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राम

।। राम राम ।।

१- ज्ञान किसको कहते हैं ?
२- वैराग्य किसको कहते हैं ?
३- माया का स्वरूप बतलाइये ?
४- भक्ति के साधन बताइये कि भक्ति कैसे प्राप्त हो ?
५- जीव और ईश्वर में भेद बतलाइये ?

एक साधक के द्वारा एक सिद्ध को ये पाँच प्रश्न हुए हैं –
भगवान श्री राम लक्ष्मण जी की बात सुनकर कहते हैं –
थोरेहि महँ सब कहउँ बुझाई । सुनहु तात मति मन चित्त लाई ।।
अर्थात् थोड़े में ही सब समझा देता हूँ। यही विविधता है कि थोड़े में ही ज्यादा समझा देता हूँ –
पहले भगवान ने माया वाला सवाल उठाया है क्योंकि पहले माया को जान लेना चाहिए। भगवान कहते हैं कि माया वैसे तो अनिर्वचनीय है लेकिन फिर भी –
मैं अरु मोर तोर तैं माया ।
जेहिं बस कीन्हे जीव निकाया ।।
मैं, मेरा और तेरा – यही माया है, केवल छह शब्दों में बता दिया।
मैं अर्थात् जब ” मैं ” आता है तो ” मेरा ” आता है और जहां ” मेरा ” होता है वहां ” तेरा ” भी होता है – तो ये भेद माया के कारण होता है।
जैसे चाचा जी घर में सेब लाये तो अपने बेटे को दो सेब दे दिए और बड़े भाई का बेटा आया तो उसे एक सेब दे दिया। कारण कि ये मेरा बेटा है और वो बड़े भाई का बेटा है। बस मेरा और तेरा – और ज्यादा विस्तार में जाने की आवश्यकता ही नहीं है, यह भेद माया के कारण ही होता है।
उस माया के भी दो भेद बताये हैं – एक विद्या और दूसरी अविद्या
एक दुष्ट अतिसय दुखरूपा ।
जा बस जीव परा भवकूपा ।।
एक रचइ जग गुन बस जाकें ।
प्रभु प्रेरित नहिं निज बल ताकें ।।
अविद्या रूपी माया जीव को जन्म-मरण के चक्कर में फंसाती है,जीव भटकता रहता है जीव जन्म अथवा मृत्यु के चक्कर में। और दूसरी विद्या रूपी माया मुक्त करवाती है।
दूसरा प्रश्न – ज्ञान किसको कहते हैं ?
हम ज्ञानी किसे कहेंगे ?
जो बहुत प्रकांड पंडित हो, शास्त्रों को जानता हो, बड़ा ही अच्छा प्रवचन कर सकता हो, दृष्टांत के साथ सिद्धांत को समझाये, संस्कृत तथा अन्य बहुत सी भाषाओं का जिसे ज्ञान हो – ज्ञानी !!!!
पंडित और ज्ञानी में अन्तर है, उसे पंडित कह सकते हैं लेकिन ज्ञानी नहीं।
गोस्वामी तुलसीदास जी ने बड़ी अद्भुत व्याख्या की है ज्ञानी की –
ग्यान मान जहँ एकउ नाहीं ।
देख ब्रह्म समान सब माहीं ।।
ज्ञान उसको कहते हैं – जहाँ मान न हो अर्थात् जो मान-अपमान के द्वन्द्व से रहित हो और सबमें ही जो ब्रह्म को देखे । ज्ञान के द्वारा तो ईश्वर की सर्वव्यापकता का अनुभव हो जाता है तो सबमें भगवान को देखने लग जाता है।
तीसरा प्रश्न – वैरागी किसको कहेंगे ?
हमारी परिभाषा यह है कि भगवें कपड़े पहने हो या फिर संसार छोड़ कर भाग गया हो, सिर पर जटायें हो, माथे पर तिलक हो, हाथ में माला लिए हुए हो – वैरागी !!!!
भगवान श्री राम कहते हैं –
कहिअ तात सो परम बिरागी । तृन सम सिद्धि तीनि गुन त्यागी ।।
परम वैरागी वह है, जिसने सिद्धियों को तृन अर्थात् तिनके के समान तुच्छ समझा। कहने का तात्पर्य है कि जो सिद्धियों के चक्कर में नहीं फंसता और तीनि गुन त्यागी अर्थात् तीन गुण प्रकृति का रूप यह शरीर है – उससे जो ऊपर उठा अर्थात् शरीर में भी जिसकी आसक्ति नहीं रही – वही परम वैरागी है।
चौथा प्रश्न – जीव और ईश्वर में भेद –
दोहा – माया ईस न आपु कहुँ जान कहिअ सो जीव ।
बंध मोच्छ प्रद सर्बपर माया प्रेरक सीव ।।
अर्थात् जो माया को, ईश्वर को और स्वयं को नहीं जानता – वह जीव और जीव को उसके कर्मानुसार बंधन तथा मोक्ष देने वाला – ईश्वर।

।। राम राम ।।

धनेश का अन्य भावों में फल
1 पहला घर -: जातक का स्‍वभाव क्रूर होता है एवं वह केवल अपने लिए नाम कमाता है। सूर्य और नवमेश का सहयोग मिलने पर जातक को पैतृक संपत्ति का लाभ होता है।

2 दूसरा घर -: जातक को अपने बच्‍चों से दूर रहना पड़ सकता है एवं वह अत्‍यंत अहंकारी हो सकता है।

3 तीसरा घर -: जातक को संगीत, नृत्‍य और कला से लाभ मिल सकता है। वह साहसी होता है। जातक अपने सपनों को साकार करने में सक्षम होता है एवं उसे अपनी बहन से सहयोग प्राप्‍त होता है।

4 चौथा घर -: जातक एक सफल किसान बन सकता है एवं उसे अपनी माता के परिवार से लाभ मिलना संभव है। कंजूस प्रवृत्ति के यह लोग केवल स्‍वयं पर ही पैसा खर्च करना पसंद करते हैं। यह कमिशन के कार्यों से धन कमाते हैं।

5 पांचवा घर -: यह जातक अच्‍छे कर्म नहीं करते परंतु फिर भी सरकार में अपने प्रभाव के कारण समृद्ध होते हैं। इन्‍हें अपने परिवार से प्रेम नहीं होता एवं यह सेक्‍स संबंध बनाने में ज्‍यादा दिलचस्‍पी रखते हैं।

6 छठा घर -: यह दूसरों पर भरोसा नहीं करते एवं यह डरपोक प्रवृत्ति के होते हैं। इनका अपने शत्रुओं से भी पैसों का लेनदेन रहता है एवं यह धोखाधड़ी से पैसे कमाते हैं। इनका जेल जाना भी संभव हैं। इन्‍हें शरीर के निचले भाग में कोई रोग हो सकता है।

7 सातवां घर -: इन जातकों में नैतिकता की कमी होती है। यह देह व्‍यापार में लिप्‍त हो सकते हैं। दूसरे घर के स्‍वामी की सप्‍तमेश के साथ इस घर में उपस्थिति विदेश यात्रा के योग बनाती है। द्वीतीय भाव में स्त्री राशि है तो यह जातक स्त्रियों के बीच काफी लोकप्रिय रहते हैं।

8 अष्‍टम् घर -: इनके वैवाहिक जीवन में हमेशा मतभेद रहते हैं। यह अपनी पैतृक संपत्ति को स्‍व्‍यं ही नष्‍ट कर देते हैं।

9 नवम् घर -: जीवन के शुरूआती कुछ सालों में यह थोड़े मनचले स्‍वाभाव के होते हैं जो उम्र बढ़ने के साथ-साथ सुधर जाता है। नवमेश के लग्‍न भाव में होने की स्थिति में जातक को अत्‍यधिक धन कमाने के अवसर प्राप्‍त होते हैं।

10 दसवां घर -: यह कई क्षेत्रों में व्‍यापार करने की कोशिश करते हैं लेकिन ग्रह के बुरी तरह से पीडित होने की स्थिति में इन्‍हें हर क्षेत्र में असफलता हाथ लगती है।

11 ग्‍यारहवां घर -: यह जातक अपनी बाल्‍यावस्‍था में अस्‍वस्‍थ रहते हैं। यह चरित्रहीन बनते हैं। उधार दिए गए पैसों पर ब्‍याज से इनकी आय होती है।

12 बारहवां घर -: यह सरकारी कर्मचारी होते हैं एवं खूब पैसा कमाते हैं। इन्‍हें अपने बड़े भाई से स्‍नेह नहीं मिलता।
[ महामृत्युंजय मंत्र पौराणिक महात्म्य एवं विधि
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महामृत्युंजय मंत्र के जप व उपासना कई तरीके से होती है। काम्य उपासना के रूप में भी इस मंत्र का जप किया जाता है। जप के लिए अलग-अलग मंत्रों का प्रयोग होता है। मंत्र में दिए अक्षरों की संख्या से इनमें विविधता आती है।

मंत्र निम्न प्रकार से है
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एकाक्षरी👉 मंत्र- ‘हौं’ ।
त्र्यक्षरी👉 मंत्र- ‘ॐ जूं सः’।
चतुराक्षरी👉 मंत्र- ‘ॐ वं जूं सः’।
नवाक्षरी👉 मंत्र- ‘ॐ जूं सः पालय पालय’।
दशाक्षरी👉 मंत्र- ‘ॐ जूं सः मां पालय पालय’।

(स्वयं के लिए इस मंत्र का जप इसी तरह होगा जबकि किसी अन्य व्यक्ति के लिए यह जप किया जा रहा हो तो ‘मां’ के स्थान पर उस व्यक्ति का नाम लेना होगा)

वेदोक्त मंत्र👉
महामृत्युंजय का वेदोक्त मंत्र निम्नलिखित है-

त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्‌।
उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात्‌ ॥

इस मंत्र में 32 शब्दों का प्रयोग हुआ है और इसी मंत्र में ॐ’ लगा देने से 33 शब्द हो जाते हैं। इसे ‘त्रयस्त्रिशाक्षरी या तैंतीस अक्षरी मंत्र कहते हैं। श्री वशिष्ठजी ने इन 33 शब्दों के 33 देवता अर्थात्‌ शक्तियाँ निश्चित की हैं जो कि निम्नलिखित हैं।

इस मंत्र में 8 वसु, 11 रुद्र, 12 आदित्य 1 प्रजापति तथा 1 वषट को माना है।

मंत्र विचार
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इस मंत्र में आए प्रत्येक शब्द को स्पष्ट करना अत्यंत आवश्यक है क्योंकि शब्द ही मंत्र है और मंत्र ही शक्ति है। इस मंत्र में आया प्रत्येक शब्द अपने आप में एक संपूर्ण अर्थ लिए हुए होता है और देवादि का बोध कराता है।

शब्द बोधक
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‘त्र’ ध्रुव वसु ‘यम’ अध्वर वसु
‘ब’ सोम वसु ‘कम्‌’ वरुण
‘य’ वायु ‘ज’ अग्नि
‘म’ शक्ति ‘हे’ प्रभास
‘सु’ वीरभद्र ‘ग’ शम्भु
‘न्धिम’ गिरीश ‘पु’ अजैक
‘ष्टि’ अहिर्बुध्न्य ‘व’ पिनाक
‘र्ध’ भवानी पति ‘नम्‌’ कापाली
‘उ’ दिकपति ‘र्वा’ स्थाणु
‘रु’ भर्ग ‘क’ धाता
‘मि’ अर्यमा ‘व’ मित्रादित्य
‘ब’ वरुणादित्य ‘न्ध’ अंशु
‘नात’ भगादित्य ‘मृ’ विवस्वान
‘त्यो’ इंद्रादित्य ‘मु’ पूषादिव्य
‘क्षी’ पर्जन्यादिव्य ‘य’ त्वष्टा
‘मा’ विष्णुऽदिव्य ‘मृ’ प्रजापति
‘तात’ वषट
इसमें जो अनेक बोधक बताए गए हैं। ये बोधक देवताओं के नाम हैं।

शब्द वही हैं और उनकी शक्ति निम्न प्रकार से है-

शब्द शक्ति 👉 ‘त्र’ त्र्यम्बक, त्रि-शक्ति तथा त्रिनेत्र ‘य’ यम तथा यज्ञ
‘म’ मंगल ‘ब’ बालार्क तेज
‘कं’ काली का कल्याणकारी बीज ‘य’ यम तथा यज्ञ
‘जा’ जालंधरेश ‘म’ महाशक्ति
‘हे’ हाकिनो ‘सु’ सुगन्धि तथा सुर
‘गं’ गणपति का बीज ‘ध’ धूमावती का बीज
‘म’ महेश ‘पु’ पुण्डरीकाक्ष
‘ष्टि’ देह में स्थित षटकोण ‘व’ वाकिनी
‘र्ध’ धर्म ‘नं’ नंदी
‘उ’ उमा ‘र्वा’ शिव की बाईं शक्ति
‘रु’ रूप तथा आँसू ‘क’ कल्याणी
‘व’ वरुण ‘बं’ बंदी देवी
‘ध’ धंदा देवी ‘मृ’ मृत्युंजय
‘त्यो’ नित्येश ‘क्षी’ क्षेमंकरी
‘य’ यम तथा यज्ञ ‘मा’ माँग तथा मन्त्रेश
‘मृ’ मृत्युंजय ‘तात’ चरणों में स्पर्श

यह पूर्ण विवरण ‘देवो भूत्वा देवं यजेत’ के अनुसार पूर्णतः सत्य प्रमाणित हुआ है।

महामृत्युंजय के अलग-अलग मंत्र हैं। आप अपनी सुविधा के अनुसार जो भी मंत्र चाहें चुन लें और नित्य पाठ में या आवश्यकता के समय प्रयोग में लाएँ।

मंत्र निम्नलिखित हैं
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तांत्रिक बीजोक्त मंत्र
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ॐ भूः भुवः स्वः। ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्‌।
उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात्‌। स्वः भुवः भूः ॐ ॥

संजीवनी मंत्र अर्थात्‌ संजीवनी विद्या
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ॐ ह्रौं जूं सः। ॐ भूर्भवः स्वः। ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्‌। उर्वारुकमिव बन्धनांन्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात्‌। स्वः भुवः भूः ॐ। सः जूं ह्रौं ॐ ।

महामृत्युंजय का प्रभावशाली मंत्र
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ॐ ह्रौं जूं सः। ॐ भूः भुवः स्वः। ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्‌। उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात्‌। स्वः भुवः भूः ॐ। सः जूं ह्रौं ॐ ॥

महामृत्युंजय मंत्र जाप में सावधानियाँ
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महामृत्युंजय मंत्र का जप करना परम फलदायी है। लेकिन इस मंत्र के जप में कुछ सावधानियाँ रखना चाहिए जिससे कि इसका संपूर्ण लाभ प्राप्त हो सके और किसी भी प्रकार के अनिष्ट की संभावना न रहे।
अतः जप से पूर्व निम्न बातों का ध्यान रखना चाहिए।

