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👉बीज मंत्र क्या है ?तथा इनका महत्व क्या है?

👉बीज मंत्र क्या है?-
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👉1-बीज मंत्र या मूल मंत्र ऐसे कुछ खास मंत्र है जो बेहद छोटे लेकिन प्रभावशाली है। बीज मंत्र इतने शक्तिशाली होते है की कम समय में साधक को अलौकिक अनुभव करवाने में सक्षम है। बीज मंत्र कुछ समय बाद ही अपना प्रभाव दिखाना शुरू कर देते है और अगर नियमित इनका उच्चारण किया जाए तो उस वातावरण में ये जाग्रत हो दिव्य प्रभाव दिखाना शुरू कर देते है।

👉2-एक नियमित जाप बीज मंत्र के करने के बाद साधक के साधना कक्ष में उस ऊर्जा को महसूस किया जा सकता है जिसमे ध्यान लगाना बेहद सहज, समाधी अनुभव और यहाँ तक की एक दिव्य अनुभूति का अहसास भी देखने को मिलता है। यही वजह है की बीज मंत्र बेहद शक्तिशाली होने के साथ साथ दिव्य भी होते है।

👉बीज मंत्र कैसे काम करते है?-
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👉 1-हमारे मुँह से निकली हर छोटी से छोटी साउंड भी इस यूनिवर्स में कही ना कही गूंजती रहती है। वैज्ञानिकों ने माना है की यूनिवर्स में सबसे ज्यादा गूंजने वाली साउंड ॐ की है। बीज मंत्र हमारे अंतर को प्रभावशाली बनाते है। इनके उच्चारण में एक अलग ऊर्जा के प्रवाह को महसूस किया जा सकता है। अगर बीज मंत्र का सही उच्चारण किया जाए तो कुण्डलिनी और सप्त चक्र जागरण को आसानी से महसूस किया जा सकता है।

👉2-बीज मंत्र और उनके जप का अलग अलग तरीका है। बीज मंत्र के उच्चारण के दौरान मंत्र से जुड़े चक्र पर भी साधक का ध्यान होना चाहिए साथ ही उच्चारण सामान्य ना हो कर वोकल से जुड़ा होना चाहिए। तिब्बत पद्धति में मंत्र जाप को आसानी से सिद्ध इसी लिए कर लेते है क्यों की उन्हें वोकल फेज का पूरा पता होता है। वोकल फेज मंत्र के जागरण में अहम भूमिका निभाते है।

👉 3-परमेश्वर की कृपा से इस संसार में हर जीव की उत्पत्ति बीज के द्वारा ही होती है चाहे वह पेड़-पौधे हो या फिर मनुष्य योनी | बीज को जीवन की उत्पत्ति का कारक माना गया है | बीज मंत्र भी कुछ इस तरह ही कार्य करते है | हिन्दू धरम में सभी देवी-देवताओं के सम्पूर्ण मन्त्रों के प्रतिनिधित्व करने वाले शब्द को बीज मंत्र कहा गया है | सभी वैदिक मंत्रो का सार बीज मंत्रो को माना गया है | हिन्दू धरम में सबसे बड़ा बीज मंत्र ” ॐ ” है | अन्य शब्दों में बीज मंत्र किसी भी वैदिक मंत्र का वह लघु रूप है जिसे मंत्र के साथ प्रयोग करने पर वह उत्प्रेरक का कार्य करता है | बीज मंत्रों को सभी मन्त्रों के प्राण के रूप में जाना जा सकता है जिनके प्रयोग से मन्त्रों में प्रबलता और अधिक हो जाती है |

👉 बीज मंत्र सामान्य मंत्र से अलग कैसे है?-
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👉1-बीज मंत्र सामान्य मंत्र से 1000 गुना ज्यादा प्रभावशाली होते है इसलिए हम कह सकते है की बीज मंत्र का प्रभाव भी हमें एक सामान्य मंत्र के मुकाबले कही ज्यादा मिलता है।बीज मंत्र एक ऐसा मंत्र है जो ऊर्जा के प्रवाह को साधक के भौतिक स्वरूप और फिर मानसिक स्वरूप से जाग्रत कर देता है। एक बार बीज मंत्र साधक द्वारा सिद्ध होने के बाद जुबान और मानसिक स्वरूप में हमेशा उच्चरित होता है। यही बीज मंत्र की असली शक्ति होती है।

