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आयुर्वेदिक उपचार
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खाँसी

पानी में नमक, हल्दी, लौंग और तुलसी पत्ते उबालें। इस पानी को छानकर रात को सोते समय गुनगुना पिएँ। इसके लगातार सेवन से 7 दिनों के अंदर खाँसी पूरी तरह से समाप्त हो जाती है ।

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खांसी होने पर खांसी को रोकने के लिए मूंगफली,चटपटी व खट्टी चीजें, ठंडा पानी, दही, अचार, खट्टे फल, केला, कोल्ड ड्रिंक, इमली, तली-भुनी चीजों को खाने से बचना चाहिए ।
[: कैसी भी खांसी और कफ हो दूर करेंगे यह रामबाण घरेलु उपचार
कारण :
खांसी(cough) होने के अनेक कारण हैं- खांसी वात, पित्त और कफ बिगड़ने के कारण होती है।

• घी-तेल से बने खाद्य पदार्थों के सेवन के तुरन्त बाद पानी पी लेने से खांसी की उत्पत्ति होती है। छोटे बच्चे स्कूल के आस-पास मिलने वाले चूरन, चाट-चटनी व खट्टी-मीठी दूषित चीजें खाते हैं जिससे खांसी रोग हो जाता है।

• मूंगफली, अखरोट, बादाम, चिलगोजे व पिस्ता आदि खाने के तुरन्त बाद पानी पीने से खांसी होती है। ठंड़े मौसम में ठंड़ी वायु के प्रकोप व ठंड़ी वस्तुओं के सेवन से खांसी उत्पन्न होती है। क्षय रोग व सांस के रोग (अस्थमा) में भी खांसी उत्पन्न होती है।

