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: मधुमेह के ज्योतिषीय कारण व निवारण

चिकित्सा विज्ञानानुसार यदि मानव शरीर में इन्सुलिन की कमी हो जाय तो उसे मधुमेह का रोग होता है। ज्योतिषीय दृष्टिकोण से शुक्र ग्रह को मूत्र का कारक माना गया है। मधुमेह रोग में शुगर मूत्र स्थान से बाहर निकलता है। अतः शुक्र से मधुमेह रोग का विचार किया जाता है। मीठे रस का कारक ग्रह गुरु होता है। अतः गुरु का भी विचार आवश्यक है। खाने-पीने की मीठी चीजें देखकर यदि मन काबू में नहीं रहता तो मन के कारक चंद्रमा का विचार भी करना चाहिये। मधुमेह रोग होने के योग – मधुमेह रोग मानव शरीर में पैंक्रियाज पर आधारित है। यदि पैंक्रियाज सही कार्यं नहीं कर रहा है तो मधुमेह होता है। पैंक्रियाज नाभि से ऊपर व दिल से नीचे होते हैं। इसलिये इन्हें जन्म कुंडली के पंचम भाव से देखा जाता है। नाभि व उदर का विचार छठे भाव से किया जाता है। मूत्रादि अंगों के सप्तम व अष्टम भाव भी विचार करना चाहिये। – जलीय राशि कर्क, वृश्चिक व मीन तथा शुक्र की राशि वृष व तुला को यदि दो या अधिक पापी ग्रहों ने पीड़ित कर रखा है तो इन लोगों को मधुमेह रोग होने की आशंका अधिक होती है। – जन्मकुंडली के छठे व आठवें भाव के पीड़ित होने, पाचन तंत्र की सिंह राशि के पीड़ित होने व मूत्र अंगों की वृश्चिक राशि के पीड़ित होने से मधुमेह रोग होता है। – छठे भाव में गुरु या शुक्र की स्थिति या मंगल-शुक्र की स्थिति इस बीमारी की ओर इशारा करती है। – गुरु कमजोर स्थिति में 6, 8 या 12 भाव में हो या अपनी नीच राशि में हो तो जातक को मधुमेह रोग की संभावना बनती है। – शुक्र छठे भाव में हो और गुरु 12वें भाव में हो तो भी मधुमेह रोग हो सकता है। – छठे भाव का स्वामी 12वें भाव में हो व द्वादशेश का संबंध गुरु से बन रहा हो तो भी मधुमेह रोग हो सकता है। – गुरु ग्रह कुंडली में शनि व राहु दोनों से पीड़ित हो। – गुरु ग्रह अस्त हो व राहु/केतु अक्ष पर हो। – गुरु ग्रह यदि राहु के नक्षत्र में हो और राहु से दृष्ट भी हो। – यदि गुरु व शनि की युति बहुत नजदीक अंशों पर हो रही हो अर्थात दोनों एक ही नवांश में हों। – यदि शुक्र व गुरु या चंद्र व गुरु पीड़ित हों। – जब गुरु ग्रह शनि की राशि में हो व अशुभ ग्रह से दृष्ट हो। – लग्न किसी अशुभ ग्रह से पीड़ित हो व गुरु भी पाप ग्रह से पीड़ित हो। – जब राहु का संबंध अष्टमेश से आठवें भाव में या त्रिकोण में बन रहा हो। – शनि का संबंध चंद्रमा से हो या शनि ही कर्क राशि में हो। – छठे व द्वादश भाव के स्वामियों का आपस में राशि परिवर्तन हो रहा हो। – पंचम या पंचमेश का संबंध यदि 6, 8, 12 भाव से बन रहा हो तो यह बीमारी हो सकती है। – कुल मिलाकर देखा जाये तो यदि शुक्र, गुरु व चंद्रमा दूषित हों तो मधुमेह का रोग होता है तथा 5, 6, 7, 8 भावों के अलावा सिंह, कन्या, तुला व वृश्चिक राशियों के दुष्प्रभाव में होने से मधुमेह व मूत्रांगों से संबंधित रोग लग जाते हैं। मधुमेह रोग ठीक करने के उपायः ऐसा देखा गया है कि गुरु के कारण हुये रोगों से मुक्ति की संभावना अधिक होती है। सूर्य व मंगल के कारण हुये रोग आंशिक रुप से दूर होते हैं। लेकिन शनि के कारण हुये रोगों का कोई इलाज नहीं होता। ज्योतिष ग्रंथों में कहा गया है कि मधुमेह से पीड़ित जातक को सदा गणेश जी की उपासना करनी चाहिये व उन्हें चढ़ाया गया भोग प्रसाद के रुप में ग्रहण करना चाहिये।उन्हें कैथ व जामुन का फल भोग के रुप में चढ़ाना चाहिए व स्वयं भी प्रसाद के रुप में ग्रहण करना चाहिये। इससे मधुमेह रोग में अवश्य आराम मिलता है। रात के समय दो चम्मच मेथी दाना एक गिलास पानी में डालकर रख दें। सुबह शौच जाने से पूर्व यह पानी पी लें और मेथी दाने भी चबा लें। इसके साथ ही बिना छीली लौकी को उबालने के पश्चात उसका आधा गिलास रस निकाल कर एक चुटकी पिसी काली मिर्च, एक चुटकी सौंठ, तुलसी, पुदीना और आधा गिलास पानी में मिलाकर भोजन के आधा घंटे बाद रोजाना एक बार पीते रहें। मधुमेह रोग ठीक होने लगेगा। जामुन के पत्ते, नीम की पत्तियां, बेल के पत्ते व तुलसी की पत्तियां इन सबको सुखा लें और इकट्ठा पीसकर रख लें। इसका एक चम्मच चूर्ण रोजाना सुबह खाली पेट लें। 