निसान्तान दंपतियों के लिए संतान प्राप्ति के सर्वोत्तम उपाय
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ज्योतिष शास्त्र विभिन्न प्रकार के कष्टों और दोषों को दूर करने के लिए विभिन्न प्रकार के उपाय, पूजा विधि और मंत्रों को जाप करने का सुझाव देता हैं। जिसके प्रयोग से जातक अपने जीवन के कष्टों को दूर करने का प्रयास करते हैं। ऐसा ही एक प्रभावी मंत्र है “श्री संतान गोपाल मंत्र”। कुंडली में संतान सुख का दोष होने पर इस मंत्र का जाप किया जाता है। माना जाता है कि इस मंत्र के सवा लाख जाप से ही पुण्य प्राप्त होता है। इस मंत्र का वर्णन हरिवंश पुराण में किया गया है।
बाल गोपाल श्रीकृष्ण के बाल रूप को कहा जाता है। भगवान श्री कृष्ण के बाल स्वरूप की पूजा करना निःसंतान दंपत्तियों के लिए बेहद शुभ माना जाता है।
श्री संतान गोपाल पूजा विधि
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श्री संतान गोपाल पूजा का आरंभ गुरुवार या रविवार के दिन से ही करना चाहिए। इसके साथ ही इसके आठवें दिन इस पूजा का समापन कर दिया जाता है। इस प्रकार यह पूजा करीब आठ दिन तक चलती है। इस पूजा अनुष्ठान में १२५००० बार श्री संतान गोपाल मंत्र का जाप किया जाता है।
पूजा के पहले दिन करीब ७ या ५ पंडित शिवजी, भगवान कृष्ण और मां शक्ति के सामने बैठकर जातक के लिए १२५००० बार श्री संतान गोपाल मंत्र जाप करने का संकल्प लेते हैं। इसके बाद सभी देवी- देवताओं की पूजा कर अनुष्ठान का आरंभ करते हैं। पूजा के आरंभ में सभी पंडितों का नाम और गोत्र बोला जाता है और पुत्र रत्न की प्राप्ति की कामना करते हैं।
इसके बाद सभी पंडित जातक के लिए श्री संतान गोपाल मंत्र का जाप करना शुरू कर देते हैं। प्रत्येक पंडित इस मंत्र को आठ से दस घंटे तक प्रतिदिन जपता है ताकि निश्चित समय सीमा में १२५००० बार मंत्रों का जाप पूर्ण हो सके। मंत्रों के जाप के बाद भगवान श्रीकृष्ण जी की विधिवत रूप से पूजा करनी चाहिए। इसके बाद पंडित श्री संतान गोपाल मंत्र के पूर्ण होने का संकल्प करता है। इसके साथ ही इस पूजा का फल जातक को समर्पित करता है।
पूजा के अंत में देशी -घी, तिल, सामग्री और आम की लकड़ी द्वारा हवन कुंड जलाया जाता है तथा श्री संतान गोपाल मंत्र का जाप करते हुए घी, तिल, नारियल और सामग्री अग्नि को समर्पित किया जाता है। इसके बाद हवन कुंड के चारों तरफ जातक ५ या ७ चक्कर लगाता है।
संतान गोपाल मंत्र :-
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ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं ग्लौं देवकीसुत गोविन्द वासुदेव जगत्पते देहि मे तनयं कृष्ण त्वामहं शरणं गतः ।
इस मंत्र का बार रोज यथा सामर्थ्य जाप करे और इश्वर से संतान की कामना करे ..
अपने कमरे में श्री कृष्ण भगवान की बाल रूप की फोटो लगाये या लड्डू गोपाल को रोज माखन मिसरी की भोग अर्पण करे।
ग्रहों के अनुसार ही करें वस्तुओं का दान
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शास्त्रों के अनुसार पुत्र रत्न की प्राप्ति के लिए श्री संतान गोपाल मंत्र के जाप के बाद जातक को नवग्रहों से संबंधित विशेष वस्तुएं दान करनी चाहिए। यह हर जातक से लिए अलग- अलग होती हैं। इनमें सामान्यता जातक को चावल, गुड़, चीनी, नमक, गेहूं, दाल, तेल, तिल, जौ तथा कंबल, धन आदि दान करना चाहिए।
संतान प्राप्ति के अन्य सरल उपाय :-
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ये उपाय प्राचीन ऋषि महर्षियों ने मानव कल्याण के लिए बताये है,जिन्हें मै आप लोंगो के सामने प्रस्तुत कर रहा हूँ,