• सर्दी के मौसम में कोल्ड ड्रिंक पीने से खांसी होती है। ठंड़े वातावरण में अधिक घूमने-फिरने, फर्श पर नंगे पांव चलने, बारिश में भीग जाने, गीले कपड़े पहनने आदि कारणों से सर्दी-जुकाम के साथ खांसी उत्पन्न होती है।
• क्षय रोग में रोगी को देर तक खांसने के बाद थोड़ा सा बलगम निकलने पर आराम मिलता है। आंत्रिक ज्वर (टायफाइड), खसरा, इंफ्लुएंजा, निमोनिया, ब्रोंकाइटिस (श्वासनली की सूजन), फुफ्फुसावरण शोथ (प्लूरिसी) आदि रोगों में भी खांसी उत्पन्न होती है।
• ‎भोजन और परहेज :
खांसी(khansi) में पसीना आना अच्छा होता है। नियम से एक ही बार भोजन करना, जौ की रोटी, गेहूं की रोटी, शालि चावल, पुराने चावल का भात, मूंग और कुल्थी की दाल, बिना छिल्के की उड़द की दाल, परवल, तरोई, टिण्डा बैंगन, सहजना, बथुआ, नरम मूली, केला, खरबूजा, गाय या बकरी का दूध, प्याज, लहसुन, बिजौरा, पुराना घी, मलाई, कैथ की चटनी, शहद, धान की खील, कालानमक, सफेद जीरा, कालीमिर्च, अदरक, छोटी इलायची, गर्म करके खूब ठंड़ा किया हुआ साफ पानी, आदि खांसी के रोगियों के लिए लाभकारी है।
खांसी में नस्य , आग के सामने रहना, धुएं में रहना, धूप में चलना, मैथुन करना, दस्त रोग, कब्ज, सीने में जलन पैदा करने वाली वस्तुओं का सेवन करना, बाजरा, चना आदि रूखे अन्न खाना, विरुद्ध भोजन करना, मछली खाना, मल मूत्र आदि के वेग को रोकना, रात को जागना, व्यायाम करना, अधिक परिश्रम, फल या घी खाकर पानी पीना तथा अरबी, आलू, लालमिर्च, कन्द, सरसो, पोई, टमाटर, मूली, गाजर, पालक, शलजम, लौकी, गोभी का साग आदि का सेवन करना हानिकारक होता है।
सावधानी
खांसी के रोगी को प्रतिदिन भोजन करने के एक घंटे बाद पानी पीने की आदत डालनी चाहिए। इससे खांसी से बचाव के साथ पाचनशक्ति मजबूत होती है। खांसी का वेग नहीं रोकना चाहिए क्योंकि इससे विभिन्न रोग हो सकते हैं- दमा का रोग, हृदय रोग, हिचकी, अरुचि, नेत्र रोग आदि
विभिन्न औषधियों से उपचार : cough khansi ke gharelu upay
१-हल्दी :
• खांसी से पीड़ित रोगी को गले व सीने में घबराहट हो तो गर्म पानी में हल्दी और नमक मिलाकर पीना चाहिए। हल्दी का छोटा सा टुकड़ा मुंह में डालकर चूसते रहने से खांसी में आराम मिलता है।
• हल्दी को कूटकर तवे पर भून लें और इसमें से आधा चम्मच हल्दी गर्म दूध में मिलाकर सेवन करें। इससे गले में जमा कफ निकल जाता है और खांसी में आराम मिलता है।
• हल्दी के 2 ग्राम चूर्ण में थोड़ा सा सेंधानमक मिलाकर खाने और ऊपर से थोड़ा सा पानी पीने से खांसी का रोग दूर होता है।
• खांसी के साथ छाती में घबराहट हो तो हल्दी और नमक को गर्म पानी में घोलकर पीना चाहिए। खांसी अगर पुरानी हो तो 4 चम्मच हल्दी के चूर्ण में आधा चम्मच शहद मिलाकर खाना चाहिए
२- बांस : 6-6 मिलीलीटर बांस का रस, अदरक का रस और शहद को एक साथ मिलाकर कुछ समय तक सेवन करने से खांसी, दमा आदि रोग ठीक हो जाते हैं।
३- शहद : पुराना शहद ही सर्वोत्तम औषधि है कम से कम एक वर्ष पुराना होना चाहिए
• 5 ग्राम शहद में लहुसन का रस 2-3 बूंदे मिलाकर बच्चे को चटाने से खांसी दूर होती है।
• थोड़ी सी फिटकरी को तवे पर भूनकर एक चुटकी फिटकरी को शहद के साथ दिन में 3 बार चाटने से खांसी में लाभ मिलता है।
• एक चम्मच शहद में आंवले का चूर्ण मिलाकर चाटने से खांसी दूर होती है।
• एक नींबू को पानी में उबालकर गिलास में इसका रस निचोड़ लें और इसमें 28 मिलीलीटर ग्लिसरीन व 84 मिलीलीटर शहद मिलाकर 1-1 चम्मच दिन में 4 बार पीएं। इससे खांसी व दमा में आराम मिलता है।
• 12 ग्राम शहद को दिन में 3 बार चाटने से कफ निकलकर खांसी ठीक होती है।
• चुटकी भर लौंग को पीसकर शहद के साथ दिन में 3 से 4 बार चाटने से आराम मिलता है।
• शहद और अडूसा के पत्तों का रस एक-एक चम्मच और आधा चम्मच अदरक का रस मिलाकर पीने से खांसी नष्ट होती है।
• ‎एक चम्मच अदरक का रस हल्का गर्म कर एक चम्मच शहद मिलाकर दिन में 3 बार सेवन करने से 2 से 3 दिन
४- हरीतकी : हरीतकी चूर्ण सुबह-शाम कालानमक के साथ खाने से कफ खत्म होता है और खांसी में आराम मिलता है।
५-कपूर:
• 1 से 4 ग्राम कपूर कचरी को मुंह में रखकर चूसने से खांसी ठीक होती है।
• बच्चों को खांसी में कपूर को सरसो तेल में मिलाकर छाती और पीठ पर मालिश करने से खांसी का असर दूर होता है
६- सौंफ :
• 2 चम्मच सौंफ और 2 चम्मच अजवायन को 500 मिलीलीटर पानी में उबालकर इसमें 2 चम्मच शहद मिलाकर हर घंटे में 3 चम्मच रोगी को पिलाने से खांसी में लाभ मिलता है।
• सौंफ का 10 मिलीलीटर रस और शहद मिलाकर सेवन करने से खांसी समाप्त होती है।
• सूखी खांसी में सौंफ मुंह में रखकर चबाते रहने से खांसी दूर होती है।
७- केसर : बच्चों को सर्दी खांसी के रोग में लगभग आधा ग्राम केसर गर्म दूध में डालकर सुबह-शाम पिलाएं और केसर को पीसकर मस्तक और सीने पर लेप करने से खांसी के रोग में आराम मिलता है।
८- कटेरी :
• ज्यादा खांसने पर भी अगर कफ (बलगम) न निकल रहा हो तो छोटी कटेरी की जड़ को छाया में सुखाकर बारीक पीसकर चूर्ण बना लें। यह 1 ग्राम चूर्ण में 1 ग्राम पीपल का चूर्ण मिलाकर थोड़ा सा शहद मिलाकर दिन में 2-3 बार चाटने से कफ आसानी से निकल जाता है और खांसी में शान्त होता है।
• छोटी कटेरी के फूलों को 2 ग्राम केसर के साथ पीसकर शहद मिलाकर सेवन करने से खांसी ठीक होती है।
• लगभग 1 से 2 ग्राम बड़ी कटेरी के जड़ का चूर्ण सुबह-शाम शहद के साथ सेवन करने से कफ एवं खांसी में बहुत अधिक लाभ मिलता है।
• लगभग 10 ग्राम कटेरी, 10 ग्राम अडूसा और 2 पीपल लेकर काढ़ा बनाकर शहद के साथ सेवन करने से खांसी बन्द हो जाती है।
९- जायफल : जायफल, पुष्कर मूल, कालीमिर्च एवं पीपल बराबर मात्रा में लेकर बारीक चूर्ण बनाकर 3-3 ग्राम चूर्ण सुबह-शाम शहद के साथ सेवन करने से खांसी दूर होती है।
१०- सोंठ :
• सोंठ, कालीमिर्च, पीपल, कालानमक, मैनसिल, वायबिडंग, कूड़ा और भूनी हींग को एक साथ मिलाकर चूर्ण बना लें। यह चूर्ण प्रतिदिन खाने से खांसी, दमा व हिचकी रोग दूर होता है।
• सोंठ, कालीमिर्च और छोटी पीपल बराबर मात्रा में लेकर चूर्ण बना लें। इस 1 ग्राम चूर्ण को शहद के साथ दिन में 2-3 बार चाटने से हर तरह की खांसी दूर होती है और बुखार भी शान्त होता है।
• यदि कोई बच्चा खांसी से परेशान हो तो उसे सोंठ, कालीमिर्च, कालानमक तथा गुड़ का काढ़ा बनाकर पिलाना चाहिए। इससे बच्चे को खांसी में जल्द आराम मिलता है।