  1. जो भी मंत्र जपना हो उसका जप उच्चारण की शुद्धता से करें।
  2. एक निश्चित संख्या में जप करें। पूर्व दिवस में जपे गए मंत्रों से, आगामी दिनों में कम मंत्रों का जप न करें। यदि चाहें तो अधिक जप सकते हैं।
  3. मंत्र का उच्चारण होठों से बाहर नहीं आना चाहिए। यदि अभ्यास न हो तो धीमे स्वर में जप करें।
  4. जप काल में धूप-दीप जलते रहना चाहिए।
  5. रुद्राक्ष की माला पर ही जप करें।
  6. माला को गोमुखी में रखें। जब तक जप की संख्या पूर्ण न हो, माला को गोमुखी से बाहर न निकालें।
  7. जप काल में शिवजी की प्रतिमा, तस्वीर, शिवलिंग या महामृत्युंजय यंत्र पास में रखना अनिवार्य है।
  8. महामृत्युंजय के सभी जप कुशा के आसन के ऊपर बैठकर करें।
  9. जप काल में दुग्ध मिले जल से शिवजी का अभिषेक करते रहें या शिवलिंग पर चढ़ाते रहें।
  10. महामृत्युंजय मंत्र के सभी प्रयोग पूर्व दिशा की तरफ मुख करके ही करें।
  11. जिस स्थान पर जपादि का शुभारंभ हो, वहीं पर आगामी दिनों में भी जप करना चाहिए।
  12. जपकाल में ध्यान पूरी तरह मंत्र में ही रहना चाहिए, मन को इधर-उधरन भटकाएँ।
  13. जपकाल में आलस्य व उबासी को न आने दें।
  14. मिथ्या बातें न करें।
  15. जपकाल में स्त्री सेवन न करें।
  16. जपकाल में मांसाहार त्याग दें।

कब करें महामृत्युंजय मंत्र जाप?
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महामृत्युंजय मंत्र जपने से अकाल मृत्यु तो टलती ही है, आरोग्यता की भी प्राप्ति होती है। स्नान करते समय शरीर पर लोटे से पानी डालते वक्त इस मंत्र का जप करने से स्वास्थ्य-लाभ होता है।
दूध में निहारते हुए इस मंत्र का जप किया जाए और फिर वह दूध पी लिया जाए तो यौवन की सुरक्षा में भी सहायता मिलती है। साथ ही इस मंत्र का जप करने से बहुत सी बाधाएँ दूर होती हैं, अतः इस मंत्र का यथासंभव जप करना चाहिए।

निम्नलिखित स्थितियों में इस मंत्र का जाप कराया जाता है।
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(1) ज्योतिष के अनुसार यदि जन्म, मास, गोचर और दशा, अंतर्दशा, स्थूलदशा आदि में ग्रहपीड़ा होने का योग है।
(2) किसी महारोग से कोई पीड़ित होने पर।
(3) जमीन-जायदाद के बँटबारे की संभावना हो।
(4) हैजा-प्लेग आदि महामारी से लोग मर रहे हों।
(5) राज्य या संपदा के जाने का अंदेशा हो।
(6) धन-हानि हो रही हो।
(7) मेलापक में नाड़ीदोष, षडाष्टक आदि आता हो।
(8) राजभय हो।
(9) मन धार्मिक कार्यों से विमुख हो गया हो।
(10) राष्ट्र का विभाजन हो गया हो।
(11) मनुष्यों में परस्पर घोर क्लेश हो रहा हो।
(12) त्रिदोषवश रोग हो रहे हों।

महामृत्युंजय मंत्र जप विधि
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महामृत्युंजय मंत्र का जप करना परम फलदायी है। महामृत्युंजय मंत्र के जप व उपासना के तरीके आवश्यकता के अनुरूप होते हैं। काम्य उपासना के रूप में भी इस मंत्र का जप किया जाता है। जप के लिए अलग-अलग मंत्रों का प्रयोग होता है। यहाँ हमने आपकी सुविधा के लिए संस्कृत में जप विधि, विभिन्न यंत्र-मंत्र, जप में सावधानियाँ, स्तोत्र आदि उपलब्ध कराए हैं। इस प्रकार आप यहाँ इस अद्‍भुत जप के बारे में विस्तृत जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।

महामृत्युंजय जपविधि – (मूल संस्कृत में)

कृतनित्यक्रियो जपकर्ता स्वासने पांगमुख उदहमुखो वा उपविश्य धृतरुद्राक्षभस्मत्रिपुण्ड्रः । आचम्य । प्राणानायाम्य। देशकालौ संकीर्त्य मम वा यज्ञमानस्य अमुक कामनासिद्धयर्थ श्रीमहामृत्युंजय मंत्रस्य अमुक संख्यापरिमितं जपमहंकरिष्ये वा कारयिष्ये।
॥ इति प्रात्यहिकसंकल्पः॥
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॐ गुरवे नमः।
ॐ गणपतये नमः। ॐ इष्टदेवतायै नमः।
इति नत्वा यथोक्तविधिना भूतशुद्धिं प्राण प्रतिष्ठां च कुर्यात्‌।

भूतशुद्धिः विनियोगः
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ॐ तत्सदद्येत्यादि मम अमुक प्रयोगसिद्धयर्थ भूतशुद्धिं प्राण प्रतिष्ठां च करिष्ये। ॐ आधारशक्ति कमलासनायनमः। इत्यासनं सम्पूज्य। पृथ्वीति मंत्रस्य। मेरुपृष्ठ ऋषि;, सुतलं छंदः कूर्मो देवता, आसने विनियोगः।

आसनः
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ॐ पृथ्वि त्वया धृता लोका देवि त्वं विष्णुना धृता।
त्वं च धारय माँ देवि पवित्रं कुरु चासनम्‌।
गन्धपुष्पादिना पृथ्वीं सम्पूज्य कमलासने भूतशुद्धिं कुर्यात्‌।
अन्यत्र कामनाभेदेन। अन्यासनेऽपि कुर्यात्‌।
पादादिजानुपर्यंतं पृथ्वीस्थानं तच्चतुरस्त्रं पीतवर्ण ब्रह्मदैवतं वमिति बीजयुक्तं ध्यायेत्‌। जान्वादिना भिपर्यन्तमसत्स्थानं तच्चार्द्धचंद्राकारं शुक्लवर्ण पद्मलांछितं विष्णुदैवतं लमिति बीजयुक्तं ध्यायेत्‌।
नाभ्यादिकंठपर्यन्तमग्निस्थानं त्रिकोणाकारं रक्तवर्ण स्वस्तिकलान्छितं रुद्रदैवतं रमिति बीजयुक्तं ध्यायेत्‌। कण्ठादि भूपर्यन्तं वायुस्थानं षट्कोणाकारं षड्बिंदुलान्छितं कृष्णवर्णमीश्वर दैवतं यमिति बीजयुक्तं ध्यायेत्‌। भूमध्यादिब्रह्मरन्ध्रपर्यन्त माकाशस्थानं वृत्ताकारं ध्वजलांछितं सदाशिवदैवतं हमिति बीजयुक्तं ध्यायेत्‌। एवं स्वशरीरे पंचमहाभूतानि ध्यात्वा प्रविलापनं कुर्यात्‌। यद्यथा-पृथ्वीमप्सु। अपोऽग्नौअग्निवायौ वायुमाकाशे। आकाशं तन्मात्राऽहंकारमहदात्मिकायाँ मातृकासंज्ञक शब्द ब्रह्मस्वरूपायो हृल्लेखार्द्धभूतायाँ प्रकृत्ति मायायाँ प्रविलापयामि, तथा त्रिवियाँ मायाँ च नित्यशुद्ध बुद्धमुक्तस्वभावे स्वात्मप्रकाश रूपसत्यज्ञानाँनन्तानन्दलक्षणे परकारणे परमार्थभूते परब्रह्मणि प्रविलापयामि।तच्च नित्यशुद्धबुद्धमुक्तस्वभावं सच्चिदानन्दस्वरूपं परिपूर्ण ब्रह्मैवाहमस्मीति भावयेत्‌। एवं ध्यात्वा यथोक्तस्वरूपात्‌ ॐ कारात्मककात्‌ परब्रह्मणः सकाशात्‌ हृल्लेखार्द्धभूता सर्वमंत्रमयी मातृकासंज्ञिका शब्द ब्रह्मात्मिका महद्हंकारादिप-न्चतन्मात्रादिसमस्त प्रपंचकारणभूता प्रकृतिरूपा माया रज्जुसर्पवत्‌ विवर्त्तरूपेण प्रादुर्भूता इति ध्यात्वा। तस्या मायायाः सकाशात्‌ आकाशमुत्पन्नम्‌, आकाशाद्वासु;, वायोरग्निः, अग्नेरापः, अदभ्यः पृथ्वी समजायत इति ध्यात्वा। तेभ्यः पंचमहाभूतेभ्यः सकाशात्‌ स्वशरीरं तेजः पुंजात्मकं पुरुषार्थसाधनदेवयोग्यमुत्पन्नमिति ध्यात्वा। तस्मिन्‌ देहे सर्वात्मकं सर्वज्ञं सर्वशक्तिसंयुक्त समस्तदेवतामयं सच्चिदानंदस्वरूपं ब्रह्मात्मरूपेणानुप्रविष्टमिति भावयेत्‌ ॥
॥ इति भूतशुद्धिः ॥

अथ प्राण-प्रतिष्ठा
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विनियोगःअस्य श्रीप्राणप्रतिष्ठामंत्रस्य ब्रह्माविष्णुरुद्रा ऋषयः ऋग्यजुः सामानि छन्दांसि, परा प्राणशक्तिर्देवता, ॐ बीजम्‌, ह्रीं शक्तिः, क्रौं कीलकं प्राण-प्रतिष्ठापने विनियोगः।

डं. कं खं गं घं नमो वाय्वग्निजलभूम्यात्मने हृदयाय नमः।
ञं चं छं जं झं शब्द स्पर्श रूपरसगन्धात्मने शिरसे स्वाहा।
णं टं ठं डं ढं श्रीत्रत्वड़ नयनजिह्वाघ्राणात्मने शिखायै वषट्।
नं तं थं धं दं वाक्पाणिपादपायूपस्थात्मने कवचाय हुम्‌।
मं पं फं भं बं वक्तव्यादानगमनविसर्गानन्दात्मने नेत्रत्रयाय वौषट्।
शं यं रं लं हं षं क्षं सं बुद्धिमानाऽहंकार-चित्तात्मने अस्राय फट्।
एवं करन्यासं कृत्वा ततो नाभितः पादपर्यन्तम्‌ आँ नमः।
हृदयतो नाभिपर्यन्तं ह्रीं नमः।
मूर्द्धा द्विहृदयपर्यन्तं क्रौं नमः।
ततो हृदयकमले न्यसेत्‌।
यं त्वगात्मने नमः वायुकोणे।
रं रक्तात्मने नमः अग्निकोणे।
लं मांसात्मने नमः पूर्वे ।
वं मेदसात्मने नमः पश्चिमे ।
शं अस्थ्यात्मने नमः नैऋत्ये।
ओंषं शुक्रात्मने नमः उत्तरे।
सं प्राणात्मने नमः दक्षिणे।
हे जीवात्मने नमः मध्ये एवं हदयकमले।
अथ ध्यानम्‌रक्ताम्भास्थिपोतोल्लसदरुणसरोजाङ घ्रिरूढा कराब्जैः
पाशं कोदण्डमिक्षूदभवमथगुणमप्यड़ कुशं पंचबाणान्‌।
विभ्राणसृक्कपालं त्रिनयनलसिता पीनवक्षोरुहाढया
देवी बालार्कवणां भवतुशु भकरो प्राणशक्तिः परा नः ॥

॥ इति प्राण-प्रतिष्ठा ॥

संकल्प
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तत्र संध्योपासनादिनित्यकर्मानन्तरं भूतशुद्धिं प्राण प्रतिष्ठां च कृत्वा प्रतिज्ञासंकल्प कुर्यात ॐ तत्सदद्येत्यादि सर्वमुच्चार्य मासोत्तमे मासे अमुकमासे अमुकपक्षे अमुकतिथौ अमुकवासरे अमुकगोत्रो अमुकशर्मा/वर्मा/गुप्ता मम शरीरे ज्वरादि-रोगनिवृत्तिपूर्वकमायुरारोग्यलाभार्थं वा धनपुत्रयश सौख्यादिकिकामनासिद्धयर्थ श्रीमहामृत्युंजयदेव प्रीमिकामनया यथासंख्यापरिमितं महामृत्युंजयजपमहं करिष्ये।

विनियोग
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अस्य श्री महामृत्युंजयमंत्रस्य वशिष्ठ ऋषिः, अनुष्टुप्छन्दः श्री त्र्यम्बकरुद्रो देवता, श्री बीजम्‌, ह्रीं शक्तिः, मम अनीष्ठसहूयिर्थे जपे विनियोगः।

अथ यष्यादिन्यासः
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ॐ वसिष्ठऋषये नमः शिरसि।
अनुष्ठुछन्दसे नमो मुखे।
श्री त्र्यम्बकरुद्र देवतायै नमो हृदि।
श्री बीजाय नमोगुह्ये।
ह्रीं शक्तये नमोः पादयोः।

॥ इति यष्यादिन्यासः ॥

अथ करन्यासः
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ॐ ह्रीं जूं सः ॐ भूर्भुवः स्वः त्र्यम्बकं ॐ नमो भगवते रुद्रायं शूलपाणये स्वाहा अंगुष्ठाभ्यं नमः।
ॐ ह्रीं जूं सः ॐ भूर्भुवः स्वः यजामहे ॐ नमो भगवते रुद्राय अमृतमूर्तये माँ जीवय तर्जनीभ्याँ नमः।
ॐ ह्रौं जूं सः ॐ भूर्भुवः स्वः सुगन्धिम्पुष्टिवर्द्धनम्‌ ओं नमो भगवते रुद्राय चन्द्रशिरसे जटिने स्वाहा मध्यामाभ्याँ वषट्।
ॐ ह्रौं जूं सः ॐ भूर्भुवः स्वः उर्वारुकमिव बन्धनात्‌ ॐ नमो भगवते रुद्राय त्रिपुरान्तकाय हां ह्रीं अनामिकाभ्याँ हुम्‌।
ॐ ह्रौं जूं सः ॐ भूर्भुवः स्वः मृत्योर्मुक्षीय ॐ नमो भगवते रुद्राय त्रिलोचनाय ऋग्यजुः साममन्त्राय कनिष्ठिकाभ्याँ वौषट्।
ॐ ह्रौं जूं सः ॐ भूर्भुवः स्वः मामृताम्‌ ॐ नमो भगवते रुद्राय अग्निवयाय ज्वल ज्वल माँ रक्ष रक्ष अघारास्त्राय करतलकरपृष्ठाभ्याँ फट् ।

॥ इति करन्यासः ॥

अथांगन्यासः
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ॐ ह्रौं ॐ जूं सः ॐ भूर्भुवः स्वः त्र्यम्बकं ॐ नमो भगवते रुद्राय शूलपाणये स्वाहा हृदयाय नमः।
ॐ ह्रौं ओं जूं सः ॐ भूर्भुवः स्वः यजामहे ॐ नमो भगवते रुद्राय अमृतमूर्तये माँ जीवय शिरसे स्वाहा।
ॐ ह्रौं ॐ जूं सः ॐ भूर्भुवः स्वः सुगन्धिम्पुष्टिवर्द्धनम्‌ ॐ नमो भगवते रुद्राय चंद्रशिरसे जटिने स्वाहा शिखायै वषट्।
ॐ ह्रौं ॐ जूं सः ॐ भूर्भुवः स्वः उर्वारुकमिव बन्धनात्‌ ॐ नमो भगवते रुद्राय त्रिपुरांतकाय ह्रां ह्रां कवचाय हुम्‌।
ॐ ह्रौं ॐ जूं सः ॐ भूर्भुवः स्वः मृत्यार्मुक्षीय ॐ नमो भगवते रुद्राय त्रिलोचनाय ऋग्यजु साममंत्रयाय नेत्रत्रयाय वौषट्।
ॐ ह्रौं ॐ जूं सः ॐ भूर्भुवः स्वः मामृतात्‌ ॐ नमो भगवते रुद्राय अग्नित्रयाय ज्वल ज्वल माँ रक्ष रक्ष अघोरास्त्राय फट्।
॥ इत्यंगन्यासः ॥

