ठंड होने के लिए रख दें ! अच्छे से ठण्डा होने के बाद इसको पि लें ! रोजाना ऐसा करें , कुछ दिन में ही आपके गुर्दों की सफाई हो जाएगी और सारी गंदगी मूत्र के साथ अपने आप बाहर निकल जाएगी !
  6. किडनी तथा लीवर की समस्या में खीरे का नियमित रूप से सेवन करने से समस्या से मुक्ति मिलेगी
    [: गिल्टी एक तरह का ट्यूमर यानी कि गाँठ है. इसकी वजह से कई लोगों को परेशानी होती है. गिल्टी, हमारे शरीर के विभिन्न हिस्सों जैसे कि हमारे गर्दन, जांघ और शरीर के अन्य हिस्सों में उत्पन्न होता है. कई लोग इसे इग्नोर करते हैं लेकिन हम आपको बता दें कि ये एक बेहद गंभीर बिमारी है. यदि शुरुवाती दिनों में इसका इलाज नहीं किया गया तो इससे बिमारी कई घातक रोगों जैसे कि कैंसर या टीबी आदि के होने की संभावना प्रबल होती है. दरअसल शुरू में छोटे रूप में होने के कारण लोग इसे उपेक्षित करते हैं. लेकिन जब इसका रूप धीरे-धीरे बड़ा होने लगता है तो ये काफी दर्द देने लगता है जिससे व्यक्ति की परेशानी बढ़ जाती है.
    🌻गिल्टी के उपचार के बारे में आवश्यक जानकारी प्राप्त करें.
    🌹क्या हैं गिल्टी के लक्षण
    🌾* गिल्टी की परेशानी झेलने वाले लोगों के गले में दर्द की समस्या देखी जाती है
    🌾* गिल्टी पीड़ितों को हल्की बुखार की भी परेशानी हो सकती है.
    🌾 जब आपको गिल्टी होती है तो आपके गले में खसखसाहट भी रहती है. 🌻 गिल्टी के दौरान जब भी आप कुछ खाकर निगलते हैं तो आपको दर्द का अनुभव होता है.
    *🍃 कई बार इसके पीड़ितों को बोलने में भी कठिनाई का अनुभव होता है.
    🌼गिल्टी का उपचार
    🌷मेथी
    गिल्टी को दूर करने में मेथी सकारात्मक भूमिका निभाता है. इसके लिए आपको मेथी के दाने या इसके पत्ते को पीसकर लेप बनाना होगा और इसका लेप बन जाने के बाद इसे गिल्टी वाले क्षेत्र में लगाकर कपड़े से बाँध दें. इसी प्रक्रिया को रोजाना गिल्टी के खत्म हो जाने तक दोहराएं.
    🥀नीम
    नीम की औषधीय उपयोगिता या अन्य उपयोगिता किसी से छुपी नहीं है. जाहिर है कई रोगों में नीम के पत्ते या नीम के तेल के सीधे-सीधे इस्तेमाल से आप राहत पा सकते हैं. गिल्टी के मरीजों को नीम के पात्तों को उबालकर इसका रस पीना चाहिए. इसके अलावा इसके पत्तों को पीसकर इसमें थोड़ा गुड़ मिलाकर गिल्टी वाले स्थान पर लेप करने से भी राहत मिलती है. आप नीम के तेल से मालिश भी कर सकते हैं.स्नेहा आयुर्वेद ग्रुप
    🥀आकड़े का दूध
    आकड़े के पौधे का इस्तेमाल भी आप गिल्टी के उपचार में कर सकते हैं. इसके दूध में मिट्टी मिलाकर इसे गिल्टी प्रभावित क्षेत्रों में लागएं. ऐसा कुछ दिनों तक करते रहने से गिल्टी के मरीजों को आराम मिलता है.
    🍂गौमूत्र
    गौमूत्र के कई फायदों में से एक ये भी है कि आप इसकी सहायता से गिल्टी के प्रभाव को कम कर सकते हैं. यदि आप गौमूत्र में देवदारु को पीसकर और इसे हल्का गर्म करके इसका लेप गिल्टी पर लगाएं तो आपको इस दौरान होने वाले दर्द से रात मिलेगा.
    🍁चुना
    यदि आप गिल्टी से जल्द से जल्द निजात चाहते हैं तो आपको इसके लिए चुना की सहायता लेनी होगी. यदि आप रोजाना रात को सोने से पहले चुना और घी का लेप बनाकर इसे गिल्टी पर लगाएं तो आपको तुरंत लाभ मिलता है.
    🌷कचनार की छाल और गोरखमुंडी
    कचनार एक वृक्ष है जबकि गोरखमुंडी एक घास है. गिल्टी के उपचार में इसका इस्तेमाल करने के लिए कचनार के सुखी छाल को हल्का पीसकर इसे एक ग्लास पानी में डालकर 2-3 मिनट तक अच्छी तरह गर्म करें. इसके बाद इसमें एक चम्मच पीसी हुई गोरखमुंडी डालकर पुनः 2-3 मिनट तक उबालें. इसके ठंडा हो जाने पर नियमित रूप से दिन में दो बार लें. इससे गिल्टी में राहत मिलेगी.
    🌼बरगद का दूध
    बरगद के वृक्ष का हमारे यहाँ धार्मिक महत्त्व भी है. बरगद के दूध का इस्तेमाल आप गिल्टी के उपचार के लिए कर सकते हैं. दरअसल बरगद के पेड़ का दूध जब आप गिल्टी पर लगाते हैं तो आपको इससे काफी राहत मिलती है.
    🌼गरम कपड़े की सेकाई
    गिल्टी के सर्वाधिक आसान घरेलु उपायों में से एक ये है कि आप एक मोटा कपड़ा लेकर उसे हल्का गर्म करके गिल्टी प्रभावित क्षेत्रों की कम से कम 5 मिनट तक कुछ दिन तक सिकाई करें. इससे भी गिल्टी से छुटकारा मिलने की संभावना रहती है.
    💐नेनुआ का पत्ता
    नेनुआ जिसे कई जगह तोरइ भी कहते हैं, का इस्तेमाल सब्जी के लिए किया जाता है लेकिन इसके पत्ते को आप गिल्टी के उपचार के लिए इस्तेमाल कर सकते हैं. नेनुआ के पत्ते के रस में गुड़ मिलाकर इसका लेप बनाएं और इसे गिल्टी पर लगाएं.
    🌼अरंडी का तेल
    अरंडी का तेल कई रोगों में औषधि के रूप में इस्तेमाल होता है. गिल्टी में बभी इसका इस्तेमाल किया जा सकता है. इसके लिए आपको सुबह-शाम नियमति रूप से गिल्टी वाले स्थान पर अरंडी के तेल से मालिश करनी है।
    🍁प्याज
    प्याज का उपयोग सब्जियों सलादों आदि में किया जाता रहा है. लेकिन क्या आपको पता है कि इसकी सहायता से गिल्टी को बभी दूर किया जा सकता है. इसके लिए प्याज को मिक्सी में पीसकर इसे हल्का भूरा होने तक भुनें. इसके बाद इसे गिल्टी प्रभावित क्षेत्रों में लगाकर इसे कपड़े से बाँध लें.
    [नव ग्रहों के कारकतत्व।

सूर्य👉पिता, आत्मा, प्रताप, आरोग्यता, आसक्ति, अनुशासन ,समय का पाबंद , सरकार का विचार करें।
चन्द्रमा👉 मन, बुद्धि, राजा की प्रसन्नता, माता और धन का विचार करें।
मंगल👉 पराक्रम, रोग, गुण, भाई, भूमि, शत्रु और जाति का विचार करें।
बुध👉 विद्या, बन्धु, विवेक, मामा, मित्र और वचन का विचार करें।
गुरु👉 बुद्धि, शरीर पुष्टि, पुत्र और ज्ञान का विचार करें।
शुक्र👉 स्त्री, वाहन, भूषण, काम, व्यापार तथा सुख का विचार करें।
शनि👉 आयु, जीवन, मृत्युकारण, विपत्ति और सम्पत्ति का विचार करें।
राहु👉 पितामह (पिता का पिता) तथा रोग का विचार करें।
केतु👉 मातामह (नाना) का तथा रोग का विचार करें।

नव ग्रहो से सम्बंधित रिश्ते नाते।

1.सूर्य :- पिता, सरकार।
2.चंद्र :- माता ,दादी ,बुजुर्ग औरत ,सास ।
3.मंगल :- भाई ,पडोसी ।
4.बुध :- बहन ,बेटी,बुआ ,मासी ,फूफी,साली ।
5.बृहस्पति :-बाप ,दादा ,बुजुर्ग ,धर्म स्थान का पंडित या पाठी बुजुर्ग,ससुर।
6.शुक्र :- पत्नी।
7.शनि :- चाचा ,मजदूर इंसान।
8.राहु :- ससुराल।
9.केतू :- पुत्र , भांजा ,भतीजा,मामा।
[ तिलक विशेष
🔸🔹🔹🔸
ज्योतिष के अनुसार यदि तिलक धारण किया जाता है
तो सभी पाप नष्ट हो जाते है सनातन धर्म में
शैव, शाक्त, वैष्णव और अन्य मतों के अलग-अलग तिलक होते हैं।

चंदन का तिलक लगाने से पापों का नाश होता है,
व्यक्ति संकटों से बचता है, उस पर लक्ष्मी की कृपा हमेशा बनी रहती है, ज्ञानतंतु संयमित व सक्रिय रहते हैं।
तिलक कई प्रकार के होते हैं – मृतिका, भस्म, चंदन, रोली, सिंदूर, गोपी आदि।

यदि वार अनुसार तिलक धारण किया जाए तो
उक्त वार से संबंधित ग्रहों को शुभ फल देने वाला बनाया जा सकता है।

किस दिन किसका तिलक लगाये !!
🔸🔸🔹🔸🔸🔹🔸🔸🔹🔸🔸
सोमवार👉 सोमवार का दिन भगवान शंकर का दिन होता है तथा इस वार का स्वामी ग्रह चंद्रमा हैं।चंद्रमा मन का कारक ग्रह माना गया है। मन को काबू में रखकर मस्तिष्क को शीतल और शांत बनाए रखने के लिए आप सफेद चंदन का तिलक लगाएं। इस दिन विभूति या भस्म भी लगा सकते हैं।

मंगलवार👉 मंगलवार को हनुमानजी का दिन माना गया है। इस दिन का स्वामी ग्रह मंगल है।मंगल लाल रंग का प्रतिनिधित्व करता है। इस दिन लाल चंदन या चमेली के तेल में घुला हुआ सिंदूर का तिलक लगाने से ऊर्जा और कार्यक्षमता में विकास होता है। इससे मन की उदासी और निराशा हट जाती है और दिन शुभ बनता है।

बुधवार👉 बुधवार को जहां मां दुर्गा का दिन माना गया है वहीं यह भगवान गणेश का दिन भी है।इस दिन का ग्रह स्वामी है बुध ग्रह। इस दिन सूखे सिंदूर (जिसमें कोई तेल न मिला हो) का तिलक लगाना चाहिए। इस तिलक से बौद्धिक क्षमता तेज होती है और दिन शुभ रहता है।