10 दिन में ही असर दिखने लगेगा। सात आठ भिंडी को खडे़ चार हिस्सों में चीरकर एक गिलास पानी में रात को भिगो कर रख दें और सुबह उसी पानी में भिंडी को मसल दें व पानी को छानकर पी लें। ऐसा रोजाना करने से मधुमेह समाप्त होने लगेगा। सदा सुहागन जिसे ‘‘बारमासी’’ भी कहते हैं, उसके फूल दो प्रकार के होते हैं: सफेद व बैंगनी रंग के। सुबह के समय बैंगनी रंग के पांच फूल एक खाली कप में उबलते पानी में डाल दें। जब पानी पीने योग्य हो जाये तो फूलों को निचोड़कर पहले फूलों वाला पानी और उसके बाद सादा पानी पी लें। सात दिन यह पानी पियें और फिर सात दिन यह प्रयोग बंद कर दें। सवा दो महीने तक ऐसा करें। मधुमेह रोग का नामो-निशान भी नहीं मिलेगा। 16 शुक्रवार पूर्ण मन से किसी मंदिर या जरुरतमंद व्यक्ति को श्रद्धानुसार चावल का दान करें और शुक्र के मंत्रों की एक माला जाप रोजाना करें। इस उपाय से मधुमेह रोग जाने लगता है। प्रत्येक गुरुवार को श्रद्धानुसार पीली वस्तुओं का दान दें व गुरु के मंत्रों की एक माला जाप रोजाना करें। ‘सरपोरवा’ की जड़ सफेद रेशमी कपड़े में बांधकर पीड़ित व्यक्ति को अपनी दायीं भुजा पर धारण करनी चाहिये। कुछ दिनों में ही आराम मिलने लगता है। पुष्य नक्षत्र में जामुन इकट्ठा करें और फिर इनका सेवन रोज सुबह खाली पेट करें। इससे मधुमेह रोग ठीक होता है। रोजाना एक चम्मच करेले के चूर्ण को सुबह एक कप बिना चीनी वाले दूध के साथ सेवन करें। मधुमेह से आराम मिलता है। योग की जननमुद्रा में 30 मिनट रोजाना बैठने से मधुमेह रोग में लाभ मिलता है। इन सबके अतिरिक्त कम से कम 2 से 3 किलोमीटर रोजाना पैदल चलने की दिनचर्या अवश्य बनानी चाहिये।
: मन्त्रों की शक्तियां तथा उनका महत्त्व
“””””””””””””””””””””””””””””””””””””””””””””””””””””””
ऊर्जा अविनाशिता के नियमानुसार
ऊर्जा कभी भी नष्ट नहीं होती है, वरन् एक रूप से दूसरे
रूप में परिवर्तित होती रहती है। अतः जब हम
मंत्रों का उच्चारण करते हैं तो उससे उत्पन्न ध्वनि एक
ऊर्जा के रूप में ब्रह्मांड में प्रेषित होकर जब उसी प्रकार
की ऊर्जा से संयोग करती है तब हमें उस ऊर्जा में
छुपी शक्ति का आभास होने लगता है। ज्योतिषीय
संदर्भ में यह निर्विवाद सत्य है कि इस धरा पर रहने
वाले सभी प्राणियों पर ग्रहों का अवश्य प्रभाव
पड़ता है..चंद्रमा मन का कारक ग्रह है, और यह पृथ्वी के सबसे नजदीक होने के कारण खगोल में अपनी स्थिति के अनुसार मानव मन को अत्यधिक प्रभावित करता है। अतः इसके अनुसार जो मन का त्राण (दुःख) हरे उसे मंत्र कहते हैं.. मंत्रों में प्रयुक्त स्वर, व्यंजन, नाद व बिंदु देवताओं या शक्ति के विभिन्न रूप एवं
गुणों को प्रदर्शित करते हैं.. मंत्राक्षरों, नाद, बिंदुओं में
दैवीय शक्ति छुपी रहती है..मंत्र उच्चारण से
ध्वनि उत्पन्न होती है, उत्पन्न ध्वनि का मंत्र के साथ
विशेष प्रभाव होता है.. जिस प्रकार किसी व्यक्ति,
स्थान, वस्तु के ज्ञानर्थ कुछ संकेत प्रयुक्त किए जाते हैं,
ठीक उसी प्रकार मंत्रों से संबंधित देवी-देवताओं
को संकेत द्वारा संबंधित किया जाता है, इसे बीज
कहते हैं.. विभिन्न बीज मंत्र इस प्रकार हैं :ॐ-
परमपिता परमेश्वर की शक्ति का प्रतीक है.ह्रीं-
माया बीज,श्रीं- लक्ष्मी बीज,क्रीं- काली बीज,ऐं-
सरस्वती बीज,क्लीं- कृष्ण बीज…बीजमंत्र लाभकं-
मृत्यु के भय का नाश, त्वचारोग व रक्त-
विकृति में..ह्रीं- मधुमेह हृदय की धड़कन में….घं-
स्वप्नदोष व प्रदररोग में ….भं- बुखार दूर करने के
लिए…क्लीं – पागलपन में …सं- बवासीर मिटाने के
लिए…..वं- भूख प्यास रोकने के लिए…लं- थकान दूर
करने के लिए …बं – वायु रोग और जोदो के दर्द के
लिये ….बीज मंत्रों के अक्षर गूढ़ संकेत होते हैं..
इनका व्यापक अर्थ होता है… बीज मंत्रों के उच्चारण
से मंत्रों की शक्ति बढ़ती है.. क्योंकि, यह विभिन्न
देवी-देवताओं के सूचक है….ह्रीं इस मायाबीज में ह्=
शिव, र= प्रकृति, नाद= विश्वमाता एवं बिंदु= दुखहरण
है… इस प्रकार मायाबीज का अर्थ है- “शिवयुक्त
जननी आद्य शक्ति मेरे दुखों को दूर
करें..श्री [श्री बीज या लक्ष्मी बीज]: इस
लक्ष्मी बीज में श्= महालक्ष्मी, र= धन संपत्ति, ई=
महामाया, नाद= विश्वमाता एवं बिन्दु= दुखहरण है..