अथाक्षरन्यासः
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त्र्यं नमः दक्षिणचरणाग्रे।
बं नमः,
कं नमः,
यं नमः,
जां नमः दक्षिणचरणसन्धिचतुष्केषु ।
मं नमः वामचरणाग्रे ।
हें नमः,
सुं नमः,
गं नमः,
धिं नम, वामचरणसन्धिचतुष्केषु ।
पुं नमः, गुह्ये।
ष्टिं नमः, आधारे।
वं नमः, जठरे।
र्द्धं नमः, हृदये।
नं नमः, कण्ठे।
उं नमः, दक्षिणकराग्रे।
वां नमः,
रुं नमः,
कं नमः,
मिं नमः, दक्षिणकरसन्धिचतुष्केषु।
वं नमः, बामकराग्रे।
बं नमः,
धं नमः,
नां नमः,
मृं नमः वामकरसन्धिचतुष्केषु।
त्यों नमः, वदने।
मुं नमः, ओष्ठयोः।
क्षीं नमः, घ्राणयोः।
यं नमः, दृशोः।
माँ नमः श्रवणयोः ।
मृं नमः भ्रवोः ।
तां नमः, शिरसि।
॥ इत्यक्षरन्यास ॥

अथ पदन्यासः
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त्र्यम्बकं शरसि।
यजामहे भ्रुवोः।
सुगन्धिं दृशोः ।
पुष्टिवर्धनं मुखे।
उर्वारुकं कण्ठे।
मिव हृदये।
बन्धनात्‌ उदरे।
मृत्योः गुह्ये ।
मुक्षय उर्वों: ।
माँ जान्वोः ।
अमृतात्‌ पादयोः।
॥ इति पदन्यास ॥

मृत्युञ्जयध्यानम्‌
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हस्ताभ्याँ कलशद्वयामृतसैराप्लावयन्तं शिरो,
द्वाभ्याँ तौ दधतं मृगाक्षवलये द्वाभ्याँ वहन्तं परम्‌ ।
अंकन्यस्तकरद्वयामृतघटं कैलासकांतं शिवं,
स्वच्छाम्भोगतं नवेन्दुमुकुटाभातं त्रिनेत्रभजे ॥
मृत्युंजय महादेव त्राहि माँ शरणागतम्‌,
जन्ममृत्युजरारोगैः पीड़ित कर्मबन्धनैः ॥
तावकस्त्वद्गतप्राणस्त्वच्चित्तोऽहं सदा मृड,
इति विज्ञाप्य देवेशं जपेन्मृत्युंजय मनुम्‌ ॥

अथ बृहन्मन्त्रः
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ॐ ह्रौं जूं सः ॐ भूः भुवः स्वः। त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिम्पुष्टिवर्धनम्‌। उर्व्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्‌। स्वः भुवः भू ॐ। सः जूं ह्रौं ॐ ॥

समर्पण
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एतद यथासंख्यं जपित्वा पुनर्न्यासं कृत्वा जपं भगन्महामृत्युंजयदेवताय समर्पयेत।
गुह्यातिगुह्यगोपता त्व गृहाणास्मत्कृतं जपम्‌।
सिद्धिर्भवतु मे देव त्वत्प्रसादान्महेश्वर ॥

॥ इति महामृत्युंजय जप विधि ।।
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[महाभारत में श्रीकृष्ण ने बताया कि भगवान उसी का साथ देते हैं जो जप-तप के अलावा ये तीन काम भी करते हैं!!!!!!!

महाभारत के अश्वमेधिक पर्व में युधिष्ठिर ने भगवान कृष्ण से धर्म और कर्म को लेकर कुछ बातें पूछी हैं। इस पर श्रीकृष्ण ने जवाब भी दिए हैं। भगवान कृष्ण ने एक श्लोक के अनुसार बताया है। जो मनुष्य ये 4 आसान काम करता है, भगवान हमेश ऐसे इंसान का साथ देते हैं। श्रीकृष्ण बताते हैं कि जो मनुष्य अपनी इंद्रियों पर नियंत्रण रखता है और हमेशा धर्म के रास्ते पर चलता है, ऐसे लोगों से भगवान भी खुश रहते हैं। श्रीकृष्ण ने ऐसे 4 काम बताए हैं जिनसे भगवान भी खुश होते हैं।

इन चार कामों में एक है तपस्या। तप के अलावा 3 काम और हैं जो हर इंसान को करने चाहिए। ऐसे मनुष्य के जाने-अनजाने में किए गए पाप माफ हो जाते हैं। इसलिए, हर किसी को इन 4 कामों को जरूर करना चाहिए।

महाभारत का श्लोक!!!!
दानेन तपसा चैव सत्येन च दमेन च।
ये धर्ममनुवर्तन्ते ते नराः स्वर्गामिनः।।

  1. दान : – दान करना हिंदू धर्म में बहुत ही पुण्य का काम माना जाता है। कई ग्रथों में दान करने के महत्व के बारे में बताया गया है। श्रीमद्भागवत के अनुसार, जो मनुष्य जरूरतमदों को नियमित रूप से दान करता है, उसे पुण्य की प्राप्ति होती है। मनुष्य को कभी भी अपने दान का हिसाब-किताब नहीं करना चाहिए। दान गुप्त तरीके से करना चाहिए, उसका दिखावा नहीं करना चाहिए। जो भी दान से संबंधी इन बातों का ध्यान रखता है, उसके सभी पाप कर्म मिट जाते है और उसे स्वर्ग की प्राप्ति होती है।
  2. तपस्या या जप : – तप और भगवान का ध्यान करना हर किसी के लिए जरूरी माना जाता है। कई लोग अपने व्यस्त जीवन के चलते भगवान का ध्यान नहीं करते। ऐसे मनुष्य पर देवी-देवता हमेशा रूठे रहते हैं। रोज दिन में थोड़ा समय भगवान के तप और ध्यान आदि को देने से मनुष्य की सारी परेशानियां अपनेआप खत्म होने लगती हैं और उसे स्वर्ग की प्राप्ति होती है।
  3. मन को वश में रखना : – मनुष्य का मन बहुत ही चंचल होता है। वह हर समय इधर-उधर भटकता रहता है। जिस मनुष्य का मन वश में नहीं रहता, वह बहुत ज्यादा महत्वाकांक्षाओं वाला होता हैं। ऐसा मनुष्य अपनी इच्छाओं को पूरा करने के लिए कोई भी गलत काम कर सकता है और उसे अपने पाप कर्मों की वजह से नर्क जाना पड़ता है। इसलिए, स्वर्ग की इच्छा रखने वालों को अपने मन को वश में रखना बहुत ही जरूरी है।
  4. हमेशा सच बोलना : – सच बोलना मनुष्य के सबसे खास गुणों में से एक माना जाता है। जिस मनुष्य में सच बोलने का गुण होता है, उसे जीवन में हर जगह सफलता मिलती है। झूठ बोलने वाले या झूठ का साथ देने वाले मनुष्य पाप का भागी माना जाता है और उसे नर्क में यातनाएं झेलनी पड़ती हैं। इसलिए, हर किसी को सच बोलने और हर परिस्थिति में सच का ही साथ देने का गुण अपनाना चाहिए।
    [विवाह बाधा के वैदिक ज्योतिषीय उपाय
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    ज्योतिष के अनुसार कुंडली में कुछ विशेष ग्रह दोषों के प्रभाव से वैवाहिक जीवन पर बुरा असर पड़ता है। ऐसे में उन ग्रहों के उचित ज्योतिषीय उपचार के साथ ही मां पार्वती को प्रतिदिन सिंदूर अर्पित करना चाहिए। सिंदूर को सुहाग का प्रतीक माना जाता है। जो भी व्यक्ति नियमित रूप से देवी मां की पूजा करता है उसके जीवन में कभी भी पारिवारिक क्लेश, झगड़े, मानसिक तनाव की स्थिति निर्मित नहीं होती है।

सप्तम भाव गत शनि स्थित होने से विवाह बाधक होते है। अतः “ॐ शं शनैश्चराय नमः” मन्त्र का जप ७६००० एवं ७६०० हवन शमी की लकड़ी, घृत, मधु एवं मिश्री से करवा दें।

राहु या केतु होने से विवाह में बाधा या विवाहोपरान्त कलह होता है। यदि राहु के सप्तम स्थान में हो, तो राहु मन्त्र “ॐ रां राहवे नमः” का ७२००० जप तथा दूर्वा, घृत, मधु व मिश्री से दशांश हवन करवा दें। केतु स्थित हो, तो केतु मन्त्र “ॐ कें केतवे नमः” का २८००० जप तथा कुश, घृत, मधु व मिश्री से दशांश हवन करवा दें।

सप्तम भावगत सूर्य स्थित होने से पति-पत्नी में अलगाव एवं तलाक पैदा करता है। अतः जातक आदित्य हृदय स्तोत्र का पाठ रविवार से प्रारम्भ करके प्रत्येक दिन करे तथा रविवार कप नमक रहित भोजन करें। सूर्य को प्रतिदिन जल में लाल चन्दन, लाल फूल, अक्षत मिलाकर तीन बार अर्ध्य दें।

जिस जातक को किसी भी कारणवश विवाह में विलम्ब हो रहा हो, तो नवरात्री में प्रतिपदा से लेकर नवमी तक ४४००० जप निम्न मन्त्र का दुर्गा जी की मूर्ति या चित्र के सम्मुख करें।

“ॐ पत्नीं मनोरमां देहि मनोवृत्तानुसारिणीम्।
तारिणीं दुर्ग संसार सागरस्य कुलोद्भवाम्।।”

किसी स्त्री जातिका को अगर किसी कारणवश विवाह में विलम्ब हो रहा हो, तो श्रावण कृष्ण सोमवार से या नवरात्री में गौरी-पूजन करके निम्न मन्त्र का २१००० जप करना चाहिए-

“हे गौरि शंकरार्धांगि यथा त्वं शंकर प्रिया।

तथा मां कुरु कल्याणी कान्त कान्तां सुदुर्लभाम।।”

किसी लड़की के विवाह मे विलम्ब होता है तो नवरात्री के प्रथम दिन शुद्ध प्रतिष्ठित कात्यायनि यन्त्र एक चौकी पर पीला वस्त्र बिछाकर स्थापित करें एवं यन्त्र का पंचोपचार से पूजन करके निम्न मन्त्र का २१००० जइ लड़की स्वयं या किसी सुयोग्य पंडित से करवा सकते हैं।

कात्यायनि महामाये महायोगिन्यधीश्वरि। नन्दगोप सुतं देवि पतिं मे कुरु ते नमः।।”

जन्म कुण्डली में सूर्य, शनि, मंगल, राहु एवं केतु आदि पाप ग्रहों के कारण विवाह में विलम्ब हो रहा हो, तो गौरी-शंकर रुद्राक्ष शुद्ध एवं प्राण-प्रतिष्ठित करवा कर निम्न मन्त्र का १००८ बार जप करके पीले धागे के साथ धारण करना चाहिए। गौरी-शंकर रुद्राक्ष सिर्फ जल्द विवाह ही नहीं करता बल्कि विवाहोपरान्त पति-पत्नी के बीच सुखमय स्थिति भी प्रदान करता है।

“ॐ सुभगामै च विद्महे काममालायै धीमहि तन्नो गौरी प्रचोदयात्।।”

“ॐ गौरी आवे शिव जी व्याहवे (अपना नाम) को विवाह तुरन्त सिद्ध करे, देर न करै, देर होय तो शिव जी का त्रिशूल पड़े। गुरु गोरखनाथ की दुहाई।।”

उक्त मन्त्र की ११ दिन तक लगातार १ माला रोज जप करें। दीपक और धूप जलाकर ११वें दिन एक मिट्टी के कुल्हड़ का मुंह लाल कपड़े में बांध दें। उस कुल्हड़ पर बाहर की तरफ ७ रोली की बिंदी बनाकर अपने आगे रखें और ऊपर दिये गये मन्त्र की ५ माला जप करें। चुपचाप कुल्हड़ को रात के समय किसी चौराहे पर रख आवें। पीछे मुड़कर न देखें। सारी रुकावट दूर होकर शीघ्र विवाह हो जाता है।

जिस लड़की के विवाह में बाधा हो उसे मकान के वायव्य दिशा में सोना चाहिए।

लड़की के पिता जब जब लड़के वाले के यहाँ विवाह वार्ता के लिए जायें तो लड़की अपनी चोटी खुली रखे। जब तक पिता लौटकर घर न आ जाए तब तक चोटी नहीं बाँधनी चाहिए।

लड़की गुरुवार को अपने तकिए के नीचे हल्दी की गांठ पीले वस्त्र में लपेट कर रखे।

पीपल की जड़ में लगातार १३ दिन लड़की या लड़का जल चढ़ाए तो शादी की रुकावट दूर हो जाती है।

विवाह में अप्रत्याशित विलम्ब हो और जातिकाएँ अपने अहं के कारण अनेल युवकों की स्वीकृति के बाद भी उन्हें अस्वीकार करती रहें तो उसे निम्न मन्त्र का १०८ बार जप प्रत्येक दिन किसी शुभ मुहूर्त्त से प्रारम्भ करके करना चाहिए—

“सिन्दूरपत्रं रजिकामदेहं दिव्ताम्बरं सिन्धुसमोहितांगम् सान्ध्यारुणं धनुः पंकजपुष्पबाणं पंचायुधं भुवन मोहन मोक्षणार्थम क्लैं मन्यथाम।
महाविष्णुस्वरुपाय महाविष्णु पुत्राय महापुरुषाय पतिसुखं मे शीघ्रं देहि देहि।।”

किसी भी लड़के या लड़की को विवाह में बाधा आ रही हो यो विघ्नकर्ता गणेशजी की उपासना किसी भी चतुर्थी से प्रारम्भ करके अगले चतुर्थी तक एक मास करना चाहिए। इसके लिए स्फटिक, पारद या पीतल से बने गणेशजी की मूर्ति प्राण-प्रतिष्टित, कांसा की थाली में पश्चिमाभिमुख स्थापित करके स्वयं पूर्वाभिमुख होकर बैठे एवं निम मंत्र का प्रतिदिन ११ माला जाप करने से शीघ्र ही विवाह के सुयोग बनते है अथवा विवाहोपरांत आ रही संमस्या का भी नाश होता है।

मन्त्र👉 ॐ वक्रतुण्डैक दंष्ट्राय क्लीं ह्रीं श्रीं गं गणपते वर वरद सर्वजनं मे वशमानाय स्वाहा।