गुरुवार👉 गुरुवार को बृहस्पतिवार भी कहा जाता है। बृहस्पति ऋषि देवताओं के गुरु हैं। इस दिन के खास देवता हैं ब्रह्मा। इस दिन का स्वामी ग्रह है बृहस्पति ग्रह।गुरु को पीला या सफेद मिश्रित पीला रंग प्रिय है। इस दिन सफेद चन्दन की लकड़ी को पत्थर पर घिसकर उसमें केसर मिलाकर लेप को माथे पर लगाना चाहिए या टीका लगाना चाहिये हल्दी या गोरोचन का तिलक भी लगा सकते हैं। इससे मन में पवित्र और सकारात्मक विचार तथा अच्छे भावों का उद्भव होगा जिससे दिन भी शुभ रहेगा और आर्थिक परेशानी का हल भी निकलेगा।

शुक्रवार👉 शुक्रवार का दिन भगवान विष्णु की पत्नी लक्ष्मीजी का रहता है। इस दिन का ग्रह स्वामी शुक्र ग्रह है।हालांकि इस ग्रह को दैत्यराज भी कहा जाता है। दैत्यों के गुरु शुक्राचार्य थे। इस दिन लाल चंदन लगाने से जहां तनाव दूर रहता है वहीं इससे भौतिक सुख-सुविधाओं में भी वृद्धि होती है। इस दिन सिंदूर भी लगा सकते हैं।

शनिवार👉 शनिवार को भैरव, शनि और यमराज का दिन माना जाता है। इस दिन के ग्रह स्वामी है शनि ग्रह।शनिवार के दिन विभूत, भस्म या लाल चंदन लगाना चाहिए जिससे भैरव महाराज प्रसन्न रहते हैं और किसी भी प्रकार का नुकसान नहीं होने देते। दिन शुभ रहता है।

रविवार👉 रविवार का दिन भगवान विष्णु और सूर्य का दिन रहता है। इस दिन के ग्रह स्वामी है सूर्य ग्रह जो ग्रहों के राजा हैं।इस दिन लाल चंदन या हरि चंदन लगाएं। भगवान विष्णु की कृपा रहने से जहां मान-सम्मान बढ़ता है वहीं निर्भयता आती है।

1👉 तिलक करने से व्यक्त‍ित्व प्रभावशाली हो जाता है. दरअसल, तिलक लगाने का मनोवैज्ञानिक असर होता है, क्योंकि इससे व्यक्त‍ि के आत्मविश्वास और आत्मबल में भरपूर इजाफा होता है.

2👉 ललाट पर नियमित रूप से तिलक लगाने से मस्तक में तरावट आती है. लोग शांति व सुकून अनुभव करते हैं. यह कई तरह की मानसिक बीमारियों से बचाता है.

3👉 दिमाग में सेराटोनिन और बीटा एंडोर्फिन का स्राव संतुलित तरीके से होता है, जिससे उदासी दूर होती है और मन में उत्साह जागता है. यह उत्साह लोगों को अच्छे कामों में लगाता है.

4👉 इससे सिरदर्द की समस्या में कमी आती है.

5👉 हल्दी से युक्त तिलक लगाने से त्वचा शुद्ध होती है. हल्दी में एंटी बैक्ट्र‍ियल तत्व होते हैं, जो रोगों से मुक्त करता है.

6👉 धार्मिक मान्यता के अनुसार, चंदन का तिलक लगाने से मनुष्य के पापों का नाश होता है. लोग कई तरह के संकट से बच जाते हैं. ज्योतिष शास्त्र के मुताबिक, तिलक लगाने से ग्रहों की शांति होती है.

7👉 माना जाता है कि चंदन का तिलक लगाने वाले का घर अन्न-धन से भरा रहता है और सौभाग्य में बढ़ोतरी होती है.

तिलक लगाने का मंत्र !!
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केशवानन्न्त गोविन्द बाराह पुरुषोत्तम ।
पुण्यं यशस्यमायुष्यं तिलकं मे प्रसीदतु ।।
कान्ति लक्ष्मीं धृतिं सौख्यं सौभाग्यमतुलं बलम् ।
ददातु चन्दनं नित्यं सततं धारयाम्यहम्
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जय श्री राम
[ भगवान विष्णु ने लोक कल्याण के लिए किए छल
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सनातन हिन्दू धर्म में कहते हैं कि ब्रह्माजी जन्म देने वाले, विष्णु पालने वाले और शिव वापस ले जाने वाले देवता हैं। भगवान विष्णु तो जगत के पालनहार हैं। वे सभी के दुख दूर कर उनको श्रेष्ठ जीवन का वरदान देते हैं। जीवन में किसी भी तरह का संकट हो या धरती पर किसी भी तरह का संकट खड़ा हो गया हो, तो विष्णु ही उसका समाधान खोजकर उसे हल करते हैं।

भगवान विष्णु ने ही नृसिंह अवतार लेकर एक और जहां अपने भक्त प्रहलाद को बचाया था वहीं क्रूर हिरण्यकश्यपु से प्रजा को मुक्ति दिलाई थी। उसी तरह वराह अवतार लेकर उन्होंने महाभयंकर हिरण्याक्ष का वध करके देव, मानव और अन्य सभी को भयमुक्त किया था। उन्होंने ही महाबलि और मायावी राजा बलि से देवताओं की रक्षा की थी।

इसी तरह श्रीहरि विष्‍णु ने कुछ ऐसे कार्य किए थे जिनको जनकल्याण के लिए किया गया छल कहा गया। यदि वे ऐसा नहीं करते तो कई देवी और देवताओं की जान संकट में होती।

भस्मासुर के साथ छल
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भस्मासुर का नाम सुनकर सभी को उसकी कथा याद हो आई होगी। भस्मासुर के कारण भगवान ‍शंकर की जान संकट में आ गई थी। हालांकि भस्मासुर का नाम कुछ और था लेकिन भस्म करने का वरदान प्राप्त करने के कारण उसका नाम भस्मासुर पड़ गया।

भस्मासुर एक महापापी असुर था। उसने अपनी शक्ति बढ़ाने के लिए भगवान शंकर की घोर तपस्या की और उनसे अमर होने का वरदान मांगा, लेकिन भगवान शंकर ने कहा कि तुम कुछ और मांग लो तब भस्मासुर ने वरदान मांगा कि मैं जिसके भी सिर पर हाथ रखूं वह भस्म हो जाए। भगवान शंकर ने कहा- तथास्तु।

भस्मासुर ने इस वरदान के मिलते ही कहा, भगवन् क्यों न इस वरदान की शक्ति को परख लिया जाए। तब वह स्वयं शिवजी के सिर पर हाथ रखने के लिए दौड़ा। शिवजी भी वहां से भागे और विष्णुजी की शरण में छुप गए। तब विष्णुजी ने एक सुन्दर स्त्री का रूप धारण कर भस्मासुर को आकर्षित किया। भस्मासुर शिव को भूलकर उस सुंदर स्त्री के मोहपाश में बंध गया। मोहिनी स्त्रीरूपी विष्णु ने भस्मासुर को खुद के साथ नृत्य करने के लिए प्रेरित किया। भस्मासुर तुरंत ही मान गया।

नृत्य करते समय भस्मासुर मोहिनी की ही तरह नृत्य करने लगा और उचित मौका देखकर विष्णुजी ने अपने सिर पर हाथ रखा। शक्ति और काम के नशे में चूर भस्मासुर ने जिसकी नकल की और भस्मासुर अपने ही प्राप्त वरदान से भस्म हो गया।

भस्मासुर से बचने के लिए भगवान शंकर वहां से भाग गए। उनके पीछे भस्मासुर भी भागने लगा। भागते-भागते शिवजी एक पहाड़ी के पास रुके और फिर उन्होंने इस पहाड़ी में अपने त्रिशूल से एक गुफा बनाई और वे फिर उसी गुफा में छिप गए। बाद में विष्णुजी ने आकर उनकी जान बचाई। माना जाता है कि वह गुफा जम्मू से 150 किलोमीटर दूर त्रिकुटा की पहाड़ियों पर है। इन खूबसूरत पहाड़ियों को देखने से ही मन शांत हो जाता है। इस गुफा में हर दिन सैकड़ों की तादाद में शिवभक्त शिव की आराधना करते हैं।

वृंदा के साथ छल
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श्रीमद्मदेवी भागवत पुराण अनुसार जलंधर असुर शिव का अंश था, लेकिन उसे इसका पता नहीं था। जलंधर बहुत ही शक्तिशाली असुर था। इंद्र को पराजित कर जलंधर तीनों लोकों का स्वामी बन बैठा था। यमराज भी उससे डरते थे।

श्रीमद्मदेवी भागवत पुराण अनुसार एक बार भगवान शिव ने अपना तेज समुद्र में फेंक दिया तथा इससे जलंधर उत्पन्न हुआ। माना जाता है कि जलंधर में अपार शक्ति थी और उसकी शक्ति का कारण थी उसकी पत्नी वृंदा। वृंदा के पतिव्रत धर्म के कारण सभी देवी-देवता मिलकर भी जलंधर को पराजित नहीं कर पा रहे थे। जलंधर को इससे अपने शक्तिशाली होने का अभिमान हो गया और वह वृंदा के पतिव्रत धर्म की अवहेलना करके देवताओं के विरुद्ध कार्य कर उनकी स्त्रियों को सताने लगा।

जलंधर को मालूम था कि ब्रहांड में सबसे शक्तिशाली कोई है तो वे हैं देवों के देव महादेव। जलंधर ने खुद को सर्वशक्तिमान रूप में स्थापित करने के लिए क्रमश: पहले इंद्र को परास्त किया और त्रिलोकाधिपति बन गया। इसके बाद उसने विष्णु लोक पर आक्रमण किया।

जलंधर ने विष्णु को परास्त कर देवी लक्ष्मी को विष्णु से छीन लेने की योजना बनाई। इसके चलते उसने बैकुण्ठ पर आक्रमण कर दिया, लेकिन देवी लक्ष्मी ने जलंधर से कहा कि हम दोनों ही जल से उत्पन्न हुए हैं इसलिए हम भाई-बहन हैं। देवी लक्ष्मी की बातों से जलंधर प्रभावित हुआ और लक्ष्मी को बहन मानकर बैकुण्ठ से चला गया।

इसके बाद उसने कैलाश पर आक्रमण करने की योजना बनाई और अपने सभी असुरों को इकट्ठा किया और कैलाश जाकर देवी पार्वती को पत्नी बनाने के लिए प्रयास करने लगा। इससे देवी पार्वती क्रोधित हो गईं और तब महादेव को जलंधर से युद्घ करना पड़ा, लेकिन वृंदा के सतीत्व के कारण भगवान शिव का हर प्रहार जलंधर निष्फल कर देता था।

अंत में देवताओं ने मिलकर योजना बनाई और भगवान विष्णु जलंधर का वेष धारण करके वृंदा के पास पहुंच गए। वृंदा भगवान विष्णु को अपना पति जलंधर समझकर उनके साथ पत्नी के समान व्यवहार करने लगी। इससे वृंदा का पतिव्रत धर्म टूट गया और शिव ने जलंधर का वध कर दिया।

