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पछतावा

आस्ट्रेलिया की ब्रोनी वेयर कई वर्षों तक कोई meaningful काम तलाशती रहीं,

लेकिन कोई शैक्षणिक योग्यता एवं अनुभव न होने के कारण बात नहीं बनी।

फिर उन्होंने एक हॉस्पिटल की Palliative Care Unit में काम करना शुरू किया।

यह वो Unit होती है जिसमें Terminally ill या last stage वाले मरीजों को admit किया जाता है। यहाँ मृत्यु से जूझ रहे लाईलाज बीमारियों व असहनीय दर्द से पीड़ित मरीजों के मेडिकल डोज़ को धीरे-धीरे कम किया जाता है और काऊँसिलिंग के माध्यम से उनकी spiritual and faith healing की जाती है

ताकि वे एक शांतिपूर्ण मृत्यु की ओर उन्मुख हो सकें।

ब्रोनी वेयर ने ब्रिटेन और मिडिल ईस्ट में कई वर्षों तक मरीजों की counselling करते हुए पाया कि मरते हुए लोगों को कोई न कोई पछतावा ज़रूर था।

कई सालों तक सैकड़ों मरीजों की काउंसलिंग करने के बाद ब्रोनी वेयर ने मरते हुए मरीजों के सबसे बड़े ‘पछतावे’ या ‘regret’ में एक कॉमन पैटर्न पाया।

जैसा कि हम सब इस universal truth से वाकिफ़ हैं कि मरता हुआ व्यक्ति हमेशा सच बोलता है, उसकी कही एक-एक बात epiphany अर्थात ‘ईश्वर की वाणी’ जैसी होती है। मरते हुए मरीजों के इपिफ़नीज़ को ब्रोनी वेयर ने 2009 में एक ब्लॉग के रूप में रिकॉर्ड किया। बाद में उन्होनें अपने निष्कर्षों को एक किताब “THE TOP FIVE REGRETS of the DYING” के रूम में publish किया। छपते ही यह विश्व की Best Selling Book साबित हुई और अब तक लगभग 29 भाषाओं में छप चुकी है। पूरी दुनिया में इसे 10 लाख से भी ज़्यादा लोगों ने पढ़ा और प्रेरित हुए।

ब्रोनी द्वारा listed ‘पाँच सबसे बड़े पछतावे’ संक्षिप्त में ये हैं:

1) “काश मैं दूसरों के अनुसार न जीकर अपने अनुसार ज़िंदगी जीने की हिम्मत जुटा पाता!”

यह सबसे ज़्यादा कॉमन रिग्रेट था, इसमें यह भी शामिल था कि जब तक हम यह महसूस कर पाते हैं कि अच्छा स्वास्थ्य ही आज़ादी से जीने की राह देता है तब तक यह हाथ से निकल चुका होता है।

2) “काश मैंने इतनी कड़ी मेहनत न की होती”

ब्रोनी ने बताया कि उन्होंने जितने भी पुरुष मरीजों का उपचार किया लगभग सभी को यह पछतावा था कि उन्होंने अपने रिश्तों को समय न दे पाने की ग़लती मानी।
ज़्यादातर मरीजों को पछतावा था कि उन्होंने अपना अधिकतर जीवन अपने कार्य स्थल पर खर्च कर दिया!
उनमें से हर एक ने कहा कि वे थोड़ी कम कड़ी मेहनत करके अपने और अपनों के लिए समय निकाल सकते थे।

3) “काश मैं अपनी फ़ीलिंग्स का इज़हार करने की हिम्मत जुटा पाता”

ब्रोनी वेयर ने पाया कि बहुत सारे लोगों ने अपनी भावनाओं का केवल इसलिए गला घोंट दिया ताकि शाँति बनी रहे, परिणाम स्वरूप उनको औसत दर्ज़े का जीवन जीना पड़ा और वे जीवन में अपनी वास्तविक योग्यता के अनुसार जगह नहीं पा सके! इस बात की कड़वाहट और असंतोष के कारण उनको कई बीमारियाँ हो गयीं!

4) “काश मैं अपने दोस्तों के सम्पर्क में रहा होता”

ब्रोनी ने देखा कि अक्सर लोगों को मृत्यु के नज़दीक पहुँचने तक पुराने दोस्ती के पूरे फायदों का वास्तविक एहसास ही नहीं हुआ था!
अधिकतर तो अपनी ज़िन्दगी में इतने उलझ गये थे कि उनकी कई वर्ष पुरानी ‘गोल्डन फ़्रेंडशिप’ उनके हाथ से निकल गयी थी। उन्हें ‘दोस्ती’ को अपेक्षित समय और ज़ोर न देने का गहरा अफ़सोस था। हर कोई मरते वक्त अपने दोस्तों को याद कर रहा था!

5) “काश मैं अपनी इच्छानुसार स्वयं को खुश रख पाता!!!”

आम आश्चर्य की यह एक बहुत ही महत्वपूर्ण बात सामने आयी कि कई लोगों को जीवन के अन्त तक यह पता ही नहीं लगता है कि ‘ख़ुशी’ भी एक choice है!

हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि-
‘ख़ुशी वर्तमान पल में है’…
‘Happiness Is Now’…

🙏🙏🌹🌹 सभी व्यस्त मित्रों को सादर समर्पित 🙏
[ ज्योतिष शास्त्र में ग्रह-नक्षत्रों और उनके मंत्रों द्वारा सौंदर्य और आकर्षक व्यक्तित्व पाने के तरीके बताए गए हैं। वेदिक ज्योतिष के अनुसार सौंदर्य, आकर्षक, ग्लैमर और लग्जरी लाइफ का कारक ग्रह शुक्र है। जिन लोगों की कुंडली में मजबूत और शुभ शुक्र ग्रह होता है उनमें एक विशेष तरह का ओरा होता है। ऐसे लोगों के संपर्क में जब भी कोई आता है, वह सम्मोहित सा हो जाता है। ज्योतिष में मनुष्य के व्यक्तित्व को आकर्षक बनाने के लिए कुछ उपाय बताए गए हैं।
आइए जानें उनके बारे में-

1.
लक्ष्मी न सिर्फ धन की देवी है, बल्कि सुख, सौंदर्य, आकर्षण और प्रभावी व्यक्तित्व प्रदान करने वाली देवी भी है। इसीलिए शुक्र ग्रह की प्रतिनिधि देवी महालक्ष्मी है। लक्ष्मी की आराधना करने से शुक्र से संबंधित व्यक्ति के जीवन में साकार होने लगते हैं। इससे शुक्र प्रसन्न होते हैं और व्यक्ति को मनचाहा सौंदर्य के साथ लक्ष्मी की कृपा से धन की भी प्राप्ति होती है।

2.
शुक्र का बीज मंत्र अत्यंत चमत्कारी बताया गया है। शुक्र को बीज मंत्र का प्रतिदिन जाप करने से व्यक्ति के चारों ओर एक पॉजिटिव ओरा बनता है। उसके आस पास एक ऐसी आकर्षण उर्जा का प्रवाह होने लगता है, जिससे उसके चेहरे पर चमक आती है। व्यक्तित्व और वाणी में आकर्षण प्रभाव होता है। ऐसा व्यक्ति सैकड़ों लोगों को एक साथ सम्मोहित करने में सफल होता है। ऐसे व्यक्ति से हर कोई प्रभावित रहता है। बीज मंत्र का पूरा लाभ लेने के लिए लगातार 40 दिनों तक 20 हजार मंत्र जाप करें। मंत्र: ॐ द्राम दृम द्रौम सः
शुक्राय नमः।।

3.
शुक्र से संबंधित वस्तुओं के दान से भी सौंदर्य की प्राप्ति की जा सकती है। शुक्रवार के दिन कपड़े और दही का दान करें। इससे शुक्र के बुरे प्रभाव नष्ट होकर शुभ प्रभावों में वृद्धि होती है। शुक्र से संबंधित गुण व्यक्ति के जीवन में आने लगते हैं। व्यक्ति के मुख पर विशिष्ट प्रकार का ओज आने लगता है।

4.
ऋग्वेद में आया श्री सूक्त अद्भुत और चमत्कारी है। श्री सूक्त में साक्षात महालक्ष्मी का वास होता है। इसके प्रतिदिन पाठ से न केवल लक्ष्मी की प्राप्ति होती है, बल्कि शुक्र को मजबूत करने में चमत्कारिक रूप से असरदार है। लुक, आकर्षण प्रभाव, चेहरे की चमक, स्वस्थ और सुंदर शरीर पाने के लिए श्री सूक्त का वेदिक विधि से पाठ करना चाहिए।

5.
शुक्र की पॉजिटिव एनर्जी हासिल करने के लिए शुक्रवार का व्रत रखना चाहिए। यह व्रत करने वाले व्यक्ति की आंखों में तीव्र आकर्षण प्रभाव पैदा होता है। जब कोई विपरीत लिंगी व्यक्ति उसकी आंखों में देखता है तो तुरंत आकर्षित हो जाता है।

6.
शुक्र को मजबूत बनाने के लिए छह मुखी रूद्राक्ष भी धारण किया जा सकता है। कमजोर शुक्र के कारण आ रही परेशानियां छह मुखी रूद्राक्ष पहनने से दूर हो जाती है और व्यक्ति को अपने शानदार व्यक्तित्व के कारण हर जगह सफलता मिलने लगती है।

7.
शुक्र का प्रतिनिधि रत्न हीरा है। हीरा धारण करने से शुक्र से संबंधित समस्त गुण व्यक्ति में नजर आने लगते हैं। इसे पहनने से चमकदार आंखें, प्रभावित करने वाली आवाज, ग्लैमर, लग्जरी लाइफ की प्राप्ति होने लगती है। लेकिन ध्यान रखें हीरा तीव्र प्रभावी होता है। इसे धारण करने से पहले किसी योग्य ज्योतिषी से सलाह अवश्य लें।

8.
पेड़-पौधों की जड़ भी असरकारक होती है। अरंड मूल की जड़ में शुक्र का वास होता हे। इसे अपने ताबीज में भरकर गले या दाहिने बाजू पर शुक्रवार को बांधकर रखें। इससे शुक्र को पॉवर मिलता है और व्यक्ति सैकड़ों लोगों के समूह को निडर होकर संबोधित करने की शक्ति हासिल कर लेता है।

9.
कुछ ज्योतिषी और तांत्रिक शुक्र का यंत्र भी पास रखने की सलाह देते हैं। शुक्र यंत्र को चांदी पर बनवाकर हमेशा साथ में रखने से लक्ष्मी की प्राप्ति के साथ सौंदर्य प्राप्त होता है।

10.
प्रतिदिन प्रातः पूजा के समय केसर का तिलक लगाने से भी व्यक्ति के आकर्षण प्रभाव में वृद्धि होती है। ऐसा व्यक्ति अपनी वाणी से लोगों को मोहित कर सकता है।

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[ अपना संकल्प जगाइये, आपमें बड़ी शक्ति है।

शारीरिक अंग-प्रत्यंग और इन्द्रियाँ संसार में सबको समान रूप से मिली हैं। किन्तु फिर भी मनुष्य के जीवन क्रम और गतिविधियों में भारी अन्तर पाया जाता है। जय-पराजय, सफलता-असफलता, जीवन और मृत्यु के द्वन्द्व निरन्तर चलते रहते हैं। जो व्यक्ति अपने आन्तरिक क्षेत्र में फैली हुई संकल्प शक्ति का प्रयोग नहीं करते उन्हें पराजय, असफलता और मृत्यु प्राप्त होती है पर जिनके संस्कारों में दृढ़ता, तीव्र मनोबल और सुदृढ़ संकल्प शक्ति विद्यमान है जय, जीवन और सफलता सदैव उनकी दासी बनकर काम करती है। संकल्पवान् पुरुष ही जीवन-संग्राम विजय करते हैं, कमजोर इच्छा शक्ति वालों का साथ प्रकृति भी नहीं देती है।
[जानिए कैसे काम करती है आपकी बॉडी क्लॉक

लाइफ में कभी ना कभी आपने बॉडी क्‍लॉक के बारे में सुना ही होगा लेकिन क्‍या आपको ये पता है कि बॉडी क्‍लॉक क्‍या होती है और ये किस तरह काम करती है। बॉडी क्‍लॉक को जैविक घड़ी भी कहा जाता है और आज हम आपको आपके शरीर की इसी क्‍लॉक यानि घड़ी के बारे में बताने जा रहे हैं।

जिस तरह आप समय देखने के लिए घड़ी का इस्‍तेमाल करते हैं वैसे ही प्रकृति ने एक घड़ी हमारे शरीर के अंदर भी बनाई है जिससे समय पर शरीर से जुड़ा हर काम हो सके। प्रकृति द्वारा हमारे शरीर के अंदर बनाई गई इसी घड़ी को बॉडी क्‍लॉक कहा जाता है।

प्रकृति द्वारा बनाई गई ये घड़ी पेड़-पौधों और अन्‍य जानवरों पर भी लागू होती है। जैसे-जैसे बाहरी वातावरण में बदलाव होते हैं वैसे-वैसे हमारे शरीर के अंदर मौजूद ये जैविक घड़ी, उसके अनुसार शरीर के सभी कार्य करता है।

सूरज के उगने से अस्‍त होने तक समय एक चक्र के रूप में चलता है और इसके ही अनुसार हमारा शरीर भी सोता-जागता है और दैनिक कार्य करता है। इस क्‍लॉक के ज़रिए प्रकृति में होने वाले परिवर्तन की तरह हमारे शरीर में भी परिवर्तन होते लगते हैं।

इस धरती पर जितने भी जीव-जंतु हैं उन सभी में बॉडी क्‍लॉक होता है और करोड़ों साल पहले भी ऐसा ही हुआ करता था। रिसर्च की मानें तो इस बॉडी क्‍लॉक का मूल स्‍थान मस्तिष्‍क है।

आइए जानते हैं बॉडी क्‍लॉक के अनुसार कब कौन सा अंग काम करता है।

सुबह 3 से 5 बजे : इस समय शरीर में फेफड़े सक्रिय रहते हैं। अगर इस समय गुनगुना पानी पीकर थोड़ा टहला जाए तो फेफड़ों को शुद्ध हवा मिलने से उनकी कार्यक्षमता बढ़ सकती है।

सुबह 5 से 7 बजे : ये समय मल त्‍यागने के लिए होता है क्‍योंकि इस समय बड़ी आंत सक्रिय रहती है। इस समय ये क्रिया ना करने वाले लोगों को कब्‍ज की समस्‍या हो जाती है।

सुबह 7 बजे से 11 बजे : इस दौरान आमाशय क्रियाशील रहता है और 9 से 11 के बीच में अग्‍नाश्‍य और प्‍लीहा सक्रिय रहते हैं। भोजन करने के लिए ये समय सही रहता है।

दोपहर 11 बजे से 1 बजे तक : इस समय ऊर्जा का प्रवाह ह्रदय की ओर होने लगता है इसलिए इस दौरान ह्रदय क्रियाशील रहता है।

दोपहर 1 से 3 बजे : इस समय छोटी आंत सक्रिय रहती है। इस दौरान पानी पीना बेहतर होता है और भोजन करना, सोना या चाय पीने से शरीर को नुकसान होता है।

दोपहर 3 से 5 बजे तक : इस दौरान मूत्राशय सक्रिय रहता है। मूत्र त्‍याग के लिए ये समय सही है।

शाम 5 बजे से 7 बजे : सुबह किया गया भोजन इस समय तक पच जाता है इसलिए इस समय हल्‍का भोजन करना चाहिए।

रात 7 बजे से 9 बजे : इस दौरान अग्‍नाश्‍य और गुर्दे सक्रिय रहते हैं और दिमाग भी काम करता है। इस समय की गई पढ़ाई जल्‍दी याद हो जाती है।

रात 9 से 11 बजे : इस समय भोजन नहीं करना चाहिए। इस समय की नींद सबसे ज्‍यादा शांति देने वाली होती है इसलिए इस दौरान सो जाना चाहिए।

रात 11 बजे से 1 बजे तक : इस समय में यकृत और पित्ताश्‍य सक्रिय रहते हैं। इस समय जागते रहने से बुढापा जल्‍दी आता है।

रात 1 बजे से 3 बजे तक : इस समय लिवर काम करता है। इस समय शरीर को गहरी नींद की जरूरत होती है और ऐसा ना करने पर पाचन बिगड़ जाता है।

कुछ इस तरह बॉडी क्‍लॉक काम करती है और अगर इसे फॉलो ना किया तो सेहत बिगड़ जाती है।
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🌹जब ब्रह्माजी भी असमर्थ हुए नारदजी के एक प्रश्न का उत्तर देने में तब महादेव ने किया समाधान? 🌹💫

एक दिन नारद मुनि आकाश मार्ग से नारायण नारायण का जाप करते हुए जा रहे थे तभी उनके मष्तिक में एक अजीब सा प्रश्न आया तथा वे ब्रह्म लोक पहुंचे।

ब्रह्म लोक पहुंचकर उन्होंने ने अपने पूज्य पिता ब्र्ह्मा जी को दण्डवत प्रणाम किया। नारद को समाने देख ब्र्ह्मा जी ने पूछा कहो पुत्र ! आज कैसे आना हुआ ? तुम्हारे मुख के भाव कुछ कह रहे है ! कोई विशेष प्रयोजन अथवा कोई समस्या ?

नारद जी ने उत्तर देते हुए कहा, “ पिताश्री ऐसा कोई विशेष प्रयोजन तो नहीं है, परन्तु एक प्रश्न मन में खटक रहा है . आपसे इसका उत्तर जानने के लिए उपस्थित हुआ हूँ . ”

“तो फिर विलम्ब कैसा? मन की शंकाओं का समाधान शीघ्रता से कर लेना ही ठीक रहता है! इसलिए निः संकोच अपना प्रश्न पूछो!” – ब्रम्हाजी ने कहा।

“पिताश्री आप सारे सृष्टि के परमपिता है, देवता और दानव आप की ही संतान हैं . भक्ति और ज्ञान में देवता श्रेष्ठ हैं तो शक्ति तथा तपाचरण में दानव श्रेष्ठ हैं! परन्तु मैं इसी प्रश्न में उलझा हुआ हूँ कि इन दोनों में कौन अधिक श्रेष्ठ है। और आपने देवों को स्वर्ग और दानवों को पाताल लोक में जगह दी ऐसा क्यों?

इन्हीं प्रश्नों का उत्तर जानने के लिए मैं आपकी शरण में आया हूँ” – नारद ने ब्रम्हाजी से अपना प्रश्न बताते हुए कहा .

नारद का प्रश्न सुन ब्रम्हदेव बोले, नारद इस प्रश्न का उत्तर देना तो कठिन है और इसका उत्तर मैं नहीं दे पाऊँगा क्योंकि देव और दानव दोनों ही मेरे पुत्र हैं एवं अपने ही दो पुत्रों की तुलना अपने ही मुख से करना उचित नहीं होगा!

