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🌼🙏🏻🌼 !! हस्त मुद्राएं !! 🌼🙏🏻🌼

!! हमारे ऋषि – मुनियों की वरदायनी खोज हस्त – मुद्रा (Mudra) चिकित्सा !!

✍🏻!! हमारा सरीर अनन्त रहस्यों से भरा हुआ है ! शरीर की अपनी एक मुद्रामयी भाषा है ! जिसे करनेसे शारीरिक स्वास्थ्य- लाभ में सहयोग होता है ! यह शरीर पंचतत्त्वों के योग से बना है ! पाँच तत्त्व ये हैं :-

(१) पृथ्वी, (२) जल, (३) अग्नि, (४) वायु, एवं (५) आकाश !!

हस्त- मुद्रा- चिकित्सा के अनुसार हाथ तथा हाथों की अँगुलियों और अँगुलियों से बनने वाली मुद्राओं में आरोग्य का राज छिपा हुआ है ! हाथ की अँगुलियों में पंचतत्त्व प्रतिष्ठित हैं !!

ऋषि- मुनियों ने हजारों साल पहले इसकी खोज कर ली थी एवं इसे उपयोग में बराबर प्रतिदिन लाते रहे, इसीलिये वे लोग स्वस्थ रहते थे ! ये शरीर में चैतन्य को अभिव्यक्ति देनेवाली कुंजियाँ हैं !!

          *!! अँगुली में पंञ्च तत्व !!*

हाथों की १० अँगुलियों से विशेष प्रकार की आकृतियाँ बनाना ही हस्त मुद्रा कही गई है ! हाथों की सारी अँगुलियों में पाँचों तत्व मौजूद होते हैं जैसे अँगूठे में अग्नि तत्व, तर्जनी अँगुली में वायु तत्व, मध्यमा अँगुली में आकाश तत्व, अनामिका अँगुली में पृथ्वी तत्व और कनिष्का अँगुली में जल तत्व !!

अँगुलियों के पाँचों वर्ग से अलग-अलग विद्युत धारा बहती है ! इसलिए मुद्रा विज्ञान में जब अँगुलियों का रोगानुसार आपसी स्पर्श करते हैं, तब रुकी हुई या असंतुलित विद्युत बहकर शरीर की शक्ति को पुन: जाग देती है और हमारा शरीर निरोग होने लगता है ! ये अद्भुत मुद्राएँ करते ही यह अपना असर दिखाना शुरू कर देती हैं !!

किसी भी मुद्रा को करते समय जिन अँगुलियोंका कोई काम न हो उन्हें सीधी रखे !!

वैसे तो मुद्राएँ बहुत हैं ! पर कुछ मुख्य मुद्राओंका वर्णन यहाँ किया जा रहा है, जैसे :-

१ : ज्ञान-मुद्रा ! विधि :- अँगूठे को तर्जनी अँगुलीके सिरे पर लगा दे ! शेष तीनों अँगुलियाँ चित्र के अनुसार सीधी रहेंगी !!

लाभ :- स्मरण- शक्ति का विकास होता है और ज्ञान की वृद्धि होती है ! पढ़ने में मन लगता है तथा अनिद्राका नाश, स्वभावमें परिवर्तन, अध्यात्म -शक्ति का विकास और क्रोधका नाश होता है !!

सावधानी :- खान-पान सात्त्विक रखना चाहिये, पान -पराग, सुपारी, जर्दा इत्यादिका सेवन न करे ! अति उष्ण और अति शीतल पेय पदार्थोंका सेवन न करे !!

२ : वायु- मुद्रा ! विधि :- तर्जनी अँगुली को मोड़कर अँगूठे के मूल में लगाकर हलका दबाये ! शेष अँगुलियाँ सीधी रखे !!

लाभ :- वायु शान्त होती है ! लकवा, साइटिका, गठिया, संधिवात, घुटनेके दर्द ठीक होते हैं ! गर्दन के दर्द, रीढ़ के दर्द आदि विभिन्न रोगोंमें फायदा होता है !!

विशेष :- इस मुद्रा से लाभ न होने पर प्राण -मुद्रा (संख्या १०)-के अनुसार प्रयोग करे !!

सावधानी :- लाभ हो जाने तक ही करे इस मुद्रा को अधिक न करें !!

३ : आकाश-मुद्रा : विधि:- मध्यमा अँगुली को अँगूठे के अग्रभाग से मिलाये ! शेष तीनों अँगुलियाँ सीधी रहें !!

लाभ:- कान के सब प्रकार के रोग जैसे बहरापन आदि, हड्डियों की कमजोरी तथा हृदय-रोग ठीक होता है !!

सावधानी:- भोजन करते समय एवं चलते-फिरते यह मुद्रा न करे ! हाथों को सीधा रखे ! लाभ हो जाने तक ही करे !!

४ : शून्य-मुद्रा : विधि:- मध्यमा अँगुली को मोड़कर अँगुष्ठ के मूल में लगाये एवं अँगूठे से दबाये !!

लाभ:- कान के सब प्रकारके रोग जैसे बहरापन आदि दूर होकर शब्द साफ सुनायी देता है, मसूढ़े की पकड़ मजबूत होती है तथा गले के रोग एवं थायरायड-रोगमें फायदा होता है !!

