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क्या प्रारब्ध की धारणा से व्यक्ति अकर्मण्य बनता है?

ऐसा अक्सर कहा जाता है कि आज हम जो भी फल भोग रहे हैं वह हमारे पूर्वजन्म के कर्म के कारण है लेकिन यह बात पूर्णत: सत्य नहीं है। इसका मतलब यह कि इसमें कुछ तो सच है। अक्सर समाज में ऐसी धारणाएं प्रचलित हो जाती है और इस धारणा के चलते हिन्दू धर्म को भाग्यवादियों का धर्म मान लिया जाता है।

इस धारणा के चलते यह भी मान लिया जाता है कि फिर तो हमें कोई कर्म करना ही नहीं चाहिए जब सबकुछ पूर्वजन्म से ही तय और निश्चित है तो।… लेकिन ऐसी धारणा का प्रचलन समाज में इसलिए होता है क्योंकि अधिकांश लोग कर्म के सिद्धांत को पूर्णत: समझते नहीं है।

वर्तमान जन्म में हमारा जो प्रारब्ध है, वह वास्तव में हमारे संचित का मात्र एक अंश है; जो अनेक जन्मों से हमारे खाते में जमा हुआ है।

हमारे जीवन में यद्यपि पूर्व निर्धारित इस लेन-देन और प्रारब्ध को हम पूरा करते भी हैं; तथापि जीवन के अंत में अपने क्रियमाण (ऐच्छिक) कर्मों द्वारा उसे बढाते भी हैं, जीवन के अंत में यह हमारे समस्त लेन-देन में संचित के रूप में जोडा जाता है।

परिणामस्वरूप इस नए लेन-देन को चुकाने के लिए हमें पुनः जन्म लेना पडता है और हम जन्म-मृत्यु के चक्र में फंस जाते हैं ।

कभी-कभी लोग सोचते हैं कि बार-बार जन्म लेने में अनुचित क्या है ? जैसे ही हम वर्तमान कलियुग में (संघर्ष के युग में) आगे बढेंगे, वैसे जीवन समस्याआें तथा दुःखों से घिर जाएगा।

आध्यात्मिक शोध द्वारा यह पता चला है कि विश्‍वभर में औसतन ३०% समय मनुष्य खुश रहता है तथा ४०% समय वह दुखी ही रहता है, शेष ३०% समय मनुष्य उदासीन रहता है।

इस दशा में उसे सुख-दुख का अनुभव नहीं होता.जब कोई व्यक्ति रास्ते पर चल रहा होता है अथवा कोई व्यावहारिक कार्य कर रहा होता है तब उसके मन में सुखदायक अथवा दुखदायक विचार नहीं होते, वह केवल कार्य करता है।

इसका प्राथमिक कारण है कि अधिकतर व्यक्तियों का आध्यात्मिक स्तर अल्प होता है, इसीलिए अनेकों बार हमारे निर्णय एवं आचरण से अन्यों को कष्ट होता है, साथ ही, वातावरण में रज-तम फैलाते है।

फलस्वरूप नकारात्मक कर्म और लेन-देन का हिसाब बढता है, इसीलिए अधिकतर मनुष्यों के लिए वर्तमान जन्म की अपेक्षा आगे के जन्म दुखदायी होते हैं।

यद्यपि विश्‍व ने आर्थिक, वैज्ञानिक और तकनीकी प्रगति की है, तथापि सुख (जो हमारे जीवन का मुख्य ध्येय है) के संदर्भ में, हम पिछली पीढियों की अपेक्षा निर्धन हैं।

हम सब सुख चाहते हैं; परंतु प्रत्येक का अनुभव है कि जीवन में दुख आते ही हैं, ऐसे में अगले जन्म में और भविष्य के जीवन में सर्वोच्च तथा चिरंतन सुख प्राप्त होने की निश्चित नहीं है, केवल आध्यात्मिक उन्नति और ईश्‍वर से एकरूपता ही हमें निरंतर और स्थायी सुख दे सकते हैं।

जय जय श्री राधे
[ सबसे बड़े हीतेषी आपके भगवान ही हो
हैं। संसारी प्राणी केवल आपके गुणों को ही पसंद करेंगे अवगुणों को नहीं, आपकी गलतियों को ही याद रखेंगे आपके अच्छे कार्यो को नहीं, आपके साथ सुख में ही शामिल होंगे दुख में नहीं, आपसे मित्रता तब तक ही करेंगे जब तक आपसे लाभ होता रहे।

परंतु परमात्मा आपके हर समय साथ है। सुख – दुख, अमीरी – गरीबी, लाभ – हानि, यश – अपयश, वो आपका हाथ कभी नहीं छोड़ सकते। इसलिए जो कहना है अपने भगवान से कहनी चाहिए। वो आपकी भावनाओं को समझेंगे। सांसारिक प्राणी तो आपकी हँसी बना देंगे।