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[: निसान्तान दंपतियों के लिए संतान प्राप्ति के सर्वोत्तम उपाय
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ज्योतिष शास्त्र विभिन्न प्रकार के कष्टों और दोषों को दूर करने के लिए विभिन्न प्रकार के उपाय, पूजा विधि और मंत्रों को जाप करने का सुझाव देता हैं। जिसके प्रयोग से जातक अपने जीवन के कष्टों को दूर करने का प्रयास करते हैं। ऐसा ही एक प्रभावी मंत्र है “श्री संतान गोपाल मंत्र”। कुंडली में संतान सुख का दोष होने पर इस मंत्र का जाप किया जाता है। माना जाता है कि इस मंत्र के सवा लाख जाप से ही पुण्य प्राप्त होता है। इस मंत्र का वर्णन हरिवंश पुराण में किया गया है।

बाल गोपाल श्रीकृष्ण के बाल रूप को कहा जाता है। भगवान श्री कृष्ण के बाल स्वरूप की पूजा करना निःसंतान दंपत्तियों के लिए बेहद शुभ माना जाता है।

श्री संतान गोपाल पूजा विधि
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श्री संतान गोपाल पूजा का आरंभ गुरुवार या रविवार के दिन से ही करना चाहिए। इसके साथ ही इसके आठवें दिन इस पूजा का समापन कर दिया जाता है। इस प्रकार यह पूजा करीब आठ दिन तक चलती है। इस पूजा अनुष्ठान में १२५००० बार श्री संतान गोपाल मंत्र का जाप किया जाता है।

पूजा के पहले दिन करीब ७ या ५ पंडित शिवजी, भगवान कृष्ण और मां शक्ति के सामने बैठकर जातक के लिए १२५००० बार श्री संतान गोपाल मंत्र जाप करने का संकल्प लेते हैं। इसके बाद सभी देवी- देवताओं की पूजा कर अनुष्ठान का आरंभ करते हैं। पूजा के आरंभ में सभी पंडितों का नाम और गोत्र बोला जाता है और पुत्र रत्न की प्राप्ति की कामना करते हैं।

इसके बाद सभी पंडित जातक के लिए श्री संतान गोपाल मंत्र का जाप करना शुरू कर देते हैं। प्रत्येक पंडित इस मंत्र को आठ से दस घंटे तक प्रतिदिन जपता है ताकि निश्चित समय सीमा में १२५००० बार मंत्रों का जाप पूर्ण हो सके। मंत्रों के जाप के बाद भगवान श्रीकृष्ण जी की विधिवत रूप से पूजा करनी चाहिए। इसके बाद पंडित श्री संतान गोपाल मंत्र के पूर्ण होने का संकल्प करता है। इसके साथ ही इस पूजा का फल जातक को समर्पित करता है।

पूजा के अंत में देशी -घी, तिल, सामग्री और आम की लकड़ी द्वारा हवन कुंड जलाया जाता है तथा श्री संतान गोपाल मंत्र का जाप करते हुए घी, तिल, नारियल और सामग्री अग्नि को समर्पित किया जाता है। इसके बाद हवन कुंड के चारों तरफ जातक ५ या ७ चक्कर लगाता है।

संतान गोपाल मंत्र :-
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ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं ग्लौं देवकीसुत गोविन्द वासुदेव जगत्पते देहि मे तनयं कृष्ण त्वामहं शरणं गतः ।
इस मंत्र का बार रोज यथा सामर्थ्य जाप करे और इश्वर से संतान की कामना करे ..
अपने कमरे में श्री कृष्ण भगवान की बाल रूप की फोटो लगाये या लड्डू गोपाल को रोज माखन मिसरी की भोग अर्पण करे।

ग्रहों के अनुसार ही करें वस्तुओं का दान
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शास्त्रों के अनुसार पुत्र रत्न की प्राप्ति के लिए श्री संतान गोपाल मंत्र के जाप के बाद जातक को नवग्रहों से संबंधित विशेष वस्तुएं दान करनी चाहिए। यह हर जातक से लिए अलग- अलग होती हैं। इनमें सामान्यता जातक को चावल, गुड़, चीनी, नमक, गेहूं, दाल, तेल, तिल, जौ तथा कंबल, धन आदि दान करना चाहिए।

संतान प्राप्ति के अन्य सरल उपाय :-
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ये उपाय प्राचीन ऋषि महर्षियों ने मानव कल्याण के लिए बताये है,जिन्हें मै आप लोंगो के सामने प्रस्तुत कर रहा हूँ,
हमारे ऋषि महर्षियों ने हजारो साल पहले ही संतान प्राप्ति के कुछ नियम और सयम बताये है ,संसार की उत्पत्ति पालन और विनाश का क्रम पृथ्वी पर हमेशा से चलता रहा है,और आगे चलता रहेगा। इस क्रम के अन्दर पहले जड चेतन का जन्म होता है,फ़िर उसका पालन होता है और समयानुसार उसका विनास होता है।
मनुष्य जन्म के बाद उसके लिये चार पुरुषार्थ सामने आते है,पहले धर्म उसके बाद अर्थ फ़िर काम और अन्त में मोक्ष, धर्म का मतलब पूजा पाठ और अन्य धार्मिक क्रियाओं से पूरी तरह से नही पोतना चाहिये,धर्म का मतलब मर्यादा में चलने से होता है,माता को माता समझना पिता को पिता का आदर देना अन्य परिवार और समाज को यथा स्थिति आदर सत्कार और सबके प्रति आस्था रखना ही धर्म कहा गया है,अर्थ से अपने और परिवार के जीवन यापन और समाज में अपनी प्रतिष्ठा को कायम रखने का कारण माना जाता है,काम का मतलब अपने द्वारा आगे की संतति को पैदा करने के लिये स्त्री को पति और पुरुष को पत्नी की कामना करनी पडती है,पत्नी का कार्य धरती की तरह से है और पुरुष का कार्य हवा की तरह या आसमान की तरह से है,गर्भाधान भी स्त्री को ही करना पडता है,वह बात अलग है कि पादपों में अमर बेल या दूसरे हवा में पलने वाले पादपों की तरह से कोई पुरुष भी गर्भाधान करले। धरती पर समय पर बीज का रोपड किया जाता है,तो बीज की उत्पत्ति और उगने वाले पेड का विकास सुचारु रूप से होता रहता है,और समय आने पर उच्चतम फ़लों की प्राप्ति होती है,अगर वर्षा ऋतु वाले बीज को ग्रीष्म ऋतु में रोपड कर दिया जावे तो वह अपनी प्रकृति के अनुसार उसी प्रकार के मौसम और रख रखाव की आवश्यकता को चाहेगा,और नही मिल पाया तो वह सूख कर खत्म हो जायेगा,इसी प्रकार से प्रकृति के अनुसार पुरुष और स्त्री को गर्भाधान का कारण समझ लेना चाहिये। जिनका पालन करने से आप तो संतानवान होंगे ही आप की संतान भी आगे कभी दुखों का सामना नहीं करेगा…
कुछ राते ये भी है जिसमे हमें सम्भोग करने से बचना चाहिए .. जैसे अष्टमी, एकादशी, त्रयोदशी, चतुर्दशी, पूर्णिमा और अमवाश्या .चन्द्रावती ऋषि का कथन है कि लड़का-लड़की का जन्म गर्भाधान के समय स्त्री-पुरुष के दायां-बायां श्वास क्रिया, पिंगला-तूड़ा नाड़ी, सूर्यस्वर तथा चन्द्रस्वर की स्थिति पर निर्भर करता है।गर्भाधान के समय स्त्री का दाहिना श्वास चले तो पुत्री तथा बायां श्वास चले तो पुत्र होगा।

यदि आप पुत्र प्राप्त करना चाहते हैं और वह भी गुणवान, तो हम आपकी सुविधा के लिए हम यहाँ माहवारी के बाद की विभिन्न रात्रियों की महत्वपूर्ण जानकारी दे रहे हैं।

मासिक स्राव के बाद ४’ ६ ,८ १०, १३, १४ एवं १६ वीं रात्रि के गर्भाधान से पुत्र तथा ४, ७, ९, ११, १३ एवं १५ वीं रात्रि के गर्भाधान से कन्या जन्म लेती है।

१- चौथी रात्रि के गर्भ से पैदा पुत्र अल्पायु और दरिद्र होता है।
२- पाँचवीं रात्रि के गर्भ से जन्मी कन्या भविष्य में सिर्फ लड़की पैदा करेगी।
३- छठवीं रात्रि के गर्भ से मध्यम आयु वाला पुत्र जन्म लेगा।
४- सातवीं रात्रि के गर्भ से पैदा होने वाली कन्या बांझ होगी।
५- आठवीं रात्रि के गर्भ से पैदा पुत्र ऐश्वर्यशाली होता है।
६- नौवीं रात्रि के गर्भ से ऐश्वर्यशालिनी पुत्री पैदा होती है।
७- दसवीं रात्रि के गर्भ से चतुर पुत्र का जन्म होता है।
८- ग्यारहवीं रात्रि के गर्भ से चरित्रहीन पुत्री पैदा होती है।
९- बारहवीं रात्रि के गर्भ से पुरुषोत्तम पुत्र जन्म लेता है।
१०- तेरहवीं रात्रि के गर्म से वर्णसंकर पुत्री जन्म लेती है।
११- चौदहवीं रात्रि के गर्भ से उत्तम पुत्र का जन्म होता है।
१२- पंद्रहवीं रात्रि के गर्भ से सौभाग्यवती पुत्री पैदा होती है।
१३- सोलहवीं रात्रि के गर्भ से सर्वगुण संपन्न, पुत्र पैदा होता है।

सहवास से निवृत्त होते ही पत्नी को दाहिनी करवट से १० से १५ मिनट लेटे रहना चाहिए, तुरंत नहीं उठना चाहिए।

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स्वभाव-स्वभाव की बात है कि कोई ऐसी बात, जिसे दृढ़ विश्वासपूर्वक सत्य मानकर बैठे हो, किसी व्यक्तिसे पता चले कि वह तो गलत है, तो कुछ लोग आश्चर्य से “अच्छा ! ऐसा है” कहकर उसकी प्रमाणिकता को सोचते हैं, विचारते हैं, यदि वह गलत निकला तो उसे गलत ही मानते हैं।

पर कुछ लोगों की गलत धारणा को कहा जाये कि “वह गलत है, सत्य इससे भिन्न है” तो वे पहले तो तर्क करके उसे सत्य सिद्ध करने का प्रयास करते हैं, यदि तथ्यात्मक और प्रमाणयुक्त बहस करके उन्हें जताया जाये कि “आपका मानना गलत है, सत्य मैं सिद्ध किये देता हूँ” तो भी वे अपनी गलत धारणा छोड़ने को तैयार नहीं होते, अपितु सत्य बतलाने वाले से ही बैर करने लगते हैं, जबकि होना तो चाहिए था कि सत्य से अवगत कराने वाले का उपकार मानते।
[: राजा हरिश्चंद्र एक बहुत बड़े दानवीर थे। उनकी ये एक खास बात थी कि जब वो दान देने के लिए हाथ आगे बढ़ाते तो अपनी नज़रें नीचे झुका लेते थे।

ये बात सभी को अजीब लगती थी कि ये राजा कैसे दानवीर हैं। ये दान भी देते हैं और इन्हें शर्म भी आती है।

ये बात जब तुलसीदासजी तक पहुँची तो उन्होंने राजा को चार पंक्तियाँ लिख भेजीं जिसमें लिखा था

ऐसी देनी देन जु
कित सीखे हो सेन।
ज्यों ज्यों कर ऊँचौ करौ
त्यों त्यों नीचे नैन।।
इसका मतलब था कि राजा तुम ऐसा दान देना कहाँ से सीखे हो? जैसे जैसे तुम्हारे हाथ ऊपर उठते हैं वैसे वैसे तुम्हारी नज़रें तुम्हारे नैन नीचे क्यूँ झुक जाते हैं?

राजा ने इसके बदले में जो जवाब दिया वो जवाब इतना गजब का था कि जिसने भी सुना वो राजा का कायल हो गया।
इतना प्यारा जवाब आज तक किसी ने किसी को नहीं दिया।

राजा ने जवाब में लिखा

देनहार कोई और है
भेजत जो दिन रैन।
लोग भरम हम पर करैं
तासौं नीचे नैन।।

मतलब, देने वाला तो कोई और है वो मालिक है वो परमात्मा है वो दिन रात भेज रहा है। परन्तु लोग ये समझते हैं कि मैं दे रहा हूँ राजा दे रहा है। ये सोच कर मुझे शर्म आ जाती है और मेरी आँखें नीचे झुक जाती हैं।
वो ही करता और वो ही करवाता है, क्यों बंदे तू इतराता है,

एक साँस भी नही है तेरे बस की, वो ही सुलाता और वो ही जगाता है……..
: पक्के साधक कैसे बने?

एक बार एक गुरूजी अपने शिष्यों को भक्ति का उपदेश देते हुए समझा रहे थे कि बेटा पक्के साधक बनो, कच्चे साधक ना बने रहो । कच्चे पक्के साधक की बात सुनकर एक नये शिष्य के मन में सवाल पैदा हुआ !

उसने पूछ ही लिया “ गुरूजी ये पक्के साधक कैसे बनते हैं ?”

 गुरूजी मुस्कुराये और बोले, बेटा एक गाँव में एक हलवाई रहता था । हलवाई हर रोज़ कई तरह की मिठाइयाँ बनाता था, जो एक से बढ़कर एक स्वादिष्ट होती थी । 

आस पास के गाँवो में भी हलवाई की बड़ी धाक जमी हुई थी , अक्सर लोग हलवाई की मिठाईयों और पकवानों का आनंद लेने आते थे !
एक दिन हलवाई की दुकान पर एक पति पत्नी आये
उनके साथ उनका छोटा सा बच्चा भी था, जो बहुत ही चंचल था
उसके पिता ने हलवाई को हलवा बनाने का आदेश दिया !
वह दोनों तो प्रतीक्षा करने लगे, लेकिन वह बच्चा बार – बार आकर हलवाई से पूछता* –
“ हलवा बन गया क्या ?” हलवाई कहता – “ अभी कच्चा है, थोड़ी देर और लगेगी ।” वह थोड़ी देर प्रतीक्षा करता और फिर आकर हलवाई को आकर पूछता – “खुशबू तो अच्छी आ रही है, हलवा बन गया क्या ?” हलवाई कहता – “ अभी कच्चा है, थोड़ी देर और लगेगी ।” एक बार, दो बार, तीन बार, बार – बार उसके ऐसा बार बार पूछने से हलवाई थोड़ा चिढ़ गया !
उसने एक प्लेट उठाई और उसमें कच्चा हलवा रखा और बोला – “ ले बच्चे खा ले”
बच्चे ने खाया तो बोला – “ ये हलवा तो अच्छा नहीं है”
हलवाई फौरन बोला “ अगर अच्छा हलवा खाना है तो चुपचाप जाकर वहाँ बैठ जाओ और प्रतीक्षा करो ।” इस बार बच्चा चुपचाप जाकर बैठ गया I

जब हलवा पककर तैयार हो गया तो हलवाई ने थाली में सजा दिया और उन की टेबल पर परोस दिया ।
इस बार जब उस बच्चे ने हलवा खाया तो उसे बहुत स्वादिष्ट लगा
उसने हलवाई से पूछा – “ हलवाई काका ! अभी थोड़ी देर पहले जब मैंने इसे खाया था, तब तो यह बहुत ख़राब लगा था. अब इतना स्वादिष्ट कैसे बन गया ?”