लेकिन फिर भी तुम्हारे प्रश्न का उत्तर ढूंढने में भगवान शिव तुम्हारी मदद अवश्य कर सकते है।

ब्र्ह्मदेव से आज्ञा लेकर नारद मुनि महादेव शिव के पास गए तथा उनके सामने अपनी समस्या रखी. महादेव शिव नारद मुनि को देख मुस्कराए तथा उन्हें आदेश दिया की तुम देव और दानवो के लिए एक भोज का आयोजन करो तथा इस भोज के लिए उन्हें निमंत्रण भेजो।

महादेव शिव के आदेशानुसार नारद मुनि ने वैसा ही किया तथा अगले दिन नारद मुनि के साथ महादेव शिव भी देवताओ और दानवो का अतिथि सत्कार करने उनके आश्रम में पधारे।

दानव नारद मुनि के आश्रम में भोजन का आनंद लेने के लिए पहले पहुँच गए और उन्होंने पहले पहुँचने के कारण भोजन की पहली शुरूआत खुद से करने के लिए भगवान शिव से आग्रह किया।

भोजन की थालियाँ परोसी गई, दानव भोजन करने के लिए बैठे, वे भोजन शुरू करने ही वाले थे कि भगवान शिव अपने हाथ में कुछ लकड़ियाँ लेकर उनके समक्ष उपस्थित हुए और उन्होंने कहा, “आज के भोजन की एक छोटी-सी शर्त है मैं यहाँ उपस्थित हर एक अतिथि के दोनों हाथों में इस प्रकार से लकड़ी बांधूंगा कि वो कोहनी से मुड़ नहीं पाए और इसी स्थिति में सभी को भोजन करना होगा।

कुछ देर बाद सभी असुरों के हाथों में लकड़ियाँ बंध चुकीं थीं. अब असुरों ने खाना शुरू किया , पर ऐसी स्थिति में कोई कैसे खा सकता था।

कोई असुर सीधे थाली में मुँह डालकर खाने का प्रयास करने लगा तो कोई भोजन को हवा में उछालकर मुँह में डालने का प्रयत्न करने लगा। दानवों की ऐसी स्थिति देखकर नारद जी अपनी हंसी नहीं रोक पाए !

अपने सारे प्रयास विफल होते देख दानव बिना खाए ही उठ गए और क्रोधित होते हुए बोले, “हमारी यही दशा ही करनी थी तो हमें भोजन पर बुलाया ही क्यों? कुछ देर पश्चात् देव भी यहाँ पहुँचने वाले हैं ऐसी ही लकड़ियाँ आप उनके हाथों में भी बांधियेगा ताकि हम भी उनकी दुर्दशा का आनदं ले सकें…. ”

कुछ देर पश्चात् देव भी वहाँ पहुँच गए और अब देव भोजन के लिए बैठे, देवों के भोजन मंत्र पढ़ते ही महादेव शिव ने सभी के हाथों में लकड़ियाँ बाँधी और भोजन की शर्त भी रखी।

हाथों में लकड़ियाँ बंधने पर भी देव शांत रहे , वे समझ चुके थे कि खुद अपने हाथ से भोजन करना संभव नहीं है अतः वे थोड़ा आगे खिसक गए और थाली से अन्न उठा सामने वाले को खिलाकर भोजन आरम्भ किया। बड़े ही स्नेह के साथ वे एक दूसरे को खिला रहे थे, और भोजन का आनंद ले रहे थे, उन्होंने भोजन का भरपूर स्वाद लिया साथ ही दूसरों के प्रति अपना स्नेह, और सम्मान जाहिर किया।

यह कल्पना हमे क्यों नहीं सूझी इसी विचार के साथ दानव बहुत दुखी होने लगे। नारद जी यह देखकर मुस्कुरा रहे थे।नारद जी ने भगवान शिव से कहा, “हे देवो के देव, आपकी लीला अगाध है। युक्ति, शक्ति और सामर्थ्य का उपयोग स्वार्थ हेतु करने की अपेक्षा परमार्थ के लिए करने वाले का जीवन ही श्रेष्ठ होता है।

दूसरों की भलाई में ही अपनी भलाई है यह आपने सप्रमाण दिखा दिया और मुझे अपने प्रश्नों का उत्तर मिल गया है।
हरि बोल 🙏🏻🙏🏻

🔆 कहिए कम-करिये ज्यादा 🔆

🔶 मानव स्वभाव की एक बड़ी कमजोरी प्रदर्शन प्रियता है। बाहरी दिखावे को वह बहुत ज्यादा पसन्द करता है। यद्यपि वह जानता और मानता है कि मनुष्य की वास्तविक कीमत उसकी कर्मशीलता, कर्मठता है। ठोस और रचनात्मक कार्य ही स्थायी लाभ, प्रतिष्ठा का कारण होता है। दिखावा और वाक शूरता नहीं। यह जानते हुये भी उसे अपनाता नहीं। इसीलिये उसे एक कमजोरी के नाम से सम्बोधित करना पड़ता है।

🔷 प्रकृति ने मनुष्य को कई अंगोपाँग दिये हैं और उनसे उचित काम लेते रहने से ही मनुष्य एवं विश्व की स्थिति रह सकती है। पर मानव स्वभाव कुछ ऐसा बन गया है कि सब अंगों का उपयोग ठीक से न कर केवल वाक्शक्ति का ही अधिक उपयोग करता है। इससे बातें तो बहुत हो जाती हैं, पर तदनुसार कार्य कुछ भी नहीं हो पाता। हो भी कैसे वह करना भी नहीं चाहता और इसीलिये दिनों दिन वाक्शक्ति का प्रभाव क्षीण होता जाता है। कार्य करने वाले को बोलना प्रिय नहीं होता, उसे व्यर्थ की बातें बनाने को अवकाश ही कहाँ होता है? वह तो अपनी वाक्शक्ति का उपयोग आवश्यकता होने पर ही करता है। अधिक बोलने से वाक्शक्ति का महत्व घट जाता है। जिसकी जबान के पीछे धर्म शक्ति का बल होता है उसी का प्रभाव पड़ता है।

🔶 वस्तुतः कार्य करना एक साधना है। इससे साधित वाक्शक्ति मंत्रवत् बलशाली बन जाती है। साधक के प्रत्येक वाक्य में अनुभव एवं कर्म साधना की शक्ति का परिचय मिलता है। इसीलिए भारतीय संस्कृति में मौन का बड़ा महत्व है। जैन तीर्थंकर अपनी साधना अवस्था में प्रायः मौनावलम्बन करते हैं। इसी से उनकी वाणी में शक्ति निहित रहती है।

🔷 वर्तमान युग के महापुरुष महात्मा गाँधी के जबरदस्त प्रभाव का कारण उनका कर्मयोग ही है। वे जो कुछ कहते उसे करके बताते थे। इसी में सचाई का बल रहता है। इस सचाई और कर्मठता के कारण ही गाँधी जी के हजारों लाखों करोड़ों अनुयायी विश्व में फैले हुये हैं। गाँधी जी अपने एक क्षण को भी व्यर्थ न खोकर किसी न किसी कार्य में लगे रहते थे। और आवश्यकता होने पर कार्य की बातें भी कर लेते थे। इसी का प्रभाव है कि बड़े-बड़े विद्वान-बुद्धिमान एवं श्रीमान् उनके भक्त बन गये।

🔶 इसे हम बराबर देखते हैं कि केवल बातें बनाने वाला व्यक्ति जनता की नजरों से गिर जाता है। पहले तो उसकी बात का कुछ असर ही नहीं होता। कदाचित उसकी ललित एवं आकर्षक कथन शैली से कोई प्रभावित भी हो जाय तो बाद में अनुभव होने पर वह सब प्रभाव जाता रहता है। वाकशूर के पीछे यदि कर्मवीरता का बल नहीं तो वह पंगु हैं। जो बात कहनी हो उसको पहिले तोलिए फिर बोलिए। शब्दों को बाण की उपमा दी गई। एक बार बाण के छूट जाने पर उसे रोकना बस की बात नहीं। लोहे का बाण तो एक ही जन्म और शरीर को नष्ट करता है पर शब्द बाण तो भविष्य की युग युगीन परम्परा को भी नष्ट कर देता है।

🔷 यह सब ठीक होते हुए भी प्रश्न उठता है कि विश्व में वाकशूर ही क्यों अधिक दिखाई देते हैं। उत्तर स्पष्ट है-बोलना सरल है। इसमें किसी तरह का कष्ट नहीं होता। कार्य करने में कष्ट होता है अपनी रुचि वृत्ति-स्वभाव बुरी आदतों पर अंकुश लगाना पड़ता है। और यह बड़ा कठिन कार्य है इन्द्रियाँ स्वच्छंद हो रही हैं, विषय वासनाओं की ओर लपलपाकर बढ़ना चाहती हैं। इनका दमन किये बिना इच्छित और उपयोगी कार्य नहीं किया जा सकता। कष्ट एवं कठिनता होने पर भी जो हमारे व विश्व के लिये आवश्यक है वह तो करना ही चाहिये। अतः सच्चे कर्म योग का अभ्यास करने की आदत डालना आवश्यक है। अभ्यास ही सिद्धि का मूलमंत्र है।

🔶 कहना हम सब को बहुत आता है। पर करना नहीं आता या चाहते नहीं। केवल दूसरों की आलोचना एवं अपनी बातें बघारना ही हमारा मनसूबा बन गया है। हमारे पांडित्य में परोपदेश और विद्या ‘विवादाय’ चरितार्थ हो रहे हैं। इन्हें हमें आत्मसुधार और विश्व उद्धार में लगाना है। अन्यथा हमारा अध्ययन ‘आप बाबाजी बैंगन खावे औरों को प्रबोध सुनावें’ सा ही रहेगा।

🔷 कई कहते हैं- “हमारी कोई सुनता ही नहीं, कहते-कहते थक गये पर सुनने वाले कोई सुनते नहीं अर्थात् उन पर कुछ असर ही नहीं होता”। मेरी राय में इसमें सुनने वालों से अधिक दोष कहने वालों का है। कहने वाले करना नहीं जानते। वे अपनी ओर देखें। आत्मनिरीक्षण कार्य की शून्यता की साक्षी दे देगा। वचन की सफलता का सारा दारोमदार कर्मशीलता में है। आप चाहे बोलें नहीं, थोड़ा ही बोलें पर कार्य में जुट जाइये। आप थोड़े ही दिनों में देखेंगे कि लोग बिना कहे आपकी ओर खिंचे जा रहे हैं। अतः कहिये कम, करिये अधिक। क्योंकि बोलने का प्रभाव तो क्षणिक होगा पर कार्य का स्थायी होता है। जैन योगी चिदानन्द जी ने क्या ही सुन्दर कहा है-
कथनी कथै कोई। रहणी अति दुर्लभ होई॥

🔶 अन्य कवियों ने भी कहा है-
कथनी मीठी खांड सी, करनी विष की लोय।
कथनी तजि करनी करै, विष से अमृत होय।1।

कथनी बदनी छांडी के, करनी सों चितलाय।
नरहिं नीर पिये बिना, करनी प्यास न जाय।2।

करनी बिन कथनी कथै, अज्ञानी दिन रात।
कूकर ज्यों भूँसत, फिरै, सुनी सुनाई बात।3।

हरि बोल 🙏🏻🙏🏻. ➖➖➖➖➖➖➖➖➖➖➖

याद करो पर हमेशा हमेशा याद करो।

एक नाव डूबी—डूबी हो रही थी। लोग घुटने टेक कर प्रार्थना कर रहे थे परमात्मा से। सिवाय उसके कोई उपाय सूझता नहीं था। तूफाना जोर का था। आंधी भयंकर थी लहरें आकाश छूने की चेष्टा कर रही थीं। नाव छोटी थी, डांवांडोल थी। पानी भीतर आ रहा था, उलीच रहे थे लेकिन कोई आशा न थी किनारा बहुत दूर…किनारे का कोई पता न चलता था। सारे लोग तो प्रार्थना कर रहे थे, लेकिन एक फकीर चुपचाप बैठा था। लोगों को उस पर बहुत नाराजगी आई लोगों ने कहा कि तुम फकीर हो, तुम्हें तो हमसे पहले प्रार्थना करनी चाहिए और तुम चुप बैठे हो! हम सबका जीवन संकट में है, तुम से इतना भी नहीं होता कि प्रार्थना करो। और हो सकता है हमारी प्रार्थना न पहुंचे क्योंकि हमने तो कभी प्रार्थना की ही नहीं पहले। तुम्हारी पहुंचे, तुम जिंदगी—भर प्रार्थना में डूबे रहे हो। और आज तुम्हें क्या हुआ है? रोज हम तुम्हें देखते थे प्रार्थना करते—सुबह, दोपहर, सांझ फकीर पांच दफा नमाज पढ़ता था। आज तुम्हें क्या हुआ है? आज तुम क्यों किंकर्तव्यविमूढ़ मालूम होते हो?

लेकिन फकीर हंसता रहा। नहीं की प्रार्थना और तभी जोर से चिल्लाया कि रुको, क्योंकि लोग प्रार्थना कर रहे थे—कोई कह रह था कि जाकर मैं हजार रुपये दान करूंगा; कोई कहता था कि मस्जिद को दे दूंगा; कोई कहता था चर्च को दान कर दूंगा; कोई कह रहा था कि संन्यास ले लूंगा सब छोड़कर।

बीच में फकीर एकदम से चिल्लाया कि सम्हलो, इस तरह की बातें न करो, किनारा दिखाई पड़ रहा है। किनारा करीब आ गया था। तूफान की लहरें नाव को तेजी से किनारे की तरफ ले आई थीं। बस सारी प्रार्थनाएं वहीं समाप्त हो गयीं। अधूरी प्रार्थनाओं में लोग उठे गए, अपना सामान बांधने लगे, भूल ही गए प्रार्थना और परमात्मा को।

तब फकीर प्रार्थना करने बैठा। लोग हंसने लगे।

उन्होंने कहा: तुम भी एक पागल मालूम होते हो। अब क्या प्रार्थना कर रहे हो? अब तो किनारा करीब आ गया।

उस फकीर ने कहा कि मैंने सद्गुरुओं से सुना है:-

“नावें मझधार में नहीं डूबतीं , किनारों पर डूबती हैं।”

मैंने सद्गुरुओं से सुना है कि मझधार में तो लोग सचेष्ट होते हैं, सावधान होते हैं; किनारों पर आकर बेहोश हो जाते हैं। मैंने सद्गुरुओं से सुना है कि मझधार में तो लोग प्रार्थनाएं करते हैं, परमात्मा को पुकारते हैं; किनारा करीब देखते ही परमात्मा को भूल जाते हैं फिर कौन फिक्र करता है!जब किनारा ही करीब आ गया तो कौन परमात्मा की फिक्र करता है।

चालबाज तो ऐसे हैं, बेईमान तो ऐसे हैं कि जिनका हिसाब नहीं ।

परखना हो तो खुदको परखों ईश्वर को नही ।

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: कुछ 100 जानकारी जिसका ज्ञान सबको होना चाहिए
1.योग,भोग और रोग ये तीन अवस्थाएं है।

