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अवचेतन मन के रहस्य

दोस्तो परामनोविज्ञान के वैज्ञानिकों ने मानव मस्तिष्क में छुपे हुए रहस्यमयी शक्तियों पर शोध करते हुये ये पता लगाया कि मनुष्य के अवचेतन मन मे अलौकिक, अविश्वसनीय और अकल्पनीय शक्तियां विद्यमान है। यदि अवचेतन मन की उन शक्तियों को योग आदि क्रियाओं के द्वारा जागृत कर लिया जाय तो कुछ ही समय मे व्यक्ति के सामने अनेको चमत्कार खुद ब खुद होने लगते हैं

जैसे- किसी भी व्यक्ति के जीवन के गुप्त से गुप्त रहस्यों का पता लगना, उसके मन मे छुपे हुऐ सारे गुप्त रहस्यों जान लेना, किसी भी व्यक्ति से नजर मिलते ही उसके भूत, भविष्य तथा वर्तमान की सम्पूर्ण जानकारी प्राप्त कर लेना या उसके साथ घटने वाली घटनाओं को स्पष्ट रूप से देख लेना आदि क्रियायें साधक के जीवन में आकस्मीक होने लगती हैं।

जमीन के छुपे हुऐ गुप्त खजानों का पता लगाना एवं किसी भी आकाशीय घटनाओ की जानकारी प्राप्त करना एवं आकाश मे विचरण करने वाली रहस्यमयी शक्तियो का प्रत्यक्ष दर्शन करना अथवा उनसे बाते करना किसी भी प्राकृतिक आपदाओं पूर्व पता लगना

ऐसी अनेको चमत्कारिक घटनाओं को अतिंद्रिय शक्ति का चमत्कार कहा जाता है। जब मनोवैज्ञानिकों ने मनुष्य के मस्तिष्क में उठ रही इन तरंगों पर शोध किया तो वह इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि मन के अन्दर अवचेतन मन को यदि क्रियाशील बनाया जाय तो बिना किसी आधुनिक उपकरणों तथा बिना किसी संचार माध्यमों के भी हम मन की तरंगों को पढ़ कर किसी भी व्यक्ति के मन के रहस्यों को आसानी से जान सकते है,

तथा एक व्यक्ति दुसरे व्यक्ति के मन पर आसानी से अपना प्रभाव डाल सकते है और उसे अपने इच्छा अनुसार कार्य करने को बाध्य कर सकते है। इसी आधार पर मनो वैज्ञानिकों ने अतिंद्रिय शक्तियों से सम्पन्न व्यक्तियों पर परिक्षण कर पता लगाया कि जैसे ही मनुष्य के मस्तिष्क में विचार उत्पन्न होते हैं ये सारे विचार आकाश मंडल में अल्फा तरंगों के रूप मे फैल जाते है

जिसे कोई भी व्यक्ति अपने अंर्तमन को जाग्रत कर उन अल्फा तरंगो को पकड़ कर किसी भी व्यक्ति के मन मे उठ रहे विचारों को बहुत आसानी से पढ़ सकते है अथवा हजारों किलोमिटर दुर घट रही घटनाओं को स्पस्ट रूप से देख सकते है तथा भुत भविष्य तथा वर्तमान काल मे भी प्रवेश कर भुतकाल की सारी जानकारी तथा भविष्य में घटने वाली सभी घटनाओं को स्पष्ट रूप से देख सकते है।

दोस्तो प्राचीन योग शास्त्रों के अनुसार ध्यान साधना के द्वारा अतिंद्रय शक्तियों को जगाकर मानसिक शक्तियों के माध्यम से दुर दृष्टि, दुरबोध, विचार संप्रेषण एवं भुत भविष्य तथा वर्तमान दर्शन इत्यादि कार्य संपन्न किये जा सकते हैं।

दोस्तो ध्यान का सीधा-सीधा संबंध हमारे मन से होता है। औऱ प्रत्येक मनुष्य के अन्दर दो प्रकार के मन होते है

एक चेतन मन तथा दुसरा अवचेतन मन । अवचेतन मन की अपेक्षा चेतन मन का स्वभाव अत्यंत चंचल तथा कुटिल होता है
जिसमे काम क्रोध, लोभ, मोह अहंकार, , राग, द्वेष, ईष्या छल, कपट आदि विकार निरंतर उत्पन्न होते रहते हैं जो मुख्य रूप से मनुष्य के पतन का कारण बनते है। चेतन मन हमेशा व्यक्ति को बुरे कर्मों के लिए प्रेरित करता है।

दोस्तो अंर्तमन का स्वभाव है शांत निर्मल और पवित्र होता हैं जो मनुष्य को हमेशा अच्छे कार्यो के लिए प्रेरित करता है इसी मन के अन्दर छुपी होती है मनुष्य की अलौकिक दिव्य चमत्कारिक शक्तियाँ। चेतन मन जब सुप्तावस्था में होता है तब अवचेतन मन सक्रिय रूप से काम करने लगता है तो इसी अवस्था को ध्यान कहा जाता है।

दोस्तो शस्त्रों मे मन को वानर की संज्ञा दी है क्योंकि मन कभी वानर की तरह एक जगह स्थिर नही रहता ये शरीर की समस्त इद्रियों को अपने नियंत्रण में रखने की कोशिस करता है। मन हर समय नई -नई इच्छओं को उत्पन्न करता है। एक इच्छा पूरी नही हुई कि दुसरी इच्छा जागृत हो जाती है। और मनुष्य उन्ही इच्छाओं की पुर्ति करता रहता है।

जिसके लिए मनुष्य को काम, क्रोध, लोभ, मोह, भय, पीड़ा अनेको मुसीबतों से गुजरना पड़ता है। इसके बावजुद भी जब मनुष्य की इच्छाओं की पूर्ति नही हो पाती तब मन में अनेको क्लेश तथा भय उत्पन्न होने लगते है। यदि मन को किसी तरह अपने बस मे कर लिया जाय तो मनुष्य की आत्मोन्ती होने समय नही लगता है तथा समस्त प्रकार के विषय विकारों से व्यक्ति उपर उठने लगता है

और अंर्तमन में छुपे हुये अनेको उर्जा के स्रोत स्वयं खुलने लगते हैं औऱ धीरे धीरे मनुष्य अलौकिक सिद्धियों का स्वामी बनने लगता है। मन को नियंत्रित करना थोड़ा कठिन है परंतु असम्भव कुछ भी नही हैं विशेष यौगिक क्रियाओं के द्वारा मन पर पूर्ण रूप से नियंत्रण प्राप्त किया जा सकता है। मन को बस मे करने ध्यान सबसे उत्तम तरीका माना गया हैं

कुछ विशेष ध्यान साधना के माध्यम से व्यक्ति कुछ ही महिनो के प्रयास से साधक धीरे धीरे अपने मन पर पूरी तरह नियंत्रण करने मे समर्थ हो जाता है क्योंकि शास्त्रों में ध्यान को मन की चाबी कहा गया है।

ध्यान से मन के सारे विकार धीरे-धीरे समाप्त होने लगते हैं, तथा अंर्तमन जागृत तथा चैतन्य होने लगता है। मन की एकाग्रता बढ़ने लगती है। औऱ मनुष्य के अन्दर की सभी सुप्त शक्तियाँ जागृत होने से शरीर पूर्णतः स्वस्थ पवित्र निर्मल तथा निरोग हो जाता है।

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