इस प्रकार इस का अर्थ है धन
संपत्ति की अधिष्ठात्री जगजननी मां लक्ष्मी मेरे दुख
दूर करें।….ऎं [वाग्भव बीज या सारस्वत बीज]: इस
वाग्भव बीज में ऎ= सरस्वती, नाद= जगन्माता और
बिंदु= दुखहरण है… इस प्रकार इस बीज का अर्थ है-
जगन्माता सरस्वती मेरे ऊपर
कृपा करें….क्लीं [कामबीज या कृष्णबीज]: इस
कामबीज में क= योगस्त या श्रीकृष्ण, ल= दिव्यतेज, ई=
योगीश्वरी या योगेश्वर एवं बिंदु= दुखहरण… इस
प्रकार इस कामबीज का अर्थ है-
राजराजेश्वरी योगमाया मेरे दुख दूर करें… कृष्णबीज
का अर्थ है योगेश्वर श्रीकृष्ण मेरे दुख दूर
करें…क्रीं [कालीबीज या कर्पूरबीज]: इस बीज मंत्र में
क= काली, र= प्रकृति, ई= महामाया, नाद=
विश्वमाता, बिंदु= दुखहरण है.. इस प्रकार इस बीजमंत्र
का अर्थ है, जगन्माता महाकाली मेरे दुख दूर करें…गं
[गणपति बीज]: इस बीज में ग्= गणेश, अ= विघननाशक एवं बिंदु= दुखहरण है। इस प्रकार इस बीज का अर्थ विघननाशक श्रीगणेश मेरे दुख दूर करें।दूं [दुर्गाबीज]: इस दुर्गाबीज में द्= दुर्गतिनाशनी दुर्गा, = सुरक्षा एवं बिंदु= दुखहरण है… इस प्रकार इसका अर्थ है
दुर्गतिनाशनी दुर्गा मेरी रक्षा करे और मेरे दुख दूर
करे…हौं [प्रसादबीज या शिवबीज]: इस प्रसाद बीज में
ह्= शिव, औ= सदाशिव एवं बिंदु= दुखहरण है… इस
प्रकार इस बीज का अर्थ है, भगवान शिव एवं सदाशिव
मेरे दुखों को दूर करें..इस प्रकार बीज
मंत्रों की शक्ति इतनी असीम होती है, कि देवताओं
को भी अपने वशीभूत कर लेती है, तथा जप अनुष्ठान
द्वारा देवता का साक्षात्कार करा देती है…बीज
मंत्रों के अक्षर उनकी गूढ़ शक्तियों के संकेत होते हैं…
इनमें से प्रत्येक की स्वतंत्र एवं दिव्य शक्ति मिलकर
देवता के विराट् स्वरू प का संकेत
देती है…मंत्रों का प्रयोग मानव ने अपने कल्याण के
साथ-साथ दैनिक जीवन की संपूर्ण समस्याओं के
समाधान हेतु यथासमय किया है, और उसमें
सफलता भी पाई है, परंतु आज के भौतिकवादी युग में यह
विधा मात्र कुछ ही व्यक्तियों के प्रयोग की वस्तु
बनकर रह गई है…मंत्रों में छुपी अलौकिक
शक्ति का प्रयोग कर जीवन को सफल एवं सार्थक
बनाया जा सकता है…. सबसे पहले प्रश्न यह उठता है,
कि ‘मंत्र’ क्या है, इसे कैसे परिभाषित
किया जा सकता है.. इस संदर्भ में यह कहना उचित
होगा कि मंत्र का वास्तविक अर्थ असीमित है…
किसी देवी-देवता को प्रसन्न करने के लिए प्रयुक्त शब्द
समूह मंत्र कहलाता है… जो शब्द जिस
देवता या शक्ति को प्रकट करता है, उसे उस
देवता या शक्ति का मंत्र कहते हैं… मंत्र एक ऐसी गुप्त
ऊर्जा है, जिसे हम जागृत कर इस अखिल ब्रह्मांड में पहले से ही उपस्थित इसी प्रकार की ऊर्जा से एकात्म कर उस ऊर्जा के लिए देवता (शक्ति) से सीधा साक्षात्कार कर सकते हैं…मंत्रों में देवी- देवताओं के नाम भी संकेत मात्र से दर्शाए जाते हैं, जैसे
राम के लिए ‘रां’, हनुमानजी के लिए ‘हं’, गणेशजी के
लिए ‘गं’, दुर्गाजी के लिए ‘दुं’ का प्रयोग
किया जाता है… इन बीजाक्षरों में जो अनुस्वार
या अनुनासिक (जं) संकेत लगाए जाते हैं, उन्हें ‘नाद’
कहते हैं.. नाद द्वारा देवी-देवताओं की अप्रकट
शक्ति को प्रकट किया जाता है…लिंगों के अनुसार
मंत्रों के तीन भेद होते हैं-पुर्लिंग : जिन मंत्रों के अंत में
हूं या फट लगा होता है..स्त्रीलिंग : जिन मंत्रों के अंत
में ‘स्वाहा’ का प्रयोग होता है…नपुंसक लिंग : जिन
मंत्रों के अंत में ‘नमः’ प्रयुक्त
होता है..अतः आवश्यकतानुसार मंत्रों को चुनकर उनमें
स्थित अक्षुण्ण ऊर्जा की तीव्र विस्फोटक एवं
प्रभावकारी शक्ति को प्राप्त किया जा सकता है…
मंत्र, साधक व ईश्वर को मिलाने में मध्यस्थ का कार्य
करता है… मंत्र की साधना करने से पूर्व मंत्र पर पूर्ण
श्रद्धा, भाव, विश्वास होना आवश्यक है, तथा मंत्र
का सही उच्चारण अति आवश्यक है… मंत्र लय, नादयोग के अंतर्गत आता है… मंत्रों के प्रयोग से आर्थिक,सामाजिक, दैहिक, दैनिक, भौतिक तापों से उत्पन्न व्याधियों से छुटकारा पाया जा सकता है.. रोग
निवारण में मंत्र का प्रयोग रामबाण औषधि का कार्य
करता है.. मानव शरीर में 108 जैविकीय केंद्र (साइकिक सेंटर) होते हैं जिसके कारण मस्तिष्क से 108 तरंग दैर्ध्य (वेवलेंथ) उत्सर्जित करता है…शायद इसीलिए हमारे ऋषि-मुनियों ने मंत्रों की साधना के लिए 108 मनकों की माला तथा मंत्रों के जाप की आकृति निश्चित की है.. मंत्रों के बीज मंत्र उच्चारण की 125 विधियाँ हैं.. मंत्रोच्चारण से या जाप करने से शरीर के 6 प्रमुख जैविकीय ऊर्जा केंद्रों से 6250 की संख्या में विद्युत चुम्बकीय ऊर्जा तरंगें उत्सर्जित होती हैं, जो इस प्रकार हैं :