• सोंठ, छोटी हरड़ और नागरमोथा का चूर्ण समान मात्रा में लेकर इसमें दुगना गुड़ मिलाकर चने के बराबर गोलियां बनाकर मुंह में रखकर चूसने से खांसी और दमा में आराम मिलता है।
११- अडूसा (वासा) :
• वासा के ताजे पत्ते के रस, शहद के साथ चाटने से पुरानी खांसी, दमा और क्षय रोग (टी.बी.) ठीक होता है।
• अडूसा के पत्तों का रस एक चम्मच, एक चम्मच अदरक का रस और एक चम्मच शहद मिलाकर पीने से सभी प्रकार की खांसी से आराम मिलता है।
• अडूसे के पत्तों के 20-30 मिलीलीटर काढ़ा में छोटी पीपल का एक ग्राम चूर्ण डालकर पीने से पुरानी खांसी, दमा और क्षय रोग में लाभ मिलता है।
• अडूसे के पत्तों के 5 से 15 मिलीलीटर रस में अदरक का रस, सेंधानमक और शहद मिलाकर सुबह-शाम रोगी को खिलाने से कफयुक्त बुखार और खांसी ठीक होती है।
• अडूसा और तुलसी के पत्तों का रस बराबर मात्रा में मिलाकर पीने से खांसी मिटती है।
• अडूसा और कालीमिर्च का काढ़ा बनाकर ठंड़ा करके पीने से सूखी खांसी नष्ट होती है।
• अडूसा के रस में मिश्री या शहद मिलाकर चाटने से सूखी खांसी ठीक होती है।
• अडूसा के पेड़ की पंचांग को छाया में सुखाकर चूर्ण बनाकर प्रतिदिन 10 ग्राम सेवन करने से खांसी और कफ विकार दूर होता है।
• अडूसा के पत्ते और पोहकर की जड़ का काढ़ा बनाकर सेवन करने से दमा व खांसी में लाभ मिलता है।
• अडूसा की सूखी छाल को चिलम में भरकर पीने से दमा व खांसी दूर होती है।
• अडूसा, तुलसी के पत्ते और मुनक्का बराबर मात्रा में लेकर काढ़ा बनाकर सुबह-शाम पीने से खांसी दूर होती है।
‎12 अलसी मिश्री या समान मात्रा ( 10 ग्राम) 1 गिलास पानी मे काढ़ा बनाये व दिन में 2 बार सेवन करें।

  1. पंचगव्य धृत का उपयोग नस्य हेतु करे
  2. दालचीनी सौठ मुलेठी के चूर्ण समान मात्रा में शहद या गुड़ के साथ करें
  3. अजवायन की भाप व अजवायन का नस्य ले ( हल्का गर्म कर रुमाल में बांध कर सूंघे)
  4. ‎पानी गुनगुना ही पिये
  5. ‎चाय पीनी हो तो तुलसी अजवायन लौंग दालचीनी सौठ कम से कम किसी एक का उपयोग जरूर करें
  6. ‎पुराना गुड़ , सरसो तेल व हल्दी मिलाकर दिन में 3 से 4 बार सेवन करें
  7. ‎3 ग्राम देशी गाय के घी में 6 ग्राम शहद मिलाकर सेवन करने से
  8. ‎गुद्दा मार्ग पर सरसों तेल चुपड़ने से सूखी खाँसी नष्ट होती है
  9. ‎पान के रस में शहद मिलाकर सेवन करने से कफ, खाँसी नष्ट हो जाती है
  10. ‎गाय के गर्म दूध में कालीमिर्च व मिश्री मिलाकर पीने से
  11. ‎अदरक के रस में गाय का घी मिलाकर गर्म कर इसे थोड़ा थोड़ा दूध के साथ पीलाने से बच्चो की कुकर खाँसी नष्ट होती है
  12. 125 ml गाय के दूध में 125ml पानी व आधा चम्मच गाय का घी मिलाकर गर्म करे जब पानी जल जाए तो इसे थोड़ा थोड़ा दूध के साथ पीलाने से बच्चो की कुकर खाँसी नष्ट होती है
  13. ‎पुराना गुड़ सौठ व कालीमिर्च मिलाकर सेवन करने से खाँसी जुकाम नष्ट होता है
  14. ‎कालीमिर्च व बताशा उबालकर गर्मागर्म पीने से पसीना आने के बाद जुकाम,खाँसी व शरीर की जकड़न नष्ट होती है।

