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व्यक्ति को केवल रोटी कपड़ा मकान और वाहनादि मिल जाए , तो इतने से उसका जीवन पूरा सुखमय नहीं हो जाता। क्योंकि व्यक्ति केवल शरीर का नाम नहीं है । उसमें एक चेतन आत्मा भी है । चेतन आत्मा के सिद्धांत को संसार के लोग मोटे तौर पर तो स्वीकार करते हैं , क्योंकि इसके बिना जीने मरने की परिभाषा नहीं बन पाती ।
परंतु फिर भी वे गहराई से आत्मा को स्वीकार नहीं कर पाते , कि आत्मा एक नित्य पदार्थ है । जो कर्म करता है । वह इस जन्म तथा अगले जन्मों में अपने कर्मों का फल भोगता है। इस प्रकार से आत्मा के विषय में कुछ अधिक गहराई से लोग नहीं सोचते ।
इस विषय में भी अवश्य सोचना चाहिए। क्योंकि व्यक्ति वास्तव में , स्वयं तो आत्मा ही है. शरीर तो उसका साधन मात्र है। कर्म करने और फल भोगने का एक माध्यम मात्र है। असली तत्त्व तो आत्मा ही है ।
इसलिए अपनी अर्थात आत्मा की उन्नति के लिए हमें आपको प्रतिदिन कम से कम एक घंटा स्वाध्याय के लिए समय अवश्य ही निकालना चाहिए। तभी जीवन समझ में आएगा।
वेद और ऋषियों के शास्त्रों को पढ़ें । वहां से आपको आत्मा के विषय में सही जानकारी मिलेगी। क्योंकि इन शास्त्रों में ही पूर्ण सत्य है। तो एक घंटा प्रतिदिन स्वाध्याय के लिए निकालें। अपने परिवार की समस्याएं सुलझाने के लिए भी एक घंटा , परिवार के सदस्यों के साथ बैठें। उनके सुख दुख को बाँटें। उनकी समस्याएं सुलझाएं ।
तथा एक घंटा अपने मित्रों के लिए भी समय निकालें । उनके साथ भी कुछ बातचीत करने से आपका आनंद बढ़ेगा –
[: वृक्षादि में जीवात्मा ??

  • डा मुमुक्षु आर्य

जीवात्मा इतना सूक्ष्म है कि उसे गर्भ में प्रवेश करने के लिये अन्न जल औषधि आदि माध्यम की आवश्यकता नहीं वह तो कहीं से भी गर्भ में प्रवेश कर सकता है। आत्मा के गर्भ में प्रवेश करने से पूर्व रज वीर्य में गति कहाँ से आती है ? रज वीर्य के संयोग के बाद शरीर निर्माण में गति कैसे आती है ? जैसे रज वीर्य में बिन आत्मा के जीवन होता है गति होती है वैसे ही पेड पौधों में बिन आत्मा के जीवन होता है । वह जीवन विश्वगत चेतन सत्ता परमात्मा के कारण होता है । यदि रज वीर्य में भी आत्मा मानोगे तो क्या वे करोड़ों अरबों आत्मायें वीर्य स्खलन के बाद झट से आ कर शुक्राणुओं में प्रवेश कर जाती हैं या पहले से ही अण्डकोषों में पडी होती हैं ? शुक्राणुओं में रह कर ये करोड़ों आत्मायें किन कर्मों का फल भुगत रही हैं ? सन्तान उत्पत्ति में तो एक ही शुक्राणु काम आता है शेष करोड़ों मर जाते हैं उनकी आत्माओं का क्या होता है कैसे वह शरीर से बाहर आती हैं ? वास्तव में ये सब बेहूदा काल्पनिक बातें हैं । सच्चाई यह है कि बिन आत्मा के ही इनमें जीवन होता है और बिन आत्मा के ही पेड पौधों में जीवन होता है । यह आवश्यक नहीं कि जहाँ जीवन हो गति हो वहां आत्मा भी हो । मृत्यु पश्चात शरीर के कई अंगों में महीनों तक जीवन बना रह सकता है , अमीबा के हजार टुकड़े कर दो सभी टुकड़े तुरंत एक पूर्ण अमीबा की तरह गति करने लगते हैं , अब कोई कहे कि उन सबमें तुरंत आत्मायें प्रवेश कर जाती हैं तो यह हास्यास्पद है, हठ दुराग्रह व पूर्वाग्रह के अतिरिक्त कुछ नहीं । कोई वेद मंत्र वा श्लोक यह सिद्ध नहीं करता कि पेड पौधों औषधियों व शुक्राणुओं में आत्मा होती है । उसका मात्र इतना ही अभिप्राय है कि वे जीवन्त हैं, जीवन देने वाली हैं। आचार्य विश्वबन्धु शास्त्री अपनी पुस्तक ‘वृक्षों में जीव नहीं’ में लिखते हैं — जीवलां नघारिषां जीवन्तीमोषधीमहम् ( अथर्ववेद 8.7.6) मंत्र में जीवन्ती औषधि का नाम है । वह लिखते हैं -“जीवलां” शब्द का अर्थ जीवन प्रदान करने वाली है , और यह शब्द जीवन्तीम् का विशेषण है । जीवन्ती नाम की औषधि है जो कि वैद्यों में प्रसिद्ध है । आगे भावप्रकाश का श्लोक प्रस्तुत करके उसका अर्थ लिखते हैं कि जीवन्ती औषधि जीवन प्रदान करती है इसलिए उसका नाम जीवन्ती है । वह जीव वाली है , यह काल्पनिक अर्थ है क्योंकि प्रसिद्ध अर्थ को छोड़कर काल्पनिक अर्थ को ग्रहण करना प्रमाण के अभाव में स्वीकार नहीं किया जा सकता , क्योंकि – योगाद् रुढ़ि वलीयसि । दूसरी बात यह भी है कि यौगिक अर्थ से जीव प्राणने धातु से निष्पन्न जीवन्ती शब्द प्राणप्रद इस अर्थ से ही जाना जाता है , भिन्न अर्थ में नहीं । दोनों प्रकार से जीवन्ती शब्द औषधि विशेष में पाया जाने से योग रुढ़ि हो गया ।औषधि जीवनदात्री , जीवनदायी , जीवनप्रद होती है यह तो निर्विवाद है परन्तु जीव वाली या जीव रखती है यह अर्थ करना गलत है । वेदमंत्रों के अर्थ यदि तर्क की कसौटी पर खरे नहीं उतरते तो उन पर पुनः विचार करने की आवश्यकता है । हो सकता है भाष्यकार पूर्वाग्रह से ग्रस्त व जीव विज्ञान से अनभिज्ञ हों । वृक्षों में जीवात्मा नहीं इसको केवल वैदिक विद्वान डा सत्यव्रत सिद्धांतालकार जी ने ही नहीं नकारा अपितु आर्यसमाज के अन्य ऋषिभक्त तर्क शिरोमणी स्वामी दर्शनानंद, डा गंगाप्रसाद उपाध्याय, रामदयालु शास्त्री,आचार्य विष्वबन्धु आदि ने भी नकारा है । इन विद्वानों को ऋषि विरोधी व वेदविरोधी कहना उचित नहीं होगा । विरोधी मत वाले विद्वानों के प्रति हमारा पूरा सम्मान है परन्तु उनसे हम सहमत हों यह आवश्यक नहीं । मनन चिन्तन के पश्चात् जो अन्तरात्मा कहे उसे स्वीकार करना हमें अभिष्ट है ।

  • संक्षेप मेें वृक्षादि में जीवात्मा सिद्ध नहीं होती क्योंकि -*

१. उनमें जीवात्मा के छ: लक्षण सुख दुख ईच्छा द्वेष प्रयत्न ज्ञान सिद्ध नहीं होते । 

२. इसमें किसी वेदमंत्र का स्पष्ट प्रमाण नहीं । कोई भी मंत्र वा श्लोक तभी मान्य हो सकता है यदि वह तर्क की कसौटी पर खरा उतरता हो ।

३. वृक्ष कोई योनि नहीं अपितु अन्य जातियों की तरह मात्र एक जाति है ।

४. मनु का यह कहना सत्य नहीं कि वृक्षादि अत्यंत तामसिक लोगों को दण्ड देने के लिये वर्षों तक गहन निद्रा में पडे रहने की योनियां हैं । मनुष्यों को तो चौबीस घंटों में दो घंटे की सुषुप्ति नसीब नहीं और इन वृक्षों को सैंकड़ों सालों की सुषुप्ति का आनन्द !! पालक के पौधों को दो दो माह की सुषुप्ति का आनन्द !! यह कैसा दण्ड ?

५.. मनुस्मृति में बहुत क्षेपक हैं, इसके पहले अध्याय में स्त्री के पेट से वृक्ष आदि का उत्पन्न होना लिखा है , १२.४८ में नक्षत्र को योनि कहा है, ऐसे ही गुणों के आधार पर योनियों का विभाजन कल्पना मात्र है । सम्भव है महर्षि दयानंद जी ने मात्र पुनर्जन्म को सिद्ध करने के लिये इन श्लोकों का उल्लेख किया हो ।

६.स्थावर योनि नहीं वह तो सृष्टि के दो भेद हैं – चर और अचर अथवा स्थावर और जंगम ।

७. वृक्षादि में जीव मानोगे तो उनके काटने खाने से पाप लगेगा, मांसाहारियों को अपने तर्क वितर्क से संतुष्ट न कर पाओगे । यह दलील देना कि गाढ़ा निद्रा में होने से उनको कोई कष्ट नहीं होता सरासर गलत है। ऐसे लोगों से हमारा प्रश्न है कि यदि हम क्लोरोफॉर्म से बेहोश कर अथवा गहन निद्रा में सो रहे किसी आदमी या जानवर को मार दें तो पाप लगेगा या नहीं ?

८.अनेक ऋषिभक्त तर्क शिरोमणि वैदिक विद्वानों विशेषकर डा सत्यव्रत सिद्धातालंकार, पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय, रामदयालु शास्त्री, स्वामी दर्शनानंद, आचार्य विश्वबन्धु शास्त्री आदि ने वृक्षादि में जीव की सत्ता को नकारा है ।

९. वृक्षादि में जीवात्मा मानोगे तो घास के एक एक तिनके व हर पशु पक्षी व मनुष्य के वीर्य में मौजूद अरबों खरबों शुक्राणुओं में भी जीवात्मा को मानना होगा जो तर्क संगत नहीं है । One milliliter of seminal fluid contains 40 – 300 millions of sperms each having head, body and tail move fast towards the  ovum/egg. Only one succeed in fertilizing it rest dies. All these 40-300 million sperms with such unique shape and movement are with soul or without soul ? The average volume of semen produced during one ejaculation is 2-5 milliliters, accordingly the no of sperms will be 2-5 times ie up-to 1500 millions. If they are without souls then why can’t plants and tree ? If they are with souls then all these millions of souls enter the sperms after ejaculation or they were already stored in the seminal fluid ?

१०.वृक्षादि में जीव मानोगे तो उनके काटने खाने से पाप लगेगा । यह दलील देना कि बेहोशी व गाढ़ निद्रा में होने से उनको कोई कष्ट नहीं होता सरासर गलत है। ऐसे लोगों से हमारा प्रश्न है कि यदि हम क्लोरोफॉर्म से बेहोश कर अथवा गहन निद्रा में सो रहे किसी आदमी या जानवर को मार दें तो पाप लगेगा या नहीं ? पेड पौधे सुषुप्ति में होते तो छुई मुई का पौधा छूने से मुरझाता नहीं , म्यूज़िक का उन पर कोई प्रभाव न होता,  अपनी विशेष गन्ध व रचना विशेष के कारण क्रिया की बडी अजीब अजीब प्रतिक्रिया न करते । जीवात्मा के छ: लक्षण भी पेड पौधों पर घटित नहीं होते । पशु पक्षी व मनुष्य आदि प्राणियों की तुलना इनसे नहीं की जा सकती क्योंकि इनमें जीवात्मा के सभी लक्षण दृष्टिगोचर होते हैं । 

११. ज्ञान के तीन लक्षण अर्थात कृतु, अकृतु व अन्यथा कृतु पेड पौधों वनस्पतियों आदि में नहीं पाये जाते ।
[संसार – बंधन — भाग 9 — सन् 2002
कल्याण पत्रिका ( चिदानंद सरस्वती जी )

भाव यह है कि विषय पदार्थ चाहे जितनी लंबी अवधि तक हमारे पास रहे , तथापि एक दिन तो वे जाएंगे ही , फिर या तो हमें उनको छोड़ कर चला जाना पड़ेगा अथवा अपनी अवधि आने पर वे ही हमें छोड़कर चले जाएंगे,,,, इस प्रकार विषय पदार्थों का वियोग निश्चित है ही, तथापि ममता के कारण मनुष्य उनको स्वेच्छा से नहीं छोड़ सकता । जब विषय पदार्थों का नाश होने से उनका वियोग होता है, तब मन को अत्यंत क्लेश भोगना पड़ता है । परंतु मनुष्य यदि अपनी इच्छा से ही उनको छोड़ सके इनके प्रति ममता को निर्मूल कर सके तो इससे उसको अनंत सुख की प्राप्ति होती है।
एक वीतराग पुरुष जीवन में ही सारे प्राणी पदार्थों से तथा अपने शरीर से आसक्ति हटा लेता है। और इस प्रकार वह अपने शरीर से तथा उसे प्राप्त होने वाले भोग पदार्थों से अलग हो जाता है ।एक संसारी पुरुष भोग पदार्थों में भी आ सकती नहीं छोड़ सकता तो फिर शरीर से उसकी आ सकती कैसे छूट सकती है । ,,,,परंतु उस आदमी को मरने के समय तो शरीर को छोड़ना ही पड़ता है। और शरीर के छूटते ही सारे विषय प्राणी पदार्थ जबरदस्ती छूट ही जाते हैं , परंतु उनमें आसक्ति रह जाने के कारण उनको फिर शरीर धारण करना पड़ता है । अब देखो शरीर और विषय प्राणी पदार्थों के साथ का जो संबंध तो दोनों के ही छूट जाते हैं परंतु छोड़ने के भाव में अंतर होने के कारण उसके फल में बहुत बड़ा अंतर पड़ जाता है।
✍✍
संसार – बंधन –भाग 10 — सन् 2002
कल्याण पत्रिका ( चिदानंद सरस्वती जी )

