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पारलौकिक जीवन की तलाश का सिलसिला
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खगोल वैज्ञानिकों के एक नये अनुमान के मुताबिक हमारी मिल्की-वे आकाशगंगा में पृथ्वी जैसे ग्रहों की संख्या 6 अरब है। उनका कहना है कि हमारी आकाश गंगा में ‘जी टाइप’ के हर पांच तारों के साथ एक पृथ्वी जैसा चट्टानी ग्रह मौजूद है। खगोल विज्ञान में जी टाइप ऐसे तारे को कहा जाता है, जिसके मध्य भाग में हाइड्रोजन अणु आपस में जुड़कर हीलियम का निर्माण करते हैं।
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हमारे ब्रह्मांड में जी टाइप तारों की भरमार है, जिनमें हमारा सूरज भी शामिल है। हमारी आकाशगंगा में 400 अरब तारों की मौजूदगी का अनुमान लगाया गया है। यूनिवर्सिटी ऑफ ब्रिटिश कोलंबिया के खगोल वैज्ञानिक और इस अध्ययन के सह-लेखक जैमी मैथ्यूज ने कहा कि हमारी आकाशगंगा में 7 प्रतिशत जी टाइप तारे हैं। इसका अर्थ यह हुआ कि 6 अरब तारों के पास पृथ्वी जैसे ग्रह हो सकते हैं।
इस अध्ययन की प्रमुख लेखक मिशैली कुनिमोटो ने कहा कि मेरी गणनाओं के मुताबिक प्रत्येक जी टाइप तारे के इर्दगिर्द पृथ्वी जैसे ग्रहों की ऊपरी सीमा 0.18 प्रतिशत है। उन्होंने कहा कि हम विभिन्न तारों के इर्दगिर्द विभिन्न ग्रहों की मौजूदगी का अनुमान लगाकर ग्रहों के निर्माण पर नई रोशनी डाल सकते हैं और बाहरी ग्रह खोजने के लिए भावी मिशनों की तैयारी कर सकते हैं।
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इस अध्ययन से पहले सूरज जैसे प्रत्येक तारे के साथ 0.02 प्रतिशत आवास योग्य ग्रहों की मौजूदगी का अनुमान लगाया गया था। कुनिमोटो की रिसर्च में पृथ्वी जैसे ग्रहों पर मुख्य जोर दिया गया है। उन्होंने अपनी गणना में उन ग्रहों को भी शामिल किया जो आकार में छोटे और अपने तारे से अधिक दूर होने के कारण पर्यवेक्षित नहीं हो पाए होंगे। ध्यान रहे कि गत मार्च में कुनिमोटो ने केप्लर मिशन द्वारा पर्यवेक्षित दो लाख तारों के डेटा का विश्लेषण करने के बाद 17 बाहरी ग्रह खोजे थे। इनमें एक ग्रह का आकार पृथ्वी जैसा है।
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अभी तक 4000 से अधिक बाहरी ग्रहों की पहचान हो चुकी है। इनमें कम से कम 50 ग्रहों के आवास योग्य होने का अनुमान लगाया गया है। आवास योग्यता के हिसाब से इनका आकार सही है और वे अपने तारों की ऐसी कक्षाओं में मौजूद हैं जहां की परिस्थितियां सतही जल के लिए अनुकूल हैं। सैद्धांतिक दृष्टि से ऐसे ग्रह जीवन योग्य हो सकते हैं। क्या पृथ्वी से बाहर भी जीवन है? यह एक शाश्वत प्रश्न है, जिसका उत्तर खोजना आसान नहीं है। खगोल वैज्ञानिक लंबे समय से इस विषय पर माथा-पच्ची कर रहे हैं।
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पारलौकिक प्राणियों को लेकर अनेक साइंस फिक्शन फिल्में बनाई जा चुकी हैं और अनगिनत कथाएं लिखी जा चुकी हैं। एलियंस की उपस्थिति का अभी तक कोई संकेत नहीं मिलने के बावजूद इस विषय में हमारी दिलचस्पी कभी खत्म नहीं होती। कुछ दिन पहले एस्ट्रोफिजिकल जर्नल में प्रकाशित एक अन्य अध्ययन में वैज्ञानिकों ने हमारी आकाशगंगा में 36 बुद्धिमान और संचार-सक्षम सभ्यताओं की मौजूदगी का अनुमान लगाया है। लेकिन हजारों प्रकाश वर्ष दूर होने के कारण हम कभी भी यह पता नहीं लगा पाएंगे कि क्या सचमुच ऐसी सभ्यताएं मौजूद हैं या उनकी मौजूदगी सिर्फ एक कयास है।