कौन कहता है होम्योपैथी में खांसी का सटीक इलाज नहीं है।
डॉ वेद प्रकाश मानते हैं कि खांसी का एलोपैथी में खास अच्छा इलाज नहीं हैं. चिकित्सक आम तौर पर मीठे शरबत रूप में कई दवाओं का मिक्चर मरीज को देते हैं, जिसमें एल्कोहल काफी मात्रा में होती है, जिसकी वजह से गले का तनाव कम होता है और मरीज को कुछ राहत महसूस होती है- और काफी बार खांसी खुद ही ठीक हो जाती है. कई बार खांसी अपना विकराल रूप धारण करती है और टीबी, दमा, फेंफड़े कमजोर होने में तबदील हो जाती है. लेकिन होम्योपैथी में ऐसा नहीं है.
होम्योपैथी में खांसी का सटीक इलाज है, चाहे खांसी कोई भी हो, कैसी भी और किसी भी कारण से हो. बस आपको लक्षण देखने हैं और दवाई दे देनी या खा लेनी है. कुछ दवाओं का विवरण नीचे दिया जा रहा है.
एंटीम टार्ट: शरीर में कफ बनने की प्रवृत्ति , बलगम गले में फंसा लगना, छाती में कफ जमा महसूस होना, छाती में घड़-घड़ की आवाज आना, रात को खांसी बढ़ना, बलगम निकालने की कोषिष में काफी बलगम निकलना, खांसी के साथ उल्टी हो जाना इसके लक्षण हैं.
कार्बोवेज: गरमी से खांसी कम होना, गले में सुरसुरी होने की वजह से लगातार खांसने की इच्छा होना,खांसना. अचानक तेज खांसी उठना. कोई ठण्डी वस्तु खाने, पीने से, ठण्डी हवा से , षाम को खांसी बढ़ना. गले में खराष महसूस होना. बारिश, सर्दी के मौसम में तकलीफ बढ़ना.
हीपर सल्फ: इसकी खांसी बदलती रहती है, सूखी हो सकती है, और बलगम वाली भी. हल्की सी ठण्ड लगते ही खांसी हो जाती है. यही इस दवा का प्रमुख लक्षण भी है. ढीली खांसी व काली खांसी में भी यह विशेष फायदा करती है. जिस समय ठण्डा मौसम होता है, उस समय अगर खांसी बढ़ती हो, तब भी यह फायदा पहुंचाती है. जैसे सुबह, रात को खांसी बढ़ना. लेकिन ध्यान रखें कि यदि स्पंजिया दे रहे हों, हीपर सल्फ नहीं देनी चाहिए, यदि हीपरसल्फ दे रहे हों, स्पंजिया नहीं देनी चाहिए.
फेरम फाॅस: रक्त संचय में अपनी क्रिया करती है. कोई तकलीफ एकाएक बढ़ जाना, किसी तकलीफ की प्रथम अवस्था में इसका अच्छा इस्तेमाल किया जाता है. यह दवा किसी भी प्रकार की खांसी- चाहे बलगमी हो या सुखी सब में फायदा करती है. कमजोर व्यक्तियों को ताकत देने में यह दवा काम में लाई जाती है. क्योंकि कुछ रोग कमजोरी, खून की कमी की वजह से लोगों को परेषान करते हैं. अतः खून में जोश पैदा करने का काम करती है.
नेट्रम सल्फ: जब मौसम में नमी अधिक होती है, चाहे मौसम सर्दी का हो या बारिश का या फिर और रात, उस समय खांसी बढ़ती है. खांसते-खांसते मरीज कलेजे पर हाथ रखता है, क्योंकि खांसने से कलेजे में दर्द बढ़ता है. दर्द बाईं तरफ होता है. दवा दमा रोगियों को फायदा करती है. क्योंकि दमा रोगियों की तकलीफ भी बारिष के मौसम व ठण्ड के मौसम में बढ़ती है.
संेगुनेरिया: रात में भयंकर सूखी खांसी, खांसी की वजह से मरीज सो नहीं सकता, परेषान होकर उठ जाना और बैठे रहना. लेकिन बैठने से तकलीफ कम न होना. सोने पर खांसी बढ़ना. दस्त के साथ खांसी. इसके और भी लक्षण है, महिलाओं को ऋतु गड़बड़ी की वजह से खांसी हुई हो तो उसमें यह फायदा कर सकती है. पेट में अम्ल बनने की वजह से खांसी होना, डकार आना. हर सर्दी के मौसम में खांसी होना- यह भी इस दवा के लक्षण है.
केल्केरिया फास: जब गले में बलगम फंस रहा हो, छाती में बलगम जमा हो तो यह उसे ढीला कर देती है. जब बच्चे खांस-खांसकर परेशान होते हैं, उस समय भी इससे फायदा होते देखा गया है. यह दवा बच्चों में कैल्षियम की कमी को भी दूर करती है. गले में बलगम फंसना, छाती में बाईं तरफ दर्द में भी यह दवा दी जाती है.
चायना: चायना का कमजोरी दूर करने भूख बढ़ाने में बहुत अच्छा काम है. खांसी हो, भूख कम लगती हो तो कोई भी दवा लेते समय यह दवा ले लेनी चाहिए. काफी बार लिवर की कमजोरी, षरीर की कमजोरी की वजह से बार-बार खांसी परेषान करती है, बार-बार निमोनिया हो जाता है, खासकर बच्चों को. यदि चायना, केल्केरिया फास, फेरम फाॅस कुछ दिन लगातार दी जाए तो इस समस्या से छुटकारा पाया जा सकता है. इस दवा के खांसी में मुख्य लक्षण है- खांसते समय दिल धड़कने लगता है, एक साथ खांसी अचानक आती है कपड़े कसकर पहनने से भी खांसी होती है. इसकी खांसी अक्सर सूखी होती है.
बोरेक्स: बलगम में बदबू व खांसते समय दाहिनी तरफ सीने में दर्द तथा ऊपर की तरफ चढ़ने पर सांस फूलना इसके लक्षण है. यह दवा टीबी तक की बीमारी में काम लाई जाती है.
काली म्यूर: यह दवा फेंफड़ों में पानी जमना, निमोनिया, काली खांसी में काम आती है. एक लक्षण इसका मुख्य है- बलगम गाढ़ा, गोंद जैसा आना.
बेलाडोना: गले में दर्द के साथ खांसी, खांसी की वजह से बच्चे का रोना, कुत्ता खांसी, भयंकर परेशान कर देने वाली खांसी, खांसी का रात को बढ़ना. खांसी सूखी होना या काफी खांसी होने के बाद या कोषिष के बाद बलगम का ढेला सा निकलना. गले में कुछ फंसा सा अनुभव होना. बलगम निकलने के बाद खांसी में आराम होना, फिर बाद में बढ़ जाना.
स्पंजिया टोस्टा: यह दवा काली खांसी की बहुत ही अच्छी दवा मानी जाती है. जब सांस लेने में दिक्कत महसूस होती हो तो इसका प्रयोग अच्छा रहता है. गले में दर्द के साथ खांसी हो तो उसमें भी यह अच्छा काम करती है. यदि काली खांसी के साथ बुखार हो तो पहले एकोनाइट दे देनी चाहिए. इस दवा के और भी लक्षण हैं. कोई गरम चीज खाने से खांसी घटना और ठण्डी हवा, ठण्डा खान-पान, मीठा खाने बातचीत करने, गाने से खांसी बढ़ना, खांसते समय गले से सीटी बजने या लकड़ी चीरने की आवाज निकलना.
इपिकाक: इसका मुख्य लक्षण है, खांसी के साथ उल्टी हो जाना. उल्टी आने के बाद खांसी कुछ ठीक सी लगती है. सांस लेते समय घड़-घड़ जैसी आवाज आना, सीने में बलगम जमना आदि इसके लक्षण हैं. यह दवा काफी तरह की खांसियों में फायदा करती है, चाहे निमोनिया हो या दमा. कई बार ठण्ड लगकर बच्चों को खांसी हो जाती उसमें भी फायदा करती है. खांसते-खांसते मुंह नीला, आंख नीली हो जाना, दम अटकाने वाली खांसी छाती में बलगम जमना आदि इसके लक्षण हैं.
हायोसियामस नाइगर: सूखी खांसी. रात को खांसी अधिक होना, सोने पर और अधिक खांसी बढ़ जाना, मरीज परेशान होकर उठकर बैठ जाता है, लेकिन उसके बैठने से खांसी घट जाती है.
मैग्नेसिया म्यूर: इसका मुख्य लक्षण है कि इसकी खांसी सोने पर घट जाती है.
