🌹ॐ नमः शिवाय !!
जय उमामहेश्वर जी !!
जय माँ जगदम्बा !!
साधक सीखनेकी वृत्ति निर्माण करें :- जब भी हम कोई नूतन सेवा करते हैं तो हमसे चूकें होती हैं, इसके पीछे उस सेवा के प्रति अनभिज्ञता एवं हमारे दोष उत्तरदाई होते हैं। कुछ साधक सेवा इसलिए नहीं करना चाहते हैं; क्योंकि उनसे चूकें होंगी और उनकी चूकें या तो उन्हें स्वयं बतानी पड़ेगी या उन्हें बताया जाएगा। (हमारे श्री सन्तों ने हमें सेवा को परिपूर्ण करने हेतु उसे चूकविरहित करना सिखाया है और इसी क्रम में सेवा के मध्य होने वाली चूकें हम स्वयं बताते हैं या हमें बताई जाती है)। ध्यान रहे, जब भी कुछ नूतन सीखने का प्रयास करते हैं तो चूकें होती ही हैं; किन्तु यदि उस सेवा को आरम्भ करने से पूर्व यदि हम अच्छे से अभ्यास कर लें और सतर्क रहें तो चूकें अपेक्षाकृत अल्प होंगी ! चूकों के भय से यदि हम कुछ नूतन करना या सीखना नहीं चाहते हैं तो हमारे सीखने की प्रक्रिया बंद हो जाएगी, इससे हमारी प्रगति भी रुक जाती है ! शास्त्रविदित है जो सदैव कुछ नूतन सीखते रहता है वह दूसरों को भी नित्य कुछ सिखा सकता है और सतत सीखते रहने की प्रकिया से अहं भी न्यून रहता है; क्योंकि उसे ज्ञात होता है कि अभी भी इस संसार में बहुत कुछ सीखने को है ! चूक करने से न भयभीत न हों, मात्र चूकें जान बूझकर नहीं करनी चाहिए एवं पुनः-पुनः एक ही प्रकार की चूकें नहीं होनी चाहिए। इस हेतु स्वाभाव-दोष निर्मूलन प्रक्रिया को सतर्कता से करना चाहिए यही स्वामी विवेकानंद जी ने सीख दी है। देवाधिदेव श्री महादेव जी आप सहपरिवार का सदा मङ्गल करें।
“शुभ-चन्द्रवार-वन्दनम’
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!! जय गौरीशा जी !!