समाधि या महासमाधि क्या है
समाधि क्या है
1 ] ध्यान की उच्च अवस्था को समाधि कहते हैं
हिन्दू जैन बौद्ध तथा योगी आदि सभी धर्मों में इसका महत्व बताया गया है। जब साधक ध्येय वस्तु के ध्यान मे पूरी तरह से डूब जाता है और उसे अपने अस्तित्व का ज्ञान नहीं रहता है तो उसे समाधि कहा जाता है
पतंजलि के योगसूत्र में समाधि को आठवाँ
अन्तिम अवस्था बताया गया है।समाधि में आप पूर्ण चेतना का अहसास करते हैं निश्चित रूप से यह चेतना इतनी तीक्ष्ण होगी कि सामान्य स्थिति से बिलकुल अलग होगी
2 ] समाधि समयातीत है जिसे मोक्ष कहा जाता है इस मोक्ष को ही जैन धर्म में कैवल्य ज्ञान और बौद्ध धर्म में निर्वाण कहा गया है योग में इसे समाधि कहा गया है इसके कई स्तर होते हैं मोक्ष एक ऐसी दशा है जिसे मनोदशा नहीं कह सकते समाधि योग का सबसे अंतिम
पड़ाव है समाधि की प्राप्ति तब होती है, जब व्यक्ति सभी योग साधनाओं को करने के बाद मन को बाहरी वस्तुओं से हटाकर निरंतर ध्यान करते हुए ध्यान में लीन होने लगता है
व्यक्ति जब तक शब्दों के अंधकार में फंसा रहता है
तब तक उसे कुछ दिखाई नहीं देता
3 ] समाधि का अर्थ है उस एक परमात्मा के समान हो जाना उस के बराबर हो जाना समाधि एक ऐसी स्थिति है जिसमें व्यक्ति स्वयं की वास्तविकता जान लेता है अर्थात उसे ईश्वर और स्वयं में कोई अंतर नहीं दिखाई देता। व्यक्ति को यह अहसास होता है कि वह शरीर नहीं चेतन है जैसे राजा जनक ने सत्य को साकार करने के बाद श्री अष्टावक्र गीता में कहा
मैं अद्भुत हूँ मैं स्वयं को नमन करता हूँ परंतु समाधि की वास्तविक स्थिति को पूर्ण रूप से समझने के लिए उसे स्वयं उस अवस्था में जाना होगा
उसे स्वयं समाधि का अहसास करना होगा
4 ] हमारा मन तालाब के ङिालमिलाते पानी की तरह है एक चांद भी ङिालमिलाते और हिलते डुलते हुए पानी में अनेक होकर दिखता है।अगर पानी एकाएक शांत हो जाए तो चांद एक ही दिखाई देता है
‘शांत तालाब का पानी दर्पण बन जाता है ठीक ऐसे ही मन कई बार हिलोरे तब लेता है जब उस पर सोच और विचार की तंरगें यह तय करती हैं कि परमात्मा कैसा है
ऐसा करने से परमात्मा खंडों में बंट जाता है परंतु पूर्ण रूप से मन और चित्त को शांत करने से व्यक्ति अतल गहराइयों में डुबकी लगाता है वह शांत होता है तो उसकी स्थिरता उसे समाधि की ओर ले जाती है
प्रभु का मिलन कराती है जैसा आदि शंकराचार्य बुद्ध नानक महावीर आदि महापुरुषों ने किया समाधि तक पहुंचने के लिए मन और मस्तिष्क को तैयार करना पड़ता है जीवन की अनेकानेक चुनौतियों को समझना पड़ता है तब जाकर कहीं उस परम तत्व की चरण-शरण मिलती है
5 ] व्यक्ति परिस्थितियों एवं समाज से प्रभावित हो जाता है, इसी कारण समाधि की अवस्था की अनुभूति नहीं कर पाता है। यदि वह इस अनुभवातीत स्थिति की प्राप्ति कर ले तो उस के बाद उसे केवल स्वयं को प्रभावित ना होने की अवस्था में रखना है
तब समाधि की स्थिति बने रहेगी इसके अतिरिक्त अतुलनीय संवेदना एवं उत्तेजना शरीर से उभरेगी विशेष रूप से आज्ञा चक्र और सहस्रार में उत्तेजना इतनी गहरी होगी कि आपको बाहरी कुछ भी दिलचस्प नहीं लगेगा बाहरी दुनिया आपके आंतरिक स्थिति से अनभिज्ञ रह सकतीं है परंतु उत्तेजना और अद्वितीय आनंद आप के भीतर बहता रहेगा