ज्ञानी पुरुष जीते जी शरीर तथा उसके भोगों को समझ बूझकर स्वेच्छा से छोड़ देता है । और इसमें अनंत सुख मुक्ति या मोक्ष सुख को प्राप्त करता है,,,, और संसारी मनुष्य को विवश होकर जबरदस्ती सब कुछ छोड़ना पड़ता है ,,, इससे उसको त्याग का कुछ भी फल नहीं मिलता,,,, यही क्यों ?,,, विषयों में आसक्ति रह जाने के कारण उसका जन्म मरण का बंधन भी चालू रहता है,,,,*
यहां तक यह देखा गया कि जीव की कल्पना के सिवा संसार का दूसरा कोई स्वरूप नहीं और हमने यह भी निश्चय कर लिया कि जीव यदि ईश्वर की सृष्टि में ईश्वर की आज्ञा के अनुसार जीना सीख जाए और ईश्वर के प्राणी पदार्थों में ममता का संबंध ना बांधे तो उसके संबंध का बंधन का दूसरा कोई कारण नहीं है,,,,
अर्थात ईश्वर निर्मित यानी ईश्वर ने जिसकी रचना की है ऐसी सृष्टि कभी जीव के बंधन का कारण नहीं होती इतना ही नहीं बल्कि वह तो ज्ञान के साधन में बहुत ही उपयोगी है केवल विवेक दृष्टि खुलनी चाहिए ,,,,
बंधन यदि कराता है तो वह ईश्वर के प्राणी पदार्थों में ममत्व बांधकर कर उनको अपना मान कर खड़ा किया हुआ संसार है,,,, ” विश्राम”
✍✍ Saakhi

एक राजा का फलों का बगीचा था जिसकी देख रेख एक किसान करता था, एक दिन किसान बगीचेे से अमरुद की एक टोकरी और बेर की एक टोकरी लेकर राजमहल गया। राजा किसी ख्याल में खोया हुआ था, किसान ने बेर की टोकरी सामने रख दी और बैठ गया, राजा खयालों खयालों में टोकरी में से बेर उठाता और किसान के माथे पे निशाना साधकर फेंक रहा था, बेर जब किसान के माथे पर लगता तो किसान कहता, ईश्वर तू बड़ा दयालु है। राजा ने किसान से कहा, मै बेर मार रहा हूँ फिर भी तुम कह रहे हो की ईश्वर बड़ा दयालु है, किसान बोला, मैं आपके लिए अमरुद की टोकरी ला रहा था लेकिन अचानक विचार बदल गया और आपके सामने बेर की टोकरी रख दी, यदि बेर की जगह अमरुद रखे होते तो आज मेरा हाल क्या होता इसीलिए मैं कह रहा हूं की ईश्वर बड़ा दयालु है, संगत जी, हमें भी हर हाल में सतगुरु और ईश्वर पर भरोसा रखना चाहिए क्योंकि वो जो भी करता है हमारे भले के लिए करता ह. 🌀जैसा सोच वैसा कर्म वैसा ही परिणाम 🌀

♻ जब हम सोचते हैं कि कोई काम हमसे नहीं होगा तो वह कभी भी नहीं होगा क्योंकि हर काम को करने के लिए Energy चाहिए और आप Energy स्वय Create करते हो, अपने Thoughts के द्वारा, किसी काम के प्रति आप Negative हैं,तो आपकी Energy Low है इसलिए वह कार्य आप कभी नहीं कर पाएंगे, सदा याद रखें जीवन Energy का खेल है स्थूल में दिखने वाली चीजें तो illusion हैं।“`

♻ परमात्मा कभी हमारा भाग्य नहीं लिखता वह केवल भाग्य लिखने का तरीका सिखाता है,भाग्य लिखने की कलम उसने हम सबको दी है, वह कलम है मन,मन में उठने वाले संकल्प ही सब कुछ हैं,या यूं कहें कि हमारा जीवन मन में उठने वाले संकल्पों का ही प्रतिबिंब है आप जैसा सोचते हैं,वैसा ही बोलते व करते हैं इसलिए इस मन रूपी कलम पर विशेष ध्यान रखें, किसी ने क्या खूब कहा है , मन को चलाओ तो आप राजा और यदि मन आपको चलाये तो आप रंक, सदा ध्यान रखें मन के जीते ही जगत जीत बना जा सकता है, दूसरों की जय से पहले खुद को जय करें,यह सब स्लोगन ऐसे ही नहीं बनाए गए इनमें सत्य छुपा है,उसे पहचाने और मन का मालिक बने न कि गुलाम

♻ सच्च के सामने सदा झूको और झूठ के आगे कभी नहीं, यही खुद को खुदा तक ले जाने का तरीका है।

♻ झूठ के आगे न झूकने का मतलब Revolt करना नहीं होता बल्कि उसे सुनते व देखते हुए भी उसे मन बुद्धि से अस्वीकार करना होता है।

♻ क्योंकि Revolt करने से अपनी, शान्ति , समय व शक्तियां नष्ट होती हैं इसलिए यदि आपको लगे कि कोई झूठ में लिप्त है और Dominate करने की कोशिश कर रहा है तो उसे ऐसा करने दें,क्योंकि जो हमारे समझाए नहीं समझता उसे वक्त समझाता है इसलिए ऐसी आत्मा के साथ बुद्धि का प्रयोग करें न कि बल का….✍️🌹🤗

💖 🙏 💖 ओम शांति 💖 🙏 💖

🌿🍂🌿🍂🌿🍂🌿🍂🌿🍂 प्राचीन भारतीय शस्त्रास्त्रविद्या

    प्राचीन काल में कोई भी विषय जब विशिष्ट पद्धति से, विशिष्ट नियमों के आधार पर तार्किक दृष्टि से शुद्ध पद्धति से प्रस्तुत किया जाता था, तब उसे शास्त्र की संज्ञा प्राप्त होती थी । हमारे पूर्वजों ने पाककलाशास्त्र, चिकित्साशास्त्र, नाट्यशास्त्र, संगीतशास्त्र, चित्रशास्त्र, गंधशास्त्र इत्यादि अनेक शास्त्रों का अध्ययन किया दिखाई देता है । इन अनेक शास्त्रों में से शस्त्रास्त्रविद्या, एक शास्त्र है । पूर्वकाल में शल्यचिकित्सा के लिए ऐसे कुछ विशिष्ट शस्त्रों का उपयोग होता था । विजयादशमी के निमित्त से राजा और सामंत, सरदार अपने-अपने शस्त्र एवं उपकरण स्वच्छ कर पंक्ति में रखते हैं और उनकी पूजा करते हैं । इसी प्रकार कृषक और कारीगर अपने-अपने हल और हाथियारों की पूजा करते हैं । प्रस्तुत लेख द्वारा प्राचीन शस्त्रास्त्रों की जानकारी दे रहे हैं ।

१. धनुर्वेद

    शस्त्रास्त्र और युद्ध, रथ, घोडदल, व्यूहरचना आदि से संबंधित एकत्रित ज्ञान जहां मिलता है, उसे धनुर्विद्या कहते है ।

१ अ. धनुर्वेद के आचार्यों में परशुराम का स्थान महत्त्वपूर्ण है ।

१ आ. धनुर्वेद का चतुष्पाद :मुक्त, अमुक्त, मुक्तामुक्त और मंत्रमुक्त

१ इ. धनुर्वेद के उपांग : शब्द, स्पर्श, रूप, गंध, रस, दूर, चल, अदर्शन, पृष्ठ, स्थित, स्थिर, भ्रमण, प्रतिबिंब और लक्ष्यवेध ।

२. युद्ध के प्रकार

    मंत्रास्त्रोंद्वारा किया जानेवाला युद्ध दैविक, तोप अथवा बंदूकद्वारा किया जानेवाला युद्ध मायिक अथवा असुर और हाथ में शस्त्रास्त्र लेकर किया जानेवाला युद्ध मानव समझा जाता है ।

३. अस्त्रों के प्रकार

    दिव्य, नाग, मानुष और राक्षस

४. आयुध

    धर्मपूर्वक प्रजापालन, साधु-संतों की रक्षा और दुष्टों का निर्दालन; धनुर्वेद का प्रयोजन है ।

४ अ. धनुष्य

४ अ १. धनुष्य के प्रकार

अ. शार्ङ्ग : तीन स्थानोंपर मोडा धनुष्य

आ. वैणव : इंद्रधनुष्य जैसा मोडा धनुष्य

इ. शस्त्र : एक वितस्ति (१२ उंगलियों की चौडाई का अंतर, अर्थात १ वीता ।) मात्रा की बाणों को फेंकनेवाला, दो हाथ लंबा धनुष्य

ई. चाप : दो चाप लगाया धनुष्य

उ. दैविक, मानव और निकृष्ट :साडेपांच हाथ लंबा धनुष्य दैविक, चार हाथों का धनुष्य मानव और साडेतीन हाथों का धनुष्य निकृष्ट माना जाता है ।

ऊ. विविध धातुआें से बने धनुष्य : लोह, रजत, तांबा, काष्ठ

ए. धनुष्य की प्रत्यंचा : धनुष्य की प्रत्यंचा रेशम से वलयांकित होती है और वह हिरन, भैंस अथवा गाय के स्नायुआें से अथवा घास से बनायी जाती है । इसप्रत्यंचा में गाठ पडना कभी उचित नहीं होता ।

४ आ. बाण

४ आ १. बाण के प्रकार

अ. स्त्री : अग्रभाग मोटा और फैला होता है । बहुत दूर की लंबाईतक जा सकता है ।

आ. पुरुष : पृष्ठभाग मोटा और फैला होता है । दृढ लक्ष्यभेद करता है ।

इ. नपुंसक : एक जैसा होता है । सादा लक्ष्यभेद किया जाता है ।

ई. मुट्ठियों की संख्या से हुए प्रकार : १२ मुट्ठियों का बाण ज्येष्ठ, ११ मुट्ठियों के बाण को मध्यम, तो १० मुट्ठियों के बाण को निकृष्ट समझते हैं ।

उ. नाराच : जो बाण लोह से बनाए जाते हैं, उन्हें नाराच कहते है ।

ऊ. वैतस्तिक और नालीक :निकट के युद्ध में प्रयुक्त किए जानेवाले बाणों को वैतस्तिक कहते है । बहुत दूर के अथवा उंचाईपर स्थित लक्ष्य साध्य करने के लिए प्रयुक्त किए जानेवाले बाणों को नालीक कहते है ।

ए. खग : इसमें अग्निचूर्ण अथवा बारूद भरा होता है । बहती हवा में विशिष्ट पद्धति से फेंकनेपर लौट आता है ।

४ आ २. लक्ष्य के प्रकार : स्थिर, चल, चलाचल और द्वयचल

४ इ. चक्र

    सुदर्शनचक्र सौरशक्तिपर चलनेवाला चक्र था, जो लक्ष्यभेद कर चलानेवाले के पास लौटता था ।

४ इ १. चक्र के उपयोग : छेदन, भेदन, पतन, भ्रमण, शयन, विकर्तन और कर्तन

४ ई. कुन्त

    कुन्त अर्थात भाला । इसका दंड काष्ठ से, तो अग्रभाग धातु से बना होता है ।

४ उ. खड्ग

    अग्रपृथु, मूलपृथु, संक्षिप्तमध्य और समकाय

४ ऊ. छुरिका

    छुरिका अर्थात छुरी । इसे असिपुत्री भी कहते है ।

४ ए. गदा

    मृद्गर, स्थूण, परिघ इत्यादि प्रकार माने जाते है ।

४ ऐ. अन्य आयुध

    परशु, तोमर, पाश, वज्र

५. नियुद्ध

    युद्ध में जब सर्व शस्त्रास्त्र समाप्त हो जाते हैं, तब योद्धा हाथ-पैरों से युद्ध करते हैं । इसी को नियुद्ध कहते है ।

६. व्यूहरचना

    व्यूहरचनाद्वारा सेना की रक्षा की जाती है ।

७. दिव्यास्त्र

७ अ. दैविक : आकाशस्थ विद्युल्लता का उपयोग कर जो शक्ति बनायी जाती है, उसे दैविक कहते है ।

७ आ. मायायुद्ध : भुशुण्डी, नातीक इत्यादि आग्नेयास्त्रों से किए युद्ध को मायायुद्ध कहते है ।

७ इ. यंत्रमुक्त और मंत्रमुक्त आयुध : चतुर्विध आयुधों में यंत्रमुक्त और मंत्रमुक्त आयुधों की गणना धनुर्वेद के चौथे पाद में की दिखाई देती है ।

७ ई. अनिचूर्ण, अर्थात बारूद का प्रयोग प्राचीन काल से होता आ रहा है ।

७ उ. दिव्य अस्त्र प्राप्त करते समय बरतने की सावधानी : ये अस्त्र मंत्रों का उच्चारण कर सामनेवाले शत्रुपर छोडने होते हैं । इस हेतु मंत्रसिद्धी आवश्यक होती है । अत्यंत ज्ञानी और तपःपूत गुरु से इस मंत्र तथा इस अस्त्र के प्रयोग की यथासांग दीक्षा लेनी पडती है ।

८. तंत्रशास्त्र

    जारण, मारण, वशीकरण इत्यादि के लिए तंत्रशास्त्र विख्यात है । इन सभी को हम काला जादू (black-magic) कहते है ।

चतुर्थेश का अन्य भावों में फल
1 पहला घर -: जातक ग्रहों के प्रभाव में रहता है। ग्रह प्रबल हों तो जातक को समृद्धि मिलती है, वहीं ग्रह की सामान्‍य दशा होने पर जातक को औसत लाभ होता है एवं ग्रहों की कमजोर स्थिति जातक को गरीब बना देती है। जातक को सार्वजनिक रूप से बात करने में झिझक महसूस होती है। वह बुद्धिमान होता है।

2 दूसरा घर -: इन्‍हें अपनी माता के परिजनों से धन लाभ होता है। वह साहसी, सुखी और भाग्‍यशाली होते हैं। यह अत्‍यधिक फिजूलखर्चा करते हैं।

3 तीसरा घर -: यह जातक अपनी सौतेली माता एवं भाई से परेशान रहते हैं। यह दयालु एवं सैद्धांतिक होते हैं। यह अपनी किस्‍मत खुद बनाते हैं एवं इनका स्‍वास्‍थ्‍य ज्‍यादातर खराब ही रहता है।

4 चौथा घर -: इन जातकों को समृद्धि और सम्‍मान मिलता है। यह धार्मिक और परंपरागत होते हैं।

5 पांचवा घर -: यह भगवान विष्‍णु के उपासक होते हैं और सभी को प्रेम करते हैं। इनकी माता सम्‍मानित परिवार से होती हैं।

6 छठा घर -: यह जातक धोखेबाज और कपटी होता है। इनमें कई बुराईयां होती हैं।

7 सातवां घर -: इस घर के चिह्न पर ही जातक का निवास स्‍थान निर्भर करता है। गतिशील चिह्न होने की स्‍थिति में जातक को अपने घर से दूर जाकर काम करना पड़ता है। इनके पास अत्‍यधिक जमीन-जायदाद होती है और यह सुखमय जीवन बिताते हैं।