एसिड कार्ब: किसी को कैसी भी खांसी हो, किसी बीमारी के साथ हो, यह सब में फायदा कर सकती है. शोच, बलगम में बदबू हो तो काफी फायदा हो सकता है. इसमें लगातार खांसी आकर परेषान करती है.
कालचिकम औटमनेल: यह दवा तन्दुरुस्त लोगों को अधिक फायदा करती है. इसका प्रमुख लक्षण है, कोई तकलीफ या खांसी किसी गंद या रसोई की गंद से बढ़ना. इसमें तकलीफ हिलने से भी व सूर्य ढूबने के बाद बढ़ती.
चेलिडोनियम: दाहिने कन्धे में दर्द होना, तेजी से सांस छोड़ना, बलगम जोर लगाने से निकलना, वो भी छोटे से ढेले के रूप में. सीने में से बलगम की आवाज आना इस दवा के प्रमुख लक्षण है. लिवर दोश की वजह से हुई खांसी में बहुत बढि़या क्रिया दिखाती है. खांसते-खांसते चेहरा लाल हो जाता है. खसरा व काली खांसी के बाद हुई दूसरी खांसी में इससे फायदा होता है.
कास्टिकम: खांसी हर वक्त होते रहना. सांस छोड़ने व बातचीत करने से खांसी बढ़ना. खांसी के साथ पेषाब निकल जाना. ठण्डा पानी पीने खांसी घटना. छाती में दर्द तथा बलगम निकलने कोषिष में बलगम न निकाल सकना और बलगम अन्दर सटक लेना. रात में बलगम अधिक निकलना इस दवा के लक्षण है.
कोनियम मैकुलेटम: बद्हजमी के साथ खांसी. खांसी सूखी जो स्वर नली में उत्तेजना से उत्पन्न खांसी. इस दवा का प्रमुख लक्षण है, खांसी रात को ही अधिक बढ़ती है, जैसे कहीं से उड़कर आ गई हो. खांसी के साथ बलगम आता है तो मरीज उसे थूकने में असमर्थ होता है, इसलिए उसे सटक जाता है.
ब्रायोनिया एल्ब: खांसी के साथ दो-तीन छींक आना. सिर दर्द के साथ खांसी. हाथ से सीना दबाने पर खांसी घटना. सूखी खांसी. गले में कुटकुटाहट होकर खांसी होना यदि बलगम होता है बड़ी मुष्किल से निकलता है जिसपर खून के छींटे होते है या बलगम पीला होता है. खाना खाने के बाद या गरमी से खांसी बढ़ना इसके प्रमुख लक्षण हैं.
रियुमेक्स: खांसते समय पेषाब निकल जाना, गला अकड़ जाना, सूखी खांसी, मुंह में ठण्डी हवा जाने, षाम को, कमरा बदलने हवा के बदलाव की वजह से खांसी बढ़ना इसके प्रमुख लक्षण है. इस दवा का एक और लक्षण है गर्दन पर हाथ लगाने से खांसी अधिक होती है. गरमी से तथा मुंह ढकने से खांसी कम होती है.
एसिड फाॅस: जरा सी हवा लगते ही ठण्ड लग जाना. सोने के बाद, सुबह, शाम को खांसी अधिक होती है. खांसी पेट से आती सी महसूस होती है. बलगम का रंग पीला होता है, जिसका स्वाद नमकीन होता है.
कार्डुअस: लीवर के ठीक से काम न करने की वजह से होने वाली खांसी में इससे फायदा होता है. इसका एक और लक्षण है कि जब खांसी आती है तो उसके साथ कलेजे के पास भी दर्द होता है.
कैप्सिकम: गले में मिर्ची डालने की सी जलन तथा खांसने में बदबू आना, खांस-खांसकर थक जाना तथा थोड़ा सा बलगम निकलना, बलगम निकलने पर आराम महसूस होना इसके प्रमुख लक्षण हैं. इन लक्षणों में दमा में यह दवा काम करती है.
स्कुइला: छींक आने व आंख से पानी टपकने साथ तेज खांसी. अपने आप बूंद-बूंद पेशाब निकलना. सीने में कुछ चुभोने की तरह दर्द होना.
बैराइटा कार्ब: बहुत बार टाॅंसिल बढ़ने, गले में दर्द के साथ खांसी हो जाती है. यह दवा टांसिल की बहुत अच्छी दवा है. यदि दूसरी दवाओं के साथ उपरोक्त तकलीफ के साथ हुई खांसी में इसकी 200 पावर की दवा हफ्ते में एक बार ले लेनी चाहिए या गोलियों बनाकर 4 गोली सुबह 4 गोली षाम को लेनी चाहिए. इस दवा का एक और लक्षण है कि जरा सी ठण्डी हवा लगते ही या ठण्डे पानी से हाथ मुंह धोने से खांसी जुकाम हो जाता है. जुकाम छींक वाला होता है.
काली फास: यह दवा षरीर में ताकत लाने व जीवनी षक्ति जगाने का काम करती है. जब काफी दवा देने के बाद भी आराम न आ रहा हो तो लक्षण अनुसार अन्य दवा देते हुए भी इसका प्रयोग कर सकते है, संभव है फायदा हो. दमा रोगियों को इससे काफी फायदा होते देखा गया है.
लाईको पोडियम: इसकी खांसी दिन रात उठती रहती है. खांसने की वजह से पेट में दर्द हो जाता है. गलें मेंसुरसुरी होकर खांसी होती है. बलगम युक्त खांसी में कई बार बलगम नहीं निकलता, निकलता है बहुत ज्यादा वो भी या तो हरा होता है या पीला पीब जैसा. कई बार एक दिन खांसी ठीक रहती है, किन्तु दूसरे दिन फिर खांसी परेषान करती है. ठण्डी चीजें खाने से खांसी बढ़ती है व षाम को खांसी अधिक होती है. खांसी ऐसी हो कि टीबी होने की संभावना हो तो यह दवा जरूर दें. यह जहां खांसी जल्दी ठी करेगी व टीबी होने की संभावना को भी खत्म करेगी.
नोट: उपरोक्त लेख केवल होम्योपैथी के प्रचार हेतु है. कृपया बिना डाॅक्टर की सलाह के दवा इस्तेमाल न करें. अगर अपने मन से कोई भी दवाई लेते हैं और कोई भी दवा लेने के बाद विपरीत लक्षण होने पर लेखक या ग्रुप एडमिन की कोई जिम्मेवारी नहीं है.
ध्यान रखने योग्य कुछ दवाई
एकोनाइट नेपलेसयह भी ध्यान रखें कि किसी समय खांसते-खांसते काफी परेषानी हो रही हो, बेचैनी घबराहट लगे, पानी की प्यास भी तो एकोनाइट नेपलेस-30* की एक खुराक दे देनी चाहिए. यह किसी भी तकलीफ की बढ़ी हुई अवस्था, घबराहट, बेचैनी में बहुत अच्छा काम करती है तथा तकलीफ की तीव्रता कम कर देती है. यदि साथ ही तेज प्यास लग रही हो, बार-बार पानी पीना पड़ता हो तो इस दवा के फेल होने की संभावना बहुत मुष्किल ही है.
बेसलीनमः यह दवा टीबी से ग्रसित फेफड़े की पीब से तैयार होती है. जब खांसी पुरानी हो, टीबी के से लक्षण हों, पीला बलगम हों- कई बार खून के छींटे भी बलगम में हो सकते हैं. खांसते समय गले, छाती में दर्द हो तो हफ्ते में केवल 2 बंूद 200 पावर की दवा लें. इसकी कम पावर की दवा नहीं लेनी चाहिए, 200 या 200 से ऊपर पावर की दवा ले सकते हैं. 2-3 बार से अधिक बार भी यह नहीं लेनी चाहिए. बार-बार इस दवा का दोहारण भी ठीक नहीं.
लक्षण मिलने पर यह दवा बहुत तीव्र गति से अपनी क्रिया दिखाती है और लक्षणों को दूर करती है. बलगम का रंग बदलती है. यदि टीबी न हुई तो तो उसे रोकती है. यदि हो गई हो तो उसे बढ़ने से रोकती है. नियमित रूप से लेना लक्षण अनुसार दूसरी लेनी चाहिए. यदि किसी भी दवा से खांसी में आराम न आ रहा हो तो अन्य दवाओं को अपनी क्रिया करने का मार्ग प्रशस्त करती है.
सल्फरः खांसी बलगम वाली हो, सुबह बढ़ती है. छाती में से बलगम की घड़घड़ाहट जैसी आवाज आती हो, खांसकर बायें फेंफड़े में से तो इनमें से कोई लक्षण रहने पर कई दवाईंयां लक्षण मिलान करके देने के बावजूद आराम न आ रहा हो सुबह खाली पेट एक खुराक तीस पावर की जरूर देकर देखें, चाहे लिक्विड में दें चाहे गोलियों में बनाकर.

पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए बहुत बहुत आपका धंयवाद

अमर शहीद राष्ट्रगुरु, आयुर्वेदज्ञाता, होमियोपैथी ज्ञाता स्वर्गीय भाई राजीव दीक्षित जी के सपनो (स्वस्थ व समृद्ध भारत) को पूरा करने हेतु अपना समय दान दे
मेरी दिल की तम्मना है हर इंसान का स्वस्थ स्वास्थ्य के हेतु समृद्धि का नाश न हो इसलिये इन ज्ञान को अपनाकर अपना व औरो का स्वस्थ व समृद्धि बचाये। ज्यादा से ज्यादा शेयर करें और जो भाई बहन इन सामाजिक मीडिया से दूर हैं उन्हें आप व्यक्तिगत रूप से ज्ञान दें।
[निमोनिया का कारण ,लक्षण और उपचार :

निमोनिया क्या है ? :

★ जब किसी कारण से फेफड़े में सूजन आ जाती है तो उसे निमोनिया कहते हैं।
★ निमोनिया रोग में केवल एक ही फेफड़ा सूजता है लेकिन जब किसी कारण से दोनों फेफड़ों में सूजन आ जाती है तो उसे डबल निमोनिया कहते हैं।
★ फेफड़ों की सूजन को ही ´फुफ्फुस प्रदाह या निमोनिया´ कहते हैं। इस रोग में फेफड़े सूजकर सख्त और कठोर हो जाते हैं।
★ छोटे बच्चों में होने वाला यही रोग डब्बा रोग (पसली चलना) कहलाता है। यह रोग सन्निपात ज्वर की ही एक अवस्था है।

निमोनिया का कारण

★ निमोनिया का रोग मौसम बदलने, ज्यादा मेहनत करने, ज्यादा ठंड़ा पानी पीने, ठंड़ी हवा में रहने और खाने मे ज्यादातर ठंड़ी चीजों का सेवन करने आदि कारणों से होता है।
★ कुछ चिकित्सकों का मानना है कि यह रोग किसी विशेष कीटाणुओं के कारण उत्पन्न होता है।
★ इस रोग का उपचार तुरन्त न होने पर यह जानलेवा हो सकता है।

निमोनिया के लक्षण :

★ निमोनिया रोग से पीड़ित रोगी को पहले ठंड़ लगती है और फिर बुखार आ जाता है। रोगी की आंख व चेहरा लाल होता है, बहुत ज्यादा प्यास लगती है, जीभ मैली हो जाती है, सिर दर्द होता है, भूख कम लगती है, सूखी खांसी के दौरे पड़ते रहते हैं, छाती बहुत गर्म हो जाती है, सांस लेने में परेशानी होती है तथा फेफड़े गलने लगते हैं।
★ यह एक कठिन व फैलने वाला रोग है।
★ इस रोग में जब बुखार बहुत तेज होता है तो खांसी के साथ रोगी की पसलियों में भी दर्द होता है।
★ निमोनिया रोग से पीड़ित रोगी की छाती में कफ जमा हो जाता है और दम फूलने लगता है। सांस लेते समय छाती में कफ की आवाज आती रहती है। पसलियों के निचले हिस्से में गड्ढ़ा पड़ने लगता है, आंखे चढ़ जाती हैं, चेहरा फीका पड़ जाता है, रोगी को बड़ी बेचैनी होती है, होंठ नीले पड़ जाते हैं, पसलियों में दर्द होता रहता है और जीभ सूखकर काली पड़ जाती है।