मूलाधार 4×125=500स्वधिष्ठान
6×125=750मनिपुरं 10×125=1250हृदयचक्र
13×125=1500विध्रहिचक्र 16×125=2000आज्ञाचक्र
2×125=250कुल योग 6250
(विद्युत चुम्बकीय ऊर्जा तरंगों की संख्या)…भारतीय
कुंडलिनी विज्ञान के अनुसार मानव के स्थूल शरीर के
साथ-साथ 6 अन्य सूक्ष्म शरीर भी होते हैं… विशेष
पद्धति से सूक्ष्म शरीर के फोटोग्राफ लेने से वर्तमान
तथा भविष्य में होने वाली बीमारियों या रोग के
बारे में पता लगाया जा सकता है.. सूक्ष्म शरीर के
ज्ञान के बारे में जानकारी न होने पर मंत्र शास्त्र
को जानना अत्यंत कठिन होगा…मानव, जीव-जंतु,
वनस्पतियों पर प्रयोगों द्वारा ध्वनि परिवर्तन
(मंत्रों) से सूक्ष्म ऊर्जा तरंगों के उत्पन्न होने
को प्रमाणित कर लिया गया है.. मानव शरीर से 64
तरह की सूक्ष्म ऊर्जा तरंगें उत्सर्जित होती हैं, जिन्हें
‘धी’ ऊर्जा कहते हैं.. जब धी का क्षरण होता है
तो शरीर में व्याधि एकत्र हो जाती है..मंत्रों का प्रभाव वनस्पतियों पर भी पड़ता है… जैसा कि बताया गया है
कि चारों वेदों में कुल मिलाकर 20 हजार 389 मंत्र हैं,
प्रत्येक वेद का अधिष्ठाता देवता है.. ऋग्वेद
का अधिष्ठाता ग्रह गुरु है। यजुर्वेद का देवता ग्रह शुक्र,
सामवेद का मंगल तथा अथर्ववेद का अधिपति ग्रह बुध
है… मंत्रों का प्रयोग ज्योतिषीय संदर्भ में अशुभ
ग्रहों द्वारा उत्पन्न अशुभ फलों के निवारणार्थ
किया जाता है…ज्योतिष वेदों का अंग
माना गया है। इसे वेदों का नेत्र कहा गया है.. भूत
ग्रहों से उत्पन्न अशुभ फलों के शमनार्थ वेदमंत्रों,
स्तोत्रों का प्रयोग अत्यन्त
प्रभावशाली माना गया है..उदाहरणार्थ आदित्य
हृदयस्तोत्र सूर्य के लिए, दुर्गास्तोत्र चंद्रमा के लिए,
रामायण पाठ गुरु के लिए, ग्राम देवता स्तोत्र राहु के
लिए, विष्णु सहस्रनाम, गायत्री मंत्रजाप, महामृत्युंजय
जाप, क्रमशः बुध, शनि एवं केतु के लिए, लक्ष्मीस्तोत्र
शुक्र के लिए और मंगलस्रोत मंगल के लिए…
मंत्रों का चयन प्राचीन ऐतिहासिक ग्रंथों से
किया गया है.. वैज्ञानिक रूप से यह प्रमाणित
हो चुका है, कि ध्वनि उत्पन्न करने में नाड़ी संस्थान
की 72 नसें आवश्यक रूप से क्रियाशील रहती हैं…
अतः मंत्रों के उच्चारण से सभी नाड़ी संस्थान
क्रियाशील रहते हैं…मंत्र विज्ञान मंत्र एक गूढ़ ज्ञान
है.. सद्गुरु की कृपा एवं मन को एकाग्र कर जब
इसको जान लिया जाता है, तब यह साधक
की सभी मनोकामनाओं को पूरा करता है.. मंत्रागम के
अनुसार दैवी शक्तियों का गूढ़ रहस्य मंत्र में अंतर्निहित
है… व्यक्ति की प्रसुप्त या विलुप्त शक्ति को जगाकर
उसका दैवीशक्ति से सामंजस्य कराने वाला गूढ़ ज्ञान
मंत्र कहलाता है… यह ऐसी गूढ़ विद्या है,
जो साधकों को दु:खों से मुक्त कर न केवल
उनकी सभी मनोकामनाओं को पूरा करती है,
बल्कि उनको परम आनंद तक ले जाती है.. मंत्र
विद्या विश्व के सभी देशों, मानवजाति, धर्मों एवं
संप्रदायों में हजारों-लाखों वर्षो से आस्था एवं
विश्वास के साथ प्रचलित है..मंत्रों के प्रकार-मंत्र
दो प्रकार के होते हैं- वैदिक मंत्र एवं तांत्रिक मंत्र….
वैदिक संहिताओं की समस्त ऋचाएं वैदिक मंत्र
कहलाती हैं, और तंत्रागमों में प्रतिपादित मंत्र
तांत्रिक मंत्र कहलाते हैं.. तांत्रिक मंत्र तीन प्रकार के
होते हैं— बीज मंत्र, नाम मंत्र एवं माला मंत्र.. बीज मंत्र
भी तीन प्रकार के होते हैं — मौलिक बीज, यौगिक
बीज तथा कूट बीज.. इसी तरह माला मंत्र दो प्रकार
के होते हैं— लघु माला मंत्र एवं बृहद माला मंत्र..बीज
मंत्रदैवी या आध्यात्मिक शक्ति को अभिव्यक्ति देने
वाला संकेताक्षर बीज कहलाता है.. इसकी शक्ति एवं
रूप अनंत हैं.. बीज मंत्र विभिन्न देवताओं, धर्मो एवं उनके
संप्रदायों की साधनाओं के माध्यम से साधक
को भिन्न-भिन्न प्रकार के रहस्यों से परिचित
करवाता है। शैव, शाक्त, वैष्णव, गाणपत्य, जैन एवं बौद्ध
धर्मो के सभी संप्रदायों में ‘ह्रीं’, ‘कलीं’ एवं ‘श्रीं’
आदि बीजों का मंत्रसाधना में समान रूप से प्रयुक्त
होना इसका साक्ष्य है।बीज मंत्र समस्त
अर्थो का वाचक एवं बोधक होने के बावजूद अपने आपमें
गूढ़ है। अपने आराध्य देव का समस्त स्वरूप इसके बीज मंत्र
में निहित होता है। ये बीज मंत्र तीन प्रकार के होते हैं
— मौलिक, यौगिक व कूट। इनको कुछ आचार्य
एकाक्षर, बीजाक्षर एवं घनाक्षर भी कहते हैं.. जब बीज
अपने मूल रूप में रहता है, तब मौलिक बीज कहलाता है,