विष्णु द्वारा सतीत्व भंग किए जाने पर वृंदा ने आत्मदाह कर लिया, तब उसकी राख के ऊपर तुलसी का एक पौधा जन्मा। तुलसी देवी वृंदा का ही स्वरूप है जिसे भगवान विष्णु लक्ष्मी से भी अधिक प्रिय मानते हैं।

भारत के पंजाब प्रांत में वर्तमान जालंधर नगर जलंधर के नाम पर ही है। जालंधर में आज भी असुरराज जलंधर की पत्नी देवी वृंदा का मंदिर मोहल्ला कोट किशनचंद में स्थित है। मान्यता है कि यहां एक प्राचीन गुफा थी, जो सीधी हरिद्वार तक जाती थी। माना जाता है कि प्राचीनकाल में इस नगर के आसपास 12 तालाब हुआ करते थे। नगर में जाने के लिए नाव का सहारा लेना पड़ता था

मोहिनी बनकर किया असुरों के साथ छल
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जब इन्द्र दैत्यों के राजा बलि से युद्ध में हार गए, तब हताश और निराश हुए देवता ब्रह्माजी को साथ लेकर श्रीहरि विष्णु के आश्रय में गए और उनसे अपना स्वर्गलोक वापस पाने के लिए प्रार्थना करने लगे।

श्रीहरि ने कहा कि आप सभी देवतागण दैत्यों से सुलह कर लें और उनका सहयोग पाकर मदरांचल को मथानी तथा वासुकि नाग को रस्सी बनाकर क्षीरसागर का मंथन करें। समुद्र मंथन से जो अमृत प्राप्त होगा उसे पिलाकर मैं आप सभी देवताओं को अजर-अमर कर दूंगा तत्पश्चात ही देवता, दैत्यों का विनाश करके पुनः स्वर्ग का आधिपत्य पा सकेंगे।

देवताओं के राजा इन्द्र दैत्यों के राजा बलि के पास गए और उनके समक्ष समुद्र मंथन का प्रस्ताव रखा और अमृत की बात बताई। अमृत के लालच में आकर दैत्य ने देवताओं का साथ देने का वचन दिया। देवताओं और दैत्यों ने अपनी पूरी शक्ति लगाकर मदरांचल पर्वत को उठाकर समुद्र तट पर लेकर जाने की चेष्टा की लेकिन नहीं उठा पाए तब श्रीहरि ने उसे उठाकर समुद्र में रख दिया।

मदरांचल को मथानी एवं वासुकि नाग की रस्सी बनाकर समुद्र मंथन का शुभ कार्य आरंभ हुआ। श्रीविष्णु की नजर मथानी पर पड़ी, जो कि अंदर की ओर धंसती चली जा रही थी। यह देखकर उन्होंने स्वयं कच्छप बनाकर अपनी पीठ पर मदरांचल पर्वत को रख लिया।

तत्पश्चात समुद्र मंथन से लक्ष्मी, कौस्तुभ, पारिजात, सुरा, धन्वंतरि, चंद्रमा, पुष्पक, ऐरावत, पाञ्चजन्य, शंख, रम्भा, कामधेनु, उच्चैःश्रवा और अंत में अमृत कुंभ निकले जिसे लेकर धन्वन्तरिजी आए। उनके हाथों से अमृत कलश छीनकर दैत्य भागने लगे ताकि देवताओं से पूर्व अमृतपान करके वे अमर हो जाएं। दैत्यों के बीच कलश के लिए झगड़ा शुरू हो गया और देवता हताश खड़े थे।

श्रीविष्णु अति सुंदर नारी का रूप धारण करके देवता और दैत्यों के बीच पहुंच गए और उन्होंने अमृत को समान रूप से बांटने का प्रस्ताव रखा। दैत्यों ने मोहित होकर अमृत का कलश श्रीविष्णु को सौंप दिया। मोहिनी रूपधारी विष्णु ने कहा कि मैं जैसे भी विभाजन का कार्य करूं, चाहे वह उचित हो या अनुचित, तुम लोग बीच में बाधा उत्पन्न न करने का वचन दो तभी मैं इस काम को करूंगी।

सभी ने मोहिनीरूपी भगवान की बात मान ली। देवता और दैत्य अलग-अलग पंक्तियों में बैठ गए। मोहिनी रूप धारण करके विष्णु ने छल से सारा अमृत देवताओं को पिला दिया, लेकिन इससे दैत्यों में भारी आक्रोश फैल गया।

असुरराज बलि के साथ छल
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असुरों के राजा बलि की चर्चा पुराणों में बहुत होती है। वह अपार शक्तियों का स्वामी लेकिन धर्मात्मा था। दान-पुण्य करने में वह कभी पीछे नहीं रहता था। उसकी सबसे बड़ी खामी यह थी कि उसे अपनी शक्तियों पर घमंड था और वह खुद को ईश्वर के समकक्ष मानता था और वह देवताओं का घोर विरोधी था। कश्यप ऋषि की पत्नी दिति के दो प्रमुख पुत्र हिरण्यकश्यप और हिरण्याक्ष थे। हिरण्यकश्यप के 4 पुत्र थे- अनुहल्लाद, हल्लाद, भक्त प्रह्लाद और संहल्लाद। प्रह्लाद के कुल में विरोचन के पुत्र राजा बलि का जन्म हुआ।

राजा बलि का राज्य संपूर्ण दक्षिण भारत में था। उन्होंने महाबलीपुरम को अपनी राजधानी बनाया था। आज भी केरल में ओणम का पर्व राजा बलि की याद में ही मनाया जाता है। राजा बलि ने विश्वविजय की सोचकर अश्वमेध यज्ञ किया और इस यज्ञ के चलते उसकी प्रसिद्धि चारों ओर फैलने लगी। अग्निहोत्र सहित उसने 98 यज्ञ संपन्न कराए थे और इस तरह उसके राज्य और शक्ति का विस्तार होता ही जा रहा था, तब उसने इंद्र के राज्य पर चढ़ाई करने की सोची। इस तरह राजा बलि ने 99वें यज्ञ की घोषणा की और सभी राज्यों और नगरवासियों को निमंत्रण भेजा। देवताओं की ओर गंधर्व और यक्ष होते थे, तो दैत्यों की ओर दानव और राक्षस। अंतिम बार हिरण्यकशिपु के पुत्र प्रहलाद और उनके पुत्र राजा बलि के साथ इन्द्र का युद्ध हुआ और देवता हार गए, तब संपूर्ण जम्बूद्वीप पर असुरों का राज हो गया।

वामन ॠषि कश्यप तथा उनकी पत्नी अदिति के पुत्र थे। वे आदित्यों में 12वें थे। ऐसी मान्यता है कि वे इन्द्र के छोटे भाई थे और राजा बलि के सौतेले भाई। विष्णु ने इसी रूप में जन्म लिया था। देवता बलि को नष्ट करने में असमर्थ थे। बलि ने देवताओं को यज्ञ करने जितनी भूमि ही दे रखी थी। तब सभी देवता विष्णु की शरण में गए। विष्णु ने कहा कि वह भी (बलि भी) उनका भक्त है, फिर भी वे कोई युक्ति सोचेंगे।

तब विष्णु ने अदिति के यहां जन्म लिया और एक दिन जब बलि यज्ञ की योजना बना रहा था तब वे ब्राह्मण-वेश में वहां दान लेने पहुंच गए। उन्हें देखते ही शुक्राचार्य उन्हें पहचान गए। शुक्र ने उन्हें देखते ही बलि से कहा कि वे विष्णु हैं। मुझसे पूछे बिना कोई भी वस्तु उन्हें दान मत करना। लेकिन बलि ने शुक्राचार्य की बात नहीं सुनी और वामन के दान मांगने पर उनको तीन पग भूमि दान में दे दी।

जब जल छोड़कर सब दान कर दिया गया, तब ब्राह्मण वेश में वामन भगवान ने अपना विराट रूप दिखा दिया। भगवान ने एक पग में भूमंडल नाप लिया। दूसरे में स्वर्ग और तीसरे के लिए बलि से पूछा कि तीसरा पग कहां रखूं? पूछने पर बलि ने मुस्कराकर कहा- इसमें तो कमी आपके ही संसार बनाने की हुई, मैं क्या करूं भगवान? अब तो मेरा सिर ही बचा है। इस प्रकार विष्णु ने उसके सिर पर तीसरा पैर रख दिया। उसकी भक्ति से प्रसन्न होकर विष्णु ने उसे पाताल में रसातल का कलियुग के अंत तक राजा बने रहने का वरदान दे दिया। तब बलि ने विष्णु से एक और वरदान मांगा। राजा बलि ने कहा कि भगवान यदि आप मुझे पाताल लोक का राजा बना ही रहे हैं तो मुझे वरदान ‍दीजिए कि मेरा साम्राज्य शत्रुओं के प्रपंचों से बचा रहे और आप मेरे साथ रहें। अपने भक्त के अनुरोध पर भगवान विष्णु ने राजा बलि के निवास में रहने का संकल्प लिया।

पातालपुरी में राजा बलि के राज्य में आठों प्रहर भगवान विष्णु सशरीर उपस्थित रह उनकी रक्षा करने लगे और इस तरह बलि निश्चिंत होकर सोता था और संपूर्ण पातालपुरी में शुक्राचार्य के साथ रहकर एक नए धर्म राज्य की व्यवस्था संचालित करता है।

माता पार्वती के साथ छल
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माना जाता है कि बद्रीनाथ धाम कभी भगवान शिव और पार्वती का विश्राम स्थान हुआ करता था। यहां भगवान शिव अपने परिवार के साथ रहते थे लेकिन श्रीहरि विष्णु को यह स्थान इतना अच्छा लगा कि उन्होंने इसे प्राप्त करने के लिए योजना बनाई।

पुराण कथा के अनुसार सतयुग में जब भगवान नारायण बद्रीनाथ आए तब यहां बदरीयों यानी बेर का वन था और यहां भगवान शंकर अपनी अर्द्धांगिनी पार्वतीजी के साथ आनंद से रहते थे। एक दिन श्रीहरि विष्णु बालक का रूप धारण कर जोर-जोर से रोने लगे। उनके रुदन को सुनकर माता पार्वती को बड़ी पीड़ा हुई। वे सोचने लगीं कि इस बीहड़ वन में यह कौन बालक रो रहा है? यह आया कहां से? और इसकी माता कहां है? यही सब सोचकर माता को बालक पर दया आ गई। तब वे उस बालक को लेकर अपने घर पहुंचीं। शिवजी तुरंत ही ‍समझ गए कि यह कोई विष्णु की लीला है। उन्होंने पार्वती से इस बालक को घर के बाहर छोड़ देने का आग्रह किया और कहा कि वह अपने आप ही कुछ देर रोकर चला जाएगा। लेकिन पार्वती मां ने उनकी बात नहीं मानी और बालक को घर में ले जाकर चुप कराकर सुलाने लगी। कुछ ही देर में बालक सो गया तब माता पार्वती बाहर आ गईं और शिवजी के साथ कुछ दूर भ्रमण पर चली गईं। भगवान विष्णु को इसी पल का इंतजार था। इन्होंने उठकर घर का दरवाजा बंद कर दिया।

