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इम्यूनिटी पावर (रोग प्रतिरोधक क्षमता) बढ़ाने के उपाय

इस पूरे पोस्ट को पढ़े उससे पहले ही मैं इस ज्ञान से साथ अपना विचार रख रहा हूँ प्राकृतिक शरीर मे अप्राकृतिक तत्वों का सेवन ही हमारे शरीर व अस्तित्व को समय से पहले मिटा रही है

इम्यूनिटी सिस्टम (रोग प्रतिरोधक क्षमता ) क्या है ? :

रोग प्रतिरोधक क्षमता शब्द ज़्यादातर प्रयोग में लाया जाता है जबकि इसका सही तक़नीकी शब्द होता है रोगक्षमता यानी इम्यूनिटि (Immunity) तथा रोग प्रतिरोधक तन्त्र का तक़नीकी शब्द होता है रोग क्षमता तन्त्र । जब हमारे शरीर में कोई रोगाणु प्रवेश करता है तो रोग प्रतिरोधक तन्त्र उससे लड़ता है जिससे लक्षण उत्पन्न होते हैं और रोग की उत्पत्ति होती है। किन्तु जब शरीर किसी रोगाणु के प्रति रोगक्षम (Immune) होता है तब तन्त्र शीघ्रता से रोगाणुओं को नष्ट कर देता है और कोई लक्षण उत्पन्न नहीं होते यानी रोग उत्पत्ति नहीं होती और शरीर स्वस्थ बना रहता है।

आपने अक़्सर देखा होगा कि कुछ लोगों को रोग कभी भी अपनी जकड़ में ले लेते हैं तो कुछ लोग कभी बीमार नहीं होते तथा हर समय ऊर्जावान बने रहते हैं। कई लोगों में दवा देर से असर करती है तो कुछ उस दवा की आधी मात्रा से ही ठीक हो जाते हैं। इस सबके पीछे रोगक्षमता की स्थिति कारण होती है।

हमारे शरीर का रोगक्षमता तन्त्र जितना अच्छे तरीके से कार्य करेगा हमारी रोगक्षमता उतनी ही बलवान रहेगी और हम अच्छे स्वास्थ्य के साथ-साथ अच्छी गुणवत्ता वाला जीवन जी सकेंगे और अधिक आयु में भी हमारा स्वास्थ्य युवाओं जैसा बना रहेगा। रोगक्षमता तन्त्र (Immune System) को असंयत और कमज़ोर कर रोगक्षमता (Immunity ) का ह्रास करने वाले कई कारण होते हैं जिससे शरीर के रोगग्रस्त होने की सम्भावना बढ़ जाती है। इन कारणों तथा रोगक्षमता को बलवान बनाये रखने वाले उपाय एवं औषधीय प्रयोगों पर चर्चा करने से पहले रोगक्षमता तन्त्र के विषय में थोड़ी चर्चा करना ठीक रहेगा।

इम्यूनिटी सिस्टम कैसे काम करता है ?

रोगक्षमता तन्त्र बहुत जटिल होता है। और विशेष कोशिकाओं, प्रोटीन्स, ऊतक व अंगों से बना होता है जो मिलकर रोगाणुओं, कैन्सर कोशिकाओं, विकृत कोशिकाओं आदि को नष्ट करते हैं। हालाकि शरीर को संक्रमण मुक्त व स्वस्थ रखने में यह तन्त्र मुख्य भूमिका निभाता है परन्तु कई बार इस तन्त्र की गड़बड़ी से रोग जन्म लेते हैं। उदाहरण के लिए अलर्जी, रूह्यमेटॉइड ,आथ्रटिस आदि । रोगक्षमता तन्त्र में एन्टीबॉडीज़, काम्प्लीमेण्ट प्रोटीन, इन्टरफेरॉन आदि कई भाग होते हैं पर हम यहां इसके मुख्य हिस्से श्वेत रक्त कोशिकाओं (White Blood Cells) की चर्चा कर रहे हैं।

