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★★★प्रशंसा—>से प्रसन्ता एवं तरिस्कार—>से अप्रसन्नता क्यूँ…?.
★★★पहले हम तरिस्कार से अप्रसन्नता , दुख , क्लेश क्यूँ होता है…?

★★★इस का कारण समझें।। ये एक स्वभाविक प्रतिक्रिया है।।जब किसी व्यक्ति के मस्तिष्क में नकारात्मक सोच विचार—> {Negative think ,thought}भर जाते है।।यह नकारात्मकता वास्तव में होती क्या है…?इस में दुसरो में बुराई ही दिखाई देती है अर्थ यह कि कुछ अच्छा दिखाई ही न दे सब में सिर्फ दोष ही दिखाई देते हो।। यह है नकारात्मकता{negativity}।। तो ऐसा व्यक्ति ईर्ष्या ,क्रोध से भर जाता है।।यह स्वभाविक ही होता है कोई जान भुझ कर नही होता ऐसा।। और यह सब नकारात्मक {Negative}में आता है।।ऐसा व्यक्ति दूसरों का तरिस्कार ,अपमान करता है।।जैसे ही हमारा तरिस्कार ,अपमान होता है तो जो नकारात्मक प्रभाव होता है।। उस व्यक्ति की सोच विचार से जो नकारात्मक शब्द उस की ज़ुबान से दूसरे के तरिस्कार के लिए निकलते है तो वह सब उस व्यक्ति के वाणीं से दूसरे के कानो के दुआर से सीधे मस्तिष्क के अन्दर प्रवेश कर जाते है ।।जिस से सारी नकारात्मकता{negativity}उस तरिस्कृत हुय व्यक्ति के भर जाती है ।। जिस से सुनने वाले के भी सोच विचार में वह नकारात्मकता{ negativity} होने लगती है।।उसी नकारात्मक सोच एवं विचार के होने से ही ये सब दुःख ,क्लेश,कष्ट होते है।।अपने तरिस्कार एवं अपमान के होने से।।जैसे शब्द हमारे कानो में पड़ते है वैसे ही सोच विचार हम में आते है।।यह सब स्वभाविक ही होगा।। नकारात्मक शब्दों का प्रभाव नकारात्मक ही होगा।।दुःख क्लेश एवं कष्ट दायक।।तो इसी लिए ही तरिस्कार एवम अपमान से हम को दुःख होता है क्योंकि तरिस्कार होना एक नकारात्मकता{ negativity} जन्म देता है…!!.

★★★ ऐसे में ही हमें नकारात्मकता{ negativity} हो जाने से यह सब दुःख क्लेश एवं कष्ट होता है।। ये सब स्वाभाविक क्रियाएं है।।क्योंकि जैसा ही दूसरा हमसे बूरा व्यवहार करता है तो वह नकारात्मकता में होता है।।.

★★★इस नकारात्मकता{ negativity} स्वंम को दूर कैसे करें—?

★★★इस का हल ये ही होगा जितना हो सके हम ऐसे वातावरण में रहें।।जिस में हमारे आस पास ज़्यादा से ज़्यादा सब ही सकारात्मक{positive} वातावरण हो…!!✍🏼👍🏼😇.
★★★अब हम जानते है।।प्रशंसा से प्रसन्ता क्यूँ—?

★★★यह जानिए यह भी स्वभाविक ही है।।जब भी कोई सकारात्मक{positive} उर्जा से भरा होता है।।तो उस व्यक्ति को दुसरो में सिर्फ अच्छाई ही दिखाई देती है।।किसी में भी कोई बुराई नज़र ही नही आती है।।सब अच्छा ही दिखाई दे।।वह होती है सकारात्मक{positive}।।.

★★★जैसे ही कोई किसी व्यक्ति किसी की प्रशंसा करता है।। तो वह व्यक्ति सकारात्मक सोच विचार{positive think , thought} से भरा हुआ होता है।।यानी किसी की प्रशंसा करना सकारात्मकता{ positivity} होता है।।जब भी किसी के दुआरा हम अपनी प्रशंसा को सुनते है तो सारी सकारात्मक{positive} ऊर्जा हमारे मस्तिष्क के भीतर प्रवेश कर जाती है।।जिस से हमारे सोच विचार भी सकारात्मक{positive} होने लगते है।।जैसे ही हमारे भीतर सकात्मक सोच विचार भरने लगते है तो उस सकारात्मक{positive} ऊर्जा के आने से हमको प्रसन्ता होती है।।यह स्वभाविक ही होता है।।.

★★★कोई प्रशंसा करता है तो वह सकारात्मक सोच विचार होने के कारण से करता है।।उसी के भीतर की सकारात्मकता{positivity} भीतर चली जाती है ।। तभी हमको पसन्ता होती है।।.

★★★बस अब इतना ही समझें हम।।किसी की प्रशंसा एक सकारात्मकता{ positivity}।।जिस में खुशी सुख एवं आनन्द की प्राप्ति होती है।।एवं किसी का तरिस्कार करना नाकारात्मकता{Negativity} है।। जिस से दुख , क्लेश एवं ही मिलता है।।दुसरो में दोष दृष्टि रखना नाकारात्मकता{negativity} को जन्म देता है।। जिस से दुख क्लेश एवम कष्ट होते है ।।और उस के कारण कोई नही हम स्वंम ही होते है ।।इस लिए दूसरों की प्रशंसा करने की आदत डालिए जिस से सकारात्मक{positve}सोच विचार सबके जीवन के भीतर आए…!!


😊…आनंद में रहो…!🌿🍀
☺…मौज में रहो…!🍃☘

🙏☺..आप का हर पल हर दिन सदैव आनंदित हो मंगलमय हो…!!☺🙏

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