8 अष्‍टम् घर -: इनमें प्रजनन क्षमता बहुत कम होती है। इनके पिता की अल्‍पायु होती है। ये अत्‍यधिक तनाव में रहते हैं, संपत्ति का नुकसान और कानूनी मामलों में फंसे रहते हैं।

9 नवम् घर -: यह जातक और उनके पिता के पास संपत्ति, सम्‍मान और प्रतिष्‍ठा होती है। इन्‍हें हर तरह से लाभ होता है।

10 दसवां घर -: चौथे घर के स्‍वामी के प्रभावित होने पर जातक की प्रतिष्‍ठा का ह्रास होता है। इन्‍हें राजनीतिक सफलता मिलती है।

11 ग्‍यारहवां घर -: इन जातकों की माता अत्‍यंत सुख देती हैं, सौतेली मां के होने पर भी इन जातकों को समान प्रेम ही मिलता है। यह दयालु होते हैं। इनकी सेहत बिगड़ी रहती है एवं यह केवल अपने लिए कमाते हैं।

12 बारहवां घर -: इनका जीवन गरीबी और दुखों में बीतता है। इनकी माता की अल्‍पायु होती है।
प्रोटीन से भरपूर फ्रेंच बीन्स को करें डाइट में शामिल, होंगे ये अनमोल फायदे

1.फ्रेंच बीन्स में मुख्यत: पानी, प्रोटीन, कुछ मात्रा में वसा तथा कैल्सियम, फास्फोरस, आयरन, कैरोटीन, थायमीन, राइबोफ्लेविन, नियासीन, विटामिन सी आदि तरह के मिनरल और विटामिन मौजूद होते हैं।

  1. इनके अलावा बीन्स विटामिन बी2 का भी प्रमुख स्त्रोत है। प्रति सौ ग्राम फ्रेंच बीन्स से तकरीबन 26 कैलोरी मिलती है। राजमा में यही सब अधि‍क मात्रा में पाया जाता है इसलिए प्रति सौ ग्राम राजमा से 347 कैलोरी मिलती है।
  2. बीन्स, घुलनशील फाईबर का अच्छा स्रोत है, जिसके कारण यह हृदय रोगियों के लिए बहुत फायदेमंद मानी जाती है। ऐसा माना जाता है कि प्रतिदिन एक कप पकी हुई बीन्स का प्रयोग करने से रक्त में कोलेस्ट्रॉल की मात्रा कम होती है और इससे हृदयाघात की संभावना भी 40 प्रतिशत तक कम हो सकती है।
  3. बीन्स में सोडियम की मात्रा कम तथा पोटेशियम, कैल्शि‍यम व मैग्नीशियम की मात्रा अधिक होती है जो रक्तचाप को बढ़ने से रोकता है और हार्ट अटैक के खतरे को कम करता है।

5.बीन्स का ‘ग्लाइसेमिक इन्डेक्स’ कम होता है जिससे अन्य भोज्य पदार्थों की अपेक्षा बीन्स खाने पर रक्त में शर्करा का स्तर अधि‍क नहीं बढ़ता । इसमें मौजूद फाइबर रक्त में शर्करा के स्तर को बनाए रखने में मदद करते हैं। यही कारण है, कि मधुमेह के रोगियों को बीन्स खाने की सलाह देते है।

6.बीन्स का रस शरीर में इन्सुलिन के उत्पादन को बढ़ावा देता है। इस वजह से मधुमेह के मरीजों के लिए बीन्स खाना बहुत लाभदायक माना जाता है।

https://www.youtube.com/channel/UCR4Nct41bN-7EUsZ-B48RiQ


[ खाली पेट पिएं गुड़ और जीरे का पानी, होंगे 5 चमत्कारी फायदे

1 शरीर में खून की कमी को पूरा करने के लिए गुड़ और जीरे का यह पानी काफी लाभप्रद है। अगर आपको खून की कमी या एनिमिया की समस्या हो, तो इसे जरूर पिएं।

2 पेट की समस्याओं जैसे कब्ज, गैस, पेट फूलना और पेट दर्द आदि के लिए गुड़ और जीरे का यह पानी काफी फायदेमंद साबित होगा। धीरे-धीरे आपकी यह समस्याएं खत्म हो जाएंगी।

3 शरीर की अंदरूनी सफाई करने के साथ ही रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने में गुड़ और जीरे का पानी लाभदायक होता है। यह शरीर से अवांछित तत्वों को निकालकर आंतरिक अंगों की सफाई करता है।

4 शरीर के विभिन्न अंगों में दर्द होने पर यह पानी कारगर उपाय है। यह शारीरिक दर्द में राहत दिलाने में मददगार साबित होता है और महिलाओं में मासिक धर्म के दौरान होने वाले दर्द में भी राहत देता है।

5 बुखार, सर्दी व सिरदर्द होने की स्थ‍िति में भी गुड़ और जीरे का यह पानी बेहद फायदेमंद साबित होता है। बुखार आने पर इसका सेवन जल्द राहत दिलाने में सहायक है।

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[ पाचन शक्ति बढ़ाये दही

दही शरीर में खून की कमी तथा कमजोर्री को दूर करता है इसीलिए इसे अमृत समान माना गया है। जब दूध से दही बनती है तो इसमें मौजूद शुगर का रूप बदल जाता है और यह अधिक पाचक हो जाता है। अतः भूख कम लगने के रोग में दही अत्यधिक लाभप्रद है

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: पैरों के दर्द हेतु उपाय

आधा बाल्टी गुनगुना पानी ले, उसमे दो चम्मच सेंधा नमक डाले। बाल्टी में पैरों को 10-15 मिनट डुबोकर रखे, उसके बाद तोलिये से पौंछकर गुनगुने सरसो के तेल से मालिश करे, पैरों का दर्द इससे गायब हो जायेगा

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🌷घुटनो में नयी जान ला देगा ये स्वादिष्ट ड्रिंक – एक हफ्ता पीने पर घुटने बोलने लगेंगे वाह वाह

🍃घुटने हमारे पैर और शरीर के लिए एक बेहद महत्वपूर्ण अंग है, जो हमारी गति और पैरों की क्षमता को निर्धारित करते है। उम्र के साथ-साथ घुटने जवाब देने लगते है जिसका मुख्य कारण है घुटनों मे चिकनाहट का कम होना। अगर आप चाहते हैं लंबे समय तक घुटनों और शरीर को स्वस्थ बनाए रखना तो जाने इस स्वादिष्ट और चमत्कारी ड्रिंक के बारे में।स्नेहा समूह

🌻प्राकृतिक रूप से बनाया जाने वाला यह ड्रिंक आपके घुटनों की मांसपेशियों को मजबूत करने के साथ ही चिकनाहट बनाए रखने में मदद करेगा और उनकी सक्रियता एवं लचीलापन भी बना रहेगा। जानिए कैसे बनाते हैं इसे बनने के लिए आपको आगे बताई गई 7 चीजों की जरूरत पड़ेगी।

🥀आवश्यक सामग्री.
🌻ओट्स(जौ – जई)- एक कप

🍂पानी-लगभग 200 मिली

🥀अनानास- 2 कप क्ट हुआ

🍂शहद- 40 ग्राम

🍃बादाम- 40 ग्राम

🍂दालचीनी- लगभग 7 ग्राम

🍂संतरे का रस- एक कप
– पहले ओट्स को दो चार मिनट तक अच्छे से सेंक लें, इसके बाद अनानास के टुकड़ों को बारीक कर लें और उसका रस निकाल लें। अब दालचीनी, बादाम, शहद संतरे के रस को जूसर में एक साथ पीस लें। इसमें अब अनानास और ओट्स का मिश्रण मिलाकर अच्छी तरह से मिलने तक जूसर चलायें । जब यह गाढ़ा मिश्रण तैयार हो जाए तो इसमें बर्फ के साथ एक बार मिक्सर में चला लें। विटामिन-सी, सिलिकॉन, मैग्नीशियम एवं अन्य पोषक तत्वों से भरपूर यह ड्रिंक आपके घुटनों के लिए तो फायदेमंद है ही, साथ ही आपकी पुरे शरीर के लिए ऊर्जा और पोषण से भरपूर है यह ड्रिंक। इसको सुबह नाश्ते में हर रोज़ पियें. 10 से  15 दिन में इसके  परिणाम मिलेंगे.

🍁विशेष नोट – जब यह ड्रिंक का सेवन करें तो दिन में पानी की मात्रा ज्यादा पियें, हो सके तो दिन में सत्तू ज़रूर पियें.
[🥀स्त्री स्वस्थ्य का सम्पूर्ण विश्लेषण।
स्त्री-स्वास्थ्य और आयुर्वेद का बहुत गहरा सम्बन्ध रहा है । और हो भी सकता है अगर आधुनिक नारियां इसे गंभीरता से लें । आज कल 99% नारियां बीमार नज़र आ रही हैं और इसके कारण भी बहुत रोचक है ।

🌾पुराने वक्त में बुखार, हरारत, सर्दी, खांसी जैसी छोटी-छोटी बीमारियों के लिए अजवाईन का काढा दे दिया जाता था । लोग आराम से पी भी लेते थे नतीजा यह था की लोग लम्बे समय तक शारीरिक क्षमता के अत्यधिक उपयोग के साथ जी भी लेते थे ।

🍂किन्तु आज …… आज किसी महिला को आप अजवाइन फांकने को या काढा पीने को कहिये तो वह मुंह बना लेती हैं। अधिकाँश को तो उलटी होने लगेगी या उबकाई आ जाएगी। वे कहती हैं कि कोई टैबलेट या गोली दे दीजिये खा लेंगे। इन्हीं गोलियों और टैबलेट ने आज की बीमार नारियों को पैदा किया है । जहाँ पहले की महिलायें संयुक्त परिवार में रहकर ढेर सारे काम घर के भी, खेती के भी बिना थके कर लेती थी । वही आज सिर्फ अपने पति और बच्चे के साथ रहने वाली महिला थोड़ा सा काम करके ही थक जाती हैं और आये दिन बीमार रहती है ।

🌺तमाम शोधों से यह बात तो सामने आ ही चुकी है कि दर्द निवारक गोलियां या अंग्रेजी दवाएँ साइड इफ़ेक्ट जरूर पैदा करती है । ये इफ़ेक्ट जहाँ शरीर की प्रतिरोधक क्षमता को कम करते हैं वहीँ पाचन तंत्र पर भी बुरा प्रभाव डालते हैं । फिर अगर पेट ही बीमार हो तो सारे शरीर को बीमार होना ही है । इस बात को स्त्रियों को समझना होगी और उन्हें फिर से अपने घर की रसोई में मौजूद आयुर्वेदिक दवाओं की तरफ लौटना होगा ।

🍃यदि आपको बुखार हो या थकान या हरारत या हल्का सर दर्द महसूस हो तो 5 ग्राम अजवाइन सादे पानी से फांक लीजिये । अजवाइन बुखार को शरीर में रहने नहीं देती और दर्द को जड़ से ख़त्म कर देती है जबकि कोई भी दर्द निवारक गोली सिर्फ दर्द को दबाती है जो शरीर के किसी और भाग में उभर कर सामने आता है ।

💐गर्भवती स्त्रियाँ यदि साढ़े आठ महीने बाद 3 ग्राम हल्दी दिन में एक बार पानी से फांक लें तो 100% सामान्य प्रसव होगा । किसी आपरेशन की जरूरत नहीं पड़ेगी।

🍁बच्चा पैदा होने के 5-6 दिन बाद मंगरैल का काढा जरूर 3-4 दिनों तक पिये । इससे सबसे बड़ा फायदा यह होगा की पेट बाहर नहीं निकलेगा, वरना 90% महिलायें यही बताती है कि बच्चा होने के बाद पेट निकलना शुरू हुआ ।

🌼बच्चा होने के बाद शरीर की मालिश बेहद जरुरी है और हल्दी के लड्डू खाने जरुरी है जो शरीर को नव जीवन तो देते ही हैं ज्वाइंट के रोग नहीं होने देते और ब्रेस्ट कैंसर और स्किन कैंसर से बचाते है ।

🌹सभी महिलाओं को बचपन से ही पानी ज्यादा पीने की आदत डालनी चाहिए। ये पानी आपके शरीर को तमाम बीमारियों से दूर जरूर रखता है । पथरी, बवासीर, कब्ज, गैस, मोटापा, जोड़ो का दर्द, इतनी सारी बीमारियाँ ये अकेला पानी ही नहीं होने देता ।

🌷ल्यूकोरिया या श्वेत-प्रदर की बीमारी शरीर को पूरी तरह खोखला कर देती है । किसी काम में मन नहीं लगता, कमर-दर्द, चेहरा निस्तेज हो जाना, हर वक्त बुखार सा रहना, ये सब ल्यूकोरिया के लगातार रहने की वजह से पैदा हो जाते है । किसी भी उम्र की महिला को सफ़ेद पानी गिरने की शिकायत हो रही है तो 2 केले, दो चम्मच देशी घी और आधा चम्मच शहद में मसल कर चटनी बना ले व एक महीने तक लगातार रोज खाएं ।

🌺चेहरे पर दाग-धब्बे, झाइयां हो जाएँ तो दो चम्मच मंगरैल को सिरके में पीस कर पेस्ट बनाएं और रोज रात में लगाकर सो जाएँ । 20-25दिन में चेहरा साफ़ हो जायेगा । कास्मेटिक्स के ज्यादा प्रयोग से चेहरे पर झुर्रियां जल्दी आ जाती हैं और चेहरे की ताजगी खत्म हो जाती है ।

🌺चेहरे पर कभी खीरे का रस लगाकर सो जाएँ, कभी टमाटर का रस, तो कभी हल्दी और बेसन का पेस्ट तो कभी फिटकरी के पानी से धो कर सोयें। ये ही सबसे अच्छे कास्मेटिक्स है ।बच्चे न होने के लिए खाई जाने वाली कन्ट्रासेप्टिव पिल्स आपको बाँझ भी बना सकती है । सेक्स के प्रति रूचि भी ख़त्म कर सकती है और गर्भाशय से सम्बंधित कुछ और बीमारियाँ भी पैदा कर सकती है । जबकि सबसे अच्छी पिल्स तो आपकी रसोई में ही मौजूद है । जिस दिन पीरियड ख़त्म हो उसी दिन एक अरंडी का बीज पानी से निगल लीजिये। पूरे महीने बच्चा नहीं रुकेगा । या एक लौंग पानी से निगल लीजिये यह भी महीने भर आपको सुरक्षित रखेगी।

🍂कोलेस्ट्राल बढ़ रहा हो तो रोज एक चम्मच मेथी का पाउडर पानी से निगल लीजिये ( सुबह सवेरे खाली पेट )।