श्वेत रक्त कोशिकाएं :श्वेत रक्त कोशिकाएं जिन्हें ल्यूकोसाइट्स (Leukocytes)कहते हैं। शरीर के विभिन्न स्थानों पर विकसित और संग्रहीत होती हैं। इनसे जुड़े अंग होते हैं थायमस ग्रन्थि, प्लीहा(Spleen), लसीका पर्व (Lymph node) और अस्थिमज्जा (Bone Marrow) जिन्हें लसीका अंग (Lymphoid Organs) कहते हैं।

श्वेत रक्त कोशिकाएं के प्रकार और कार्य:-

श्वेत रक्त कोशिकाएं मुख्यतः 2 प्रकार की होती हैं। पहली भक्षक कोशिका (Phagocytes) जो सूक्ष्म जीवों, विकृत कोशिकाओं तथा विजातीय कणों को निगल जाती हैं तथा दूसरी होती हैं लसीका कोशिका (Lymphocytes) जो शरीर पर आक्रमण कर चुके रोगाणुओं को याद रखने और पहचानने का कार्य करती हैं।

1-भक्षक कोशिका (Phagocytes):-भक्षण करने वाली कोशिकाएं कई प्रकार की होती हैं जिनमें सबसे अधिक संख्या न्यूट्रोफिल्स (Neutrophils) की होती है जो मुख्यतः जीवाणुओं से लड़ती हैं।

इसीलिए संक्रमण के दौरान रक्त की जांच कराने पर इनकी संख्या बढ़ी हुई आती है।

2- लसीका कोशिका:-लसीका कोशिका भी दो प्रकार की होती हैं जिनका निर्माण अस्थिमज्जा में होता है। जो वहीं रह कर परिपक्व होती हैं। उन्हें B प्रकार की लसीका कोशिका ( B Lymphocyte) कहते हैं जो थायमस ग्रन्थि में पहुंच कर परिपक्व होती हैं उन्हें T प्रकार की लसीका कोशिका (T Lymphocyte) कहते हैं।

इन दोनों कोशिकाओं के कार्य अलग-अलग होते हैं।

✦ B प्रकार की कोशिकाएं रोगक्षमता तन्त्र के सूचना विभाग की तरह कार्य करती हैं और अपने लक्ष्य को तलाश कर उसे चिन्हित करती हैं ताकि अन्य कोशिकाएं उसको नष्ट कर सकें।

✦ T प्रकार की कोशिकाएं सैनिकों की तरह होती हैं जो सूचना विभाग यानी B प्रकार की कोशिकाओं की सहायता से रोगाणुओं और विजातीय तत्वों को नष्ट करती हैं।

उदाहरण के लिए B प्रकार की कोशिकाएं जीवाणुओं के प्रोटीन, जिसे एन्टीजन कहते हैं, के विरुद्ध एन्टीबॉडीज़ बनाती हैं जो उन प्रोटीन से जुड़ कर उन्हें चिन्हित करती हैं। और फिर T प्रकार की कोशिकाएं उन्हें नष्ट करती हैं।.

इन कोशिकाओं का विकास के दौरान, शरीर के तत्वों और बाहरी तत्वों में अन्तर करने का प्रशिक्षण भी हो जाता है। जिन लोगों में ये कोशिकाएं शरीर के तत्वों को बाहरी तत्व (Foreign Body ) की तरह पहचान कर उनके विरूद्ध कार्य करने लगती हैं उनमें कई रोग (Autoimmune diseases) उत्पन्न हो जाते हैं।

रोगक्षमता तन्त्र जिस प्रक्रिया द्वारा जीवाणुओं, विषाणुओं और हानिकारक विजातीय तत्वों को पहचानता है और उनसे शरीर की रक्षा करता है उसे रोगक्षम अनुक्रिया (Immune Response) कहते हैं।

और इस क्षमता को रोगक्षमता (Immunity) कहा जाता है। रोग क्षमता कई प्रकार की होती है जिनमें से कुछ की यहां संक्षिप्त चर्चा की जा रही है। कई प्रकार के रोगाणुओं और तत्वों से बचने की जो क्षमता हमें जन्म से प्राप्त होती है उसे स्वाभाविक रोगक्षमता (Innate Immunity) कहा जाता है। इसके अन्तर्गत शारीरिक संरचना से सम्बन्धित अवरोधक जैसे कफ रिफ्लेक्स, आंसु तथा त्वचा के तैल में एन्जाइमस, श्लेष्मिक कला, त्वचा,आमाशयी अम्ल, आदि आते हैं तो काम्लीमेन्टरी प्रोटीन्स, इन्टरफेरॉन, इन्टरल्यूकिन आदि रासायनिक अवरोधक भी आते हैं।

