मनुष्य के शरीर मे नाड़ियो का एक ऐसा जाल है जिनमे होकर शरीर की यह प्राण ऊर्जा शरीर के विभिन्न अंगों को पहुचती है जिससे ये अंग सक्रिय रहते है।
जब इस ऊर्जा प्रवहा में कमी आती है अथवा रुकावट आती है तो उससे सम्बंधित अंग कार्य करना बंद कर देते है जो उसकी बीमारी का कारण बनता है।
यह ऊर्जा आत्मा की ही ऊर्जा है जिसका मुख्य केंद्र नाभि है यही से मनुष्य को जीवन मिलता है। इन नाड़ियो का जाल बिभिन्न शक्ति केंद्रों तथा उपकेंद्रों द्वारा फैला हुवा है।
नाभि के बाद छः मुख्य केंद्र है जिनको हट योग में षट्चक्र कहा गया है।
ये शक्ति के बड़े केंद्र है। इनके बाद लगभग सात सौ छोटे केंद्र है जिनसे यह ऊर्जा प्रवाहित होती है एक्यू पंक्क्चर की चिकित्सा पद्वति इन्ही केंद्रों के उपचार पर आधारित है।
कपाल के भीतर विद्यमान एक छिद्र में एक स्वयं प्रकाश प्रभाकर ज्योति कर आलम्बन लेकर इसमें अपने मन को स्थिर करे ध्यान में समाधि का अभ्याश करे।
आंख मुद कर इस क्रिया को निरंतर करता रहे जिससे योगी के मन मे दृढ़ता का संचार होता है जिससे वह उस उत्तम लक्ष्य को प्राप्त कर लेता है।
पातंजल योग सूत्र३/३२ में इसका वर्णन है कि इस कपाल ज्योति में सयम करने से सिद्ध महात्माओ के दर्शन होते है।(ये सिद्ध महात्मा कौन है ? ) तथा सांसार के प्राणियों की किस प्रकार सहायता करते है?
इसका विस्तृत वर्णन पातंजल योग सूत्र में विस्तार से किया गया है यह ज्योति शिव व शक्ति स्वरूप है जिसका योगी प्रत्यक्ष दर्शन करता है जिशसे उसकी भेद दृष्टि समाप्त हो जाती है तथा वह दूसरों को अपने से अभेद स्वरूप मानने लगता है।
श्रीगुरवे नमः
ॐ नमः शिवाय