🌾खून साफ़ रखने, प्रतिरोधक क्षमता बढाने और स्किन को जवान रखने के लिए आप एक चम्मच हल्दी का पाउडर ( लगभग ३-४ ग्राम) पानी से सुबह सवेरे निगल लीजिये, यह गले की भी सारी बीमारियाँ दूर कर देती है- टांसिल्स, छाले, कफ, आदि ख्त्म । आवाज भी सुरीली हो जायेगी।

🍁खुद को फिट रखने का सही तरीका ये होगा की एक महीना हल्दी का पाउडर निगलिये, एक महीना मेथी का पाउडर, एक महीने तक सवेरे नीम की 10 पत्तियां चबा लीजिये, एक महीना तुलसी की 10 पत्तियाँ 10 दाने काली मिर्च के साथ चबाएं । फिर एक महीना सुबह सवेरे 100 ग्राम गुड का शरबत पीयें। एक महीना कुछ मत लीजिये । फिर अगले महीने से यही रुटीन शुरू कीजिए, आपको आपके बाल सुन्दर, चेहरा सुन्दर, स्किन सुन्दर, शरीर में भी अजीब सी ताजगी और क्या क्या चमत्कार दिखाई देगा, ये खुद ही जान जायेंगी।

🌹खुद को प्रकृति के नजदीक रखिये और स्वस्थ रहिये । कभी आपको डाक्टर के पास जाने की जरुरत नहीं पड़ेगी ।
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आंवला के गुण और उससे होने वाले आयुर्वेदिक लाभ

परिचय (Introduction)

आंवले का पेड़ भारत के प्राय: सभी प्रांतों में पैदा होता है। तुलसी की तरह आंवले का पेड़ भी धार्मिक दृष्टिकोण से पवित्र माना जाता है। स्त्रियां इसकी पूजा भी करती हैं। आंवले के पेड़ की ऊचांई लगभग 6 से 8 तक मीटर तक होती है। आंवले के पत्ते इमली के पत्तों की तरह लगभग आधा इंच लंबे होते हैं। इसके पुष्प हरे-पीले रंग के बहुत छोटे गुच्छों में लगते हैं तथा फल गोलाकार लगभग 2.5 से 5 सेमी व्यास के हरे, पीले रंग के होते हैं। पके फलों का रंग लालिमायुक्त होता है। खरबूजे की भांति फल पर 6 रेखाएं 6 खंडों का प्रतीक होती हैं। फल की गुठली में 6 कोष होते हैं, छोटे आंवलों में गूदा कम, रेशेदार और गुठली बड़ी होती है, औषधीय प्रयोग के लिए छोटे आंवले ही अधिक उपयुक्त होते हैं।

गुण

आंवला युवकों को यौवन और बड़ों को युवा जैसी शक्ति प्रदान करता है। एक टॉनिक के रूप में आंवला शरीर और स्वास्थ्य के लिए अमृत के समान है। दिमागी परिश्रम करने वाले व्यक्तियों को वर्ष भर नियमित रूप से किसी भी विधि से आंवले का सेवन करने से दिमाग में तरावट और शक्ति मिलती है। कसैला आंवला खाने के बाद पानी पीने पर मीठा लगता है।

आंवला हरा, ताजा हो या सुखाया हुआ पुराना हो, इसके गुण नष्ट नहीं होते। इसकी अम्लता इसके गुणों की रक्षा करती है। आयुर्वेद में आंवले को बहुत महत्ता प्रदान की गई है, जिससे इसे रसायन माना जाता है। च्यवनप्राश आयुर्वेद का प्रसिद्ध रसायन है, जो टॉनिक के रूप में आम आदमी भी प्रयोग करता है। इसमें आंवले की अधिकता के कारण ही विटामिन `सी´ भरपूर होता है। यह शरीर में आरोग्य शक्ति बढ़ाता है। त्वचा, नेत्र रोग और केश (बालों) के लिए विटामिन बहुत उपयोगी है। संक्रमण से बचाने, मसूढ़ों को स्वस्थ रखने, घाव भरने और खून बनाने में भी विटामिन सी महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है।al

हानिकारक प्रभाव (Harmful effects)

आंवला प्लीहा (तिल्ली) के लिए हानिकारक होता है लेकिन शहद के साथ सेवन करने से यह दुष्प्रभाव खत्म हो जाता है।

विभिन्न रोगों में उपचार (Treatment of various diseases)

संग्रहणी :

मेथी दाना के साथ इसके पत्तों का काढ़ा बनाकर 10 से 20 मिलीलीटरकी मात्रा में दिन में 2 बार पिलाने से संग्रहणी मिट जाती है।

मूत्रकृच्छ (पेशाब में कष्ट या जलन होने) :

आंवले की ताजी छाल के 10-20 मिलीलीटर रस में दो ग्राम हल्दी और दस ग्राम शहद मिलाकर सुबह-शाम पिलाने से मूत्रकृच्छ मिटता है।
आंवले के 20 मिलीलीटर रस में इलायची का चूर्ण डालकर दिन में 2-3 बार पीने से मूत्रकृच्छ मिटता है।
अर्श (बवासीर) :

आंवलों को अच्छी तरह से पीसकर एक मिट्टी के बरतन में लेप कर देना चाहिए। फिर उस बर्तन में छाछ भरकर उस छाछ को रोगी को पिलाने से बवासीर में लाभ होता है।
बवासीर के मस्सों से अधिक खून के बहने में 3 से 8 ग्राम आंवले के चूर्ण का सेवन दही की मलाई के साथ दिन में 2-3 बार करना चाहिए।
सूखे आंवलों का चूर्ण 20 ग्राम लेकर 250 मिलीलीटर पानी में मिलाकर मिट्टी के बर्तन में रात भर भिगोकर रखें। दूसरे दिन सुबह उसे हाथों से मलकर छान लें तथा छने हुए पानी में 5 ग्राम चिरचिटा की जड़ का चूर्ण और 50 ग्राम मिश्री मिलाकर पीयें। इसको पीने से बवासीर कुछ दिनों में ही ठीक हो जाती है और मस्से सूखकर गिर जाते हैं।
सूखे आंवले को बारीक पीसकर प्रतिदिन सुबह-शाम 1 चम्मच दूध या छाछ में मिलाकर पीने से खूनी बवासीर ठीक होती है।
आंवले का बारीक चूर्ण 1 चम्मच, 1 कप मट्ठे के साथ 3 बार लें। आंवले का चूर्ण एक चम्मच दही या मलाई के साथ दिन में तीन बार खायें।
शुक्रमेह :

धूप में सुखाए हुए गुठली रहित आंवले के 10 ग्राम चूर्ण में दुगनी मात्रा में मिश्री मिला लें। इसे 250 मिलीलीटर तक ताजे जल के साथ 15 दिन तक लगातार सेवन करने से स्वप्नदोष (नाइटफॉल), शुक्रमेह आदि रोगों में निश्चित रूप से लाभ होता है।

खूनी अतिसार (रक्तातिसार) :

यदि दस्त के साथ अधिक खून निकलता हो तो आंवले के 10-20 मिलीलीटर रस में 10 ग्राम शहद और 5 ग्राम घी मिलाकर रोगी को पिलायें और ऊपर से बकरी का दूध 100 मिलीलीटर तक दिन में 3 बार पिलाएं।

रक्तगुल्म (खून की गांठे) :

आंवले के रस में कालीमिर्च डालकर पीने से रक्तगुल्म खत्म हो जाता है।

प्रमेह (वीर्य विकार) :

आंवला, हरड़, बहेड़ा, नागर-मोथा, दारू-हल्दी, देवदारू इन सबको समान मात्रा में लेकर इनका काढ़ा बनाकर 10-20 मिलीलीटर की मात्रा में सुबह-शाम प्रमेह के रोगी को पिला दें।
आंवला, गिलोय, नीम की छाल, परवल की पत्ती को बराबर-बराबर 50 ग्राम की मात्रा में लेकर आधा किलो पानी में रातभर भिगो दें। इसे सुबह उबालें, उबलते-उबलते जब यह चौथाई मात्रा में शेष बचे तो इसमें 2 चम्मच शहद मिलाकर दिन में 3 बार सेवन करने से पित्तज प्रमेह नष्ट होती है।
पित्तदोष :

आंवले का रस, शहद, गाय का घी इन सभी को बराबर मात्रा में लेकर आपस में घोटकर लेने से पित्त दोष तथा रक्त विकार के कारण नेत्र रोग ठीक होते हैं।

मूत्रातिसार (सोमरोग) :

एक पका हुआ केला, आंवले का रस 10 मिलीलीटर, शहद 5 ग्राम, दूध 250 मिलीलीटर, इन्हें एकत्र करके सेवन करने से सोमरोग नष्ट होता है।

श्वेतप्रदर :

आंवले के 20-30 ग्राम बीजों को पानी के साथ पीसकर उस पानी को छानकर, उसमें 2 चम्मच शहद और पिसी हुई मिश्री मिलाकर पिलाने से श्वेत प्रदर में लाभ होता है।
3 ग्राम पिसा हुआ (चूर्ण) आंवला, 6 ग्राम शहद में मिलाकर रोज एक बार 1 महीने तक लेने से श्वेत-प्रदर में लाभ होता है। परहेज खटाई का रखें।
आंवले को सुखाकर अच्छी तरह से पीसकर बारीक चूर्ण बनाकर रख लें, फिर इसी बने चूर्ण की 3 ग्राम मात्रा को लगभग 1 महीने तक प्रतिदिन सुबह और शाम को पीने से स्त्रियों को होने वाला श्वेतप्रदर नष्ट हो जाता है।
पाचन सम्बंधी विकार :

पकाये हुए आंवलों को घियाकस कर लें, उसमें उचित मात्रा में कालीमिर्च, सोंठ, सेंधानमक, भुना जीरा और हींग मिलाकर छाया में सुखाकर सेवन करें। इससे अरुचि (भोजन का अच्छा न लगना), अग्निमान्द्य (अपच) व मलावरोध दूर हो जाता है तथा भूख में वृद्धि होती है।

तेज अतिसार (तेज दस्त) :

5-6 आंवलों को जल में पीसकर रोगी की नाभि के आसपास उनकी थाल बचाकर लेप कर दें और थाल में अदरक का रस भर दें। इस प्रयोग से अत्यंत भयंकर नदी के वेग के समान दुर्जय, अतिसार का भी नाश होता है।

मूत्राघात (पेशाब में धातु का आना) :

5-6 आंवलों को पीसकर वीर्य नलिकाओं पर लेप करने से मूत्राघात की बीमारी समाप्त होती है।

योनि की जलन, सूजन और खुजली :

आंवले का रस 20 मिलीलीटर, 10 ग्राम शहद और 5 ग्राम मिश्री को मिलाकर मिश्रण बना लें, फिर इसी को पीने से योनि की जलन समाप्त हो जाती है।
आंवले के रस में चीनी को डालकर 1 दिन में सुबह और शाम प्रयोग करने से योनि की जलन मिट जाती है।
आंवले को पीसकर उसका चूर्ण 10 ग्राम और 10 ग्राम मिश्री को मिलाकर 1 दिन में सुबह और शाम खुराक के रूप में सेवन करने से योनि में होने वाली जलन मिट जाती है।
जिस स्त्री के गुप्तांग (योनि) में जलन और खुजली हो, उसे आंवले का रस, शहद के साथ सेवन करने से लाभ मिलता है।
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त्वचा पर होने वाले लाल दानो से परेशान है? ये है उपाय

त्वचा पर लाल दाने होने की वजह कही कोई इन्फेक्शन सूजन या एलर्जी तो नहीं है, कई बार त्वचा पर लाल दाने हो जाते है, जिनकी संख्या कई बार तो बढ़ती जाती है, इसके बढ़ने का कारण आपका इन पर ज्यादा खुजली करना भी हो सकते है, कई बार शरीर पर छोटे छोटे तो कई बार बड़े लाल दाने भी निकल जाते है। कभी ये अपने आप ही ख़त्म हो जाते है, तो कभी लंबे समय तक आपको इनसे होने वाली परेशानी का अनुभव उठाना पड़ता है, कई बार ये किसी बीमारी का संकेत भी हो सकते है, चिकनपॉक्स, मिसल्स, और रुबैला में भी शरीर पर लाल दाने हो जाते है। आप चाहे तो ऐसा होने पर एक बार डॉक्टर से परामश लेकर इनका कारण जान सकते है।

त्वचा पर ये लाल दाने कितने समेत तक रहते है ये आपकी बीमारी पर निर्भर करता है, जहा पर ये लाल दाने होते है, कई बार वहां खुजली करने के साथ दर्द का भी अनुभव होने लगता है, और अगर ये दाने सुई की नोक के आकार के होते है तो ये किसी बीमारी का संकेत भी हो सकते है, और यदि आपको इन लाल दानो की समस्या के साथ तेज बुखार, गर्दन में अकडन, सर दर्द आदि भी हो रहा है तो आपको एक बार डॉक्टर से जरूर परामर्श लेना चाहिए, परंतु इन लाल दानो के इलाज़ के लिए आप कुछ नुस्खों का इस्तेमाल कर सकती है, जिससे आपकी इस परेशानी का हल हो जाता है, तो आइये जानते है शरीर पर होने वाले लाल दानो को ख़त्म करने के क्या उपाय है।

स्किन बहुत की कोमल और नाजुक होती है इसीलिए बहुत जल्दी किसी भी संक्रमण की चपेट में भी आ जाती है। जिसके कारण कई त्वचा पर फुंसी होने की समस्या हो जाती है और फुंसी होने के मुख्यतः दो कारण हो सकते है एक तो किसी तरह का इन्फेक्शन होने के कारण यानी की संक्रमण के कारण या बहुत अधिक गर्मी होने के कारण आपको इस समस्या से परेशान होना पड़ जाता है। ऐसे ही जो लोग गर्मी में गर्म तासीर जैसे की आम आदि का अधिक सेवन करते हैं उन्हें भी इस समस्या का सामना करना पड़ सकता है। साथ ही फुंसी होने का एक कारण आपके ब्लड में होने वाली अशुद्धियाँ भी हो सकता है।

आपने देखा होगा की फुंसी होने के कारण कई बार उसमे मवाद भी भर जाता है और कील भी हो जाता है। ऐसे ही स्किन पर कई बार काली फुंसी भी हो जाती है और यह हाथ, पाँव, पेट, पीठ आदि पर हो जाती है। और इस पर खुजली आदि भी होने लगती है साथ ही इसके कारण आपकी स्किन भी भद्दी दिखने लगती है। और इसके होने पर हर कोई इससे जल्दी से जल्दी राहत पाना चाहता है। क्या आप भी काली फुंसी की समस्या से परेशान हैं? यदि हाँ तो आज हम आपको इस समस्या से बचने के कुछ ऐसे आसान उपचार बताने जा रहे हैं तो आइये जानते हैं की वो उपाय कौन से हैं।