जब विभिन्न प्रकार के रोगाणु या विजातीय तत्व शरीर में प्रवेश करते हैं तो उनके खिलाफ रोगक्षमता तन्त्र विशेष प्रकार का प्रोटीन तैयार करता है जिसे एन्टीबॉडी कहते हैं जो सम्बन्धित रोगाणु या विजातीय तत्व के शरीर में पुनः प्रवेश करने पर उन्हें तुरन्त नष्ट कर देते हैं और रोग उत्पत्ति नहीं होती। इसे उपार्जित रोगक्षमता (Acquired Immunity) कहते हैं

उदाहरण के लिए एक बार चिकन पॉक्स हो जाने पर इस प्रकार की रोग क्षमता के कारण यह दोबारा नहीं होता। ऐसे ही जब कृत्रिम रूप से रोगाणु का प्रोटीन उतनी ही मात्रा में पहुंचाया जाता है कि उसके विरूद्ध शरीर में एन्टीबॉडीज तो तैयार हो जाएं पर रोग उत्पन्न न हो तो इसे कृत्रिम रोगक्षमता (Artificial Immunity) कहते हैं जो बच्चों में टीकाकरण (Immunization ) द्वारा उपार्जित की जाती है।

जब किसी दूसरे शरीर में निर्मित एन्टीबॉडीज किसी शरीर में पहुंच कर रोगों से रक्षा करती है तो उसे निष्क्रिय रोग क्षमता (Passive Immunity) कहते हैं जैसे माता से प्राप्त शिशुओं में रोगक्षमता।

इतनी आधारिक चर्चा के बाद आइए अब रोगक्षमता तन्त्र को कमज़ोर करने वाले कारण और उसको बलवान बनाने वाले उपायों पर चर्चा शुरू करते हैं।

इम्युनिटी पावर (रोग प्रतिरोधक क्षमता) कम होने के कारण :

सभी स्वस्थ रहना चाहते हैं पर स्वस्थ रह नहीं पाते क्योंकि सारा ध्यान और ज्ञान बीमारियों का पता लगाने और दवाओं पर लगा रहता है जबकि यह बात सभी बखूबी जानते हैं कि बीमार होकर चिकित्सा करने से बेहतर और आसान होता है उस बीमारी से बचाव करना।

रोग प्रतिरोधक शक्ति शब्द से सभी परिचित होते हैं पर यह किन कारणों से कमज़ोर होती है और शरीर के रोगग्रस्त होने की सम्भावना बढ़ जाती है इस विषय में कदाचित बहुत कम लोग जानते होंगे। इस चर्चा के आरम्भ में हमने रोगक्षमता तन्त्र पर थोड़ी बात की ताकि इस तन्त्र की शारीरिक स्वास्थ्य को बनाये रखने में क्या भूमिका होती है यह अच्छे से समझ में आ सके। आइए अब रोगक्षमता को कमज़ोर करने वाले तत्वों पर चर्चा शुरू करते हैं।

(1) वंशानुगत प्रभाव-यदि मातापिता या परिवार के लोगों में स्वाभाविक रोगक्षमता कमज़ोर हो तो वर्तमान पीढ़ी में भी यह कमज़ोर हो सकती है। इसीलिए आयुर्वेद में गर्भाधान संस्कार को विधि विधान से सम्पन्न करने की सलाह दी है। ताकि जन्म से ही व्यक्ति अच्छी रोगक्षमता का मालिक बन कर इस दुनिया में आये।

