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गुरू से शिष्य ने कहा: गुरूदेव ! एक व्यक्ति ने आश्रम के लिये गाय भेंट की है। गुरू ने कहा – अच्छा हुआ । दूध पीने को मिलेगा। एक सप्ताह बाद शिष्य ने आकर गुरू से कहा: गुरू ! जिस व्यक्ति ने गाय दी थी, आज वह अपनी गाय वापिस ले गया । गुरू ने कहा – अच्छा हुआ ! गोबर उठाने की झंझट से मुक्ति मिली। ‘परिस्थिति’ बदले तो अपनी ‘मनस्थिति’ बदल लो। बस दुख सुख में बदल जायेगा.। “सुख दुख आख़िर दोनों मन के ही तो समीकरण हैं। “अंधे को मंदिर आया देखलोग हँसकर बोले -“मंदिर में दर्शन के लिए आए तो हो,पर क्या भगवान को देख पाओगे ? “अंधे ने कहा -“क्या फर्क पड़ता है,मेरा भगवान तो मुझे देख लेगा.” द्रष्टि नहीं द्रष्टिकोण सकारात्मक होना चाहिए।

शुभ जीवन🙏🙏🚩🚩🚩 👉 आत्म निर्माण-जीवन का प्रथम सोपान

निर्माण आन्दोलन का प्रथम चरण आत्म-निर्माण है। उस दिशा में कदम बढ़ाने के लिए किसी भी स्थिति के व्यक्ति को कुछ भी कठिनाई अनुभव नहीं होनी चाहिए। पर्दे में जकड़ी स्त्रियाँ, जेल में बन्द कैदी, चारपाई पर पड़े रोगी और अपंग असमर्थ व्यक्ति भी आज जिस स्थिति में हैं उससे ऊँचे उठने, आगे बढ़ने में उन्हें कुछ भी कठिनाई अनुभव नहीं होनी चाहिए। मनोविकारों को ढूँढ़ निकालने और उनके विरुद्ध मोर्चा खड़ा कर देने में सांसारिक कोई विध्न बाधा अवरोध उत्पन्न नहीं कर सकती। दैनिक जीवन में निरन्तर काम आने वाली आदतों को परिष्कृत बनाने का प्रयास भी ऐसा है, जिनके न बन पड़ने का कोई कारण नहीं। आलस्य में समय न गँवाना, हर काम नियत समय पर नियमित रूप से उत्साह और मनोयोग पूर्वक करने की आदत डाली जाय तो प्रतीत होगा अपना क्रिया कलाप कितना उत्तम, कितना व्यवस्थित, कितना अधिक सम्पन्न हो रहा है। 

प्रातःकाल अपनी दिनचर्या का निर्धारण कर लेना और पूरी मुस्तैदी से उसे पूरा करना, आलस्य प्रमाद को आड़े हाथों लेना, व्यक्तित्व निर्माण की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम है। जल्दी सोने जल्दी उठने की एक छोटी सी ही आदत को लें तो प्रतीत होगा कि प्रातःकाल का कितना बहुमूल्य समय मुफ्त ही हाथ लग जाता है और उसका जिस भी कार्य में उपयोग किया जाय उसमें सफलता का कैसा स्वर्ण अवसर मिलता है। क्या व्यायाम, क्या अध्ययन, क्या भजन, कुछ भी कार्य प्रातःकाल किया जाय चौगुना प्रतिफल उत्पन्न करेगा। जो लोग देर में सोते और देर में उठते हैं वे यह नहीं जानते कि प्रातःकाल का ब्रह्म मुहूर्त इतना बहुमूल्य है जिसे हीरे मोतियों से भी नहीं तोला जा सकता, नियमित दिनचर्या का निर्धारण और उस पर हर दिन पूरी मुस्तैदी के साथ आचरण, देखने में यह बहुत छोटी बात मालूम पड़ती है पर यदि उसका परिणाम देखा जाय तो प्रतीत होगा कि हमने एक चौथाई जिन्दगी को बर्बादी से बचाकर कहने लायक उपलब्धियों में नियोजित कर लिया। 

अस्त-व्यस्त और अनियमित व्यक्ति यों साधारण ढील पोल के दोषी ठहराए जाते हैं, पर बारीकी से देखने पर स्पष्ट हो जाता है कि वे लगभग आधी जिन्दगी जितना बहुमूल्य समय नष्ट कर देते है जिसका यदि क्रमबद्ध उपयोग हो सका होता तो प्रगति की कितनी ही कहने लायक उपलब्धियाँ सामने आती। यदि एक घण्टा रोज कोई व्यक्ति उपयोगी अध्ययन में लगाता रहे तो कुछ ही समय में वह ऐसा ज्ञानवान बन सकता है जिसकी विद्या बुद्धि पर स्पर्धा की जा सके।