जैसे- ऐं, यं, रं, लं, वं, क्षं आदि.. जब यह बीज दो वर्षो के
योग से बनता है, तब यौगिक कहलाता है, जैसे- ह्रीं,
क्लीं, श्रीं, स्त्रीं, क्ष्रौं आदि…इसी तरह जब बीज
तीन या उससे अधिक वर्षो से बनता है, तब यह कूट बीज
कहलाता है… बीज मंत्रों में समग्र शक्ति विद्यमान
होते हुए भी गुप्त रहती है..नाम मंत्र -बीज रहित
मंत्रों को नाम मंत्र कहते हैं, जैसे- ‘ॐ नम: शिवाय’, ‘ॐ
नमो नारायणाय’ एवं ‘..ॐ नमो भगवते वासुदेवाय’
आदि.. इन मंत्रों के शब्द उनके देवता, उनके रूप एवं
उनकी शक्ति को अभिव्यक्ति देने में समर्थ होते हैं…
इसलिए इन मंत्रों को भक्तिभाव से कभी भी सुमिरन
किया जा सकता है..माला मंत्रकुछ आचार्यो के
अनुसार 20 अक्षरों से अधिक और अन्य आचार्यो के
अनुसार 32 अक्षरों से अधिक अक्षर वाला मंत्र
माला मंत्र कहलाता है, जैसे- ‘ऊँ क्लीं देवकीसुत
गोविंद वासुदेव जगत्पते, देहि में तनयं कृष्ण त्वामहं शरणं
गत:..माला मंत्रों के वर्णो की पूर्व मर्यादा 20 या 32
अक्षर हैं, लेकिन इनकी उत्तर मर्यादा का मंत्रशास्त्र में
उल्लेख नहीं मिलता.. इसलिए माला मंत्र कभी-
कभी छोटे और कभी-कभी अपेक्षाकृत अधिक लंबे होते
हैं……आधुनिक चिकित्सा विज्ञान ने चाहे
जितनी प्रगति कर ली हो,…….. पर बीमारियों पर
नियंत्रण का उसका सपना आज तक अधूरा है.. आंकड़े
तो यहां तक बयान करते हैं, कि दवाओं के अनुपात में –
रोगों की वृद्धि अधिक तेजी से हो रही है………
किन्तु ऐसी विकट स्थिति में भी निराश होने
की आवश्यकता नहीं है.. प्राचीन समय में भारत में यंत्र-
तंत्र और मंत्र के रूप में एक ऐसे विज्ञान का प्रचलन
रहा है, जो बहुत ही शक्तिशाली और चमत्कारी है..
आज जिन बीमारियों को लाइलाज
माना जा रहा है, उनका मंत्रों के द्वारा स्थाई
निवारण संभव हे।
🔱⚜🕉🙏🙇♂🙏🕉⚜🔱
: * आयुर्वेद से कुछ 100 जानकारी जिसका ज्ञान सबको होना चाहिए*💍💍
1.योग,भोग और रोग ये तीन अवस्थाएं है।

  1. लकवा – सोडियम की कमी के कारण होता है ।
  2. हाई वी पी में – स्नान व सोने से पूर्व एक गिलास जल का सेवन करें तथा स्नान करते समय थोड़ा सा नमक पानी मे डालकर स्नान करे ।
  3. लो बी पी – सेंधा नमक डालकर पानी पीयें ।
  4. कूबड़ निकलना– फास्फोरस की कमी ।
  5. कफ – फास्फोरस की कमी से कफ बिगड़ता है , फास्फोरस की पूर्ति हेतु आर्सेनिक की उपस्थिति जरुरी है । गुड व शहद खाएं
  6. दमा, अस्थमा – सल्फर की कमी ।
  7. सिजेरियन आपरेशन – आयरन , कैल्शियम की कमी ।
  8. सभी क्षारीय वस्तुएं दिन डूबने के बाद खायें
  9. अम्लीय वस्तुएं व फल दिन डूबने से पहले खायें
  10. जम्भाई– शरीर में आक्सीजन की कमी ।
  11. जुकाम – जो प्रातः काल जूस पीते हैं वो उस में काला नमक व अदरक डालकर पियें ।
  12. ताम्बे का पानी – प्रातः खड़े होकर नंगे पाँव पानी ना पियें ।
  13. किडनी – भूलकर भी खड़े होकर गिलास का पानी ना पिये ।
  14. गिलास एक रेखीय होता है तथा इसका सर्फेसटेन्स अधिक होता है । गिलास अंग्रेजो ( पुर्तगाल) की सभ्यता से आयी है अतः लोटे का पानी पियें, लोटे का कम सर्फेसटेन्स होता है ।
  15. अस्थमा , मधुमेह , कैंसर से गहरे रंग की वनस्पतियाँ बचाती हैं ।
  16. वास्तु के अनुसार जिस घर में जितना खुला स्थान होगा उस घर के लोगों का दिमाग व हृदय भी उतना ही खुला होगा ।
  17. परम्परायें वहीँ विकसित होगीं जहाँ जलवायु के अनुसार व्यवस्थायें विकसित होगीं ।
  18. पथरी – अर्जुन की छाल से पथरी की समस्यायें ना के बराबर है ।
  19. RO का पानी कभी ना पियें यह गुणवत्ता को स्थिर नहीं रखता । कुएँ का पानी पियें । बारिस का पानी सबसे अच्छा , पानी की सफाई के लिए सहिजन की फली सबसे बेहतर है ।
  20. सोकर उठते समय हमेशा दायीं करवट से उठें या जिधर का स्वर चल रहा हो उधर करवट लेकर उठें ।
  21. पेट के बल सोने से हर्निया, प्रोस्टेट, एपेंडिक्स की समस्या आती है ।
  22. भोजन के लिए पूर्व दिशा , पढाई के लिए उत्तर दिशा बेहतर है ।
  23. HDL बढ़ने से मोटापा कम होगा LDL व VLDL कम होगा ।
  24. गैस की समस्या होने पर भोजन में अजवाइन मिलाना शुरू कर दें ।
  25. चीनी के अन्दर सल्फर होता जो कि पटाखों में प्रयोग होता है , यह शरीर में जाने के बाद बाहर नहीं निकलता है। चीनी खाने से पित्त बढ़ता है ।
  26. शुक्रोज हजम नहीं होता है फ्रेक्टोज हजम होता है और भगवान् की हर मीठी चीज में फ्रेक्टोज है ।
  27. वात के असर में नींद कम आती है ।