हमारे ऋषि महर्षियों ने हजारो साल पहले ही संतान प्राप्ति के कुछ नियम और सयम बताये है ,संसार की उत्पत्ति पालन और विनाश का क्रम पृथ्वी पर हमेशा से चलता रहा है,और आगे चलता रहेगा। इस क्रम के अन्दर पहले जड चेतन का जन्म होता है,फ़िर उसका पालन होता है और समयानुसार उसका विनास होता है।
मनुष्य जन्म के बाद उसके लिये चार पुरुषार्थ सामने आते है,पहले धर्म उसके बाद अर्थ फ़िर काम और अन्त में मोक्ष, धर्म का मतलब पूजा पाठ और अन्य धार्मिक क्रियाओं से पूरी तरह से नही पोतना चाहिये,धर्म का मतलब मर्यादा में चलने से होता है,माता को माता समझना पिता को पिता का आदर देना अन्य परिवार और समाज को यथा स्थिति आदर सत्कार और सबके प्रति आस्था रखना ही धर्म कहा गया है,अर्थ से अपने और परिवार के जीवन यापन और समाज में अपनी प्रतिष्ठा को कायम रखने का कारण माना जाता है,काम का मतलब अपने द्वारा आगे की संतति को पैदा करने के लिये स्त्री को पति और पुरुष को पत्नी की कामना करनी पडती है,पत्नी का कार्य धरती की तरह से है और पुरुष का कार्य हवा की तरह या आसमान की तरह से है,गर्भाधान भी स्त्री को ही करना पडता है,वह बात अलग है कि पादपों में अमर बेल या दूसरे हवा में पलने वाले पादपों की तरह से कोई पुरुष भी गर्भाधान करले। धरती पर समय पर बीज का रोपड किया जाता है,तो बीज की उत्पत्ति और उगने वाले पेड का विकास सुचारु रूप से होता रहता है,और समय आने पर उच्चतम फ़लों की प्राप्ति होती है,अगर वर्षा ऋतु वाले बीज को ग्रीष्म ऋतु में रोपड कर दिया जावे तो वह अपनी प्रकृति के अनुसार उसी प्रकार के मौसम और रख रखाव की आवश्यकता को चाहेगा,और नही मिल पाया तो वह सूख कर खत्म हो जायेगा,इसी प्रकार से प्रकृति के अनुसार पुरुष और स्त्री को गर्भाधान का कारण समझ लेना चाहिये। जिनका पालन करने से आप तो संतानवान होंगे ही आप की संतान भी आगे कभी दुखों का सामना नहीं करेगा…
कुछ राते ये भी है जिसमे हमें सम्भोग करने से बचना चाहिए .. जैसे अष्टमी, एकादशी, त्रयोदशी, चतुर्दशी, पूर्णिमा और अमवाश्या .चन्द्रावती ऋषि का कथन है कि लड़का-लड़की का जन्म गर्भाधान के समय स्त्री-पुरुष के दायां-बायां श्वास क्रिया, पिंगला-तूड़ा नाड़ी, सूर्यस्वर तथा चन्द्रस्वर की स्थिति पर निर्भर करता है।गर्भाधान के समय स्त्री का दाहिना श्वास चले तो पुत्री तथा बायां श्वास चले तो पुत्र होगा।
यदि आप पुत्र प्राप्त करना चाहते हैं और वह भी गुणवान, तो हम आपकी सुविधा के लिए हम यहाँ माहवारी के बाद की विभिन्न रात्रियों की महत्वपूर्ण जानकारी दे रहे हैं।
मासिक स्राव के बाद ४’ ६ ,८ १०, १३, १४ एवं १६ वीं रात्रि के गर्भाधान से पुत्र तथा ४, ७, ९, ११, १३ एवं १५ वीं रात्रि के गर्भाधान से कन्या जन्म लेती है।
१- चौथी रात्रि के गर्भ से पैदा पुत्र अल्पायु और दरिद्र होता है।
२- पाँचवीं रात्रि के गर्भ से जन्मी कन्या भविष्य में सिर्फ लड़की पैदा करेगी।
३- छठवीं रात्रि के गर्भ से मध्यम आयु वाला पुत्र जन्म लेगा।
४- सातवीं रात्रि के गर्भ से पैदा होने वाली कन्या बांझ होगी।
५- आठवीं रात्रि के गर्भ से पैदा पुत्र ऐश्वर्यशाली होता है।
६- नौवीं रात्रि के गर्भ से ऐश्वर्यशालिनी पुत्री पैदा होती है।
७- दसवीं रात्रि के गर्भ से चतुर पुत्र का जन्म होता है।
८- ग्यारहवीं रात्रि के गर्भ से चरित्रहीन पुत्री पैदा होती है।
९- बारहवीं रात्रि के गर्भ से पुरुषोत्तम पुत्र जन्म लेता है।
१०- तेरहवीं रात्रि के गर्म से वर्णसंकर पुत्री जन्म लेती है।
११- चौदहवीं रात्रि के गर्भ से उत्तम पुत्र का जन्म होता है।
१२- पंद्रहवीं रात्रि के गर्भ से सौभाग्यवती पुत्री पैदा होती है।
१३- सोलहवीं रात्रि के गर्भ से सर्वगुण संपन्न, पुत्र पैदा होता है।
सहवास से निवृत्त होते ही पत्नी को दाहिनी करवट से १० से १५ मिनट लेटे रहना चाहिए, तुरंत नहीं उठना चाहिए।
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