काली फुंसी से बचने के उपाय:-
त्वचा पर काली फुंसी होने के कारण न केवल दर्द होता है बल्कि खुजली की समस्या भी हो जाती है। ऐसे में जिसे भी यह समस्या होती है वो जल्द से जल्द इस परेशानी से राहत पाना चाहता है। तो लीजिये कुछ उपाय जानते हैं जिससे आपको इस परेशानी से राहत मिलने में मदद मिलती है।

बेसन का इस्तेमाल करें:-
बेसन में थोड़ा सा कच्चा दूध या मलाई डाल कर एक लेप तैयार करें उसके बाद इस लेप को काली फुंसी पर लगाएं और अच्छे से रगड़कर साफ़ करें। उसके बाद इसे दो से तीन मिनट के लिए वहीँ रहने दें, और उसके बाद साफ़ पानी से इसे धो लें। इस उपाय को करने से आपको काली फुंसी से बचने में मदद मिलती है।

नीम है बहुत फायदेमंद:-
एंटी बैक्टीरियल और एंटी माइक्रोबियल गुण से भरपूर नीम आपकी काली फुंसी की समस्या को खत्म करने में आपकी मदद करता है। इसके लिए आप नीम के पत्तों को पीस कर एक लेप तैयार करें, उसके बाद उस लेप को काली फुंसी पर लगाकर छोड़ दें, ऐसा दिन में दो से तीन बार करें आपको इसका असर खुद ही दिखाई देगा। इसके आलावा नीम के पत्तो को पानी में उबाल कर उस पानी से नहाने पर भी स्किन पर होने वाले किसी भी संक्रमण से बचाव करने में मदद मिलती है। आप चाहे तो नीम के पत्तों को पीस कर उसका रस भी निकाल कर पी सकते हैं। क्योंकि इससे आपके ब्लड को साफ़ होने में मदद मिलती है जिससे आपको काली फुंसी को ठीक करने में मदद मिलती है।

टी ट्री आयल का इस्तेमाल करें:-

रुई की मदद से आप दिन में चार से पांच बार यदि टी ट्री आयल को अपनी काली फुंसी पर लगते हैं तो इसमें मौजूद एंटी बैक्टीरियल और एंटी माइक्रोबियल गुण आपको काली फुंसी की समस्या से बचाने में मदद करता है। और टी ट्री आयल आपको आसानी से बाजार में किसी भी दूकान पर मिल जाता है।

मुल्तानी मिट्टी का इस्तेमाल करें:-
मुल्तानी मिट्टी की ठंडी होती है इसे भी यदि आप काली फुंसी पर लगाते हैं तो इससे आपकी यह परेशानी ठीक हो जाती है। इस उपाय को करने के लिए आप मुल्तानी मिट्टी को पीस कर उसमे पानी मिलाएं, उसके बाद इसे फुंसी पर लगाकर थोड़ी देर के लिए छोड़ दें, फिर पानी का इस्तेमाल करके इसे उतार दें, ऐसा नियमित करने से आपकी काली फुंसी ठीक होने लगती है।

अनानास के रस का प्रयोग करें:-
फुंसी की समस्या से बचने के लिए अनानास का रस भी बहुत ही आसान और असरदार उपाय है। इसके लिए बस आपको अनानास का रस निकालकर उसे रुई की मदद से अपनी काली फुंसी पर दिन में चार से पांच बार लगाना हैं यदि आप ऐसा करते हैं तो आपको इस समस्या से बचने में मदद मिलती है।

तेल और हल्दी का प्रयोग करें:-
थोड़ा सा तेल लेकर गर्म करें और उसके बाद उसमे हल्दी डाल दें, अब इस पेस्ट को अपनी काली फुंसी पर लगाकर कपडा बांध दें। दो घंटे बाद साफ पानी से इसे साफ करें इस उपाय को जब तक करें जब तक की आपकी काली फुंसी ठीक न हो जाएँ। आप चाहे तो इसे रात भर बांधकर भी सो सकते है।

तुलसी का इस्तेमाल करें:-
औषधीय गुणों से भरपूर तुलसी का इस्तेमाल करने से भी आपको काली फुंसी की समस्या से बचने में मदद मिलती है। इसके लिए आप तुलसी के पत्तो को पीस कर एक लेप तैयार करें और उसके बाद उस लेप को अपनी काली फुंसी पर लगाएं। ऐसा करने से भी आपको काली फुंसी की समस्या से बचने में मदद मिलती है।

तो यह हैं कुछ उपाय जिनका इस्तेमाल करके आप काली फुंसी की समस्या से बच सकते है। इसके अलावा काली फुंसी होने के कारण आपके रक्त में होने वाली अशुद्धियाँ भी हो सकती है। तो आप ऐसी चीजों का सेवन करें जिससे आपके ब्लड को साफ़ होने में मदद मिल सकें। इसके आलावा स्किन की साफ़ सफाई का भी ध्यान रखना चाहिए ताकि आपको किसी भी तरह का कोई इन्फेक्शन न हो

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: 🥀शक्तिवर्धक कुछ खास प्रयोग जो दिमाग व शरीर को बनाते है मजबूत
🌸विद्यार्थियों के लिये बुद्धि वर्धक (buddhi vardhak) योग :

★ २५० ग्राम बबूल की गोंद घी में सेंककर बारीक पीस लें |
★ इसमें बराबर मात्रा में पिसी हुई मिश्री मिला लें |
★ १२५ ग्राम बीज निकाले हुए मुनक्के और ५०० ग्राम छिलके उतारे हुए भिगोये बादाम कूट के इसमें मिला लें

🌷सुबह १ चम्मच (१० – १५ ग्राम) मिश्रण खूब चबा – चबाकर खायें | साथ में एक गिलास मिश्री डालकर दूध घूँट – घूँट पियें | इसके बाद २ घंटे तक कुछ नहीं खायें | जब खूब अच्छी भूख लगे, तभी भोजन करें | यह लोग हड्डियों की मजबूती के साथ ही दिमागी ताकत और तरावट के लिए भी बहुत गुणकारी है | बौद्धिक कार्य करनेवालों व विद्यार्थियों के लिए यह योग विशेष लाभकारी है |

🌼शक्तिवर्धक (shakti vardhak)पुष्टिकारक खीर :

★ २ छोटे चम्मच सिंघाड़े का आटा, २ चम्मच घी व स्वादानुसार मिश्री लें |स्नेहा आयुर्वेद ग्रुप
★ सिंघाड़े के आटे को मंद आँच पर लाल होने तक भुनें | जब अच्छी तरह भुन जाय,
★ तब ३०० मि. ली. दूध डालकर पकायें |
★ तैयार होने पर मिश्री, इलायची मिला लें |

🌾यह स्वादिष्ट तथा पौष्टिक खीर है | यह प्रयोग गर्भिणी व प्रसूता माताओं के लिए विशेष लाभदायी है |

🥀बल्य और पुष्टिकारक प्रयोग :

🌻★ पके हुए १ केले का गूदा, १ चम्मच शहद व थोड़ी – सी मिश्री एक साथ घोंट लें
★ और १ चम्मच आँवले का रस मिलाकर खायें |

🌾इससे वीर्यस्त्राव तथा वीर्य-विकार में लाभ होता है | बल बढ़ता(Bal vardhak) है व वीर्य गाढ़ा होता है |

🌻ध्यान दें : प्रयोगों में दिये गये द्रव्यों की मात्रा अपनी पाचनशक्ति के अनुसार लें | इन दिनों भोजन सुपाच्य व खुलकर भूख लगने पर ही करें | दूध के सेवन के बाद २ घंटे तक कुछ न लें
: 🍁शरीर का कंपन या पार्किन्सन रोग क्या है ?

🌷★ हाथ-पैरों के डोलने का रोग वायु के कारण उत्पन्न होने वाला रोग है।
🌷★ इस रोग के होने पर रोगी का पूरा शरीर हिलता रहता है। इस रोग में रोगी का शरीर बाईं से दाईं और दाईं से बाईं ओर लुढ़कता रहता है।
🌷★ रोगी चलने के लिये कदम उठाता है तो अपने पैरों की अंगुलियों को जमीन पर घिसता हुआ चलता है। रोगी को अगर आंख बंद करके चलाया जाता है तो वह 2 कदम भी नहीं चल सकता है।स्नेहा समूह

🌺हाथ पैर का हिलना रोग का आयुर्वेदिक घरेलु उपचार :

🥀1. ज्योतिष्मती- ज्योतिष्मती (मालकांगनी) के बीजों के काढ़े में 2 से 4 लोंग डालकर 40 मिलीलीटर की मात्रा में सुबह-शाम सेवन करने से हाथ-पैरों के डोलने के रोग में लाभ पहुंचता है।

2🥀. सेंधानमक- 10 ग्राम सेंधानमक को 250 मिलीलीटर पानी में मिलाकर घोलकर उस घोल को पैरों के एक स्थान पर डालने से पैरो की मांसपेशियां काफी मजबूत होती है। इससे रोगी को काफी लाभ मिलता है। सेंधानमक रक्तसंचार (बल्डप्रेशर) को बढ़ाकर कोशिकाओं को स्वस्थ रखता है।स्नेहा आयुर्वेद ग्रुप

🍂3. अगर- लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग अगर को रोजाना सुबह-शाम सेवन करने से हाथ-पैरों के डोलने के रोगी को लाभ मिलता है।

4🏵️. कुसुम- कुसुम के पंचाग (तना, फूल, पत्ती, जड़ फल) से प्राप्त तेल को सरसों के तेल में मिलाकर हाथ-पैरों पर मालिश करने से हाथ-पैरों के डोलने के रोग में लाभ होता है।

🌷5. पीपल- पहले दिन पीपल को शहद और शर्करा में अच्छी तरह से मिलाकर रोगी को दें। उसके बाद प्रतिदिन 3 पीपलों की मात्रा बढ़ाते जाएं। इस तरह 10 दिन में 30 पीपलों को फेंट लें। इसके बाद ग्यारहवें दिन से 3 पीपल कम करते जायें। अन्तिम दिन 3 पीपलों को फेंट लें। इससे हाथ पैरों का डोलने का रोग ठीक हो जाता है।

🏵️6. लहसुन- बायविडंग में लहसुन के रस को पकाकर सेवन करने से हाथ-पैरों के डोलने के रोग में हाथ व पैर का हिलना बंद हो जाता है। लहसुन से प्राप्त तेल रोगी के लिये बहुत उपयोगी होता है।

🏵️7. कालीमिर्च- कालीमिर्च से प्राप्त तेल की मालिश रोगी के दोनों पैरों पर दिन में कम से कम 2 बार करने से हाथ-पैरों के डोलने के रोगी को आराम मिलता है।

8🌸. अमलतास- लुढ़ककर चलने वाले रोगी को अमलतास के पत्तों का रस 100 से 200 मिलीलीटर की मात्रा में सुबह-शाम सेवन करने से लाभ होता है। इसके रस से पैरों की अच्छी तरह से मालिश करने से लाभ होता है।स्नेहा सममुह
●■● क्रोध ●■●

लोग आज क्रोध को विकार बोलते है । परंतु क्रोध कोई विकार नही । जिसे क्रोध नही आता वो नपुंसक के समान है । क्रोध आवश्यक है जीवन मे । क्रोध एक प्रबल ऊर्जा है क्रोध में व्यक्ति वो वो कर सकता है जिसकी वो कल्पना भी नही कर सकता । पर क्रोध एक दो धारी तलवार है जिसे नियंत्रित करना और चलाना सिख लिया तो हर जगह विजय प्राप्त करवाएगी अन्यथा खुद चालक को ही क्षति पहुंचा देगी ।

कुआ पूरे गांव को जल देकर उनकी प्यास बुझाता है और जीवन प्रदान करता है पर कोई उस कुए में कूद कर जान देदे तो उससे कुआ बुरा नही बन जाता गलती उस व्यक्ति की होती है जो उसमे कूद कर मर गया ।

अपने अंदर जल रही ये क्रोध की ज्वाला को बुझने मत दो । यह सत्य है आग घर जला देती है पर नियंत्रण में हो तो खाना पकाना , गर्मी देना जैसे अनेक लाभदारी कार्य भी करती है । यह विरोधियों की बातों में आकर अपने क्रोध को शमन मत होने दो । वो यही चाहते है सभी हिन्दू मानसिक रूप से नपुंसक बन जाये । जिसका जीता जागता उदाहरण देख सकते हो वामपंथी सनातनी हिन्दुओ के साथ कितना अत्याचार कर रहा है पर हिन्दू कायरो की तरह सब बातों को नजरअंदाज करके घर मे पड़ा हुआ है । समय है अभी भी अपने पूर्वजो को याद करो , याद करो उनका बलिदान , याद करो उनकी शौर्यता !!!

वो क्रोध ही था जिसने द्रौपदी को न्याय दिलवाया , वो क्रोध था जिसकी वजह से परशुराम का डंका पूरे विश्व मे बजा , वो क्रोध का काली का जिसने चण्ड मुंड का संहार किया वो क्रोध था बजरंग का जिसने लंका को भस्म कर डाला । वो क्रोध था महाँकाल का जिसने दक्ष के अहंकार को नष्ट किया !!
[ आदत बदलने से भी ग्रह अच्छा फल देते है..

1-मंदिर को साफ़ करते है तो बृहस्पति बहुत अच्छे फल देगा।

२-अपनी झूठी थाली या बर्तन उसी जगह पर छोड़ना -सफलता मे कमी..