  28. कफ के प्रभाव में व्यक्ति प्रेम अधिक करता है ।
  29. कफ के असर में पढाई कम होती है ।
  30. पित्त के असर में पढाई अधिक होती है ।
  31. आँखों के रोग – कैट्रेक्टस, मोतियाविन्द, ग्लूकोमा , आँखों का लाल होना आदि ज्यादातर रोग कफ के कारण होता है ।
  32. शाम को वात-नाशक चीजें खानी चाहिए ।
  33. प्रातः 4 बजे जाग जाना चाहिए
  34. सोते समय रक्त दवाव सामान्य या सामान्य से कम होता है । 💍aj💍
  35. व्यायामवात रोगियों के लिए मालिश के बाद व्यायाम , पित्त वालों को व्यायाम के बाद मालिश करनी चाहिए । कफ के लोगों को स्नान के बाद मालिश करनी चाहिए ।
  36. भारत की जलवायु वात प्रकृति की है , दौड़ की बजाय सूर्य नमस्कार करना चाहिए ।
  37. जो माताएं घरेलू कार्य करती हैं उनके लिए थोडा व्यायाम जरुरी ह।
  38. निद्रा से पित्त शांत होता है , मालिश से वायु शांति होती है , उल्टी से कफ शांत होता है तथा उपवास ( लंघन ) से बुखार शांत होता है ।
  39. भारी वस्तुयें शरीर का रक्तदाब बढाती है , क्योंकि उनका गुरुत्व अधिक होता है ।
  40. दुनियां के महान वैज्ञानिक का स्कूली शिक्षा का सफ़र अच्छा नहीं रहा, चाहे वह 8 वीं फेल न्यूटन हों या 9 वीं फेल आइस्टीन हों ,
  41. माँस खाने वालों के शरीर से अम्ल-स्राव करने वाली ग्रंथियाँ प्रभावित होती हैं ।
  42. तेल हमेशा गाढ़ा खाना चाहिएं सिर्फ लकडी वाली घाणी का , दूध हमेशा पतला पीना चाहिए ।
  43. छिलके वाली दाल-सब्जियों से कोलेस्ट्रोल हमेशा घटता है ।
  44. कोलेस्ट्रोल की बढ़ी हुई स्थिति में इन्सुलिन खून में नहीं जा पाता है । ब्लड शुगर का सम्बन्ध ग्लूकोस के साथ नहीं अपितु कोलेस्ट्रोल के साथ है ।
  45. मिर्गी दौरे में अमोनिया या चूने की गंध सूँघानी चाहिए ।
  46. सिरदर्द में एक चुटकी नौसादर व अदरक का रस रोगी को सुंघायें ।
  47. भोजन के पहले मीठा खाने से बाद में खट्टा खाने से शुगर नहीं होता है ।
  48. भोजन के आधे घंटे पहले सलाद खाएं उसके बाद भोजन करें ।
  49. अवसाद में आयरन , कैल्शियम , फास्फोरस की कमी हो जाती है । फास्फोरस गुड और अमरुद में अधिक है
  50. पीले केले में आयरन कम और कैल्शियम अधिक होता है । हरे केले में कैल्शियम थोडा कम लेकिन फास्फोरस ज्यादा होता है तथा लाल केले में कैल्शियम कम आयरन ज्यादा होता है । हर हरी चीज में भरपूर फास्फोरस होती है, वही हरी चीज पकने के बाद पीली हो जाती है जिसमे कैल्शियम अधिक होता है ।
  51. छोटे केले में बड़े केले से ज्यादा कैल्शियम होता है ।
  52. रसौली की गलाने वाली सारी दवाएँ चूने से बनती हैं ।
  53. हेपेटाइट्स A से E तक के लिए चूना बेहतर है ।
  54. एंटी टिटनेस के लिए हाईपेरियम 200 की दो-दो बूंद 10-10 मिनट पर तीन बार दे ।
  55. ऐसी चोट जिसमे खून जम गया हो उसके लिए नैट्रमसल्फ दो-दो बूंद 10-10 मिनट पर तीन बार दें । बच्चो को एक बूंद पानी में डालकर दें ।
  56. मोटे लोगों में कैल्शियम की कमी होती है अतः त्रिफला दें । त्रिकूट ( सोंठ+कालीमिर्च+ मघा पीपली ) भी दे सकते हैं ।
  57. अस्थमा में नारियल दें । नारियल फल होते हुए भी क्षारीय है ।दालचीनी + गुड + नारियल दें ।
  58. चूना बालों को मजबूत करता है तथा आँखों की रोशनी बढाता है ।
  59. दूध का सर्फेसटेंसेज कम होने से त्वचा का कचरा बाहर निकाल देता है ।
  60. गाय की घी सबसे अधिक पित्तनाशक फिर कफ व वायुनाशक है ।
  61. जिस भोजन में सूर्य का प्रकाश व हवा का स्पर्श ना हो उसे नहीं खाना चाहिए
  62. गौ-मूत्र अर्क आँखों में ना डालें ।
  63. गाय के दूध में घी मिलाकर देने से कफ की संभावना कम होती है लेकिन चीनी मिलाकर देने से कफ बढ़ता है ।
  64. मासिक के दौरान वायु बढ़ जाता है , 3-4 दिन स्त्रियों को उल्टा सोना चाहिए इससे गर्भाशय फैलने का खतरा नहीं रहता है । दर्द की स्थति में गर्म पानी में देशी घी दो चम्मच डालकर पियें ।
  65. रात में आलू खाने से वजन बढ़ता है ।💍aj💍
  66. भोजन के बाद बज्रासन में बैठने से वात नियंत्रित होता है ।
  67. भोजन के बाद कंघी करें कंघी करते समय आपके बालों में कंघी के दांत चुभने चाहिए । बाल जल्द सफ़ेद नहीं होगा ।
  68. अजवाईन अपान वायु को बढ़ा देता है जिससे पेट की समस्यायें कम होती है
  69. अगर पेट में मल बंध गया है तो अदरक का रस या सोंठ का प्रयोग करें
  70. कब्ज होने की अवस्था में सुबह पानी पीकर कुछ देर एडियों के बल चलना चाहिए ।