(2) अवसाद व तनाव-तेज़ रफ़्तार व अव्यवस्थित जीवन शैली, दूसरों से आगे बढ़ने की प्रवृत्ति, व्यावसायिक प्रतिस्पर्धा, मनोवांछित लक्ष्य की प्राप्ति न होना, नौकरी लगने, स्थिर रहने या छूटने का भय, पारिवारिक व जीवन से जुड़ी अन्य समस्याएं आज के आधुनिक दौर की देन हैं। जिनके कारण तनाव व अवसाद जैसे रोगों में बहुत वृद्धि हो गयी है। मस्तिष्क से स्रावित रसायन रोगक्षम कोशिकाओं (Immune Cells) की कार्यक्षमता पर सीधे असर डालते हैं। ज्यादा समय तक तनाव में रहने से इसके कारण स्रावित होने वाले स्ट्रेस हारमोनस खासकर काटसोल रोगक्षमता तन्त्र को कमज़ोर करते है और साधारण रोगों के साथ-साथ हृदयरोग, मधुमेह जैसे गम्भीर रोगों के उत्पन्न होने की सम्भावना भी बढ़ जाती है। फिर जो व्यक्ति तनावग्रस्त रहता है वह न तो पर्याप्त नींद ले पाता है और न ही व्यायाम और स्वास्थ्यवर्द्धक आहार पर ध्यान दे पाता है जिससे भी रोगक्षमता का ह्रास होता है।.

(3) आहार-आज के समय में आहार और उसको बनाने व सेवन करने की विधि सब अस्वास्थ्यकर हो गये हैं। भोजन में फास्ट फूड, संरक्षित व संसाधित खाद्य पदार्थ तथा मैदा से बने व्यंजनों का अधिक मात्रा में सेवन करने से अनेक प्रकार के रोगों की उत्पत्ति हो रही है। उस पर हमारे विशुद्ध पारम्परिक आहार दाल, सब्ज़ी, अन्न, दूध, घी, फल आदि सभी रासायनिक प्रदूषण से विषाक्त होते जा रहे हैं। फसल की पैदावर बढ़ाने के लिए रासायनिक खादों तथा कीटनाशक रसायनों का प्रयोग किया जा रहा है। खेत से लगातार फसल लेने से उसकी उर्वरक क्षमता में ही नहीं बल्कि पौष्टिकता (पौष्टिक तत्व) में भी कमी आ गयी है। इस पर अनाज, फल व सब्ज़ियों की संकर उपजाति (Hybrid Variety ) का चलन हो गया जो देखने में आकर्षक और ताज़ी लगती हैं पर उनमें पौष्टिक तत्वों की कमी होती है। कोल्डस्टोरेज और ट्रान्सपोर्ट की मेहरबानी से मौसम व स्थान की दृष्टि से अनुचित फल व सब्ज़ियां लोग खा रहे हैं। समय की कमी और आलस्य के चलते बड़े शहरों के लोगों की परिरक्षक रसायनों (Preservatives) युक्त बासी भोजन खाने की आदत हो गई है। बारीक आटा व मैदे में मेग्नीज़ और मैग्नीसियम जैसे शरीर क्रियात्मक प्रक्रियाओं के लिए अत्यावश्यक तत्व बहुत कम होते हैं। कहने का तात्पर्य यह है कि शरीर की रोगक्षमता को स्वस्थ और बलवान बनाये रखने के बजाए हमारा आहार इसे कमज़ोर करने वाला हो गया है।

(4) पेयजल -हमारे देश में बहुत से लोगों को शुद्ध साफ़ जल प्राप्त नहीं होता है। दूषित पेयजल शरीर में कई प्रकार के रोग एवं संक्रमण उत्पन्न करने वाला होता है। जो हमारी रोगक्षमता को कम करने वाले होते हैं।

(5) शारीरिक श्रम-आधुनिक दौर में शारीरिक श्रम से कहीं अधिक मानसिक श्रम बढ़ गया है। व्यायाम करने के लिए तो हम समय निकाल ही नहीं पाते हैं। हालाकि अति व्यायाम या शारीरिक श्रम से भी रोगक्षमता कम होती है पर निष्क्रिय जीवन शैली और व्यायाम बिल्कुल न करने से निश्चित रूप से रोगक्षमता तन्त्र की कार्यक्षमता धीमी पड़ती है।

(6) विकिरण –सूर्य की किरणों में पायी जाने वाली अल्ट्रावायलेट किरणों के अलावा वैज्ञानिक उपकरणों से निकलने वाली विकिरण आदि भी रोगक्षमता में कमी लाते हैं।.