जागृत अवस्था में आप लगातार ऐसी उत्तेजना महसूस करेंगे यही समाधि की अवस्था है और जो भी प्रयत्न करने के लिए तैयार है वह भी अनुभव कर सकता है
6 ] समाधि का अर्थ है पूर्णता को प्राप्त करना
प्रभु से मिलना, सत्य से जुड़ना
सोचने मात्र से सत्य उपलब्ध नहीं हो सकता है। सोचना लक्ष्य प्राप्ति में सहयोगी हो सकता है उपयोगी हो सकता है लेकिन सिर्फ सोच-सोचकर व्यक्ति लक्ष्य हासिल नहीं कर सकता जितने भी दुनिया में सिद्ध साधक या विचारवान मनुष्य हुए हैं सबने सोचने के साथ साथ तत्वज्ञान को पाने के लिए कठोर साधना की तप किया जानने और सोचने में अंतर है समुद्र का पानी खारा है यह जानने के लिए उसे पीना पड़ेगापड़ेगा
सोचने मात्र से हाथ में मात्र विचारों की राख मिलती है
जिस प्रकार जल में लहर गठित हो सकता है परंतु बर्फ में नहीं उसी प्रकार समाधि में आप बिना चंचलता के स्थायी रूप से परमानंद का अनुभव करते हैं क्रोध वासना घृणा और अन्य नकारात्मक भावनाएं आप के अंदर उभर ही नहीं सकतीं
7 ] प्रेम भी मात्र सोचने से नहीं मिलता है, प्रेम में डूबना पड़ता है प्रेम के बारे में जो मात्र सोचते हैं, उनका प्रेम भी असफल होता है। मीरा ने कृष्ण प्रेम में गोता लगाया
मात्र सोचने वाले व्यक्ति पर कथा-प्रवचन का प्रभाव भी क्षणिक ही रहता है
क्या मात्र प्रवचन सुनकर आत्म सम्मोहित हो जाने से मोक्ष की प्राप्ति संभव है
कुछ ज्ञान एकत्र करने मात्र से समूचे अस्तित्व को जानना बड़ा मुश्किल कार्य है जो प्रकृति के अस्तित्व के जितना करीब है वह मौन है वह शब्दों और विचारों के जाल से बाहर निकलकर सत्य की तलाश में सदैव सजग व तत्पर रहता है। जो साधक शांत और मौन रहते हैं
उनका संबंध शब्दों से कम और
नि:शब्द शून्य से ज्यादा होता है
8 ] जब व्यक्ति प्राणायाम, प्रत्याहार को साधते हुए धारणा व ध्यान का अभ्यास पूर्ण कर लेता है तब वह समाधि के योग्य बन जाता है।व्यक्ति का मन पूर्ण स्थिर रहकर आंतरिक आत्मा में लीन हो जाता है तब समाधि घटित होती है
9 ] समाधि प्राप्त व्यक्ति का व्यवहार सामान्य व्यक्ति से अलग हो जाता है वह सभी में ईश्वर को ही देखता है और उसकी दृष्टि में ईश्वर ही सत्य होता है
समाधि में लीन होने वाले योगी को अनेक प्रकार के दिव्य ज्योति और आलौकिक शक्ति का ज्ञान प्राप्त
स्वत: ही होता है
10 ] मोक्ष मार्ग पर कदम बढ़ाते ही बहुत-सी चमत्कारिक शक्तियाँ प्राप्त होती हैं, जिन्हें सिद्धियाँ कहते हैं सर्वाग्रगण्यत किंतु इनके प्रलोभन में उलझने वाला
अंतत: पछताता है केवल ज्ञान कर सकते कि अट्ठारह सिद्धियाँ होती हैं
1) अणिमा 2) लघिमा 3) गरिमा 4) प्राप्ति 5) प्राकाम्य
6) महिमा 7) ईशित्व 8) वशित्व 9) सर्वकामवा सादिता 10) सर्वज्ञ 11) दूरश्रवण 12) परकाया प्रवेश 13) वाक्य सिद्धि 14) कल्पवृक्ष 15) सृष्टि शक्ति
16) सहांरशक्ति 17)अमरत्व और 18) सर्वाग्रगण्यता
ॐ नमः शिवाय🔱📿💓🙏
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