  1. लकवा – सोडियम की कमी के कारण होता है ।
  2. हाई वी पी में – स्नान व सोने से पूर्व एक गिलास जल का सेवन करें तथा स्नान करते समय थोड़ा सा नमक पानी मे डालकर स्नान करे ।
  3. लो बी पी – सेंधा नमक डालकर पानी पीयें ।
  4. कूबड़ निकलना– फास्फोरस की कमी ।
  5. कफ – फास्फोरस की कमी से कफ बिगड़ता है , फास्फोरस की पूर्ति हेतु आर्सेनिक की उपस्थिति जरुरी है । गुड व शहद खाएं
  6. दमा, अस्थमा – सल्फर की कमी ।
  7. सिजेरियन आपरेशन – आयरन , कैल्शियम की कमी ।
  8. सभी क्षारीय वस्तुएं दिन डूबने के बाद खायें
  9. अम्लीय वस्तुएं व फल दिन डूबने से पहले खायें
  10. जम्भाई– शरीर में आक्सीजन की कमी ।
  11. जुकाम – जो प्रातः काल जूस पीते हैं वो उस में काला नमक व अदरक डालकर पियें ।
  12. ताम्बे का पानी – प्रातः खड़े होकर नंगे पाँव पानी ना पियें ।
  13. किडनी – भूलकर भी खड़े होकर गिलास का पानी ना पिये ।
  14. गिलास एक रेखीय होता है तथा इसका सर्फेसटेन्स अधिक होता है । गिलास अंग्रेजो ( पुर्तगाल) की सभ्यता से आयी है अतः लोटे का पानी पियें, लोटे का कम सर्फेसटेन्स होता है ।
  15. अस्थमा , मधुमेह , कैंसर से गहरे रंग की वनस्पतियाँ बचाती हैं ।
  16. वास्तु के अनुसार जिस घर में जितना खुला स्थान होगा उस घर के लोगों का दिमाग व हृदय भी उतना ही खुला होगा ।
  17. परम्परायें वहीँ विकसित होगीं जहाँ जलवायु के अनुसार व्यवस्थायें विकसित होगीं ।
  18. पथरी – अर्जुन की छाल से पथरी की समस्यायें ना के बराबर है ।
  19. RO का पानी कभी ना पियें यह गुणवत्ता को स्थिर नहीं रखता । कुएँ का पानी पियें । बारिस का पानी सबसे अच्छा , पानी की सफाई के लिए सहिजन की फली सबसे बेहतर है ।
  20. सोकर उठते समय हमेशा दायीं करवट से उठें या जिधर का स्वर चल रहा हो उधर करवट लेकर उठें ।
  21. पेट के बल सोने से हर्निया, प्रोस्टेट, एपेंडिक्स की समस्या आती है ।
  22. भोजन के लिए पूर्व दिशा , पढाई के लिए उत्तर दिशा बेहतर है ।
  23. HDL बढ़ने से मोटापा कम होगा LDL व VLDL कम होगा ।
  24. गैस की समस्या होने पर भोजन में अजवाइन मिलाना शुरू कर दें ।
  25. चीनी के अन्दर सल्फर होता जो कि पटाखों में प्रयोग होता है , यह शरीर में जाने के बाद बाहर नहीं निकलता है। चीनी खाने से पित्त बढ़ता है ।
  26. शुक्रोज हजम नहीं होता है फ्रेक्टोज हजम होता है और भगवान् की हर मीठी चीज में फ्रेक्टोज है ।
  27. वात के असर में नींद कम आती है ।
  28. कफ के प्रभाव में व्यक्ति प्रेम अधिक करता है ।
  29. कफ के असर में पढाई कम होती है ।
  30. पित्त के असर में पढाई अधिक होती है ।
  31. आँखों के रोग – कैट्रेक्टस, मोतियाविन्द, ग्लूकोमा , आँखों का लाल होना आदि ज्यादातर रोग कफ के कारण होता है ।
  32. शाम को वात-नाशक चीजें खानी चाहिए ।
  33. प्रातः 4 बजे जाग जाना चाहिए
  34. सोते समय रक्त दवाव सामान्य या सामान्य से कम होता है ।
  35. व्यायामवात रोगियों के लिए मालिश के बाद व्यायाम , पित्त वालों को व्यायाम के बाद मालिश करनी चाहिए । कफ के लोगों को स्नान के बाद मालिश करनी चाहिए ।
  36. भारत की जलवायु वात प्रकृति की है , दौड़ की बजाय सूर्य नमस्कार करना चाहिए ।
  37. जो माताएं घरेलू कार्य करती हैं उनके लिए व्यायाम जरुरी नहीं ।
  38. निद्रा से पित्त शांत होता है , मालिश से वायु शांति होती है , उल्टी से कफ शांत होता है तथा उपवास ( लंघन ) से बुखार शांत होता है ।
  39. भारी वस्तुयें शरीर का रक्तदाब बढाती है , क्योंकि उनका गुरुत्व अधिक होता है ।
  40. दुनियां के महान वैज्ञानिक का स्कूली शिक्षा का सफ़र अच्छा नहीं रहा, चाहे वह 8 वीं फेल न्यूटन हों या 9 वीं फेल आइस्टीन हों ,
  41. माँस खाने वालों के शरीर से अम्ल-स्राव करने वाली ग्रंथियाँ प्रभावित होती हैं ।
  42. तेल हमेशा गाढ़ा खाना चाहिएं सिर्फ लकडी वाली घाणी का , दूध हमेशा पतला पीना चाहिए ।
  43. छिलके वाली दाल-सब्जियों से कोलेस्ट्रोल हमेशा घटता है ।
  44. कोलेस्ट्रोल की बढ़ी हुई स्थिति में इन्सुलिन खून में नहीं जा पाता है । ब्लड शुगर का सम्बन्ध ग्लूकोस के साथ नहीं अपितु कोलेस्ट्रोल के साथ है ।
  45. मिर्गी दौरे में अमोनिया या चूने की गंध सूँघानी चाहिए ।
  46. सिरदर्द में एक चुटकी नौसादर व अदरक का रस रोगी को सुंघायें ।
  47. भोजन के पहले मीठा खाने से बाद में खट्टा खाने से शुगर नहीं होता है ।
  48. भोजन के आधे घंटे पहले सलाद खाएं उसके बाद भोजन करें ।
  49. अवसाद में आयरन , कैल्शियम , फास्फोरस की कमी हो जाती है । फास्फोरस गुड और अमरुद में अधिक है
  50. पीले केले में आयरन कम और कैल्शियम अधिक होता है । हरे केले में कैल्शियम थोडा कम लेकिन फास्फोरस ज्यादा होता है तथा लाल केले में कैल्शियम कम आयरन ज्यादा होता है । हर हरी चीज में भरपूर फास्फोरस होती है, वही हरी चीज पकने के बाद पीली हो जाती है जिसमे कैल्शियम अधिक होता है ।
  51. छोटे केले में बड़े केले से ज्यादा कैल्शियम होता है ।
  52. रसौली की गलाने वाली सारी दवाएँ चूने से बनती हैं ।
  53. हेपेटाइट्स A से E तक के लिए चूना बेहतर है ।
  54. एंटी टिटनेस के लिए हाईपेरियम 200 की दो-दो बूंद 10-10 मिनट पर तीन बार दे ।
  55. ऐसी चोट जिसमे खून जम गया हो उसके लिए नैट्रमसल्फ दो-दो बूंद 10-10 मिनट पर तीन बार दें । बच्चो को एक बूंद पानी में डालकर दें ।
  56. मोटे लोगों में कैल्शियम की कमी होती है अतः त्रिफला दें । त्रिकूट ( सोंठ+कालीमिर्च+ मघा पीपली ) भी दे सकते हैं ।
  57. अस्थमा में नारियल दें । नारियल फल होते हुए भी क्षारीय है ।दालचीनी + गुड + नारियल दें ।
  58. चूना बालों को मजबूत करता है तथा आँखों की रोशनी बढाता है ।
  59. दूध का सर्फेसटेंसेज कम होने से त्वचा का कचरा बाहर निकाल देता है ।
  60. गाय की घी सबसे अधिक पित्तनाशक फिर कफ व वायुनाशक है ।
  61. जिस भोजन में सूर्य का प्रकाश व हवा का स्पर्श ना हो उसे नहीं खाना चाहिए
  62. गौ-मूत्र अर्क आँखों में ना डालें ।
  63. गाय के दूध में घी मिलाकर देने से कफ की संभावना कम होती है लेकिन चीनी मिलाकर देने से कफ बढ़ता है ।
  64. मासिक के दौरान वायु बढ़ जाता है , 3-4 दिन स्त्रियों को उल्टा सोना चाहिए इससे गर्भाशय फैलने का खतरा नहीं रहता है । दर्द की स्थति में गर्म पानी में देशी घी दो चम्मच डालकर पियें ।
  65. रात में आलू खाने से वजन बढ़ता है ।
  66. भोजन के बाद बज्रासन में बैठने से वात नियंत्रित होता है ।
  67. भोजन के बाद कंघी करें कंघी करते समय आपके बालों में कंघी के दांत चुभने चाहिए । बाल जल्द सफ़ेद नहीं होगा ।
  68. अजवाईन अपान वायु को बढ़ा देता है जिससे पेट की समस्यायें कम होती है
  69. अगर पेट में मल बंध गया है तो अदरक का रस या सोंठ का प्रयोग करें
  70. कब्ज होने की अवस्था में सुबह पानी पीकर कुछ देर एडियों के बल चलना चाहिए ।
  71. रास्ता चलने, श्रम कार्य के बाद थकने पर या धातु गर्म होने पर दायीं करवट लेटना चाहिए ।
  72. जो दिन मे दायीं करवट लेता है तथा रात्रि में बायीं करवट लेता है उसे थकान व शारीरिक पीड़ा कम होती है ।
  73. बिना कैल्शियम की उपस्थिति के कोई भी विटामिन व पोषक तत्व पूर्ण कार्य नहीं करते है ।
  74. स्वस्थ्य व्यक्ति सिर्फ 5 मिनट शौच में लगाता है ।
  75. भोजन करते समय डकार आपके भोजन को पूर्ण और हाजमे को संतुष्टि का संकेत है ।
  76. सुबह के नाश्ते में फल , दोपहर को दहीरात्रि को दूध का सेवन करना चाहिए ।
  77. रात्रि को कभी भी अधिक प्रोटीन वाली वस्तुयें नहीं खानी चाहिए । जैसे – दाल , पनीर , राजमा , लोबिया आदि ।
  78. शौच और भोजन के समय मुंह बंद रखें , भोजन के समय टी वी ना देखें ।
  79. मासिक चक्र के दौरान स्त्री को ठंडे पानी से स्नान , व आग से दूर रहना चाहिए ।
  80. जो बीमारी जितनी देर से आती है , वह उतनी देर से जाती भी है ।
  81. जो बीमारी अंदर से आती है , उसका समाधान भी अंदर से ही होना चाहिए ।
  82. एलोपैथी ने एक ही चीज दी है , दर्द से राहत । आज एलोपैथी की दवाओं के कारण ही लोगों की किडनी , लीवर , आतें , हृदय ख़राब हो रहे हैं । एलोपैथी एक बिमारी खत्म करती है तो दस बिमारी देकर भी जाती है ।
  83. खाने की वस्तु में कभी भी ऊपर से नमक नहीं डालना चाहिए , ब्लड-प्रेशर बढ़ता है ।
    86 . रंगों द्वारा चिकित्सा करने के लिए इंद्रधनुष को समझ लें , पहले जामुनी , फिर नीला ….. अंत में लाल रंग ।
    87 . छोटे बच्चों को सबसे अधिक सोना चाहिए , क्योंकि उनमें वह कफ प्रवृति होती है , स्त्री को भी पुरुष से अधिक विश्राम करना चाहिए
  84. जो सूर्य निकलने के बाद उठते हैं , उन्हें पेट की भयंकर बीमारियां होती है , क्योंकि बड़ी आँत मल को चूसने लगती है ।
  85. बिना शरीर की गंदगी निकाले स्वास्थ्य शरीर की कल्पना निरर्थक है , मल-मूत्र से 5% , कार्बन डाई ऑक्साइड छोड़ने से 22 %, तथा पसीना निकलने लगभग 70 % शरीर से विजातीय तत्व निकलते हैं ।
  86. चिंता , क्रोध , ईर्ष्या करने से गलत हार्मोन्स का निर्माण होता है जिससे कब्ज , बबासीर , अजीर्ण , अपच , रक्तचाप , थायरायड की समस्या उतपन्न होती है ।
  87. गर्मियों में बेल , गुलकंद , तरबूजा , खरबूजा व सर्दियों में सफ़ेद मूसली , सोंठ का प्रयोग करें ।
  88. प्रसव के बाद माँ का पीला दूध बच्चे की प्रतिरोधक क्षमता को 10 गुना बढ़ा देता है । बच्चो को टीके लगाने की आवश्यकता नहीं होती है ।
  89. रात को सोते समय सर्दियों में देशी मधु लगाकर सोयें त्वचा में निखार आएगा
  90. दुनिया में कोई चीज व्यर्थ नहीं , हमें उपयोग करना आना चाहिए
  91. जो अपने दुखों को दूर करके दूसरों के भी दुःखों को दूर करता है , वही मोक्ष का अधिकारी है ।
  92. सोने से आधे घंटे पूर्व जल का सेवन करने से वायु नियंत्रित होती है , लकवा , हार्ट-अटैक का खतरा कम होता है ।
  93. स्नान से पूर्व और भोजन के बाद पेशाब जाने से रक्तचाप नियंत्रित होता है
    98 . तेज धूप में चलने के बाद , शारीरिक श्रम करने के बाद , शौच से आने के तुरंत बाद जल का सेवन निषिद्ध है
  94. त्रिफला अमृत है जिससे वात, पित्त , कफ तीनो शांत होते हैं । इसके अतिरिक्त भोजन के बाद पान व चूना । देशी गाय का घी , गौ-मूत्र भी त्रिदोष नाशक है ।
  95. इस विश्व की सबसे मँहगी दवा। लार है , जो प्रकृति ने तुम्हें अनमोल दी है ,इसे ना थूके ।

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ये हैं तांबे के बर्तन में पानी पीने के 10 फायदे…

  1. तांबा यानी कॉपर, सीधे तौर पर आपके शरीर में कॉपर की कमी को पूरा करता है और बीमारी पैदा करने वाले बैक्टीरिया से सुरक्षा देता है.
  2. तांबे के बर्तन में रखा पानी पूरी तरह से शुद्ध माना जाता है. यह सभी डायरिया, पीलिया, डिसेंट्री और अन्य प्रकार की बीमारियों को पैदा करने वाले बैक्टीरिया को खत्म कर देता हैं.
  3. तांबे में एंटी-इन्फ्लेमेटरी गुण होते हैं जो शरीर में दर्द, ऐंठन और सूजन की समस्या नहीं होने देते. ऑर्थराइटिस की समस्या से निपटने में भी तांबे का पानी फायदेमंद होता है.
  4. अमेरिकन कैंसर सोसायटी के अनुसार तांबे कैंसर की शुरुआत को रोकने में मदद करता है और इसमें कैंसर विरोधी तत्व मौजूद होते है.
  5. पेट की सभी समस्याओं के लिए तांबे का पानी बेहद फायदेमंद होता है. प्रतिदिन इसका उपयोग करने से पेट दर्द, गैस, एसिडिटी और कब्ज जैसी परेशानियों से निजात मिल सकती है.
  6. शरीर की आंतरिक सफाई के लिए तांबे का पानी कारगर होता है. इसके अलावा यह लिवर और किडनी को स्वस्थ रखता है और किसी भी प्रकार के इंफेक्शन से निपटने में तांबे के बर्तन में रखा पानी लाभप्रद होता है.
  7. एनीमिया की समस्या में भी इस बर्तन में रखा पानी पीने से लाभ मिलता है. यह खाने से आयरन को आसानी से सोख लेता है जो एनीमिया से निपटने के लिए बेहद जरूरी है.
  8. तांबे के बर्तन में रखा पानी पीने से त्वचा पर किसी प्रकार की समस्याएं नहीं होती. यह फोड़े, फुंसी, मुंहासे और त्वचा संबंधी अन्य रोगों को पनपने नहीं देता जिससे आपकी त्वचा साफ और चमकदार दिखाई देती है.
  9. तांबे का पानी पाचनतंत्र को मजबूत कर बेहतर पाचन में सहायता करता है. रात के वक्त तांबे के बर्तन में पानी रखकर सुबह पीने से पाचन क्रिया दुरुस्त होती है. इसके अलावा यह अतिरिक्त वसा को कम करने में भी बेहद मदददगार साबित होता है.
  10. यह दिल को स्वस्थ बनाए रखकर ब्लड प्रेशर को नियंत्रित कर बैड कोलेस्ट्रॉल को कम करता है. इसके अलावा यह हार्ट अटैक के खतरे को भी कम करता है. यह वात, पित्त और कफ की शिकायत को दूर करने में मदद करता है.


: Sai Ram ji

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एक बहुत अमीर आदमी ने रोड के किनारे एक भिखारी से पूछा.. “तुम भीख क्यूँ मांग रहे हो जबकि तुम तन्दुरुस्त हो…??”

भिखारी ने जवाब दिया… “मेरे पास महीनों से कोई काम नहीं है…
अगर आप मुझे कोई नौकरी दें तो मैं अभी से भीख मांगना छोड़ दूँ”

अमीर मुस्कुराया और कहा.. “मैं तुम्हें कोई नौकरी तो नहीं दे सकता ..
लेकिन मेरे पास इससे भी अच्छा कुछ है…
क्यूँ नहीं तुम मेरे बिज़नस पार्टनर बन जाओ…”

भिखारी को उसके कहे पर यकीन नहीं हुआ…
“ये आप क्या कह रहे हैं क्या ऐसा मुमकिन है…?”

“हाँ मेरे पास एक चावल का प्लांट है.. तुम चावल बाज़ार में सप्लाई करो और जो भी मुनाफ़ा होगा उसे हम महीने के अंत में आपस में बाँट लेंगे..”

भिखारी के आँखों से ख़ुशी के आंसू निकल पड़े…
” आप मेरे लिए जन्नत के फ़रिश्ते बन कर आये हैं मैं किस कदर आपका शुक्रिया अदा करूँ..”

फिर अचानक वो चुप हुआ और कहा.. “हम मुनाफे को कैसे बांटेंगे..?
क्या मैं 20% और आप 80% लेंगे ..या मैं 10% और आप 90% लेंगे..
जो भी हो …मैं तैयार हूँ और बहुत खुश हूँ…”

अमीर आदमी ने बड़े प्यार से उसके सर पर हाथ रखा ..
“मुझे मुनाफे का केवल 10% चाहिए बाकी 90% तुम्हारा ..ताकि तुम तरक्की कर सको..”

भिखारी अपने घुटने के बल गिर पड़ा.. और रोते हुए बोला…
“आप जैसा कहेंगे मैं वैसा ही करूंगा… मैं आपका बहुत शुक्रगुजार हूँ …।

और अगले दिन से भिखारी ने काम शुरू कर दिया ..उम्दा चावल और बाज़ार से सस्ते… और दिन रात की मेहनत से..बहुत जल्द ही उसकी बिक्री काफी बढ़ गई… रोज ब रोज तरक्की होने लगी….

और फिर वो दिन भी आया जब मुनाफा बांटना था.

और वो 10% भी अब उसे बहुत ज्यादा लग रहा था… उतना उस भिखारी ने कभी सोचा भी नहीं था… अचानक एक शैतानी ख्याल उसके दिमाग में आया…

“दिन रात मेहनत मैंने की है… और उस अमीर आदमी ने कोई भी काम नहीं किया.. सिवाय मुझे अवसर देने की.. मैं उसे ये 10% क्यूँ दूँ …वो इसका
हकदार बिलकुल भी नहीं है..।

और फिर वो अमीर आदमी अपने नियत समय पर मुनाफे में अपना हिस्सा 10% वसूलने आया और भिखारी ने जवाब दिया
” अभी कुछ हिसाब बाक़ी है, मुझे यहाँ नुकसान हुआ है, लोगों से कर्ज की अदायगी बाक़ी है, ऐसे शक्लें बनाकर उस अमीर आदमी को हिस्सा देने को टालने लगा.”

अमीर आदमी ने कहा के “मुझे पता है तुम्हे कितना मुनाफा हुआ है फिर कयुं तुम मेरा हिस्सा देनेसे टाल रहे हो ?”

उस भिखारी ने तुरंत जवाब दिया “तुम इस मुनाफे के हकदार नहीं हो ..क्योंकि सारी मेहनत मैंने की है…”

अब सोचिये…
अगर वो अमीर हम होते और भिखारी से ऐसा जवाब सुनते ..
तो …हम क्या करते ?

ठीक इसी तरह………
भगवान ने हमें जिंदगी दी..हाथ- पैर..आँख-कान.. दिमाग दिया..
समझबूझ दी…बोलने को जुबान दी…जज्बात दिए…”

हमें याद रखना चाहिए कि दिन के 24 घंटों में 10% भगवान का हक है….
हमें इसे राज़ी ख़ुशी भगवान के नाम सिमरन में अदा करना चाहिए.
*अपनी Income से 10% निकाल कर अच्छे कामो मे लगाना चाहिए और… भगवान का शुक्रिया अदा करना चाहिए जिसने हमें जिंदगी दी सुख दिए ….
Pl Help Needy……God will definitely help you
: *दाद-खाज हो जाएगा जड़ से साफ*

स्कीन से जुड़ी बीमारियां भी कई बार गंभीर समस्या बन जाती है। ऐसी ही एक समस्या है एक्जिमा या दाद पर होने वाली खुजली और जलन दाद से पीडि़त व्यक्ति का जीना मुश्किल कर देती है। अगर आपके साथ भी कुछ ऐसा ही है तो यह नुक्से जरूर आजमाएं

1, दाद पर अनार के पत्तों को पीसकर लगाने से लाभ होता है।

2, दाद को खुजला कर दिन में चार बार नींबू का रस लगाने से दाद ठीक हो जाते हैं।

3, केले के गुदे में नींबू का रस लगाने से दाद ठीक हो जाता है।

4,चर्म रोग में रोज बथुआ उबालकर निचोड़कर इसका रस पीएं और सब्जी खाएं।

5, गाजर का बुरादा बारीक टुकड़े कर लें। इसमें सेंधा नमक डालकर सेंके और फिर गर्म-गर्म दाद पर डाल दें।

6, कच्चे आलू का रस पीएं इससे दाद ठीक हो जाते हैं।

7, नींबू के रस में सूखे सिंघाड़े को घिस कर लगाएं। पहले तो कुछ जलन होगी फिर ठंडक मिल जाएगी, कुछ दिन बाद इसे लगाने से दाद ठीक हो जाता है।

8, हल्दी तीन बार दिन में एक बार रात को सोते समय हल्दी का लेप करते रहने से दाद ठीक हो जाता है।