  71. रास्ता चलने, श्रम कार्य के बाद थकने पर या धातु गर्म होने पर दायीं करवट लेटना चाहिए ।
  72. जो दिन मे दायीं करवट लेता है तथा रात्रि में बायीं करवट लेता है उसे थकान व शारीरिक पीड़ा कम होती है ।
  73. बिना कैल्शियम की उपस्थिति के कोई भी विटामिन व पोषक तत्व पूर्ण कार्य नहीं करते है ।
  74. स्वस्थ्य व्यक्ति सिर्फ 5 मिनट शौच में लगाता है ।
  75. भोजन करते समय डकार आपके भोजन को पूर्ण और हाजमे को संतुष्टि का संकेत है ।
  76. सुबह के नाश्ते में फल , दोपहर को दहीरात्रि को दूध का सेवन करना चाहिए ।
  77. रात्रि को कभी भी अधिक प्रोटीन वाली वस्तुयें नहीं खानी चाहिए । जैसे – दाल , पनीर , राजमा , लोबिया आदि ।
  78. शौच और भोजन के समय मुंह बंद रखें , भोजन के समय टी वी ना देखें ।
  79. मासिक चक्र के दौरान स्त्री को ठंडे पानी से स्नान , व आग से दूर रहना चाहिए ।
  80. जो बीमारी जितनी देर से आती है , वह उतनी देर से जाती भी है ।
  81. जो बीमारी अंदर से आती है , उसका समाधान भी अंदर से ही होना चाहिए ।
  82. एलोपैथी ने एक ही चीज दी है , दर्द से राहत । आज एलोपैथी की दवाओं के कारण ही लोगों की किडनी , लीवर , आतें , हृदय ख़राब हो रहे हैं । एलोपैथी एक बिमारी खत्म करती है तो दस बिमारी देकर भी जाती है ।
  83. खाने की वस्तु में कभी भी ऊपर से नमक नहीं डालना चाहिए , ब्लड-प्रेशर बढ़ता है ।
    86 . रंगों द्वारा चिकित्सा करने के लिए इंद्रधनुष को समझ लें , पहले जामुनी , फिर नीला ….. अंत में लाल रंग ।
    87 . छोटे बच्चों को सबसे अधिक सोना चाहिए , क्योंकि उनमें वह कफ प्रवृति होती है , स्त्री को भी पुरुष से अधिक विश्राम करना चाहिए
  84. जो सूर्य निकलने के बाद उठते हैं , उन्हें पेट की भयंकर बीमारियां होती है , क्योंकि बड़ी आँत मल को चूसने लगती है ।
  85. बिना शरीर की गंदगी निकाले स्वास्थ्य शरीर की कल्पना निरर्थक है , मल-मूत्र से 5% , कार्बन डाई ऑक्साइड छोड़ने से 22 %, तथा पसीना निकलने लगभग 70 % शरीर से विजातीय तत्व निकलते हैं ।
  86. चिंता , क्रोध , ईर्ष्या करने से गलत हार्मोन्स का निर्माण होता है जिससे कब्ज , बबासीर , अजीर्ण , अपच , रक्तचाप , थायरायड की समस्या उतपन्न होती है ।
  87. गर्मियों में बेल , गुलकंद , तरबूजा , खरबूजा व सर्दियों में सफ़ेद मूसली , सोंठ का प्रयोग करें ।
  88. प्रसव के बाद माँ का पीला दूध बच्चे की प्रतिरोधक क्षमता को 10 गुना बढ़ा देता है । बच्चो को टीके लगाने की आवश्यकता नहीं होती है ।
  89. रात को सोते समय सर्दियों में देशी मधु लगाकर सोयें त्वचा में निखार आएगा
  90. दुनिया में कोई चीज व्यर्थ नहीं , हमें उपयोग करना आना चाहिए
  91. जो अपने दुखों को दूर करके दूसरों के भी दुःखों को दूर करता है , वही मोक्ष का अधिकारी है ।
  92. सोने से आधे घंटे पूर्व जल का सेवन करने से वायु नियंत्रित होती है , लकवा , हार्ट-अटैक का खतरा कम होता है ।
  93. स्नान से पूर्व और भोजन के बाद पेशाब जाने से रक्तचाप नियंत्रित होता है
    98 . तेज धूप में चलने के बाद , शारीरिक श्रम करने के बाद , शौच से आने के तुरंत बाद जल का सेवन निषिद्ध है
  94. त्रिफला अमृत है जिससे वात, पित्त , कफ तीनो शांत होते हैं । इसके अतिरिक्त भोजन के बाद पान व चूना । देशी गाय का घी , गौ-मूत्र भी त्रिदोष नाशक है ।
  95. इस विश्व की सबसे मँहगी दवा। लार है , जो प्रकृति ने तुम्हें अनमोल दी है ,इसे ना थूके,,,, : वो बातें जो डाक्टर नहीं बताता रोगी को पर आपके लिए जानना है आवश्यक
  96. दवाइयों से डायबिटीज बढ़ती है अक्सर डायबिटीज शरीर में इंसुलिन की कमी होने से पैदा होती है। लेकिन बहुत कम लोग यह जानते हैं कि कुछ खास दवाईयों के असर से भी शरीर में डायबिटीज होती है। इन दवाइयों में मुख्यतया एंटी डिप्रेसेंट्स, नींद की दवाईयां, कफ सिरफ तथा बच्चों को एडीएचडी (अतिसक्रियता) के लिए दी जाने वाली दवाईयां शामिल हैं। इन्हें दिए जाने से शरीर में इंसुलिन की कमी हो जाती है और व्यक्ति को मधुमेह का इलाज करवाना पड़ता है।
  97. बिना वजह लगाई जाती है कुछ वैक्सीन वैक्सीन लोगों को किसी बीमारी से बचाव के लिए लगाई जाती है। परन्तु कुछ वैक्सीन्स ऎसी हैं जो या तो बेअसर हो चुकी है या फिर वायरस को फैलने में मदद करती है! इसलिए बेहतर होगा कि आप अपनी रोग प्रतिरोधक क्षमता को उन्नत करने के लिए योग व (ayurveda) आयुर्वेद को अपने जीवन में अपनाये जो सभी बीमारियों से बचा सकते है!