   तब हलवाई ने उसे प्रेम से समझाते हुए कहा – “ बच्चे जब तू ज़िद कर रहा था, तब यह हलवा कच्चा था और अब यह पक गया है कच्चा हलवा खाने में अच्छा नहीं लगता यदि फिर भी उसे खाया जाये तो पेट ख़राब हो सकता है. लेकिन पकने के बाद वह स्वादिष्ट और पोष्टिक हो जाता है ।”
   अब गुरूजी अपने शिष्य से बोले  “ बेटा कच्चे और पक्के साधक का फर्क समझ में आया कि नहीं ?”

शिष्य हाथ जोड़ कर बोला गुरू जी “ हलवे के कच्चे और पक्के होने की बात तो समझ आ गई, लेकिन एक साधक के साथ यह कैसे होता है ?”

गुरूजी बोले – बेटा साधक भी हलवाई की तरह ही है । जिस तरह हलवाई हलवे को आग की तपिश से धीरे धीरे पकाता है उसी तरह साधक को भी स्वयं को निरन्तर साधना से पकाना पड़ता है । जिस तरह हलवे में सभी आवश्यक चीज़ें डालने के बाद भी जब तक हलवा कच्चा है, तो उसका स्वाद अच्छा नहीं लगता !

  उसी तरह एक सेवक भी चाहे कितना ही ज्ञान जुटा ले, कर्मकाण्ड कर ले जब तक सिमरन और भजन की अग्नि में नहीं तपता, तब तक वह कच्चा ही रहता है जिस तरह हलवे को अच्छे से पकाने के लिए लगातार उसका ध्यान रखना पड़ता है, उसी तरह साधक को भी अपने मन की चौकीदारी करते रहना चाहिए। जब पकते – पकते हलवा का रँग बदल जाये उसमें से खुशबु आने लगे और उसे खाने में आनन्द का अनुभव हो, तब उसे पका हुआ कहते है । उसी तरह जब साधना, साधक और साध्य तीनों एक हो जाये, साधक के शरीर से प्रेम की खुशबू आने लगे तब समझना चाहिए कि साधक पक्का हो चुका है ।”

जब तक सेवक का सिमरन पक्का न हो जाये, उसे सावधान और सतर्क रहना चाहिए !
क्योंकि माया बड़ी ठगनी है । कभी भी साधक को अपने रास्ते से गिरा सकती है ।
अतः साधक को निरंतर सिमरन और भजन से खुद को मजबूत बनाना चाहिए जी. !

प्रकृति से शिवलिंग का क्या संबंध है ..?
जाने शिवलिंग का वास्तविक अर्थ क्या है और कैसे इसका गलत अर्थ निकालकर हिन्दुओं को भ्रमित किया…??
सावन चल रहा है….
जिसको भगवान शिव जी की भक्ति के लिए सबसे अच्छा माह भी कहते हैं…. कुछ लोग शिवलिंग की पूजा
की आलोचना करते हैं..।
छोटे छोटे बच्चों को बताते हैं कि हिन्दू लोग लिंग और योनी की पूजा करते हैं । मूर्खों को संस्कृत का ज्ञान नहीं होता है..और अपने छोटे’छोटे बच्चों को हिन्दुओं के प्रति नफ़रत पैदा करके उनको आतंकी बना देते हैं।संस्कृत सभी भाषाओं की जननी है । इसे देववाणी भी कहा जाता है।

लिंग
लिंग का अर्थ संस्कृत में चिन्ह, प्रतीक होता है…
जबकी जनर्नेद्रीय को संस्कृत मे शिशिन कहा जाता है।

शिवलिंग

शिवलिंग का अर्थ हुआ शिव का प्रतीक….
पुरुषलिंग का अर्थ हुआ पुरुष का प्रतीक इसी प्रकार स्त्रीलिंग का अर्थ हुआ स्त्री का प्रतीक और नपुंसकलिंग का अर्थ हुआ नपुंसक का प्रतीक। अब यदि जो लोग पुरुष लिंग को मनुष्य की जनेन्द्रिय समझ कर आलोचना करते है..तो वे बताये ”स्त्री लिंग ”’के अर्थ के अनुसार स्त्री का लिंग होना चाहिए ।

शिवलिंग”’क्या है ?
शून्य, आकाश, अनन्त, ब्रह्माण्ड और निराकार परमपुरुष का प्रतीक होने से इसे लिंग कहा गया है । स्कन्दपुराण में कहा है कि आकाश स्वयं लिंग है।शिवलिंग वातावरण सहित घूमती धरती तथा सारे अनन्त ब्रह्माण्ड ( क्योंकि, ब्रह्माण्ड गतिमान है ) का अक्स/धुरी (axis) ही लिंग है।
शिव लिंग का अर्थ अनन्त भी होता है अर्थात जिसका कोई अन्त नहीं है और ना ही शुरुआत।

शिवलिंग का अर्थ लिंग या योनी नहीं होता ।
..दरअसल यह गलतफहमी भाषा के रूपांतरण और मलेच्छों यवनों के द्वारा हमारे पुरातन धर्म ग्रंथों को नष्ट कर दिए जाने पर तथा बाद में षडयंत्रकारी अंग्रेजों के द्वारा इसकी व्याख्या से उत्पन्न हुआ है ।

जैसा कि हम सभी जानते हैं कि एक ही शब्द के विभिन्न भाषाओँ में अलग-अलग अर्थ निकलते हैं ।
उदाहरण के लिए
यदि हम हिंदी के एक शब्द “सूत्र” को ही ले लें तो
सूत्र का मतलब डोरी/धागा गणितीय सूत्र कोई भाष्य अथवा लेखन भी हो सकता है। जैसे कि नासदीय सूत्र ब्रह्म सूत्र इत्यादि ।
उसी प्रकार “अर्थ” शब्द का भावार्थ : सम्पति भी हो सकता है और मतलब (मीनिंग) भी ।
ठीक बिल्कुल उसी प्रकार शिवलिंग के सन्दर्भ में लिंग शब्द से अभिप्राय चिह्न, निशानी, गुण, व्यवहार या प्रतीक है । धरती उसका पीठ या आधार है और सब अनन्त शून्य से पैदा हो उसी में लय होने के कारण इसे लिंग कहा है।तथा कई अन्य नामों से भी संबोधित किया गया है। जैसे : प्रकाश स्तंभ/लिंग, अग्नि स्तंभ/लिंग, उर्जा स्तंभ/लिंग, ब्रह्माण्डीय स्तंभ/लिंग (cosmic pillar/lingam)

ब्रह्माण्ड में दो ही चीजे हैं: ऊर्जा और प्रदार्थ। हमारा शरीर प्रदार्थ से निर्मित है और आत्मा ऊर्जा है।
इसी प्रकार शिव पदार्थ और शक्ति ऊर्जा का प्रतीक बन कर शिवलिंग कहलाते हैं।
ब्रह्मांड में उपस्थित समस्त ठोस तथा ऊर्जा शिवलिंग में निहित है। वास्तव में शिवलिंग हमारे ब्रह्मांड की आकृति है.

The universe is a sign of Shiva Lingam

शिवलिंग भगवान शिव और देवी शक्ति (पार्वती) का आदि-आनादी एकल रूप है तथा पुरुष और प्रकृति की समानता का प्रतिक भी है। अर्थात इस संसार में न केवल पुरुष का और न केवल प्रकृति (स्त्री) का वर्चस्व है अर्थात दोनों सामान हैं।

अब बात करते है योनि शब्द पर-
मनुष्ययोनि ”पशुयोनी”पेड़-पौधों की योनी’जीव-जंतु योनि
योनि का संस्कृत में प्रादुर्भाव ,प्रकटीकरण अर्थ होता है….जीव अपने कर्म के अनुसार विभिन्न योनियों में जन्म लेता है। किन्तु कुछ धर्मों में पुर्जन्म की मान्यता नहीं है नासमझ बेचारे। इसीलिए योनि शब्द के संस्कृत अर्थ को नहीं जानते हैं। जबकी हिंदू धर्म मे 84 लाख योनि बताई जाती है।यानी 84 लाख प्रकार के जन्म हैं। अब तो वैज्ञानिकों ने भी मान लिया है कि धरती में 84 लाख प्रकार के जीव (पेड़, कीट,जानवर,मनुष्य आदि) है।

मनुष्य योनि
पुरुष और स्त्री दोनों को मिलाकर मनुष्य योनि होता है।अकेले स्त्री या अकेले पुरुष के लिए मनुष्य योनि शब्द का प्रयोग संस्कृत में नहीं होता है। तो कुल मिलकर अर्थ यह है:-

लिंग का तात्पर्य प्रतीक से है शिवलिंग का मतलब है पवित्रता का प्रतीक ।
दीपक की प्रतिमा बनाये जाने से इस की शुरुआत हुई , बहुत से हठ योगी दीपशिखा पर ध्यान लगाते हैं । हवा में दीपक की ज्योति टिमटिमा जाती है और स्थिर ध्यान लगाने की प्रक्रिया में अवरोध उत्पन्न करती है। इसलिए दीपक की प्रतिमा स्वरूप शिवलिंग का निर्माण किया गया। ताकि निर्विघ्न एकाग्र होकर ध्यान लग सके । लेकिन कुछ विकृत मुग़ल काल व गंदी मानसिकता बाले गोरे अंग्रेजों के गंदे दिमागों ने इस में गुप्तांगो की कल्पना कर ली और झूठी कुत्सित कहानियां बना ली और इसके पीछे के रहस्य की जानकारी न होने के कारण अनभिज्ञ भोले हिन्दुओं को भ्रमित किया गया ।
आज भी बहुतायत हिन्दू इस दिव्य ज्ञान से अनभिज्ञ है।
हिन्दू सनातन धर्म व उसके त्यौहार विज्ञान पर आधारित है।जोकि हमारे पूर्वजों ,संतों ,ऋषियों-मुनियों तपस्वीयों की देन है।आज विज्ञान भी हमारी हिन्दू संस्कृति की अदभुत हिन्दू संस्कृति व इसके रहस्यों को सराहनीय दृष्टि से देखता है व उसके ऊपर रिसर्च कर रहा है।
[सामान्यतः भोजन न लेने को उपवास कहा जाता है जबकि भोजन न लेने से ” उपवास ” का कोई संबध नहीं है ।जिस तरह भोजन करके कुछ समय पश्चात पुनः खाने को ” अध्यशन ” कहते हैं और भोजन का समय व्यतीत हो जाने पर भोजन करने को ” विषमाशन ” कहते है उसी तरह भोजन न करने को ” अनशन ” कहते हैं ।”उपवास ” शब्द का अर्थ है स्वयं के पास बैठना ।जो अपने भीतर विराजमान है वह ” उपवासा ” कहलाता है और जो अपने भीतर विराजमान हो गया वह भोजन करते हुए भी भोजन नही करता क्योकि भोजन तो शरीर में ही जाता है ,वह चलते हुए भी चलता नही क्योंकि चलता तो शरीर है वह तो साक्षी बना रहता है।दरअसल यह उस भोजन का न लेना है जो मनुष्य अन्य इन्द्रियों से ग्रहण करता है ।उपवास की सार्थकता तभी है जब हम शरीर, इन्द्रिय, मन,बुद्धि से किसी बाहरी और संसारी तत्व को न ग्रहण करते हुए प्रतिपल- प्रतिक्षण ईश्वर की महिमा का चिन्तन करें ।जब कोई व्यक्ति संसार के किसी भी विषय से प्रभावित हुए बिना अपने अन्दर स्थित हो जाता है तब वह ” उपवासा ” कहलाता है।
[ मिस डेनमार्क, जो एक भक्तिन बन गए

सातारुपा दासी :

मैं मिस डेनमार्क बन गई, और इस प्रकार मुझे एक मॉडल के रूप में करियर के लिए प्रेरित किया गया. मैं लंदन और पेरिस में सबसे महंगी मॉडल बन गई और मैं वोग, एले, मैरी क्लेयर के लिए हर एक दिन काम कर रहा थी. 1974 में, मेरे पास पेरिस मैच का एक कवर आया था, जो एक बड़ा अखबार है, और यह 24 देशों में मेरी साड़ी वाली तस्वीर के कवर के साथ बेचा गया और लाइन लिखी गई थी “मैंने कृष्ण के लिए सब कुछ छोड़ दिया.” उस अखबार के अंदर चार कागजों में लिखा गया था – मैं देवताओं के सामने माला बना रही थी, तुलसी के चारों ओर नृत्य कर रही थी, एफिल टॉवर के सामने हरिनाम का नृत्य और जप कर रही थी. तो जब पेरिस मैच अखबार की खबर सामने आई, तो उन्होंने इस अखबार को प्रभुपाद जी को बॉम्बे भेज दिया, जहां उन्होंने एक सप्ताह के लिए इसे अपने डेस्क पर रखा था. वह आने वाले लोगों से कहते, “उसने कृष्ण के लिए सब कुछ छोड़ दिया, अब आपको भी यही करना चाहिए।” प्रभुपाद जी इस तरह उपदेश देते रहें.

Miss #Denmark, who became a #devotee

Satarupa dasi :

I became Miss Denmark, and that propelled me to a career as a model. I became the most expensive model in #London and #Paris and I was working every single day for Vogue, Elle, Marie Claire. In 1974, I had a cover of Paris Match, which is a big newspaper, and it was sold in 24 countries with my cover with a sari on and the line was “I left everything for Krishna.”There were four pages inside – me making garlands in front of the Deities, dancing around Tulasi, dancing and chanting Harinama in front of the Eiffel Tower. So when Paris Match came out, of course they sent it to Prabhupada in #Bombay, where he had it on his desk for one week. He would say to the people coming, “She gave up everything for Krishna, now you should do the same thing.” Prabhupada would be preaching like that.

हरे कृष्ण हरे कृष्ण
कृष्ण कृष्ण हरे हरे

हरे राम हरे राम
राम राम हरे हरे

HARE KRISHNA HARE KRISHNA
KRISHNA KRISHNA HARE HARE

HARE RAMA HARE RAMA
RAMA RAMA HARE HARE can see pic 📷…. In pics 🌆🏜🌠..
[ आओ देखे समस्या कहां है*
कुछ समझने की कोशिश करें
*#बलात्कार अचानक इस देश मे क्यो बढ़ गए ?