9, दाद होने पर गर्म पानी में अजवाइन पीसकर लेप करें। एक सप्ताह में ठीक हो जाएगा।

10, अजवाइन को पानी में मिलाकर दाद धोएं।

11, दाद में नीम के पत्तों का १२ ग्राम रोज पीना चाहिए।

12, दाद होने पर गुलकंद और दूध पीने से फायदा होगा।

13, नीम के पत्ती को दही के साथ पीसकर लगाने से दाद जड़ से साफ हो जाते है।

https://youtu.be/6tM2oMiPM4Q

https://chat.whatsapp.com/In4kex8UlJyAuik1tmtfDE

ग्रह युद्ध में पराजित ग्रह ।

जब दो ग्रह एक ही भाव में एक दूसरे के बहुत निकट होते हैं व दोनों ग्रहों की डिग्री में 10 से कम का अंतर होता है तो यह अवस्था ग्रह युद्ध की अवस्था कहलाती है। जिस ग्रह की डिग्री कम होती है वह ग्रह युद्ध में जीता हुआ माना जाता है व जिस ग्रह की डिग्री उन दोनों में अधिक हो वह ग्रह युद्ध में पराजित होता है। हमारे प्राचीन ज्योतिष के ग्रंथों में ग्रह युद्ध में पराजित ग्रह को ”खल” की संज्ञा दी गई है। साथ ही यह भी माना गया कि इस खल ग्रह की दशा – अंतर्दशा में मनुष्यों को अत्यधिक शारीरिक व मानसिक कष्ट होता है। ग्रह युद्ध में केवल दो ग्रहों को शामिल किया जाता है अगर 3 ग्रह डिग्री में अत्यधिक समीप हो तो उन्हें भी दो-दो ग्रह करके ग्रह युद्ध में देखा जाता है। (इसे हम उदाहरण में समझेंगे)। सूर्य ग्रह युद्ध में शामिल नहीं होता क्योंकि सूर्य के साथ अगर कोई ग्रह निकटतम अंशों में हो तो वो अस्त कहलाता है। आइए देखें हमारे कुछ प्राचीन शास्त्रों का क्या मत है- फलदीपिका: मंत्रेश्वर की फलदीपिका के अनुसार खल ग्रह की दशा अत्यंत दुःख देने वाली, विदेश भ्रमण, क्रोधी बनाने वाली व मानसिक संताप देने वाली होती है। जातकाभरणम: जातकाभरणम में कहा गया है कि खल ग्रह की दशा में कष्ट, स्त्री की चिंता, अत्यंत संताप प्राप्ति, परदेश यात्रा, धनहीन और बुद्धिहीन होना कहा गया है। सर्वार्थचिंतामणि: सर्वार्थचिंतामणि के अनुसार खल ग्रह की दशा में कलह, प्रियजनों का वियोग, पिता का वियोग, शत्रुओं व चुगलखोरों द्वारा धन हानि व भूमि हानि तथा अपने खास लोगों द्वारा उसकी निंदा तथा आलोचना होती है। बृहद पराशर होराशास्त्र: खल अवस्था में स्थित ग्रह की दशा में कलह, पिता वियोग, धन नाश व प्रियजनों से निंदा होती है। इस प्रकार हमने देखा कि हमारे सभी प्राचीन ग्रंथों में खल ग्रह की दशा की निंदा की है।
[02/08, 18:58] Daddy: शुक्रग्रह परिचय भावानुसार फल एवं शांत्यर्थ उपाय

शुक्र प्रेम वासना, आकर्षण शक्ति सुंदरता आदि का कारक ग्रह है,यह शुभ ग्रह है।शुक्र जातक की जीवनी शक्ति का कारक है।इसके बली और शुभ होने से जातक प्रसन्न रहने वाला और प्रेम भावना से पूर्ण होता है।शुक्र पुरुष की कुंडली में पत्नी, प्रेमिका, दाम्पत्य जीवन, वीर्य, पुरुषार्थ, कामवासना का कारक है।इसके आलावा यह खूबसूरत वस्तुओ, अच्छे कपडे, भोगविलास,सांसारिक उपयोगो का प्रमुख कारक है।यह व्यवसाय में होटल व्यवसाय, कॉस्मेटिक, सुंदरता से सम्बन्धीय व्यवसाय का कारक है।जिन जातको का शुक्र बली होकर लग्न, पंचम भाव, पंचमेश से सम्बन्ध रखता है ऐसे जातको की ओर विपरीत लिंग के व्यक्ति बहुत जल्द आकर्षित हो जाते है।5वे भाव , भावेश से किसी पुरुष जातक की कुंडली में बलीशुक्र का सम्बन्ध होने से जातक विपरीत लिंगी के प्रेम के लिए उतावला रहता है ऐसे जातक के प्रेम प्रसंग होते भी है।पाचवे भाव, भावेश ,शुक्र पर यदि पाप ग्रहो शनि राहु में से किन्ही दो या तीनो ग्रहो का प्रभाव होने से प्रेम प्रसंग में दुःख मिलता है शनि राहु केतू ग्रह प्रेमी या प्रेमिका से जातक या जातिका को लड़ाई झगड़ा कराकर या उनके बीच गलत फेमिया कराकर या किसी अन्य तरह से अलग कर देते है।यदि ऐसी स्थिति में बली गुरु का प्रभाव् शुक्र और पंचमेश पंचम भाव पर होता है तब अलगाव नही होता।इसी तरह की स्थिति यदि सप्तम भाव भावेश, और शुक्र से बनती है तब पत्नी से अलगाव होता है।स्त्री की कुंडली में सप्तम भाव, भावेश और गुरु पर शनि राहु केतु का प्रभाव, सप्तम भाव सप्तमेश पर गुरु की खुद की और अन्य शुभ ग्रहो बली शुक्र पूर्ण बली चंद्र और शुभ बुध का प्रभाव न होने से पति से अलगाव होता है। शुक्र प्रधान जातको के बाल अधिकतर घुंघराले होते है।शुक्र जातक को रोमांटिक ज्यादा बनाता है।शुक्र केंद्र या त्रिकोण का स्वामी होकर कुंडली के केंद्र १-४-७-१० या ५-९ त्रिकोण भाव में होने पर व ६ या १२ वे भाव में बैठने पर बली शुक्र जातक को पूर्ण तरह से अपने फल देता है।यदि पीड़ित होगा तब फल में कमी और अशुभ फल भी करेगा।जिन जातको को शुक्र के अशुभ फल मिल रहे है या शुक्र के शुभ फलो में कमी आ रही है वह जातक शुक्र के मन्त्र “ॐ शुं शुक्राय नमः” का जप करे, शुक्र यदि कुंडली में योगकारक है किसी शुभ भाव का स्वामी है तब शुक्र का रत्न ओपल पहनना शुभ रहेगा।मेष, कर्क, सिंह, वृश्चिक, धनु और मीन लग्न के जातको को बिना कुंडली दिखाए शुक्र का रत्न नही पहनना चाहिए क्योंकि इन लग्न की कुंडलियो में शुक्र की स्थिति मारक, और नैसर्गिक रूप से योगकारक या बहुत अनुकूल नही होती जिस कारण शुक्र का रत्न बिना कुंडली दिखाए नही पहनना चाहिए।एक बात ओर भी कभी भी नीच राशि के ग्रह का रत्न नही पहनना चाहिए।इसके आलावा शुक्र के लिये लक्ष्मी पूजन, खुशबूदार वस्तुओ का उपयोग करे, अच्छे और साफ कपडे पहने, शुक्र यंत्र को सफ़ेद चन्दन से भोजपत्र पर बनाकर शुक्रवार के दिन अभिमंत्रित करके सफ़ेद धागे में बांधकर अपने गले या हाथ की बाजु पर बंधना चाहिए। गाय की सेवा करने से शुक्र के शुभ फल में वृद्धि होती है

शुक्र👉 जन्मकालीन राशि से १,२,३,४,५,८,९,११ और १२ वें भाव में सामान्यतः शुभ फल देता है। शेष भावों में अशुभ फल देता है।

कुंडली के १२ भावों में शुक्र ग्रह का प्रभाव
〰️〰️🔸〰️〰️🔸〰️〰️🔸〰️〰️🔸〰️〰️
जिन जातको के लग्न स्थान में शुक्र👉 उसका अंग-प्रत्यंग सुंदर होता है। श्रेष्ठ रमणियों के साथ विहार करने को लालायित रहता है। ऐसा व्यक्ति दीर्घ आयु वाला, स्वस्थ, सुखी, मृदु एवं मधुभाषी, विद्वान, कामी तथा राज कार्य में दक्ष होता है।

दूसरे स्थान पर शुक्र👉 जातक प्रियभाषी तथा बुद्धिमान होता है। स्त्री की कुंडली हो तो जातिका सर्वश्रेष्ठ सुंदरी पद प्राप्त करने की अधिकारिणी होती है। जातक मिष्ठान्नभोगी, लोकप्रिय, जौहरी, कवि, दीर्घजीवी, साहसी व भाग्यवान होता है।

तीसरे भाव में शुक्र👉 ऐसा जातक स्त्री प्रेमी नहीं होता है। पुत्र लाभ होने पर भी संतुष्ट नहीं होता है। ऐसा व्यक्ति कृपण, आलसी, चित्रकार, विद्वान तथा यात्रा करने का शौकीन होता है।

चतुर्थ भाव में शुक्र👉 जातक उच्च पद प्राप्त करता है। इस व्यक्ति के अनेक मित्र होते हैं। घर सभी वस्तुओं से पूर्ण रहता है। ऐसा व्यक्ति दीर्घायु, परोपकारी, आस्तिक, व्यवहारकुशल व दक्ष होता है।

पांचवें भाव में शुक्र👉 शत्रुनाशक होता है। जातक के अल्प परिश्रम से कार्य सफल होते हैं। ऐसा व्यक्ति कवि हृदय, सुखी, भोगी, न्यायप्रिय, उदार व व्यवसायी होता है।

छठे भाव मे शुक्र👉 जातक के नित नए शत्रु पैदा करता है। मित्रों द्वारा इसका आचरण नष्ट होता है और गलत कार्यों में धन व्यय कर लेता है। ऐसा व्यक्ति स्त्री सुखहीन, दुराचार, बहुमूत्र रोगी, दुखी, गुप्त रोगी तथा मितव्ययी होता है।

सातवें स्थान का शुक्र👉 खूबसूरत जीवन साथी का संकेत देता है। इस स्थान में शुक्र व्यक्ति को काम भावनाओं की ओर प्रवृत्त करता है। व्यक्ति कलाकार भी हो सकता है।

आठवें स्थान में शुक्र👉 जातक वाहनादि का पूर्ण सुख प्राप्त करता है। वह दीर्घजीवी व कटुभाषी होता है। इसके ऊपर कर्जा चढ़ा रहता है। ऐसा जातक रोगी, क्रोधी, चिड़चिड़ा, दुखी, पर्यटनशील और पराई स्त्री पर धन व्यय करने वाला होता है।

नवम स्थान पर शुक्र👉 जातक अत्यंत धनवान होता है। धर्मादि कार्यों में इसकी रुचि बहुत होती है। सगे भाइयों का सुख मिलता है। ऐसा व्यक्ति आस्तिक, गुणी, प्रेमी, राजप्रेमी तथा मौजी स्वभाव का होता है।

दशम भाव में शुक्र👉 वह व्यक्ति लोभी व कृपण स्वभाव का होता है। इसे संतान सुख का अभाव-सा रहता है। ऐसा व्यक्ति विलासी, धनवान, विजयी, हस्त कार्यों में रुचि लेने वाला एवं शक्की स्वभाव का होता है।

ग्यारहवें स्थान पर शुक्र👉 जातक प्रत्येक कार्य में लाभ प्राप्त करता है। सुंदर, सुशील, कीर्तिमान, सत्यप्रेमी, गुणवान, भाग्यवान, धनवान, वाहन सुखी, ऐश्वर्यवान, लोकप्रिय, कामी, जौहरी तथा पुत्र सुख भोगता हुआ ऐसा व्यक्ति जीवन में कीर्तिमान स्थापित करता है।

बारहवें भाव में शुक्र👉 तब जातक को द्रव्यादि की कमी नहीं रहती है। ऐसा व्यक्ति स्‍थूल, परस्त्रीरत, आलसी, गुणज्ञ, प्रेमी, मितव्ययी तथा शत्रुनाशक होता है।

अरिष्ट शुक्र की शांति के उपाय एवं टोटके
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शुक्र ग्रहों में सबसे चमकीला है और प्रेम का प्रतीक है। इस ग्रह के पीड़ित होने पर आपको ग्रह शांति हेतु सफेद रंग का घोड़ा दान देना चाहिए।

अथवा रंगीन वस्त्र, रेशमी कपड़े, घी, सुगंध, चीनी, खाद्य तेल, चंदन, कपूर का दान शुक्र ग्रह की विपरीत दशा में सुधार लाता है।

शुक्र से सम्बन्धित रत्न का दान भी लाभप्रद होता है।

इन वस्तुओं का दान शुक्रवार के दिन संध्या काल में किसी युवती को देना उत्तम रहता है।

शुक्र ग्रह से सम्बन्धित क्षेत्र में आपको परेशानी आ रही है तो इसके लिए आप शुक्रवार के दिन व्रत रखें।

मिठाईयां एवं खीर कौओं और गरीबों को दें।

ब्राह्मणों एवं गरीबों को घी भात खिलाएं।

अपने भोजन में से एक हिस्सा निकालकर गाय को खिलाएं।

शुक्र से सम्बन्धित वस्तुओं जैसे सुगंध, घी और सुगंधित तेल का प्रयोग नहीं करना चाहिए।

वस्त्रों के चुनाव में अधिक विचार नहीं करें।

काली चींटियों को चीनी खिलानी चाहिए।

शुक्रवार के दिन सफेद गाय को आटा खिलाना चाहिए।

किसी काने व्यक्ति को सफेद वस्त्र एवं सफेद मिष्ठान्न का दान करना चाहिए।

किसी महत्त्वपूर्ण कार्य के लिए जाते समय १० वर्ष से कम आयु की कन्या का चरण स्पर्श करके आशीर्वाद लेना चाहिए।

अपने घर में सफेद पत्थर लगवाना चाहिए।

किसी कन्या के विवाह में कन्यादान का अवसर मिले तो अवश्य स्वीकारना चाहिए।

शुक्रवार के दिन गौ-दुग्ध से स्नान करना चाहिए।

शुक्र के दुष्प्रभाव निवारण के लिए किए जा रहे टोटकों हेतु शुक्रवार का दिन, शुक्र के नक्षत्र (भरणी, पूर्वा-फाल्गुनी, पुर्वाषाढ़ा) तथा शुक्र की होरा में अधिक शुभ होते हैं।

ग्रहों की अवस्था – ग्रहों की अवस्था में चन्द्रमा शिशु, मंगल बाल, बुध किशोर, शुक्र युवा, गुरु मध्य, सूर्य वृद्ध तथा शनि की अतिवृद्ध अवस्था होती है। कुछ आचार्यों के मत से बुध शिशु, मंगल युवा, शुक्र एवं चन्द्र मध्य अवस्था वाले तथा शेष ग्रह वृद्ध अवस्था वाले होते हैं।
V
ग्रहों का समयबल विचार — प्रात:काल गुरु एवं बुध, मध्याह्न काल में सूर्य एवं मंगल, अपराह्न में चन्द्रमा एवं शुक्र तथा सन्ध्या समय में शनि एवं राहु बली होते हैं।

ग्रहों की कफादि संज्ञा – मंगल एवं सूर्य की पित्त प्रकृति, चन्द्रमा एवं शुक्र की कफ प्रकृति, गुरु एवं बुध की समधातु तथा शेष शनि एवं राहु वात प्रकृति के होते हैं।

ग्रहों का रस- मंगल सूर्य का कटु (कड़ुवा) रस, चन्द्र तथा शुक्र का नमकीन एवं खट्टा, बुध का कसैला, गुरु का मीठा तथा राहु एवं शनि की तिक्त रस संज्ञा होती है।

ग्रहों की द्विपदादि संज्ञा— गुरु एवं शुक्र की द्विपद संज्ञा, मंगल सूर्य की चतुष्पद संज्ञा, बुध एवं शनि की पक्षी संज्ञा तथा चन्द्र एवं राहु की सरीसृप (सरक कर चलने वाले जीव) संज्ञा मानी गयी है।

ग्रहों की वर्णादि संज्ञा- शुक्र तथा गुरु ब्राह्मण संज्ञक, मंगल और सूर्य क्षत्रिय संज्ञक, बुध एवं चन्द्रमा वैश्य संज्ञक तथा राहु एवं शनि शूद्र संज्ञक होते हैं। कुछ आचार्यों ने चन्द्रमा को वैश्य, बुध को शूद्र तथा शनि और राहु को म्लेच्छ (अन्त्यज) संज्ञक माना है।

ग्रहों की दृष्टि विचार – मंगल तथा सूर्य की उध्र्व दृष्टि, राहु और शनि की अधोदृष्टि, शुक्र और बुध की तिर्यक दृष्टि तथा चन्द्रमा एवं गुरु की समदृष्टि होती है।

ग्रहों के तत्त्व विचार- सूर्य एवं मंगल अग्नितत्त्व, चन्द्रमा एवं शुक्र जलतत्त्व, बुध भूमि तत्त्व, गुरु आकाश तत्त्व तथा शनि एवं राहु वायु तत्त्व कारक हैं।

ग्रहों का वस्त्र – सूर्य का मोटा वस्त्र, चन्द्रमा का नूतन, मंगल का जला हुआ, बुध का भीगा हुआ, गुरु का सामान्य, शुक्र का दृढ़ तथा शनि एवं राहु का जीर्णवस्त्र माना गया है।

ग्रहों की धातु – सूर्य का ताम्र, चन्द्रमा का मणि, मंगल का सोना, बुध का मिश्रित धातु, गुरु का सोना, शुक्र का मोती, या चांदी तथा शनि एवं राहु का धातु लोहा माना गया है।

ऋतुओं के स्थायीग्रह – क्रमश: वर्षा ऋतु का स्वामी चन्द्रमा, शरद ऋतु का बुध, हेमन्त का गुरु, शिशिर का शनि एवं राहु, बसन्त का शुक्र तथा ग्रीष्म ऋतु का स्वामी मंगल एवं सूर्य ग्रह हैं। इसी प्रकार सूर्य ६ महीने एक अयन, चन्द्रमा एक मुहूर्त, मंगल-दिन, बुध ऋतु अर्थात् दो मास, गुरु एक महीने का, शुक्र पक्ष यानी १५ दिन तथा शनि एवं राहु १ वर्ष अथवा उससे अधिक समय के स्वामी होते हैं।

ग्रहों की स्थिरादि संज्ञा – सूर्य स्थिर, चन्द्रमा चर, मंगल उग्र, बुध मिश्रित, गुरु मृदु, शुक्र लघु तथा शनि तीक्ष्ण संज्ञक ग्रह हैं। शुक्र एवं चन्द्रमा सजल ग्रह, सूर्य, मंगल एवं शनि शुष्क ग्रह तथा गुरु एवं बुध राश्यानुसार सजल एवं निर्जल दोनों होते हैं।

ग्रहों के नैर्सिगक मैत्री विचार — सूर्य के चन्द्रमा, मंगल तथा गुरु मित्र, बुध सम तथा शुक्र एवं शनि शत्रु हैं। इसी प्रकार चन्द्रमा सूर्य तथा बुध को मित्र, मंगल, गुरु, शुक्र एवं शनि को सम तथा किसी भी ग्रह को शत्रु नहीं मानता है। मंगल सूर्य चन्द्रमा तथा गुरु को मित्र बुध को शत्रु तथा शेष ग्रहों को सम मानता है। बुध सूर्य तथा शुक्र को मित्र, चन्द्रमा को शत्रु तथा शेष ग्रहों को सम मानता है। गुरु तथा सूर्य, चन्द्र तथा मंगल को मित्र, शनि को सम तथा बुध, तथा शुक्र को शत्रु मानता है। शुक्र तथा ग्रह बुध तथा, शनि को मित्र, सूर्य तथा चन्द्र को शत्रु तथा मंगल एवं गुरु को सम मानता है। शनि ग्रह बुध तथा शुक्र को मित्र, गुरु को सम तथा शेष ग्रहों को सम मानता है।