भगवान शिव और पार्वती जब घर लौटे तो द्वार अंदर से बंद था। इन्होंने जब बालक से द्वार खोलने के लिए कहा तब अंदर से भगवान विष्णु ने कहा कि अब आप भूल जाइए भगवन्। यह स्थान मुझे बहुत पसंद आ गया है। मुझे यहीं विश्राम करने दी‍जिए। अब आप यहां से केदारनाथ जाएं। तब से लेकर आज तक बद्रीनाथ यहां पर अपने भक्तों को दर्शन दे रहे हैं और भगवान शिव केदानाथ में।📚🖍🙏🙌
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शनि-चंद्र का विष योग।

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार शनि-चन्द्र विष योग किसी भी जातक के लिए बेहद खतरनाक होता है। जब चंद्रमा शनि के साथ गोचर करता है तो इस ‘विष योग’ का निर्माण होता है। कुंडली में शनि-चंद्र एक साथ होने पर स्थाई विष योग होता है। इसके अलावा ग्रहों की चाल के अनुसार विष योग प्रत्येक महीने भी हर राशियों में पड़ता है जो कि कुंडली के प्रसिद्ध खतरनाक योगों में से एक है। इस योग के कारण जीवन नर्क सा हो जाता है रिलेशन लाइफ में हमेशा प्रॉब्लम बनी रहती है जो भी कार्य करते हैं वह जहर हो जाता है।कुंडली में चंद्रमा की स्थिति बहुत महत्वपूर्ण होती है। यदि किसी व्यक्ति की कुंडली में चन्द्रमा शुभ ग्रह के साथ है तो व्यक्ति को जीवन कई सुख प्राप्त होते हैं। जबकि चंद्रमा अशुभ ग्रह अथवा पाप ग्रह से संबंधित हो तो व्यक्ति को बहुत सी परेशानियों का सामना करना पड़ता है।
विष योग एक ऐसा योग है जिसके कारण पीड़ीत को बहुत दु:ख भोगने पड़ते हैं यहां तक की मृत्यु तक का भय सताने लगता है। प्रत्येक माह में सभी 12 राशियां एक बार अवश्य विष योग से पीड़ीत होती हैं। क्योंकि चंद्रमा माह में एक बार जरूर शनि के साथ गोचररत होता है। वही वो समय भी होता है जब सभी राशियां विष योग से प्रभावित होती हैं। कई बार हमारा बना बनाया काम ऐन समय पर ऐसे बिगड़ जाता है कि हमें पता भी नहीं चलता कि ऐसा कब और कैसे हो गया। ऐसे में विष योग के नकारात्मक प्रभाव से बचने के उपाय जानना बहुत ही आवश्यक होता है। आइये जानते हैं विष योग कैसे बनता है।

▪शनि-चंद्र के कारण बनता है विष योग-
कुंडली में चंद्र और शनि एक साथ होते हैं तो विष योग बनता है। यदि चंद्र पर शनि की नजर पड़ रही है, तब भी विष योग का असर रहता है। यह योग अशुभ फल प्रदान करने वाला है। कुंडली के जिस भाव में विष योग बनता है, उससे संबंधित अशुभ फल व्यक्ति को मिलते हैं। इस योग से व्यक्ति का मन अधिकतर दुखी रहता है और वह अकेलापन महसूस करता है।

▪माता का कारक है चंद्र-
चंद्र माता का कारक ग्रह है, इसीलिए इसकी स्थिति से माता के जुड़ी बातें मालूम हो सकती हैं। विष योग होने से व्यक्ति को माता के स्वास्थ्य के कारण परेशानियों का सामना करना पड़ता है। इस योग से माता के सुख में कमी आती है। माता और संतान के विचार अलग-अलग होते हैं। इस योग का असर माता की आयु पर भी हो सकता है।

▪शनि-चंद्र के विष योग के कारण वैवाहिक जीवन में आती हैं परेशानियां-
जब विष योग सप्तम भाव में हो तो व्यक्ति के जीवन में बहुत अधिक मानसिक तनाव बना रहता है। विवाह होने में बाधाएं आती हैं। विवाह हो जाता है तो जीवन साथी से मतभेद रहते हैं। विचार अलग-अलग होने से वाद-विवाद की स्थिति भी बनती है।जानें दस उपाय जिनसे कम होता है विष योग का प्रभाव

◼◼ शनि-चंद्र के विष योग से बचने के उपाय-

विष योग चूंकि चंद्रमा और शनि की युति के परिणामस्वरूप बनता है तो ऐसे में चंद्रमा और शनि के इस दोष को शांत करने के लिये निम्न उपाय करने चाहिये –

▪ प्रत्येक सोमवार को भगवान शिव का अभिषेक करें और धतूरे का फल चढ़ाएं फल चढ़ाते वक्त भगवान से आराधना करते हुए कहा कि जिस तरह पूरे संसार का विष आपने अपने कंठ में धारण कर लिया था मैं अपने जीवन में ग्रहों के कारण आए विष को आपको अर्पित करता हूं।

▪पीपल के पेड़ में अनेक देवी-देवताओं का वास माना जाता है। इसलिये धार्मिक दृष्टि से इसका बहुत अधिक महत्व होता है। विष योग से बचने के लिये भी पीपल वृक्ष के नीचे नारियल को सात बार अपने सिर से वार कर फोड़ना चाहिये और इसे प्रसाद रूप में वितरित करना चाहिये। इससे उपाय से विष योग के नकारात्मक प्रभाव से आप बच सकते हैं। पीपल के वृक्ष पर प्रतिदिन जल चढ़ाएं।

▪शनिदेव को प्रसन्न करने के लिये शनिवार का दिन बहुत ही अहम माना जाता है यदि यह दिन शनि अमावस्या का हो तो और भी बेहतर रहता है। शनिवार या शनि अमावस्या के अवसर पर संध्या बेला में जब सूर्य अस्त हो चुका हो तो उस समय शनिदेव की प्रतिमा या फिर उनके शिला रूप पर तेल चढ़ाना चाहिये। सरसों के तेल में काली उड़द व काले तिल डालकर उसका दिया जलाना चाहिये। शनिदेव के बीज मंत्र ॐ शं शनैश्चरायै नम: का जाप करते हुए मंत्र के प्रत्येक अक्षर को आक के पत्तों पर काजल व सरसों के तेल से बनी स्याही से लोहे की कील से अलग-अलग पत्तों पर लिखें। यह दस आक के पत्तों पर लिखा जायेगा। तत्पश्चात इन पत्तों को काले धागे से बांधकर माला रूप में शनि प्रतिमा या शिला पर अर्पित करें।

▪शनि मंदिर में गुड़, गुड़ से बनी रेवड़ी, तिल के लड्डू आदि का प्रसाद चढ़ाने के पश्चात इसे वितरीत करें, गाय, कुत्ते व कौओं को भी प्रसाद डालें। यह भी विष योग के विषाक्त प्रभावों को कम करने का कारगर उपाय माना जाता है।

▪पानी से भरे घड़े का शनि या हनुमान मंदिर में दान करना भी विष योग से पीड़ीत जातक को राहत देने वाला माना जाता है।

▪पूर्णमासी के दिन भगवान शिव शंकर के मंदिर में रूद्राभिषेक करवाने से भी विष योग का प्रभाव कम हो सकता है।

▪महामृत्युंजय मंत्र का जाप हर प्रकार के कष्ट से बचने में सहायता करता है। विषयोग के प्रभाव से बचने के लिये भी यदि शुक्ल पक्ष में आने वाले पहले सोमवार को रूद्राक्ष माला से कम से कम पांच माला इस मंत्र का जाप किया जाये तो विषयोग के प्रभाव से बचा सकता है।

▪माता-पिता व घर के बड़े बुजूर्गों के आशीर्वाद से भी हर विपदा का सामना किया जा सकता है। विषयोग के प्रभाव से बचने के लिये नित्य यह नियम अपनायें कि आपको अपने माता-पिता सहित बड़े बुजूर्गों के चरण स्पर्श कर उनका आशीर्वाद लेना है। इससे भी आप विषयोग के प्रभाव को कम कर सकते हैं।

▪शनिवार के दिन यदि कुंए में दूध अर्पित करें तो इससे भी शनि की कृपा प्राप्त होती है। विष योग का प्रभाव कम होने की मान्यता भी इस उपाय से जुड़ी है।

▪भगवान बजरंग बली हनुमान जिन्हें संकच मोचन भी कहा जाता है इनकी पूजा से भी विष योग से बचा जा सकता है। इसके लिये किसी भी हनुमान मंदिर में या फिर घर के पूजा स्थल में हनुमान जी की प्रतिमा के समक्ष शुद्ध घी का दिया जलाकर अपने गुरु व भगवान श्री हनुमान का आह्वान करते हुए कम से कम 49 पाठ सुंदरकांड के किये या करवाये जायें तो विषयोग को निष्प्रभावी किया जा सकता है।

▪भगवान श्री हनुमान जी को शुद्ध घी व सिंदूर बहुत प्रिय माने जाते हैं अत: मान्यता है कि घी व सिंदूर का चोला चढ़ाकर हनुमत प्रतिमा के दांये पैर के सिंदूर को मस्तक पर धारण किया जाये तो विष योग जैसे हर कष्ट से बचा जा सकता है।

बाबा तुलसी ने रामचरितमानस में लिखा है, धर्म न दूसर सत्य समाना, आखिर ये सत्य है क्या?

सत्य के कई अर्थ हैं, एक अर्थ में जो अविनाशी, चिरंतन और शाश्वत है वही सत्य है, दूसरे अर्थों में इंद्रियों द्वारा देखना, सुनना, जानना एवम् अनुभव करना सत्य है, तीसरे अर्थ में इस चराचर प्राणी जगत के एक अंश के रूप में स्वयं के होने का एहसास ही सत्य है, इन तीनों अर्थों में ईश्वर सत्य है, सनातन है, अनुभव योग्य तथा कल्याणकारी है, तभी कहते हैं कि सत्यम शिवम् सुन्दरम।

जगत को मिथ्या कहा जाता है क्योंकि? वह परिवर्तनशील, क्षणभंगुर और नाशवान है, परमात्मा की महिमा इसलिये है क्योंकि वह सत्य है, शिव है और सुंदर है, यहां सत्य और सुंदर का अर्थ तो हमने जाना, पर शिव क्या है? शिव शब्द का अर्थ है कल्याणकारी, जो कल्याणकारी है, वही सुंदर है और जो सुंदर है वही सत्य है।

इस प्रकार सत्यम, शिवम, सुंदरम जैसे मंत्र का उत्स या बीज शिव ही है अर्थात इस सृष्टि की कल्याणकारी शक्ति, सुंदरता का तात्पर्य किसी दैहिक या प्राकृतिक सौंदर्य से नहीं है, वह तो क्षणभंगुर है, सुंदरता वास्तव में पवित्र मन, कल्याणकारी आचार और सुखमय व्यवहार है, इस सुंदरता का चिरंतन स्तोत्र शिव ही है, पर स्वयं शिव का सौंदर्य दिव्य ज्योति स्वरूप है, जिसे इन भौतिक आंखों से देखा नहीं जा सकता।