👉2-बीज मंत्र कुछ इस प्रकार होते है :- ॐ, क्रीं, श्रीं, ह्रौं, ह्रीं, ऐं, गं, फ्रौं, दं, भ्रं, धूं, हलीं, त्रीं, क्ष्रौं, धं, हं, रां, यं, क्षं, तं , ये दिखने में छोटे से बीज मंत्र अपने अन्दर बहुत से शब्दों को समाये हुए है | उपरोत्क सभी बीज मंत्र अत्यंत कल्याणकारी है जो अलग-अलग देवी-देवताओं के प्रतिनिधत्व करते है |

👉बीज मंत्र का क्या महत्व है?-
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👉1-जिस प्रकार किसी व्यक्ति, स्थान, वस्तु के ज्ञानर्थ कुछ संकेत प्रयुक्त किए जाते हैं, ठीक उसी प्रकार मंत्रों से संबंधित देवी-देवताओं को संकेत द्वारा संबंधित किया जाता है, इसे बीज कहते हैं..वेदमंत्र का संक्षिप्त रुप बीज मंत्र कहलाता है। वेद वृक्ष का सार संक्षेप में बीज है। मनुष्य का बीज वीर्य है। समूचा काम विस्तार बीज में सन्निहित रहता है। तांत्रिक प्रयोजनों में बीज मंत्र का अत्यधिक महत्त्व है।बीज (मंत्र) विभिन्न देवी-देवताओं के साथ विभिन्न संप्रदायों के अनुष्ठान एवं पुरश्चरण में प्रयुक्त होने पर विभिन्न अर्थों का वाचक या सूचक बन जाता है। फिर भी मंत्रों में प्रयुक्त सभी बीजों का एक वाच्यार्थ होता है।

👉2-‘मंत्र’ शब्द का धातुगत अर्थ है- गुप्त परिभाषण। बीजमंत्रों के अक्षर गूढ़ संकेत होते हैं, जिनका अर्थ देवता, संप्रदाय एवं प्रयोग के आधार पर मंत्र शास्त्र से जाना जाता है।

👉 वस्तुतः बीजमंत्रों के अक्षर उनकी गूढ़ शक्तियों के संकेत होते हैं। इनमें से प्रत्येक की स्वतंत्र एवं दिव्य शक्ति होती है। और यह समग्र शक्ति मिलकर समवेत रूप में किसी एक देवता के स्वरूप का संकेत देती है। जैसे बरगद के बीज को बोने और सींचने के बाद वह वट वृक्ष के रूप में प्रकट हो जाता है, उसी प्रकार बीजमंत्र भी जप एवं अनुष्ठान के बाद अपने देवता का साक्षात्कार करा देता है।

👉3-प्रत्येक बीज मन्त्र का एक यंत्र भी है। इसे अक्षर-यन्त्र या बीज यन्त्र कहते हैं। तांत्रिक उपासनाओं में पूजा प्रतीक में चित्र-प्रतीक की भाँति किसी धातु पर खोदे हुए यंत्र की भी प्रतिष्ठापना की जाती है और प्रतिमा-पूजन की तरह यंत्र का भी पंचोपचार या षोडशोपचार पूजन किया जाता है। दक्षिण मार्गी साधनाओं में प्रतिमा-पूजन का जो स्थान है वही वाममार्गी उपासना उपचार में यंत्र-स्थापना का है।बीज या सम्पुट में से किसे कहाँ लगाना चाहिए इसका निर्णय किसी अनुभवी के परामर्श से करना चाहिए। बीज-विधान, तंत्र-विधान के अन्तर्गत आता है। इसलिए इनके प्रयोग में विशेष सतर्कता की आवश्यकता रहती है।

👉4-बीज मंत्र विभिन्न देवताओं, धर्मो एवं उनके संप्रदायों की साधनाओं के माध्यम से साधक को भिन्न-भिन्न प्रकार के रहस्यों से परिचित करवाता है।अपने आराध्य देव का समस्त स्वरूप इसके बीज मंत्र में निहित होता है। शैव, शाक्त, वैष्णव, गाणपत्य, जैन एवं बौद्ध धर्मो के सभी संप्रदायों में ‘ह्रीं’, ‘कलीं’ एवं ‘श्रीं’ आदि बीजों का मंत्रसाधना में समान रूप से प्रयुक्त होना इसका साक्ष्य है। बीज मंत्र समस्त अर्थो का वाचक एवं बोधक होने के बावजूद अपने आपमें गूढ़ है।

👉बीज मंत्र के प्रकार;-
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👉1-ये बीज मंत्र तीन प्रकार के होते हैं…
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1-मौलिक -2-यौगिक -3-कूट