आत्मादि ग्रहों का निरूपण करते हुए वराहमिहिर ने कहा है —
कालात्मा दिन कृन्मनस्तु हिनगु: सत्त्वं कुजोज्ञो वचो।
जीवो ज्ञानसुखे सितश्च मदनो दु:खं दिनेशात्मज:।। (बृहज्जातकम् २।१)
अर्थात् काल पुरुष की आत्मा सूर्य, चन्द्रमा मन, मंगल पराक्रम, बुध वाणी, गुरु ज्ञान एवं सुख, शुक्र काम तथा शनि दु:ख है। अर्थात् जन्म या प्रश्न के समय जो ग्रह जिसके कारक बताये गये हैं उनसे सम्बन्धित तथ्यों की अधिकता देखी जाती है।

सूर्यसिद्धान्त में ग्रहों की आठ प्रकार की गतियों का वर्णन मिलता है। यथा — वक्रा, अनुवक्रा, कुटिला, मन्दा, मन्दतरा, समा, शीघ्रतरा तथा शीघ्रा।
वक्रानुवक्रा कुटिला मन्दा मन्दतरा समा।
तथा शीघ्रतरा शीघ्रा ग्रहाणामष्टधा गति:।। (स्पष्टाधिकार १२)
कुटिला एवं वक्रा पर्याय हैं अत: कुटिला के स्थान पर विकला पाठ अधिक उचित है। कहीं वक्रानुवक्रा विकला यह पाठ मिलता है। होरानुभवदर्पण में कहा गया है कि सूर्य के साथ ग्रह अस्त, पुन: अंशों से आगे निकलने पर उदित गति, सूर्य से दूसरी राशि में ग्रह होने पर शीघ्रा, तीसरी में समा, चौथी में मन्दा, पांचवी एवं छठीं में वक्रा, सातवीं तथा आठवीं में अतिवक्रा, नवीं तथा दशवी में कुटिला (विकला) तथा ग्यारहवीं तथा बारहवीं राशि में रहने पर अतिशीघ्रा गति होती है।

महानिबन्ध नामक ग्रन्थ में काल पुरुष के शरीरावयवों में ग्रह न्यास बताते हुए कहा गया है कि कालपुरुष के मस्तक व मुख में सूर्य, वक्षस्थल व गले में चन्द्रमा, पीठ व पेट में मंगल, हाथ व पैर में बुध, कमर व जांघ में गुरु, गुह्य स्थान में शुक्र तथा घुटनों में शनि को स्थापित करके, गोचर वश अथवा जन्म कुण्डली के अनुसार इन इन अंगों का शुभाशुभ फल जानना चाहिए।

किस कार्य में किस ग्रह के बल का विचार करना चाहिए – विवाह तथा उत्सव में गुरु का, राजदर्शन में सूर्य का, युद्ध में मंगल का, विद्याभ्यास में बुध का, यात्रा में शुक्र का, दीक्षा (मन्त्र ग्रहण) में शनि का तथा समस्त कार्यों में चन्द्रमा का बल देखना चाहिए —
उद्वाहे चोत्सवे जीव: सूर्यो भूपालदर्शने
संग्रामे धरणी पुत्रो विद्याभ्यासे बुधो बली।
यात्रायां भार्गव: प्रोक्त: दीक्षायां च शनैश्चर:।
चन्द्रमा सर्वकार्येषु प्रशस्तो गृह्यते बुधै:।।
(बृहद्दैवज्ञरञ्जनम् ३२।४४,४५)
वशिष्ठ और गर्ग ऋषि ने भी इन्हीं कार्यों में उक्त ग्रहों का बली होना स्वीकार किया है।

प्रत्येक ग्रह कितने समय में एक राशि का भोग पूर्ण करता है। इन सन्दर्भ में कर्णप्रकाशकार का मत अवलोकनीय है। शनि एक राशि २१/२ (ढाई) वर्ष में, राहु ११/२ (डे़ढ़) वर्ष में, मंगल ११/२ (डेढ़) मास में, सूर्य, बुध एवं शुक्र १ (एक) मास में तथा चन्द्रमा २१/४ (सवा दो) दिन में एक राशि का भोग करता है। यथा —
सौरी सुन्दरि साद्र्धमब्दयुगलं वर्षं समासं गुरु
राहुर्मास दशाष्टकं तु कथितं मासं सपक्षं कुज:।
सूर्य: शुक्रबुधास्त्रयोऽपि कथिता मासैकतुल्या ग्रहा
श्चन्द्र: पादयुतं दिनद्वयमिति प्रोत्तेâति राशिस्थिति:।। (वही ३२।६०)

ग्रहों की दृष्टि – प्रत्येक ग्रह अपने स्थान से सप्तम स्थान को पूर्ण दृष्टि से देखता है। पूर्ण दृष्टि के अतिरिक्त तीन अन्य प्रकार की भी दृष्टि होती है। तीन चौथाई, दो चौथाई (आधी) तथा एक चौथाई दृष्टि। ग्रह अपने स्थान से ४, ८ स्थानों पर तीन चौथाई दृष्टि, ५, ९ स्थान पर आधी दृष्टि तथा ३, १० स्थानों पर एक चौथाई दृष्टि से देखते हैं। शनि, गुरु तथा मंगल की विरोध दृष्टियाँ हैं। शनि सप्तम के अतिरिक्त ३, १० स्थानों पर पूर्ण दृष्टि डालता है। गुरु सप्तम के अतिरिक्त ५, ९ स्थानों पर पूर्ण दृष्टि तथा मंगल सप्तम के अतिरिक्त ४, १० स्थानों पर पूर्ण दृष्टि डालता है। यथा —
पश्यन्ति सप्तमं सर्वे शनि जीव कुजा पुन:।
विशेषत: त्रिदश त्रिकोण चतुरष्टमम् ।।
इन दृष्टियों के अतिरिक्त अन्य स्थानों पर ग्रहों की दृष्टि बिल्कुल नहीं होती।

ग्रहों की विफलता – सूर्य के साथ चन्द्रमा, पांचवें भाव में गुरु, चतुर्थ भाव में बुध, सप्तम भाव में शनि, छठें शुक्र तथा दूसरे मंगल यदि स्वगृही, उच्चादि या मूल त्रिकोण के न हों तो फल देने में असमर्थ अर्थात् विफल हो जाते हैं। यथा —
सभानुरिन्दु शशिजश्चतुर्थे गुरु: सुते भूमिसुत: कुटुम्बे।
भृगु: सपत्ने रविज: कलत्रे विलग्नतस्ते विफला भवन्ति।।
(जातक पारिजात २।७२)

जो ग्रह जिस भाव का कारक है यदि अकेला उस भाव में हो तो भाव को बिगाड़ता है – कारको भावनाशाय।

दीप्तादि अवस्था — ग्रहों की दीप्तादि दश अवस्थायें होती हैं। १. दीप्त, २. मुदित, ३. स्वस्थ, ४. शान्त, ५. शक्त, ६. प्रपीड़ित, ७. दीन, ८. खल, ९. विकल तथा १०. भीत।
दीप्त: प्रमुदित: स्वस्थ: शान्त: शक्त: प्रपीडित:।
दीन: खलस्तु विकलो भीतोऽवस्था दश क्रमात् ।।
(जातकपारिजात २।१६)
अपने उच्च अथवा मूल त्रिकोण में रहने वाला ग्रह दीप्त कहलाता है। अपने गृह में स्थित स्वस्थ, मित्रगृह में मुदित, शुभग्रह के वर्ग में स्थित ग्रह शान्त, स्पुâटरश्मि जालों से अत्यन्त शुद्ध ग्रह शक्त, ग्रहों से पराजित प्रपीड़ित, शत्रु की राशि में दीन, पापग्रह की राशि में खल, अस्तग्रह विकल तथा नीच राशि में स्थित होने पर भीत होता है।

ग्रहों का वास स्थान – सूर्य का देवालय, चन्द्रमा का जलाशय, मंगल का अग्नि स्थान (रसोई घर), बुध का क्रीड़ाभूमि, गुरु का भण्डार स्थान, शुक्र का शयन स्थान, शनि का ऊसर भूमि तथा राहु का गृह एवं केतु का कोण स्थान वास स्थल कहे गये हैं।

सम्पूर्ण भारतवर्ष में ग्रहों का स्थान किस प्रदेश में है इसका विभाग जातक पारिजात में इस प्रकार र्विणत है—
लज्र से कृष्णा नदी तक मंगल का प्रदेश, कृष्णानदी से गौतमी नदी पर्यन्त शुक्र का, गौतमी से विन्ध्य पर्वत तक गुरु का, विन्ध्य से गंगा नदी तक बुध का और गंगा से हिमालय पर्यन्त शनि का प्रदेश है। सूर्य का स्थान देवभूमि मेरु पर्वत तथा चन्द्रमा का समुद्रतटीय प्रदेश जानना चाहिए। यथा —
लंकादिकृष्णासरिदन्तमार: सितस्ततो गौतमिकान्त भूमि:।
विन्ध्यान्तमार्य: सुरनिम्नगान्तं बुध: शनि: स्यात्तुहिनाचलान्त:।।
(जातक पारिजात २।२५)
[ संस्कृत के बारे में रोचक तथ्य

  1. मात्र 3,000 वर्ष पूर्व तक पूरे भारत में संस्कृत बोली जाती थी तभी तो ईसा से 500 वर्ष पूर्व पाणिणी ने दुनिया का पहला व्याकरण ग्रंथ लिखा था, जो संस्कृत का था। इसका नाम ‘अष्टाध्यायी’ है।
  2. संस्कृत, विश्व की सबसे पुरानी पुस्तक (ऋग्वेद) की भाषा है। इसलिये इसे विश्व की प्रथम भाषा मानने में कहीं किसी संशय की संभावना नहीं है।
  3. इसकी सुस्पष्ट व्याकरण और वर्णमाला की वैज्ञानिकता के कारण सर्वश्रेष्ठता भी स्वयं सिद्ध है।
  4. संस्कृत ही एक मात्र साधन हैं जो क्रमशः अंगुलियों एवं जीभ को लचीला बनाते हैं।
  5. संस्कृत अध्ययन करने वाले छात्रों को गणित, विज्ञान एवं अन्य भाषाएँ ग्रहण करने में सहायता मिलती है।
  6. संस्कृत केवल एक मात्र भाषा नहीं है अपितु संस्कृत एक विचार है संस्कृत एक संस्कृति है एक संस्कार है संस्कृत में विश्व का कल्याण है शांति है सहयोग है वसुदैव कुटुम्बकम् कि भावना है।
  7. नासा का कहना है की 6th और 7th generation super computers संस्कृत भाषा पर आधारित होंगे।
  8. संस्कृत विद्वानों के अनुसार सौर परिवार के प्रमुख सूर्य के एक ओर से 9 रश्मियां(Beams of light) निकलती हैं और ये चारों ओर से अलग-अलग निकलती हैं। इस तरह कुल 36 रश्मियां हो गईं। इन 36 रश्मियों के ध्वनियों पर संस्कृत के 36 स्वर बने।
  9. कहा जाता है कि अरबी भाषा को कंठ से और अंग्रेजी को केवल होंठों से ही बोला जाता है किंतु संस्कृत में वर्णमाला को स्वरों की आवाज के आधार पर कवर्ग, चवर्ग, टवर्ग, तवर्ग, पवर्ग, अंतःस्थ और ऊष्म वर्गों में बांटा गया है।
  10. संस्कृत उत्तराखंड की आधिकारिक राज्य(official state) भाषा है।
    अरब आक्रमण से पहले संस्कृत भारत की राष्ट्रभाषा थी।
  11. कर्नाटक के मट्टुर(Mattur) गाँव में आज भी लोग संस्कृत में ही बोलते हैं।
  12. जर्मनी के 14 विश्वविद्यालय लोगों की भारी मांग पर संस्कृत (Sanskrit) की शिक्षा उपलब्ध करवा रहे हैं लेकिन आपूर्ति से ज्यादा मांग होने के कारन वहाँ की सरकार संस्कृत (Sanskrit) सीखने वालों को उचित शिक्षण व्यवस्था नहीं दे पा रही है।
  13. हिन्दू युनिवर्सिटी के अनुसार संस्कृत में बात करने वाला मनुष्य बीपी, मधुमेह, कोलेस्ट्रॉल आदि रोग से मुक्त हो जाएगा।
  14. संस्कृत में बात करने से मानव शरीर का तंत्रिका तंत्र सक्रिय रहता है। जिससे कि व्यक्ति का शरीर सकारात्मक आवेश के साथ सक्रिय हो जाता है।
  15. यूनेस्को(UNESCO) ने भी मानवता की अमूर्त सांस्कृतिक विरासत की अपनी सूची में संस्कृत वैदिक जाप को जोड़ने का निर्णय लिया गया है। यूनेस्को(UNESCO) ने माना है कि संस्कृत भाषा में वैदिक जप मानव मन, शरीर और आत्मा पर गहरा प्रभाव पड़ता है।

पढ़िए- वेद, ज्ञान-विज्ञान – The Power Of Vedas

  1. शोध से पाया गया है कि संस्कृत (Sanskrit) पढ़ने से स्मरण शक्ति(याददाश्त) बढ़ती है।
  2. संस्कृत वाक्यों में शब्दों की किसी भी क्रम में रखा जा सकता है। इससे अर्थ का अनर्थ होने की बहुत कम या कोई भी सम्भावना नहीं होती। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि सभी शब्द विभक्ति और वचन के अनुसार होते हैं। जैसे- अहं गृहं गच्छामि >या गच्छामि गृहं अहं दोनों ही ठीक हैं।
  3. नासा के वैज्ञानिकों के अनुसार जब वो अंतरिक्ष ट्रैवलर्स को मैसेज भेजते थे तो उनके वाक्य उलट हो जाते थे। इस वजह से मैसेज का अर्थ ही बदल जाता था। उन्होंने कई भाषाओं का प्रयोग किया लेकिन हर बार यही समस्या आई। आखिर में उन्होंने संस्कृत में मैसेज भेजा क्योंकि संस्कृत के वाक्य उलटे हो जाने पर भी अपना अर्थ नहीं बदलते हैं। जैसा के ऊपर बताया गया है।
  4. संस्कृत भाषा में किसी भी शब्द के समानार्थी शब्दों की संख्या सर्वाधिक है. जैसे हाथी शब्द के लिए संस्कृत में १०० से अधिक समानार्थी शब्द हैं।
    [02/08, 23:04] Daddy: 14 प्रकार के मुर्दे।

राम और रावण का युद्ध चल रहा था।
तब अंगद रावण को बोला तु तो मुर्दा है। तुझे मारने से क्या फायदा?
रावण बोला मैं जिंदा हूँ मुर्दा कैसे?
अंगद बोले सिर्फ सांस लेनेवालों को जिंदा नही कहते
सांस तो लुहार का भाता भी लेता है, तब अंगद ने 14 प्रकार के मुर्दों के लक्षण बताये।
अंगदद्वारा रावण को बताई गई ये बातें आज के दौर में भी लागू होती हैं ।

यदि किसी व्यक्ति में इन 14 दुर्गुणों में से एक दुर्गुण भी आ जाता है तो वह मृतक समान हो जाता है।विचार करें कहीं यह दुर्गुण हमारे पास तो नहीं….कि हमें मृतक समान माना जाय.

1.कामवश- जो व्यक्ति अत्यंत भोगी हो, कामवासना में लिप्त रहता हो, जो संसार के भोगों में उलझा हुआ हो, वह मृत समान है। जिसके मन की इच्छाएं कभी खत्म नहीं होती और जो प्राणी सिर्फ अपनी इच्छाओं के अधीन होकर ही जीता है, वह मृत समान है।
वह अध्यात्म का सेवन नही करता। सदैव वासना में लिन रहता है।

2.वाम मार्गी- जो व्यक्ति पूरी दुनिया से उल्टा चले। जो संसार की हर बात के पीछे नकारात्मकता खोजता हो। नियमों, परंपराओं और लोक व्यवहार के खिलाफ चलता हो, वह वाम मार्गी कहलाता है। ऐसे काम करने वाले लोग मृत समान माने गए हैं।

3.कंजूस- अति कंजूस व्यक्ति भी मरा हुआ होता है। जो व्यक्तिधर्म के कार्य करने में, आर्थिक रूप से किसी कल्याण कार्य में हिस्सा लेने में हिचकता हो। दान करने से बचता हो। ऐसा आदमी भी मृत समान ही है।

4.अति दरिद्र- गरीबी सबसे बड़ा श्राप है। जो व्यक्ति धन, आत्म-विश्वास, सम्मान और साहस से हीन हो, वो भी मृत ही है। अत्यंत दरिद्र भी मरा हुआ हैं। दरिद्र व्यक्ति को दुत्कारना नहीं चाहिए, क्योकि वह पहले ही मरा हुआ होता है। बल्कि गरीब लोगों की मदद करनी चाहिए।

5.विमूढ़- अत्यंत मूढ़ यानी मूर्ख व्यक्ति भी मरा हुआ होता है। जिसके पास विवेक, बुद्धि नहीं हो। जो खुद निर्णय ना ले सके। हर काम को समझने या निर्णय को लेने में किसी अन्य पर आश्रित हो, ऐसा व्यक्ति भी जीवित होते हुए मृत के समान ही है। मुढ़ को आत्मा अध्यात्म समझता नही।

6.अजसि- जिस व्यक्ति को संसार में बदनामी मिली हुई है, वह भी मरा हुआ है। जो घर, परिवार, कुटुंब, समाज, नगर या राष्ट्र, किसी भी ईकाई में सम्मान नहीं पाता है, वह व्यक्ति मृत समान ही होता है।

7.सदा रोगवश- जो व्यक्ति निरंतर रोगी रहता है, वह भी मरा हुआहै। स्वस्थ शरीर के अभाव में मन विचलित रहता है। नकारात्मकता हावी हो जाती है। व्यक्ति मुक्ति की कामना में लग जाता है। जीवित होते हुए भी रोगी व्यक्ति स्वस्थ्य जीवन के आनंद से वंचित रह जाता है।

8.अति बूढ़ा – अत्यंत वृद्ध व्यक्ति भी मृत समान होता है, क्योंकि वह अन्य लोगों पर आश्रित हो जाता है। शरीर और बुद्धि, दोनों असक्षम हो जाते हैं। ऐसे में कई बार स्वयं वह और उसके परिजन ही उसकी मृत्यु की कामना करने लगते हैं, ताकि उसे इन कष्टों से मुक्ति मिल सके।

9.सतत क्रोधी- 24 घंटे क्रोध में रहने वाला भी मृत समान ही है। हर छोटी-बड़ी बात पर क्रोध करना ऐसे लोगों का काम होता है। क्रोध के कारण मन और बुद्धि, दोनों ही उसके नियंत्रण से बाहर होते हैं। जिस व्यक्ति का अपने मन और बुद्धि पर नियंत्रण न हो, वह जीवित होकर भी जीवित नहीं माना जाता है।पूर्व भव के संस्कार लेकर यह जीव क्रोधी होता है। क्रोधी अनेक जीवों का घात करता है।और नरक गामी होता है।

10.अघ खानी- जो व्यक्ति पाप कर्मों से अर्जित धन से अपना औरपरिवार का पालन-पोषण करता है, वह व्यक्ति भी मृत समान ही है। उसके साथ रहने वाले लोग भी उसी के समान हो जाते हैं। हमेशा मेहनत और ईमानदारी से कमाई करके ही धन प्राप्त करना चाहिए। पाप की कमाई पाप में ही जाती है। और पाप की कमाई से नीच गोत्र निगोद की प्राप्ति होती है।