उसे सिर्फ रूहानी ज्ञान, बुद्धि एवं विवेक से समझा व जाना जाता है, तथा उनके गुणों तथा शक्तियों का अनुभव किया जा सकता है, ध्यान की अवस्था में मन को एकाग्र कर उसे ललाट के मध्य दोनों भृकुटियों के बीच ज्योति रूप में अनुभव किया जा सकता है, गीता में प्रसंग है कि ईश्वर ने अपने विश्वरूप का दर्शन कराने के लिए अर्जुन को दिव्य चक्षु रूपी अलौकिक ज्ञान की रोशनी दी थी।

सज्जनों! परमात्मा को देखने के लिए स्थूल नहीं, आत्म ज्ञान रूपी सूक्ष्म नेत्रों की जरूरत होती है, जो योगेश्वर भगवान् श्री कृष्णजी ने अर्जुन को प्रदान किया, उन्होंने अर्जुन को समझाया कि कर्मेंद्रियों से मन श्रेष्ठ है, मन से बुद्धि श्रेष्ठ है और बुद्धि से भी आत्मा श्रेष्ठ है, यानी आत्मा सर्वश्रेष्ठ है, इसलिए खुद को आत्मा रूप में निश्चय कर के ही तुम मेरे (मेरे परमात्मा रूप का) दिव्य स्वरूप का दर्शन कर सकोगे।

शिव शब्द परमात्मा के दो प्रमुख कर्तव्यों का द्योतक है, ‘श’ अक्षर का अर्थ पाप नाशक है और ‘व’ अक्षर का भावार्थ है मुक्तिदाता, अक्सर लोग शिव और शंकर को एक ही मान लेते हैं, लेकिन दोनों में अंतर है, शिव निराकार ज्योतिबिंदु स्वरूप, ज्योतिर्लिंग परमात्मा हैं, शंकर दिव्य मानवीय कायाधारी देवात्मा हैं, ज्योतिर्लिंग के रूप में लोग जिस जड़ लिंग प्रतिमा की आराधना करते हैं, वह शिव का ही प्रतीक है।

इसीलिये धर्म ग्रंथों में राम और कृष्णा जैसे देवता भी शिवलिंग की पूजा-वंदना की मुद्रा में दिखते हैं, देवता अनेक हैं लेकिन देवों के भी देव महादेवजी एक ही है, निराकार परमपिता परमात्मा एक ही हैं, और वह हैं भगवान् शिवजी, शिव पुराण, मनुसंहिता एवं महाभारत के आदि पर्व में शिवजी को अंडाकार, वलयाकार तथा लिंगाकार ज्योति स्वरूप बताया गया है, जो कि ज्ञान सूर्य के रूप में अज्ञानता रूपी अंधकार को नष्ट करते हैं।

ज्ञान एवं योग की ये प्रकाश किरणें पूरे संसार में बिखेर कर वे समग्र मनुष्य, जीव एवं जड़ जगत का कल्याण करते हैं, जैसे आत्मा रूप में ज्योति बिंदु है और ज्ञान, शांति, शक्ति, प्रेम, सुख, आनन्द उनके गुण स्वरूप हैं, वैसे ही परमात्मा शिव रूप में ज्योति बिंदु होते हुये भी आध्यात्मिक ज्ञान एवं शक्तियों में गुणों के रूप में अवस्थित हैं, जब मनुष्य आत्मा सांसारिक कर्म में आता है, तब उन्हीं की कृपा से उसके लोक एवं परलोक दोनों सिद्ध होते हैं।

अपने मन, बुद्धि को ईश्वरीय ज्योति बिंदु, ज्ञान एवं सहज योग के आधार पर जगत के नियंता एवं परमात्मा शिव से जोड़ के रखने से ही मनुष्य अपने किए हुयें विकर्मों एवम् पापों को योग की अग्नि से भस्म कर देवात्मा पद को प्राप्त कर सकता है और मानव समाज तथा संपूर्ण प्राणी जगत को सतोप्रधान तथा सुखदायी बना सकता है ।
[नदी में पैसे नहीं डालने चाहिए।
क्यों, आइये जानते हैं…

हमारे देश में रोज न जाने कितनी रेलगाड़ियाँ, जाने कितनी नदियों को पार करती हैं और उनके यात्रियों द्वारा हर रोज नदियों में सिक्के फेंकने का चलन है!
अगर रोज के सिक्कों के हिसाब से गणना की जाए तो ये रकम कम से कम दहाई के चार अंको को तो पार करती होगी।

सोचो इस तरह हर रोज कितनी भारतीय मुद्रा ऐसे फेंक दी जाती है?
लेकिन वर्तमान सिक्के 83% लोहा और 17 % क्रोमियम के बने होते हैं और क्रोमियम एक भारी जहरीली धातु है। क्रोमियम दो अवस्था में पाया जाता है,
एक Cr (III) और दूसरी Cr (IV)। इनमें क्रोमियम (IV) जीव जगत के लिए घातक होता है।अगर इसकी मात्रा 0.05% प्रति लीटर से ज्यादा हो जाए तो ऐसा पानी हमारे लिए जहरीला बन जाता है। जो सीधे कैंसर जैसी असाध्य बीमारी को जन्म देता है।

सिक्के फेंकने का चलन ताँबे के सिक्के के समय था।

प्राचीनकाल में एक बार दूषित पानी से बीमारियाँ फैली थीं तो, राजा ने हर व्यक्ति को अपने आसपास के जल के स्रोत और जलाशयों में ताँबे के सिक्के को फेकना अनिवार्य कर दिया था। क्योंकि ताँबा जल को शुद्ध करने वाली सबसे अच्छी धातु है”

आजकल सिक्के नदी में फेंकने से किसी तरह का उपकार नहीं बल्कि जल प्रदूषण और बीमारियों को बढ़ावा हो रहा है।

अतः आपसे निवेदन कि इसे आप अपने सभी परिचितों को विशेष रूप से समझाएँ, ताकि अज्ञानतावश गलती न हो।
[ To make good health owner, gooseberry juice
 
1) Benefits in Asthma: – If Amla juice is taken with honey daily, it can be beneficial in Asthma and Bronchitis disease.

2) Control constipation: – Amla juice increases the digestive process of the stomach and cures severe constipation.

3) Clean the blood: – Drinking amla juice with honey clears the blood.

4) Erase burning sensation of urine: – If there is burning sensation in the urine, drink 30 ml Amla juice twice a day.

5) Stop excessive bleeding: – If there is more bleeding during periods, take amla juice three times daily with banana.

6) Erase freckles and brighten face: – Drinking amla juice with honey every morning will make your face shiny and wrinkles will disappear.

7) Take away heart disease: – It makes the muscles of the heart strong and keeps away from heart disease.

8) Treatment of Piles: – Amla juice gives relief from constipation occurring at the time of Piles.

9) Increase the light of the eyes: – Drinking Amla juice regularly increases the light of the eyes.

10) To remove pimples: – Amla juice provides relief from acne and acne.
11) Control diabetes: – Amla juice is a boon for diabetes patients. Diabetes is controlled by drinking it with honey and turmeric powder.


: खांसी के घरेलू उपाय

  1. अदरक का सूखा हुआ रूप सौंठ होता है। इस सौंठ को पीस कर पानी में खूब देर तक उबालें। जब एक चौथाई रह जाए तो इसका सेवन गुनगुना होने पर दिन में तीन बार करें। तुरंत फायदा होगा।
  2. काली मिर्च, हरड़े का चूर्ण, अडूसा तथा पिप्पली का काढ़ा बना कर दिन में दो बार लेने से खांसी दूर होती है।
  3. हींग, काली मिर्च और नागरमोथा को पीसकर गुड़ के साथ मिलाकर गोलियाँ बना लें प्रतिदिन भोजन के बाद दो गोलियों का सेवन करें। खांसी दूर होगी। कफ खुलेगा।
  4. पानी में नमक, हल्द‍ी, लौंग और तुलसी पत्ते उबालें। इस पानी को छानकर रात को सोते समय गुनगुना पिएं। सुबह खांसी में असर दिखाई देगा। नियमित सेवन से 7 दिनों के अंदर खांसी का नामोनिशान नहीं रहेगा।

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प्रत्येक व्यक्ति सुबह से लेकर रात तक कर्म करता है। कुछ अच्छे कर्म करता है , कुछ बुरे कर्म भी करता है । सब लोग एक जैसे नहीं होते। सबका स्तर अलग-अलग होता है । कोई अच्छे कर्म अधिक करता है , कोई बुरे कर्म अधिक करता है ।
क्यों करता है? क्योंकि प्रत्येक व्यक्ति चेतन है। कर्म करना उसका स्वभाव है । वह खाली नहीं बैठ सकता ।
तो कोई अच्छे कर्म क्यों करता है ? और कोई बुरे कर्म क्यों करता है? इसका पहला कारण उसके पूर्व जन्मों के संस्कार हैं। दूसरा कारण उसकी शिक्षा, अर्थात माता पिता गुरुजन पड़ोसी मित्र प्रैस मीडिया आदि से उसको जो कुछ सीखने को मिलता है , उसके आधार पर वह अपने कर्म करता है । और तीसरा कारण उसकी अपनी बुद्धिमत्ता और वर्तमान का पुरुषार्थ भी है । इन कारणों से कोई व्यक्ति अच्छे या बुरे कर्म करता है ।
यदि ये सब कारण अच्छे होंगे , तो वह अच्छे कर्म करेगा । यदि ये सब कारण बुरे होंगे तो बुरे कर्म करेगा । परंतु व्यक्ति गहराई से सोचता नहीं , कि जो कर्म मैं कर रहा हूं , मुझे इसका फल भी भोगना पड़ेगा।
यदि व्यक्ति अच्छे कर्म अधिक करे, तो ठीक है। अच्छा फल मिलेगा । मनुष्य जन्म मिलेगा। सुख अधिक मिलेगा।
और यदि बुरे कर्म अधिक करेगा , तो उसे अन्य योनियों में जाना होगा । सांप बिच्छू हाथी बंदर घोड़ा कुत्ता गधा मक्खी मच्छर कॉकरोच मछली वृक्ष वनस्पति इत्यादि योनियों में अपने पाप कर्मों का दंड भोगना पड़ेगा। इस दंड को व्यक्ति समझ नहीं रहा, इसलिए भी वह पाप करता है ।
तो ईश्वर ने आपको बुद्धि दी है, उसका उपयोग करें । गंभीरता से विचार करें । किसी भी कर्म का फल माफ नहीं होगा. अच्छे कर्म का अच्छा फल मिलेगा, और बुरे कर्म का बुरा फल भी अवश्य ही मिलेगा। इसलिए फल को सदा ध्यान में रखें , फिर काम करें । आप बुराई से बचेंगे, अच्छे काम करेंगे और सदा सुखी रहेंगे –
[: #सोनेकेतरीकेसेजानिएइंसानका_नेचर…

मनुष्य का लगभग एक तिहाई जीवन सोने में व्यतीत होता है। मेडिकल साइंस के अनुसार एक स्वस्थ मनुष्य को 24 घंटे में से लगभग 6 से 8 घंटे की नींद लेना बहुत जरूरी है। सोने की अवस्था में हम अवचेतन अवस्था में होते हैं और बिल्कुल निश्चिंत हो जाते हैं। हर मनुष्य का सोने का तरीका एक-दूसरे से भिन्न होता है। उसी प्रकार हर इंसान का बोलने का तरीका भी अलग ही होता है।

सामुद्रिक शास्त्र या शरीर लक्षण विज्ञान के अनुसार किसी भी व्यक्ति को सोता या बोलता देखकर उसके स्वभाव के बारे में काफी-कुछ जाना जा सकता है। सामुद्रिक शास्त्र या शरीर लक्षण विज्ञान के अंतर्गत इस संबंध में विस्तृत जानकारी मिलती है। जानिए किस प्रकार सोने तथा बोलने वाले लोगों का स्वभाव कैसा होता है…..