५ : पृथ्वी-मुद्रा : विधि:- अनामिका अँगुली को अँगूठे से लगाकर रखे !!

लाभ :- शरीर में स्फूर्ति, कान्ति एवं तेजस्विता आती है ! दुर्बल व्यक्ति मोटा बन सकता है, वजन बढ़ता है, जीवनी शक्ति का विकास होता है ! यह मुद्रा पाचन-क्रिया ठीक करती है, सात्त्विक गुणों का विकास करती है, दिमाग में शान्ति लाती है तथा विटामिन की कमी को दूर करती है !!

६ : सूर्य-मुद्रा : विधि:- अनामिका अँगुली को अँगूठे के मूलपर लगाकर अँगूठे से दबाये !!

लाभ:- शरीर संतुलित होता है, वजन घटता है, मोटापा कम होता है ! शरीरमें उष्णता की वृद्धि, तनाव में कमी, शक्ति का विकास, खून का कोलस्ट्रॉल कम होता है ! यह मुद्रा मधुमेह, यकृत् (जिगर)- के दोषोंको दूर करती है !!

सावधानी:- दुर्बल व्यक्ति इसे न करे ! गर्मी में ज्यादा समय तक न करे !!

७ : वरुण-मुद्रा : विधि:- कनिष्ठा अँगुली को अँगूठे से लगाकर मिलाये !!

लाभ:- यह मुद्रा शरीर में रूखापन नष्ट करके चिकनाई बढ़ाती है, चमड़ी चमकीली तथा मुलायम बनाती है ! चर्म-रोग, रक्त-विकार एवं जल-तत्त्व की कमी से उत्पन्न व्याधियों को दूर करती है ! मुँहासों को नष्ट करती और चेहरे को सुन्दर बनाती है !!

सावधानी:- कफ-प्रकृतिवाले इस मुद्राका प्रयोग अधिक न करें !!

८ : अपान-मुद्रा : विधि:- मध्यमा तथा अनामिका अँगुलियों को अँगूठे के अग्रभाग से लगा दे !!

लाभ:- शरीर और नाड़ी की शुद्धि तथा कब्ज दूर होता है ! मल-दोष नष्ट होते हैं, बवासीर दोर होता है ! वायु-विकार, मधुमेह, मूत्रावरोध, गुर्दोंके दोष, दाँतोंके दोष दूर होते हैं ! पेटके लिये उपयोगी है, हृदय-रोगमें फायदा होता है ! तथा यह पसीना लाती है !!

सावधानी:- इस मुद्रासे मूत्र अधिक होगा !!

९ : अपान वायु या हृदय-रोग-मुद्रा : विधि:- तर्जनी अँगुली को अँगूठेके मूल में लगाये तथा मध्यमा और अनामिका अँगुलियों को अँगूठे के अग्रभाग से लगा दे !!

लाभ:- जिनका दिल कमजोर है, उन्हें इसे प्रतिदिन करना चाहिये ! दिल का दौरा पड़ते ही यह मुद्रा कराने पर आराम होता है ! पेट में गैस होने पर यह उसे निकाल देती है ! सिर-दर्द होने तथा दमे की शिकायत होने पर लाभ होता है ! सीढ़ी चढ़ने से पाँच-दस मिनट पहले यह मुद्रा करके चढ़े ! इससे उच्च रक्तचाप में फायदा होता है !!

सावधानी:- हृदय का दौरा आते ही इस मुद्रा का आकस्मिक तौरपर उपयोग करे !!

१० : प्राण-मुद्रा : विधि:- कनिष्ठा तथा अनामिका अँगुलियों के अग्रभाग को अँगूठे के अग्रभाग से मिलायें !!

लाभ:- यह मुद्रा शारीरिक दुर्बलता दूर करती है, मन को शान्त करती है, आँखों के दोषों को दूर करके ज्योति बढ़ाती है, शारीर की रोग-प्रतिरोधक शक्ति बढ़ाती है, विटामिनों की कमी को दूर करती है तथा थकान दूर करके नवशक्ति का संचार करती है ! लंबे उपवास-काल के दौरान भूख-प्यास नहीं सताती तथा चेहरे और आँखों एवं शरीर को चमकदार बनाती है ! अनिद्रा में इसे ज्ञान-मुद्रा (संख्या १ )- के साथ करे !!

११ : लिङ्ग-मुद्रा : विधि:- अपने दोनो हांथो को मिलाकर मुठ्ठी बाँधे तथा बायें हाथ के अँगूठे को खड़ा रखे, अन्य अँगुलियाँ बँधी हुई रखे !!

लाभ:- शरीरमें गर्मी बढ़ाती है ! सर्दी, जुकाम, दमा, खाँसी, साइनस, लकवा तथा निम्न रक्तचाप में लाभप्रद है, कफ को सुखाती है !!

सावधानी:- इस मुद्रा का प्रयोग करने पर जल, फल, फलों का रस, घी और दूध का सेवन अधिक मात्रा में करे ! इस मुद्रा को अधिक लम्बे समय तक न करे यह सरीर में गर्मी लाती है !!

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