निमोनिया में परहेज

★ निमोनिया के रोग में जल्दी पचने वाली चीजें खानी चाहिए और पूरा आराम करना चाहिए।
★ भोजन में परवल, तोरई, करेला, सेब, अनार, पालक तथा कुलथी का रस सेवन करना चाहिए।
★ जौ या गेहूं की रोटी खानी चाहिए। दोपहर के समय गाय के दूध में अदरक डालकर पीना चाहिए।
★ पानी को उबालकर रखकर ठंड़ा करके घूंट-घूंट पीना चाहिए।
★ खाने के बाद 8-10 कदम जरूर चलना चाहिए।
★ दूध में चीनी या चीनी के स्थान पर शहद का प्रयोग करना चाहिए।
★ चिकनाई वाले पदार्थ जैसे घी-तेल का सेवन नहीं करना चाहिए।
★ कसरत, शारीरिक या दिमागी मेहनत, मैथुन, ठंड़े पानी का सेवन, क्रोध, दिन में सोना, दूध तथा दूध से बने गरिष्ठ पदार्थों का सेवन नहीं करना चाहिए।
★ खटाई, पीठी तथा मैदे की मिठाई, तरबूज, मांस, मछली तथा पान का सेवन नहीं करना चाहिए।

निमोनिया का घरेलु आयुर्वेदिक उपचार :

1) पोदीना :

पोदीना का ताजा रस शहद के साथ मिलाकर हर 1-1 घंटे पर सेवन करने से न्युमोनिया रोग ठीक होता है।

2) पीपल :

बच्चों की पसली चलना रोग में 2 पीपल को आग पर भूनकर पीस लें और इसमें एक चम्मच शहद मिलाकर दिन में 3 बार खिलाने से बच्चों की पसली चलना बन्द होता है।

3) नीम :

नीम के पत्तों का रस हल्का गर्म करके छाती पर मालिश करने से फेफड़ों की सूजन दूर होती है।

4) बारहसिंगा : बारहसिंगा को पानी में घिसकर पसली पर लेप करने से फुफ्फुस प्रदाह (निमोनिया) रोग समाप्त होता है।

5) मूली :

बच्चों के सांस रोग, दमा या पसली चलना रोग होने पर मूली के बीज और काकड़ासिंगी बराबर मात्रा में लेकर चूर्ण बना लें। यह चूर्ण लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग की मात्रा में घी व शहद के साथ 6 घंटे बच्चे को चटाएं। इससे दमा, सांस रोग व फुफ्फुस की सूजन दूर होती है।

6) मजीठ :

1 से 3 ग्राम मजीठ के चूर्ण को प्रतिदिन 3 बार शहद के साथ रोगी को सेवन करना चाहिए। यह फुफ्फुस की जलन, सूजन व दर्द को समाप्त करता है।

7) अडूसा :

• बच्चों के गले और छाती में घड़घड़ाहट होने पर लाल अडूसा के पत्तों का रस 10 से 20 बूंद लेकर सुहागा की खील या छोटी पीपल में मिलाकर लें और शहद के साथ 4 से 6 घंटे के अन्तर पर सेवन करें। इससे छाती में जमा कफ निकल जाता है और फुफ्फुस (फेफड़ों) की सूजन दूर होती है।
• काले अड़ूसा के 4 पत्तों का रस, सहजने की छाल का रस, सामुद्रिक नमक और शहद मिलाकर प्रतिदिन सेवन करने से फेफड़ों की सूजन व जलन समाप्त होती है।

8) शहद :

निमोनिया रोग में रोगी के शरीर की पाचन-क्रिया प्रभावित होती है इसलिए सीने तथा पसलियों पर शुद्ध शहद की मालिश करना चाहिए और थोड़े से शहद गुनगुने पानी में डालकर पिलाना चाहिए।

9) आंवला :

आंवला, जीरा, पीपल, कौंच के बीज और हरड़ को लेकर कूट-पीसकर चूर्ण बना लें और यह चूर्ण शहद के साथ सुबह-शाम सेवन करें। इससे फुफ्फुस प्रदाह भी ठीक होता है।

10) समुद्रफल :

बच्चों के फुफ्फुस प्रदाह रोगों में समुद्रफल को पीसकर छाती और पेट पर लगाने से रोग ठीक होता है।

11) नागदन्ती

3 से 6 ग्राम नागदन्ती की जड़ का चूर्ण, दालचीनी के साथ सुबह-शाम सेवन करने से निमोनिया का रोग तुरन्त ठीक होता है।

  1. भंगरैया : यदि छोटे बच्चे की छाती में घबराहट हो और खांसी आती हो तो 1 से 2 बूंद भंगरैया का रस प्रतिदिन 3 बार सेवन करना चाहिए। इसके सेवन से बच्चों का डब्बा रोग ठीक होता है।

12) रानीकूल (मुनियारा) : निमोनिया के रोग में 3 से 6 ग्राम रानीकूल के पंचांग (जड़, तना, पत्ती, फल और फूल) का चूर्ण शहद के साथ सेवन करने से निमोनिया रोग ठीक होता है।

13) अगस्त :

अगस्त की जड़ की छाल पान में रखकर चूसने या इसका रस 10 से 20 मिलीलीटर की मात्रा में सुबह-शाम सेवन करने से कफ (बलगम) निकल जाता है। इसके सेवन से पसीना निकलकर बुखार धीरे-धीरे कम हो जाता है।

14) गाय का मूत्र :

गाय के मूत्र में नमक मिलाकर आधा-आधा चम्मच सुबह-शाम रोगी को पिलाने से निमोनिया रोग ठीक होता है।

