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🌷ॐ ह्लीं पीताम्बरायै नमः🌷
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एकादशी को चावल क्यों वर्जित है? क्या है इसका आध्यात्मिक और वैज्ञानिक तथ्य
वास्तव में एकादशी में कोई भी अन्य नहीं खाना चाहिए क्योंकि इस तिथि को अन्न में पापों का निवास होता है। कंदमूल आदि जो जमीन को जोते बिना ही उत्पन्न होते हैं वही व्रत उपवास में ग्रहण योग्य हैं। यदि ऐसे पदार्थ ना उपलब्ध हो तो फलाहार करना चाहिए परंतु एकादशी को चावलों का आहार करना धार्मिक और आस्तिकों की सम्मति से पूर्ण रूपेण निषिद्ध कहा गया है। आप जानते हैं कि चावल को शुरू से लेकर अंत तक पानी ही चाहिए अर्थात चावल यानी धान बोया जाता है तो पानी में, रोपाई होती है तो पानी में, अन्य अन्नों की तरह इसकी एक दो या 4 बार सिंचाई नहीं होती बल्कि जब तक इसके दाने पक नहीं जाते तब तक इसके पौधे पानी में ही रहते हैं। कटाई के बाद खाना बनाते समय जब यह पकाया जाता है तो पानी में ही। कहने का तात्पर्य यह है कि यह पानी का कीड़ा है।
अब दूसरे पहलू की तरफ ध्यान दें-चंद्रमा को हिमांशु हिमकर आदि कई नामों से जाना जाता है क्योंकि चंद्रमा जल राशि का ग्रह है। यह पानी को अपनी ओर आकर्षित करता है। अष्टमी की तिथि से ही जल के प्रति इसका आकर्षण बढ़ने लगता है। तात्पर्य है कि एकादशी की तिथि से यह पानी को अपनी ओर खींचने का प्रयास करता है और पूर्णिमा को इसकी आकर्षण शक्ति जल के प्रति पूरे उद्वेग पर हो जाती है जिस कारण समुद्र में ज्वार भाटा आता है। आप पूर्णिमा को कोलकाता या मुंबई के समुद्र में ज्वार भाटे का नजारा देख सकते हैं तो चावल रूप में हमारे अंदर विद्यमान जल को खींचने का प्रयास भला चंद्रमा क्यों नहीं करेगा। परिणाम स्वरुप अपच, बदहजमी की शिकायत पेट में उत्पन्न हो जाती है। इस तरह धार्मिक और वैज्ञानिक दोनों विधियों से एकादशी को चावल खाना वर्जित कहा गया है। वैसे भी चावल खाने से आलस्य की अधिकता होती है।
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🌷जय मां पीताम्बरा🌷

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