11.तनु पोषक- ऐसा व्यक्ति जो पूरी तरह से आत्म संतुष्टि और खुद के स्वार्थों के लिए ही जीता है, संसार के किसी अन्य प्राणी के लिए उसके मन में कोई संवेदना ना हो तो ऐसा व्यक्तिभी मृत समान है। जो लोग खाने-पीने में, वाहनों में स्थान के लिए, हर बात में सिर्फ यही सोचते हैं कि सारी चीजें पहले हमें ही मिल जाएं, बाकि किसी अन्य को मिले ना मिले, वे मृत समान होते हैं। ऐसे लोग समाज और राष्ट्र के लिए अनुपयोगी होते हैं। शरीर को अपना मानकर उसमें रत रहना मूर्खता है क्यों की यह शरीर विनाशी है । पूरन गलन से सहित है। नष्ट होनेवाला है।

12.निंदक- अकारण निंदा करने वाला व्यक्ति भी मरा हुआ होता है। जिसे दूसरों में सिर्फ कमियां ही नजर आती हैं। जो व्यक्ति किसी के अच्छे काम की भी आलोचना करने से नहीं चूकता। ऐसा व्यक्ति जो किसी के पास भी बैठे तो सिर्फ किसी नाकिसी की बुराई ही करे, वह इंसान मृत समान होता है।
पर की निंदा करने से नीच गोत्र का बन्ध होता है।

13.परमात्म विमुख- जो व्यक्ति परमात्मा का विरोधी है, वह भी मृत समान है। जो व्यक्ति ये सोच लेता है कि कोई परमतत्व है ही नहीं। हम जो करते हैं, वही होता है। संसार हम ही चला रहे हैं। जो परमशक्ति में आस्था नहीं रखता है, ऐसा व्यक्ति भी मृत माना जाता है।

  1. श्रुति , संत विरोधी- जो संत, ग्रंथ, पुराण का विरोधी है, वह भी मृत समान होता है।
    श्रुत और सन्त ब्रेक का काम करते है। अगर गाड़ी में ब्रेक ना हो तो वह कही भी गिरकर एक्सीडेंट हो सकता है वैसे समाज को सन्त के जैसे ब्रेक की जरूरत है। नही तो समाज में अनाचार फैलेगा।
    👉 आन्तरिक स्तर ऊँचा उठाये

कितने व्यक्ति चमत्कारी साधनाओं के विधान जानने और प्रगति में सहायता करने वाले आशीर्वाद पाने के इच्छुक रहते हैं। उन्हें हम सदा यही कहते रहे हैं कि माँगने मात्र से नहीं, पात्रता के अनुरूप ही कुछ मिलता है। चमत्कारी साधनाओं के विधान हमें मालूम है। बताने में भी कोई आपत्ति नहीं, पर वे सफल तभी हो सकेंगे, जब प्रयोग कर्ता केवल कर्मकाण्डों तक ही सीमित न रहकर अपनी भाव भूमिका को भी आध्यात्मिक बनायें। केवल विधान और कर्मकाण्ड कोई सिद्धी नहीं दे। सकते उनके पीछे साधक की उच्च मनोभूमि का होना आवश्यक है और उस प्रकार की भूमिका बनाने की अनिवार्य शर्त उदार, परोपकारी, स्वार्थ-त्यागी और सहृदय होना हैं।

जो कंजूस, अनुदार, निष्ठुर, स्वार्थी और धूर्त प्रकृति के हैं, उन्हें किसी उच्च स्तरीय आध्यात्मिक विभूति का लाभ नहीं मिल सकता। इसी प्रकार आशीर्वाद भी केवल वाणी से कह कर या लेखनी से लिखकर नहीं दिये जाते, उनके पीछे तप की पूँजी लगाई गई हो तभी वे वरदान सफल होंगे। तप की पूँजी हर किसी के लिए नहीं लगाई जा सकती। गाय अपने ही बछड़े को दूध पिलाती है। दूसरे बछड़ों के लिए उसके थन में दूध नहीं उतरता। आशीर्वाद भी अपने ही वर्ग और प्रकृति के लोगों के प्रति झरते हैं। केवल चालाकी और चापलूसी के आधार पर किसी का तप लूटते जाने की घात तो कदाचित ही किसी की लगती है।

इन तथ्यों के आधार पर हम अपने उन प्रियजनों को जो चमत्कारी विधानों की जानकारी तथा लाभकारी आशीर्वादों की उपलब्धि के इच्छुक रहते हैं, हमें एक ही बात समझानी पड़ती है कि वे इन दोनों सफलताओं को यदि वस्तुतः चाहते हों तो अपना आन्तरिक स्तर थोड़ा ऊँचा उठाये और यह ऊँचाई बढ़ सके, उसके लिए हम उन्हें ज्ञान-यज्ञ सरीखे पुनीत परमानों की साधना करने उनमें सक्रिय भाग लेने के लिए अनुरोध करते रहते हैं। लोक-मंगल परमार्थ और युग की पुकार पूरी करने का कर्तव्य पालन करने के लिए ही नहीं हमारा प्रस्तुत मार्ग-दर्शन आध्यात्मिक लाभों से लाभान्वित होने के लिए आवश्यक पात्रता उत्पन्न करने की दृष्टि से भी इसकी नितान्त आवश्यकता है।

✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
📖 अखण्ड ज्योति, सितंबर १९६९, पृष्ठ 64

🚩🕉✍👉🏿 भारत में ऐसे लोगो की संख्या बहुत है जो ये मानते है यदि आप संस्कृत पढेंगे तो आप मंदिर के पंडित या प्रोहित बनोगे।।
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भई ऐसा नही है पहले के ऋषि मुनि महाऋषि आदि सभी साइंटिस्ट, इंजीनयर, डॉक्टर, आर्किटेक्ट हुआ करते थे!!
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न्यूटन के तथाकथित गति के नियम को न्यूटन के जन्म के लगभग 16000 साल पहले एक भारतीय वैज्ञानिक “महर्षि कणाद” ने अपनी पुस्तक में पूरे शोध के बाद लिखा था।
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बिल्कुल एसा ही वर्णन मिलता है ” सिद्धांत शिरोमणि” में… जहां Gravitational laws समझाये हैं..!!!
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विमान बनाने का प्रथम सूत्र महर्षि भासकराचारय ने दिया था Wright brothers से पहले…….. और उडाया भी शिव तलपड़े ने था.. मुंबई चौपाटी पर….।।
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कंप्यूटर प्रोग्रामिंग के जनक महाऋषि पाणिनि थे।।
इन्हें कंप्यूटर का जनक भी कहा जाता है।।
इसी Computation पर महर्षि पाणिनि (लगभग 500 ई पू) ने एक पूरा ग्रन्थ लिखा था।।
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इसी प्रकार शल्य चिकित्सा (surgery) के जनक महाऋषि सुश्रुत थे जिन्हें शल्य चिकित्सा पर पूरी सुश्रुत संहिता लिखी है।।
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मार्शल आर्ट और कुंग फू जैसी विद्या के जनक बोधी धर्मन थे इनका जन्म दक्षिण भारत के पल्लव राज्य के कांचीपुरम के राज परिवार में हुआ था।
चीन और जापान में इन्हें दामू कहा जाता है और इनकी पूजा की जाती है।।
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नल और नील ने चुना पत्थर और जड़ी बूटियों आदि को मिलाकर एक पुल बनाया था जो रामेश्वरम से श्री श्रीलंका के मन्नार तक जाकर जुड़ता है।
जिसे राम सेतु कहते है इसे अंतराष्ट्रीय स्तर पर एडम ब्रिज कहते है।।
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मुझे गर्व है की मैं उस उन्नत संस्कृति का हिस्सा हूँ जिसने विश्व का….. वैज्ञानिक,आध्यात्मिक,सामाजिक,दार्शनिक हर स्तर पर मार्गदर्शन किया…..!!!
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ज्यादातर मूल सिद्धांतो को खोजने में गोरी चमड़ी वालो ने कोई मेहनत नहीं की बल्कि हमारे ऋषि महर्षियों के शोध पत्रों का अनुवाद संस्कृत से अंग्रेंजी में कर के अपना नाम लिख कर पेटेंट करा लिया।।
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दुःख इस बात का है आज़ादी के बाद भी हमे शिक्षा भारतीय नही बल्कि अंग्रेजी दी जाती है!!!
हमारी मूल भाषा संस्कृत और हिन्दी है हमे ये न सिखाकर बल्कि अंग्रेजी सीखने और बोलने पर ज्यादा जोर दिया जाता है!!!
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हमे लूट कर ये देश विकसित हुए……………….आज ये हमारा ही पैसा हम लोगो को क़र्ज़ के रूप में देते है और वो पैसा आधुनिकता और भारत के विकास के काम में लगाते है और कहते है भारत एक विकासशील देश है।।
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वन्दे मातरम..⛳⚔🤺🇮🇳🦁🚩

जय अखण्ड सत्य सनातन राष्ट्रम🚩

🙏🚩🇮🇳🔱🏹🐚🕉
: यदि हम वेद विज्ञानं की तरफ नहीं लौटे तो अगले १० साल में ३० % लोगो को कैंसर हो जायेगा । आज पुरे संसार में यूरोप की शिक्षा पद्दति चल रही है । जिनको प्रकर्ति के पंचतत्व (अग्नि ,वायु , आकाश , जल ,मिटटी ) का कोई ज्ञान नहीं है , इसलिए वो इन पंचतत्व की रक्षा भी नहीं कर सकते है | इन्ही पंचतत्व से पूरा ब्रह्माण्ड बना है , यदि ये ही अशुद्ध हो गए तो जीवन कैसे बचेगा ?
पंचतत्व प्रदूषित होने के कारण निम्नानुसार है |
१-ये पंचतत्व का अशुद्ध होना किसान से शुरू होता है , जब वह फसल में रासायनिक खाद एवं कीटनाशक देना शुरू करता है | इन रासायनिक खाद की वजह से मिटटी ,जल ,वायु ,जहरीली एवं मिटटी कठोर भी हो रही है , जिस से बरसात का पानी मिटटी पूरा सोख नहीं पाती है |
२- घरो में उपयोग होने वाले साबुन , हार्पिक , चाय , कोफ़ी , फ्रीज़ , बर्तन साफ करने में VIMbar साबुन , चीनी , refind आयल , डिब्बाबंद भोजन |
३- जितनी भी फैक्ट्री है सब इन्ही पंचतत्व को अशुद्ध कर रही है |
४- जब पंचतत्व ही अशुद्ध हो गए तो अंग्रेजी डॉक्टर की लूट शुरू हो जाती है , और इनके १०-१० मंजिल अस्पताल रोगियों से भरे पड़े है , पुरे देश में त्राहिमाम मचा हुआ है , ये अस्पताल भी इन पंचतत्व को अशुद्ध ही कर रहे है |

वे वेद में इनका सम्पूर्ण उपाय बताया गया है |
१- मधुर जल-सेचन (जीवामृत )
घृतेन सीता मधुना सर्मज्यतां विश्वैर्देवैरनुमती मुरुद्भिः। ऊर्जस्वती पयंस पिन्व॑मानास्मान्त्सीते पर्याभ्या ववृत्स्व यजुर्वेद अध्याय १२ ॥७०॥
फसल के खाद के रूप में पानी में गुड़ डालकर सिचाई करे | गुड़ का पानी देने पर सैंकड़ो जीव जंतु खेत में ही पैदा हो जाते है जो आपकी जमीन को उपजाऊ बना देते है |
अब भारत सरकार ने भी इस आध्यात्मिक जीरो बजट प्राकर्तिक खेती के नाम से संसद में पास कर दी है |

२- वेद में देशी गाय से मानव शरीर के सब रोग दूर हो जाते है
1- रेवती रमध्वमस्मिन् योनावस्मिन् गोष्ठेऽस्मिँल्लोकेऽस्मिन् क्षये।
इहैव स्त मापगात यजुर्वेद 3 ॥२१॥
भावार्थ-गौ ही घर का वास्तविक धन है। उसके न रहने पर घर ‘शरीर, मन व बुद्धि’ सभी दृष्टिकोणों से निर्धन बन जाता है। शरीर रोगी हो जाता है, मन मलिन हो जाता है और बुद्धि मन्द।

३- वेद अनुसार हमेशा ताजा भोजन करना चाहिए , जब तक भोजन गर्म है तभी तक भोजन योग्य है | इस मन्त्र का आचरण करने पर जो डिब्बाबंद कारखाना है सभी बंद हो जायेंगे | कारखाना बंद होते ही पंचतत्व शुद्ध होना
शुरू हो जायेंगे |

आओ वेदों की और लोटे क्योकि इसका विकल्प हमारे पास नहीं है ।
[: आखिर क्योँ कहा जाता है भारत वर्ष को “जम्बूदीप” ?

एक सवाल आपसे ,क्या आप सच में जानते हैं जानते हैं कि हमारे भारत को “”जम्बूदीप”” क्यों कहा जाता है और, इसका मतलब क्या होता है ? दरअसल हमारे लिए यह जानना बहुत ही आवश्यक है कि भारतवर्ष का नाम भारतवर्ष कैसे पड़ा ? क्योंकि एक सामान्य जनधारणा है कि महाभारत एक कुरूवंश में राजा दुष्यंत और उनकी पत्नी शकुंतला के प्रतापी पुत्र भरत के नाम पर इस देश का नाम “भारतवर्ष” पड़ा परन्तु इसका साक्ष्य उपलब्ध नहीं है, लेकिन वहीँ हमारे पुराण इससे अलग कुछ अलग बात पूरे साक्ष्य के साथ प्रस्तुत करते है !
आश्चर्यजनक रूप से इस ओर कभी हमारा ध्यान नही गया जबकि पुराणों में इतिहास ढूंढ़कर अपने इतिहास के साथ और अपने आगत के साथ न्याय करना हमारे लिए बहुत ही आवश्यक था परन्तु , क्या आपने कभी इस बात को सोचा है कि जब आज के वैज्ञानिक भी इस बात को मानते हैं कि प्राचीन काल में साथ भूभागों में अर्थात महाद्वीपों में भूमण्डल को बांटा गया था लेकिन ये सात महाद्वीप किसने और क्यों तथा कब बनाए गये ? इस पर कभी, किसी ने कुछ भी नहीं कहा ! अथवा दूसरे शब्दों में कह सकते है कि जान बूझकर इस से सम्बंधित अनुसंधान की दिशा मोड़ दी गयी !
परन्तु हमारा “”जम्बूदीप नाम “” खुद में ही सारी कहानी कह जाता है, जिसका अर्थ होता है समग्र द्वीप इसीलिए हमारे प्राचीनतम धर्म ग्रंथों तथा विभिन्न अवतारों में सिर्फ “जम्बूद्वीप” का ही उल्लेख है क्योंकि उस समय सिर्फ एक ही द्वीप था साथ ही हमारा वायु पुराण इस से सम्बंधित पूरी बात एवं उसका साक्ष्य हमारे सामने पेश करता है ! वायु पुराण के अनुसार अब से लगभग 22 लाख वर्ष पूर्व त्रेता युग के प्रारंभ में स्वयम्भुव मनु के पौत्र और प्रियव्रत के पुत्र ने इस भरत खंड को बसाया था ! चूँकि महाराज प्रियव्रत को अपना कोई पुत्र नही था इसलिए , उन्होंने अपनी पुत्री के पुत्र अग्नीन्ध्र को गोद ले लिया था जिनका पुत्र नाभि था ! नाभि की एक पत्नी मेरू देवी से जो पुत्र पैदा हुआ उसका नाम ऋषभ हुआ और, इसी ऋषभ के पुत्र भरत थे तथा इन्ही भरत के नाम पर इस देश का नाम “भारतवर्ष” पड़ा !
उस समय के राजा प्रियव्रत ने अपनी कन्या के दस पुत्रों में से सात पुत्रों को संपूर्ण पृथ्वी के सातों महाद्वीपों का अलग-अलग राजा नियुक्त किया था ! राजा का अर्थ उस समय धर्म, और न्यायशील राज्य के संस्थापक से लिया जाता था ! इस तरह राजा प्रियव्रत ने जम्बू द्वीप का शासक अग्नीन्ध्र को बनाया था ! इसके बाद राजा भरत ने जो अपना राज्य अपने पुत्र को दिया और, वही ” भारतवर्ष” कहलाया !
ध्यान रखें कि भारतवर्ष का अर्थ है राजा भरत का क्षेत्र और इन्ही राजा भरत के पुत्र का नाम सुमति था ! इस विषय में हमारा वायु पुराण कहता है—
सप्तद्वीपपरिक्रान्तं जम्बूदीपं निबोधत।
अग्नीध्रं ज्येष्ठदायादं कन्यापुत्रं महाबलम।।
प्रियव्रतोअभ्यषिञ्चतं जम्बूद्वीपेश्वरं
नृपम्।।
तस्य पुत्रा बभूवुर्हि प्रजापतिसमौजस:।
ज्येष्ठो नाभिरिति ख्यातस्तस्य
किम्पुरूषोअनुज:।।
नाभेर्हि सर्गं वक्ष्यामि हिमाह्व तन्निबोधत।
(वायु 31-37, 38)
हम अपने रोजमर्रा के कार्यों की ओर ध्यान देकर इस बात को प्रमाणित कर सकते है हम अपने घरों में अब भी कोई याज्ञिक कार्य कराते हैं तो, उसमें सबसे पहले पंडित जी संकल्प करवाते हैं ! हालाँकि हम सभी उस संकल्प मंत्र को बहुत हल्के में लेते हैं और, उसे पंडित जी की एक धार्मिक अनुष्ठान की एक क्रिया मात्र मानकर छोड़ देते हैं ! परन्तु यदि आप संकल्प के उस मंत्र को ध्यान से सुनेंगे तो उस संकल्प मंत्र में हमें वायु पुराण की इस साक्षी के समर्थन में बहुत कुछ मिल जाता है ! संकल्प मंत्र में यह स्पष्ट उल्लेख आता है –
जम्बू द्वीपे भारतखंडे आर्याव्रत देशांतर्गते
संकल्प के ये शब्द ध्यान देने योग्य हैं क्योंकि, इनमें जम्बूद्वीप आज के यूरेशिया के लिए प्रयुक्त किया गया है ! इस जम्बू द्वीप में भारत खण्ड अर्थात भरत का क्षेत्र अर्थात ‘भारतवर्ष’ स्थित है जो कि आर्याव्रत कहलाता है ! इस संकल्प के छोटे से मंत्र के द्वारा हम अपने गौरवमयी अतीत के गौरवमयी इतिहास का व्याख्यान कर डालते हैं, परन्तु अब एक बड़ा प्रश्न आता है कि जब सच्चाई ऐसी है तो फिर शकुंतला और दुष्यंत के पुत्र भरत से इस देश का नाम क्यों जोड़ा जाता है ?
इस सम्बन्ध में ज्यादा कुछ कहने के स्थान पर सिर्फ इतना ही कहना उचित होगा कि शकुंतला, दुष्यंत के पुत्र भरत से इस देश के नाम की उत्पत्ति का प्रकरण जोडऩा शायद नामों के समानता का परिणाम हो सकता है अथवा , हम हिन्दुओं में अपने धार्मिक ग्रंथों के प्रति उदासीनता के कारण ऐसा हो गया होगा !
परन्तु जब हमारे पास वायु पुराण और मन्त्रों के रूप में लाखों साल पुराने साक्ष्य मौजूद है और, आज का आधुनिक विज्ञान भी यह मान रहा है कि धरती पर मनुष्य का आगमन करोड़ों साल पूर्व हो चुका था, तो हम पांच हजार साल पुरानी किसी कहानी पर क्यों विश्वास करें ?
सिर्फ इतना ही नहीं हमारे संकल्प मंत्र में पंडित जी हमें सृष्टि सम्वत के विषय में भी बताते हैं कि अभी एक अरब 96 करोड़ आठ लाख तिरेपन हजार एक सौ तेरहवां वर्ष चल रहा है ! फिर यह बात तो खुद में ही हास्यास्पद है कि एक तरफ तो हम बात एक अरब 96 करोड़ आठ लाख तिरेपन हजार एक सौ तेरह पुरानी करते हैं परन्तु, अपना इतिहास पश्चिम के लेखकों की कलम से केवल पांच हजार साल पुराना पढ़ते और मानते हैं ! आप खुद ही सोचें कि यह आत्मप्रवंचना के अतिरिक्त और क्या है ?
इसीलिए जब इतिहास के लिए हमारे पास एक से एक बढ़कर साक्षी हो और प्रमाण पूर्ण तर्क के साथ उपलब्ध हों तो फिर , उन साक्षियों, प्रमाणों और तर्कों के आधार पर अपना अतीत अपने आप खंगालना हमारी जिम्मेदारी बनती है ! हमारे देश के बारे में वायु पुराण का ये श्लोक उल्लेखित है –
हिमालयं दक्षिणं वर्षं भरताय न्यवेदयत्।तस्मात्तद्भारतं वर्ष तस्य नाम्ना बिदुर्बुधा:।।
यहाँ हमारा वायु पुराण साफ साफ कह रहा है कि हिमालय पर्वत से दक्षिण का वर्ष अर्थात क्षेत्र भारतवर्ष है ! इसीलिए हमें यह कहने में कोई हिचक नहीं होनी चाहिए कि हमने शकुंतला और दुष्यंत पुत्र भरत के साथ अपने देश के नाम की उत्पत्ति को जोड़कर अपने इतिहास को पश्चिमी इतिहासकारों की दृष्टि से पांच हजार साल के अंतराल में समेटने का प्रयास किया है ! ऐसा इसीलिए होता है कि आज भी हम गुलामी भरी मानसिकता से आजादी नहीं पा सके हैं और, यदि किसी पश्चिमी इतिहासकार को हम अपने बोलने में या लिखने में उद्घ्रत कर दें तो यह हमारे लिये शान की बात समझी जाती है परन्तु, यदि हम अपने विषय में अपने ही किसी लेखक कवि या प्राचीन ग्रंथ का संदर्भ दें तो, रूढि़वादिता का प्रमाण माना जाता है !
यह सोच सिरे से ही गलत है ! इसे आप ठीक से ऐसे समझें कि राजस्थान के इतिहास के लिए सबसे प्रमाणित ग्रंथ कर्नल टाड का इतिहास माना जाता है, परन्तु आश्चर्य जनक रूप से हमने यह नही सोचा कि एक विदेशी व्यक्ति इतने पुराने समय में भारत में आकर साल, डेढ़ साल रहे और यहां का इतिहास तैयार कर दे, यह कैसे संभव है ? विशेषत: तब जबकि उसके आने के समय यहां यातायात के अधिक साधन नही थे और, वह राजस्थानी भाषा से भी परिचित नही था !