  98. कैन्सर हमेशा कैन्सर ही नहीं होता यूं तो कैन्सर स्त्री-पुरूष दोनों में किसी को भी हो सकता है लेकिन ब्रेस्ट कैन्सर की पहचान करने में अधिकांशतया डॉक्टर गलती कर जाते हैं। सामान्यतया स्तन पर हुई किसी भी गांठ को कैंसर की पहचान मान कर उसका उपचार किया जाता है जो कि बहुत से मामलों में छोटी-मोटी फुंसी ही निकलती है। उदाहरण के तौर पर हॉलीवुड अभिनेत्री ए ंजेलिना जॉली ने मात्र इस संदेह पर अपने ब्रेस्ट ऑपरेशन करके हटवा दिए थे कि उनके शरीर में कैन्सर पैदा करने वाला जीन पाया गया था।
  99. दवाईयां कैंसर पैदा करती हैं ब्लड प्रेशर या रक्तचाप (बीपी) की दवाईयों से कैन्सर होने का खतरा तीन गुना बढ़ जाता है। ऎसा इसलिए होता है क्योंकि ब्लडप्रेशर की दवाईयां शरीर में कैल्सियम चैनल ब्लॉकर्स की संख्या बढ़ा देता है जिससे शरीर में कोशिकाओं के मरने की दर बढ़ जाती है और प्रतिक्रियास्वरूप कोशिकाएं बेकार होकर कैंसर की गांठ बनाने में लग जाती हैं।
  100. एस्पिरीन लेने से शरीर में इंटरनल ब्लीडिंग का खतरा बढ़ जाता है हॉर्ट अटैक तथा ब्लड क्लॉट बनने से रोकने के लिए दी जाने वाली दवाई एस्पिरीन से शरीर में इंटरनल ब्लीडिंग का खतरा लगभग 100 गुणा बढ़ जाता है। इससे शरीर के आ ंतरिक अंग कमजोर होकर उनमें रक्तस्त्राव शुरू हो जाता है। एक सर्वे में पाया गया कि एस्पिरीन डेली लेने वाले पेशेंट्स में से लगभग 10,000 लोगों को इंटरनल ब्लीडिंग का सामना करना पड़ा।
  101. एक्स-रे से कैन्सर होता है आजकल हर छोटी-छोटी बात पर डॉक्टर एक्स-रे करवाने लग गए हैं। क्या आप जानते हैं कि एक्स-रे करवाने के दौरान निकली घातक रेडियोएक्टिव किरणें कैंसर पैदा करती हैं। एक मामूली एक्स-रे करवाने में शरीर को हुई हानि की भरपाई करने में कम से कम एक वर्ष का समय लगता है। ऎसे में यदि किसी को एक से अधिक बार एक्स-रे क रवाना पड़े तो सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है। CT Scan केवल अति आवश्यक हो तब ही करवाएं !
  102. सीने में जलन की दवाई आंतों का अल्सर साथ लाती है बहुत बार खान-पान या हवा-पानी में बदलाव होने से व्यक्ति को पेट की बीमारियां हो जाती है। इनमें से एक सीने में जलन का होना भी है जिसके लिए डॉक्टर एंटी-गैस्ट्रिक दवाईयां देते हैं। इन मेडिसीन्स से आंतों का अल्सर होने की संभावना बढ़ जाती है, साथ ही साथ हडि्डयों का क्षरण होना, शरीर में विटामिन बी12 को एब्जॉर्ब करने की क्षमता कम होना आदि बीमारियां व्यक्ति को घेर लेती हैं। सबसे दुखद बात तब होती है जब इनमें से कुछ दवाईयां बीमारी को दूर तो नहीं करती परन्तु साईड इफेक्ट अवश्य लाती हैं।
  103. दवाईयों और लैब-टेस्ट से डॉक्टर्स कमाते हैं मोटा कमीशन यह अब छिपी बात नहीं रही कि डॉक्टरों की कमाई का एक मोटा हिस्सा दवाईयों के कमीशन से आता है। यहीं नहीं डॉक्टर किसी खास लेबोरेटरी में ही मेडिकल चैकअप के लिए भेजते हैं जिसमें भी उन्हें अच्छी खासी कमाई होती है। कमीशनखोरी की इस आदत के चलते डॉक्टर अक्सर जरूरत से ज्यादा मेडिसिन दे देते हैं।
  104. जुकाम सही करने के लिए कोई दवाई नहीं है नाक की अंदरूनी त्वचा में सूजन आ जाने से जुकाम होता है। अभी तक मेडिकल साइंस इस बात का कोई कारण नहीं ढूंढ पाया है कि ऎसा क्यों होता है और ना ही इसका कोई कारगर इलाज ढूंढा जा सका है। डॉक्टर जुकाम होने पर एंटीबॉयोटिक्स लेने की सलाह देते हैं परन्तु कई अध्ययनों में यह साबित हो चुका है कि जुकाम 4 से 7 दिनों में अपने आप ही सही हो जाता है। जुकाम पर आपके दवाई लेने का कोई असर नहीं होता है, हां आपके शरीर को एंटीबॉयोटिक्स के साईड-इफेक्टस जरूर झेलने पड़ते हैं। जबकि आयुर्वेद में इसे कफ दोष के कारण ही माना जाता है!
  105. एंटीबॉयोटिक्स से लिवर को नुकसान होता है मेडिकल साइंस की सबसे अद्भुत खोज के रूप में सराही गई दवाएं एंटीबॉयोटिक्स हैं। एंटीबॉयोटिक्स ने व्यक्ति की औसत उम्र बढ़ा दी है और स्वास्थ्य लाभ में अनूठा योगदान दिया है, लेकिन तस्वीर के दूसरे पक्ष के रूप में एंटीबॉयोटिक्स व्यक्ति के लीवर को डेमेज करती है। यदि लंबे समय तक एंटीबॉयोटिक्स का प्रयोग कि या जाए तो व्यक्ति की किडनी तथा लीवर बुरी तरह से प्रभावित होते हैं!
  106. अनेक डाक्टर खुद योग और देसी दवाओं से अपना और अपने परिवार का इलाज करवाते हैं क्योंकि उन्हें पता है कि आयुर्वेद और योग के साइड इफ़ेक्ट नही हैं और इससे रोग भी जड़ से समाप्त होते हैं.
  107. बाइपास सर्जरी जो कि हृदयघात (दिल का दौरा) के रोगियों के लिए बताई जाती है वो डाक्टर खुद अपने लिए कभी नही सोचते क्योंकि एक तो यह स्थाई इलाज नही है दूसरा इस से दौरा फिर से पड़ने के मौके कम नही होते, खुद पर ऐसी समस्या आने पर डाक्टर घिया (लौकी) का रस या अर्जुन की छाल का काढ़ा बना कर पीते हैं या रोज प्राणायाम और योग करते हैं.
    उनकी तो धंधे की मजबूरी है पर आप तो बता सकते हैं

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