(7) दवाएं-कई दवाओं के अनुषंगीप्रभाव (Side effects) स्वरूप रोगक्षमता में कमी आती है, उस पर कई लोग चिकित्सक से सलाह लिये बगैर दवाओं का मनमाना प्रयोग करते हैं।.

(8) व्यसन –शराब, सिगरेट, तम्बाकू का सेवन करना आज के युवाओं की जीवनशैली का हिस्सा बन गया है। इन की लत और अफीम, गांजा व ड्रग्स आदि सभी रोगक्षमता तन्त्र को कमज़ोर करने वाली आदतें हैं।

(9) यौन जीवन-यौनोत्तेजना शरीर में एक प्रकार का तनाव उत्पन्न करती है। जिससे कई प्रकार के रसायनों का रक्त में स्राव होता है। यौन आचरण में अति करने का वही प्रभाव पड़ता है जो अधिक तनाव से होता है यानी रोगक्षमता में कमी आती है।

(10) विभिन्न रोग-कई प्रकार के रोग, रोगक्षमता तन्त्र की कार्यक्षमता में कमी लाते हैं खासकर विषाणु संक्रमण (Viral Infection)।

(11) व्यक्तिगत एवं आसपास की स्वच्छता –घर के आसपास साफ़ सफाई रखना और खाना खाने से पहले अच्छी तरह से हाथ धोने की सलाह अक़्सर हम सुनते रहते हैं। साधारण से दिखाई देने वाले ये निर्देश बहुत महत्वपूर्ण हैं क्योंकि इनका पालन न करने से कई प्रकार के रोगाणु शरीर में प्रवेश कर धीरे धीरे रोगक्षमता तन्त्र की कार्यक्षमता को कम करते जाते हैं।

(12) शारीरिक अवस्था –बालक, वृद्ध और वात प्रकृति के व्यक्तियों में अवस्था गत प्रभाव से रोगक्षमता कम रहती है।

(13) प्रदूषण-वातावरण और व्यावसायिक रसायनों के कारण होने वाले प्रदूषण के दुष्प्रभाव से भी हमारा रोगक्षमता तन्त्र ठीक से कार्य नहीं कर पाता है। दवाओं और चिकित्सकों के आश्रित न रहते हुए हमें नियमित और संयमित जीवनशैली अपनाते हुए अपनी रोगक्षमता को बढ़ाने के उपाय करना चाहिए ।

इम्युनिटी पावर (रोग प्रतिरोधक क्षमता ) बढाने के उपाय :

रोगक्षमता में सुधार लाने और उसे बलवान बनाये रखने के कुछ उपाय इस प्रकार हैं।.

(1) प्रदीप्त जठराग्नि –सर्व प्रथम हमें अपनी जठराग्नि एवं धात्वाग्नियों को प्रदीप्त करना चाहिए ताकि ग्रहण किये गये आहार का पाचन और चयापचय अच्छे से हो। इसके लिए भोजन में अदरक, नींबू, सेन्धानमक, सौंफ, धनिया, जीरा आदि का प्रकृति के अनुसार प्रयोग करना चाहिए।

(2) जीवनशैली-आयुर्वेदिक शास्त्रों के अनुसार दिनचर्या, रात्रिचर्या और ऋतुचर्या का पालन करना।

(3) आहार-✦ भोजन के अच्छे पाचन के लिए जठराग्नि अच्छी रहे इसके लिए निश्चित समय पर भोजन करना, भोजन पश्चात 3 घण्टे तक कुछ नहीं खाना, छः घण्टे से अधिक भूखे नहीं रहना तथा भूख से कम खाना आदि नियमों का दृढ़ता से पालन करना चाहिए। भोजन के 1 घण्टे बाद पानी पीना तथा दिन भर में 3-4 लिटर पानी पीना चाहिए।