👉2-इनको कुछ आचार्य एकाक्षर, बीजाक्षर एवं घनाक्षर भी कहते हैं.. जब बीज अपने मूल रूप में रहता है, तब मौलिक बीज कहलाता है, जैसे- ऐं, यं, रं, लं, वं, क्षं आदि.. जब यह बीज दो
वर्णो के योग से बनता है, तब यौगिक कहलाता है।जैसे- ह्रीं, क्लीं, श्रीं, स्त्रीं, क्ष्रौं आदि…इसी तरह जब बीज तीन या उससे अधिक वर्णो से बनता है, तब यह कूट बीज कहलाता है।
बीज मंत्रों में समग्र शक्ति विद्यमान होते हुए भी गुप्त रहती है…

👉 महत्वपूर्ण बीज मंत्र :-
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1-ॐ- परमपिता परमेश्वर की शक्ति का प्रतीक है…
2-ह्रीं- माया बीज
3-श्रीं- लक्ष्मी बीज
4-क्रीं- काली बीज
5-ऐं- सरस्वती बीज
6-क्लीं- कृष्ण बीज

👉 प्रसिद्ध बीजों के परंपरागत अर्थ ;-
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👉1-ह्रीं (मायाबीज) इस मायाबीज में ह् = शिव, र् = प्रकृति, नाद = विश्वमाता एवं बिंदु = दुखहरण है। इस प्रकार इस मायाबीज का अर्थ है ‘शिवयुक्त जननी आद्याशक्ति, मेरे दुखों को दूर करे।’

👉2- श्रीं (श्रीबीज या लक्ष्मीबीज) इस लक्ष्मीबीज में श् = महालक्ष्मी, र् = धन संपत्ति, ई = महामाया, नाद = विश्वमाता एवं बिंदु = दुखहरण है। इस प्रकार इस श्रीबीज का अर्थ है ‘धनसंपत्ति की अधिष्ठात्री जगज्जननी मां लक्ष्मी मेरे दुख दूर करें।’

👉3- ऐं (वागभवबीज या सारस्वत बीज) इस वाग्भवबीज में- ऐ = सरस्वती, नाद = जगन्माता और बिंदु = दुखहरण है। इस प्रकार इस बीज का अर्थ है- ‘जगन्माता सरस्वती मेरे दुख दूर करें।’

👉4- क्लीं (कामबीज या कृष्णबीज) इस कामबीज में क = योगस्त या श्रीकृष्ण, ल = दिव्यतेज, ई = योगीश्वरी या योगेश्वर एवं बिंदु = दुखहरण। इस प्रकार इस कामबीज का अर्थ है- ‘राजराजेश्वरी योगमाया मेरे दुख दूर करें।’ और इसी कृष्णबीज का अर्थ है योगेश्वर श्रीकृष्ण मेरे दुख दूर करें।

👉5- क्रीं (कालीबीज या कर्पूरबीज) इस बीज में- क् = काली, र् = प्रकृति, ई = महामाया, नाद = विश्वमाता एवं बिंदु = दुखहरण है। इस प्रकार इस बीज का अर्थ है ‘जगन्माता महाकाली मेरे दुख दूर करें।’

👉6- दूं (दुर्गाबीज) इस दुर्गाबीज में द् = दुर्गतिनाशिनी दुर्गा, ¬ = सुरक्षा एवं बिंदु = दुखहरण है। इस प्रकार इसका अर्थ 1. है ‘दुर्गतिनाशिनी दुर्गा मेरी रक्षा करें और मेरे दुख दूर करें।’

👉7- स्त्रीं (वधूबीज या ताराबीज) इस वधूबीज में स् = दुर्गा, त् = तारा, र् = प्रकृति, ई = महामाया, नाद = विश्वमाता एवं बिंदु = दुखहरण है। इस प्रकार इस बीज का अर्थ है ‘जगन्माता महामाया तारा मेरे दुख दूर करें।’
8- हौं (प्रासादबीज या शिवबीज) इस प्रासादबीज में ह् = शिव, औ = सदाशिव एवं बिंदु = दुखहरण है। इस प्रकार इस बीज का अर्थ है ‘भगवान् शिव एवं सदाशिव मेरे दुखों को दूर करें।’

👉9- हूं (वर्मबीज या कूर्चबीज) इस बीज में ह् = शिव, ¬ = भ. ैरव, नाद = सर्वोत्कृष्ट एवं बिंदु = दुखहरण है। इस प्रकार इस बीज का अर्थ है ‘असुर भयंकर एवं सर्वश्रेष्ठ भगवान शिव मेरे दुख दूर करें।’