(A) #शरीरसिकोड़करसोना

👉🏻 ऐसे लोग डरपोक होते हैं। इनके मन में असुरक्षा की भावना होती है। इन्हें एक अंजाना सा भय अनुभव होता है। वे यह बात किसी को बताते नहीं हैं। इन्हें अंजाने लोगों के साथ बात करना पसंद नहीं आता। ये अक्सर अकेले रहना पसंद करते हैं। ऐसे लोगों को नशे की लत लगने की संभावना सबसे अधिक होती है। कभी-कभी ये डिप्रेशन का शिकार भी हो जाते हैं।

(B) #पांवोंकोकसकर_सोना
👉🏻 जो लोग सोते समय पांवों को जकड़ लेते हैं और जिन्हें सारे शरीर को ढककर सोने की आदत है, ऐसे लोगों का जीवन निश्चित रूप से संघर्षपूर्ण रहता है। ये परिस्थितियों के अनुसार स्वयं को ढाल लेते हैं, यही इनकी सबसे बड़ी विशेषता होती है। ये बहुत ही व्यवहारकुशल होते हैं। ये सभी के साथ आसानी से घुलमिल जाते हैं।

(C) #दोनोंहाथऔरपैरोंकोफैलाकरपीठकेबल_सोना
👉🏻 जो लोग दोनों हाथ और पैरों को फैलाकर पीठ के बल सोते हैं, वे लोग अपने कार्यों को पूरी स्वतंत्रता के साथ करना पसंद करते हैं। इन्हें सभी सुख-सुविधाएं प्राप्त करने का मोह रहता है। आमतौर पर ऐसे लोग जीवन में कई उपलब्धियां हासिल करते हैं। ये लोग सुंदरता की ओर तुरंत ही आकर्षित हो जाते हैं। इन्हें गॉसिप करना भी काफी पसंद होता है।

(D) #करवटलेकरसोना
👉🏻 ऐसे लोग समझौतावादी होते हैं। साफ-सुथरे रहना, अच्छा भोजन करना इन्हें प्रिय होता है। खोज करना इनका प्रमुख शौक होता है। ये आदर्श जीवन जीना पसंद करते हैं।

(E) #पेटकेबल_सोना
👉🏻 ऐसे लोगों में अंजाने भय की भावना होती है। ये किसी भी प्रकार का खतरा उठाने के लिए तैयार नहीं होते। अपनी गलती को अच्छी तरह जानते हैं पर बतलाते हुए डरते हैं। जीवन में कई बार इन्हें धोखा मिलता है। इसलिए ये बहुत ही सोच-समझकर किसी से दोस्ती करते हैं। पैसों के मामले में भी कई बार ये धोखे का शिकार हो जाते हैं।

(F) #चित्तहोकरसोना
👉🏻 अगर आपको केवल सीधे लेटकर नींद आती है तो यह शुभ लक्षण हैं। आप केवल आत्मविश्वासी ही नहीं आकर्षक व्यक्तित्व के स्वामी भी हैं। आप समस्याओं का समाधान तुरंत कर देते हैं। ऐसे लोग परिवार के मुख्य सदस्य होते हैं। कुछ भी बड़ा काम करने से पहले इन लोगों की राय जरूर ली जाती है। ये परिवार, समाज, दोस्तों व रिश्तेदारों में बहुत लोकप्रिय होते हैं।

—————- एक बात और —————-

सोनेसेपहलेपैरहिलाना

कुछ लोग सोने से पहले पैर हिलाते हैं लेकिन अच्छा लक्ष्ण नहीं माना जाता। ऐसे लोगों को सदैव कोई न कोई चिंता सताती रहती है। ये स्वयं से ज्यादा परिजनों के बारे में सोचते हैं।

प्रमाण :- “सामुद्रिकशास्त्र”
[क औरत बहुत महँगे कपड़े में अपने मनोचिकित्सक के पास गई और बोली
“डॉ साहब ! मुझे लगता है कि मेरा पूरा जीवन बेकार है, उसका कोई अर्थ नहीं है। क्या आप मेरी खुशियाँ ढूँढने में मदद करेंगें?”
मनोचिकित्सक ने एक बूढ़ी औरत को बुलाया जो वहाँ साफ़-सफाई का काम करती थी और उस अमीर औरत से बोला – “मैं इस बूढी औरत से तुम्हें यह बताने के लिए कहूँगा कि कैसे उसने अपने जीवन में खुशियाँ ढूँढी। मैं चाहता हूँ कि आप उसे ध्यान से सुनें।”
तब उस बूढ़ी औरत ने अपना झाड़ू नीचे रखा, कुर्सी पर बैठ गई और बताने लगी – “मेरे पति की मलेरिया से मृत्यु हो गई और उसके 3 महीने बाद ही मेरे बेटे की भी सड़क हादसे में मौत हो गई। मेरे पास कोई नहीं था। मेरे जीवन में कुछ नहीं बचा था। मैं सो नहीं पाती थी, खा नहीं पाती थी, मैंने मुस्कुराना बंद कर दिया था।”
मैं स्वयं के जीवन को समाप्त करने की तरकीबें सोचने लगी थी। तब एक दिन,एक छोटा बिल्ली का बच्चा मेरे पीछे लग गया जब मैं काम से घर आ रही थी। बाहर बहुत ठंड थी इसलिए मैंने उस बच्चे को अंदर आने दिया। उस बिल्ली के बच्चे के लिए थोड़े से दूध का इंतजाम किया और वह सारी प्लेट सफाचट कर गया। फिर वह मेरे पैरों से लिपट गया और चाटने लगा।”
“उस दिन बहुत महीनों बाद मैं मुस्कुराई। तब मैंने सोचा यदि इस बिल्ली के बच्चे की सहायता करने से मुझे ख़ुशी मिल सकती है,तो हो सकता है कि दूसरों के लिए कुछ करके मुझे और भी ख़ुशी मिले। इसलिए अगले दिन मैं अपने पड़ोसी, जो कि बीमार था,के लिए कुछ बिस्किट्स बना कर ले गई।”
“हर दिन मैं कुछ नया और कुछ ऐसा करती थी जिससे दूसरों को ख़ुशी मिले और उन्हें खुश देख कर मुझे ख़ुशी मिलती थी।”
“आज,मैंने खुशियाँ ढूँढी हैं, दूसरों को ख़ुशी देकर।”
यह सुन कर वह अमीर औरत रोने लगी। उसके पास वह सब था जो वह पैसे से खरीद सकती थी।
लेकिन उसने वह चीज खो दी थी जो पैसे से नहीं खरीदी जा सकती।
मित्रों! हमारा जीवन इस बात पर निर्भर नहीं करता कि हम कितने खुश हैं अपितु इस बात पर निर्भर करता है कि हमारी वजह से कितने लोग खुश हैं।
तो आईये आज शुभारम्भ करें इस संकल्प के साथ कि आज हम भी किसी न किसी की खुशी का कारण बनें।

😊 मुस्कुराहट का महत्व 😊

👍_अगर आप एक ग्रहणी है तो मुस्कुराते हुए घर का हर काम किजिये फिर देखना पूरे परिवार में खुशियों का माहौल बन जायेगा।

👍_अगर आप घर के मुखिया है तो मुस्कुराते हुए शाम को घर में घुसेंगे तो देखना पूरे परिवार में खुशियों का माहौल बन जायेगा।

👍_अगर आप दुकानदार हैं और मुस्कुराकर अपने ग्राहक का सम्मान करेंगे तो ग्राहक खुश होकर आपकी दुकान से ही सामान लेगा।

👍_कभी सड़क पर चलते हुए अनजान आदमी को देखकर मुस्कुराएं, देखिये उसके चेहरे पर भी मुस्कान आ जाएगी।

मुस्कुराइए
😊क्यूंकि मुस्कराहट के पैसे नहीं लगते ये तो ख़ुशी और संपन्नता की पहचान है।

मुस्कुराइए
😊क्यूंकि आपकी मुस्कराहट कई चेहरों पर मुस्कान लाएगी।

मुस्कुराइए
😊क्यूंकि ये जीवन आपको दोबारा नहीं मिलेगा।

मुस्कुराइए
😊क्योंकि क्रोध में दिया गया आशीर्वाद भी बुरा लगता है और मुस्कुराकर कहे गए बुरे शब्द भी अच्छे लगते हैं।

मुस्कुराइए
😊क्योंकि दुनिया का हर आदमी खिले फूलों और खिले चेहरों को पसंद करता है।

मुस्कुराइए
😊क्योंकि आपकी हँसी किसी की ख़ुशी का कारण बन सकती है।

मुस्कुराइए
😊 क्योंकि परिवार में रिश्ते तभी तक कायम रह पाते हैं जब तक हम एक दूसरे को देख कर मुस्कुराते रहते है
और सबसे बड़ी बात

मुस्कुराइए
😊 क्योंकि यह मनुष्य होने की पहचान है। एक पशु कभी भी मुस्कुरा नही सकता।
इसलिए स्वयं भी मुस्कुराए और औराें के चहरे पर भी मुस्कुराहट लाएं.