✦ इम्युनिटी पावर बढ़ाने वाले खाद्य – भोजन ऋतु और अपनी प्रकृति के अनुसार ही करना चाहिए। गेहूं, बाजरा, मक्का, चावल, चना आदि अन्न; लौकी, तोरई, टिण्डे, परवल, शलजम, आलू आदिसब्ज़ियां और गहरी हरी पत्तेदार व रंगीन सब्ज़ियां जैसे पालक, मैथी, चौलाई, मूली के पत्ते, गाजर आदि का ऋतु अनुसार सेवन करना चाहिए।

✦ इसके अलावा आहार में सब्ज़ियों का सूप व सलाद, ताज़े फल एवं उनका रस, शहद, नारियल पानी आदि को भी शामिल करना चाहिए। सूखे मेवों में काजू, बादाम, किशमिश, मुनक्का, खजूर आदि का यथा शक्ति प्रयोग करें तथा मीठे में यथा सम्भव गुड़ का ही प्रयोग करें।

✦ तलेभुने व नमकीन मसालेदार व्यंजन, नमक, शक्कर, मिष्ठान, चाय, काफी आदि का कम से कम उपयोग करें। इन सब आहारीय पदार्थों से वो पोषकतत्व प्राप्त होते हैं जो रोगक्षमता तन्त्र की क्रियात्मकता के लिए ज़रूरी होते हैं।

✦ प्रातः काल उठते ही पानी, दोपहर के भोजन के बाद छाछ, शाम के भोजन के बाद गुड़ और रात्रि को सोते समय दूध का सेवन करना चाहिए।

(4) व्यायाम-नियमित व्यायाम से रोगक्षमता तन्त्र स्वस्थ रहता है और मज़बूत भी होता है। कुछ न कर सकें तो प्रतिदिन 45 मिनिट तेज़ चाल में घूमने का अभ्यास रखें। इससे रोगाणुओं को नष्ट करने वाली एन्टीबॉडीज़ व T प्रकार की लसीका कोशिकाएं अपना कार्य बेहतर ढंग से कर पाती हैं। फिर व्यायाम से मनोदशा ठीक रहती है और तनाव व अवसाद जैसे रोगक्षमता कम करने वाले तत्व दूर होते हैं।

(5) मल विसर्जन-मल का त्याग समय पर और अच्छी तरह से हो इसका ख्याल रखना चाहिए। यदि क़ब्ज़ रहता हो तो रात्रि में एरण्ड तैल में भुनी हुई हरड़ का चूर्ण 3 ग्राम मात्रा में गर्म पानी से लें। कई बार क़ब्ज़ आदि कारणों से आंतों में संक्रमण और सूजन बनी रहती है जिससे ग्रहण किये गये आहार में पोषक तत्व होते हुए भी उनका आंतों द्वारा पर्याप्त अवशोषण नहीं हो पाता है।

(6) निद्रा-शरीर के रोगक्षमता तन्त्र के बलवान बने रहने के लिए शरीर को पर्याप्त विश्राम देना भी आवश्यक होता है। यह विश्राम अच्छी नींद के अलावा तनाव में कमी करने और सकारात्मक सोच रखने से प्राप्त होता है। शरीर के जीर्णोद्धार और ऊर्जा संरक्षण की प्रक्रिया के लिए पर्याप्त नींद आवश्यक है। रात को कम से कम 6-7 घण्टे आवश्य नींद लेना चाहिए ।

औषधीय प्रयोग से इम्यूनिटी पावर (रोग प्रतिरोधक क्षमता) बढ़ाने के उपाय :

यदि किसी कारण से रोगक्षमता कम हो गयी हो या उपरोक्त उपायों से भी लाभ न मिल रहा हो तो निम्नलिखित प्रयोग में से किसी एक प्रयोग को करना चाहिए।

(1) अश्वगन्धा, शतावरी, सफ़ेद मूसली, हरड़, बहेड़ा, आंवला, गिलोय, वायबिडंग, सूठ, काली मिर्च, पिप्पलीसभी द्रव्यों को समान भाग लेकर यवकूट करें। द्रव्य से आठ गुना पानी लेकर धीमी आंच पर उबाल कर क्वाथ बनाएं । एक चौथाई रह जाने पर छान कर वापिस उबालें और गाढ़ा होने पर सुखाकर पाउडर बना कर रख लें।