  • कुछ उद्धरण से समझते हैं
    1) लोग कहते हैं कि #रेप क्यों होता है ? एक 8 साल का लडका सिनेमाघर मे राजा हरिशचन्द्र फिल्म देखने गया और फिल्म से प्रेरित होकर उसने सत्य का मार्ग चुना और वो बडा होकर महान व्यक्तित्व से जाना गया । #परन्तुआज 8 साल का लडका #टीवी पर क्या देखता है ? सिर्फ #नंगापन और #अश्लील वीडियो और #फोटो ,मैग्जीन मेंअर्धनग्न फोटो ,पडोस मे रहने वाली भाभी के छोटे कपडे !! लोग कहते हैं कि रेप का कारण बच्चों की #मानसिकता है । पर वो मानसिकता आई कहा से ? उसके जिम्मेदार कहीं न कहीं हम खुद जिम्मेदार है । कयोकि हम #joint family नही रहते । हम अकेले रहना पसंद करते हैं । और अपना परिवार चलाने के लिये माता पिता को बच्चों को अकेला छोड़कर काम पर जाना है । और बच्चे अपना अकेलापन दूर करने के लिये #टीवी और#इन्टरनेट का सहारा लेते हैं । और उनको देखने के लिए क्या मिलता है सिर्फ वही #अश्लील##वीडियो और #फोटो तो वो क्या सीखेंगे यही सब कुछ ना ? अगर वही बच्चा अकेला न रहकर अपने दादा दादी के साथ रहे तो कुछ अच्छे संस्कार सीखेगा । कुछ हद तक ये भी जिम्मेदार है । 2) पूरा देश रेप पर उबल रहा है, छोटी छोटी बच्चियो से जो दरिंदगी हो रही उस पर सबके मन मे गुस्सा है, कोई सरकार को कोस रहा, कोई समाज को तो कई feminist सारे लड़को को बलात्कारी घोषित कर चुकी है ! लेकिन आप सुबह से रात तक कई बार sunny leon के कंडोम के add देखते है ..!! फिर दूसरे add में रणवीर सिंह शैम्पू के ऐड में लड़की पटाने के तरीके बताता है ..!! ऐसे ही Close up, लिम्का, Thumsup भी दिखाता है#लेकिनतबआपकोगुस्सानहीआता है, है ना ? आप अपने छोटे बच्चों के साथ music चैनल पर सुनते हैं दारू बदनाम कर दी , कुंडी मत खड़काओ राजा, मुन्नी बदनाम , चिकनी चमेली, झण्डू बाम , तेरे साथ करूँगा गन्दी बात, और न जाने ऐसी कितनी मूवीज गाने देखते सुनते है #तब आपकोगुस्सानहीआता ?? मम्मी बच्चों के साथ Star Plus, जी TV, सोनी TV देखती है जिसमें एक्टर और एक्ट्रेस सुहाग रात मनाते है । किस करते है । आँखो में आँखे डालते है और तो और भाभीजी घर पर है, जीजाजी छत पर है, टप्पू के पापा और बबिता जिसमे एक व्यक्ति दूसरे की पत्नी के पीछे घूमता लार टपकता नज़र आएगा पूरे परिवार के साथ देखते है ।- #इनसबserialकोदेखकरआपकोगुस्सानहीआता?? फिल्म्स आती है जिसमे किस (चुम्बन, आलिंगन), रोमांस से लेकर गंदी कॉमेडी आदि सब कुछ दिखाया जाता है । पर आप बड़े मजे लेकर देखते है इनसबकोदेखकरआपकोगुस्सानहीआता ?? खुलेआम TV- फिल्म वाले आपके बच्चों को बलात्कारी बनाते है, उनके कोमल मन मे जहर घोलते है । #तबआपकोगुस्सानहीआता ? क्योकि आपको लगता है कि रेप रोकना सरकार की जिम्मेदारी है । पुलिस, प्रशासन, न्यायव्यवस्था की जिम्मेदारी है …. लेकिन क्या समाज, मीडिया की कोई जिम्मेदारी नही । अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की आड़ में कुछ भी परोस दोगे क्या ? आप तो अखबार पढ़कर, News देखकर बस गुस्सा निकालेंगे, कोसेंगे सिस्टम को, सरकार को, पुलिस को, प्रशासन को , DP बदल लेंगे, सोशल मीडिया पे खूब हल्ला मचाएंगे, बहुत ज्यादा हुआ तो कैंडल मार्च या धरना कर लेंगे लेकिन…. TV, चैनल्स, वालीवुड, मीडिया को कुछ नही कहेंगे । क्योकि वो आपके मनोरंजन के लिए है । सच पुछिऐ तो TV Channels अशलीलता परोस रहे है … पाखंड परोस रहे है , झूंठे विषज्ञापन परोस रहे है , झूंठेऔर सत्य से परे ज्योतिषी पाखंड से भरी कहानियां एवं मंत्र , ताबीज आदि परोस रहै है । उनकी भी गलती नही है, कयोंकि आप खरीददार हो …..?? बाबा बंगाली, तांत्रिक बाबा, स्त्री वशीकरण के जाल में खुद फंसते हो । 3) अभी टीवी का खबरिया चैनल मंदसौर के गैंगरेप की घटना पर समाचार चला रहा है | जैसे ही ब्रेक आये : पहला विज्ञापन बोडी स्प्रे का जिसमे लड़की आसमान से गिरती है , दूसरा कंडोम का , तीसरा नेहा स्वाहा-स्नेहा स्वाहा वाला , और चौथा प्रेगनेंसी चेक करने वाले मशीन का…… जब हर विज्ञापन, हर फिल्म में नारी को केवल भोग की वस्तु समझा जाएगा तो बलात्कार के ऐसे मामलों को बढ़ावा मिलना निश्चित है …… क्योंकि “हादसा एक दम नहीं होता, वक़्त करता है परवरिश बरसों….!” ऐसी निंदनीय घटनाओं के पीछे निश्चित तौर पर भी बाजारवाद ही ज़िम्मेदार है .. 4) आज सोशल मीडिया इंटरनेट और फिल्मों में @पोर्न परोसा जा रहा है । तो बच्चे तो बलात्कारी ही बनेंगे ना 😢😢😢 ध्यान रहे समाज और मीडिया को बदले बिना ये आपके कठोर सख्त कानून कितने ही बना लीजिए । ये घटनाएं नही रुकने वाली है । इंतज़ार कीजिये बहुत जल्द आपको फिर केंडल मार्च निकालने का अवसर हमारा स्वछंद समाज, बाजारू मीडिया और गंदगी से भरा सोशल मिडीया देने वाला है । अगर अब भी आप बदलने की शुरुआत नही करते हैं तो समझिए कि ……फिर कोई भारत की बेटी निर्भया गीता दिव्या संस्कृति की तरह बर्बाद होने वाली. : वजन घटाने में लाभप्रद नारियल

नारियल में कोलेस्ट्रॉल तथा वासा (फैट) नहीं होता है इसीलिए मोटापा कम करने नारियल बहुत फायदेमंद होता है। मोटापे से पीड़ित लोगो को नारियल का सेवन अधिक करना चाहिये

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: बेहद खतरनाक हो सकती हैं ये 5 दवाइयां

1. नींद की गोलियां में होता है ड्रग :- आमतौर पर नींद की गोलियां अत्यधिक नशीली होती हैं. हमारे दिमाग की हरकातों पर प्रभाव डालती हैं. यह दवाई मनुष्‍य की पूरी दिनचर्या को खराब कर देती है. साथ ही लगातार यह दवाई खाने से शरीर पर धीरे-धीरे इसका प्रभाव कम होने लगता है, जिससे हाई डोज़ की दवाई खानी पड़ जाती है. 

2. नेचुरल डाइजेशन को बिगाड़ सकती है ऐन्टैसड / ऐन्टैसिड :- यह दवाई जो आप पेट खराब होने पर लेते हैं, आपको फायदे की जगह पर नुकसान पहुंचा सकती है. इसको अगर कभी-कभी लिया गया तो ठीक वरना यह आपके नेचुरल डाइजेशन को खराब कर सकती है. फिर आपका शरीर जरुरी पोषक तत्‍व को ठीक से ग्रहण नहीं कर पाएगा, जिससे किडनी में स्‍टोन, पाइल्‍स और पेट का अल्‍सर होने की संभावना होती है.

3. कोल्ड की मेडीसिन हो सकती है खतरनाक :- आमतौर पर सारी ही सर्दी और जुखाम की दवाइयां बच्‍चों के लिये खतरनाक होती हैं. यह फेफडो़ को प्रभावित करती हैं.

4. सिरदर्द की दवा से रहें बचकर :- हो सकता है कि इन दवाओं को खाने से तुरंत राहत मिल जाए लेकिन यह दवाएं आगे चल कर बहुत परेशानी खड़ी कर सकती हैं. इसलिये कोशिश कीजिये कि दवा ना खाएं और सिर की मसाज ले लें.

5. डिप्रेशन की दवा के हैं कई साइडइफेक्ट :- इस दवा के भी कई खतरनाक साइड इफेक्‍ट होते हैं. यह दवाई मस्तिष्क के एक क्षेत्र पर प्रभाव डालती है जो कि सेरोटोनिन और ग्‍लूकोज लेवल को नियंत्रित करता है.

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[अच्छी नींद पाने के पांच घरेलू नुस्खे,
अच्छे खान-पान के साथ ही ये भी बेहद जरूरी है कि आप अच्छी नींद लें. नींद नहीं पूरी होने पर एक ओर जहां इंसान के स्वभाव पर असर पड़ता है वहीं उसकी सेहत पर भी बुरा असर होता है.

ऐसे में स्वस्थ जीवन जीने के लिए जरूरी है कि एक इंसान अच्छे पोषण के साथ ही अच्छी नींद भी ले. नींद केवल शारीरिक नहीं बल्क‍ि मानसिक जरूरत भी है.

कई लोग ऐसे होते हैं जो बिस्तर पर जाते ही सो जाते हैं पर कुछ ऐसे भी होते हैं जिन्हें नींद न आने, बेचैन रहने जैसी समस्याएं होती हैं. ऐसे लोग सोना तो चाहते हैं लेकिन किन्हीं कारणों से न तो उनकी नींद पूरी हो पाती है और न ही वो चैन की नींद ले पाते हैं. कच्ची नींद होने की कई वजहें हो सकती हैं.

ऐसी स्थिति में सबसे पहले डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए. यदि डॉक्टर इस बात के लिए आश्वस्त कर दे कि आपको कोई गंभीर बीमारी नहीं है तो निश्चित तौर इसकी वजह आपका लाइफस्टाइल होगा.

आजकल के अति व्यस्त लाइफस्टाइल में स्वस्थ रहना किसी चुनौती से कम नहीं है और अगर आपकी नींद भी पूरी नहीं हो रही है तो आगे चलकर ये आपके लिए गंभीर समस्या बन सकती है. ऐसे में ये कुछ बातें आपको अच्छी नींद लेने में मदद करेंगी:

  1. चेरी
    चेरी में प्रचुर मात्रा में मेलाटोनिन होता है जोकि शरीर के आंतरिक चक्र को नियमित करने में मदद करता है. एक्सपर्ट्स मानते हैं कि सोने से पहले एक मुट्ठी चेरी का सेवन अच्छी नींद लेने में मददगार साबित होता है. चेरी को जूस के रूप में भी लिया जा सकता है या फिर फ्रेश चेरी नहीं मिलने पर फ्रोजन चेरी भी फायदेमंद साबित होगी.
  2. दूध
    रात को बिस्तर पर जाने से पहले एक गिलास गर्म दूध पीना काफी फायदेमंद हो सकता है. दूध में मौजूद Tryptophan और serotonin अच्छी नींद लेने में मददगार होता है. साथ ही दूध कैल्शि‍यम का भी एक अच्छा स्त्रोत है. दूध तनाव दूर करने में भी सहायक होता है.
  3. केला
    केले में ऐसे तत्व पाए जाते हैं जो मांस-पेशि‍यों को तनावमुक्त करते हैं . इसमें मौजूद मैग्न‍िशि‍यम और पोटैशि‍यम अच्छी नींद को बढ़ावा देते हैं. साथ ही ये विटामिन बी6 का भी एक अच्छा माध्यम है जो सोने से जुड़े हार्मोन्स के स्त्रावण में सक्रिय भूमिका निभाते हैं.
  4. बादाम
    केले की तरह बादाम भी मैग्न‍िशयिम का बहुत अचछा स्त्रोत है. ये नींद को बढ़ावा देने के साथ ही मांस-पेशि‍यों में होने वाले खिंचाव और तनाव को कम करता है. जिससे चैन की नींद लेना आसान हो जाता है.
  5. हर्बल चाय
    अच्छी नींद के लिए कैफीन और एल्कोहोल से परहेज करना ही बेहतर है लेकिन अगर आप रात को सोने से पहले हर्बल चाय पीते हैं तो आप अपने लिए एक अच्छीनींद का इंतेजाम कर लेते हैं.

कुछ अन्य महत्वपूर्ण टिप्स:-

  • रात को सोने से पहले तलवे पर सरसो के तेल की मालिश से भी अच्छी नींद आती है और दिमाग शांत होता है.
  • रात को सोने से पहले अच्छी तरह अपने हाथ-पैर साफ कर लें. साथ ही ये भी निश्च‍ित कर लें कि आपके सोने की जगह साफ-सुथरी हो.
  • संगीत सुनते हुए सोने या किताब पढ़ते हुए सोने से भी अच्छी नींद आती है.
  • अपने दिमाग को शांत करें और सकारातमक सोच के साथ पलंग पर जाएं.

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[भयंकर माइग्रेन इसके इलाज के लिए प्राकृतिक घरेलू नुस्खे
वैसे तो सिरदर्द एक सामान्य बीमारी है जो जल्द ही ठीक हो जाता है लेकिन माइग्रेन से होने वाला सिर दर्द असहनीय होता है।
मस्तिष्क संबंधी विकार माइग्रेन सिर दर्द के मुख्य कारणों में एक हैं।
ध्वनि, प्रकाश, उल्टियाँ और सिर के केंद्र में होने वाला दर्द इसके प्रमुख लक्षण हैं।

माइग्रेन से होने वाले दर्द की रोक-थाम के लिए कुछ घरेलू नुस्खे>>

पुदीने का तेल-
इस तेल में एंटी इंफ्लैमटरी गुण होते हैं जो सिर दर्द में आपको राहत दे सकते हैं। इसकी कुछ बूंदे जीभ पर रखने और कुछ अपने सिर पर लगा कर मालिश करने से माइग्रेन से आराम मिलता है।

आराम करें-
ध्यान सिर दर्द को दूर करने में काफी कारगर होता है। माइग्रेन के इलाज के लिए ध्यान करना सबसे अच्छा तरीका होगा।

बर्फ का पैक-
बर्फ के टुकड़े एक पैक में लेकर सिर दर्द की जगह पर रखें। बर्फ में एंटी इंफ्लैमटरी गुण होते है जिससे सिर का दर्द ठीक हो सकता है। आप चाहें तो किसी और ठंडी चीज़ का पैक भी बना सकते है।

विटामिन-बी का सेवन-
मस्तिष्क विकार जो माइग्रेन का मुख्य कारण होता है, अकसर विटामिन बी की कमी से पैदा होते हैं। विटामिन बी युक्त पदार्थों का सेवन करने से सिर दर्द से राहत मिल सकती है। माइग्रेन से बचने के लिए अपने भोजन में विटामिन बी युक्त पदार्थ शामिल करें।

जड़ी बूटियों का उपयोग-
कैफीन युक्त पदार्थ जैसे चाय या कॉफ़ी पीने से भी माइग्रेन में राहत मिलती है। सिर दर्द में बाम को प्रयोग में लाएं। सिर पर बाम की हलकी मसाज देने पर रक्त संचार सामान्य हो जाता है तथा माइग्रेन से आराम मिलता है।

कमरे में अंधेरा करना-
अक्सर तेज़ रोशनी से सिर का दर्द बढ़ जाता है। इस कारण अँधेरे और शांत कमरे में बैठने से भी माइग्रेन ठीक होता है।

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व्यक्ति को केवल रोटी कपड़ा मकान और वाहनादि मिल जाए , तो इतने से उसका जीवन पूरा सुखमय नहीं हो जाता। क्योंकि व्यक्ति केवल शरीर का नाम नहीं है । उसमें एक चेतन आत्मा भी है । चेतन आत्मा के सिद्धांत को संसार के लोग मोटे तौर पर तो स्वीकार करते हैं , क्योंकि इसके बिना जीने मरने की परिभाषा नहीं बन पाती ।
परंतु फिर भी वे गहराई से आत्मा को स्वीकार नहीं कर पाते , कि आत्मा एक नित्य पदार्थ है । जो कर्म करता है । वह इस जन्म तथा अगले जन्मों में अपने कर्मों का फल भोगता है। इस प्रकार से आत्मा के विषय में कुछ अधिक गहराई से लोग नहीं सोचते ।
इस विषय में भी अवश्य सोचना चाहिए। क्योंकि व्यक्ति वास्तव में , स्वयं तो आत्मा ही है. शरीर तो उसका साधन मात्र है। कर्म करने और फल भोगने का एक माध्यम मात्र है। असली तत्त्व तो आत्मा ही है ।
इसलिए अपनी अर्थात आत्मा की उन्नति के लिए हमें आपको प्रतिदिन कम से कम एक घंटा स्वाध्याय के लिए समय अवश्य ही निकालना चाहिए। तभी जीवन समझ में आएगा।
वेद और ऋषियों के शास्त्रों को पढ़ें । वहां से आपको आत्मा के विषय में सही जानकारी मिलेगी। क्योंकि इन शास्त्रों में ही पूर्ण सत्य है। तो एक घंटा प्रतिदिन स्वाध्याय के लिए निकालें। अपने परिवार की समस्याएं सुलझाने के लिए भी एक घंटा , परिवार के सदस्यों के साथ बैठें। उनके सुख दुख को बाँटें। उनकी समस्याएं सुलझाएं ।
तथा एक घंटा अपने मित्रों के लिए भी समय निकालें । उनके साथ भी कुछ बातचीत करने से आपका आनंद बढ़ेगा
वृक्षादि में जीवात्मा ??