यही जीवन है।
*आनंद ही जीवन 🌹🙏
[मैं एक घर के करीब से गुज़र रहा था की अचानक से मुझे उस घर के अंदर से एक बच्चे की रोने की आवाज़ आई। उस बच्चे की आवाज़ में इतना दर्द था कि अंदर जा कर वह बच्चा क्यों रो रहा है, यह मालूम करने से मैं खुद को रोक ना सका।

अंदर जा कर मैने देखा कि एक माँ अपने दस साल के बेटे को आहिस्ता से मारती और बच्चे के साथ खुद भी रोने लगती। मैने आगे हो कर पूछा बहनजी आप इस छोटे से बच्चे को क्यों मार रही हो? जब कि आप खुद भी रोती हो।

उस ने जवाब दिया भाई साहब इस के पिताजी भगवान को प्यारे हो गए हैं और हम लोग बहुत ही गरीब हैं, उन के जाने के बाद मैं लोगों के घरों में काम करके घर और इस की पढ़ाई का खर्च बामुश्किल उठाती हूँ और यह कमबख्त स्कूल रोज़ाना देर से जाता है और रोज़ाना घर देर से आता है।

जाते हुए रास्ते मे कहीं खेल कूद में लग जाता है और पढ़ाई की तरफ ज़रा भी ध्यान नहीं देता है जिस की वजह से रोज़ाना अपनी स्कूल की वर्दी गन्दी कर लेता है। मैने बच्चे और उसकी माँ को जैसे तैसे थोड़ा समझाया और चल दिया।

इस घटना को कुछ दिन ही बीते थे की एक दिन सुबह सुबह कुछ काम से मैं सब्जी मंडी गया। तो अचानक मेरी नज़र उसी दस साल के बच्चे पर पड़ी जो रोज़ाना घर से मार खाता था। मैं क्या देखता हूँ कि वह बच्चा मंडी में घूम रहा है और जो दुकानदार अपनी दुकानों के लिए सब्ज़ी खरीद कर अपनी बोरियों में डालते तो उन से कोई सब्ज़ी ज़मीन पर गिर जाती थी वह बच्चा उसे फौरन उठा कर अपनी झोली में डाल लेता।

मैं यह नज़ारा देख कर परेशानी में सोच रहा था कि ये चक्कर क्या है, मैं उस बच्चे का चोरी चोरी पीछा करने लगा। जब उस की झोली सब्ज़ी से भर गई तो वह सड़क के किनारे बैठ कर उसे ऊंची ऊंची आवाज़ें लगा कर वह सब्जी बेचने लगा। मुंह पर मिट्टी गन्दी वर्दी और आंखों में नमी, ऐसा महसूस हो रहा था कि ऐसा दुकानदार ज़िन्दगी में पहली बार देख रहा हूँ ।

अचानक एक आदमी अपनी दुकान से उठा जिस की दुकान के सामने उस बच्चे ने अपनी नन्ही सी दुकान लगाई थी, उसने आते ही एक जोरदार लात मार कर उस नन्ही दुकान को एक ही झटके में रोड पर बिखेर दिया और बाज़ुओं से पकड़ कर उस बच्चे को भी उठा कर धक्का दे दिया।

वह बच्चा आंखों में आंसू लिए चुप चाप दोबारा अपनी सब्ज़ी को इकठ्ठा करने लगा और थोड़ी देर बाद अपनी सब्ज़ी एक दूसरे दुकान के सामने डरते डरते लगा ली। भला हो उस शख्स का जिस की दुकान के सामने इस बार उसने अपनी नन्ही दुकान लगाई उस शख्स ने बच्चे को कुछ नहीं कहा।

थोड़ी सी सब्ज़ी थी ऊपर से बाकी दुकानों से कम कीमत। जल्द ही बिक्री हो गयी, और वह बच्चा उठा और बाज़ार में एक कपड़े वाली दुकान में दाखिल हुआ और दुकानदार को वह पैसे देकर दुकान में पड़ा अपना स्कूल बैग उठाया और बिना कुछ कहे वापस स्कूल की और चल पड़ा। और मैं भी उस के पीछे पीछे चल रहा था।

बच्चे ने रास्ते में अपना मुंह धो कर स्कूल चल दिया। मै भी उस के पीछे स्कूल चला गया। जब वह बच्चा स्कूल गया तो एक घंटा लेट हो चुका था। जिस पर उस के टीचर ने डंडे से उसे खूब मारा। मैने जल्दी से जा कर टीचर को मना किया कि मासूम बच्चा है इसे मत मारो। टीचर कहने लगे कि यह रोज़ाना एक डेढ़ घण्टे लेट से ही आता है और मै रोज़ाना इसे सज़ा देता हूँ कि डर से स्कूल वक़्त पर आए और कई बार मै इस के घर पर भी खबर दे चुका हूँ।

खैर बच्चा मार खाने के बाद क्लास में बैठ कर पढ़ने लगा। मैने उसके टीचर का मोबाइल नम्बर लिया और घर की तरफ चल दिया। घर पहुंच कर एहसास हुआ कि जिस काम के लिए सब्ज़ी मंडी गया था वह तो भूल ही गया। मासूम बच्चे ने घर आ कर माँ से एक बार फिर मार खाई। सारी रात मेरा सर चकराता रहा।

सुबह उठकर फौरन बच्चे के टीचर को कॉल की कि मंडी टाइम हर हालत में मंडी पहुंचें। और वो मान गए। सूरज निकला और बच्चे का स्कूल जाने का वक़्त हुआ और बच्चा घर से सीधा मंडी अपनी नन्ही दुकान का इंतेज़ाम करने निकला। मैने उसके घर जाकर उसकी माँ को कहा कि बहनजी आप मेरे साथ चलो मै आपको बताता हूँ, आप का बेटा स्कूल क्यों देर से जाता है।

वह फौरन मेरे साथ मुंह में यह कहते हुए चल पड़ीं कि आज इस लड़के की मेरे हाथों खैर नही। छोडूंगी नहीं उसे आज। मंडी में लड़के का टीचर भी आ चुका था। हम तीनों ने मंडी की तीन जगहों पर पोजीशन संभाल ली, और उस लड़के को छुप कर देखने लगे। आज भी उसे काफी लोगों से डांट फटकार और धक्के खाने पड़े, और आखिरकार वह लड़का अपनी सब्ज़ी बेच कर कपड़े वाली दुकान पर चल दिया।

अचानक मेरी नज़र उसकी माँ पर पड़ी तो क्या देखता हूँ कि वह बहुत ही दर्द भरी सिसकियां लेकर लगा तार रो रही थी, और मैने फौरन उस के टीचर की तरफ देखा तो बहुत शिद्दत से उसके आंसू बह रहे थे। दोनो के रोने में मुझे ऐसा लग रहा था जैसे उन्हों ने किसी मासूम पर बहुत ज़ुल्म किया हो और आज उन को अपनी गलती का एहसास हो रहा हो।

उसकी माँ रोते रोते घर चली गयी और टीचर भी सिसकियां लेते हुए स्कूल चला गया। बच्चे ने दुकानदार को पैसे दिए और आज उसको दुकानदार ने एक लेडी सूट देते हुए कहा कि बेटा आज सूट के सारे पैसे पूरे हो गए हैं। अपना सूट ले लो, बच्चे ने उस सूट को पकड़ कर स्कूल बैग में रखा और स्कूल चला गया।

आज भी वह एक घंटा देर से था, वह सीधा टीचर के पास गया और बैग डेस्क पर रख कर मार खाने के लिए अपनी पोजीशन संभाल ली और हाथ आगे बढ़ा दिए कि टीचर डंडे से उसे मार ले। टीचर कुर्सी से उठा और फौरन बच्चे को गले लगा कर इस क़दर ज़ोर से रोया कि मैं भी देख कर अपने आंसुओं पर क़ाबू ना रख सका।

मैने अपने आप को संभाला और आगे बढ़कर टीचर को चुप कराया और बच्चे से पूछा कि यह जो बैग में सूट है वह किस के लिए है। बच्चे ने रोते हुए जवाब दिया कि मेरी माँ अमीर लोगों के घरों में मजदूरी करने जाती है और उसके कपड़े फटे हुए होते हैं कोई जिस्म को पूरी तरह से ढांपने वाला सूट नहीं और और मेरी माँ के पास पैसे नही हैं इस लिये अपने माँ के लिए यह सूट खरीदा है।

तो यह सूट अब घर ले जाकर माँ को आज दोगे? मैने बच्चे से सवाल पूछा। जवाब ने मेरे और उस बच्चे के टीचर के पैरों के नीचे से ज़मीन ही निकाल दी। बच्चे ने जवाब दिया नहीं अंकल छुट्टी के बाद मैं इसे दर्जी को सिलाई के लिए दे दूँगा। रोज़ाना स्कूल से जाने के बाद काम करके थोड़े थोड़े पैसे सिलाई के लिए दर्जी के पास जमा किये हैं।

टीचर और मैं सोच कर रोते जा रहे थे कि आखिर कब तक हमारे समाज में गरीबों और विधवाओं के साथ ऐसा होता रहेगा उन के बच्चे त्योहार की खुशियों में शामिल होने के लिए जलते रहेंगे आखिर कब तक।

क्या ऊपर वाले की खुशियों में इन जैसे गरीब विधवाओंं का कोई हक नहीं ? क्या हम अपनी खुशियों के मौके पर अपनी ख्वाहिशों में से थोड़े पैसे निकाल कर अपने समाज मे मौजूद गरीब और बेसहारों की मदद नहीं कर सकते।

आप सब भी ठंडे दिमाग से एक बार जरूर सोचना ! ! ! !

और हाँ अगर आँखें भर आईं हो तो छलक जाने देना संकोच मत करना..😢

अगर हो सके तो इस लेख को उन सभी सक्षम लोगो को बताना ताकि हमारी इस छोटी सी कोशिश से किसी भी सक्षम के दिल मे गरीबों के प्रति हमदर्दी का जज़्बा ही जाग जाये और यही लेख किसी भी गरीब के घर की खुशियों की वजह बन जाये।

यह प्रेरक बोध कथा

अगर आपको रोना आ जाये कहानी पढ कर तो शेयर जरूर करना
[ घी के लडडू टेढ़े भी भले- इसका भरपूर मौज लें.

एक राजा के महल के द्वार पर एक वृद्ध भिखारी आया और ऊंचे स्वर में राजा को पुकारने लगा. उसकी आवाज सुनकर राजमहल के पहरेदार लपककर उसके पास पहुंचे और हंगामा मचाने के लिए डांटने लगे.

भिखारी ने पहरेदारों से कहा- सुनो, जाकर अपने राजा से कहो कि तुम्हारा भाई तुमसे मिलने आया है.

द्वारपालों ने जब सुना कि भिखारी खुद को राजा का भाई कह रहा है तो वे भी सहम गए. वास्तव में उनका राजा संत स्वभाव का और बड़ा बुद्धिमान था. उसकी ख्याति प्रकांड विद्वान और नीतिपरक राजा की थी. सो द्वारपालों को लगा कि क्या पता यह राजा का रिश्ते का कोई भाई ही हो. उनका राजा भी तो स्वभाव से फकीर ही है.

उन्होंने भिखारी को आदरपूर्वक बिठाया और राजा को सूचना दी कि उनका कोई भिक्षुक भाई मिलने आया है. राजा भिखारी से मिलने आया.

उसे देखते ही भिखारी बड़ी आत्मीयता से उसकी ओर बढ़ा और प्रणाम के बाद पूछा- बड़े भाई! आपके क्या हालचाल हैं?

राजा ने उतने ही प्रेम से मुस्कराते हुए उत्तर दिया- मैं तो पूरे आनंद में हूं. आप बताएं, आप कैसे हैं? सब कुशल मंगल तो है.

भिखारी बोला- वैसे तो अब तक कुशल-मंगल में ही था पर अब जरा संकट में हूं. उसी के सिलसिले में आपके पास सहायता के लिए आया हूं.

राजा ने पूछा- बताएं, कैसा संकट आन पड़ा है. मैं आपने सामर्थ्य के अनुसार आपकी सहायता अवश्य करूंगा.

भिखारी बोला- मैं जिस महल में रहता हूं, वह पुराना और जर्जर हो गया है, कभी भी टूटकर गिर सकता है. मेरे बत्तीस नौकर थे, वे भी एक-एक कर साथ छोड़ चले गए. मेरी पांचों रानियां भी वृद्ध हो गईं. अब अकेला पड़ रहा हूं, सहयोग करो.