सेवन विधि – इस चूर्ण की एक ग्राम मात्रा एक चम्मच शहद में मिला कर भूखे – पेट चाट लें । यदि इसमें एक रत्ती स्वर्णबसन्त मालती रस एवं एक रत्ती मन्डूर भस्म मिला कर लें तो विशेष लाभ होता है। बच्चों को इस रसायन में कुमार कल्याण रस की 3० मि. ग्रा. मात्रा व 125 मि.ग्रा. घनसत्व मिला कर शहद में चटाएं और ऊपर से अरविन्दासव की एक चम्मच दें। इस प्रयोग को 40 दिन तक करें।

(2) आमलकी रसायन- आंवले का चूर्ण बना कर उसे आंवले के रस में 3-4 घण्टे तक खरल में घोंट कर सूखने दें। इसको भावना देना कहते हैं। ऐसी 21 भावना दें। 21 भावना देने के बाद पाउडर बना कर रख लें। इसे आमलकी रसायन कहते हैं। | सेवन विधि- 1 से 2 ग्राम मात्रा शहद या मिश्री मिला कर भूखे पेट सेवन करें। यह प्रयोग एक वर्ष तक करना चाहिए।

(3) च्यवनप्राश, ब्राह्मी रसायन या अन्य शास्त्रोक्त रसायन वाजीकरण योगों का प्रयोग करें। किसी वैद्य द्वारा बनाया हुआ योग ज्यादा लाभ करता है क्योंकि अधिक मात्रा में बनाने तथा विभिन्न प्रकार के परिरक्षक रसायन, रंग, सुगन्ध आदि के मिलने से इसकी गुणवत्ता प्रभावित होती है।

(4) शास्त्रोक्त प्रयोग- 1 ग्राम स्वर्ण भस्म, 1 ग्राम रजत भस्म, 3 ग्राम मोती पिष्टी, 5 ग्राम शिलाजित्वादि लोह, 10 ग्राम गिलोय सत्व, 5 ग्राम वंग भस्म, 10 ग्राम चौसठ प्रहरी पिप्पली- इन सबको अच्छी तरह से खरल कर 40 पुड़ियां बना लें।

सेवन विधि- शरीर का शोधन करके एक पुड़िया सुबह भूखे पेट एक चम्मच शहद में मिला कर चाटें। एक घण्टे तक कुछ न खाएं। रसायन सेवन काल में सात्विक भोजन करें। खट्टी तली हुई चीजें और बासी भोजन न करें। यह प्रयोग भी 40 दिन तक करना चाहिए।

(6) शतावरी घृत – शतावरी 500 ग्राम, जीवक ऋषभक, मेदा, महामेदा, काकोली, क्षीर काकोली, मुनक्का, मुलैठी, मुदगपर्णी, माषपर्णी, विदारीकन्द, लाल चन्द- प्रत्येक 10-10 ग्राम। सभी द्रव्यों को यवकूट कर 8 किलो पानी में डाल कर धीमी आंच पर पकाएं और जब 2 किलो पानी शेष रह जाए तब इसमें गाय का एक किलो घी मिला कर वापिस धीमी आंच पर उबालें। जब इसका क्वाथ जल जाए और घी शेष रह जाए तब छान कर कांच या स्टील के बर्तन में रख लें।

सेवन विधि- पहले अच्छे जुलाब से पेट साफ़ करें फिर 5 ग्राम घी में 5 ग्राम पिसी मिश्री मिलाकर चाटें और ऊपर से गाय का दूध पीएं। इसका प्रयोग शीत ऋतु में एक माह तक करना चाहिए।

हमारे रसोईघर की औषधियों (मसालों) का सेवन हमारे शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता ही नहीं बढती हमे रोग हो जाने पर रोगमुक्त कर देती है जरूरत है उनके गुण उपयोग का ज्ञान ग्रहण करना व जीवन मे उपयोग करना ही सबसे बड़ी समझदारी है बजाये रासायनयुक्त दवायों की।

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