जीवात्मा इतना सूक्ष्म है कि उसे गर्भ में प्रवेश करने के लिये अन्न जल औषधि आदि माध्यम की आवश्यकता नहीं वह तो कहीं से भी गर्भ में प्रवेश कर सकता है। आत्मा के गर्भ में प्रवेश करने से पूर्व रज वीर्य में गति कहाँ से आती है ? रज वीर्य के संयोग के बाद शरीर निर्माण में गति कैसे आती है ? जैसे रज वीर्य में बिन आत्मा के जीवन होता है गति होती है वैसे ही पेड पौधों में बिन आत्मा के जीवन होता है । वह जीवन विश्वगत चेतन सत्ता परमात्मा के कारण होता है । यदि रज वीर्य में भी आत्मा मानोगे तो क्या वे करोड़ों अरबों आत्मायें वीर्य स्खलन के बाद झट से आ कर शुक्राणुओं में प्रवेश कर जाती हैं या पहले से ही अण्डकोषों में पडी होती हैं ? शुक्राणुओं में रह कर ये करोड़ों आत्मायें किन कर्मों का फल भुगत रही हैं ? सन्तान उत्पत्ति में तो एक ही शुक्राणु काम आता है शेष करोड़ों मर जाते हैं उनकी आत्माओं का क्या होता है कैसे वह शरीर से बाहर आती हैं ? वास्तव में ये सब बेहूदा काल्पनिक बातें हैं । सच्चाई यह है कि बिन आत्मा के ही इनमें जीवन होता है और बिन आत्मा के ही पेड पौधों में जीवन होता है । यह आवश्यक नहीं कि जहाँ जीवन हो गति हो वहां आत्मा भी हो । मृत्यु पश्चात शरीर के कई अंगों में महीनों तक जीवन बना रह सकता है , अमीबा के हजार टुकड़े कर दो सभी टुकड़े तुरंत एक पूर्ण अमीबा की तरह गति करने लगते हैं , अब कोई कहे कि उन सबमें तुरंत आत्मायें प्रवेश कर जाती हैं तो यह हास्यास्पद है, हठ दुराग्रह व पूर्वाग्रह के अतिरिक्त कुछ नहीं । कोई वेद मंत्र वा श्लोक यह सिद्ध नहीं करता कि पेड पौधों औषधियों व शुक्राणुओं में आत्मा होती है । उसका मात्र इतना ही अभिप्राय है कि वे जीवन्त हैं, जीवन देने वाली हैं। आचार्य विश्वबन्धु शास्त्री अपनी पुस्तक ‘वृक्षों में जीव नहीं’ में लिखते हैं — जीवलां नघारिषां जीवन्तीमोषधीमहम् ( अथर्ववेद 8.7.6) मंत्र में जीवन्ती औषधि का नाम है । वह लिखते हैं -“जीवलां” शब्द का अर्थ जीवन प्रदान करने वाली है , और यह शब्द जीवन्तीम् का विशेषण है । जीवन्ती नाम की औषधि है जो कि वैद्यों में प्रसिद्ध है । आगे भावप्रकाश का श्लोक प्रस्तुत करके उसका अर्थ लिखते हैं कि जीवन्ती औषधि जीवन प्रदान करती है इसलिए उसका नाम जीवन्ती है । वह जीव वाली है , यह काल्पनिक अर्थ है क्योंकि प्रसिद्ध अर्थ को छोड़कर काल्पनिक अर्थ को ग्रहण करना प्रमाण के अभाव में स्वीकार नहीं किया जा सकता , क्योंकि – योगाद् रुढ़ि वलीयसि । दूसरी बात यह भी है कि यौगिक अर्थ से जीव प्राणने धातु से निष्पन्न जीवन्ती शब्द प्राणप्रद इस अर्थ से ही जाना जाता है , भिन्न अर्थ में नहीं । दोनों प्रकार से जीवन्ती शब्द औषधि विशेष में पाया जाने से योग रुढ़ि हो गया ।औषधि जीवनदात्री , जीवनदायी , जीवनप्रद होती है यह तो निर्विवाद है परन्तु जीव वाली या जीव रखती है यह अर्थ करना गलत है । वेदमंत्रों के अर्थ यदि तर्क की कसौटी पर खरे नहीं उतरते तो उन पर पुनः विचार करने की आवश्यकता है । हो सकता है भाष्यकार पूर्वाग्रह से ग्रस्त व जीव विज्ञान से अनभिज्ञ हों । वृक्षों में जीवात्मा नहीं इसको केवल वैदिक विद्वान डा सत्यव्रत सिद्धांतालकार जी ने ही नहीं नकारा अपितु आर्यसमाज के अन्य ऋषिभक्त तर्क शिरोमणी स्वामी दर्शनानंद, डा गंगाप्रसाद उपाध्याय, रामदयालु शास्त्री,आचार्य विष्वबन्धु आदि ने भी नकारा है । इन विद्वानों को ऋषि विरोधी व वेदविरोधी कहना उचित नहीं होगा । विरोधी मत वाले विद्वानों के प्रति हमारा पूरा सम्मान है परन्तु उनसे हम सहमत हों यह आवश्यक नहीं । मनन चिन्तन के पश्चात् जो अन्तरात्मा कहे उसे स्वीकार करना हमें अभिष्ट है ।

  • संक्षेप मेें वृक्षादि में जीवात्मा सिद्ध नहीं होती क्योंकि -*

१. उनमें जीवात्मा के छ: लक्षण सुख दुख ईच्छा द्वेष प्रयत्न ज्ञान सिद्ध नहीं होते । 

२. इसमें किसी वेदमंत्र का स्पष्ट प्रमाण नहीं । कोई भी मंत्र वा श्लोक तभी मान्य हो सकता है यदि वह तर्क की कसौटी पर खरा उतरता हो ।

३. वृक्ष कोई योनि नहीं अपितु अन्य जातियों की तरह मात्र एक जाति है ।

४. मनु का यह कहना सत्य नहीं कि वृक्षादि अत्यंत तामसिक लोगों को दण्ड देने के लिये वर्षों तक गहन निद्रा में पडे रहने की योनियां हैं । मनुष्यों को तो चौबीस घंटों में दो घंटे की सुषुप्ति नसीब नहीं और इन वृक्षों को सैंकड़ों सालों की सुषुप्ति का आनन्द !! पालक के पौधों को दो दो माह की सुषुप्ति का आनन्द !! यह कैसा दण्ड ?

५.. मनुस्मृति में बहुत क्षेपक हैं, इसके पहले अध्याय में स्त्री के पेट से वृक्ष आदि का उत्पन्न होना लिखा है , १२.४८ में नक्षत्र को योनि कहा है, ऐसे ही गुणों के आधार पर योनियों का विभाजन कल्पना मात्र है । सम्भव है महर्षि दयानंद जी ने मात्र पुनर्जन्म को सिद्ध करने के लिये इन श्लोकों का उल्लेख किया हो ।

६.स्थावर योनि नहीं वह तो सृष्टि के दो भेद हैं – चर और अचर अथवा स्थावर और जंगम ।

७. वृक्षादि में जीव मानोगे तो उनके काटने खाने से पाप लगेगा, मांसाहारियों को अपने तर्क वितर्क से संतुष्ट न कर पाओगे । यह दलील देना कि गाढ़ा निद्रा में होने से उनको कोई कष्ट नहीं होता सरासर गलत है। ऐसे लोगों से हमारा प्रश्न है कि यदि हम क्लोरोफॉर्म से बेहोश कर अथवा गहन निद्रा में सो रहे किसी आदमी या जानवर को मार दें तो पाप लगेगा या नहीं ?

८.अनेक ऋषिभक्त तर्क शिरोमणि वैदिक विद्वानों विशेषकर डा सत्यव्रत सिद्धातालंकार, पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय, रामदयालु शास्त्री, स्वामी दर्शनानंद, आचार्य विश्वबन्धु शास्त्री आदि ने वृक्षादि में जीव की सत्ता को नकारा है ।

९. वृक्षादि में जीवात्मा मानोगे तो घास के एक एक तिनके व हर पशु पक्षी व मनुष्य के वीर्य में मौजूद अरबों खरबों शुक्राणुओं में भी जीवात्मा को मानना होगा जो तर्क संगत नहीं है । One milliliter of seminal fluid contains 40 – 300 millions of sperms each having head, body and tail move fast towards the  ovum/egg. Only one succeed in fertilizing it rest dies. All these 40-300 million sperms with such unique shape and movement are with soul or without soul ? The average volume of semen produced during one ejaculation is 2-5 milliliters, accordingly the no of sperms will be 2-5 times ie up-to 1500 millions. If they are without souls then why can’t plants and tree ? If they are with souls then all these millions of souls enter the sperms after ejaculation or they were already stored in the seminal fluid ?

१०.वृक्षादि में जीव मानोगे तो उनके काटने खाने से पाप लगेगा । यह दलील देना कि बेहोशी व गाढ़ निद्रा में होने से उनको कोई कष्ट नहीं होता सरासर गलत है। ऐसे लोगों से हमारा प्रश्न है कि यदि हम क्लोरोफॉर्म से बेहोश कर अथवा गहन निद्रा में सो रहे किसी आदमी या जानवर को मार दें तो पाप लगेगा या नहीं ? पेड पौधे सुषुप्ति में होते तो छुई मुई का पौधा छूने से मुरझाता नहीं , म्यूज़िक का उन पर कोई प्रभाव न होता,  अपनी विशेष गन्ध व रचना विशेष के कारण क्रिया की बडी अजीब अजीब प्रतिक्रिया न करते । जीवात्मा के छ: लक्षण भी पेड पौधों पर घटित नहीं होते । पशु पक्षी व मनुष्य आदि प्राणियों की तुलना इनसे नहीं की जा सकती क्योंकि इनमें जीवात्मा के सभी लक्षण दृष्टिगोचर होते हैं । 

११. ज्ञान के तीन लक्षण अर्थात कृतु, अकृतु व अन्यथा कृतु पेड पौधों वनस्पतियों आदि में नहीं पाये जाते ।
🙏🌹हे गोविन्द हे गोपाल🌹🙏

  *भगवदियों के वचनानुसार हम इस संसार मे जो भी देते हैं वह भगवान से कई गुना होकर हमको वापस मिलता है ।भगवान को समय देंगे तो भगवान के पास भी हमारे लिए समय होगा ।*

 *जिस प्रकार सम्पति का दसवाँ भाग परोपकार में लगाओ तो सम्पति की शुद्धि होती है उसी प्रकार समय का भी दसवाँ भाग सेवा में लगाओ तो समय की भी शुद्धि होती है।*

*चौबीस घण्टे में से दस प्रतिशत मानवता की सेवा के लिए ,राष्ट्र की सेवा के लिए ,धर्म की सेवा के लिए ।समय का सदुपयोग करिए ।कुछ समय निकालकर सत्कर्म करिए ।*

जय श्री कृष्ण शुभ रात्रि मंगलम🙏🙏

आप सभी प्रभु भक्तों को सादर आभार नमन।
[संसार – बंधन — भाग 9 — सन् 2002
कल्याण पत्रिका ( चिदानंद सरस्वती जी )

भाव यह है कि विषय पदार्थ चाहे जितनी लंबी अवधि तक हमारे पास रहे , तथापि एक दिन तो वे जाएंगे ही , फिर या तो हमें उनको छोड़ कर चला जाना पड़ेगा अथवा अपनी अवधि आने पर वे ही हमें छोड़कर चले जाएंगे,,,, इस प्रकार विषय पदार्थों का वियोग निश्चित है ही, तथापि ममता के कारण मनुष्य उनको स्वेच्छा से नहीं छोड़ सकता । जब विषय पदार्थों का नाश होने से उनका वियोग होता है, तब मन को अत्यंत क्लेश भोगना पड़ता है । परंतु मनुष्य यदि अपनी इच्छा से ही उनको छोड़ सके इनके प्रति ममता को निर्मूल कर सके तो इससे उसको अनंत सुख की प्राप्ति होती है।
एक वीतराग पुरुष जीवन में ही सारे प्राणी पदार्थों से तथा अपने शरीर से आसक्ति हटा लेता है। और इस प्रकार वह अपने शरीर से तथा उसे प्राप्त होने वाले भोग पदार्थों से अलग हो जाता है ।एक संसारी पुरुष भोग पदार्थों में भी आ सकती नहीं छोड़ सकता तो फिर शरीर से उसकी आ सकती कैसे छूट सकती है । ,,,,परंतु उस आदमी को मरने के समय तो शरीर को छोड़ना ही पड़ता है। और शरीर के छूटते ही सारे विषय प्राणी पदार्थ जबरदस्ती छूट ही जाते हैं , परंतु उनमें आसक्ति रह जाने के कारण उनको फिर शरीर धारण करना पड़ता है । अब देखो शरीर और विषय प्राणी पदार्थों के साथ का जो संबंध तो दोनों के ही छूट जाते हैं परंतु छोड़ने के भाव में अंतर होने के कारण उसके फल में बहुत बड़ा अंतर पड़ जाता है।
संसार – बंधन –भाग 10 — सन् 2002
कल्याण पत्रिका ( चिदानंद सरस्वती जी )