फिर उसने ऐसी परिस्थिति में सिर्फ इतना काम किया कि जो विभिन्न रजवाड़ों के संबंध में इतिहास संबंधी पुस्तकें उपलब्ध थीं उन सबको संहिताबद्घ कर दिया ! इसके बाद राजकीय संरक्षण में करनल टाड की पुस्तक को प्रमाणिक माना जाने लगा और, यह धारणा बलवती हो गयीं कि राजस्थान के इतिहास पर कर्नल टाड का एकाधिकार है ! ऐसी ही धारणाएं हमें अन्य क्षेत्रों में भी परेशान करती हैं इसीलिए अपने देश के इतिहास के बारे में व्याप्त भ्रांतियों का निवारण करना हमारा ध्येय होना चाहिए, क्योंकि इतिहास मरे गिरे लोगों का लेखाजोखा नही है जैसा कि इसके विषय में माना जाता है बल्कि, इतिहास अतीत के गौरवमयी पृष्ठों और हमारे न्यायशील और धर्मशील राजाओं के कृत्यों का वर्णन करता है !
[: अमेरिका मे 75 डालर लग रहे हैं गाय को प्यार दुलार करने के लिए।
😶🤔😱🧐🤥😲🙌🙌
क्योंकि उन्होंने शोध मे पाया गाय को प्यार करने से उनका तनावग्रस्त जीवन आनंद में बदल जाता हैं।

भारत में ऐसी स्थिति ना आये…
इसलिए गौशाला जाये….
गायों को प्यार करें।

हमारी सनातन संस्कृति के साइंटिस्ट्स ऋषि मुनि यह बात पहल से जानते थे।
जो बात आज अमेरिका के लोगों को समझ आ रही है उस अनुभूति को भारतवासी सदियों से जी रहे हैं।
यहीं वो धरती है जहाँ गाय को माँ संज्ञा दी गई है।

आइये अपने अतीत की तरफ़ मुड़ें।
गायो के पास जाये, वो आपकी प्रतीक्षा कर रही है।
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[: 🚩अमेरिका व यूरोप में तनाव दूर करने के लिए फीस देकर गायों के गले लग रहे हैं

🚩मनुष्य के जीवन में देशी गाय माता का बड़ा महत्वपूर्ण योगदान रहा है । गाय माता के दूध-दही-घी-मूत्र-गोबर से बने पंचगव्य से भयंकर बीमारियां भी ठीक हो जाती है, गाय के अंदर 33 करोड़ देवता का वास होता है, तभी तो भगवान श्री कृष्ण भी स्वयं गाय चराते थे, यहाँ तक बताया गया है कि गाय के गोबर से जहाँ लीपन किया जाता है वहाँ अगर परमाणु बम भी गिरे तो भी उसका असर नहीं होता है । गाय की उपयोगिता के बारे में कितना भी लिखें वो कम है ।

🚩आज के समय में दुनिया में सबसे ज्यादा लोग तनाव के शिकार हैं। लोग तनाव से बचने के लिए तरह-तरह के उपाय अपनाते हैं, लेकिन आप केवल गाय के साथ समय बिताकर और उसे गले लगाकर भी अपना तनाव दूर कर सकते हैं।

🚩दरअसल, इस समय काउ कडलिंग अमेरिका में तेजी से प्रसिद्ध हो रहा है। इसके अंतर्गत व्यक्ति गाय के साथ शांत माहौल में समय बिताता है और अपनी परेशानियों को भूल जाता है।

🚩यूरोपियन देशों में काउ कडलिंग (गाय को लाड दुलार करना) के सेशन काफी लोकप्रिय हैं, लेकिन अब अमेरिका में भी इसकी माँग बढ़ रही है। अब अमेरिकियों के लिए भी यह सुविधा न्यूयॉर्क में शुरू हो गई है। एक घंटे के लिए 75 डॉलर (लगभग 5200 रुपए) खर्च करने होंगे। इसके बाद व्यक्ति गाय के साथ शांत माहौल में रह सकता है, ताकि उनका तनाव दूर हो सके। इससे लोगों का तनाव दूर होगा।

🚩अभी न्ययूॉर्क के 33 एकड़ में फैले माउंटेन हाउस फार्म में यह सुविधा शुरू हुई है। इस फार्म में पिछले 9 सालों से घोड़ों के साथ वेलनेस सेशन चल रहे थे, लेकिन काउ कडलिंग को अभी शुरू किया गया है। फार्म की मालकिन सुजन वूलर्स मूल रूप से नीदरलैंड्स की हैं। पति के साथ न्यूयॉर्क में फार्म चलाती हैं।

🚩गाय के साथ समय बिताने के स्वास्थ्य संबंधी फायदों के बारे में जानने के बाद सुजन नीदरलैंड गईं और वहाँ से दो गाय लाईं। इसके बाद उन्होंने काउ कडलिंग सेशन की शुरुआत न्यूयॉर्क में कर दी।

🚩दिन में एक या दो सेशन्स होते हैं:

स्विट्जरलैंड और नीदरलैंड में स्ट्रेस दूर करने के लिए काउ कडलिंग सेशन्स होते हैं। वूलर्स बताती हैं, सच कहूं तो मैं नहीं जानती थी कि अमेरिका में काउ कडलिंग और इसके फायदों से लोग अंजान हैं। इसलिए मैं अपनी दो गायों बोनी और बेला को यहां ले आई। लोगों को डॉग और कैट थेरेपी के बारे में तो काफी पता है, लेकिन बड़े जानवरों से वे दूर ही रहते हैं।

🚩गाय का शांत व्यवहार लोगों को रिलेक्स महसूस करवाता है। बस एक शांत माहौल में गाय के साथ रहकर उसके दिल की धड़कन को सुनें, आप अपनी सारी परेशानियां भूल जाएंगे। हमारे फार्म में दिन में काउ कडलिंग के दो सेशन ही होते हैं। स्त्रोत : भास्कर

🚩विदेशों में गाय की महत्ता समझकर तनाव दूर करके लोग स्वस्थ रह रहे हैं और भारत में गौहत्या हो रही है कितना दुर्भाग्यपूर्ण है।

🚩आज जो हमारे देश मे भूकंप, बाढ़ आदि आते हैं, उसका कारण भी गौहत्या ही है, जब गाय की हत्या हो रही होती है, तब उसकी चीख जो निकलती है उससे पृथ्वी माता काँपने लगती है ।

शास्त्रों में लिखा है कि
भूकंप कहे गाइ की गाथा।
कांपे धरा त्रास अति जाता।

अर्थात जब गौमाता को कष्ट होता है, तभी पृथ्वी कांपती है अर्थात भूकम्प आता है ।

🚩अथर्ववेद के अनुसार- गाय समृद्धि का मूल स्रोत व प्रचुरता की द्योतक है एवं सृष्टि के पोषण की स्रोत व जननी है । गाय माता में 33 करोड़ देवताओं का वास हैं ।

🚩गाय को सताना घोर पाप है । उसकी हत्या से तो नर्क के द्वार खुल जाते हैं तथा करोड़ों जन्मों तक दुःख भोगना पड़ता है ।

🚩”गौमय वसते लक्ष्मी” यह हमारी प्राचीन भारतीय वैज्ञानिक संस्कृति का मूल-मंत्र रहा है ।

आज के वैज्ञानिक भी कहते हैं कि गाय ही एकमात्र ऐसा पवित्र प्राणी है जो ऑक्सीजन ग्रहण करता है और ऑक्सीजन ही छोड़ता है ।

🚩रुसी वैज्ञानिक शिरोविच ने बताया है कि 1 चम्मच गौघृत जला कर हम 1 टन प्राणवायु प्राप्त कर सकते हैं ।

🚩बता दें कि एलोपैथिक दवाओं, रसायनिक खादों, प्रदूषण आदि के कारण शरीर में एकत्रित विष गाय के दूध से ही नष्ट होता है ।

🚩गौ माता का दूध,दही,गौ-मूत्र,गोबर आदि जीवन के लिए उपयोगी होने के साथ-साथ वरदान स्वरुप है ।

🚩अमेरिका कैंसर की दवा बनाने के लिए भारत से गौमूत्र आयात करता है और हम लोग पवित्र गौ-माता को कत्लखाने भेज देते हैं । ये उचित नहीं है ।

🚩प्रत्येक हिन्दुस्तानी का यह परम् कर्तव्य है कि वो गौ-गीता और संतों का सम्मान करे । ऐसा करेंगे तभी हम देश को सही दिशा की ओर ले जा पाएंगे और देश को गुलाम होने से बचा पाएंगे ।

🚩मोदी सरकार ने जैसे रातोंरात नोटबन्दी कर दी थी, वैसे ही रातोंरात घोषणा कर देनी चाहिए कि पूरे देश में गौहत्या बंद हो और गाय को राष्ट्रीय माता घोषित करके गौहत्यारों को फांसी की सजा का प्रावधान कर देना चाहिए ।


[: “रोज़ सुबह उठकर एक बात याद रखें”

    *"Return Ticket"*
           *"तो कन्फर्म है"*

  *"इसलिये मन भरकर जीयें"*
    *"मन में भरकर ना जीयें।"*

छोड़िए शिकायत..
शुक्रिया अदा कीजिये…

जितना है पास..
पहले उसका मजा लीजिये…

चाहे जिधर से गुज़रिये
“मीठी” सी हलचल मचा दीजिये,

उम्र का हर एक दौर मज़ेदार है
अपनी उम्र का मज़ा लीजिये.

🌹🙏🏻🙏🏻om shanti🙏🏻🙏🏻🌹
[: ये सत्य है अनेको रोग है। उससे ग्रसित अनेको रोगी है।
सबके समस्या अलग और उपचार भी अलग।
यही कारण है कि चिकित्सा धैर्यवान लोगो का काम है।

चरक जी के अनुसार जिनको अपने क्रोध पर नियंत्रण नही। अति भावुक या मानसिक रुप से विचलित होने वालो और सेवा भाव रहित पुरुषो को चिकित्सक नही बनना चाहिए ।

भारत में औषधि वृक्षके गुण को पहचान कर उससे दवाई बनाने की विधि अति प्राचीन है।

आजकल उन औषधि बृक्ष की सही पहचान करने वाले भी नही मिल रहे।
एक दिन ऐसा भी आयेगा जब हम कैमिकल से ही शरीर संचालन तथा संतान उत्पादन करेंगे क्योंकि हम अपने प्रकृति के उपयोग करना भुल जा रहे है और प्रकृति से दुर होते जा रहे है।

स्थानीय पर्यावरण के संतुलन का संरक्षण करते करते ‘जियो और जीने दो’ के सिद्धान्त पर चलना ही हिन्दू धर्म है। प्राकृतिक जीवन जीना ही नैचुरोपैथी कहलाता है जो हिन्दू धर्म के साथ संलगित है। अतः चिकित्सा विज्ञान भारत का प्राचीनतम ज्ञान है। पृथ्वी पर सभी जीवों, पर्वतों, वनस्पतियों, खनिजों तथा औषधियों की सागर से उत्पत्ति ऐक प्रमाणित सत्य है। आयुर्वेद ग्रंथ को दिव्य चिकित्सक धनवन्तरी सागर मंथन के फलस्वरूप पृथ्वी पर लाये थे। उन्हों ने आयुर्वेद ग्रंथ प्रजापति को सौंप दिया था ताकि उस के ज्ञान को जनहित के लिये क्रियाशील किया जा सके। अनादि काल से ही भारत की राजकीय व्यवस्था प्रजा के स्वास्थ, पर्यावरण की रक्षा तथा जन सुविधाओ के प्रति कृत संकल्प रही है।

भारतीय चिकित्सा पद्धति का उदय अथर्व वेद से हुआ, जहां रोगों के लक्षण और औषधियों की सूची के साथ उन के उपयोग भी उल्लेख किये गये हैं। आयुर्वेद ग्रंथ अथर्व वेद का ही उप वेद है जो दीर्घ आयु के संदर्भ में पूर्ण ज्ञान दर्शक है। ऋषि पतंजली कृत योगसूत्र स्वस्थ जीवन के लिये जीवन यापन पद्धति का ग्रंथ है जिस में उचित आहार, विचार तथा व्यवहार पर ज़ोर दिया गया है। इस के अतिरिक्त पुराणों उपनिष्दों तथा दर्शन शास्त्रों में भी आहार, व्यवहार तथा उपचार सम्बन्धी मौलिक जानकारी दी गयी है।

रोग जाँच प्रणाली

प्राचीन ग्रंथो के अनुसार मानव शरीर में तीन दोष पहचाने गये हैं जिन्हें वात, पित, और कफ़ कहते हैं। स्वास्थ इन तीनों के उचित अनुपात पर निर्भर करता है। जब भी इन तीनों का आपसी संतुलन बिगड जाता है तो शरीर रोग ग्रस्त हो जाता है। रोग के लक्षणों को पहचान कर संतुलन का आँकलन किया जाता है और उपचार की क्रिया आरम्भ होती है। जीवन शैली को भी तीन श्रेणियों में रखा गया है जिसे सात्विक, राजसिक तथा तामसिक जीवन शैली की संज्ञा दी गयी है। आज के वैज्ञानिक तथा चिकित्सक दोनों ही इस वैदिक तथ्य को स्वीकार करते हैं कि जीवन शैली ही मानव को स्वस्थ अथवा अस्वस्थ बनाती है। आज कल इसे ‘लाईफ़ स्टाईल डिसीज़ ’ कहा जाता है।

रोगों के उपचार के लिये कई प्रकार की जडी-बूटियों तथा वनस्पतियों का वर्णन अथर्व वेद तथा अन्य प्राचीन ग्रंथों में किया गया है। अथर्व वेदानुसार जल में सभी औषधियां समाई हुई हैं और आज भी लगभग सभी औषधियाँ जल के साथ तरल रूप में ही प्रयोग करी जाती हैं।

शल्य चिकित्सा

भले ही यह आस्था की बातें हैं परन्तु गणेश के मानवी शरीर पर हाथी का सिर, वराह अवतार के मानवी शरीर पर जंगली सुअर का सिर, नरसिहं अवतार के मानवी शरीर पर सिहं का सिर साक्षी हैं कि अंग प्रत्यारोपण के लिये भारत के चिकित्सकों को वैचारिक प्रेरणा तो आदि काल से ही मिल चुकी थी। गौतम ऋषि दूारा शापित इन्द्र को सामान्य करने के लिये बकरे के अण्डकोष भी लगाये गये थे। उल्लेख है कि भगवान शिव ने प्रजापति दक्ष के धड पर प्रतीक स्वरूप बकरे का सिर लगा कर उसे जीवन दान दे दिया था।

वास्तव में पराचीन भारतीय चिकित्सिक भी उपचार में अत्यन्त अनुभवी तथा अविष्कारक थे। वह रुग्ण अंगों को काट कर दूसरे अंगों का प्रत्यारोपण कर सकते थे, गर्म तेल और कप आकार की पट्टी से रक्त स्त्राव को रोक सकते थे। उन्हों ने कई प्रकार के शल्य यन्त्रों का निर्माण भी किया था तथा शिक्षार्थियों को सिखाने के लिये लाक्ष या मोम को किसी पट पर फैला कर शल्य क्रिया का अभ्यास करवाया जाता था। इस के अतिरिक्त सब्ज़ियों तथा मृत पशुओं पर भी शल्य चिकित्सा के लिये प्रयोगात्मिक अभ्यास करवाये जाते थे। भारतीय शल्य चिकित्सा चीन, श्रीलंका तथा दक्षिण पूर्व ऐशिया के दूीपों में भी फैल गयी थी।

शरीरिक ज्ञान

अंग विज्ञान चिकित्सा विज्ञान का आरम्भ है। ईसा से छटी शताब्दी पूर्व ही भारतीय चिकित्सकों नें स्नायु तन्त्र आदि का पूर्ण ज्ञान उल्लेख कर दिया था। उन्हें पाचन प्रणाली, उस के विभिन्न पाचक द्रव्यों तथा भोजन के दूारा पौष्टिक तत्वों और रक्त के निर्माण की पूर्ण जानकारी थी।

