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हम जीवन में एक दूसरे को सुख देते रहते हैं । कभी-कभी दूसरों को परेशान भी करते हैं । ऐसा ही दूसरे लोग हमारे साथ भी करते हैं । वे लोग भी कभी हमें सुख देते हैं , और कभी दुख देते हैं ।
*प्रत्येक व्यक्ति कर्म करने में स्वतंत्र है । इसका अर्थ है कि, “दूसरे लोग अपना कार्य अपनी इच्छा संस्कार और बुद्धि से करते हैं । हम भी अपना कार्य अपनी इच्छा संस्कार और बुद्धि से करते हैं ” *, इसी का नाम कर्म करने की स्वतंत्रता है*.
*परंतु यदि आप अपने जीवन को उत्तम बनाना चाहते हैं , तो दूसरों को सदा सुख देवें।*
यदि आप दूसरों को सुख देते हैं , तब आपका जीवन सर्वोत्तम है । तभी आपका जीवन सफल है, आप कार्य कुशल कहलाएंगे।
यदि दूसरे लोग आपको सुख देते हैं , तो वे सफल माने जाएंगे ।
हमारी कामना है , कि सभी लोग सफल हों, एक दूसरे को सुख देवें। कोई किसी को दुख ना देवे। इसी में जीवन की सफलता है , यही मानवता है। –

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