ज्ञानी पुरुष जीते जी शरीर तथा उसके भोगों को समझ बूझकर स्वेच्छा से छोड़ देता है । और इसमें अनंत सुख मुक्ति या मोक्ष सुख को प्राप्त करता है,,,, और संसारी मनुष्य को विवश होकर जबरदस्ती सब कुछ छोड़ना पड़ता है ,,, इससे उसको त्याग का कुछ भी फल नहीं मिलता,,,, यही क्यों ?,,, विषयों में आसक्ति रह जाने के कारण उसका जन्म मरण का बंधन भी चालू रहता है,,,,*
यहां तक यह देखा गया कि जीव की कल्पना के सिवा संसार का दूसरा कोई स्वरूप नहीं और हमने यह भी निश्चय कर लिया कि जीव यदि ईश्वर की सृष्टि में ईश्वर की आज्ञा के अनुसार जीना सीख जाए और ईश्वर के प्राणी पदार्थों में ममता का संबंध ना बांधे तो उसके संबंध का बंधन का दूसरा कोई कारण नहीं है,,,,
अर्थात ईश्वर निर्मित यानी ईश्वर ने जिसकी रचना की है ऐसी सृष्टि कभी जीव के बंधन का कारण नहीं होती इतना ही नहीं बल्कि वह तो ज्ञान के साधन में बहुत ही उपयोगी है केवल विवेक दृष्टि खुलनी चाहिए ,,,,
बंधन यदि कराता है तो वह ईश्वर के प्राणी पदार्थों में ममत्व बांधकर कर उनको अपना मान कर खड़ा किया हुआ संसार है,,,, ” विश्राम”
Saakhi

एक राजा का फलों का बगीचा था जिसकी देख रेख एक किसान करता था, एक दिन किसान बगीचेे से अमरुद की एक टोकरी और बेर की एक टोकरी लेकर राजमहल गया। राजा किसी ख्याल में खोया हुआ था, किसान ने बेर की टोकरी सामने रख दी और बैठ गया, राजा खयालों खयालों में टोकरी में से बेर उठाता और किसान के माथे पे निशाना साधकर फेंक रहा था, बेर जब किसान के माथे पर लगता तो किसान कहता, ईश्वर तू बड़ा दयालु है। राजा ने किसान से कहा, मै बेर मार रहा हूँ फिर भी तुम कह रहे हो की ईश्वर बड़ा दयालु है, किसान बोला, मैं आपके लिए अमरुद की टोकरी ला रहा था लेकिन अचानक विचार बदल गया और आपके सामने बेर की टोकरी रख दी, यदि बेर की जगह अमरुद रखे होते तो आज मेरा हाल क्या होता इसीलिए मैं कह रहा हूं की ईश्वर बड़ा दयालु है, संगत जी, हमें भी हर हाल में सतगुरु और ईश्वर पर भरोसा रखना चाहिए क्योंकि वो जो भी करता है हमारे भले के लिए करता है
🌀जैसा सोच वैसा कर्म वैसा ही परिणाम 🌀

♻ जब हम सोचते हैं कि कोई काम हमसे नहीं होगा तो वह कभी भी नहीं होगा क्योंकि हर काम को करने के लिए Energy चाहिए और आप Energy स्वय Create करते हो, अपने Thoughts के द्वारा, किसी काम के प्रति आप Negative हैं,तो आपकी Energy Low है इसलिए वह कार्य आप कभी नहीं कर पाएंगे, सदा याद रखें जीवन Energy का खेल है स्थूल में दिखने वाली चीजें तो illusion हैं।“`

♻ परमात्मा कभी हमारा भाग्य नहीं लिखता वह केवल भाग्य लिखने का तरीका सिखाता है,भाग्य लिखने की कलम उसने हम सबको दी है, वह कलम है मन,मन में उठने वाले संकल्प ही सब कुछ हैं,या यूं कहें कि हमारा जीवन मन में उठने वाले संकल्पों का ही प्रतिबिंब है आप जैसा सोचते हैं,वैसा ही बोलते व करते हैं इसलिए इस मन रूपी कलम पर विशेष ध्यान रखें, किसी ने क्या खूब कहा है , मन को चलाओ तो आप राजा और यदि मन आपको चलाये तो आप रंक, सदा ध्यान रखें मन के जीते ही जगत जीत बना जा सकता है, दूसरों की जय से पहले खुद को जय करें,यह सब स्लोगन ऐसे ही नहीं बनाए गए इनमें सत्य छुपा है,उसे पहचाने और मन का मालिक बने न कि गुलाम

♻ सच्च के सामने सदा झूको और झूठ के आगे कभी नहीं, यही खुद को खुदा तक ले जाने का तरीका है।

♻ झूठ के आगे न झूकने का मतलब Revolt करना नहीं होता बल्कि उसे सुनते व देखते हुए भी उसे मन बुद्धि से अस्वीकार करना होता है।

♻ क्योंकि Revolt करने से अपनी, शान्ति , समय व शक्तियां नष्ट होती हैं इसलिए यदि आपको लगे कि कोई झूठ में लिप्त है और Dominate करने की कोशिश कर रहा है तो उसे ऐसा करने दें,क्योंकि जो हमारे समझाए नहीं समझता उसे वक्त समझाता है इसलिए ऐसी आत्मा के साथ बुद्धि का प्रयोग करें न कि बल का….✍️🌹🤗

💖 🙏 💖 ओम शांति 💖 🙏 💖

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[प्राचीन भारतीय शस्त्रास्त्रविद्या

    प्राचीन काल में कोई भी विषय जब विशिष्ट पद्धति से, विशिष्ट नियमों के आधार पर तार्किक दृष्टि से शुद्ध पद्धति से प्रस्तुत किया जाता था, तब उसे शास्त्र की संज्ञा प्राप्त होती थी । हमारे पूर्वजों ने पाककलाशास्त्र, चिकित्साशास्त्र, नाट्यशास्त्र, संगीतशास्त्र, चित्रशास्त्र, गंधशास्त्र इत्यादि अनेक शास्त्रों का अध्ययन किया दिखाई देता है । इन अनेक शास्त्रों में से शस्त्रास्त्रविद्या, एक शास्त्र है । पूर्वकाल में शल्यचिकित्सा के लिए ऐसे कुछ विशिष्ट शस्त्रों का उपयोग होता था । विजयादशमी के निमित्त से राजा और सामंत, सरदार अपने-अपने शस्त्र एवं उपकरण स्वच्छ कर पंक्ति में रखते हैं और उनकी पूजा करते हैं । इसी प्रकार कृषक और कारीगर अपने-अपने हल और हाथियारों की पूजा करते हैं । प्रस्तुत लेख द्वारा प्राचीन शस्त्रास्त्रों की जानकारी दे रहे हैं ।

१. धनुर्वेद

    शस्त्रास्त्र और युद्ध, रथ, घोडदल, व्यूहरचना आदि से संबंधित एकत्रित ज्ञान जहां मिलता है, उसे धनुर्विद्या कहते है ।

१ अ. धनुर्वेद के आचार्यों में परशुराम का स्थान महत्त्वपूर्ण है ।

१ आ. धनुर्वेद का चतुष्पाद :मुक्त, अमुक्त, मुक्तामुक्त और मंत्रमुक्त

१ इ. धनुर्वेद के उपांग : शब्द, स्पर्श, रूप, गंध, रस, दूर, चल, अदर्शन, पृष्ठ, स्थित, स्थिर, भ्रमण, प्रतिबिंब और लक्ष्यवेध ।

२. युद्ध के प्रकार

    मंत्रास्त्रोंद्वारा किया जानेवाला युद्ध दैविक, तोप अथवा बंदूकद्वारा किया जानेवाला युद्ध मायिक अथवा असुर और हाथ में शस्त्रास्त्र लेकर किया जानेवाला युद्ध मानव समझा जाता है ।

३. अस्त्रों के प्रकार

    दिव्य, नाग, मानुष और राक्षस

४. आयुध

    धर्मपूर्वक प्रजापालन, साधु-संतों की रक्षा और दुष्टों का निर्दालन; धनुर्वेद का प्रयोजन है ।

४ अ. धनुष्य

४ अ १. धनुष्य के प्रकार

अ. शार्ङ्ग : तीन स्थानोंपर मोडा धनुष्य

आ. वैणव : इंद्रधनुष्य जैसा मोडा धनुष्य

इ. शस्त्र : एक वितस्ति (१२ उंगलियों की चौडाई का अंतर, अर्थात १ वीता ।) मात्रा की बाणों को फेंकनेवाला, दो हाथ लंबा धनुष्य

ई. चाप : दो चाप लगाया धनुष्य

उ. दैविक, मानव और निकृष्ट :साडेपांच हाथ लंबा धनुष्य दैविक, चार हाथों का धनुष्य मानव और साडेतीन हाथों का धनुष्य निकृष्ट माना जाता है ।

ऊ. विविध धातुआें से बने धनुष्य : लोह, रजत, तांबा, काष्ठ

ए. धनुष्य की प्रत्यंचा : धनुष्य की प्रत्यंचा रेशम से वलयांकित होती है और वह हिरन, भैंस अथवा गाय के स्नायुआें से अथवा घास से बनायी जाती है । इसप्रत्यंचा में गाठ पडना कभी उचित नहीं होता ।

४ आ. बाण

४ आ १. बाण के प्रकार

अ. स्त्री : अग्रभाग मोटा और फैला होता है । बहुत दूर की लंबाईतक जा सकता है ।

आ. पुरुष : पृष्ठभाग मोटा और फैला होता है । दृढ लक्ष्यभेद करता है ।

इ. नपुंसक : एक जैसा होता है । सादा लक्ष्यभेद किया जाता है ।

ई. मुट्ठियों की संख्या से हुए प्रकार : १२ मुट्ठियों का बाण ज्येष्ठ, ११ मुट्ठियों के बाण को मध्यम, तो १० मुट्ठियों के बाण को निकृष्ट समझते हैं ।

उ. नाराच : जो बाण लोह से बनाए जाते हैं, उन्हें नाराच कहते है ।

ऊ. वैतस्तिक और नालीक :निकट के युद्ध में प्रयुक्त किए जानेवाले बाणों को वैतस्तिक कहते है । बहुत दूर के अथवा उंचाईपर स्थित लक्ष्य साध्य करने के लिए प्रयुक्त किए जानेवाले बाणों को नालीक कहते है ।

ए. खग : इसमें अग्निचूर्ण अथवा बारूद भरा होता है । बहती हवा में विशिष्ट पद्धति से फेंकनेपर लौट आता है ।

४ आ २. लक्ष्य के प्रकार : स्थिर, चल, चलाचल और द्वयचल

४ इ. चक्र

    सुदर्शनचक्र सौरशक्तिपर चलनेवाला चक्र था, जो लक्ष्यभेद कर चलानेवाले के पास लौटता था ।

४ इ १. चक्र के उपयोग : छेदन, भेदन, पतन, भ्रमण, शयन, विकर्तन और कर्तन

४ ई. कुन्त

    कुन्त अर्थात भाला । इसका दंड काष्ठ से, तो अग्रभाग धातु से बना होता है ।

४ उ. खड्ग

    अग्रपृथु, मूलपृथु, संक्षिप्तमध्य और समकाय

४ ऊ. छुरिका

    छुरिका अर्थात छुरी । इसे असिपुत्री भी कहते है ।

४ ए. गदा

    मृद्गर, स्थूण, परिघ इत्यादि प्रकार माने जाते है ।

४ ऐ. अन्य आयुध

    परशु, तोमर, पाश, वज्र

५. नियुद्ध

    युद्ध में जब सर्व शस्त्रास्त्र समाप्त हो जाते हैं, तब योद्धा हाथ-पैरों से युद्ध करते हैं । इसी को नियुद्ध कहते है ।

६. व्यूहरचना

    व्यूहरचनाद्वारा सेना की रक्षा की जाती है ।

७. दिव्यास्त्र

७ अ. दैविक : आकाशस्थ विद्युल्लता का उपयोग कर जो शक्ति बनायी जाती है, उसे दैविक कहते है ।

७ आ. मायायुद्ध : भुशुण्डी, नातीक इत्यादि आग्नेयास्त्रों से किए युद्ध को मायायुद्ध कहते है ।

७ इ. यंत्रमुक्त और मंत्रमुक्त आयुध : चतुर्विध आयुधों में यंत्रमुक्त और मंत्रमुक्त आयुधों की गणना धनुर्वेद के चौथे पाद में की दिखाई देती है ।

७ ई. अनिचूर्ण, अर्थात बारूद का प्रयोग प्राचीन काल से होता आ रहा है ।

७ उ. दिव्य अस्त्र प्राप्त करते समय बरतने की सावधानी : ये अस्त्र मंत्रों का उच्चारण कर सामनेवाले शत्रुपर छोडने होते हैं । इस हेतु मंत्रसिद्धी आवश्यक होती है । अत्यंत ज्ञानी और तपःपूत गुरु से इस मंत्र तथा इस अस्त्र के प्रयोग की यथासांग दीक्षा लेनी पडती है ।

८. तंत्रशास्त्र

    जारण, मारण, वशीकरण इत्यादि के लिए तंत्रशास्त्र विख्यात है । इन सभी को हम काला जादू (black-magic) कहते है ।

चतुर्थेश का अन्य भावों में फल
1 पहला घर -: जातक ग्रहों के प्रभाव में रहता है। ग्रह प्रबल हों तो जातक को समृद्धि मिलती है, वहीं ग्रह की सामान्‍य दशा होने पर जातक को औसत लाभ होता है एवं ग्रहों की कमजोर स्थिति जातक को गरीब बना देती है। जातक को सार्वजनिक रूप से बात करने में झिझक महसूस होती है। वह बुद्धिमान होता है।

2 दूसरा घर -: इन्‍हें अपनी माता के परिजनों से धन लाभ होता है। वह साहसी, सुखी और भाग्‍यशाली होते हैं। यह अत्‍यधिक फिजूलखर्चा करते हैं।

3 तीसरा घर -: यह जातक अपनी सौतेली माता एवं भाई से परेशान रहते हैं। यह दयालु एवं सैद्धांतिक होते हैं। यह अपनी किस्‍मत खुद बनाते हैं एवं इनका स्‍वास्‍थ्‍य ज्‍यादातर खराब ही रहता है।

4 चौथा घर -: इन जातकों को समृद्धि और सम्‍मान मिलता है। यह धार्मिक और परंपरागत होते हैं।

5 पांचवा घर -: यह भगवान विष्‍णु के उपासक होते हैं और सभी को प्रेम करते हैं। इनकी माता सम्‍मानित परिवार से होती हैं।

6 छठा घर -: यह जातक धोखेबाज और कपटी होता है। इनमें कई बुराईयां होती हैं।

7 सातवां घर -: इस घर के चिह्न पर ही जातक का निवास स्‍थान निर्भर करता है। गतिशील चिह्न होने की स्‍थिति में जातक को अपने घर से दूर जाकर काम करना पड़ता है। इनके पास अत्‍यधिक जमीन-जायदाद होती है और यह सुखमय जीवन बिताते हैं।

8 अष्‍टम् घर -: इनमें प्रजनन क्षमता बहुत कम होती है। इनके पिता की अल्‍पायु होती है। ये अत्‍यधिक तनाव में रहते हैं, संपत्ति का नुकसान और कानूनी मामलों में फंसे रहते हैं।

9 नवम् घर -: यह जातक और उनके पिता के पास संपत्ति, सम्‍मान और प्रतिष्‍ठा होती है। इन्‍हें हर तरह से लाभ होता है।

10 दसवां घर -: चौथे घर के स्‍वामी के प्रभावित होने पर जातक की प्रतिष्‍ठा का ह्रास होता है। इन्‍हें राजनीतिक सफलता मिलती है।

11 ग्‍यारहवां घर -: इन जातकों की माता अत्‍यंत सुख देती हैं, सौतेली मां के होने पर भी इन जातकों को समान प्रेम ही मिलता है। यह दयालु होते हैं। इनकी सेहत बिगड़ी रहती है एवं यह केवल अपने लिए कमाते हैं।

12 बारहवां घर -: इनका जीवन गरीबी और दुखों में बीतता है। इनकी माता की अल्‍पायु होती है।

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