…. गम्भीर न रहें, प्रसन्न रहना सीखें

🔵  कुछ लोग बोझिल मन से परेशान रहते हैं, ऐसे लोगों को प्रसन्न रहने की कला सीखनी चाहिए। यह अभ्यास करने के लिए आज और अभी से तैयार हुआ जा सकता है। दैनिक जीवन में जिससे भेंट हो उससे यदि मुस्कराते हुए मिला जाय तो बदले में सामने वाला भी मुस्कराहट भेंट करेगा। उसे हल्की-फुल्की बात करने में झिझक नहीं महसूस होगी और इस तरह अपने मन का भारीपन काफी दूर होगा।

🔴  अगर कोई चेहरे पर चौबीसों घण्टे गमगीनी लादे रहे तो धीरे-धीरे उसके सहयोगियों की संख्या घटती चली जाती है।यदि प्रतिक्षण प्रसन्नता बांटते रहने का न्यूनतम संकल्प शुरू किया जाय तो थोड़े दिनों के प्रयास से ही आशातीत परिणाम मिलने लगेंगे।

🔵  डेल कार्नेगी कहते थे कि भूतकाल पर विचार मत करो, क्योंकि अब वह फिर कभी लौटकर आने वाला नहीं है। इसी प्रकार भविष्य के बारे में साधारण अनुमान लगाने के अतिरिक्त बहुत चिन्तित एवं आवेशग्रस्त होना व्यर्थ है। क्योंकि कोई नहीं जानता कि परिस्थितियों के कारण वह न जाने किस ओर करवट ले। हमें सिर्फ वर्तमान के बारे में सोचना चाहिए और वही करना चाहिए जो आज की परिस्थितियों में सर्वोत्तम ढंग से किया जा सकता है। हमारी आशा कुछ भी क्यों न हो प्रसन्नता के केन्द्र वर्तमान के प्रति जागरूकता बरतना और सर्वोत्तम ढंग से निर्वाह करना ही होना चाहिए।


🌹 🙏 🙏
💐जय श्री हरि💐
जीवन में तीन बातें कभी भी भूलना नही चाहिए —-
१. पाप का उदय ‘कब आ जाए.
२. गति का बंध कब हो जाए..
३. आयु का अंत कब हो जाए..इसलिए अपने भाव ओर कर्म ,ओर मन के परिणाम को काेमल रखने चाहिए…..!
रोजाना पढ़ो और चिंतन करो
👌पहला – मरना अवश्य है। दूसरा – साथ कुछ नहीं जाना है।
तीसरा- जो करेगा वो भरेगा। चौथा- जहाँ उलझो वहीं सुलझो।
पाँचवा- जो है उसमें संतोष करो।
🙏🏻🙏🏻जय श्री राधे कृष्ण 🙏🏻🙏🏻
🌹 🆚“जीवन में दुःख क्यों हैं ?” 🆚 🌹

एक सूफी फकीर था, शेख फरीद। उसकी प्रार्थना में एक बात हमेशा होती थी – उसके शिष्य उससे पूछने लगे कि यह बात हमारी समझ में नहीं आती, हम भी प्रार्थना करते हैं, औरों को भी हमने प्रार्थना करते देखा है, लेकिन यह बात हमें कभी समझ में नहीं आती, तुम रोज-रोज यह क्या कहते हो कि हे प्रभु, थोड़ा दुःख मुझे तू रोज देते रहना! यह भी कोई प्रार्थना है? लोग प्रार्थना करते हैं, सुख दो; और तुम प्रार्थना करते हो, हे प्रभु, थोड़ा दुःख रोज देते रहना!

फरीद ने कहा कि सुख में तो मैं सो जाता हूँ और दुःख मुझे जगाता है। सुख में तो मैं अक्सर परमात्मा को भूल जाता हूँ और दुःख में मुझे उसकी याद आती है। दुःख मुझे उसके करीब लाता है। इसलिए मैं प्रार्थना करता हूँ, हे प्रभु, इतना कृपालु मत हो जाना कि सुख-ही-सुख दे दे। क्योंकि मुझे अभी अपने पर भरोसा नहीं है। तू सुख-ही-सुख दे दे तो मैं सो ही जाऊँ! जगाने को ही कोई बात नहीं रह जाए। अलार्म ही बंद हो गया। तू अलार्म बजाता रहना, थोड़ा-थोड़ा दुःख देते रहना, ताकि याद उठती रहे, मैं तुझे भूल न पाऊँ, तेरा विस्मरण न हो जाए।
लगाया जो भक्ति का रंग
उसे छूटने न देना
श्री कृष्ण तेरी याद का दामन
कभी छूटने न देना
हर साँस में तुम और
तुम्हारा नाम रहे
प्रीत की यह डोरी
कभी टूटने न देना

🌹 जय जय श्री राधे 🙏🏻

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