3-झूठे बर्तन को उठाकर जगह पर रखते है या साफ़ कर लेते है तो चन्द्रमा,शनि ग्रह ठीक होते है।

4-देर रात तक जागने से चन्द्रमा अच्छे फल नहीं देता है।

5-कोई भी बाहर से आये उसे स्वच्छ पानी जरुर पिलाए। राहू ग्रह ठीक होता है,राहू का बुरा प्रभाव नहीं पड़ता।

6-रसोई को गन्दा रखते हैं तो आपको मंगल ग्रह से दिक्क्तें आएँगी। रसोई हमेशा साफ़ सुथरी रखेंगै तो मंगल ग्रह ठीक होता है।

7-घर में सुबह उठकर पौधों को पानी दिया जाता है तो हम बुध,सूर्य,शुक्र और चन्द्रमा मजबूत करते हैं।

8-जो लोग पैर घसीट कर चलते है उन का राहु खराब होता है।

9-बाथरूम में या घर में कपडे उतारकर इधर उधर फेंकते है शनि खराब होता है।

10- बाथरूम में पानी बिखराकर आ जाते है तो चन्द्रमा अच्छे फल नहीं देता है।

11-बाहर से आकर अपने चप्पल, जूते, मोज़े इधर उधर फेंक देते है,उन्हें शत्रु परेशान करते है।

12- राहू और शुक्र ठीक फल नही देते है जब बिस्तर हमेशा फैला हुआ होगा, सलवटे होंगी,चादर कही, तकिया कही होगी।

13-चीख कर बोलेंने से शनि खराब खराब होता है।

14-बुजूर्गों के आशीर्वाद से घर में सुख समृद्धि बढती है तथा गुरू ग्रह अच्छा होता है।

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: लेफ्ट हैंडर्स हैं तो क्या शुभ कार्य नहीं कर सकते? बाएं हाथ से लिखते हैं तो जानिए 15 जरूरी बातें
आज की दुनिया में भी कई लोग ऐसे हैं जो यह मानते हैं कि बाएं हाथ से काम करना या बाएं हाथ का प्रयोग करना गलत है। हिंदू धर्म के रीति-रिवाज जैसे तिलक लगाना, यज्ञ-हवन आदि में आहुति देने के लिए दाएं हाथ के प्रयोग को ही वरीयता दी जाती है। बाएं हाथ को अक्सर अशुद्ध और अशुभ माना जाता है।
आइए जानें 15 खास बातें…

  1. हमारे शरीर के बाएं हिस्से को शक्ति का स्वरूप माना जाता है जो भगवान शिव की अर्धांगिनी हैं और भगवान शिव हमारे शरीर के दाएं भाग के प्रतीक हैं।
  2. मानव की उत्पत्ति ब्रह्मा के कंधे से हुई है, वाम भाग से स्त्री की और दाम भाग से पुरुष की। इसीलिए स्त्री को हर काम में बाएं होने का कहा जाता है।
  3. हस्तरेखा शास्त्र हमें बताता है कि किस हाथ का अध्ययन किया जाना चाहिए। एक सिद्धांत के अनुसार पुरुषों के दाएं और महिलाओं के बाएं हाथ का अध्ययन किया जाना चाहिए।
  4. वहीं एक सिद्धांत यह भी है कि जो हमारा सक्रिय हाथ है यानि जिस हाथ से हम कार्य करते हैं उसे देखकर ही जातक के संबंध में वर्तमान और भविष्य को लेकर गणनाएं करनी चाहिए, जबकि दूसरे हाथ से अतीत में हुई घटनाओं और हमारी पुरानी आदतों के बारे में आंकलन करना चाहिए।

5.वैदिक ज्योतिष के अनुसार महिलाओं के वाम भाग को शुभ और पवित्र माना जाता है और इसीलिए शादी के दौरान वधु को वर के बाईं तरफ बिठाया जाता है।

  1. कुंडली के तीसरे भाव पर यदि बुध और शनि ग्रह का प्रभाव हो तो ऐसा इंसान वाम हस्त होता है।
  2. कुंडली का तृतीय भाव हमारे हाथों के बारे में बताता है। इसके साथ ही बुध का इस पर प्रभाव भी जातक को वाम हस्त बनाता है।
  3. यदि बुध की स्थिति कुंडली में अच्छी है तो बाएं हाथ के ऐसे लोग संचार से जुड़े क्षेत्रों में अच्छा प्रदर्शन करते हैं।
  4. ऐसे जातकों के छोटे भाई-बहन, पड़ोसी और रिश्तेदार इनके बहुत सहायक होते हैं और इनका भाग्य कहीं न कहीं छोटे भाई-बहनों और रिश्तेदारों को भी फायदा पहुंचाता है।

 10. नौवें भाव को भाग्य स्थान कहा जाता है जो कि बुध के स्वाभाविक घर यानि की कुंडली के तीसरे भाव से सातवां है। इन दोनों के बीच का संबंध बाएं हाथ से काम करने वालों के लिए लाभकारी होता है।

 11. हमारा हृदय भी बाईं ओर होता है इसलिए यह स्त्रैण या नरम भाग समझा जाता है इसलिए इसका ध्यान रखा जाना चाहिए। स्त्रैण होने का अर्थ कमजोर होना नहीं है बल्कि यह अधिक संवेदनशील और ग्रहणशीलता को दर्शाता है।

  1. हमारी अनुवांशिकता यह तय करती है कि हम बाएं हाथ का उपयोग ज्यादा करेंगे या दाएं।
  2. हमारे मस्तिष्क का दायां भाग रचनात्मकता से जुड़ा हुआ है, और यह पक्ष बाएं हाथ से काम करने वालों में प्रमुख है, जबकि दाहिने हाथ से काम करने वालों में मस्तिष्क का बायां भाग प्रमुख है।
  3. बाएं हाथ का प्रयोग करने वाले वास्तुकला, कला और रचनात्मक कार्यों में बाकी लोगों से काफी बेहतर होते हैं।
  4. बाएं हाथ का प्रयोग करने वाले लोग कई खेलों में प्रबल होते हैं, जैसे टेनिस, क्रिकेट, वॉलीबॉल आदि ।

🚩🚩 जय श्री राम 🚩🚩
🔱 जय माँ आशापुरा 🔱

वेदवाणी का गूढ़ सन्देश –

           इस शीर्षक में मेरे द्वारा - ज्ञान की दो शाखाओं के बारे में चर्चा की जा रही है | ज्ञान की ये दो शाखाएं अपरा विद्या और परा विद्या कही गयी हैं | परा विद्या गुरु-शिष्य परम्परा की विषय सामग्री है |

वेद ऋचाएँ ‘अपरा विद्या’ और ‘परा विद्या’ दोनों को धारण एवं प्रकट करती है | वेद ऋचाओं का शाब्दिक / प्रकट अर्थ – ‘अपरा विद्या’ को प्रकट करता है | तथा ‘वेद ऋचाओं’ में समाहित ‘परा विद्या’ को प्राप्त करने का आधार – वेद ऋचाओं का छन्द रूप है – जिसके गान संयोजन को जान लेना ही परा विद्या को प्राप्त करने में सहायक होता है |

यही कारण है कि ‘छन्दों के गान रूप’ को ही वेद पुरुष का पैर कहा गया है | जिनके आधार पर यह वेदज्ञान सम्पूर्ण विश्व में अपना प्रसार प्राप्त करता है | चूँकि यह सृष्टिचक्र में दिवस के आगमन का अवसर है जिसे – ‘युग परिवर्तन’ में जाना गया है तथा इस अवसर पर यह कालचक्र के थपेड़ों में लुप्त हुआ ‘वेद -ज्ञान’ जो ऋचा – छन्द रहस्य से जुड़ा है वही अन्तःस्थ प्रभु के प्रशाद स्वरुप पुनः प्रकट हो रहा है |
अतः अब आप वैदिक छन्दों के बारे में ही विस्तार से जानिए –

                     ‘छन्दांसी यस्य पर्णानि’

‘वैदिक छन्द’ ‘अपरा विद्या’ के साथ-साथ ‘परा विद्या’ को भी धारण एवं प्रकट करते हैं, यह अवधारणा श्रीमद्भगवद्गीता में आये इस वर्णन से भी पुष्ट होती है, जिसमें – ‘अज्ञान’ के द्वारा ‘ज्ञान’ का ‘आच्छादित होना’- कथन किया जाकर इस ‘अज्ञान’ को ही ‘मोह’ आधारित ‘जागतिक-कर्म-बन्धन’ का कारण होना वर्णन किया गया है – “अज्ञानेनावृतं ज्ञानं तेन मुह्यन्ति जन्तवः |” (गीता ५.१५) तथा ‘वैदिक छन्दों’ को इस सनातन “आत्मवृक्ष” का बोध प्रदान करनेवाला ‘पर्ण’ कहा जाकर, इस “पर्ण-रहस्य” को जान लेना ही “वेद ज्ञान” को प्राप्त करने का आधार होना कथन किया गया है | (गीता १५.१)

वह प्रकाशरूप ‘अक्षर पुरुष परमात्मा’ जिसे वेदवाणी ‘पुरुषरूप’ होना वर्णन करती है; – ‘पुरुष एवेदं सर्वं |’ (ऋग्वेद १०.९०.२; यजुर्वेद ३१.२; अथर्ववेद १९.६.४ एवं श्वे.उप.३.१५) उसे ही उपनिषदवाणी ‘विश्वरूप’ होना वर्णन करती है – “पुरुष एवेदं विश्वम” (मु.उप. २.१.१०); उसे अपने सर्वरूप में ‘वन नाम’ को धारण करनेवाला वर्णन करती है, और ‘वन रूप’ में उसकी उपासना करने [अर्थात प्राप्त करने का] अनुशासन करती है – “तध्द तद्वनम नाम तद्वनमित्युपासितव्यम |” [ केन.उप. ४.६ ] उस ‘अक्षरपुरुष’ को ही

कठोपनिषद में श्रुति द्वारा ‘आत्मा’ कहा जाकर अवर्णनीय ‘वृक्ष रूप’ होना वर्णन किया गया है | समस्त जगत को उसका ही ‘प्रकटरूप’ कहा जाकर, इसे “ऊर्ध्वमूल” अवस्था को धारण करनेवाला वर्णन किया गया है– “ऊर्ध्वमूलोअवाक्शाख एषो अश्वत्थ सनातन |” [कठ.उप. २.३.१] इस प्रकार ‘वैदिक छन्द’ की ‘शब्द संयोजना’ को जान लेना ही ‘अक्षर पुरुष’ के विश्वरूप’ को जानने में सहायक होता है | अतः यही कारण है कि – “इस ‘अवर्णनीय ऊर्ध्वमूल अश्वत्थ (आत्म) वृक्ष’ का बोध प्राप्त करने हेतु श्रीमद्भगवद्गीता में वर्णन आया है कि – “छन्दांसी यस्य पर्णानि यस्तं वेद स वेदवित |” [गीता १५.१] अर्थात – “वैदिक छन्द ही इस अविनाशी ‘आत्म वृक्ष’ के पर्ण हैं, जो कोई इन ‘छन्दों’ को जानता है, वह ‘वेद ऋचाओं’ का अर्थात उस परमेश्वर की वाणी का ज्ञाता होता है |” वह सर्वरूप ‘अक्षर पुरुष’ को जानता है | अर्थात वह ‘वेद ऋचाओं’ में समाहित ‘परा विद्या’ तथा ‘अपरा विद्या’ इन दोनों को ‘एक साथ’ या ‘साथ-साथ’ जानने वाला होता है |

तात्पर्य यह कि – “जिस प्रकार इस जगत में – कोई वृक्ष, पौधा, लता, आदि – उसके पर्ण द्वारा जाना और पहचाना जाता है तथा ‘जीवन के लाभार्थ’ उसका उपयोग किया जाता है, उसी प्रकार “वैदिक
छन्दों” को जानकर ही कोई व्यक्ति ‘अविनाशी आत्मा’ को प्राप्त करता है; वह ‘वेदवाणी का ज्ञाता’ होता है |” वह विराट पुरुष को जानकर उसका अंग बन जाता है और, वह उस ‘अन्तःस्थ अक्षर पुरुष’ को जानकर अर्थात ‘ज्ञान चक्षु’ द्वारा उसे प्राप्त कर / उसके सर्वरूप को देखकर सुख-भोग प्राप्त करता है – ‘तमात्मस्थं ये अनुपश्यन्ति धीरा स्तेषाम सुखं शाश्वतं नेतरेषाम |’ (श्वे.उप. ६.१२) अर्थात “जो धैर्यवान पुरुष उन परमेश्वर को भलीभांति देखते हैं, उन्हीं को शाश्वत सुख प्राप्त होता है, दूसरों को नहीं |”

इस प्रकार ‘वेद ऋचाओं’ के ‘छन्द रहस्य’ को जान लेना ही ‘परा विद्या’ को प्राप्त करना होता है | यह ‘छन्द रहस्य’ ही ‘चिरनवीन’ वेदवाणी के अतिगूढ़ ‘श्रुति सन्देश’ [‘ऋषि सन्देश’] को जानने का आधार बन जाता है; जिसे स्पष्ट करते हुए वेदवाणी स्वयं कहती है कि – “जो व्यक्ति ‘वेद–ऋचा’ के केवल बाह्य स्वरुप को देखता है, और उसका उच्चारण (श्रवण) करता है; वह उस वाणी (वेद-ऋचा) को देखता हुआ भी नहीं देखता और सुनता हुआ भी नहीं सुनता है | किन्तु जो उस मन्त्र के ऋषि–अभिप्रेत अर्थ को जानता है, उसके सामने वह मन्त्ररूपी वेदवाणी अपने वास्तविक स्वरूप को प्रकट करती है; जिस प्रकार कि एक ऋतुस्नाता पत्नी सुन्दर वस्त्रों से सुसज्जित होकर अपने पति के समक्ष स्वयं को पूर्ण रूप में समर्पित करती है |” (ऋग्वेद १०.७१.४)

अतः वैदिक छन्दों में समाहित ‘गूढ़ सन्देश’ को या उनके ‘कूट अर्थ’ को जान लेना ही ‘परा विद्या’ का प्रकटरूप होता है | और, यह गूढ़ार्थ [ कूट अर्थ ] ‘वैदिक छन्द’ के शाब्दिक अर्थ से सर्वथा भिन्न होना प्रकट होता है | इस प्रकार ‘वेद ऋचाएं’ किसी ‘चुम्बकीय छड़ द्वारा धारण की जाने वाली ‘उत्तरी ध्रुव’ और ‘दक्षिणी ध्रुव’ अवस्था की भांति ज्ञान की दो पृथक अवस्थाओं को धारण करती हैं | इन ‘वेद ऋचाओं’ का शाब्दिक अर्थ जिसे ‘अपरा विद्या’ कहा जाकर ‘अज्ञान के अन्धकार’ का कारण कहा गया है, यह ‘दक्षिणी ध्रुव’ अवस्था को अर्थात ‘जीवन-यात्रा’ के अधोगामी मार्ग को प्रकट करता है | तथा इन ‘वेद ऋचाओं’ का ‘परा विद्या’ को प्रकट करनेवाला जो ‘गूढ़ार्थ’ या ‘कूटअर्थ’ होता है, वह ‘ज्ञान के आलोक’ रूप में ‘उत्तरी ध्रुव’ अवस्था को धारण करता हुआ जीवन-यात्रा के ‘ऊर्ध्वगामी मार्ग’ को प्रकट करता है |

जिसके आधारपर इस जीवात्मा की ‘मनुष्यरूप जीवनयात्रा की गीतोक्त ‘दक्षिणायन पथ’ एवं ‘उत्तरायण पथ’ अवस्था को भलीभांति जाना जा सकता है | ‘परा विद्या’ को प्रकट करनेवाले इन वेदऋचाओं के गूढ़ार्थ को अपनाकर ही इस एक मनुष्य जीवन में ‘जन्म-कर्म-बंधन आधारित अनन्त जीवनयात्रा को विराम प्रदान किया जा सकता है; जिसकी अपेक्षा में कठोपनिषद में श्रुति कथन आया है कि – “इस मनुष्य शरीर में रहते हुए देह का पतन होने से पूर्व ही परमपुरुष को साक्षात् कर सका तो ठीक है, नहीं तो फिर यह जीवात्मा अगले कल्प तक नाना योनि (स्वेदज, उद्भिज, अंडज और जरायुज) एवं नाना जीवरूप में शरीर धारण करने को विवश होता है |” [कठ.उप. २.३.४]