ऋषि पिपलाद कृत ‘गर्भ-उपनिष्द’ के अनुसार मानव शरीर में 180 जोड, 107 मर्मस्थल, 109 स्नायुतन्त्र, और 707 नाडियाँ, 360 हड्डियाँ, 500 मज्जा (मैरो) तथा 4.5 करोड सेल होते हैं। हृदय का वजन 8 तोला, जिव्हा का 12 तोला और यकृत (लिवर) का भार ऐक सेर होता है। स्पष्ट किया गया है कि यह मर्यादायें सभी मानवों में ऐक समान नहीं होतीं क्यों कि सभी मानवों की भोजन ग्रहण करने और मल-मूत्र त्यागने की मात्रा भी ऐक समान नहीं होती।

ईसा से पाँच सौ वर्ष पूर्व भारतीय चिकित्सकों ने संतान नियोजन का वैज्ञानिक ज्ञान उल्लेख कर दिया था। उन के मतानुसार मासिक स्त्राव के प्रथम बारह दिनों में गर्भ नहीं ठहरता। गर्भ-उपनिष्द में गर्भ तथा भ्रूण विकास सम्बन्धी जो समय तालिका दी गयी है वह आधुनिक चिकित्सा ज्ञान के अनुकूल है। कई प्रकार के आहार और उपचार जन्म से पूर्व लिंग परिवर्तन सें सक्षम बताये गये हैं। ऐक अन्य ‘त्रिशिख-ब्राह्मणोपनिष्द’ में तो शरीरिक मृत्यु समय के लक्षण भी आलेखित किये गये हैं जैसे कि प्राकृतिक मुत्यु काल से पूर्व संवेदनायें शरीर से समाप्त होने लगती है। ऐक वर्ष पूर्व – पैरों के तलवों तथा हाथ पाँव के अंगूठों से, छः मास पूर्व – हाथ की कलाईयों तथा पाँव के टखनों से, एक मास पूर्व – हाथ की कोहनियों से, एक पखवाडा पूर्व – आँखों से संवेदनायें नष्ट हो जाती हैं। स्वाभाविक मृत्यु से दस दिन पूर्व – भूख पूर्णत्या नष्ट हो जाती है, पाँच दिन पूर्व – नेत्र ज्योति में जूगनु की चमक जितनी क्षमता रह जाती है, तीन दिवस पूर्व – अपनी ही नासिका की नोक दिखाई नहीं पडती और दो दिवस पूर्व – आँखों के सामने ज्योति दिखाई देनी बन्द हो जाती है। कोई चिकित्सक चाहे तो उपरोक्त आलेखों की सत्यता को आज भी आँकडे इकठ्ठे कर के परख सकता है।

जडी बूटी उपचार

भारत में कई प्रकार के धातु तथा उन के मिश्रण, रसायन और वर्क आदि भी औषधि के तौर पर प्रयोग किये जाते थे। भारतीय चिकित्सा का ज्ञान मध्यकाल में अरब वासियों के माध्यम से योरूप गया। कीकर बबूल की गोंद लगभग दो हजार वर्ष से घरेलू उपचार की भाँति कई रोगों के निवार्ण में प्रयोग की जाती रही है। गुगल का प्रयोग ईसा से 600 वर्ष पूर्व मोटापा, गंठिया, तथा अन्य रोगों का उपचार रहा है। पुर्तगालियों ने भी कई भारतीय उपचार अपनाये जिन में त्वचा के घावों को भरने और उन्हें ठंडा रखने के लिये घावों पर हल्दी का लेप करना मुख्य था। चूलमोगरा की छाल, हरिद्रा तथा पृश्निपर्णीः कुष्ट रोग का पूर्ण निवारण करने में सक्षम हैं। भृंगशिराः (क्षयरोग), रोहणिवनस्पति (घाव भरने के लिये), कैथ (वीर्य वृद्धि के लिये) तथा पिप्पली क्षिप्त वात रोग निवारण के साथ सभी रोगों को नष्ट कर के प्राणों को स्थिर रखने में समर्थ औषधि है। भारत के प्राचीन उपचार आज भी सफलता के कारण पाश्चात्य चिकित्सकों के मन में भारतीय चिकित्सा पद्धति के प्रति ईर्षा का कारण बने हुये हैं।

हिपनोटिजम की उत्पति

हिपनोटिजम की उत्पति भी भारत में ही हुयी थी। हिन्दू अपने रोगियों को मन्दिरों मे भी ले जाते थे जहाँ विशवास के माध्यम से वह रोग निवृत होते थे। आज कल इसी पद्धति को फेथ–हीलिंग कहा जाता है। बौध भिक्षु इस पद्धति को भारत से चीन और जापान आदि देशों में ले कर गये थे।

प्राचीन भारत के चिकित्साल्य

इतिहासकार विन्संट स्मिथ के मतानुसार योरूप में अस्पतालों का निर्माण दसवीं शताब्दी में हुआ किन्तु सर्व प्रथम भारतीयों नें जन साधारण के लिये चिकित्साल्यों का निर्माण किया था जो राजकीय सहायता और धनिकों के निजि संरक्षण से चलाये जाते थे। रोगियों की सेवा सर्वोत्तम सेवा समझी जाती थी।

चीनी पर्यटक फाह्यान के पाटलीपु्त्र के उल्लेख के अनुसार – वहाँ कई निर्धन रोगी अपने उपचार के लिये आते थे जिन को चिकित्सक ध्यान पूर्वक देखते थे तथा उन के भोजन तथा औषधि की देख भाल करी जाती थी। वह निरोग होने पर ही विसर्जित किये जाते थे।

स्वास्थ तथा चिकित्सा के सामाजिक नियम

भारतीय समाज में पौरुष की परीक्षा विवाह से पूर्व अनिवार्य थी। मनु समृति में तपेदिक, मिर्गी, कुष्टरोग, तथा तथा सगोत्र से विवाह सम्बन्ध वर्जित किया गया है।

छुआछुत का प्रचलन भी स्वास्थ के कारणों से जुडा है।

(मुगल काल में जिन हिन्दूयो को महल के अंदर की मुस्लिम महिलाऔ के मैला ढोने के काम पर जबर्दस्ती लगाया गया था उनसे मलवाहित रोग फैलने के डर से दुसरे हिन्दू उनको नही छुते थे और सार्वजनिक जलाशय के जल जीवाणु मुक्त रखने के लिए ही उनके लिए अलग जलाशय बना दिया गया वो लोग सभी जलाशय से जल नही ले सकते थे। परंतु बाद में यही सामाजिक प्रथा बन गया)

अदृष्य रोगाणु रोग का कारण है यह धारणा भारतीयों में योरूप वासियों से बहुत काल पूर्व ही विकसित थी। आधुनिक मेडिकल विज्ञान जिसे ‘जर्म थियोरी’ कहता है वह शताब्दियों पूर्व ही मनु तथा सुश्रुत के विधानों में प्रमाणिक्ता पा चुकी थी। इसीलिये हिन्दू धर्म के सभी विधानों सें शरीर, मन, भोजन तथा स्थल की सफाई को विशेष महत्व दिया गया है।

मनुसमृति में सार्वजनिक स्थानों को गन्दा करने वालों के प्रति मानवीय भावना रखते हुये केवल चेतावनी दे कर छोड देने का विधान है परन्तु मनु महाराज ने अयोग्य झोला छाप चिकित्सकों को दण्ड देने का विधान भी इस प्रकार उल्लेखित कर दिया थाः-

   आपद्गतो़तवा वृद्धा गर्भिणी बाल एव वा।

   परिभाषणमर्हन्ति तच्च शोध्यमिति स्थितिः।।

   चिकित्सकानां सर्वेषां मिथ्या प्रचरतां दमः।

   अमानुषेषु प्रथमो मानषेषु तु मध्यमः।। (मनु स्मृति 9– 283-284)

जो किसी प्रकार के रोग आदि आपत्तियों में फंसा हो, अथवा वृद्धा, गर्भिणी स्त्री, बालक, यदि रास्ते में मल आदि का उत्सर्ग करें तो वह दण्डनीय नहीं हैं। उन को केवल प्रतारण मात्र कर के उन से मलादि को रास्ते से साफ करा दें, यही शास्त्रीय व्यवस्था है। वैद्यक शास्त्र के बिना अध्यन किये झूठे वैद्य हो कर विचरने वालों को, जो पशुओं की चिकित्सा में अयोग्य हों उन्हें प्रथम साहस, मनुष्यों के चिकित्सा में अयोग्य हों तो मध्यम साहस का दण्ड दें।

भारत में पशु चिकित्सा

सम्राट अशोक ने जन साधरण के अतिरिक्त पशु पक्षियों के उपचार के लिये भी चिकित्साल्यों का प्रावधान किया था। पशु पक्षियों के उपचार की राजकीय व्यवस्था करी गयी थी जिस के फलस्वरूप भारत में पशु उपचार मानव उपचार की तरह ऐक स्वतन्त्र प्रणाली की तरह विकसित हुआ। पशु चिकित्सा के लिये प्रथक चिकित्साल्य और विशेषज्ञ थे। अश्वों तथा हाथियों के उपचार से सम्बन्धित कई मौलिक ग्रंथ उपलब्ध हैं –

विष्णु धर्महोत्रः महापुराण में पशुओं के उपचार में दी जाने वाली प्राचीनतम औषधियों का वर्णन है।

पाल्कयामुनि रचित हस्तार्युर् वेद का उल्लेख यूनानी राजदूत मैगस्थनीज़ ने भी किया है और लिखा है कि विशेष उपचार से हाथियों की आयु भी बढायी जाती थी।

शालिहोत्रः उच्च कोटि के अश्वों की प्रजनन व्यव्स्था के विशेषज्ञ थे।

अश्व वैद्य ग्रंथ के रचिता हिप्पित्रेय जुदुदत्ता नें गऊओं के उपचार के बारे में विस्तरित विवरण दिये हैं।

पाश्चात्य संसार के महान यूनानी दार्शनिक अरस्तु का काल ईसा से लगभग 350 वर्ष पूर्व का है।

किन्तु भारत की उच्च चिकित्सा पद्धति की तुलना में उन के मतानुसार पक्षियों को दो श्रेणियों में विभाजित किया गया था।

ऐक वह जिन में रक्तप्रणाली थी तथा दुसरे पक्षी रक्तहीन माने गये थे। क्या वैज्ञानिक दृष्टि से ऐसा सम्भव हो सकता है। इस की तुलना मनुस्मृति में समस्त पशु पक्षियों का उन के जन्म के आधार पर, शरीरिक अंगों के अनुसार तथा उन की प्रकृति के अनुसार विस्तरित ढंग से वर्गीकरण कर के जीवन श्रंखला लिखी गयी है। इस के अतिरिक्त वाल्मीकि रामायण में भी समस्त प्राणियों की परिवार श्रंखला उल्लेख की गयी है।

भारतीय ऋषियों तथा विशेषज्ञ्यों के प्राणी वर्गीकरण को केवल इसी आधार पर नकारा नहीं जा सकता कि उन का वर्गीकरण पाश्चात्य विशेषज्ञो के परिभाषिक शब्दों के अनुकूल नहीं है। भारतीय वर्गीकरण पूर्णत्या मौलिक तथा वैज्ञानिक है तथा हर प्रकार के संशय का निवारण करने में सक्षम है।
भारतीय चिकित्सा पद्धति का पुर्नोदय चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में एक शुभ संकेत है।

ग्रहसमागम —
संयोग दो प्रकार का होता है — दृष्टि अथवा योग। पापग्रह की दृष्टि पाप फलदायक है। शुभग्रहों का संयोग शुभफलदायक है। राहु तथा केतु को छोड़ कर शेष ग्रह यदि सूर्य के साथ हों तो अच्छा समागम कहलाता है और वे बलवान हो जाते हैं। निम्नलिखित समागम उत्तम कहलाते हैं १- मंगल को छोड़ कर किसी और ग्रह के साथ बृहस्पति, २- सूर्य, चन्द्रमा अथवा बुध के साथ शुक्र, ३- चन्द्रमा के साथ सूर्य, ४- सूर्य अथवा चन्द्रमा के साथ बुध। शेष समागम प्राय: शुभ नहीं होते हैं। यदि कोई ग्रह उच्च अथवा स्वक्षेत्री आदि हो तो अशुभ समागम का फल कुछ अच्छा हो जाता है। मान लीजिए तुला में सूर्य, शनि बैठे हैं तो एक उच्च का एक नीच का ग्रह है, अत: शुभ-अशुभ फल मिश्रित होगा।
अस्तलक्षण—
जब ग्रह सूर्य के साथ हो तो उसका अस्त हो जाता है, अर्थात वह नहीं दिखलाई देता है। जब ग्रह सूर्य से पृथक राशि में हो तो उदित हो जाता है। सूर्य के साथ एक राशि में १२ अंश भीतर ग्रह अस्त हो जाता है। १२ अंश से आगे बढ़ने पर उसका उदय हो जाता है। यदि कोई ग्रह सूर्य से ५ अंश के भीतर हो तो वह पूरा अस्त है, यदि वह, १० अंश के भीतर हो तो उतना अशुभ फल नहीं होता है, यदि १५ अंशों से अधिक दूरी पर हो तो अधिक हानिकारक नहीं है।
वक्री आदि ग्रहज्ञान –
राहु तथा केतु सदा वक्री होते हैं अर्थात उलटी चाल चलते हैं, सूर्य तथा चन्द्रमा शीघ्र चलने वाले हैं। ग्रह जब सूर्य से पृथक हो जाते हैं तो उनका उदय हो जाता है, सूर्य से दूसरे स्थान में ग्रहों की चाल शीघ्र हो जाती है, तीसरे घर में सम रहते हैं, चौथे स्थान में उनकी गति मन्द हो जाती है, पांचवें तथा छठे स्थानों में वक्री हो जाते हैं, सातवें तथा आठवें घर में अतिवक्री हो जाते हैं, नवें तथा दसवें स्थानों में मार्गी हो जाते हैं, ग्यारहवें तथा बारहवें स्थानों में शीघ्र हो जाते हैं। इस प्रकार ग्रह सौम्य, अतिसौम्य, उग्र, अतिपाप, शीघ्र और स्वाभाविक कहलाते हैं।
उदयास्तज्ञान —
(१) जो ग्रह सूर्य से अल्पगति हो तथा सूर्य से अंशों में भी कम हो उसका पूर्व में उदय होता है। (२) जो ग्रह सूर्य से अधिक हो तथा सूर्य से अंशों में भी अधिक हो, उसका पश्चिम में उदय होता है। (३) जो ग्रह सूर्य से अंशों में अधिक हो परन्तु सूर्य से लघुगति हो, उसका पश्चिम में अस्त होता है। (४) जो ग्रह सूर्य से अधिक गति हो परन्तु सूर्य से अंशों में कम हो, उसका पूर्व में अस्त होता है।
वक्रादिज्ञान —
पूर्व में अस्त होने के पश्चात पश्चिम में बुध का उदय होता है, फिर वह वक्री होता है, फिर अस्त होता है, फिर पूर्व में उदय होता है, फिर पूर्व में अस्त होने के पहिले मार्गी हो जाता है। उसके दिन इस प्रकार से हैं – ३२, ३२, ४, १६, ४, ३२।
शुक्र के दिन इस प्रकार है – ७५, २४०, २३, ९, २३, २४०। मंगल अस्त होने के उपरान्त उदयी होता है, फिर वक्री होता है, फिर मार्गी होता है, तब अस्त होता है। इसी क्रम से मास इस प्रकार हैं – ४, १०, २, १०। बृहस्पति के मास इस प्रकार हैं – १, ४, ४, ३। शनि के मास इस प्रकार हैं – १, ३, ४, ३।
वक्र ग्रहफल —
क्रूर ग्रह जब वक्री होते हैं तो उनका फल बड़ा क्रूर होता है, परन्तु सौम्य ग्रह वक्री हों तो अतिशुभ फल देने वाले होते हैं।
ग्रहों का दोष परिहार —
राहु के दोष को बुध मार देता है, राहु और बुध दोनों के दोषों को शनि मार देता है, राहु, बुध और शनि इन तीनों के दोषों को मङ्गल दबा देता है, चारों के दोषों को शुक्र हर लेता है, पांचों के दोषों को बृहस्पति दूर कर देता है, छ: ग्रहों के दोषों को चन्द्रमा नाश कर देता है, पूर्वोक्त सातों ग्रहों के दोषों को सूर्य नष्ट कर देता है, विशेषत: उत्तरायण में।
[: ॐॐॐॐॐॐॐ
ॐ ओउम् तीन अक्षरों से बना है।
अ उ म् ।

“अ” का अर्थ है उत्पन्न होना,

“उ” का तात्पर्य है उठना, उड़ना अर्थात् विकास,

“म” का मतलब है मौन हो जाना अर्थात् “ब्रह्मलीन” हो जाना।

ॐ सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति और पूरी सृष्टि का द्योतक है।

ॐ का उच्चारण शारीरिक लाभ प्रदान करता है।
जानीए

ॐ कैसे है स्वास्थ्यवर्द्धक और अपनाएं आरोग्य के लिए ॐ के उच्चारण का मार्ग…

1. ॐ और थायराॅयडः-

ॐ का उच्‍चारण करने से गले में कंपन पैदा होती है जो थायरायड ग्रंथि पर सकारात्मक प्रभाव डालता है।

2. ॐ और घबराहटः-

अगर आपको घबराहट या अधीरता होती है तो ॐ के उच्चारण से उत्तम कुछ भी नहीं।

3. ॐ और तनावः-

यह शरीर के विषैले तत्त्वों को दूर करता है, अर्थात तनाव के कारण पैदा होने वाले द्रव्यों पर नियंत्रण करता है।

4. ॐ और खून का प्रवाहः-

यह हृदय और ख़ून के प्रवाह को संतुलित रखता है।

5. ॐ और पाचनः-

ॐ के उच्चारण से पाचन शक्ति तेज़ होती है।

6. ॐ लाए स्फूर्तिः-

इससे शरीर में फिर से युवावस्था वाली स्फूर्ति का संचार होता है।

7. ॐ और थकान:-

थकान से बचाने के लिए इससे उत्तम उपाय कुछ और नहीं।

8. ॐ और नींदः-

नींद न आने की समस्या इससे कुछ ही समय में दूर हो जाती है। रात को सोते समय नींद आने तक मन में इसको करने से निश्चिंत नींद आएगी।

9. ॐ और फेफड़े:-

कुछ विशेष प्राणायाम के साथ इसे करने से फेफड़ों में मज़बूती आती है।

10. ॐ और रीढ़ की हड्डी:-

ॐ के पहले शब्‍द का उच्‍चारण करने से कंपन पैदा होती है। इन कंपन से रीढ़ की हड्डी प्रभावित होती है और इसकी क्षमता बढ़ जाती है।

11. ॐ दूर करे तनावः-

ॐ का उच्चारण करने से पूरा शरीर तनाव-रहित हो जाता है।

*आशा है आप अब कुछ समय जरुर ॐ का उच्चारण करेंगे। साथ ही साथ इसे उन लोगों तक भी जरूर पहुंचायेगे जिनकी आपको फिक्र है
ॐॐॐॐॐॐॐ
जय सनातन धर्म
जय हिंदू संस्कार
जय परशुराम

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