Զเधॆ Զเधॆ🙏🙏
[किसी भी चीज में बहुत अधिक मोह होना भी परेशानियों का कारण बन जाता है। कई लोग मोह के कारण सही और गलत का भेद भूल जाते हैं। मोह को जड़ता का प्रतीक माना गया है। जड़ता यानी यह व्यक्ति को आगे बढ़ने नहीं देता है, बांधकर रखता है। मोह में बंधा हुआ व्यक्ति अपनी बुद्धि का उपयोग भी ठीक से नहीं कर पाता है। यदि व्यक्ति आगे नहीं बढ़ेगा तो कार्यों में सफलता नहीं मिल पाएगी।
धृतराष्ट्र को दुर्योधन से और हस्तिनापुर के राज-पाठ से अत्यधिक मोह था। इसी कारण धृतराष्ट्र अपने पुत्र दुर्योधन द्वारा किए जा रहे अधार्मिक कर्मों के लिए भी मौन रहे। इस मोह के कारण कौरव वंश का सर्वनाश हो गया।

Զเधॆ Զเधॆ🙏🙏
: 🍃🌾😊
परमात्मा को स्मरण आप चाहे जिस नाम से करें उसे कहते हैं, सिमरन। यह पैरो से नहीं होता है। वर्ना विकलांग कभी नहीं कर पाते। सिमरन न ही आँखो से होता है, वर्ना सूरदास जी कभी नहीं कर पाते।। ना ही सिमरन बोलने सुनने से होता है। वर्ना गूँगे बहरे कभी नहीं कर पाते।। और अगर सिमरन केवल धन से सम्भव होता। तो यह रईसों का शौक बन के रह जाता।। सिमरन केवल भाव से होता है। एक अहसास है, सिमरन जो हृदय से होकर विचारों में आता है।। और हमारी आत्मा से जुड़ जाता है। सिमरन भाव का सच्चा सागर है।।

      *!!  हरि  ॐ !!*
               🙏


दुःख में सुख खोज लेना, हानि में लाभ खोज लेना, प्रतिकूलताओं में भी अवसर खोज लेना इस सबको सकारात्मक दृष्टिकोण कहा जाता है। जीवन का ऐसा कोई बड़े से बड़ा दुःख नहीं जिससे सुख की परछाईयों को ना देखा जा सके। जिन्दगी की ऐसी कोई बाधा नहीं जिससे कुछ प्रेरणा ना ली जा सके।
रास्ते में पड़े हुए पत्थर को आप मार्ग की बाधा भी मान सकते हैं और चाहें तो उस पत्थर को सीढ़ी बनाकर ऊपर भी चढ़ सकते है। जीवन का आनन्द वही लोग उठा पाते हैं जिनका सोचने का ढंग सकारात्मक होता है।
इस दुनिया में बहुत लोग इसलिए दुखी नहीं कि उन्हें किसी चीज की कमीं है अपितु इसलिए दुखी हैं कि उनके सोचने का ढंग नकारात्मक है। सकारात्मक सोचो, सकारात्मक देखो। इससे आपको अभाव में भी जीने का आनन्द आ जायेगा।
आपकी ख़ुशी इस बात पर निर्भर नहीं करती कि आपके पास कितनी सम्पत्ति है अपितु इस बात पर निर्भर करती है कि आपके पास कितनी समझ है।

🙏 जय श्री राधे कृष्ण 🙏

🕉 मनुष्य को अपना लक्ष्य बनाना चाहिए कि इस उम्र में हमें क्या करना है ? हमें परमात्मा को प्राप्त करना है, अपना कल्याण करना है, अपनी मुक्ति करना है–ऐसा लक्ष्य बनाना चाहिए।

🕉अगर हमारा लक्ष्य हो जाए कि हमें परमात्मा की प्राप्ति करनी है तो परमात्मा प्राप्ति करना बहुत सुगम हो जाएगा। लक्ष्य बनाए बिना आप करोगे क्या ? घर से बाहर निकल गए तो कहां जाना है–इसका पता तो होना चाहिए। अगर कहां जाना है इसका पता नहीं तो फिर कहीं भी चले जाओ, मार्ग बताने की क्या जरूरत है ?

🕉आपका लक्ष्य ही नहीं बनेगा तो किसी से क्या उपाय पूछोगे और दूसरा क्या उपाय बताएगा ? इसलिए सब भाई-बहनों को लक्ष्य बनाना चाहिए कि हमें इस उम्र में यह काम करना है। चाहे वह काम पूरा हो या ना हो पर लक्ष्य तो होना चाहिए।।

 *जय श्री राम*🚩🚩🚩

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