इस प्रकार इन अविनाशी ‘वेद ऋचाओं’ के गूढ़ार्थ का प्रकट होना ही ‘एक कल्प’ की पूर्णता होती है | और, इस गूढ़ार्थ को अपना लेना ही जन्म-चक्र का निरोध करते हुए स्वधाम या परमधाम को लौटने का मार्ग होता है |
🌷🌷जय श्री राम 🌷🌷
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बजरंग बाण के 8 अचूक उपाय

1) बजरंगबाण से विवाह बाधा खत्म – कदली वन, या कदली वृक्ष के नीचे बजरंग बाण का पाठ करने से विवाह की बाधा खत्म हो जाती है। यहां तक कि तलाक जैसे कुयोग भी टलते हैं बजरंग बाण के पाठ से।

2) बजरंग बाण से ग्रहदोष समाप्त- अगर किसी प्रकार के ग्रहदोष से पीड़ित हों, तो प्रात:काल बजरंग बाण का पाठ, आटे के दीप में लाल बत्ती जलाकर करें। ऐसा करने से बड़े से बड़ा ग्रह दोष पल भर में टल जायेगा।

3) साढ़ेसाती- राहु से नुकसान की भरपाई -अगर शनि,राहु,केतु जैसे क्रूर ग्रहों की दशा,महादशा चल रही हो तो उड़द दाल के 21 या 51 बड़े एक धागे में माला बनाकर चढ़ायें। सारे बड़े प्रसाद के रुप में बांट दें। आपको तिल के तेल का दीपक जलाकर सिर्फ 3 बार बजरंगबाण का पाठ करना होगा।

4) बजरंगबाण से कारागार से मुक्ति – अगर किसी कारणवश जेल जाने के योग बन रहे हों, या फिर कोई संबंधी जेल में बंद हो तो उसे मुक्त कराने के लिए हनुमान जी की पूंछ पर सिंदूर से 11 टीका लगाकर 11 बार बजरंग बाण पढ़ने से कारागार योग से मुक्ति मिल जाती है।

5)अगर आप 11 बार बजरंग बाण पढ़कर हनुमान जी को 11 गुलाब चढ़ाते हैं या फिर चमेली के तेल में 11 लाल बत्ती के दीपक जलाते हैं तो बड़े से बड़े कोर्ट केस में भी आपको जीत मिल जायेगी।

6)सर्जरी और गंभीर बीमारी टाले बजरंग बाण- कई बार पेट की गंभीर बीमारी जैसे लीवर में खराबी, पेट में अल्सर या कैंसर जैसे रोग हो जाते हैं, ऐसे रोग अशुभ मंगल की वजह से होते हैं।अगर इस तरह के रोग से मुक्ति पानी हो तो हनुमान जी को 21 पान के पत्ते की माला चढ़ाते हुए 5 बार बजरंग बाण पढ़ना चाहिये। ध्यान रहे कि बजरंगबाण का पाठ राहुकाल में ही करें। पाठ के समय घी का दीप ज़रुर जलायें।

7) छूटी नौकरी दोबारा दिलाए बजरंग बाण- अगर नौकरी छूटने का डर हो या छूटी हुई नौकरी दोबारा पानी हो तो बजरंगबाण का पाठ रात में नक्षत्र दर्शन करने के बाद करें। इसके लिए आपको मंगलवार का व्रत भी रखना होगा।

8 ) बजरंग बाण के पाठ से शत्रु दमन बहुत जल्दी से होता है।
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#जलेबी

जलेबी यह शब्द वैदिक साइंस पेज पर सुनकर थोड़ा सा अचंभित होना स्वभाविक है किन्तु वास्तविकता यह है कि जलेबी हमारी संस्कृति का हिस्सा है जो की औषधि के साथ साथ बहुत ही स्वादिष्ट मिष्ठान भी है जो काफी गुणकारी भी है तो चलिए आज आपको जलेबी के विषय में कुछ रोचक और दुर्लभ जानकारी देते हैं

दुनिया के 90 फीसदी लोग जलेबी का
संस्कृत और अंग्रेजी नाम नहीं जानते?
सुबह जलेबी के नाश्ते में है बहुत गुणकारी, साथ ही जाने…. जलेबी से जुड़े दिलचस्प किस्से…..

क्या है जलेबी? – जाने

उलझनें भी मीठी हो सकती हैं,
जलेबी…… इस बात की मिसाल है।

जलेबी का जलजला….

जलेबी में जल तत्व की अधिकता होने से इसे जलेबी कहा जाता है। मानव शरीर में 70 फीसदी पानी होता है, इसलिए इसे खाने से जलतत्व की पूर्ति होती है।

जलेबी को रोगनाशक ओषधि भी बताया है। गर्म जलेबी चर्म रोग की बेहतरीन चिकित्सा है।

जलेबी तेरे कितने नाम..

© संस्कृत में कुण्डलिनी,

© महाराष्ट्र में जिलबी तथा

© बंगाल में जिलपी कहते है ।

© जलेबी का भारतीय नाम जलवल्लिका है। © अंग्रेजी में जलेबी को स्वीट्मीट (Sweetmeet) और सिरप फील्ड रिंग कहते हैं।

जलेबी के भेद वेद में भी लिखे है।

© महिलाएं अपने केशों से “जलेबी जूड़ा” भी बनाती हैं।

जलेबी का जलवा…
∆ बंगाल में पनीर की,

∆ बिहार में आलू की,

∆ उत्तरप्रदेश में आम की,

∆ म.प्र. के बघेलखण्ड-रीवा, सतना में मावा की जलेबी खाने का भारी प्रचलन है।

∆ कहीं-कहीं चावल के आटे की और उड़द की दाल की जलेबी का भी प्रचलन है।

∆ ग्रामीण क्षेत्रों में दूध-जलेबी का नाश्ता करते हैं।

जलेबी तेरे रूप अनेक….

जलेबी डेढ अण्टे, ढाई अण्टे और साढे तीन अण्टे की होती है। अंगूर दाना जलेबी, कुल्हड़ जलेबी आदि की बनावट वाली गोल-गोल बनती है।

जलेबी से तात्पर्य….

जलेबी दो शब्दों से मिलकर बनता है। जल +एबी अर्थात् यह शरीर में स्थित जल के ऐब (दोष) दूर करती है। शरीर में आध्यात्मिक शक्ति, सिद्धि एवं ऊर्जा में वृद्धि कर स्वाधिष्ठान चक्र जाग्रत करने में सहायक है। जलेबी के खाने से शरीर के सारे ऐब (रोग दोष )जल जाते हैं ।

जलेबी ओषधि भी है….
जलेबी अर्थात जल+एबी। यह शरीर में जल के ऐब, जलोदर की तकलीफ मिटाती है। जलेबी की बनावट शरीर में कुण्डलिनी चक्र की तरह होती है।

अघोरी की तिजोरी…..

अघोरी सन्त आध्यात्मिक सिद्धि तथा कुण्डलिनी जागरण के लिए सुबह नित्य जलेबी खाने की सलाह देते हैं । मैदा, जल, मीठा, तेल और अग्नि इन 5 चीजों से निर्मित जलेबी में पंचतत्व का वास होता है । जलेबी खाने से पंचमुखी महादेव, पंचमुखी हनुमान तथा पाॅंच फनवाले शेषनाग की कृपा प्राप्त होती है!

अपने ऐब (दोष) जलाने, मिटाने हेतु नित्य जलेबी खाना चाहिये । वात-पित्त-कफ यानि त्रिदोष की शांति के लिए सुबह खाली पेट दही के साथ, वात विकार से बचने के लिए-दूध में मिलाकर और कफ से मुक्ति के लिए गर्म-गर्म चाशनी सहित जलेबी खावें ।
रोग निवारक जलेबी….
【】जलेबी ओषधि भी है
जो लोग सिरदर्द, माईग्रेन से पीड़ित हैं वे सूर्योदय से पूर्व प्रातः खाली पेट २से 3 जलेबी चाशनी में डुबोकर खाकर पानी नहीं पीएं सभी तरह मानसिक विकार जलेबी के सेवन सेे नष्ट हो जाते हैं।

【】जलेबी पीलिया से पीड़ित रोगियों के लिए यह चमत्कारी ओषधि है। सुबह खाने से पांडुरोग दूर हो जाता है।

【】जिन लोगों के पैर की बिम्बाई फटने या त्वचा निकलने की परेशानी रहती हो हो वे 21 दिन लगातार जलेबी का सेवन करें।

जलेबी का जलवा….

जलवा दिखाने की इच्छा रखने वालों को हमेशा सुबह नाश्ते में जलेबी जरूर खाना चाहिये, जिन्हे ईश्वर से जुड़ने की कामना हो, तब जलेबी खायें।

आयुर्वेदिक जड़ी बूटी जलेबी…

जंगली जलेबी नामक फल उदर एवं मस्तिष्क रोगों का नाश करता है। भावप्रकाश निघण्टु में उल्लेख है –

जो जंगल जलेबी खावै,

दुःख संताप मिटावै।

जलेबी खाये जगत गति पावै!

जलेबी खाने वालों को ब्रह्मचर्य का विधिवत् पालन करना चाहिये ।

‘‘टपकी जाये जलेबी रस की’’

अतः आयुर्वेद में विवाह होने तक स्वयं पर अंकुश रखने का निर्देश है।
जलेबी केे फायदे…

जलने, कुढन में उलझे लोग यदि जानवरों को जलेबी खिलाये तो मन शांत होता है।

क्योंकि मन में अमन है, तो तन चमन बन जाता है और तन ही हमारा वतन है नहीं तो सबका पतन हो जाता है इसे जतन से संभालो।
जलेबी की कहावतें…..

खाये जलेबी बनो दयालु
तहि चीन्हे नर कोई।
तत्पर हाल-निहाल करत हैं
रीझत है निज सोई।

जलेबी खाने से दया, उदारता उत्पन्न होती है। पहचान बनती है। आत्मविश्वास आता है।

टूटी की नही बनी है बूटी
झूठी की नही बनी है खूॅंटी
फूटी को नही बनी है सूठी
रूठी तो बने काली कलूटी

अर्थात- जिस व्यक्ति का आत्मविश्वास अंदर से टूट जाये उसको ठीक करने की कोई बूटी यानी ओषधि आज तक नहीं बनी है। जो आदमी बार -बार बदलता है इनकी एक खूटी यानि ठिकाना नही होता। जिसकी किस्मत फूटी हो, जो भाग्यहीन हो, उसका भला सूफी-संत भी नही कर सकते और स्त्री रूठ जाये तो काली का भयंकर रूप धारण कर लेती है। अतः इन सबका इलाज जलेबी है।

रोज सुबह जलेबी खाओ।
भव सागर से पार लगाओ ।

खाली पेट करे मुख मीठा
विद्वान वाद-विवाद बसो दे झूठा …..

बाबा कीनाराम सिद्ध अवधूत लिखते हैं –

बिनु देखे बिनु अर्स-पर्स बिनु,
प्रातः जलेबी खाये जोई ।
तन-मन अन्तर्मन शुद्ध होवे
वर्ष में निर्धन रहे न कोई

एक संत ने जलेबी का नाता आदिकाल से वताया है-

पार लगावे चैरासी से, मत ढूके इत और।

जलेबी का नियम से प्रातःकाल सेवन करें, तो बार-बार क जन्म-मरण से मुक्ति मिलती है। जलेबी के अलावा अन्य मिठाई की कभी देखें भी नहीं।

एक बहुत मशहूर कहावत है कि-

तुम तो जलेबी की तरह सीधे हो

एक लोक गीत है –

■ मन करे खाये के जिलेबी
■ जब मोसे बनिया पैसा माॅंगे, वाये दूध-जलेबी खिलादऊॅंगी

जलेबी बनाने हेतु आवश्यक सामग्री:-

मैदा 900 ग्राम, उड़द दाल 50 ग्राम पानी में गला कर पीस कर 500 ग्राम मैदा में 50 ग्राम दही मिलाकर दो दिन पूर्व खमीर हेतु घोल कर रखे शेष मैदा जलेबी बनाते समय खमीर में मिलाये शक्कर करीब 1 किलो 300-400 ML पानी में डालकर चाशनी बनाये। जलेेबी को बहुत स्वादिष्ट बनाने के लिए चाशनी में एक चम्मच नीबू का रस और केशर मिला सकते हैं।

जलेबी के खाने से लाभ….