15) सिनुआर :
• 10 से 20 मिलीलीटर सिनुआर के पत्तों का रस सुबह-शाम रोगी को देने से और सिनुआर, करंज नीम और धतूरे के पत्तों को पीसकर हल्का गर्म कर छाती पर लेप करने से लाभ मिलता है। इसका लेप सीने पर लगाकर कपड़ा लपेटकर बांध देना चाहिए। इसका उपयोग कुछ दिनों तक करने से फेफड़ों की सूजन दूर होती है और दर्द ठीक होता है।
• सिनुआर के पत्तों का काढ़ा बनाकर प्रतिदिन सेवन करने से फुफ्फुस की सूजन दूर होती है।

16) सुहागा :

• भुना हुआ सुहागा और भुना हुआ नीलाथोथा 3-3 ग्राम लेकर पीस लें और अदरक के रस में मिलाकर बाजरे के आकार की गोलियां बनाकर छाया में सुखा लें। इसमें से 1-1 गोली मां के दूध के साथ दिन में 2 बार बच्चे को सेवन करने से निमोनिया (फुफ्फुस प्रदाह) रोग ठीक होता है।
• 1 चुटकी फूला सुहागा, 1 चुटकी फूली फिटकरी, 1 चम्मच तुलसी का रस, 1 चम्मच अदरक का रस और आधा चम्मच पान के पत्तों का रस। इन सभी को एक साथ मिलाकर शहद के साथ सुबह-शाम सेवन करने से निमोनिया (फुफ्फुस प्रदाह, फेफड़ों की सूजन) आदि में बेहद लाभ मिलता है।

17) लहसुन :

• 5 मिलीलीटर लहसुन का रस तथा 20 ग्राम शहद को एक साथ मिलाकर दिन में 3 बार खाने से चटाने से फेफड़ों की सूजन दूर होती है।
• 1 चम्मच लहसुन का रस गर्म पानी में डालकर बच्चे को पिलाने से निमोनिया का रोग ठीक होता है।
• लहसुन की कलियों को आग में भूनकर चूर्ण बना लें और यह चूर्ण 1 चुटकी की मात्रा में शहद के साथ दिन में 3-4 बार सेवन करें। इससे फेफड़ों की सूजन व जलन दूर होती है।
• निमोनिया में इस रोग में एक चम्मच लहसुन का रस गर्म पानी मे मिलाकर पीने से सीने का दर्द दूर होता है।

18) कपूर :

• 2 ग्राम कपूर और 10 मिलीलीटर तारपीन का तेल मिलाकर पसलियों पर मालिश करने से निमोनिया रोग में लाभ मिलता है।
• कपूर को 4 गुने सरसों के तेल में मिलाकर पसलिसों की मालिश करने से पसलियों का दर्द ठीक होता है।

19) तेजपात :

तेजपात, बड़ी इलायची, नागकेसर, कपूर, शीतल चीनी, अगर, और लौंग को मिलाकर काढ़ा बनाकर सुबह-शाम सेवन करें। इससे फेफड़ों की सूजन में बेहद लाभ मिलता है।

20) अदरक :

• अदरक और तुलसी का रस 1-1 चम्मच लेकर शहद के साथ सेवन करने से फुफ्फुस प्रदाह दूर होती है।
• अदरक रस में 1 या 2 वर्ष पुराना घी व कपूर मिलाकर गरम कर छाती पर मालिश करने से निमोनिया में आराम मिलता है।

21) हींग :

फुफ्फुस प्रदाह से पीड़ित रोगी को लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग हींग को 3-4 मुनक्के में भरकर दिन में 3 बार खाने से एक सप्ताह के अन्दर ही निमोनिया ठीक हो जाता है।

22) तुलसी :

• 20 तुलसी के हरे पत्ते, 5 कालीमिर्च, 3 लौंग, 2 चुटकी हल्दी और एक गांठ अदरक। इन सभी को लेकर एक कप पानी में उबालें और जब पानी आधा कप बचा रह जाए तो इसे छानकर दिन में 2 बार पीएं। इस तरह यह काढ़ा लगभग 10 दिनों तक सुबह-शाम सेवन करने से फुफ्फुस प्रदाह ठीक होता है।
• तुलसी के पत्ते का रस, सोंठ, कालीमिर्च और पीपल का चूर्ण बराबर मात्रा में लेकर सेवन करने से निमोनिया रोग समाप्त होता है।
• 20 तुलसी के हरे पत्ते और 5 कालीमिर्च पीसकर पानी में मिलाकर पीने से निमोनिया में लाभ मिलता है।
फुफ्फुस प्रदाह (निमोनिया) के रोग से पीड़ित रोगी को नमक की पोटली बनाकर छाती पर आगे व पीछे से सिंकाई करना चाहिए। इससे कफ (बलगम) ढीला होकर बाहर निकल जाता है और दर्द व सूजन से आराम मिलता है।

होमेओपेथी में निमोनिया की सर्वोत्तम औषधि भाई राजीवदीक्षित जी व डॉक्टर वेद जी के ज्ञानानुसार aconoite 200 ch की 2 2 बून्द हर दो घण्टे पर पहले दिन अगले दिन से सुबह दोपहर शाम जब तक ठीक न हो व जस्टिसिया Q की 10 बून्द चौथाई कप पानी मे दिन में 3 बार

घरेलू में

देशी गाय के घी से मालिश व सिकाई

सुअर की चर्बी का घी सिर्फ दो बूंद हप्ते में एक या दो दिन हल्का गर्म कर पिलाये व मालिश जीवन मे कभी निमोनिया नही होगा

मनरगोह (जलीय जंतु है) हमारे बिहार में बोलते हैं उसके तेल से मालिश

निमोनिया में अजवायन की सिकाई भाप नस्य भी लाभदायक है

किसी भी जानकारी , नुस्खे व औषधीय प्रयोग को व्यावहारिक रूप में आजमाने से पहले अपने चिकित्सक या सम्बंधित क्षेत्र के विशेषज्ञ से राय अवश्य ले।

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