Phone

9140565719

Email

mindfulyogawithmeenu@gmail.com

Opening Hours

Mon - Fri: 7AM - 7PM

    शांत मन ही आत्मा की ताकत है, शांत मन में ही ईश्वर विराजते हैं। 

   जब पानी उबलता है तो हम उसमें अपना प्रतिबिम्ब नहीं देख सकते हैं और शांत  पानी में हम खुद को देख सकते हैं।

   ठीक वैसे ही अगर हमारा हृदय शांत रहेगा तो हमारी आत्मा के वास्तविक स्वरूप को हम देख सकेंगे।

*************************************

    जब मनुष्य कोई गलती कर बैठता है, तब उसे अपनी भूल का भय लगता है। वह सोचता है कि दोष को स्वीकार कर लेने पर मैं अपराधी समझा जाऊँगा, लोग मुझे बुरा भला कहेंगे और गलती का दंड भुगतना पड़ेगा। वह सोचता है कि इन सब झंझटों से बचने के लिए यह अच्छा है कि गलती को स्वीकार ही न करूँ, उसे छिपा लूँ या किसी दूसरे के सिर मढ़ दूँ।

    इस विचारधारा से प्रेरित होकर काम करने वाले व्यक्ति भारी घाटे में रहते हैं। एक दोष छिपा लेने से बार-बार वैसा करने का साहस होता है और अनेक गलतियों को करने एवं छिपाने की आदत पड़ जाती है। दोषों के भार से अंतःकरण दिन-दिन मैला, भद्दा और दूषित होता जाता है और अंततः वह दोषों की, भूलों की खान बन जाता है। गलती करना उसके स्वभाव में शामिल हो जाता है।

   भूल को स्वीकार करने से मनुष्य की महत्ता कम नहीं होती वरन् उसके महान आध्यात्मिक साहस का पता चलता है। गलती को मानना बहुत बड़ी बहादुरी है। जो लोग अपनी भूल को स्वीकार करते हैं और भविष्य में वैसा न करने की प्रतिज्ञा करते हैं वे क्रमश: सुधरते और आगे बढ़ते जाते हैं। गलती को मानना और उसे सुधारना, यही आत्मोन्नति का सन्मार्ग है। तुम चाहो, तो अपनी गलती स्वीकार कर निर्भय, परम नि:शंक बन सकते हो।

********************************

यूं तो प्रत्येक व्यक्ति स्वार्थी है । “”स्वार्थ तो आत्मा का स्वभाव है””. यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है। क्योंकि जिस में कमियां होती हैं , वह अपनी उन कमियों को पूरा करना चाहता है। बस “”अपनी कमी को पूरा करना , यही तो स्वार्थ है.””

आत्मा में स्वभाव से बहुत सारी कमियां है । इसलिए आत्मा स्वभाव से स्वार्थी है। यह कोई आश्चर्य या अनहोनी बात नहीं है । परंतु अपनी स्वार्थ पूर्ति के लिए लोग तरह-तरह के उपाय अपनाते हैं । दूसरों को खुश करने की कोशिश में लगे रहते हैं । वे ऐसा सोचते हैं , यदि सामने वाला व्यक्ति मुझसे खुश हो गया , तो कहीं ना कहीं मेरे स्वार्थ पूर्ति में वह काम आएगा , कुछ न कुछ मुझे सहयोग देगा । इसलिए लोग दूसरों को खुश करने में लगे रहते हैं । यहां तक भी कोई बुरी बात नहीं है। परंतु सत्य ईमानदारी सेवा परोपकार दान दया आदि उत्तम उपायों से यदि आप दूसरों को खुश करते हैं , तो ये बहुत पुण्य के कार्य हैं।

यदि झूठ छल कपट चालाकी धोखाबाजी करके बेईमानी से आप दूसरों को खुश करना चाहते हैं , तो ये अनुचित और पाप कमाने वाले कार्य हैं। ऐसे पाप के कार्यों से बचें । तथा उत्तम कर्म करते हुए दूसरों को खुश करके पुण्य कमाएं।

***************************************************

संसार में दो प्रकार के लोग होते हैं । एक, अनुशासन में रहने वाले। और दूसरे, अनुशासन को भंग करके जब पकड़े जाते हैं तब माफी मांगने वाले। कष्ट तो दोनों को होता है। जो लोग अनुशासन में रहते हैं उनको अनुशासन के पालन करने का कष्ट होता है । और जो दूसरे लोग अनुशासन भंग करने वाले हैं , जब अनुशासन भंग करके पकड़े जाते हैं , तब उन्हें प्रशासन की ओर से जब दंड मिलने लगता है, तब वे माफी मांगने लगते हैं , उनको माफी मांगने पर कष्ट होता है ।
शायद आपने भी जीवन में कभी ना कभी यह दूसरी स्थिति अनुभव की होगी। अर्थात आपके पास दोनों प्रकार का अनुभव होगा । तो अपने दोनों अनुभवों की तुलना करके देख लेवें। निष्पक्ष भाव से तुलना करेंगे , तो आपको पता चल जाएगा कि अनुशासन में रहना कम कष्टदायक है; और अनुशासन भंग करने पर दंड के समय माफी मांगना अधिक कष्ट दायक है , तथा अपमानजनक है। इसलिए अपने अनुभव के आधार पर यही निर्णय लेना उचित है, कि भविष्य में अनुशासन में रहेंगे, अनुशासन को भंग नहीं करेंगे। क्योंकि अनुशासन भंग करना अधिक महंगा पड़ता है ।

जय श्री कृष्ण🙏🙏

Recommended Articles

Leave A Comment