👉10- हं (हनुमद्बीज) इस बीज में ह् = अनुमान, अ् = संकटमोचन एवं बिंदु = दुखहरण है। इस प्रकार इस बीज का अर्थ है ‘संक. टमोचन हनुमान मेरे दुख दूर करें।’

👉11- गं (गणपति बीज) इस बीज में ग् = गणेश, अ् = विघ्ननाशक एवं बिंदु = दुखहरण है। इस प्रकार इस बीज का अर्थ है ‘‘विघ्ननाशक श्रीगणेश मेरे दुख दूर करें।’

12- क्ष्रौं (नृसिंहबीज) इस बीज में क्ष् = नृसिंह, र् = ब्रह्म, औ = दिव्यतेजस्वी, एवं बिंदु =
दुखहरण है।इस प्रकार इस बीज का अर्थ है ‘दिव्यतेजस्वी ब्रह्मस्वरूप श्री नृसिंह मेरे दुख दूर करें।’

👉विशेष —
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👉कहते है 100 मंत्रो की शक्ति और लाभ एक अकेले बीज मंत्र में होती है। इसलिए बीज मंत्र का जाप आपके लिए लाभदायक साबित हो सकता है लेकिन..जरुरत है सही बीज मंत्र के चुनाव की।बीज मंत्रों के अक्षर गूढ़ संकेत होते हैं.. इनका व्यापक अर्थ होता है… बीज मंत्रों के उच्चारण से मंत्रों की शक्ति बढ़ती है.. क्योंकि, यह विभिन्न देवी-देवताओं के सूचक है।इस
प्रकार बीज मंत्रों की शक्ति इतनी असीम होती है, कि देवताओं को भी अपने वशीभूत कर लेती है, तथा जप अनुष्ठान द्वारा देवता का साक्षात्कार करा देती है…बीज मंत्रों के अक्षर उनकी गूढ़ शक्तियों के संकेत होते हैं… इनमें से प्रत्येक की स्वतंत्र एवं दिव्य शक्ति मिलकर देवता के विराट् स्वरूप का संकेत देती है…

👉1-बीज मंत्रों के जप से देवी-देवता अति शीघ्र प्रसन्न होकर अपने भक्त का उद्धार करते है | बीज मंत्रों का उच्चारण आपके आस-पास एक सकारात्मक उर्जा का संचार करता है | जीवन में आने वाले घोर से घोर संकट भी बीज मंत्रों के उच्चारण से दूर हो जाते है | किसी भी प्रकार के असाध्य रोग की गिरफ्त में आने पर , आर्थिक संकट आने पर, इनके अतिरिक्त समस्या कोई भी हो, बीज मंत्रों के जप से लाभ अवश्य प्राप्त होता है | बीज मंत्रों के नियमित जप से सभी पापों से मुक्ति मिलती है | ऐसा व्यक्ति सम्पूर्ण जीवन मृत्यु के भय से मुक्त होकर जीता है व अंत में मोक्ष को प्राप्त करता है |
2-शाबर बीज मंत्र भी बीज मन्त्र की तरह प्रभावशाली होते है लेकिन इन्हे कोई भी ग्रहण कर सकता है। गुरु मंत्र और गुरु दीक्षा की तरह ही बीज मंत्र को सिद्ध किया जाता है लेकिन शाबर मंत्र सरल होते है जिनका कोई दोष साधक को नहीं लगता है। मंत्र सिद्धि के लिए उसका निश्चित मात्रा में जाप करना बेहद जरूरी है।

👉3-किसी भी मंत्र के साथ उसके उच्चारण की मात्रा का भी जिक्र किया जाता है।

👉मंत्र के जप को एक तय मात्रा में दोहराने पर वो जाग्रत हो जाता है और अपना प्रभाव दिखाने लगता है। ये एक सवाल ही है की एक खास मात्रा ही क्यों ? क्या एक हजार से एक भी कम होने पर मंत्र जाग्रत नहीं होगा .. ब्रह्माण्ड में फैले हर मंत्र का जाप एक बंद ताले को चाबी से खोलने जैसा है। मात्रा कम या ज्यादा मायने रखती है या नहीं लेकिन किसी भी मंत्र को एक निश्चित मात्रा में जाप कर ही अनलॉक किया जा सकता है।
क्या बीज मंत्र खतरनाक होते है :