बुद्धिमान पारलौकिक सभ्यताओं के बारे में पिछले अनुमान ड्रेक इक्वेशन पर आधारित थे।
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ध्यान रहे कि प्रसिद्ध खगोल वैज्ञानिक और खगोल भौतिकविद फ्रैंक ड्रेक ने 1961 में यह इक्वेशन लिखी थी। अब नॉटिंगम यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने इस इक्वेशन से अलग हटकर अपने तरीके से बुद्धिमान सभ्यताओं की गणना की है। इस अध्ययन के सह-लेखक क्रिस्टोफर कोंसेलिस ने कहा कि ड्रेक इक्वेशन और हमारे तरीके में मुख्य फर्क यह है कि हमने जीवन की उत्पति के बारे में बहुत ही सरल अनुमान लगाया है। जीवन की उत्पत्ति वैज्ञानिक ढंग से होती है। यदि सही परिस्थितियां मौजूद हैं तो जीवन उत्पन्न होगा। यदि माना जाए कि पृथ्वी की भांति दूसरे ग्रहों पर बुद्धिमान जीवन को पनपने में पांच अरब वर्ष लगे होंगे तो हमारी आकाशगंगा में कुछ दर्जन सक्रिय सभ्यताएं अवश्य होनी चाहिए।
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वैज्ञानिकों ने बुद्धिमान सभ्यताओं का अनुमान लगाने के लिए एक खगोल-जैव वैज्ञानिक सिद्धांत विकसित किया है। इसे ‘एस्ट्रोबायोलॉजिकल कोपरनिकन प्रिंसिपल’ भी कहा जाता है। इस सिद्धांत में हमारी आकाशगंगा में जीवन की कमजोर और मजबूत सीमाएं निर्धारित की गई हैं। इनकी गणनाओं में तारे के निर्माण का इतिहास, तारों की उम्र और तारों के धातु-अंश के अलावा ऐसे तारों का अनुमान लगाया गया है जो पृथ्वी जैसे आवास योग्य ग्रहों की मेजबानी कर रहे हैं।
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खगोल वैज्ञानिकों के एक अन्य दल ने कुछ समय पहले पता लगाया था कि पृथ्वी से बड़े ग्रहों पर भी जीवन संभव है। कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी की एक टीम ने एक ऐसे बाहरी ग्रह का पता लगाया जो आकार में पृथ्वी से दुगुना होने के बावजूद जीवन योग्य हो सकता है। इस खोज के बाद अब पारलौकिक जीवन की तलाश में ऐसे ग्रहों को भी शामिल किया जाएगा जो पृथ्वी से आकार में बड़े हैं लेकिन नेपच्यून से छोटे हैं। यूनिवर्सिटी की एक टीम ने के2-18बी नामक बाहरी ग्रह के द्रव्यमान, अर्द्ध व्यास और वायुमंडलीय डेटा का इस्तेमाल करके यह निर्धारित किया कि इस ग्रह के हाइड्रोजन युक्त वायुमंडल के नीचे आवास योग्य परिस्थितियों में तरल जल की मौजूदगी मुमकिन है।
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इस नई खोज के नतीजे एस्ट्रोफिजिकल जर्नल लैटर्स में प्रकाशित हुए हैं। के2-18बी ग्रह पृथ्वी से 124 प्रकाश वर्ष दूर है। उसका अर्द्ध व्यास पृथ्वी के अर्द्ध व्यास से 2.6 गुणा अधिक और द्रव्यमान 8.6 गुणा अधिक है। यह ग्रह अपने मेजबान तारे की परिक्रमा उसके आवास योग्य क्षेत्र में करता है जहां तापमान तरल जल की मौजूदगी के लिए अनुकूल है। पिछले साल यह ग्रह उस समय सुर्खियों में आया जब खगोल वैज्ञानिकों के दो अलग-अलग दलों ने इस ग्रह के हाइड्रोजन से भरपूर वायुमंडल में जल वाष्प की मौजूदगी का पता लगाया। लेकिन उसके वायुमंडल और उसके नीचे की परिस्थितियों की विस्तृत जानकारी नहीं मिल पाई थी। इस रिसर्च का नेतृत्व कैम्ब्रिज के इंस्टीट्यूट ऑफ एस्ट्रोनॉमी के डॉ. निक्कू मधुसूदन ने किया है। डॉ. मधुसूदन ने बताया कि अनेक बाहरी ग्रहों पर जल वाष्प की मौजूदगी का पता लगा है।
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