यह सुनकर राजा ने सेवकों से भिखारी को तत्काल सौ रुपए देने का आदेश दिया.

भिखारी ने सौ रुपए की इस सहायतो को कम बताया. वह इससे संतुष्ट नहीं था और उसने भाव-भंगिमा से यह बात प्रकट कर दी.

राजा नेबात समझकर कहा- इस बार राज्य में सूखा पड़ा है. अतः धन व्यय में जरा विशेष विचार करना पड़ रहा है.

यह सुनकर भिखारी बोला- ऐसा है तो आप मेरे साथ सात समंदर पार चलिए. वहां सोने की खदानें हैं. समुद्र में मेरे पैर रखते ही समुद्र सूख जाएगा. मेरे पैरों की शक्ति से तो आप पहले से ही परिचित हैं. फिर सूखे हुए समुद्र को लांघकर आप खजाने की कमी पूरी कर लीजिएगा.

यह सुनने के बाद राजा ने सेवकों को भिखारी को एक हजार रुपए देने का आदेश दिया. एक हजार पाने के बाद भिखारी संतुष्ट था और राजा का अभिवादन करके वहां से चला गया.

भिखारी के जाने के बाद राजा से सेवकों ने भिखारी के प्रसंग के बारे में पूछा.

राजा ने बताया- तुमने समझा नहीं. भिखारी बुद्धिमान था. भाग्य के दो पहलू होते हैं राजा व रंक. इस नाते उसने मुझे भाई कहा. जर्जर महल से उसका आशय उसके वृद्ध शरीर से था. बत्तीस नौकर दांत और पांच रानियां उसकी पांच इंद्रियां हैं. समुद्र के बहाने उसने मुझे उलाहना दिया कि राजमहल में उसके पैर रखते ही मेरा खजाना सूख गया, इसलिए मैं उसे सौ रुपए दे रहा हूं.

उसकी बुद्धिमानी देखकर मैंने उसे हजार रुपए दिए और कल मैं उसे अपना सलाहकार नियुक्त करूंगा.

किसी को हीन न आंकिए. वेश-भूषा देखकर किसी की बुद्धिमता का अनुमान नहीं लगाना चाहिए, बुद्धि के परीक्षण के मानदंड अलग होते हैं. इसलिए व्यक्ति की परख उसके बाह्य आवरण से नहीं बल्कि आचरण से करनी चाहिए.

समझदार व्यक्ति से मिलन सबसे दुर्लभ खजाना है, उसे न गंवाइए. एक बात और याद रखें प्रकृति किसी में यदि कोई विशेष गुण भर देती है तो साथ में संतुलन के लिए कुछ अवगुण भी डाल देती है. समझदार लोगों के साथ एक अवगुण होता है- वे तुनक मिजाज होते हैं. उन्हें बहुत जल्दी कोई बात बुरी लग सकती है और स्पष्टवादी होते हैं. इसकी परवाह नहीं करेंगे कि आपको कैसा लगा. सीधी और खरी बात कर देंगे. इस अवगुण के कारण उनके पास लोग टिकते हैं और उनका गुण फैल नहीं पाता. यदि आपको सचमुच लगता है कि किसी गुणवान व्यक्ति से मित्रता हुई है तो उसे गंवाना मत. घी के लड्डू टेढ़े भी भले. यही इस कथा का सबक है.⚡

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 🌹शास्वत ज्ञान-वेदान्त🌹
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*श्रीमदाद्यशंकराचार्य विरचित * 🕉 विवेक-चूडामणि 🕉 -हिंदी अनुवाद

आत्मस्वरूप निरूपण

अज्ञानी पुरुष घड़े के जल में सूर्य के प्रतिबिंब को देखकर उसे सूर्य ही समझ लेता है लेकिन विद्वान पुरुष घड़ा, जल और उस में स्थित सूर्य का प्रतिबिंब — इन सब को छोड़कर इन तीनों के प्रकाशक इन से पृथक और स्वयंप्रकाश सूर्य को देखता है । उसी प्रकार देह, बुद्धि और चिदाभास — इन तीनों को छोड़कर बुद्धिगुहा में स्थित साक्षी रूप इस आत्मा को अखंडबोध स्वरूप सबके प्रकाशक और सत असत दोनों से भिन्न, नित्य, विभु, सर्वगत, सूक्ष्म, भीतर बाहर के भेद से रहित और अपने आपसे सर्वथा अभिन्न इस (आत्मा) को भलीभांति अपना निज स्वरूप जानकार पुरुष पाप रहित, निर्मल और अमर हो जाता है

वह अति बुद्धिमान पुरुष शोकरहित और आनंदघन रूप हो जाने से कभी किसी से भयभीत नहीं होता । मुमुक्षु पुरुष के लिए आत्मतत्व के ज्ञान को छोड़ कर संसार बंधन से छूटने का और कोई मार्ग नहीं है

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     🕉🙏हरिॐ🙏 🕉
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 🌹शास्वत ज्ञान-वेदान्त🌹
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*श्रीमदाद्यशंकराचार्य विरचित * 🕉 विवेक-चूडामणि 🕉 -हिंदी अनुवाद

आत्मस्वरूप निरूपण

जैसे अहंकार आदि विकार है वैसे ही उनका अभाव भी है। यह सब जिसके द्वारा अनुभव किए जाते हैं और जो स्वयं अनुभव में नहीं किया जा सकता, अपनी सूक्ष्म बुद्धि के द्वारा उस सब का साक्षी ही अपना आत्मा है जिस जिसके द्वारा जो जो अनुभव किया जाता है वह सब उसी के साक्षीत्व मे कहा जाता है बिना अनुभव किये पदार्थ में किसी का भी साक्षी होना नहीं माना जाता।

अपना तो वह आत्मा स्वयं ही साक्षी है क्योंकि वह स्वयं अपने आप से ही अनुभव किया जाता है। इसलिए इससे परे एक कोई और अपना साक्षात अंतरात्मा नहीं है।

जागृत स्वप्न और सुषुप्ति — इन तीनों अवस्थाओं में जो अन्त: करण के भीतर सदा “मैं” रूप से अनेक प्रकार सपोरित होता हुआ प्रत्यग्रुप से स्पष्टया प्रकाशित होता है और अहंकार से लेकर प्रकृति के इन नाना विकारों को साक्षी रूप से देखता हुआ नित्य चिदानंद रूप से सफुरित होता है अपने अंत करण में विराजमान यही अपना आत्मा है।

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     🕉🙏हरिॐ🙏 🕉
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[ भक्ति दिखावे का विषय नही

एक व्यक्ति था जो नियमित मंदिर जाता था परंतु एकांत मे तो चुपचाप रहता कोई भजन कीर्तन ना करता और जैसे ही भीड़ बढ़ने लगती खूब ज़ोर ज़ोर से जयकारा लगाके कीर्तन आदि करने लगता।

सभी लोग उसे बहुत भगत मानते थे और भगत जी का संबोधन करते थे इससे उस व्यक्ति को बहुत आत्म संतुष्टि मिलती। आम जीवन मे भी उसका ज़ोर इसी बात पर रहता की उसे मान कैसे मिले और इसलिए हमेशा ही दूसरों मे कमियाँ निकालता रहता।

यहाँ तक की मंदिर मे भी जाता तो सबको उपदेश दिया करता और खुद भूले से भी भगवान को याद नही करता। आरती भी करता तो उसका ज़ोर दूसरों को दिखाके चिल्लाने पर रहता परंतु ये भाव उसे नही आता कि भगवान सामने खड़े हैं।

इसी तरह कई दिन बीत गये और वहाँ एक संत और भी आने लगे। कभी कभी उस व्यक्ति की उनसे भेंट भी हो जाती लेकिन वो उनसे कुछ भी ज्ञान की बात नही पूछता क्यूंकी उसे लगता की लोग समझेंगे की उसे कुछ मालूम नही तभी तो वो इन संत से पूछ रहा है।

बल्कि वो व्यक्ति संत महाराज को ही बताने लगता की आप अकेले मे तो इतना भजन करते हैं लोगों के सामने चुप क्यूँ हो जाते हैं, अरे! भगवान का भजन तो सबके साथ मिलके ही किया जाता है।

वो संत मुस्कुराते और आँखें बंद कर लेते।उस व्यक्ति को लगता कि कदाचित् संत महाराज भी मेरी बात से सहमत है।

एक दिन उस आदमी ने एक नयी चप्पल खरीदी और मंदिर के बाहर हमेशा की तरह उतार कर अंदर आ गया। परंतु उसका मन बार बार चप्पल पर जाए की कहीं कोई चोरी ना कर ले। ये सब देखकर भगवान को बहुत दुख हुआ।

रात उस व्यक्ति ने स्वप्न देखा की कोई अलौकिक पुरुष उसी मंदिर के बाहर उसकी चप्पल के पास खड़ा है, तुरंत ही उसकी नींद टूट गयी वो घबराके बैठ गया। उसने विचार किया की इसका अर्थ किससे पूछा जाए क्यूंकी उसने कभी कोई प्रश्न किसी से पूछा नही की लोग उसे अज्ञानी ना समझे।

बहुत सोच विचार कर उसने सोचा एकांत मे उसी संत से पूछूँगा जो मंदिर आते हैं क्यूंकी वो धीरे बोलते हैं और अधिक लोगों से बातचीत भी नही करते। उस दिन वो मंदिर गया और उसने अपनी बात संत के सामने रखी।

उसकी बात सुनते ही संत की आखों मे आँसू आ गये और वो भाव समाधि मे चले गये। कुछ देर बाद जब उनकी आखें खुली तो उस व्यक्ति ने फिर अपना प्रश्न दोहराया की इस स्वप्न का क्या अर्थ है ?

संत बोले, वो महापुरुष जो आपकी चप्पल के पास खड़े थे स्वयं प्रभु थे जिनकी मूर्ति इस मंदिर मे विराजमान है और वो आपको ऐसा करके यही संकेत दे रहे थे की तुम मंदिर मे रहके भी मुझे स्मरण नही करते और मैं मंदिर मे होते हुए भी तुम्हारे चप्पल की रखवाली करता हूँ।

ये सुनते ही उस व्यक्ति की भी आँखें भीग गयीं उसने संत के चरण पकड़ लिए और बोला महाराज अब मैं समझा की आप एकांत मे इतने भाव से क्यूँ भजन गाते और भीड़ के साथ क्यूँ चुप हो जाते क्यूंकी आप हमेशा प्रभु प्रेम मे रहते हैं और प्रभु भक्ति दिखावे का नही भाव का विषय है।

कृपया करके मुझे क्षमा कर दें जो मैने अज्ञान वश आपको कभी अपमानित किया हो ये कहकर वो व्यक्ति भाव विभोर हो गया, संत ने आगे बढ़के उसे गले से लगा लिया।

उस दिन भी उस व्यक्ति ने भीड़ के साथ हमेशा की तरह ज़ोर ज़ोर से भजन किया परंतु उसकी आखें बंद थीं और उनसे अश्रु निकल रहे थे। मीरा दासीके भी कुछ ऐसे ही गति हो रही है गोविंद आ कर बाह पकड़ लो खुद से मिला लो अलग न करो 😭😭

जय जय श्रीराधे

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