👉4-अगर सही विधि और विधान के साथ बीज मंत्र का जाप ना किया जाए तो इनके प्रभाव विपरीत भी हो सकते है। बीज मंत्र अपने आसपास की नकारात्मक और सकारात्मक शक्ति दोनों को ही आकर्षित करते है। यही वजह है की मंत्रो को भी जाग्रत करना, शुद्धिकरण करना बेहद जरुरी है। सिर्फ मंत्र जाप ही काफी नहीं होता है मंत्र जाप से पहले के विधान भी पूरे करना जरूरी होता है जिसकी वजह से साधक के आसपास का वातावरण शुद्ध होता है और साधना के साथ बीज मंत्र का सही लाभ मिल पाता है।

👉5-अक्सर ऐसा हो सकता है की मंत्र जाप के समय हमें कुछ अनुभव ना हो या फिर डरावने अनुभव हो लेकिन हमारे आसपास का वातावरण उस बीज मन्त्र से सक्रिय हो अपना प्रभाव बना लेता है। इसलिए अगर आपको लगता है की मंत्र का अनुभव नहीं हुआ और मंत्र बीच में छोड़ दिया तो ऐसा ना करे क्यों की सही समय पर या उसके कुछ समय बाद मंत्र का प्रभाव देखने को जरूर मिलता है।

👉6-बीज मंत्र में सबसे ज्यादा ध्यान रखने वाली बात ये है की इन्हे हमेशा किसी योग्य से ही लिया जाना चाहिए क्योकि लय के बगैर वो प्रभाव नहीं दिखा सकते है। हम सामान्य मन्त्र को जैसे चाहे उच्चारण कर सकते है लेकिन बीज मंत्र के साथ ऐसा नहीं है। बीज मंत्र अपने आप में जाग्रत होते है और अगर इनका पूर्ण विधि विधान के बगैर उच्चारण किया जाए तो उस समय भले ही हमें असर न दिखे लेकिन वायुमण्डल में उसका प्रभाव बना रहता है। इसलिए कभी भी बिना समझे बीज मंत्र का उच्चारण या उसे जाग्रत ( अपनी सिद्धि के लिए ) नहीं करना चाहिए।

👉स्वास्थ्य-सुरक्षा के बीजमन्त्र ;-
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👉1-बीजमंत्रों का महत्त्व समझकर उनका उच्चारण किया जाय तो बहुत सारे रोगों से छुटकारा मिलता है। उनका अलग-अलग अंगों एवं वातावरण पर असर होता है।प्राचीन समय में भारत में यंत्र-तंत्र और मंत्र के रूप में एक ऐसे विज्ञान का प्रचलन रहा है, जो बहुत ही शक्तिशाली और चमत्कारी है.. आज जिन बीमारियों को लाइलाज माना जा रहा है, उनका मंत्रों के द्वारा स्थाई निवारण संभव है |

👉2-ʹૐʹ के ʹओʹ उच्चारण से ऊर्जाशक्ति का विकास होता है तो ʹमʹ से मानसिक शक्तियाँ विकसित होती हैं। ʹૐʹ से मस्तिष्क, पेट और सूक्ष्म इन्द्रियों पर सात्त्विक असर होता है। ʹह्रींʹ उच्चारण करने से पाचन-तंत्र, गले व हृदय पर तथा ʹह्रंʹ से पेट, जिगर, तिल्ली, आँतों व गर्भाशय पर अच्छा प्रभाव पड़ता है। औषधि को एकटक देखते हुए ʹૐ नमो नारायणाय।ʹ मंत्र का 21 बार जप करके फिर औषधि लेने से उसमें भगवद्-चेतना का प्रभाव आता है और विशेष लाभ होता है।

👉बीजमन्त्र >>> लाभ
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👉1-कं >>> मृत्यु के भय का नाश, त्वचारोग व रक्त विकृति में।

👉2-ह्रीं >>>मधुमेह, हृदय की धड़कन में।

👉3-घं >>>स्वप्नदोष व प्रदररोग में।

👉4-भं >>> बुखार दूर करने के लिए।

👉5-क्लीं>>>पागलपन में।

👉6-सं >>> बवासीर मिटाने के लिए।

👉7-वं>>> भूख-प्यास रोकने के लिए।

👉8-लं >>> थकान दूर करने के लिए।

👉9-बं >>> वायु रोग और जोदो के दर्द के लिये

👉जप करने से पूर्व माला को प्रणाम करें–+

👉ॐऐं ह्रीं श्रीं अक्षमाल्यै नमः ।।

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