एषा कुण्डलिनी नाम्ना पुष्टिकान्तिबलप्रदा।

धातुवृद्धिकरीवृष्या रुच्या चेन्द्रीयतर्पणी।।

(आयुर्वेदिक ग्रन्थ भावप्रकाश पृष्ठ ७४०)

अर्थात – जलेबी कुण्डलिनी जागरण करने वाली, पुष्टि, कान्ति तथा बल को देने वाली, धातुवर्धक, वीर्यवर्धक, रुचिकारक एवं इन्द्रिय सुख और रसेन्द्रीय को तृप्त करने वाली होती है।

जलेबी का अविष्कार…

दुनिया में सर्वप्रथम जलेबी का अविष्कार किसने किया यह तो ज्ञात नहीं हो सका। लेकिन उत्तरभारत का यह सबसे लोकप्रिय व्यंजन है। भारत की जलेबी अब अंतरराष्ट्रीय मिठाई है।

प्राचीन समय के सुप्रसिद्ध हलवाई शिवदयाल विश्वनाथ हलवाई के अनुसार जलेेबी मुख्यतः अरबी शब्द है।

तुर्की मोहम्मद बिन हसन “किताब-अल-तबिक़” एक अरबी किताब जलेबी का असली पुराना नाम जलाबिया लिखा है। 300 वर्ष पुरानी पुस्तकें “भोजनकटुहला” एवं संस्कृतमें लिखी “गुण्यगुणबोधिनी” में भी जलेबी बनाने की विधि का वर्णन है।

घुमंतू लेखक श्री शरतचंद पेंढारकर ने जलेबी का आदिकालीन भारतीय नाम कुण्डलिका बताया है। वे बंजारे बहुरूपिये शब्द और रघुनाथकृत “भोज कौतूहल” नामक ग्रन्थ का भी हवाला देते हैं। इन ग्रंथों में जलेबी बनाने की विधि का भी उल्लेख है। मिष्ठान भारत की जान जैसी पुस्तकों में जलेबी रस से परिपूर्ण होने के कारण इसे जल-वल्लिका नाम मिला है।

जैन धर्म का ग्रन्थ “कर्णपकथा” में भगवान महावीर को जलेबी नैवेद्य लगाने वाली मिठाई माना जाता है।
💐 विटामिन डी 💐💐

विटामिन डी की कमी से उत्पन्न होने वाले रोग • मज्जा तंतुओं की कमजोरी • क्षय रोग • सर्दी जुकाम बार – बार होना • शारीरिक कमजोरी • खून की कमी

विटामिन डी खाद्य – पदार्थो में विटामिन ‘ डी ‘ पाया जाता है । जिन रोगियों के शरीर में विटामिन डी की कमी होती है उनको औषधियों से चिकित्सा करने के साथ – साथ इन खाद्यों का प्रयोग भी करना चाहिए । विटामिन ‘ डी ‘ प्राय : उन सभी खाद्यों में होता है जिनमें विटामिन ए पर्याप्त मात्रा में मौजूद रहता है । 1 • ताजी साग – सब्जी • पत्तागोभी • पालक का साग • सरसों का साग • हरा पुदीना • हरा धनिया • गाजर • चुकन्दर • शलजमा • टमाटर • नारंगी • नींबू • मालटा • मूली • मूली के पत्ते • काड लिवर ऑयल • हाली बुटलिवर ऑयल सलाद • सलाद • चोकर सहित गेंहूं की रोटी • सूर्य का प्रकाश • नारियल • मक्खन ।. घी • दूध • केला • पपीता • शाकाहारी भोजन

विटामिन से जुड़ी कुछ महत्वपूर्ण बातें . विटामिन ‘ ए ‘ की भांति विटामिन डी भी तेल और वसा में घुल जाता है पर पानी में नहीं घुलता • जिन पदार्थों में विटामिन ‘ ए ‘ रहता है विशेषकर उन्हीं में विटामिन डी भी विद्यमान रहता है • विटामिन डी की कमी हो जाने पर आंतें कैल्शियम तथा फास्फोरस को चूसकर रक्त में शामिल नहीं कर पाती हैं । • प्रातःकाल से 2 3 घण्टे तक के सूर्य के प्रकाश में सर्वोत्तम व सर्वाधिक विटामिन डी रहता है इसलिए हमारी परम्परा में सूर्य जल अर्पण का विधान है व योगासन विद्या में सूर्यनमस्कार कुछ चिकित्सक घावों , फोड़ों तथा रसौलियों की चिकित्सा सूर्य के प्रकाश से करते हैं । • प्रातःकाल सूर्य के प्रकाश में लेटकर सरसों के तेल की मालिश पूरे शरीर पर की जाए तो शरीर को विटामिन ' डी ' पर्याप्त मात्रा में मिल जाता है ।• सौर ऊर्जा से बने भोजन में पर्याप्त मात्रा में विटामिन ' डी ' उपलब्ध होता है । • भोजन को थोड़ी देर तक सूर्य के प्रकाश में रख दिया जाये तो उसमें विटामिन ' डी ' पर्याप्त मात्रा में आ जाता है । इस लिए हमारी परम्परा में खुले आँगन या बरामदा में ही चूल्हे हुया करते थे जो आज आधुनिकता के युग मे किचेन बन कर रह गया है व रोग का शिकार हो रहे हैं आयुर्वेद ,वाग्भट्ट ऋषि व भाई राजीव दीक्षित जी लिख गए व कह गए भोजन पकाते समय जिस भोजन में सूर्य प्रकाश न मिले वो भोजन नहीं विषतुल्य है इस लिए कुकर, फ्रीज़ ,माइक्रोवेव में बने भोजन नहीं ही करना चाहिए। चर्म रोगों की चिकित्सा के लिए विटामिन डी ' अति उपयोगी है । इसलिए कई चर्म रोग सूर्य का प्रकाश दिखाने से ठीक हो जाते हैं । विटामिन डी का सूर्य से उतना ही सम्बंध है जितना शरीर का आत्मा से । • विटामिन डी मजबूत चमकीले दांतों के लिए अति आवश्यक • विटामिन ' डी हड्डियों को मजबूत बनाता है । • विटामिन डी की कमी से हड्डियां मुलायम हो जाती हैं । • विटामिन डी कमी से त्वचा खुश्क हो जाती है । . जो लोग अंधेरे स्थानों में निवास करते हैं वे विटामिन डी कमी के शिकार हो जाते हैं । . विटामिन डी की कमी से कूबड़ निकल आता है । • विटामिन डी की कमी से पेडू और पीठ की हड्डियां मुड़ जाती हैं या मुलायम हो जाती है । • ठण्डे मुल्कों के लोग विटामिन डी की कमी के शिकार रहते • प्राचीनकाल में लोग खुले वातावरण में रहते थे इसलिए वे बहुत कम रोगों के शिकार होते थे । • श्वास रोगों को दूर करने के लिए विटामिन ‘ डी ‘ बहुत असरकारक साबित होता है । • गर्भावस्था में विटामिन डी की अत्यधिक आवश्यकता पड़ती है । यदि गर्भवती स्त्री को विटामिन डी की कमी हो जाये तो पैदा होने वाले बच्चे के दांत कमजोर निकलते हैं और जल्दी ही उनमें कीड़ा लग जाता है । • विटामिन डी पर्याप्त मात्रा में होने पर दांतों में कीड़ा नहीं लगता । • शरीर में विटामिन डी की कमी से हड्डियों में सूजन आ जाती है • गर्म देश होने के बाद भी भारत के लोगों में सामान्यत : कमजोर अस्थियों का रोग पाया जाता है । • केवल अनाज पर निर्भर रहने वाले लोग अक्सर अस्थिमृदुलता ( हड्डियों का कमजोर होना ) के शिकार हो जाते हैं । • बच्चे की खोपड़ी की हड्डियां तीन मास के बाद भी नर्म रहे तो समझना चाहिए कि विटामिन डी की अत्यधिक कमी हो रही • विटामिन ‘ डी ‘ की प्रचुर मात्रा शरीर में रहने से चेहरा भरा – भरा , चमक लिए रहता है । • पर्दे में रहने वाली अधिकांश स्त्रियां विटामिन डी की कमी की शिकार रहती हैं । • जिन रोगियों को विटामिन डी की कमी से अस्थिमृदुलता तथा अस्थि शोथ रहता है वे अक्सर धनुवार्त के शिकार भी हो जाते हैं । • भारत में विटामिन डी की कमी को दूर करने के लिए बच्चे को बचपन में ही भरपूर नियमित तेल की मालिस सूर्य प्रकाश में करनी ही चाहिए • बच्चों , गर्भावस्था और दूध पिलाने की अवस्था में विटामिन डी ‘ का सेवन बहुत जरूरी होता है । • व्यक्ति को बचपन के बाद जवानी और बुढ़ापे में भी नियमित रूप से तेल मालिस करते रहना चाहिए । इससे शरीर में विटामिन डी की पर्याप्त मात्रा बनी रहती है । • बुढ़ापे में विटामिन डी की कमी हो जाने पर जोड़ों का दर्द प्रारंभ हो जाता है । • विटामिन डी की कमी से हल्की सी दुर्घटना हो जाने पर भी हड्डियां टूट जाती हैं । • विटामिन डी की कमी से बच्चों की खोपड़ी बहुत बड़ी तथा चौकोर सी हो जाती है । • विटामिन डी की कमी से बच्चों के पुढे कमजोर हो जाते हैं । • विटामिन डी की कमी से बच्चों का चेहरा पीला , निस्तेज , कान्तिहीन दृष्टिगोचर होने लगता है ।• विटामिन डी की कमी के कारण बच्चा बिना कारण रोता रहता है । • विटामिन डी की कमी से बच्चे का स्वभाव चिड़चिड़ा हो जाता है तथा उसको कुछ भी अच्छा नहीं लगता है । • यदि वयस्कों के शरीर में विटामिन डी की कमी हो जाये तो प्रारंभ में उनको कमर और कुल्हों की वेदना सताती है । • यदि वयस्कों को विटामिन – डी की अत्यधिक कमी हो जाये तो उनके पेडू और कूल्हे की हड्डियां मुड़कर कुरूप हो जाती हैं । • शरीर में विटामिन डी की कमी से सीढ़ियां चढ़ने पर रोगी को कष्ट होता है । • शीतपित्त रोग के पीछे शरीर में विटामिन डी की कमी होती है अतः इस रोग की औषधियों के साथ विटामिन ‘ डी ‘ का प्रयोग भी लाभ प्रदान करता है ।• सर्दियों तथा बरसात के मौसम में बच्चों , बूढ़ों तथा जवानों को समान रूप से विटामिन डी की अधिक आवश्यकता रहती है व सूर्य प्रकाश की कमी परन्तु इस मौसम में प्रकृति भरपूर हरी पत्तेदार सब्जियां भी देती है ध्यान रहे बरसात के मौसम में पत्तेदार सब्जियों का सेवन न कर इनका सुप व अन्य पकवान जैसे पकौड़े बनाकर खाना सुरक्षित होता है विटामिन ‘ डी ‘ की अधिकता से दिमाग की नसें शक्तिशाली और लचीली हो जाती हैं । • विटामिन ‘ डी ‘ सब्जियों में नहीं उनके पत्ते में अर्थात पत्तेदार सब्जियों में अत्यधिक पाया जाता है । मक्खन , दूध में विटामिन डी ज्यादा मात्रा में रहता है । • ग्रामीण लोगों को सूर्य की किरणों से पर्याप्त विटामिन डी मिल जाता है । • ग्रामीण लोगों की अपेक्षा शहरी लोग अधिक विटामिन डी की कमी के शिकार होते हैं । • पुरुषों को प्रतिदिन 400 से 600 यूनिट विटामिन ‘ डी ‘ की आवश्यकता होती है । दूध पीते बच्चों को भी इतनी ही आवश्यकता होती है । अस्थिशोथ ( रिकेट्स ) तथा निर्बलता में 4 से 20 हजार यूनिट की आवश्यकता होती है

कैल्शियमयुक्त खाद्य ( प्रति 100 ग्राम ) खाद्य कैल्शियम ( मिलीग्राम में )

कड़ी पत्ता – 830 मिलीग्राम, कांटेदार चौलाई- 800 मिलीग्राम, चौलाई का साग -397 मिलीग्राम, शलगम का साग -790 मिलीग्राम, अरबी का साग- 460 मिलीग्राम, मेथी का साग -395 मिलीग्राम, चुकन्दर की पत्तियां -380 मिलीग्राम , मूली की पत्ती में – 265 मिलीग्राम,पुदीना – 200 मिलीग्राम ,रागी – 344 मिलीग्राम, राजमा – 260 मिलीग्राम, सोयाबीन – 240 मिलीग्राम ,चना साबूत – 202 मिलीग्राम , भैंस का दूध – 210 मिलीग्राम ,गाय का दूध- 120 मिलीग्राम ,दही – 149 मिलीग्राम

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निरोगी रहने हेतु महामन्त्र

मन्त्र 1 :-

• भोजन व पानी के सेवन प्राकृतिक नियमानुसार करें

• ‎रिफाइन्ड नमक,रिफाइन्ड तेल,रिफाइन्ड शक्कर (चीनी) व रिफाइन्ड आटा ( मैदा ) का सेवन न करें

• ‎विकारों को पनपने न दें (काम,क्रोध, लोभ,मोह,इर्ष्या,)

• ‎वेगो को न रोकें ( मल,मुत्र,प्यास,जंभाई, हंसी,अश्रु,वीर्य,अपानवायु, भूख,छींक,डकार,वमन,नींद,)

• ‎एल्मुनियम बर्तन का उपयोग न करें ( मिट्टी के सर्वोत्तम)

• ‎मोटे अनाज व छिलके वाली दालों का अत्यद्धिक सेवन करें

• ‎भगवान में श्रद्धा व विश्वास रखें

मन्त्र 2 :-

• पथ्य भोजन ही करें ( जंक फूड न खाएं)

• ‎भोजन को पचने दें ( भोजन करते समय पानी न पीयें एक या दो घुट भोजन के बाद जरूर पिये व डेढ़ घण्टे बाद पानी जरूर पिये)

• ‎सुबह उठेते ही 2 से 3 गिलास गुनगुने पानी का सेवन कर शौच क्रिया को जाये

• ‎ठंडा पानी बर्फ के पानी का सेवन न करें

• ‎पानी हमेशा बैठ कर घुट घुट कर पिये

• ‎बार बार भोजन न करें आर्थत एक भोजन पूर्णतः पचने के बाद ही दूसरा भोजन करें



अपनी 24 घंटे की दिनचर्या में से एक घंटा ईश्वर उपासना के लिए भी अवश्य निकालें। आधा घंटा सुबह और आधा घंटा शाम को, खाने पीने से पहले , नहा धोकर जब तैयार हो जाएं , तब अपनी आत्मा की बैटरी चार्ज करने के लिए ईश्वर उपासना अवश्य करें ।
जैसे आपकी मोबाइल फोन की बैटरी रोज डिस्चार्ज हो जाती है , और आप उसे हर रोज चार्ज करते हैं ; उसी प्रकार से दिन भर संसार के कामों में लगे रहने से , तथा तरह तरह की चिंताएं मोह शोक राग द्वेष काम क्रोध आदि शत्रुओं का आक्रमण होते रहने से , आत्मा की बैटरी भी डिस्चार्ज हो जाती है । उसे भी प्रतिदिन चार्ज करना चाहिए। उसका चार्जिंग स्टेशन ईश्वर है।
यदि आप सुबह शाम प्रतिदिन आधा-आधा घंटा ईश्वर की उपासना करें , तो आपकी आत्मा की बैटरी चार्ज हो जाएगी , और आप आनंद से जीवन जिएंगे । इन काम क्रोध आदि शत्रुओं से वीरता पूर्वक लड़ सकेंगे तथा इनको जीत भी लेंगे । इसलिए एक घंटा प्रतिदिन ईश्वर का ध्यान अवश्य करें।
मन को प्रसन्न रखने के लिए, दूसरों की कुछ मदद करना भी एक उत्तम उपाय है। एक घंटा प्रतिदिन समाज की सेवा करें । इससे ईश्वर आपको आंतरिक आनंद से निहाल कर देगा। अपने लिए तो सभी लोग प्रतिदिन कार्य करते ही हैं , यदि एक घंटा प्रतिदिन दूसरों की सेवा के लिए भी समय निकालें , तो अति उत्तम रहेगा।
तथा एक घंटा अपने मनोरंजन कार्यों में भी लगाएं । जैसे कोई गीत संगीत गाना बजाना, मित्रों के साथ गपशप करना , कोई पत्र पत्रिका पढ़ना इत्यादि । आपका जीवन स्वस्थ एवं आनंदित होगा –

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